The Constitution of India The State Legislature LLB Law
The Constitution of India The State Legislature LLB Law:- LLB Low The Constitution of India Thired Chapter The State Legislature Notes Study Material Previous Year Mock Test paper in Hindi (English) Language.
अध्याय 3 (Chapter III)
साधारण (General)
- राज्यों के विधान-मंडलों का गठन.-(1) प्रत्येक राज्य के लिए एक विधान-मंडल होगा जो राज्यपाल और
- संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4) अंत:स्थापित किया गया था और उसका संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) लोप किया गया।
(क) 1[आंध्र प्रदेश] बिहार, [* * *], [मध्य प्रदेश], [* * *], [महाराष्ट्र], 6[कर्नाटक,] [* * *] [[तमिलनाडु, तेलंगाना]] 10[ और उत्तर प्रदेश] राज्यों में दो सदनों से; ।
(ख) अन्य राज्यों में एक सदन से, मिलकर बनेगा।
(2) जहां किसी राज्य के विधान-मंडल के दो सदन हैं वहाँ एक का नाम विधान परिषद् और दूसरे का म विधान सभा होगा और जहाँ केवल एक सदन है वहाँ उसका नाम विधान सभा होगा।
- राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन.-(1) अनुच्छेद 168 में किसी बात के होते हए भी, संसद विधि द्वारा किसी विधान परिषद् वाले राज्य में विधान परिषद् के उत्सादन के लिए या ऐसे राज्य में, जिसमें विधान परिषद् नहीं है, विधान परिषद् के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी, यदि उस राज्य की विधान सभा ने इस आशय का संकल्प विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है।
(2) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे जिन्हें संसद् आवश्यक समझे।
(3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी। | il[170. विधान सभाओं की संरचना.-(1) अनुच्छेद 333 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य की विधान सभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनधिक और साठ से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी। |
(2) खंड (1) के प्रयोजनों के लिए, प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो। |
12[स्पष्टीकरण.-इस खंड में जनसंख्या” पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं।
- * आंध्र प्रदेश,” शब्दों का आंध्र प्रदेश विधान परिषद् (उत्सादन) अधिनियम, 1985 (1985 का 34) की धारा 4 द्वारा (1 6-1985 से) लोप किया गया और पुनः आंध्र प्रदेश विधान परिषद् अधिनियम, 2005 (2006 का 1) की धारा 3 द्वारा (30-3-2007 से) अंत:स्थापित।।
मुम्बई पुनेरगठन अधिनियम 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1–5-1960 से) “मुम्बई” शब्द का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 8 द्वारा (जो अभी प्रवृत्त नहीं हुई है, तारीख बाद में अधिसूचित की जाएगी) अंत:स्थापित।
- तमिलनाडु विधान परिषद् (उत्सादन) अधिनियम, 1986 (1986 का 40) की धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से) तमिलनाडु’ शब्द का लोप किया गया।
- मुंबई पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) अंत:स्थापित।
- मैसूर राज्य (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1973 (1973 का 31) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) * मैसूर” के स्थान पर प्रतिस्थापित जिसे संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 8 (1) द्वारा अंत:स्थापित किया गया था।
- पंजाब विधान परिषद् (उत्सादन) अधिनियम, 1969 (1969 का 46) की धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) “पंजाब” शब्द का लोप किया गया।
- तमिलनाडु विधान परिषद् अधिनियम (2010 का 16) की धारा 3 द्वारा (जो अभी प्रवृत्त नहीं हुई है, तारीख बाद में | अधिसूचित की जाएगी) अंत:स्थापित।
- आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 (2014 का 6) की धारा 96 द्वारा (2-6-2014 से) तमिलनाडु” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- पश्चिमी बंगाल विधान परिषद् (उत्सादन) अधिनियम, 1969 (1969 का 20) की धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) उत्तर । प्रदेश और पश्चिमी बंगाल” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 9 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छेद 170 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
रन्तु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं,
निर्देश का, जब तक सन् ‘[2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह -[2001] की जनगणना के प्रति निर्देश है।]
(3) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन: समायोजन किया जाएगा जो संसद् विधि द्वारा अवधारित करे :
परन्तु ऐसे पुन: समायोजन से विधान सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान विधान सभा का विघटन नहीं हो जाता है:]
3[परन्तु यह और कि ऐसा पुनः समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुनः समायोजन के प्रभावी होने तक विधान सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान हैं:
परन्तु यह और भी कि जब तक सन् ![2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक 4[इस खंड के अधीन,
(i) प्रत्येक राज्य की विधान सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुनः समायोजित । स्थानों की कुल संख्या का; और
(ii) ऐसे राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो [2001 की जनगणना के आधार पर पुनः समायोजित किए जाएं, पुनः समायोजन आवश्यक नहीं होगा।]] |
- विधान परिषदों की संरचना.-(1) विधान परिषद् वाले राज्य की विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के 6[एक-तिहाई] से अधिक नहीं । होगी: परन्तु किसी राज्य की विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में चालीस से कम नहीं। होगी।
