NIELIT DOEACC CCC Components Computer System Study Material in Hindi
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कंप्यूटर सिस्टमे के कम्पोनेन्ट्स Components of a Computer System (NIELIT DOEACC CCC Notes Study Material)
एक डिजिटल कंप्यूटर की पांच मुख्य फंक्शनल यूनिट्स है (CCC Sample Model Paper in Hindi)
1. सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU)
2. VDU, की-बोर्ड और माउस
3. अन्य इनपुट और आउटपुट डिवाइसेस
4. कंप्यूटर मेमोरी
5. हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के कॉन्सेप्ट्स
सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (सीपीयू) Central Processing Unit (CPU) (CCC Study Material in Hindi)
CPU Computer का ब्रेन (brain) होता है | इसका मुख्य कार्य है प्रोग्राम को चलाना और अन्य सभी कॉम्पोनेन्टस जैसे-मेमोरी, की-बोर्ड और प्रिंटर आदि के कार्य को कण्ट्रोल करना | Basic Computer Organization का एक ब्लॉक डायग्राम चित्र निचे दिए गये चित्र में दर्शाया गया है |
इस चित्र में गाढ़ी लाइंस का प्रयोग निर्देशों एवं डाटा फके फ्लो को दर्शाने के लिए किया गया है | डॉटेड लाइन्स कोन्त्र्ल यूनिट द्वारा किये जा रहे कण्ट्रोल को रेप्रेजेंट करती है | चित्र में एक कंप्यूटर की अलग अलग यूनिट्स के बेसिक अरेंजमेंट को दिखाया गया है | यह एक डिजिटल कंप्यूटर सिस्टम के पाँच मुख्य बिल्डिंग ब्लॉक्स (building blocks) या फंक्शनल यूनिटस (Functional units) को दर्शाता है | ये पाँच यूनिट्स, पाँच बेसिक कार्यो के लिए होती है, जिनके नाम है इनपुट (Inputting) | इन पांचो यूनिट्स की विस्तृत जानकारी इस प्रकार है |
CPU

