The Constitution of India Relations Between The Union and The States LLB Law
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भाग 11 (Part XI)
संघ और राज्यों के बीच संबंध (Relations Between The Union and The States)
अध्याय 1 (Chapter 1)
विधायी संबंध (Legislative Relations)
विधायी शक्तियों का वितरण (Distribution of Legislative Power)
- संसद् द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार.-(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद् भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगी और किसी राज्य का विधान-मंडल संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बना | सकेगा। | (2) संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर अविधिमान्य नहीं समझी जाएगी कि उसका राज्यक्षेत्रातीत प्रवर्तन होगा। |
- संसद् द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषय-वस्तु.–(1) खंड (2) और खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को सातवीं अनुसूची की सूची 1 में (जिसे इस संविधान में ‘‘संघ सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की अनन्य शक्ति है। | (2) खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को और खंड (1) के अधीन रहते हुए, 1[* * *] किसी राज्य के विधान-मंडल को भी, सातवीं अनुसूची की सूची 3 में (जिसे इस संविधान में “समवर्ती सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति है।
(3) खंड (1) और खंड (2) के अधीन रहते हुए, 1[* * *] किसी राज्य के विधान-मंडल को सातवीं अनुसूची की सूची 2 में (जिसे इस संविधान में राज्य सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी ? विषय के संबंध में उस राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की अनन्य शक्ति है। | (4) संसद् को भारत के राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के लिए [जो किसी राज्य] के अंतर्गत नहीं हैं, किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति है, चाहे वह विषय राज्य सूची में प्रगणित विषय ही क्यों न हो। |
246क. माल और सेवा कर के संबंध में विशेष उपबंध.-(1) अनुच्छेद 246 और अनुच्छेद 254 में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को और खंड (2) के अधीन रहते हुए प्रत्येक राज्य के विधान मंडल को, संघ द्वारा या उस राज्य द्वारा अधिरोपित माल और सेवा कर के संबंध में विधियां बनाने की शक्ति होगी। | (2) जहां माल का या सेवाओं का अथवा दोनों का प्रदाय अन्तरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के अनुक्रम में होता है वहाँ संसद् को, माल और सेवा कर के संबंध में विधियाँ बनाने की अनन्य शक्ति प्राप्त
स्पष्टीकरण.-इस अनुच्छेद के उपबंध, अनुच्छेद 279क के खंड (5) में निर्दिष्ट माल और सेवा कर के संबंध में, माल और सेवा कर परिषद् द्वारा सिफारिश की गई तारीख से प्रभावी होंगे।]
- कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद् की शक्ति.-इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, संसद् अपने द्वारा बनाई गई विधियों के या किसी विद्यमान विधि के जो संघ सूची में प्रगणित विषय के संबंध में है, अधिक अच्छे प्रशासन के लिए अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ”पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम, 2016 की धारा 2 द्वारा (16-9-2016 से) अंत:स्थापित।
248, अवशिष्ट विधायी शक्तियां.-(1) ![अनुच्छेद 246क के अधीन रहते हुए, संसद् ] को यी ऐसे विषय के संबंध में, जो समवर्ती सूची या राज्य सूची में प्रगणित नहीं है, विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।
(2) ऐसी शक्ति के अंतर्गत ऐसे कर के अधिरोपण के लिए जो उन सूचियों में से किसी में वर्णित नहीं है, विधि बनाने की शक्ति है।
- राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद् की शक्ति.–(1) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, यदि राज्य सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित किया है। कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक या समीचीन है कि संसद् 2[अनुच्छेद 246क के अधीन उपबंधित माल और सेवा कर या] राज्य सूची में प्रगणित ऐसे विषय के संबंध में, जो उस संकल्प में विनिर्दिष्ट है, विधि बनाए तो जब तक वह संकल्प प्रवृत्त है। संसद के लिए उस विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाना विधिपूर्ण होगा। |
(2) खंड (1) के अधीन पारित संकल्प एक वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए प्रवृत्त रहेगा जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए :
परन्तु यदि और जितनी बार किसी ऐसे संकल्प को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प खंड (1) में उपबंधित रीति से पारित हो जाता है तो और उतनी बार ऐसा संकल्प उस तारीख से, जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवृत्त नहीं रहता, एक वर्ष की और अवधि तक प्रवृत्त रहेगा।
(3) संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद् खंड (1) के अधीन संकल्प के पारित होने के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, संकल्प के प्रवृत्त न रहने के पश्चात् छह मास की अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है।
- यदि आपात् की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची में के विषय के संबंध में विधि बनाने की संसद् की शक्ति.-(1) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को, जब तक आपात् को उद्घोषणा प्रवर्तन में हैं, [अनुच्छेद 246क के अधीन उपबंधित माल या सेवा कर या] राज्य सूची में प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की शक्ति होगी। |
(2) संसद् द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद् आपात की उद्घोषणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात् छह मास की अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किया गया है। या करने का लोप किया गया है। ।
251, संसद् द्वारा अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.-अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल की ऐसी विधि बनाने की शक्ति को, जिसे इस संविधान के अधीन बनाने की शक्ति उसको है, निर्बाधित नहीं करेगी किन्तु यदि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद् द्वारा बनाई गई विधि के, जिसे उक्त अनुच्छेदों में से किसी अनुच्छेद के अधीन बनाने की शक्ति संसद् को है, किसी उपबंध के विरुद्ध है तो संसद द्वारा बनाई गई विधि अभिभावी होगी चाहे वह राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो और राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि उस विरोध की मात्रा तक अप्रवर्तनीय होगी किन्तु ऐसा तभी तक होगा। जब तक संसद् द्वारा बनाई गई विधि प्रभावी रहती है। ।
- दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद् की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार किया जाना.-(1) यदि किन्हीं दो या अधिक राज्यों के-
- संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम, 2016 की धारा 3 द्वारा (16-9-2016 से) ‘संसद्’ शब्द के स्थान पर प्रतिस्थापित।।
- संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम, 2016 की धारा 4 द्वारा (16-9-2016 से) अंत:स्थापित ।
- संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम, 2016 की धारा 5 द्वारा (16-9-2016 से) अंत:स्थापित ।
विधान मंडलो को यह वांछनीय प्रतीत होता है कि उन विषयों में से, जिनके संबंध में संसद को अनछेद 51 और अनुच्छेद 250 में यथा उपबंधित के सिवाय राज्यों के लिए विधि बनाने की शक्ति नहीं है, किसी का विनियमन ऐसे राज्यों में संसद् विधि द्वारा करे और यदि उन राज्यों के विधान-ईटलां के भी। सदन उस आशय के संकल्प पारित करते हैं तो उस विषय का तदनुसार विनियमन करने के लिए कोई अधिनियम पारित करना संसद् के लिए विधिपूर्ण होगा और इस प्रकार पारित अधिनियम ऐसे राज्यों को लागू होगा और ऐसे अन्य राज्य को लागू होगा, जो तत्पश्चात् अपने विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहां दो सदन हैं वहाँ दोनों सदनों में से प्रत्येक सदन इस निमित्त पारित संकल्प द्वारा उसको अंगीकार कर लेता है।
(2) संसद् द्वारा इस प्रकार पारित किसी अधिनियम का संशोधन या निरसन इसी रीति से पारित या अंगीकृत संसद् के अधिनियम द्वारा किया जा सकेगा, किन्तु उसका उस राज्य के संबंध में संशोधन या निरसने जिसको वह लागू होता है, उस राज्य के विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा नहीं किया जाएगा।
- अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान.-इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई किसी संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अतंरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या अन्य कार्य में किए गए किसी विनिश्चय के कार्यान्वयन के लिए भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए कोई विधि बनाने की शक्ति है। ।
- संसद् द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.-(1) .यदि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद् द्वारा बनाई गई विधि के, जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद् सक्षम है, किसी उपबंध के या समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के संबंध में विद्यमान विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध है तो खंड