(2) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक किसी राज्य की विधान परिषद् की। संरचना खंड
(3) में उपबंधित रीति से होगी। (3) किसी राज्य की विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या का
(क) यथाशक्य निकटतम एक-तिहाई भाग उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों और। अन्य ऐसे स्थानीय प्राधिकारियों के, जो संसद् विधि द्वारा विनिर्दिष्ट करें, सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा; ।
(ख) यथाशक्य निकटतम बारहवां भाग उस राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों से। मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा, जो भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वर्ष से स्नातक हैं या जिनके पास कम से कम तीन वर्ष से ऐसी अर्हताएं हैं जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि या उसके अधीन ऐसे । किसी विश्वविद्यालय के स्नातक की अर्हताओं के समतुल्य विहित की गई हों;
(ग) यथाशक्य निकटतम बारहवां भाग ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा जो राज्य के भीतर माध्यमिक पाठशालाओं से अनिम्न स्तर की ऐसी
- संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) 2000” के स्थान पर प्रतिस्थापित।।
- संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) *1971 के स्थान पर प्रतिस्थापित । और पुनः संविधान (सत्तासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के स्थान पर । प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित ।।
- संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) कुछ शब्दों को स्थान पर । प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 10 द्वारा (1-11-1956 से) “एक चौथाई’ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
शिक्षा संस्थाओं में, जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएं, पढ़ाने के काम में कम से कम तीन वर्ष से लगे हुए हैं;
(घ) यथाशक्य निकटतम एक-तिहाई भाग राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों । में से निर्वाचित होगा जो विधान सभा के सदस्य नहीं हैं;
(ङ) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खंड (5) के उपबंधों के अनुसार नाम निर्देशित किए जाएंगे। | (4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग) के अधीन निर्वाचित होने वाले सदस्य ऐसे प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में चुने जाएंगे, जो संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किए जाएं तथा उक्त उपखंडों के और उक्त खंड के उपखंड (घ) के अधीन निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होंगे।
(5) राज्यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ङ) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात्:
साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा।
- राज्यों के विधान-मंडलों की अवधि.-(1) प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से 1[पांच वर्ष] तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और 1[पांच वर्ष] की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम विधान सभा का विघटन होगाः
परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, तब संसद् विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् किसी भी दशा में उसका विस्तार छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा। |
(2) राज्य की विधान परिषद् का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य संसद् द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त बनाए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएंगे।
- राज्य के विधान-मंडल की सदस्यता के लिए अर्हता.- कोई व्यक्ति किसी राज्य के विधानमंडल के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब2[
(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है;] ।
(ख) वह विधान सभा के स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का और विधान परिषद् के स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का है; और
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं हैं जो इस निमित्त संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएं।
[174. राज्य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन.-(1) राज्यपाल, समय-समय पर, राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहत करेगा, किन्तु उसके एट सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।
(2) राज्यपाल, समय-समय पर
(क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा।
- संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्दों पर । वर्ष’ के स्थान पर छह वर्ष” प्रतिस्थापित किए गए थे।
- संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के स्थान प
प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 8 द्वारा अनुच्छेद 174 के स्थान पर तिस्थापित।
(ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा।]
- सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार.-(1) राज्यपाल, विधान सभा में या विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधानमंडल के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
(2) राज्यपाल, राज्य के विधान-मंडल में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा।
- राज्यपाल का विशेष अभिभाषण.-(1) राज्यपाल, 1[विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में] विधान सभा में या विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान-मंडल को उसके आह्वान के कारण बताएगा। |
(2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए 2[* * *] उपबंध किया जाएगा।
- सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार.- प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान-मंडल की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
राज्य के विधान-मंडल के अधिकारी (Officers of the State Legislature)
- विधान सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष.-प्रत्येक राज्य की विधान-सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तब-तब विधान सभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी। ।
- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना.-विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) यदि विधान सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा;
(ख) किसी भी समय, यदि वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को संबोधित और यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; और
(ग) विधान सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा। परन्तु खंड
(ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो:
परन्तु यह और कि जब कभी विधान सभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात् होने वाले विधान सभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा। |
- अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति.-(1) जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तब उपाध्यक्ष, या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो विधान सभा का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा। |
(2) विधान सभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष या यदि वह भी अनपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई-
- संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 9 द्वारा प्रत्येक सत्र” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 9 द्वारा ‘‘तथा सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को अग्रता देने के लिए” शब्दों का लोप किया गया।
व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विधान सभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा। |
- जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना.-(1) विधान सभा की किसी बैठक में, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब अध्यक्ष, या जब उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है। तब उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 180 के खंड
(2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनुपस्थित है।
| (2) जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विधान सभा में विचाराधीन है तब उसको विधान सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह अनुच्छेद 189 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमतः ही मत देने का हकदार होगा किन्तु मत बराबर होने की दशा में मत देने का हकदार नहीं होगा।
- विधान परिषद् का सभापति और उपसभापति.--विधान परिषद् वाले प्रत्येक राज्य की विधान परिषद्, यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को अपना सभापति और उपसभापति चुनेगी और जब-जब सभापति या उपसभापति का पद रिक्त होता है तब-तब परिषद् किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति चुनेगी।
- सभापति और उपसभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटार जाना.-विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) यदि विधान परिषद् का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा;
(ख) किसी भी समय, यदि वह सदस्य सभापति है तो उपसभापति को संबोधित और यदि वह सदस्य उपसभापति है तो सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; और
(ग) विधान परिषद् के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से
हटाया जा सकेगा :
परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो।
- सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उपसभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति-(1) जब सभापति का पद रिक्त है तब उपसभापति,या यदि उपसभापति का पद भी रिक्त है तो विधान परिषद् का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा। |
(2) विधान परिषद् की किसी बैठक से सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति, या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो विधान परिषद् की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विधान परिषद् द्वारा अवधारित किया जाए, सभापति के रूप में कार्य करेगा।
- जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना.-(1) विधान परिषद् की किसी बैठक में, जब सभापति को उसके पद से हटाने क कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 184 के खंड
(2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते है जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।
(2) जब सभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विधान परिषद् में विचाराधीन है तळ उसको विधान परिषद में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह अनुच्छेद 189 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमतः ही मत देने का हकदार होगा किन्तु मत बराबर होने की दशा में मत देने का हकदार न९ हो ।
186, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा सभापति और उपसभापति के वेतन और भत्ते.-विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को, ऐसे वेतन और भत्तों का जो । राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, नियत करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया। जाता है तब तक ऐसे वेतन और भत्तों का जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, संदाय किया जायेगा। |