CPU (CCC Study Material)
इन्पुटिंग User द्वारा एक इनपुट डिवाइस जैसे की-बोर्ड का प्रयोग करके डाटा को कंप्यूटर में एंटर करने की प्रक्रिया को इन्पुटिंग कहा जाता है | माउस का प्रयोग भी इन्पुटिंग के लिए किया जा सकता है | GUI निर्देशित वातावरण में माउस के द्वारा ग्राफिकल ऑब्जेक्ट के माध्यम से आसानी से निर्देशों को दिया जा सकता है |
स्टोरिंग मैनिपुलेशन के लिए कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी में डाटा और निर्देशों को रखने को स्टोरिंग कहा जाता है |
प्रोसेसिंग कंप्यूटर में एंटर किये गये डाटा के उपर मैनिपुलेशन करना या उन पर कार्य करना (अर्थमैटिकल और लॉजिकल दोनों प्रकार के) ही प्रोसेसिंग कहलाती है | इससे उपयोगी सुचना बाहर निकाली जा सकती है |
आउटपुटिंग सुचना या रिजल्ट, यूजर को या तो स्क्रीन (मोनिटर) पर या पेपर पर (प्रिंट द्वारा) दिखाने की प्रक्रिया को आउटपुटिंग कहा जाता है | प्लोटर के द्वारा ग्राफिकल आउटपुट भी प्राप्त किये जा सकते है |
कंट्रोलिंग उपरोक्त सभी प्रकियाओ को डायरेक्ट करने को Controlling कहा जाता है | यह कण्ट्रलिंग, कण्ट्रोल यूनिट (CU) द्वारा सेन्ट्रल प्रोसेसिंग (CPU) में की जाती है | एक छोटे कंप्यूटर के सीपीयू में एक ही माइक्रोप्रोसेसर होता है | बड़े Computers के CPU में कई सारे प्रोसेसर्स हो सकते है और प्रत्येक प्रेसेस्र एक विशेष कार्य करता है | एक माइर्क्रोप्रोसेसर में एक कण्ट्रोल यूनिट और एक अर्थमैटिक एवं लॉजिकल यूनिट (ALU) होती है | जब में (main) मेमोरी एक माइक्रोप्रोसेसर में जोड़ दी जाती है तो यह एक CPU बन जाता है | एक सीपीयू के मुख्य सेक्शन्स निम्नलिखित है-
1. प्राइमरी मेमोरी या मुख्य Primary Memory of Main Memory या मुख्य मेमोरी (Main Memory)
2. अर्थमैटिक एण्ड लॉजिकल यूनिट (ALU)
3. कण्ट्रोल यूनिट (Control Unit)
प्राइमरी मेमोरी या मुख्य मेमोरी Primary Memory or Main Memory प्राइमरी मेमोरी या मेन मेमोरी यूनिट कंप्यूटर का एक महत्त्वपूर्ण भाग है (उपर दिए गये चित्र में दर्शाया गया है) यह उस डाटा को रखती है जो अभी CPU द्वारा मैनिपुलेट किया जा रहा होता है | यह आवश्यक ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे MS DOS या विंडोज को भी रखती है | चूँकि प्रिमरी मेमोरी CPU के ही भीटर स्थित होती है इसलिए इसे इंटरनल मेमोरी (Internal Memory) कहा जाता है | हम इसे रैंडम एक्सेस मेमोरी (Random Access Memory) भी कह सकते है क्योकि यह मेमोरी डाटा को तुरंत प्राप्त करने में प्रयुक्त होती है |
अर्थमैटिक लॉजिकल यूनिट (Arithmetic Logic Unit (ALU) अर्थमैटिक लॉजिकल यूनिट एक डिजिटल सर्किट है जोकी CPU का एक फंडामेंटल ब्लॉक होता है | साधारण माइक्रोप्रोसेसर भी ALU का प्रयोग टाइमर्स को मेंटेन करने के लिए करते है | वैसे यह सामन्य कंप्यूटर में अर्थमैटिक व लॉजिकल ऑपरेशन्स को कार्यान्वित करने में प्रयुक्त होता है | जॉन वोन न्यूमैन नामक गणितज्ञ ने ALU का सिद्धांत 1945 में प्रतिपादित किया जब उसने EDVAC को बनाने वाली फाउंडेशन रिपोर्ट तैयार की | एक कंप्यूटर सिस्टम की अर्थमैटिक लॉजिकल यूनिट (ALU) एक ऐसी जगह है जहाँ निर्देशों का वास्तविक एक्जीक्यूशन (execution) होता है | अधिक स्पष्ट तौर पर कहा जाये तो ALU में ही सभी कैलकुलेशन्स (calculations) किये जाते है एवं सभी कॉम्पैरीजन्स (comparisons) या निर्णय लिए जाते है | ALU में जनरेट होने वाले इन्टरमीडिएट रिजल्ट्स (intermediate results) को अस्थाई रूप से मेमोरी यूनिट में स्टोर किया जाता है जब तक उनकी बाद में जरूरत फिर से नही पडती है | कोई भी प्रोसेसिंग मेमोरी यूनिट में नही होती है | डाटा, प्रोसेसिंग कार्य के दौरान कई बार प्राइमरी मेमोरी से ALU में जा सकता है और फिर वापस मेमोरी में आ सकता है | प्रोसेसिंग पूरी होने के बाद, मेमोरी यूनिट या रैम में स्टोर किये गये फाइनल रिजल्ट्स को आउटपुट डिवाइस; जैसे-मोनिटर या प्रिंटर को भेज दिया जाता है | सभी ALUs को चार बेसिक अर्थमैटिक ऑपरेशन्स; ऐड (add), सबट्रैक्ट (subract), मल्टीप्लाई (multiply), डिवाइड (divide) एवं लॉजिकल ऑपरेशन्स’ जैसे-लैस दैन (less than), इक्वल टू (equal to) या ग्रेटर दैन (greater than) आदि के लिए डिजाईन किया जाता है |
कण्ट्रोल यूनिट (Control Unit) कण्ट्रोल यूनिट कंप्यूटर के सभी भागो के कार्यो पर नजर रखती है और उनमे परस्पर तालमेल बिठाने के लिए उचित आदेश भेजती है | यह यूनिट कंप्यूटर की पूरी वर्किंग को कण्ट्रोल करने के लिए जिम्मेदार होती है | इस यूनिट द्वारा जनरेट किये गये टाइपिंग और कण्ट्रोल सिग्नल्स, अन्य यूनिट्स को प्रोग्राम के एक्जीक्यूशन और सही कण्ट्रोल के लिए भेज दिए जाते है | यह इनपुट/आउटपुट डिवाइसेज और मेमोरी के बीच में होने वाले डाटा ट्रांसफर को भी कण्ट्रोल करती है | कण्ट्रोल यूनिट कुछ-कुछ मनुष्य के नर्वस सिस्टम की त्ग्रह से मानी जा सकती है |
VDU (विजुअल डिस्प्ले यूनिट) मोनिटर, की-बोर्ड और माउस VDU (Visual Display Unit) or Monitor, Keyboard and Mouse (CCC Solved Study Material)
इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस होती है जो कंप्यूटर में सुचेना एंटर करने के लिए प्रयोग की जाती है या इनसे डाटा प्रोसेसिंग डिवाइसेस रिजल्ट्स प्रदर्शित किया जाता है | ये डिवाइसेस निचे बताई गयी है |
VDU (विजुअल डिस्प्ले यूनिट) या मोनिटर VDU (Visual Display Unit) or Monitor मोनिटर या एक डिस्प्ले कंप्यूटरर्स के लिए इलेक्ट्रॉनिक विजुअल डिस्प्ले है | मोनिटर में डिस्प्ले डिवाइस, सर्किट्री व एनक्लोजर होते है | मॉडर्न मोनिटर में डिस्प्ले डिवाइस एक पतले फिल्म ट्रांजिस्टर लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (TFT-LCD) के रूप में होती है | TFT (Thin Film Transistor) कुछ ही समय में बहुतायत में प्रयुक्त होने लगा है | VDU या मोनिटर टेलीवीजन की तरह ही होता है और इसका साइज़ (जैसा की TV के केस में होता है) स्क्रीन की तिरछी (diagonal) लम्बी में नापा जाता है | मोनिटर्स 9″, 12″, 14″, 15″, 17″ और 21″ की साइज़ में उपलब्ध होते है | यह कलर या बलैक एण्ड वाइट टाइप के अनुदार ही टेक्स्ट या पिक्चर को दिखाते है | मोनिटर्स बाजार में दो प्रकार से उपलब्ध है | ये प्रकार कलर व ब्लैक एण्ड वाइट है | मोनिटर सॉफ्ट आउटपुट को प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाये जाते है |
VDU