(2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, यथास्थिति, संसद् द्वारा बनाई गई विधि, चाहे वह ऐसे राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो, या विद्यमान विधि, अभिभावी होगी और उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि उस विरोध की मात्रा तक शून्य होगी।
(2) जहां 1[* * *] राज्य के विधान-मंडल द्वारा समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के संबंध में बनाई गई विधि में कोई ऐसा उपबंध अंतर्विष्ट है जो संसद् द्वारा पहले बनाई गई विधि के या उस विषय के संबंध में किसी विद्यमान विधि के उपबंधों के विरुद्ध है तो यदि ऐसे राज्य के विधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा गया है और उस पर उसकी अनुमति मिल गई है तो वह विधि उस राज्य में अभिभावी होगी:
परन्तु इस खंड की कोई बात संसद् को उसी विषय के संबंध में कोई विधि, जिसके अंतर्गत ऐसी विधि है, जो राज्य के विधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि का परिवर्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करती है, किसी भी समय अधिनियमित ५ो से निवारित नहीं करेगी। | 255. सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना.यदि संसद के या ‘[* * *] किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी अधिनियम को
(क) जहाँ राज्यपाल की सिफारिश अपेक्षित थी वहाँ राज्यपाल या राष्ट्रपति ने,
(ख) जहाँ राजप्रमुख की सिफारिश अपेक्षित थी वहाँ राजप्रमुख या राष्ट्रपति ने,
(ग) जहाँ राष्ट्रपति की सिफारिश या पूर्व मंजूरी अपेक्षित थी वहाँ राष्ट्रपति ने,
अनुमति दे दी है तो ऐसा अधिनियम और ऐसे अधिनियम का कोई उपबंध केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगा कि इस संविधान द्वारा अपेक्षित कोई सिफारिश नहीं की गई थी या पूर्व मंजूरी नहीं दी गई थी।
अध्याय 2 (Chapter (II)
प्रशासनिक संबंध (Administrative Relations)
साधारण (General)2
- राज्यों की और संघ की बाध्यता.- प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग किया जाएगा जिससे संसद् द्वारा बनाई गई विधियों का और ऐसी विद्यमान विधियों का, जो उस राज्य में लागू है, अनुपालन सुनिश्चित रहे और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को उस प्रयोजन के लिए आवश्यक प्रतीत हों।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
- कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण. (1) प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का कार प्रयोग किया जाएगा जिससे संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई अड़चन न हो या उस कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निर्देश देने तक होगा जो भारत सरकार को इस प्रयोजन के लिए आवश्यक प्रतीत हों।
(2) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को ऐसे संचार साधनों के निर्माण और बनाए रखने के बारे में निर्देश देने तक भी होगा जिनका राष्ट्रीय या सैनिक महत्व का होना उस निदेश में घोषित किया गया है।
परन्तु इस खंड की कोई बात किसी राज मार्ग या जल मार्ग को राष्ट्रीय राज मार्ग या राष्ट्रीय जल मार्ग घोषित करने की संसद् की शक्ति को अथवा इस प्रकार घोषित राज मार्ग या जल मार्ग के बारे में संघ की शक्ति को अथवा सेना, नौसेना और वायुसेना संकर्म विषयक अपने कृत्यों के भागरूप संचार साधनों के निर्माण और बनाए रखने की संघ की शक्ति को निर्बन्धित करने वाली नहीं मानी जाएगी।
(3) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य में रेलों के संरक्षण के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में उस राज्य को निदेश देने तक भी होगा। |
(4) जहां खंड (2) के अधीन संचार साधनों के निर्माण या बनाए रखने के बारे में अथवा खंड (3) के अधीन किसी रेल के संरक्षण के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में किसी राज्य को दिए गए किसी निदेश के पालन में उस खर्च से अधिक खर्च हो गया है जो, यदि ऐसा निदेश नहीं दिया गया होता तो राज्य के प्रसामान्य कर्तव्यों के निर्वहन में खर्च होता वहाँ उस राज्य द्वारा इस प्रकार किए गए अतिरिक्त पुची के संबंध में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी राशि का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव में ऐसी राशि का, जिसे भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, संदाय किया जाएगा।
257क. संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अभिनियोजन द्वारा राज्यों की सहायता.[ संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 33 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित]] ।
- कुछ दशाओं में राज्यों को शक्ति प्रदान करने आदि की संघ की शक्ति.-(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, किसी राज्य की सरकार की सहमति से उसे सरकार को या उसके अधिकारियों के ऐसे किसी विषय से संबंधित कृत्य, जिन पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, सशर्त या बिना शर्त सौंप सकेगा। |