- राज्य के विधान-मंडल का सचिवालय.-(1) राज्य के विधान-मंडल के सदन को या । प्रत्येक सदन का पृथक सचिवीय कर्मचारिवृंद होगाः । परन्तु विधान परिषद वाले राज्य के विधान-मंडल की दशा में, इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसे विधान-मंडल के दोनों सदनों के लिए सम्मिलित पदों के सृजन को निवारित करती है।
(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों के सचिवीय कर्मचारिर्वेद में भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन कर सकेगा।
| (3) जब तक राज्य का विधान-मंडल खंड (2) के अधीन उपबंध नहीं करता है तब तक राज्यपाल, | यथास्थिति, विधान सभा के अध्यक्ष या विधान परिषद के सभापति से परामर्श करने के पश्चात् विधान सभा के या विधान परिषद् के सचिवीय कर्मचारिवंद में भर्ती के और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए नियम उक्त खंड के अधीन बनाई गई किसी | विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रभावी होंगे।
कार्य संचालन (Conduct of Business)
- सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान.-राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा। |
- सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति.-(1) इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष या सभापति को अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़कर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा। । अध्यक्ष या सभापति, अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमत: मत नहीं देगा, किन्तु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा। |
(2) राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाही विधिमान्य होगी। ।
(3) जब तक राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति दस सदस्य या सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग, इसमें से जो भी अधिक हो, होगी। |
(4) यदि राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो । अध्यक्ष या सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है।
सदस्यों की निरर्हताएं (Disqualification of Members)
- स्थानों का रिक्त होना.-(1) कोई व्यक्ति राज्य के विधान-मंडल के दोनों सदनों का सदस्य। नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए उस राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा उपबंध करेगा।
(2) कोई व्यक्ति पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट दो या अधिक राज्यों के विधान-मंडलों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति दो या अधिक ऐसे राज्यों के विधान-मंडलों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात् जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे सभी
- देखिये विधि मंत्रालय की अधिसूचना सं० एफ० 46/50-सी, दिनांक 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृष्ट 678 में प्रकाशित समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम, 1950।।
राज्यों के विधान-मंडलों में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने एक राज्य को छोड़कर अन्य राज्यों के विधान-मंडलों में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है। |
(3) यदि राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य
(क) [अनुच्छेद 191 के खंड (1) या खंड (2)] में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो जाता है, या
[(ख) यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र, यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है,] तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा : 3[परन्तु उपखंड (ख) में निर्दिष्ट त्यागपत्र की दशा में, यदि प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, यथास्थिति, अध्यक्ष या सभापति का यह समाधान हो जाता है। कि ऐसा त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करेगा।] |
(4) यदि किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा :
परंतु साठ दिन की उक्त अवधि की संगणना करने में किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया। जाएगा जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है।
- सदस्यता के लिए निरर्हताएं.–(1) कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरहित होगा—
(क) यदि वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना राज्य के विधान-मंडल ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है;
(ख) यदि वह विकृतचित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है;
(ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है;
(घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से। अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किए हुए है;
(ङ) यदि वह संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर
दिया जाता है।
4[स्पष्टीकरण.–इस खंड के प्रयोजनों के लिए कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा। जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है। |
5[(2) कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद् का सदस्य होने के लिए निरहित होगा यदि वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है।]
6[192. सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय.--(1) यदि यह प्रश्न उठता है। कि किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 191 के खंड (1) में वर्णित
- संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) * अनुच्छेद 191 के खंड (1) ” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (तैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान (तैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थापित।
- संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) (2) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के । लिए” के स्थान पर प्रतिस्थापित।।
- संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंत:स्थापित ।।
- अनुच्छेद 192, संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 33 द्वारा (3-1-1977 से) और तत्पश्चात् । संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 25 द्वारा (20-6-1979 से) संशोधित होकर उपरोक्त रूप में आया।
किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राज्यपाल को विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा। |
(2) ऐसे किसी प्रश्न पर विनिश्चय करने से पहले राज्यपाल निर्वाचन आयोग की राय लेगा और ऐसी राय के अनुसार कार्य करेगा।]
- अनुच्छेद 188 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या अर्हित न होते हुए या निरहित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति-यदि किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद में कोई व्यक्ति अनुच्छेद 188 की अपेक्षाओं का अनुपालन करने से पहले, या यह जानते हुए कि मैं उसकी सदस्यता के लिए अर्हित नहीं हूँ या निरहित कर दिया गया हैं या संसद् या राज्य के विधान-मंडल लाई गई किसी विधि के उपबंधों द्वारा ऐसा करने से प्रतिषिद्ध कर दिया गया हूँ, सदस्य के रूप में बैठता है या मत देता है तो वह प्रत्येक दिन के लिए जब वह इस प्रकार बैठता है या मत देता है, पांच सौ रुपये की शास्ति का भागी होगा जो राज्य को देय ऋण के रूप में वसूल की जाएगी। | राज्यों के विधान-मंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां
- विधान-मंडलों के सदनों की तथा उनले सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार, आदि.-(1) इस संविधान के उपबंधों के और विधान-मंडल की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल में वाक्-स्वातंत्र्य होगा।
(2) राज्य के विधान-मंडल में या उसकी किसी समिति में विधान-मंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
(3) अन्य बातों में राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन की और ऐसे विधान-मंडल के किसी सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो वह विधान-मंडल, समय-समय पर, विधि द्वारा परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक 1[वहीं होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 26 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं] ।। |
(4) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में । खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे उस विधान-मंडल के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं।
- सदस्यों के वेतन और भत्ते.-राज्य की विधान सभा और विधान परिषद् के सदस्य ऐसे वेतन और भत्ते, जिन्हें उस राज्य का विधान-मंडल, समय-समय पर, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस संबंध में इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भत्ते, ऐसी दरों से और ऐसी शर्तों पर, जो तत्स्थानी प्रांत की विधान सभा के सदस्यों को इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू थीं, प्राप्त करने के हकदार होंगे।
विधायी प्रक्रिया (Legislative Procedure)
- विधेयकों के पुरःस्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध.—(1) धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 198 और अनुच्छेद 207 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक विधान परिषद् वाले राज्य के विधान-मंडल के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा। | (2) अनुच्छेद
197 और अनुच्छेद 198 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक विधान परिषद वाले राज्य के विधान-मंडल के सदनों द्वारा तब तक पारित किया गया, नहीं समझा जाएगा जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित, जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए हैं, उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते हैं।
- संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कुछ शब्दों के स्थान ८ प्रतिस्थापित ।
(3) किसी राज्य के विधान-मंडल में लंबित विधेयक उसके सदन या सदनों के सत्रावसान के कारण विधानत्यपगत नहीं होगा।
(4) किसी राज्य की विधान परिषद में लंबित विधेयक, जिसको विधान सभा ने पारित नहीं किया है। विधान सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा।
(5) कोई विधायक, जो किसी राज्य की विधान सभा में लम्बित है या जो विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और विधान परिषद में लम्बित है, विधान सभा के विघटन पर व्यपगत हो जायेगा |
- धन विधेयकों से भिन्न विधेयकों के बारे में विधान परिषद की शक्तियों पर 1) यदि विधान परिषद् वाले राज्य की विधान सभा द्वारा किसी विधेयक के पारित किए जाने और विधान परिषद् को पारेषित किए जाने के पश्चात्
(क) विधान परिषद् द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया जाता है, या
(ख) विधान परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना, तीन मास से अधिक बीत गए हैं, या ।
(ग) विधान परिषद् द्वारा विधेयक ऐसे संशोधनों सहित पारित किया जाता है जिनसे विधान
सभा सहमत नहीं होती है, तो विधान सभा विधेयक को, अपनी प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों के अधीन रहते हार किसी पश्चातवर्ती सत्र में ऐसे संशोधनों सहित या उसके बिना, यदि कोई हो, जो विधान परिषद ने किए हैं। सुझाए हैं या जिनसे विधान परिषद् सहमत है, पुनः पारित कर सकेगी और तब इस प्रकार पारित विधेयक को विधान परिषद् को पारेषित कर सकेगी।
(2) यदि विधान सभा द्वारा विधेयक इस प्रकार दुबारा पारित कर दिए जाने और विधान परिषद् को पारेषित किए जाने के पश्चात्