VDU (NIELIT CCC Study Material)
की-बोर्ड Keyboard की बोर्ड एक टाइप राईटर जैसी दिखने वाली डिवाइस है जोकि बटनों या keys को इलेक्ट्रॉनिक स्विचिज के रूप में रखती है | इसमें कई प्रकार की keys होती है जो निम्नलिखित है |
1. ऐल्फाबेटीक keys
2. न्यूमेरिक keys
3. स्पेशल कैरेक्टर्स keys
4. फंक्शन keys
5. कण्ट्रोल keys
जब एक key दबाई जाती है, तब एक इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल उत्पन्न होता है जो की-बोर्ड एनकोडर (encoder) नाम के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट द्वारा डिटेक्ट (detect) किया जाता है | एक कंप्यूटर के की-बोर्ड में टाइपराइटर पर मिलने वाली सभी keys होती है और कुछ अतिरिक्त keys भी होती है | ये अतिरिक्त keys कर्सर कण्ट्रोल (अर्थात कर्सर को स्क्रीन पर कहीं भी मूव कराना), डिलीट और स्क्रोल कण्ट्रोल keys होती है | कुल मिलाकर 101 keys होती है (कुछ में ज्यादा भी) आधुनिक की-बोर्ड्स में 104 keys आने लगी है | की-बोर्ड के दाई और एक न्यूमेरिक कीपैड (numeric keypad) होता है जिस पर नंबर्स और बेसिक मैथमेटिकल सिम्बल्स होते है | न्यूमेरिक कीपैड को कर्सर कण्ट्रोल के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है | न्यूमेरिकल कीपैड का यह डबल फंक्शन Numlock keys द्वारा कण्ट्रोल किया जाता है | इस पर Home व End keys भी स्थित होती है | Home keys के द्वारा प्राय: किसी लाइन, पेज, डॉक्यूमेंट या अन्य किसी criteria के प्रारम्भ में पहुंचा जा सकता है | इसी प्रकार End key के द्वारा किसी लाइन, पेज आदि के अंत में पहुंचा जा सकता है |
Keyboard