(2) संसद् द्वारा बनाई गई विधि, जो किसी राज्य को लागू होती हैं ऐसे विषय से संबंधित होने पर भी, जिसके संबंध में राज्य के विधान-मंडल को विधि बनाने की शक्ति नहीं है, उस राज्य या उसके अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्ति प्रदान कर सकेगी और उन पर कर्तव्य अधिरोपित कर सकेगी या शक्तियों का प्रदान किया जाना और कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत कर सकेगी।
(3) जहां इस अनुच्छेद के आधार पर किसी राज्य अथवा उसके अधिकारियों या प्राधिकारियों को शक्तियां प्रदान की गई हैं या उन पर कर्त्तव्य अधिरोपित किए गए हैं वहां उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के संबंध में राज्य द्वारा प्रशासन में किए गए अतिरिक्त खर्चा के संबंध में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी राशि का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव में ऐसी राशि का, जिसे भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, संदाय किया जाएगा।
-[258क. संघ को कृत्य सौंपने की राज्यों की शक्ति.-इस संविधान में किसी बात के होते हुए। भी, किसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार की सहमति से उस सरकार को या उसके अधिकारियों को ऐसे किसी विषय से संबंधित कृत्य, जिन पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, सशर्त या बिना शर्त सौंप सकेगा।] ।
- पहली अनुसूची के भाग ख के राज्यों के सशस्त्र बल.-[ संविधान (सातवां संशोधन) धनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित] ।
- भारत के बाहर के राज्यक्षेत्रों के संबंध में संघ की अधिकारिता.- भारत सरकार किसी ऐसे राज्यक्षेत्र की सरकार से, जो भारत के राज्यक्षेत्र का भाग नहीं है, करार करके ऐसे राज्यक्षेत्र की सरकार में निहित किन्हीं कार्यपालक, विधायी या न्यायिक कृत्यों का भार अपने ऊपर ले सकेगी, किन्तु प्रत्येक ऐसा
- संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित.
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 18 द्वारा (1-11-1956 से) अंत:स्थापित ।
करार विदेशी अधिकारिता के प्रयोग से संबंधित तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन होगा और उससे शासित होगा।
- सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियां.-(1) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र, ध के और प्रत्येक राज्य के सार्वजनिक कार्यो, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाहियों को पूरा विश्वास और पूरी मान्यता दी जाएगी।
(2) खंड (1) में निर्दिष्ट कार्यों, अभिलेखों और कार्यवाहियों को साबित करने की रीति और शर्ती तथा उनके प्रभाव का अवधारण संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा उपबंधित रीति के अनुसार किया जाएगा।
(3) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में सिविल न्यायालयों द्वारा दिए गए अंतिम निर्णयों या आदेशों का उस राज्यक्षेत्र के भीतर कहीं भी विधि के अनुसार निष्पादन किया जा सकेगा।
जल संबंधी विवाद
- अंतरराज्यिक नदियों या नदी-दूनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन.-(1) संसद्, विधि द्वारा, किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के या उसमें जल के प्रयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी विवाद या पारवाद के न्यायनिर्णयन के लिए उपबंध कर सकेगी।
(2) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद्, विधि द्वारा, उपबंध कर सकेगी कि उच्चतम न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय खंड (1) में निर्दिष्ट किसी विवाद या परिवाद के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा।
राज्यों के बीच समन्वय
- अंतरराज्य परिषद् के संबंध में उपबंध.-यदि किसी समय राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि ऐसी परिषद् की स्थापना से लोक हित की सिद्धि होगी जिसे
(क) राज्यों के बीच जो विवाद उत्पन्न हो गए हों उनकी जांच करने और उन पर सलाह देने,
(ख) कुछ या सभी राज्यों के अथवा संघ और एक या अधिक राज्यों के सामान्य हित से संबंधित विषयों के अन्वेषण और उन पर विचार-विमर्श करने, या ।
(ग) ऐसे किसी विषय पर सिफारिश करने और विशिष्टतया उस विषय के संबंध में नीति और कार्रवाई के अधिक अच्छे समन्वय के लिए सिफारिश करने, के कर्तव्य का भार सौंपा जाए तो राष्ट्रपति के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह आदेश द्वारा ऐसी परिषद् की स्थापना करे और उस परिषद् द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों की प्रकृति को तथा उसके संगठन और प्रक्रिया को परिनिश्चित करे।
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