(क) विधान परिषद् द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया जाता है, या
(ख) विधान परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तारीख से, उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना, एक मास से अधिक बीत गया है, या।
(ग) विधान परिषद् द्वारा विधेयक ऐसे संशोधनों सहित पारित किया जाता है, जिनसे विधान सभा सहमत नहीं होती है, तो विधेयक राज्य के विधान-मंडल के सदनों द्वारा ऐसे संशोधनों सहित, यदि कोई हों, जो विधान परिषद् ने किए हैं या सुझाए हैं और जिनसे विधान सभा सहमत हैं, उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा दुबारा पारित किया गया था।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी।
- धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया.-(1) धन विधेयक विधान परिषद् में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।
(2) धन विधेयक विधान परिषद् वाले राज्य की विधान सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् विधान परिषद को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और विधान परिषद् विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित विधान सभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर विधान सभा, विधान परिषद् की सभी या किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी।
(3) यदि विधान सभा, विधान परिषद् की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक विधान परिषद् द्वारा सिफारिश किए गए और विधान सभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा। | (4) यदि विधान सभा, विधान परिषद् की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन । विधेयक विधान परिषद् द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में। पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा पारित किया गया था। |
(5) यदि विधान सभा द्वारा पारित और विधान परिषद् को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर विधान सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की।
समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह विधान सभा द्वारा पारित किया गया था।
- *धन विधेयक” की परिभाषा.-(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात्
(क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन;
(ख) राज्य द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा राज्य द्वारा अपने ऊपर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन;
(ग) राज्य की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना;
(घ) राज्य की संचित निधि में से धन का विनियोग;
(ङ) किसी व्यय को राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रकम को बढ़ाना;
(च) राज्य की संचित निधि या राज्य के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की। अभिरक्षा या उसका निर्गमन; या ।
(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।।
(2) कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा, कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।
(3) यदि यह प्रश्न उठता है कि विधान परिषद् वाले किसी राज्य के विधान-मंडल में पुरःस्थापित कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर उस राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होगा।
(4) जब धन विधेयक अनुच्छेद 198 के अधीन विधान परिषद् को पारेषित किया जाता है और जब वह अनुच्छेद 200 के अधीन अनुमति के लिए राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब प्रत्येक धन विधेयक पर विधान सभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है।
- विधेयकों पर अनुमति.-जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा या विधान परिषद् वाले राज्य में विधान-मंडल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है : |
परंतु राज्यपाल अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक प्रस्तुत किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो, सदन या सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि सदन या दोनों सदन विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करें और विशिष्टतया किन्हीं ऐसे संशोधनों के पुरःस्थापन की वांछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन या दोनों सदन विधेयक पर तदनुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राज्यपाल के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुमति नहीं रोकेगा : |
परन्तु यह और कि जिस विधेयक से, उसके विधि बन जाने पर, राज्यपाल की राय में उच्च न्यायालय की शक्तियों का ऐसा अल्पीकरण होगा कि वह स्थान, जिसकी पूर्ति के लिए वह न्यायालय इस संविधान द्वारा परिकल्पित है, संकटापन्न हो जाएगा, उस विधेयक पर राज्यपाल अनुमति नहीं देगा, किन्तु उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा।
- विचार के लिए आरक्षित विधेयक – जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लया जाता है तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है |
परन्त जहां विधेयक धन विधेयक नहीं है वह वधेयक को, यथास्थिति, राज्य के विधान -00 के पहले परंतुक में वर्णित है, लौटा दे ! देश मिलने की तारीख से छह मास की अवधि के भी केया जाएगा और यदि वह सदन या सधन विधेयक नहीं है वहाँ राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निदेश दे सकेगा कि वह व राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों को ऐसे संदेश के साथ, जो अनुच्छेद ॐ वर्णित है, लौटा दें और जब कोई विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब ऐसा त से छह मास की अवधि के भीतर सदन या सदनों द्वारा उस पर तदनुसार पुनर्विचार । यदि वह सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया तो उसे राष्ट्रपति के समक्ष उसके विचार के लिए फिर से प्रस्तुत किया जाएगा।