Keyboard (NIELIT DOEACC CCC Study Material)
नोट :- की-बोर्ड (Key Board) के उपर फंक्शन keys F1 से F2 तक होती है | उनका कार्य चल रहे प्रोग्राम पर निर्भर करता है | F1 key का प्रयोग प्रोग्राम से हेल्प पाने के लिए किया जाता है |
माउस Mouse माउस एक ऐसी इनपुट डिवाइस है जो पोइंटिंग में प्रयुक्त होती है | यह किसी सर्फेस पर द्विविमीय मोशन को डिटेक्ट करती है | इसको हाथ से पकड़कर किसी सपाट सतह पर चलाया जाता है | माउस गंदा न हो जाए | अत: माउस पैड को सपाट सतह के तौर पर प्रयुक्त किया जाता है | माउस का प्रयोग मोनिटर स्क्रीन पर स्केचेज (sketches), डायग्राम्स (diagrams) आदि ड्रो करने के लिए भी किया जा सकता है | इसे ड्राइंग के कार्य के लिए ग्राफिक टैबलेट पर भी मूव कराया जाता है | माउस का प्रयोग टेक्स्ट को एडिट करने के लिए किया जाता है | स्क्रीन पर टेक्स्ट को एडिट करने के लिए माउस को मुव कराकर कर्सर को जल्दी से स्क्रीन मनचाहे पॉइंट पर रखा जाता है | एक तरह का माउस रोलिंग बॉल (rolling ball) का प्रयोग करता है, अन्य, ऑप्टिकल सेसिंग तकनीको (optical sensing techniques) का | ये एक केबल द्वारा पीसी से जुड़े होते है या इन्फ्रारेड (infrared) लाइट का प्रयोग करके भी पीसी से जुड़े होते है | आमतौर से इस्तेमाल होने वाले एक माउस में दो या तिन बटन्स होते है |
Mouse

