The Constitution of India Parliament LLB Law
The Constitution of India Parliament LLB Law:- There Shall be a Parliament for the Union which shall consist of the President and two Houses to be known respectively as the Council of States and the House of the People. The Constitution of India LLB Low Study Material in Hindi (English)
अध्याय 2 (Chapter II)
संसद् (Parliament)
साधारण (General)
- संसद का गठन.- संघ के लिए एक संसद् होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिल कर बनेगी। जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे।
- राज्य सभा की संरचना.- (1) [[* * *] राज्य सभा]
(क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (3) के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किए जाने वाले बारह सदस्यों, और
(ख) राज्यों के [और संघ राज्यक्षेत्रों के] दो सौ अड़तीस से अनधिक प्रतिनिधियों, से मिलकर
बनेगी।
- देखिए, समय-समय पर यथासंशोधित अधिसूचना सं० का० आ० 2297, तारीख 3 नवम्बर, 1958, भारत का राजपत्र असाधारण, 1958, भाग 2, अनुभाग 3 (ii), पृष्ट 1315.
- संविधान ( बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 14 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4) अंत:स्थापित किया गया। था और संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 12 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप किया गया।
- संविधान (पैंतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) * राज्य सभा के स्थान पर प्रतिस्थापित।।
- संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के उपबंधों के अधीन रहते हु” शब्दों का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया।
2) राज्य सभा में राज्यों के 1[ और संघ राज्यक्षेत्रों के प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का आबंटन चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा।
(3) राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे, जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात् साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा।।
(4) राज्य सभा में प्रत्येक 2[* **] राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
(5) राज्य सभा में 3[संघ राज्यक्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएंगे जो संसद् विधि द्वारा विहित करे।
4[81. लोक सभा की संरचना.-(1) 5 [अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए 6[* * *]] लोक सभा
(क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए 7[पांच सौ तीस] से अनधिक 8[सदस्यों], और।
(ख) संघ राज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसी रीति से, जो संसद विधि द्वारा उपबंधित करे, चुने हुए [बीस] से अनधिक 10[सदस्यों], से मिलकर बनेगी।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए, (क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, और।
(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही होः
11[परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध किसी राज्य को लोकसभा में स्थानों के आबंटन के प्रयोजन के लिए तब तक लागू नहीं होंगे जब तक उस राज्य की जनसंख्या साठ लाख से अधिक नहीं हो जाती है।]
(3) इस अनुच्छेद में, “जनसंख्या” पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) जोडा गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट राज्यों” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छेद 87 और 82 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (पैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) और दसवीं अनुसूची के पैरा 4 में” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
- गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “पांच सौ पच्चीस” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) द्वारा (30-5-1987 से) प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा “पच्चीस सदस्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (इकतीसवां संश्न ) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
- संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
परन्तु इस खंड में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके गगत आंक, प्रकाश हो गई है, निर्देश का, जब तक सन् [2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के अरोगत आहे प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह
(i) खण्ड 2 के उपखण्ड (क) और उसे सराट के चरक के प्रयोजन के लिए 1971 की
जनगणना के लिए प्रति निर्देश हैं, और
(ii) खण्ड (2) के उपखण्ड (ख) के प्रयोजनों के लिए | 2011 की जनगणना के प्रति निर्देश हैं ।]]
- प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन, प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर राज्यों को लोक सभा में स्थानों के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विधाजन का हैं। प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन: समायोजन किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवैधारित करे:
परन्तु ऐसे पुन: समायोजन से लोक सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान लोक सभा का विघटन नहीं हो जाता है: | 4 [परन्तु यह और कि ऐसा पुनः समायोजन उस तारी से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान है:
परन्तु यह और भी कि जब तक सन [2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक [इस अनुच्छेद के अधीन :
(i) राज्यों को लोकसभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित थानों के | आबंटन का; और
(ii) प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का, जो 6{2001 ] की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा।]]
- संसद् के सदनों की अवधि.–(1) राज्य सभा का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथा संभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य, संसद् द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त किए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएंगे। | (2) लोक सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से 7[पांच वर्ष तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और [ पांच वर्ष ] की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा।
| परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब, संसद विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा।
- संसद की सदस्यता के लिए अर्हता.-कोई व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब— 8[
(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति
के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्ररूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है;]
- संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित ।
- संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 3 द्वारा (21-2-2002 से) प्रतिस्थापित।।
- संविधान (सत्तासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (22-6-2003 से) प्रतिस्थापित।
- संविधान ( बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित ।।
- संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4 द्वारा (21-2-2002 से) प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (सत्तासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 द्वारा (22-6-2003 से) प्रतिस्थापित
- संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6–1979 से) छह वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित । संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वर्ष” मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष” शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
- संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
(ख) वह राज्य सभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोक सभा में
स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का है; और
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं हैं, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके । अधीन इस निमित्त विहित की जाएं।
1[85. संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन,-(1) राष्ट्रपति समय-समय पर, संसद् के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा। (2) राष्ट्रपति, समय-समय पर
(क) सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा;
(ख) लोक सभा का विघटन कर सकेगा।]
- सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रपति का अधिकार.–(1) राष्ट्रपति, संसद के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
(2) राष्ट्रपति, संसद में उस लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, संसद के किसी सदन को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा। |
- राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण.-(1) राष्ट्रपति, 2[लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र] के आरंभ में 2[और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में] एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान के कारण बताएगा।
(2) प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए 3[* * *] उपबंध किया जाएगा।
- सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार.-प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी सदन में, सदनों की किसी संयुक्त बैठक में और संसद की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
संसद् के अधिकारी
- राज्य सभा का सभापति और उपसभापति.-(1) भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा।
(2) राज्य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने किसी सदस्य को अपना उपसभापति चुनेगी और जब-जब उपसभापति का पद रिक्त होता है तब-तब राज्य सभा किसी अन्य सदस्य को अपना उपसभापति चुनेगी।
- उपसभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना.–राज्य सभा के उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) यदि राज्य सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा;
(ख) किसी भी समय सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग | सकेगा; और।
(ग) राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा: परंत खंड
(ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो।
- संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 6 द्वारा (18-6-1951 से) अनुच्छेद 85 के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
2.. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा प्रत्येक सत्र” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
3.. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा लोप किया गया।
- सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की 3; उपसभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति.-(1) जब सभापति का पद रिक्त है या ऐसी अवधि में जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है तव उपसभापति, या यदि उपसभापति का पद भी रिक्त है तो, राज्य सभा का ऐसा सदस्य, जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए। नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।
(2) राज्य सभा की किसी बैठक से सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति, या यदि वह भी -अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो राज्य सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो राज्य सभा द्वारा अवधारित किया जाए, सभापति के रूप में कार्य करेगा।
- जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तय उसका पीठासीन न होना.-(1) राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।
| (2) जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा में विचाराधीन है तब सभापति को राज्य सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा, किन्तु वह अनुच्छेद 100 में किसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर, मत देने का बिल्कुल हकदार नहीं होगा।
93, लोक सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष.-लोक सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तब-तब लोक सभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी।
- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया जाना.-लोकसभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) यदि लोक सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा;
(ख) किसी भी समय, यदि वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को संबोधित और यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; और
(ग) लोक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा: परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो; |
परन्तु यह और कि जब कभी लोक सभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात होने वाले लोकसभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा।
- अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति.- (1) जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तब उपाध्यक्ष, या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो लोक सभा का ऐसा सदस्य, जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।
(2) लोकसभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, या यदि वह भी अनुपस्थित है। तो ऐसा व्यक्ति, जो लोक सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो लोकसभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।
- जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना.–(1) लोकसभा की किसी बैठक में, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन है तब अध्यक्ष, या जब उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब
उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 95 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनुपस्थित है।
(2) जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प लोक सभा में विचाराधीन है तब उसको लोक सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह अनुच्छेद 100 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमत: ही मत देने का हकदार होगा, किन्तु मत बराबर होने की दशा में मत देने का हकदार नहीं होगा।
- सभापति और उपसभापति तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते.-राज्य सभा के सभापति और उपसभापति को तथा लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को, ऐसे वेतन और भत्तों का जो संसद, विधि द्वारा, नियत करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भत्तों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, संदाय किया जाएगा।
- संसद का सचिवालय,—(1) संसद के प्रत्येक सदन का पृथक् सचिवीय कर्मचारिवृंद होगा: परन्तु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संसद के दोनों सदनों के लिए सम्मिलित पदों के सृजन को निवारित करती है। |
(2) संसद, विधि द्वारा, संसद के प्रत्येक सदन के सचिवीय कर्मचारियूँद में भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन कर सकेगी। |
(3) जब तक संसद खंड (2) के अधीन उपबंध नहीं करती है तब तक राष्ट्रपति, यथास्थिति, लोकसभा के अध्यक्ष या राज्य सभा के सभापति से परामर्श करने के पश्चात् लोक सभा के या राज्य सभा के सचिवीय कर्मचारिख़ुद में भर्ती के और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए नियम उक्त खंड के अधीन बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे।
कार्य संचालन
- सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान.- संसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
- सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति,—(1) इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की संयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष को अथवा सभापति या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़कर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा।
सभापति या अध्यक्ष, अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमत: मत नहीं देगा, किन्त मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।
(2) संसद के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी संसद को कोई कार्यवाही विधिमान्य होगी।
(3) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद के प्रत्येक सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग होगी।
(4) यदि सदन के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो सभापति या अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है।
सदस्यों की निरर्हतायें
- स्थानों का रिक्त होना.–(1) कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों की सदस्य नहीं होगा. और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए संसद विधि द्वारा उपबंध करेगी।
(2) कोई व्यक्ति संसद और किसी [* * *] राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति संसद और 2[किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात् जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, संसद में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने राज्य के विधान-मंडल में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है।
(3) यदि संसद के किसी सदन का सदस्य
(क) [अनुच्छेद 102 के खंड (1) या खंड (2)] में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो जाता। है, या [
(ख) यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है] तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा: 6[परन्तु उपखंड (ख) में निर्दिष्ट त्यागपत्र की दशा में, यदि प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष का यह समाधान हो जाता है। कि ऐसा त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करेगा।] |
(4) यदि संसद के किसी सदन का कोई सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगाः ।
परन्तु साठ दिन की उक्त अवधि की संगणना करने में किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है। |
- सदस्यता के लिए निरर्हताएं.–(1) कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा
(क) यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना संसद ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है;
(ख) यदि वह विकृतचित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है;
(ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है;
(घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किए हुए है;
(ङ) यदि वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरहित कर
| दिया जाता है।
7[स्पष्टीकरण.-इस खंड के प्रयोजनों के लिए,] कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्द और अक्षरों का लोप किया गया।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसे किसी राज्य” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- देखिये, विधि मंत्रालय की अधिसूचना संख्या एफ० 46/50-सी, तारीख 26 जनवरी, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, पृष्ट 678 में प्रकाशित समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम, 1950।।
अनुच्छेद 102 के खंड (1)” के
- संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) स्थान पर प्रतिस्थापित ।।
- संविधान (तैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- संविधान (तैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।।
- संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
1[(2) कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरहित हो जाता है।] ।
- सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय.-(1) यदि यह प्रश्न उठता है। कि संसद के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 102 के खंड (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राष्ट्रपति को विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा। |
(2) ऐसे किसी प्रश्न पर विनिश्चय करने के पहले राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की राय लेगा और ऐसी | राय के अनुसार कार्य करेगा।] ।
- अनुच्छेद 99 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या अर्हित न होते हुए या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति-यदि संसद के किसी सदन में कोई व्यक्ति अनुच्छेद ११ की अपेक्षाओं का अनुपालन करने से पहले, या यह जानते हुए कि मैं उसकी सदस्यता के लिए अहिंत नहीं हैं या निरहित कर दिया गया हैं या संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों द्वारा ऐसा करने से प्रतिषिद्ध कर दिया गया हूँ, सदस्य के रूप में बैठता है या मत देता है तो वह प्रत्येक दिन के लिए जब वह इस प्रकार बैठता है या मत देता है, पांच सौ रुपये की शास्ति का भागी होगा जो संघ को देय ऋण के रूप में वसूल की जाएगी।
संसद और उसके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां
- संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि.-(1) इस संविधान के उपबंधों के और संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रखते हुए, संसद में वाक्-स्वातन्त्र्य होगा।
| (2) संसद में या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मृत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
(3) अन्य बातों में संसद के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो संसद, समय-समय पर, विधि द्वारा, परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक 3[वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों
और समितियों की थीं] ।। |
(4) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर संसद् के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे संसद के सदस्यों के संबंध में लागू होते
- सदस्यों के वेतन और भत्ते.-संसद के प्रत्येक सदन के सदस्य ऐसे वेतन और भत्ते, जिन्हें संसद, समय-समय पर, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस संबंध में इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे भत्ते, ऐसी दरों से और ऐसी शतों पर, जो भारत डोमिनियन की संविधान सभा के सदस्यों को इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू था, प्राप्त करने के हकदार होंगे।
विधायी प्रक्रिया
- विधेयकों के पुर: स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध.– (1) धन विधेयकों और अन्य दिन विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 109 और अनुच्छेद 117 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक संसद के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा।
- संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 को धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) अंत:स्थापित ।।
- अनुच्छेद 13. संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 25 दारा (3-1-1977 से) और तत्पश्चात् संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 14 द्वारा (20-6-1979 से) संशोधित होकर उपरोक्त रूप में आया ।।
- संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) प्रतिस्थापित ।
(2) अनुच्छेद 108 और अनुच्छेद 109 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक संसद के सदनों दारा तब तक पारित किया गया नहीं समझा जाएगा जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित, जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए हैं, उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते हैं।
(3) संसद में लंबित विधेयक सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा |
(4) राज्य सभा में लंबित विधेयक, जिसको लोकसभा ने पारित नहीं किया है, लोकसभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा। |
(5) कोई विधेयक जो लोकसभा में लंबित है या जो लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया है और राज्यसभा में लंबित है, अनुच्छेद 108 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोकसभा के विघटन पर व्यपगत हो। जाएगा।
- कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक.-(1) यदि किसी विधेयक के एक सदन द्वारा पारित किये जाने और दूसरे सदन को पारेषित किए जाने के पश्चात्
(क) दूसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया गया है, या।
(ख) विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदन अंतिम रूप से असहमत हो । गए हैं, या ।
(ग) दूसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना
छह मास से अधिक बीत गए हैं, तो उस दशा के सिवाय जिसमें लोकसभा का विघटन होने के कारण विधेयक व्यपगत हो गया है, राष्ट्रपति विधेयक पर विचार-विमर्श करने और मत देने के प्रयोजन के लिए सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना, यदि वे बैठक में हैं तो संदेश द्वारा या यदि वे बैठक में नहीं हैं तो लोक अधिसूचना द्वारा देगा