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया (Procedure in Financial Maters)
वार्षिक वित्तीय विवरण.-(1) राज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में राज्य के विधानपदनों के समक्ष उस राज्य की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण मंडल के सदन या सदनों के समक्ष उस राज्य की रखवाएगा जिसे इस भाग में वार्षिक वित्तीय विवरण” कहा गया है। ,
वार्षिक वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में=
(क) इस संविधान में राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय के रूप में वर्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, और।
(ख) राज्य की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थापित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां,
पथक-पथक दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा।
(3) निम्नलिखित व्यय प्रत्येक राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय होगा, अर्थात्
(क) राज्यपाल की उपलब्धियां और भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय;
(ख) विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा विधान परिषद् वाले राज्य की दशा में विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति के भी वेतन और भत्ते; ।
(ग) ऐसे ऋण भार जिनका दायित्व राज्य पर है, जिनके अंतर्गत ब्याज, निक्षेप निधि भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संबंधित अन्य व्यय हैं;
(घ) किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतनों और भत्तों के संबंध में व्यय;
(ङ) किसी न्यायालय या माध्यस्थम् अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए। अपेक्षित राशियां;
(च) कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया जाता है।
- विधान-मंडल में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया,-(1) प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन ” का साचत निधि पर भारित व्यय से संबंधित हैं वे विधान सभा में मतदान के लिए नहीं रखे जाएग, ५२ खड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह विधान-मंडल में उन प्राक्कलना म से किसी प्राक्कलन पर चर्चा को निवारित करती है। अनुदानों की मांगों के रूप में रखे जाएंगे और विध
(2) उत प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन अन्य व्यय से संबंधित हैं वे विधान सभा के समक्ष । * ॥ के रूप में रखे जाएंगे और विधान सभा को शक्ति होगी कि वह किसी मांग को अनुमति । | Sन से इंकार कर दे अथवा किसी मांग को, उसमें विनिर्दिष्ट रकम को कम करके, अनुमति दे |
(3) किसी अनुदान की मांग राज्यपाल की सिफारिश पर ही की जाएगा, अन्यथा नही
- विनियोग विधेयक.-(1) विधान सभा द्वार पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, राज्य की संचित निधि में से
क) विधान राभा द्वारा इस प्रकार किए गए अनदानों की, और
(ख) राज्य की संचित निधि पर भारित, किन्तु सदन या सदनों के समक्ष पहले रखे गए विवरण ।
| में दर्शित रकम से किसी भी दशा में अनधिक व्यय की, पर्ति के लिए अपेक्षित सभी धनराशियों के विनियोग का उपबंध करने के लिए विधेयक पुर:स्थापित किया। जाएगा। |
(2) इस प्रकार किए गए किसी अनुदान की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने । अथवा राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई jोधन ऐसे किसी विधेयक में राज्य के विधान-मंडल के सदन में या किसी सदन में प्रस्थापित नहीं किया। ना और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नहीं।
(३) अनच्छेद 205 और अनुच्छेद 206 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की संचित निधि में से इस अनच्छेद के उपबंधों के अनुसार पारित विधि द्वारा किए गए विनियोग के अधीन ही कोई धन निकाला। जाएगा, अन्यथा नहीं।
- अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान.-(1) यदि
(क) अनुच्छेद 204 के उपबंधों के अनुसार बनाई गई किसी विधि द्वारा किसी विशिष्ट सेवा पर चाल वित्तीय वर्ष के लिए व्यय किए जाने के लिए प्राधिकृत कोई रकम उस वर्ष के प्रयोजनों के लिए अपर्याप्त पाई जाती है या उस वर्ष के वार्षिक वित्तीय विवरण में अनध्यात न की गई किसी नई सेवा पर अनुपूरक या अतिरिक्त व्यय की चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है, या।
(ख) किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की
गई रकम से अधिक कोई धन व्यय हो गया है, तो राज्यपाल, यथास्थिति, राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित रकम को दर्शित करने वाला दूसरा विवरण रखवाएगा या राज्य की विधान सभा में ऐसे आधिक्य के लिए मांग प्रस्तुत करवाएगा। |
(2) ऐसे किसी विवरण और व्यय या मांग के संबंध में तथा राज्य की संचित निधि में से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संबंधित अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में भी, अनुच्छेद 202, अनुच्छेद 203 और अनुच्छेद 204 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण और उसमें वर्णित व्यय के संबंध में या किसी अनुदान की किसी मांग के संबंध में और राज्य की संचित निधि में से ऐसे व्यय या अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं। |
- लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान.-(1) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य की विधान सभा को
(क) किसी वित्तीय वर्ष के भाग के लिए प्राक्कलित व्यय के संबंध में कोई अनुदान, उस अनुदान के लिए मतदान करने के लिए अनुच्छेद 203 में विहित प्रक्रिया के पूरा होने तक और उस व्यय के संबंध में अनुच्छेद 204 के उपबंधों के अनुसार विधि के पारित होने तक, अग्रिम देने की,