Mouse (NIELIT DOEACC CCC Study Material)
अन्य इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस (Other Input/Output Devices) (CCC Exam Important Study Material)
अन्य इनपुट डिवाइसेस (Other Input Devices)
इनपुट डिवाइसेस वे डिवाइसेस होती है जो कंप्यूटर या अन्य डाटा प्रोसेसिंग डिवाइसेस में सुचना को एंटर करने के लिए प्रयोग की जाती है | ये डिवाइसेस निम्नलिखित है-
. जॉयस्टिक (joystick)
2. स्कैनर (Scanner)
3. लाइटपैन (Lightpen)
4. वोएस इनपुट एण्ड रिकोग्निशन सिस्टम (Voice Input and Recognition System)
5. वीडियो कैमरा (Video Camera)
6. ऑप्टिकल मार्क रीडर (Optical Mark Reader, OMR)
7. बारकोड रीडर (Bar-Code Reader)
8. मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकोग्निशन (agenetic Ink Character Recognition)
9. डिजिटाईजर्स (Digitizer)
जॉयस्टिक Joystick जॉयस्टिक एक प्रसिद्द इनपुट डिवाइस है और यह वीडियो गेम खेलने में प्रयुक्त होती है | यह भी एक पोइंटिंग डिवाइस है | जिसके द्वारा कर्सर की direction को कार्यान्वित किया जाता है एवं desired ऑब्जेक्ट को निर्धारित दिशा में मूव किया जाता है | जॉयस्टिक एक स्टिक होती है जिसमे एक स्फीयरिकल (spherical) बॉल इसके निचले तथा उपरी छोर पर होती है | चित्र में देखे | निचे वाली बॉल एक सर्किट के भीतर घुमती है | इलेक्ट्रॉनिक स्रार्कीट्रि जो जॉयस्टिक के भीतर होती है, केन्द्रीय पोजीशन से जॉयस्टिक की दुरी डिटेक्ट करके मापती है | यह सुचना प्रोसेसर को भेज डी जाती है |
Joystick

Joystick (NIELIT DOEACC CCC Study Material)
स्कैनर Scanner स्कैनर भी एक बहुतायत में प्रयुक्त होने वाली इनपुट डिवाइस है | यह फोटोकॉपी मशीन की तरह किसी भी डॉक्यूमेंट की इमेज को बनती है व फाइल के रूप में कंप्यूटर को भेजती है | इस प्रकार हम फोटो, प्रमाण-पत्रों, बैंक दस्तावेजो एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पेपर्स की फोटोकॉपी फाइल के रूप में प्राप्त कर सकते है व इनको विभिन्न कार्यो के लिए प्रोसेस कर सकते है | यह कंप्यूटर में सुचना को सीधे एंटर करने में सक्षम होती है | सुचना को सीधे एंटर करने का लाभ यह अहि की यूजर्स को सुचना टाइप नही करनी होती है | यह अधिक तेज और ज्यादा सही डाटा एंट्री प्रदान करता है | चित्र में दर्शाया हुआ है |
Scanner

NILIET DOEACC CCC Study Material
लाइटपैन Light Pen लाइटपैन एक पोइंटिंग डिवाइस है | इसका प्रयोग मोनिटर पर प्रदर्शित एक मेन्यु को सलेक्ट करने के लिए होता है | यह एक फोटो सेंसिटिव पैन की तरह की डिवाइस होती है | जब इसकी टिप मोनिटर स्क्रीन को छुटी है तो यह एक पोजीशन को सेंस करने में सक्षम हो जाती है |
Light Pen

Light Pen NILIET DOEACC CCC Study Material
वोइस इनपुट एण्ड रिकोग्निशन (Voice Input and Recognition System) वोइस इनपुट एण्ड रोकोग्निशन सिस्टम एक इनपुट डिवाइस है, जिसमे एक माइक्रोफोन या टेलीफ़ोन होता है जो ह्यूमन स्पीच human speech) को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल देता है | इस तरह से पाया गया सिग्नल पैटर्न कंप्यूटर को भेज दिया जाता है जहाँ इसे पहले से स्टोर किये पैटर्नस से मैच कराया जाता है जिससे इनपुट की पहचान की जा सके | जब एक क्लोज मैच (काफी मिलता-जुलता) पाया जाता है तब सिस्टम की शब्दावली कहा जाता है | इस शब्दावली को बनाने के लिए, सिस्टम को प्रशिक्षित किया जाता है जिससे यह शब्दाबली में उपस्थित होने वाले शब्दों और फ्रेसेस (phrases) को पहचान सके | वोइस रिकोग्निशन इसका प्रसिद्द नाम है | Google में वोइस रिकोग्निशन का प्रयोग websites को ढूंढने में किया जाता है |
Voice Input and Recognition System

