The Constitution of India Directive Principles of State Policy LLB Law
The Constitution of India Directive Principles of State Policy LLB Law:- Definition – in this part, unless the context otherwise requires, “the State” has the same meaning as in Part III. The The Constitution of India LLB Low All Semester Notes Study Material Previous Year Mock Test Question With Answer in Hindi (English) Language.भाग 4
राज्य की नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy)
- परिभाषा.-इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ‘‘राज्य” का वही अर्थ है। जो भाग 3 में है।
- इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों को लागू होना.- इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किन्तु फिर भी इनमें अधिकथित तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
- संविधान (पचासवां संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनुच्छेद 33 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा.-1[(1) राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की । अभिवृद्धि का प्रयास करेगा।
- राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व.-राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से-
टिप्पणी
संविधान के भाग 4 में, जो राज्य के नीति निदेशक तत्वों के सम्बन्ध में उपबन्धित करता है, अनुच्छेद 39 (क) प्रावधान करता है कि राज्य अपनी नीतियों को यह सुनिश्चित करने के लिए निदेश देगा कि नागरिकों, मनुष्यों और स्त्रियों को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधनों का अधिकार है। अनुच्छेद 39 (घ) पुरषों और महिलाओं दोनों के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान करता है और अनुच्छेद 39 (ङ) नियत करता है कि कर्मकारों, पुरुषों और महिलाओं के स्वास्थ्य और शक्ति और बालकों के वयस आयु का दुरुपयोग नहीं किया जाता और नागरिक अपनी आय या शक्ति के अनुपयुक्त पेशे में प्रवेश करने के लिए आर्थिक आवश्यकता द्वारा बाध्य नहीं किये जाते। उसे निर्दिष्ट करने का प्रयोजन यह समझने और मूल्यांकन करने के लिए कि कैसे राज्य की नीति के निदेशक तत्वों और अनुच्छेद 51क के अधीन परिकल्पित मूल कर्तव्यों को उच्चतम न्यायालय की निर्वचनात्मक प्रक्रिया द्वारा विस्तारित किया गया है। निदेशक तत्वों को संविधान की आत्मा माना गया है क्योंकि भारत कल्याणकारी राज्य है। चारू खुराना वि० भारत संघ, ए० आई० आर० 2015 एस० सी० 839:(2015) 1 एस० सी० सी० 192. [39क. समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता.-राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह, विशिष्टतया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से नि:शुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।
- ग्राम पंचायतों का संगठन.-राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर । योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों।
- संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा १ दारा (30-4-1979 से) अनुच्छेद 38 का के रूप में पुन: संख्यांकित किया गया।
- कछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार.–-राज्य अपनी आर्थिक सामध्ये और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढापा, बीमारी और नि:शक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
- काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध.-–राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए उपबंध करेगा।
- कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि.-राज्य, उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा। |
- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि.-राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा।
- पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य.-राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर औषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।
- कृषि और पशुपालन का संगठन.-राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिये और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा।
- राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण.-5[संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन] राष्ट्रीय महत्व वाले [घोषित किए गए] कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक संस्मारक या स्थान या वस्तु का, यथास्थिति, सुंठन, विरूपण, विनाश, अपसारण, व्ययन या निर्यात से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी।
- कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण.-राज्य की लोक सेवाओं में, न्यायपालिका को 25 कार्यपालिका से पृथक् करने के लिये राज्य कदम उठाएगा।
- अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि.-राज्य-
1[भाग 4 क
मूल कर्त्तव्य (Fundamental Duties)
51-क. मूल कर्त्तव्य.-भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह (क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे, (ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे; । (ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे; (घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे, (ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं; (च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे; (छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे। (ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे; (झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे; । (ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छु ले। 2[(ट) यदि माता-पिता या संरक्षक, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।]
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