परन्तु इस खंड की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी।
(2) छह मास की ऐसी अवधि की गणना करने में, जो खंड (1) में निर्दिष्ट है, किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसमें उक्त खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित कर दिया जाता है।
(3) यदि राष्ट्रपति ने खंड (1) के अधीन सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की सूचना दे दी है तो कोई भी सदन विधेयक पर आगे कार्यवाही नहीं करेगा, किन्तु राष्ट्रपति अपनी अधिसूचना की तारीख के पश्चात् किसी समय सदनों को अधिसूचना में विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत कर सकेगा और यदि वह ऐसा करता है तो, सदन तदनुसार अधिवेशित होंगे।
(4) यदि सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक ऐसे संशोधनों सहित, यदि कोई हों, जिन पर संयक्त बैठक में सहमति हो जाती है, दोनों सदनों के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत द्वारा पारित हो जाता है तो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए वह दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा:
परन्तु संयुक्त बैठक में
(क) यदि विधेयक एक सदन से पारित किए जाने पर दूसरे सदन द्वारा संशोधनों सहित पारित नहीं कर दिया गया है और उस सदन को, जिसमें उसका आरंभ हुआ था, लौटा नहीं दिया गया है तो ऐसे संशोधनों से भिन्न (यदि कोई हों), जो विधेयक के पारित होने में देरी के कारण आवश्यक हो गए हैं, विधेयक में कोई और संशोधन प्रस्थापित नहीं किया जाएगा;
(ख) यदि विधेयक इस प्रकार पारित कर दिया गया है और लौटा दिया गया है तो विधेयक में केवल पूर्वोक्त संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन जो उन विषयों से सुसंगत हैं जिन पर सदनों में सहमति नहीं हुई है, प्रस्थापित किए जाएंगे, और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कौन से संशोधन इस खंड के अधीन ग्राह्य
(5) सदनों की संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहत करने के अपने आशय की राष्ट्रपति की सूचना के पश्चात् लोपभा का विघटन बीच में हो जाने पर भी इस अनुच्छेद के अधीन संयुक्त बैठक हो सकेगी और उसमें विधेयक पारित हो सकेगा।
- धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया.-(1) धन विधेयक राज्यसभा में पुर:स्थापित नहीं किया जाएगा।
(2) धन विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किये जाने के पश्चात् राज्यसभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और राज्यसभा विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित लोकसभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर लोकसभा, राज्यसभा की सभी या किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी।
(3) यदि लोकसभा, राज्यसभा की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्यसभा द्वारा सिफारिश किए गए और लोकसभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा।
(4) यदि लोकसभा, राज्यसभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक, राज्यसभा द्वारा रा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोकसभा द्वारा पारित किया गया था। |
(5) यदि लोकसभा द्वारा पारित और राज्यसभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर लोकसभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा, उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोकसभा द्वारा पारित किया गया था। |
- “धन विधेयक” की परिभाषा.-(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात्
(क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन;
(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊपर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन;
(ग) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना;
(घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग;
(ङ) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा; भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा; या
(छ) उपखंड (क) से उपखंड
(च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।
(2) कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।
(3) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोकसभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होगा।
(4) जब धन विधेयक अनुच्छेद 109 के अधीन राज्यसभा को पारेषित किया जाता है और जब वह अनुच्छेद 111 के अधीन अनुमति के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब प्रत्येक धन विधेयक पर लोकसभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है।
- विधेयकों पर अनुमति.-जब कोई विधेयक संसद के सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तत किया जाएगा और राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है:
भारत का संविधान परन्तु राष्ट्रपति अनुमति के लिए अपने को विधेयक प्रस्तुत कि जाने के पश्चात् यथाशीघ्र उ विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो, अ । ६५ संदेश के सानीट का कि वे वियफ पर था उसके कि-हा विनिर्दिष्ट उपधों पर पुनर्विचार करे और विशिष्टतथा कि ऐसे संशोधन के पर: स्थापन को वाछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने देश में सिफारिश की है और ४ विधेयक है। प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन विधेयक पर तदनुसार पुनर्विचार करें और यदि वियक पदों द्वारा संशोधन सहित वा उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति नहीं रोकेगा।
वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया
- वार्षिक वित्तीय विवरण.–(1) राष्ट्रपति प्रत्येव वित्तीय वर्ष के संबंध में स्वेद के दोनों सदनों के सम६३ भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा जिरे इस 47 में वार्षिक वित्तीय विवरण” कहा गया है।
(2) वार्षिक वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में
(क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर रित व्यय के रूप में वर्णित व्यय की पूर्ति के | लिए अपेक्षित राशियां, और
(ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थापित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, पृथक्-पृथक् दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा।
(3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भारित व्यय होगा, अर्थात् :
(क) राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते तथा उसके पद से संबधित अन्य व्यय;
(ख) राज्यसभा के सभापति और उपसभापति के तथा लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भते;
(ग) ऐसे ऋण भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है, जिनके अंतर्गत ब्याज, निक्षेप निधि मार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और : मोचन से संबंधित अन्य व्यय है;
(घ) (i) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय वेतन, भत्ते और
पेंशन; (ii) फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय पेंशन; (iii) उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में दी जाने वाली पेंशन, जो भारत के राज्य के अन्तर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करता है या जो || भारत डोमिनियन के राज्यपाल वाले प्रांत के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय अधिकारिता का प्रयोग करता था;
(ङ) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को, या उसके संबंध में, संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन;
(च) किसी न्यायालय या माध्यस्थम् अधिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए। अपक्षित राशियां;
(छ) कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या संसद द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया जाता है ।।
- संसद में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया.–(1) प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से संबंधित हैं वे संसद् में मतदान के लिए नहीं रखे जाएंगे, किन्तु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संसद् के किसी सदन में उन प्राक्कलनों में से किसी प्राक्कलन पर चर्चा को निवारित करती है।
(2) उक्त प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन अन्य व्यय से संबंधित हैं वे लोकसभा के समक्ष अनुदानों की मांगों के रूप में रखे जाएंगे और लोकसभा को शक्ति होगी कि वह किसी मांग को अनुमति दे या अनुमति देने से इंकार कर दे अथवा किसी मांग को, उसमें विनिर्दिष्ट रकम को कम करके, अनुमति दे।
- संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1–11-1956 से) प्रतिस्थापित ।।
(3) किसी अनुदान की मांग राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही की जाएगी, अन्यथा नहीं।
- विनियोग विधेयक.-(1) लोकसभा द्वारा अनुच्छेद 113 के अधीन अनुदान किए जाने के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, भारत की संचित निधि में से-
(क) लोकसभा द्वारा इस प्रकार किए गए अनुदानों की, और
(ख) भारत की संचित निधि पर भारित, किन्तु संसद् के समक्ष पहले रखे गए विवरण में दर्शित
रकम से किसी भी दशा में अनधिक व्यय की, पर्ति के लिए अपेक्षित सभी धनराशियों के विनियोग का उपबंध करने के लिए विधेयक पुर:स्थापित किया। जाएगा। |
(2) इस प्रकार किए गए किसी अनुदान की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसी किसी विधेयक में संसद् के किसी सदन में प्रस्थापित नहीं किया जाएगा और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नहीं।
(3) अनुच्छेद 115 और अनुच्छेद 116 के उपबंधों के अधीन रहते हुए भारत की संचित निधि में से इस अनुच्छेद के उपबंधों के अनुसार पारित विधि द्वारा किए गए विनियोग के अधीन ही कोई धन निकाला जाएगा, अन्यथा नहीं।
- अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान.-(1) यदि
(क) अनुच्छेद 114 के उपबंधों के अनुसार बनाई गई किसी विधि द्वारा किसी विशिष्ट सेवा पर चालू वित्तीय वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई रकम उस वर्ष के प्रयोजनों के लिए अपर्याप्त पाई जाती है या उस वर्ष के वार्षिक वित्तीय विवरण में अनुध्यात न की गई किसी नई सेवा पर अनुपूरक या अतिरिक्त व्यय की चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है, या ।
(ख) किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर, उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की
| गई रकम से अधिक कोई धन व्यय हो गया है, | तो राष्ट्रपति, यथास्थिति, संसद् के दोनों सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित रकम को दर्शित करने वाला दूसरा विवरण रखवाएगा या लोकसभा में ऐसे आधिक्य के लिए मांग प्रस्तुत करवाएगा।
(2) ऐसे किसी विवरण और व्यय या मांग के संबंध में तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संबंधित अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में भी, अनुच्छेद 112, अनुच्छेद 113 और अनुच्छेद 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण और उसमें वर्णित व्यय या किसी अनुदान की किसी मांग के संबंध में और भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं। |
- लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान.-(1) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, लोकसभा को
(क) किसी वित्तीय वर्ष के भाग के लिए प्राक्कलित व्यय के संबंध में कोई अनुदान, उस अनदान के लिए मतदान करने के लिए अनुच्छेद 113 में विहित प्रक्रिया के पूरा होने तक और उस व्यय के संबंध में अनुच्छेद 114 के उपबंधों के अनुसार विधि के पारित होने तक, अग्रिम देने की;
(ख) । जब किसी सेवा की महत्ता या उसके अनिश्चित रूप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ वर्णित नहीं की जा सकती है जो वार्षिक वित्तीय विवरण में सामान्यतया दिया जाता है तब भारत के संपत्ति स्रोतों पर अप्रत्याशित मांग की पूर्ति के लिए अनुदान करने की;
(ग) किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का जो अनुदान भाग नहीं है, ऐसा कोई अपवादानुदान करने की, शक्ति होगी और जिन प्रयोजनों के लिए उक्त अनुदान किए गए उनके लिए भारत की संचित निधि में से धन निकालना विधि द्वारा प्राधिकृत करने की संसद को शक्ति होगी।