Voice Input and Recognition System NILIET DOEACC CCC Study Material
वीडियो कैमरा Video Camera वीडियो कैमरा एक ऐसा कैमरा है जो लगातार पिक्चर्स (pictures) लेता रहता है और मोनिटर पर डिस्प्ले या स्थाई रिकॉर्डिंग के लिए सिग्नल जनरेट करता है | वीडियो कैमरा से जनरेट किये गये सिग्नल्स पारम्परिक रूप से एनालोग ही होते है, लेकिन आजकल डिजिटल वीडियो कैमरे भी उपलब्ध है |
ओप्टिकल मार्क रीडर Optical Mark Reader, OMR ऑप्टिकल मार्क रीडर्स स्पेशल स्कैनेर्स होते है जो पेन्सिल या पेन से बनाये गये पूर्व निर्धारित प्रकार के मार्क को पहचानने के लिए इस्तेमाल किये जाते है | उदहारण के लिए, कॉम्पिटीटिव एग्जामिनेशन (competitive examination) के ऑब्जेक्टिव टेस्ट पेपर (objective test paper) में, आप एक स्पेशल शीट पर अपना उत्तर, पेन या पेन्सिल से, एक छोटे स्क्वायर को भरकर मार्क करते है | ये उत्तर पुस्तिकाएँ ऑप्टिकल मार्क रीडर द्वारा कंप्यूटर में फीड की जाती है | इसके बाद कंप्यूटर इन उत्तर पुस्तिकाओ का मूल्यांकन करता है | OMR का प्रयोग केवल ऑब्जेक्टिव टाइप टैस्ट्स की ग्रेडिंग तक ही सिमित नही है | वास्तव में, कोई भी इनपुट डाटा जो चॉइस या सिलेक्शन की तरह का हो, OMR इनपुट के लिए रिकॉर्ड किया जाता है | OMR जाँचे जाने वाले पेज पर लाइट फोकस (focus) करता है और भरे गये मार्क्स से रिफ्लेक्ट (reflect) किये गये लाइट पैटर्न को फिर डिटेक्ट किया जाता है | चित्र में दर्शाया गया है |
Optical Mark

Optical Mark (NIELIT DOEACC CCC Study Material)
बारकोड रीडर Bar-Code Reader बारकोड रीडर्स स्पेशल डिवाइसेस होती है जो बार कोडेड डाटा (bar coded) को पढ़ने के लिए इस्तेमाल की जाती है | बारकोड एक स्पेशलाइज्ड कोड होता है | जो आइटम्स को तेजी से पहचान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है | इसमें छोटी-छोटी लाइनों की एक सीरिज होती है जिन्हें बार्स कहा जाता है | बार्स की वास्तविक कोडिंग बार की विड्थ होती है, उसकी हाईट में नही | इन्हें मुख्य तौर पर वस्तुओ जैसे किताबे, पोस्टल पैकेजेस, बैजेस आदि की पहचान के लिए प्रयोग किया जाता है | चित्र में दर्शाया गया है |
Bar-Code Reader

Bar-Code Reader
मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकोग्निशन, एम आई सी आर Magnetic ink Character Recognition, MICR’ MICR एक कैरेक्टर रिकोग्निशन तकनीक पर आधारित चैक्स को प्रोसेस करने वाली डिवाइस है | ये बैंको में प्रयोग होने वाली महत्त्वपूर्ण डिवाइस है | MICR एनकोडिंग को MICR लाइन भी कहा जाता है | ये चैक के निचले वाले हिस्से में होती है | चित्र में दर्शाया गया है |
Magnetic ink Character

