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The Constitution of India Union And Its Territory LLB Law

  The Constitution of India Union And Its Territory LLB Law:- The Constitution of India Preamble, Part 1 The Union and Its Territory LLB Low Study Material Notes in Hindi (English) Language Available.

The Constitution of India Notes

भारत का संविधान (The Constitution of India)

    उदेशिका (Preamble)

हम, भारत के लोग, भारत को एक (संपर्ण प्रभुत्व-संपत्र समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनौतिक न्यान, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए. तथा न सब में व्यकित कि गरिमा और2 {राष्ट्र की एकता और अखंडता } सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ने के लिए द्रढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर,1949 ईं (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्वारा इस संविधान को अंगीक्त, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। टिप्पणी संविधान की उदेशिका संविधान का अभिन्न भाग है और सरकार का लोकतान्त्रिक रुप, संघीय संरचना, राष्ट्र की एकता और अखण्डता पथं-निरपेक्षता, समाजवाद. समाजिक न्याय और न्यायिक पुनर्विलोक संविधान के आधारभूत लक्षण हैं। एस. आर. बोम्मई वि. भारत संघ, ए. आई. आर. 1994 एस. सी. 1918: (1994) 3 एस. सी. सी. 1. हमारे संविधान की उदेशिका हमारे राष्ट्र के लक्ष्ण के रूप में मानव करिमा की व्रध्दि का प्रतिज्ञान करती हैं। नन्दिनी सरदार एवं अन्य वि. छत्तीसगढ़ राज्य, ए. आई. आर. 2011 एस. सी. 2839: (2011) 7 एस. सी. सी. 547. भारत के राष्ट्रपति के पद से प्रारम्भ होने वाले संवेधानिक पद संविधान की उदेशिका में वर्णित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तात्यर्यित हैं। इन पदों में से प्रत्येक संविधान की उदेशिका में निर्दिष्ट लक्ष्यों को महसूस करने के लिये इस देश के लोकों के लिये इसे सम्भव बनाने के लिये स्थापित संयन्त्र में संघटक है । ऐसे पदों को धारण करने के लिये आनुषंगिक कोई मौद्रिक लाभ केवल राष्ट्र की सेवा में पद धारक द्वारा खर्च कि. क. समय और ऊर्जा के लिये प्रतिकर, प्रदान करना है। इसी कारण से विधान सभा केसदस्य को आजीविरा तवनामे रे प्रयोजन के लिये पद धारण करने के रूप में नहीं माना जा सकता। अलगापूरम आर. मोहनराज वि. तमिलनाडू विधान सभा, ए. आई.आर. 2016 एस. सी. 867: (2016) 6 एस. सी. सी. 82.

  भाग 1

  संघ और उसका राज्यक्षेत्र (The Union And Its Territory)

  1. संघ का ना और राज्यक्षेत्र.-(1) भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
3[(2)  राज्य और उनके राज्यक्षेत वे होंके जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।] (3) भारत के राज्यक्षेत्र में-
  1. संविधान ( बयालीसवा संशोधन) अधिनियम, 1976की धार 2 द्वारा (3-1-1977 से) “ प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक कणराज्य” के स्थान पर प्रितस्थापित।
  2. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) राष्ट्र की एकता के स्थान पर प्रितिस्थापित।
  3. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 द्वारा खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
(क)  राज्यों के राज्यक्षेत्र, 1[(ख) पहली अनुसूची में विर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और  ] (ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएं, समाविष्ट होंगे।
  1. नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना.- संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनोम और शर्तों पर, जो वह ठीक समझें संघ में नए राज्योम का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
 टिप्पणी शब्द “ संसद” के दोनोम सदन और राष्ट्रपति अभिप्रेत हैं और को संज्ञापित करता है। शंकरी प्रसाद सिंह देव वि. भारत संघ. ए. आई. आर. 1951 एस. सी. 458. 2[-क. सिक्कम का संघ के साथ सह.क्त किया जाना.- [संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) निरसित)]]
  1. नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यचों के क्षेत्रो सीमाओं या नामों में परिवर्तन.- संसद्. विधि द्वार-
  • किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधकि राज्यों को या राज्यों के भागो को मिलाकर नए राज्य का निर्मण कर सकेगी,
  • किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ सकेगीं,
  • किसी राज्. का क्षेत्र घटा सकेगी,
  • किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी,
  • किसी राज्. के नाम. में परिवर्तन कर सकेगी.
3[ परन्तु इस प्रयोजन के लिए कोई विधे.क राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना और जहाँ विधे.क में अंदर्विष्ट प्रस्तापना का प्रभाव 4[ * * *] राज्यों में से किसी के क्षेत्र सीमाओं या नाम पर पड़ता हैं वहाँ जब तक उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी अवधि के भीतर जो निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाए या ऐसी अतिरिक्त अवधि के भीतर जो राष्ट्रपति द्वार अनुज्ञात की जाए, प्रकट किए जाने के लिए वह विधेयक राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित नहीं हो गई है, संसद के किसी सदन में पुन:स्थापित नहीं किया जाएगा। ] 5[स्पष्टीकरण1.-  इस अनुच्छेद के खखंड (क) से खंड (ड़) में “राज्य” के अन्तर्गत संघ राज्यक्षेत्र है, किन्तु परन्तुक में “राज्य” के अंतर्गत संघ राज्यक्षेत्र नहीं है। स्पष्टीकरण 2.-  खंड (क) द्वारा संसद को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी भाग को किसी अन्य राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के साथ मिलाकर नए राज्य या सघ राज्यक्षेत्र का निर्माण करना है।]  टिप्पणी इस अनुच्छेद के अधीन संसद संविधाम की सातवीं अनुसूची की सूची 2  में वर्णत विषयॉ \ मामलों के सम्बन्ध में राज्य विधान मण्डल या राज्य कार्यपालिका की शक्तियों को छीन नहीं सकती। हि. प्र. राज्य वि. भारत संघ, (2011) 13 एस. सी. सी. 344.
  1. पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां.- (1) अनुच्छेद 2 या अनुच्छेद 3 में निर्दिष्ट किसी विधि में पहली अनुसूची और चौधी अनुसूची के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए
  2. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  3. संविदान ( पैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा (1-3-1975 से) अंत:स्थापित।
  4. संविधान (पांचवां संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 2 द्वारा परन्तुक के स्थान पर प्रतिसथापित।
  5. संविधान ( सादवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहवी अनुसूच के भाग क या भाक ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
  6. संविधान (अठारहवां संशोधन) अधिनियम, 1966 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी (जिनके अंतर्गत ऐसी विधि सेप्रभावित राज्य या राज्यों के संसद में और विधान-मंडल या विधान-मंडलों में प्रतिनिधित्व के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट हो सकेंके जिन्हें संसद आवश्यक समझे। (2) पूर्वोक्त प्राकर की को ई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी। टिप्पणी अनुच्छेद 3 से 4 में संसद की विधि निर्मित करन की शक्ति सर्वोच्च है, जिसे विधायी अनुपावन की कमी के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जा सकता: मल्लापेरियार इनवाइरमेण्टल प्रोटेक्शन फोरम वि. भारत संघ, ए. आई. आर. 2006 एस. सी 1428 : (2006) 3 एस. सी. सी. 643.

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