खण्ड (1) के अधीन किए जाने वाले किसी अनुदान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली विधि के संबंध में अनुच्छेद 113 और अनुच्छेद 114 के उपबंध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे वे वार्षिक कीय विवरण में वर्णित किसी व्यय के बारे में कोई अनुदान करने के संबंध में और भारत की संचित निधि नेये व्यय की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं। |
- वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध.-(1) अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति सिफारिश से ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक राज्यसभा में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा। परन्त किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी। |
(2) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।
(3) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक संसद् के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है।
साधारणतया प्रक्रिया
- प्रक्रिया के नियम.-(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए संसद का प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य संचालन के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं तब तक इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन के विधान-मंडल के संबंध में जो प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश प्रवृत्त थे वे ऐसे उपांतरणों और अनुकूलनों के अधीन रहते हुए संसद के संबंध में प्रभावी होंगे जिन्हें, यथास्थिति, राज्यसभा का सभापति या लोकसभा का अध्यक्ष उनमें करे।। |
(3) राष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष से परामर्श करने के पश्चात, दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों से संबंधित और उनमें परस्पर संचार से संबंधित प्रक्रिया के नियम बना सकेगा।
(4) दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में लोकसभा का अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में ऐसा व्यक्ति पाठासीन होगा जिसका खंड (3) के अधीन बनाई गई प्रक्रिया के नियमों के अनुसार अवधारण किया जाए।
- संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन.-संसद्, वित्तीय कार्य को समय के भीतर पूरा करने के प्रयोजन के लिए किसी वित्तीय विषय से संबंधित या भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग करने के लिए किसी विधेयक से संबंधित, संसद् के प्रत्येक सदन की प्रक्रिया और कार्य संचालन का विनियमन विधि द्वारा कर सकेगी तथा यदि और यहां तक इस प्रकार बनाई गई किसी विधि का कोई उपबंध अनुच्छेद 118 के खंड (1) के अधीन संसद् के किसी सदन द्वारा बनाए गए नियम से या उसे अनुच्छेद के खंड (2) के अधीन संसद के संबंध में प्रभावी किसी नियम या स्थायी आदेश से असंगत है तो और वहाँ तक ऐसा उपबंध अभिभावी होगा। |
- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा.-(1) भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु । अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद् में कार्य हिन्दी में या अग्रेजी में किया जाएगा। | परन्तु, यथास्थिति, राज्यसभा का सभापति या लोकसभा का अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाला यक्त किसी सदस्य को जो हिन्दी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, अपनी मातृ-भाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा
(2) जब तक संसद वि दारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् यह अनु लोय कर दिया गया हो।
- संसद् में चर्चा पर निर्बट में चर्चा पर निर्बधन,—उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश पने कर्तव्यों के निर्वहन में किए गए आचरण के विषय में संसद् में कोई चर्चा इसमें इसके पश्चात् गति से उस न्यायाधीश को हटाने की प्रार्थना करने वाले समावेदन को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ही होगी, अन्यथा नहीं।
- यायालयों द्वारा संसद् की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना.-(1) संसद् की किसी टी की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।
2) संसद का कोई अधिकारी या सदस्य, जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन संसद् में प्रक्रिया संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियां निहित हैं, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिता के अधीन नहीं होगा।
टिप्पणी
अनच्छेद 122 (1) और 212 (1) विधान मण्डल में किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को केवल प्रक्रिया की अनियमितता के आधार पर न्यायालय में प्रश्नगत किए जाने से प्रतिषिद्ध करता है। लेकिन, संसदीय कार्यवाही पूर्णरूप से न्यायिक संवीक्षा से मुक्त नहीं है। राजाराम पाल वि० माननीय अध्यक्ष, लोकसभा, ए० आई० आर० 2007 एस० सी 1448 : (2007) 3 एस० सी० सी० 184.
अध्याय 3
राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ
- संसद् के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति.-(1) उस समय को छोड़कर जब संसद् के दोनों सदन सत्र में है, यदि किसी समय राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता। है कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण तुरन्त कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों।
(2) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद् के अधिनियम का होता है, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश
(क) संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद् के पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले दोनों सदन उसके अननुमोदन का संकल्प पारित कर देते हैं तो, इनमें से दूसरे संकल्प के पारित होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा; और ।
(ख) राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा।
स्पष्टीकरण.-जहां संसद् के सदन, भिन्न-भिन्न तारीखों को पुनः समवेत होने के लिए, आहूत किए | जाते हैं वहाँ इस खंड के प्रयोजनों के लिए, छह सप्ताह की अवधि की गणना उन तारीखों में से पश्चात्वर्ती तारीख से की जाएगी।
(3) यदि और जहां तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद् इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहां तक वह अध्यादेश शून्य होगा। (4) [* * *]
Related Post
Follow me at social plate Form
|
 |
 |
 |
 |