Magnetic ink Character (CCC Study Material)
डिजिटाइजर Digitizer डिजिटाइजर एक ऐसी इनपुट डिवाइस है जो की एनालोग इन्फोर्मेशन को डिजिटल फॉर्म में परिवर्तित करती है | डिजिटाइजर किसी टीवी या कैमरा के एनालोग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में परिवर्तित कर सकती है जिसे सिग्नल की सहायता से वह चित्र प्राप्त कर सकते है जिसको हमने कैमरे से खिंचा था | डिजिटाइजर को टेबलेट या ग्राफिक्ट्स टैबलेट भी कहा जाता है क्योकि ये ग्राफिक्स और पिक्टोरियल डाटा को बाइनरी इनपुट्स में परिवर्तित कर देता है | एक ग्राफिक टैबलेट को ड्राइंग के फाइन वर्क्स और इमेज मैनिपुलेशन एप्लीकेशन्स को कार्यान्वित करने के लिए डिजिटाइजर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है |
Digitizer (CCC Study Material)

Digitizer (CCC Study Material)
अन्य आउटपुट डिवाइसेस Other Output Devices (NIELIT DOEACC CCC Previous Year Notes)
आउटपुट डिवाइसेस वे डिवाइसेस होती है जो कंप्यूटर सिस्टम से सुचना या रिजल्ट को हार्डकॉपी के रूप में (प्रिंटर पर) या सॉफ्टकॉपी के रूप में (मोनिटर पर) प्रदान करती है | कुछ आउटपुट डिवाइसेस जो आमतौर पर इस्तेमाल होती है, इस प्रकार है-
1. प्रिंटर्स (Printers)
2. प्लाटर्स (Plotters)
3. स्पीच सिंथेसाइजर (Speech Synthesizer)
4. स्पीकर (Speaker)
प्रिंटर्स Printers प्रिंटर एक ऐसी पेरिफेरेल डिवाइस है जोकि टेक्स्ट और ग्राफिक्स को किसी पेपर या ऐसे किसी फिजिकल मिडिया पर प्रिंट करती है | चार्ल्स बेवेज ने प्रिंटर का अविष्कार किया | ये यांत्रिक रूप से चलने वाला एपरेट्स है | चार्ल्स बेवेज ने उन्नीसवीं शताब्दी में डिफ़रेंस इंजन के लिए प्रिंटर का अविष्कार किया था | हम प्रिंटर से स्थायी रूप से पढ़े जाने वाली सुचना प्राप्त करते है | प्रिंटर से नाना प्रकार की सामग्री प्राप्त की जा सकती है | सामान्यत: हम प्रोग्राम, डाटा और विभिन्न प्रकार के रिजल्ट्स प्राप्त करते है | प्रिंटर्स को इस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है |
Printers DOEACC CCC Study Material

