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The Constitution of India Trade Commerce and Intercourse Within Territory of India LLB Law 

The Constitution of India Trade Commerce and Intercourse Within Territory of India LLB Law:- Freedom of Trade, Commerce and Intercourse Subject to the other provisions of this Part, trade, commerce and intercourse throughout the territory of India shall be free, LLB Low Notes Study Material Important Questions With Answer in PDf Download in English and Hindi.

 

भाग 13 (Part XIII)

भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम (Trade Commerce and Intercourse Within The Territory of India)

  1. व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता.-इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र व्यापार, वाणिज्य और समागम अबाध होगा।
टिप्पणी यह अनुच्छेद प्रावधान करता है कि सम्पूर्ण भारत में व्यापार, वाणिज्य और संव्यवहार स्वतन्त्र और केवल संविधान के भाग 13 के प्रावधानों के अध्यधीन होगा। यह अनुच्छेद अन्तर्राज्यिक वाणिज्य व्यापार और संव्यवहार से सम्बन्धित मामलों में राज्य की विधायी शक्तियों को सीमित करने की अपेक्षा करता है। इस अनुच्छेद के अधीन उद्देश्य यह सुनिश्चित करने के लिये है कि भारत की आर्थिक एकता को आन्तरिक अवरोधन द्वारा भंग नहीं किया जा सकता हैं। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 19 (1) (छ) के अधीन केवल नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकार के विपरीत, अनुच्छेद 301 सभी व्यक्तियों को उसके लाभ को प्रदान करने की अपेक्षा करता है। पंजाब राज्य वि० दिवान्स माडर्न ब्रेवरीज लि०, (2004) 11 एस० सी० सी० 26. |
  1. व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बधन अधिरोपित करने की संसद् की शक्ति.संसद् विधि द्वारा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग के भीतर व्यापार, वाणिज्य या समागम की स्वतंत्रता पर ऐसे निर्बधन अधिरोपित कर सकेगी जो लोक हित में अपेक्षित हों।
  2. व्यापार और वाणिज्य के संबंध में संघ और राज्यों की विधायी शक्तियों पर निर्बधन.(1) अनुच्छेद 302 में किसी बात के होते हुए भी, सातवीं अनुसूची की सूचियों में से किसी में व्यापार और वाणिज्य संबंधी किसी प्रविष्टि के आधार पर, संसद को या राज्य के विधान-मंडल को, कोई ऐसी विधि बनाने की शक्ति नहीं होगी जो एक राज्य को दूसरे राज्य से अधिमान देती है या दिया जाना प्राधिकृत करती है अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच कोई विभेद करती है या किया जाना प्राधिकृत करती है। |
(2) खंड (1) की कोई बात संसद् को कोई ऐसी विधि बनाने से नहीं रोकेगी जो कोई ऐसा अधिमान देती है या दिया जाना प्राधिकृत करती है अथवा कोई ऐसा विभेद करती है या किया जाना प्राधिकृत करती है, यदि ऐसी विधि द्वारा यह घोषित किया जाता है कि भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में माल की कमी से उत्पन्न किसी स्थिति से निपटने के प्रयोजन के लिए ऐसा करना आवश्यक है। |
  1. राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बधन.-अनुच्छेद 301 या अनुच्छेद 303 में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,
(क) अन्य राज्यों [या संघ राज्यक्षेत्रों से आयात किए गए माल पर कोई ऐसा कर अधिरोपित कर सकेगा जो उस राज्य में विनिर्मित या उत्पादित वैसे ही माल पर लगता है, किन्तु इस प्रकार कि उससे इस तरह आयात किए गए माल और ऐसे विनिर्मित या उत्पादित माल के बीच कोई विभेद न हो; और (ख) उस राज्य के साथ या उसके भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर ऐसे युक्तियुक्त निर्बधन अधिरोपित कर सकेगा जो लोक हित में अपेक्षित हों :
  1. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंत:स्थापित ।।
परन्तु खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए कोई विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना किसी राज्य के विधान-मंडल में पुर:स्थापित या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा।
  1. विद्यमान विधियों और राज्य के एकाधिकार का उपबंध करने वाली विधियों की व्यावत्ति.––वहां तक के सिवाय जहां तक राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा निदेश दे, अनुच्छेद 301 और अनुच्छेद 303 की कोई बात किसी विद्यमान विधि के उपबंधों पर कोई प्रभाव नहीं डालेगी और अनुच्छेद 301 की कोई बात संविधान (चौथो संशोधन) अधिनियम, 1955 के प्रारम्भ से पहले बनाई गई किसी विधि के प्रवर्तन पर वहां तक कोई प्रभाव नहीं डालेगी जहां तक वह विधि किसी ऐसे विषय से संबंधित है, जो अनुच्छेद 19 के खण्ड (6) के उपखण्ड (ii) में निर्दिष्ट है या वह विधि ऐसे किसी विषय के संबंध में, जो अनुच्छेद 19 के खण्ड (6) के उपखण्ड (ii) में निर्दिष्ट है, विधि बनाने से संसद या किसी राज्य के विधानमंडल को नहीं रोकेगी।] |
  2. पहली अनुसूची के भाग ख के कुछ राज्यों की व्यापार और वाणिज्य पर निर्बन्धनों के अधिरोपण की शक्ति.-[संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित ।]
  3. अनुच्छेद 301 से अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति.संसद् विधि द्वारा, ऐसे प्राधिकारी की नियुक्ति कर सकेगी जो वह अनुच्छेद 301, अनुच्छेद 302, अनुच्छेद 303 और अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए समुचित समझे और इस प्रकार नियुक्त प्राधिकारी को ऐसी शक्तियाँ प्रदान कर सकेगी और ऐसे कर्तव्य सौंप सकेगी जो वह आवश्यक समझे ।

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