(ख) जब किसी सेवा की महत्ता या उसके अनिश्चित रूप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ वर्णित नहीं की जा सकती है जो वार्षिक वित्तीय विवरण में सामान्यतया दिया जाता है तब राज्य के संपत्ति स्रोतों पर अप्रत्याशित मांग की पूर्ति के लिए अनुदान करने की,
(ग) किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का जो अनुदान भाग नहीं है ऐसा कोई अपवादानुदान करने की, शक्ति होगी और जिन-प्रयोजनों के लिए उक्त अनुदान किए गए हैं उनके लिए राज्य की संचित निधि में से धन निकालना विधि द्वारा प्राधिकृत करने की राज्य के विधान-मंडल को शक्ति होगी।
(2) खंड (1) के अधीन किए जाने वाले किसी अनुदान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाले किसी विधि के संबंध में अनुच्छेद 203 और अनुच्छेद 204 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण में वर्णित किसी व्यय के बारे में कोई अनुदान करने के संबंध में और राज्य की संचित निधि भारत का संविधान में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं।
- वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध.-(1) अनुच्छेद 199 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राज्यपाल की सिफारिश से ही पुर:स्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक विधान परिषद् में पुर:स्थापित नहीं किया जाएगा:
परन्तु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी। |
(2) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।
(3) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर राज्य की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राज्यपाल ने सिफारिश नहीं की है।
साधारणतया प्रक्रिया (Procedure Generally)
- प्रक्रिया के नियम.-(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के विधान-मंडल का कोई सदन अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य संचालन के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं तब तक इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले तत्स्थानी प्रांत के विधान-मंडल के संबंध में जो प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश प्रवृत्त थे वे ऐसे उपांतरणों और अनुकूलनों के अधीन रहते हुए उस राज्य के विधान-मंडल के संबंध में प्रभावी होंगे जिन्हें, यथास्थिति, विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद् का सभापति उनमें करे।। ।
(3) राज्यपाल, विधान परिषद् वाले राज्य में विधान सभा के अध्यक्ष और विधान परिषद् के सभापति से परामर्श करने के पश्चात् दोनों सदनों में परस्पर संचार से संबंधित प्रक्रिया के नियम बना सकेगा।
- राज्य के विधान-मंडल में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन.-किसी राज्य का विधान-मंडल, वित्तीय कार्य को समय के भीतर पूरा करने के प्रयोजन के लिए किसी वित्तीय विषय से संबंधित या राज्य की संचित निधि में से धन का विनियोग करने के लिए किसी विधेयक से संबंधित, राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों की प्रक्रिया और कार्य संचालन का विनियमन विधि द्वारा कर सकेगा। तथा यदि और जहाँ तक इस प्रकार बनाई गई किसी विधि का कोई उपबंध अनुच्छेद 208 के खंड (1) के अधीन राज्य के विधान-मंडल के सदन या किसी सदन द्वारा बनाए गए नियम से या उस अनुच्छेद के खंड
(2) के अधीन राज्य के विधान-मंडल के संबंध में प्रभावी किसी नियम या स्थायी आदेश से अंसगत है तो और वहाँ तक ऐसा उपबंध अभिभावी होगा।
- विधान-मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा.-(1) धारा 17 में किसी बात के होते हए भी किन्तु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के विधान-मंडल में कार्य राज्य की राजभाषा या
राजभाषाओं में या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाएगा :
परन्तु, यथास्थिति, विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद् का सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को, जो पूर्वोक्त भाषाओं में से किसी भाषा में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा।
(2) जब तक राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अधि की समाप्ति के पश्चात् यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो या अंग्रेजी में – शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया होः
1[परंतु 2[हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा राज्यों के विधान-मंडलों ] के संबंध में, यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने वाले पंद्रह वर्ष” शब्दों के स्थान पर ** पच्चीस वर्ष” शब्द रख दिए गए होंः]
[परंतु यह और कि “[[अरुणाचल प्रदेश, गोवा और मिजोरम राज्यों के विधान-मंडलों के संबंध में यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने वाले पंद्रह वर्ष” शब्दों के स्थान पर चालीस वर्ष” शब्द रख दिए गए हों।] ।
- विधान-मंडल में चर्चा पर निबंधन.-उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के, अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किए गए, आचरण के विषय में राज्य के विधान-मंडल में कोई चर्चा नहीं होगी।
- न्यायालयों द्वारा विधान-मंडल की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना.-(1) राज्य के विधान-मंडल की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा। |
(2) राज्य के विधान-मंडल का कोई अधिकारी या सदस्य, जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन उस विधान-मंडल में प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियां निहित हैं, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिता के । अधीन नहीं होगा।
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