The Constitution of India Second Provisions as to The President and the Governors of States
The Constitution of India Second Provisions as to The President and the Governors of States:- Second Schedule Articles 57(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 164(5), 186 and 221) Part A Provisions as to The President and The Governors of States Part of The Constitution of India Most Important Topic for LLB Low All Semester | Year Study Material Notes Questions With Answer Paper in Hindi and English PDF Download.
दूसरी अनुसूची (Second Schedule)
[अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221]
भाग क (Part A)
राष्ट्रपति और 10[* * *] राज्यों के रायपालों के बारे में उपबंध 1. राष्ट्रपति और 10[* * *] राज्यों के राज्यपालों को प्रति मास निम्नलिखित उपलब्धियों का संदाय किया जाएगा,
- राष्ट्रपति और 10 [* * *] राज्यों के राज्यपालों के बारे में उपबन्ध
- पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन अधिनियम, 1971 (1971 का 81) की धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) प्रविष्टि 4 से 9 को प्रविष्टि 2 से 7 के रूप में पुन:संख्याकित किया गया।
- लक्कादीव, मिनिकोय और अमीनदीवी द्वीप (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1973 (1973 का 34) की धारा 5 द्वारा (111-1973 से) “लक्कादीव, मिनिकोय, अमीनदीवी द्वीप” के स्थान पर प्रतिस्थापित।।
- संविधान (दसवां संशोधन) अधिनियम, 1961 की धारा 2 द्वारा (11-8-1961 से) अंत:स्थापित ।
गोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 5 द्वारा प्रविष्टि 5 के स्थान पर (30-5-1987 से) प्रतिस्थापित।
- संविधान (चौदहवां संशोधन) अधिनियम, 1962 की धारा 3 और धारा 7 द्वारा (16-8-1962 से) अंत:स्थापित ।
- पांडिचेरी (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 2006 (2006 का 44) की धारा 5 द्वारा (1-10-2006 से) “पांडिचेरी” शब्द के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 (1966 का 31) की धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंत:स्थापित।
- ।मिजोरम राज्य अधिनियम, 1986 (1986 का 34) की धारा 4 द्वारा मिजोरम संबंधी प्रविष्टि का (20-2-1987 से) लोप किया गया।
- अरुणाचल प्रदेश राज्य अधिनियम, 1986 (1986 का 69) की धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अरुणाचल प्रदेश संबंधी प्रविष्टि का लोप किया गया।
10 संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) ”पहली अनुसूची के भाग क में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षर का लोप किया गया।
- राष्ट्रपति उपलब्धियां और पेंशन (संशोधन) अधिनियम, 2008 (2008 का 28) की धारा 2 के अनुसार (1-1-2006 से) अब यह 1,50,000 रुपए” है।
- राज्यपाल उपलब्धियां, भत्ते और विशेषाधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2008 (2009 का 1) की धारा 3 के अनुसार (1-1-2006 से) अब यह “1,10,000 रुपए है।
- राष्ट्रपति और 1[* * *] राज्यों के राज्यपालों को ऐसे भत्तों का भी संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमश: भारत डोमिनियन के गवर्नर जनरल को तथा तत्स्थानी प्रांतों के गवर्नरों को संदेय थे।
- राष्ट्रपति और 2[राज्यों के राज्यपाल अपनी-अपनी संम्पर्ण पदावधि में ऐसे विशेषाधिकारों के हकदार होंगे जिनके इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमशः गवर्नर जनरल और तत्स्थानी प्रांतों के गवर्नर हकदार थे।
- जब उपराष्ट्रपति या कोई अन्य व्यक्ति राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है या उसके रूप में कार्य कर रहा है या कोई व्यक्ति राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है तब वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा जिनका, यथास्थिति, वह राष्ट्रपति या राज्यपाल हकदार है जिसके कृत्यों का वह निर्वहन करता है या, यथास्थिति, जिसके रूप में वह कार्य करता है।
[* * *]
भाग ग
लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा राज्य सभा के सभापति और उपसभापति । के तथा [* * *] [राज्य] की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष | के तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति के बारे में उपबंध |
- लोक सभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा। जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की संविधान सभा के अध्यक्ष को संदेय थे तथा लोक सभा के उपाध्यक्ष को और राज्य सभा के उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की संविधान सभा के उपाध्यक्ष को संदेय थे।
- 6[* * *] राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा 7[राज्य] की विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमशः तत्स्थानी प्रांत की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को संदेय थे और जहां ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले तत्स्थानी प्रांत की कोई विधान परिषद् नहीं थी वहां उस राज्य की विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो उस राज्य का राज्यपाल अवधारित करे।
भाग घ
उच्चतम न्यायालय और 8[ * * *] उच्च न्यायालयों के
न्यायाधीशों के बारे में उपबंध
- (1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए प्रति मास निम्नलिखित दर से वेतन का संदाय किया जाएगा, अर्थात्-
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) ‘‘ऐसे विनिर्दिष्ट’ शब्दों का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसे राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित।।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) भाग ख का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के भाग क में के किसी राज्य का” शब्दों और अक्षर का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “किसी ऐसे राज्य” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
मुख्य न्यायमूर्ति |
‘[10,000 रुपये ] |
कोई अन्य न्यायाधीश |
[9,000 रुपये] | |
परन्तु यदि उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पूर्व सेवा के संबंध में (नि:शक्तता या क्षति पेंशन से भिन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है तो उच्चतम न्यायालय में सेवा के लिए उसके वेतन में से [निम्नलिखित को घटा दिया जाएगा, अर्थात्
(क) उस पेंशन की रकम; और ।
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में अपने को देय पेंशन के | एक भाग के बदले उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो पेंशन के उस भाग की रकम; और
(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में निवृत्ति-उपदान प्राप्त किया। है तो उस उपदान के समतुल्य पेंशन।]
(2) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश, बिना किराया दिए, शासकीय निवास के उपयोग का हकदार होगा।
| (3) इस पैरा के उप-पैरा (2) की कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले
(क) फेडरल न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद 374 के खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, या
(ख) फेडरल न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतम न्यायालय का (मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न) न्यायाधीश बन गया है, उस अवधि में, जिसमें वह ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण करता है, लागू नहीं होगी और ऐसा प्रत्येक न्यायाधीश, जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश बन जाता है, यथास्थिति, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उप-पैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था।
(4) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर अपने कर्तव्य पालन में की गई यात्रा में उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए ऐसे युक्तियुक्त भत्ते प्राप्त करेगा और यात्रा संबंधी उसे ऐसी युक्तियुक्त सुविधाएं दी जाएंगी जो राष्ट्रपति समय-समय पर विहित करे।
(5) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की अनुपस्थिति छुट्टी के (जिसके अंतर्गत छुट्टी भत्ते हैं) और पेंशन के संबंध में अधिकार उन उपबंधों से शासित होंगे जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को लागू थे।
- 4[(1) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए प्रति मास निम्नलिखित दर से वेतन का संदाय किया जाएगा, अर्थात्
- संविधान (चौवनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “5,000 रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित। अब, उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा शर्ते) (संशोधन) अधिनियम, 2009 (2009 का 23) की धारा 8 के अनुसार (1-1-2006 से) 1,00,000 रुपए” है।
- संविधान (चौवनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) 4,000 रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित । अब, उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा शर्ते) (संशोधन) अधिनियम, 2009 (2009 का 23) की धारा 8 के अनुसार (1-1-2006 से) ‘१०,000 रुपए है।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 25 द्वारा (1-11-1956 से) ”उस पेंशन की राशि घटा दा जाएगी” के स्थान पर प्रतिस्थापित। ।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 25 द्वारा (1-11-1956 से) उप-परा प्रतिस्थापित ।
मुख्य न्यायमूर्ति |
1[9,000 रुपये] |
कोई अन्य न्यायाधीश |
2[8,000 रुपये] |
परन्तु यदि किसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पूर्व सेवा के संबंध में (नि:शक्तता या क्षति पेंशन से भिन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है तो उच्च न्यायालय में सेवा के लिए उसके वेतन में से निम्नलिखित को घटा दिया जाएगा, अर्थात्
(क) उस पेंशन की रकम; और ।
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पर्व सेवा के संबंध में अपने को देय पशन के एक भाग के बदले में उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो पेंशन के उस भाग की। रकम; और।
(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में निवृत्ति-उपदान प्राप्त किया। | है तो उस उपदान के समतुल्य पेंशन।]
(2) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले
(क) किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद 376 के खंड (1) के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, या ।
(ख) किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न) न्यायाधीश बन गया है,
यदि वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले इस पैरा के उप-पैरा (1) में विनिर्दिष्ट दर से उच्चतर दर पर वेतन प्राप्त कर रहा था तो, यथास्थिति, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उप-पैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था। |
3[ (3) ऐसा कोई व्यक्ति जो संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 के प्रारंभ से ठीक पहले, पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त अधिनियम द्वारा यथा संशोधित उक्त अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, यदि वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले अपने वेतन के अतिरिक्त भत्ते की रूप में कोई रकम प्राप्त कर रहा था तो, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उप-पैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त भने के रूप में वही रकम प्राप्त करने का हकदार होगा।]
- इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,|
(क) * मुख्य न्यायमूर्ति” पद के अंतर्गत कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति है और ‘‘न्यायाधीश” पद के अंतर्गत तदर्थ न्यायाधीश है;
(ख) “वास्तविक सेवा” के अंतर्गत
(i) न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश के रूप में कर्तव्य पालन में या ऐसे अन्य कृत्यों के पालन में, जिनका राष्ट्रपति के अनुरोध पर उसने निर्वहन करने का भार अपने ऊपर लिया है, बिताया गया समय है;
- संविधान (चौवनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए प्रतिस्थापित।
- अब, उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा शर्ते) (संशोधन) अधिनियम, 2009 (2009 का 23) की धारा 8 के अनुसार (1-1-2006 से) “90,000 रुपए” है ।।
- संविधान (चौवनवां संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) 3,500 रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- अब, उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन तथा सेवा शर्ते) (संशोधन) अधिनियम, 2009 (2009 का 23) की धारा 8 के अनुसार (1-1-2006 से) “80,000 रुपए है।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 25 द्वारा (1-11-1956 से) उप-पैरा (3) और (4) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(ii) उस समय को छोड़कर जिसमें न्यायाधीश छुट्टी लेकर अनुपस्थित है, दीर्घावकाश है; और।
(iii) उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण पर जाने पर पदग्रहण काल है।
भाग ङ
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध
- (1) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को चार हजार रुपये प्रतिमास की दर से वेतन का प्रदाय किया जाएगा।
(2) ऐसा कोई व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद 377 के अधीन भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक बन गया है, इस पैरा के उप-पैरा (1) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप में प्राप्त कर रहा था।
(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन तथा अन्य सेवा-शतों के संबंध में अधिकार उन उपबंधों से, यथास्थिति, शासित होंगे या शासित होते रहेंगे जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक को लागू थे और उन उपबंधों में गवर्नर जनरल के प्रति सभी निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राष्ट्रपति के प्रति निर्देश है।
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