Printers DOEACC CCC Study Material
1. इम्पैक्ट प्रिंटर्स (Impact Printers)
2. नॉन इम्पैक्ट प्रिंटर्स (Non-Impact Printers)
इम्पैक्ट प्रिंटर्स Impact Printers एक इलेक्ट्रोमैकेनिकल मैकेनिज्म (electromechanical mechanism) का इस्तेमाल करते है जो हैमर्स (hammers) या पिन्स (pins) को एक रिबन या पेपर पर स्ट्राइक (strike) करते है जिसे टेक्स्ट प्रिंट हो | दो तरह के इम्पैक्ट प्रिंटर्स उपलब्ध है, डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर्स (dot matrix printers) और लेटर क्वालिटी प्रिंटर्स (letter quality printers)
नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर्स थर्मल (thermal), कैमिकल (chemical), इलेक्ट्रोस्टैटिक (electrostatic), लेजरबीम (laserbeam) या इनक्जैट टेक्नोलॉजी (inkjet technology) का प्रयोग टेक्स्ट प्रिंट करने के लिए करते है | आमतौर पर एक नॉन इम्पैक्ट टाइप का प्रिंटर इम्पैक्ट टाइप के प्रिंटर से तेज होता है | नॉन इम्पैक्ट प्रिंटर के नुकसान ये है की ये केवल टेक्स्ट की सिग्नल कॉपी ही उत्पन्न करते है जबकि इम्पैक्ट प्रिंटर्स टेक्स्ट की मल्टीपल कॉपीज (multiple copies) प्रिंट करते है |
लेजर प्रिंटर्स Laser Printers लेजर प्रिंटर्स भी नॉन-इम्पैक्ट टाइप प्रिंटर्स है | ये एक पेज एक बार में प्रिंट करते है | इस तरह के प्रिंटर्स लेजर या कोई अन्य लाइट सोर्स का प्रयोग करते है ताकि एक फोटो सेंसिटिव ड्रम (photo sensitive drum) पर एक इमेज बनाई जा सके | लेजर प्रिंटर्स शांत होते है और ये हाई क्वालिटी का आउटपुट प्रतुत करते है | ये प्रिंटर्स महंगे होते है और इन्हें पीरियोडिक मेन्टेनेन्स (periodic maintenance) की जरूरत पडती है | लो-स्पीड वाले लेजर प्रिंटर्स 10 पेज या अधिक प्रति मिनट प्रिंट कर सकते है और इन्हें माइक्रो Computers के साथ प्रयोग किया जाता है | हाई-स्पीड लेजर प्रिंटर्स 300 पेजेस प्रति मिनट तक प्रिंट कर सकते है और इन्हें मिनी और लार्ज Computers के साथ प्रयोग किया जाता है | लेजर प्रिंटर्स वोल्यूमिनस (voluminous) प्रिंटिंग वर्क के लिए काफी लोकप्रिय है | इन्हें मुख्य रूप से डेस्कटॉप पब्लिशिंग के काम के लिए इस्तेमाल किया जाता है | चित्र में दर्शाया गया है |
प्लॉटरर्स Plotters प्लॉटरर्स आउटपुट डिवाइसेस है | इन्हें सही और अच्छी क्वालिटी के ग्राफिक्स एवं ड्रोइंग्स बनाने के लिए इनक्पैन या इनक्जैट का प्रयोग करते है | सिग्नल कलर या मलती कलर पैनो का प्रयोग किया जा सकता है | चित्र में दर्शाया गया है |
Plotters

Plotters
स्पीच सिंथेसाइजर Speech Synthesizer स्पीच सिंथेसाइजर एक आउटपुट डिवाइस है जो टेक्स्ट डाटा को बोले जाने वाले वाक्यों में बदल देता है | स्पीच प्रस्तुत करने के लिए बेसिक साउंड यूनिट्स (basic sound units) जिन्हें Phonemes कहा जाता है, को जोड़ दिया जाता है | एक टेक्स्ट में शब्दों की सिक्वेंस (sequence) को Phonemes में जोड़ा जाता है, उसे एम्पलीफाई (amplify) किया जाता है और कंप्यूटर से जुड़े एक स्पीकर द्वारा इसे आउटपुट किया जाता है | स्पीच सिंथेसाइजर्स, अंधे और गूंगे लोगो के लिए पढ़कर सुनाया जाता है | इसी तरह एक गूंगा व्यक्ति जो भी कहना चाहता है वह सुचना टाइप करता है और स्पीच सिंथेसाइजर इसे बोले जाने वाले शब्दों में परिवर्तित करता है |
स्पीकर Speaker कंप्यूटर स्पीकर या मल्टीमीडिया स्पीकर एक महत्त्वपूर्ण डिवाइस है जो की ध्वनी रूपी आउटपुट को परात्प करता है | प्राय: ये लो-पॉवर इंटरनल एम्प्लीफायर रखते है | कंप्यूटर स्पीकर, क्वालिटी और मूल्य में वाइड रेंज में आते है | ये स्पीकर छोटे साइज में और प्लास्टिक के बने होते है |
Speaker

Speaker CCC Question Answer in Hindi
कंप्यूटर मेमोरी Computer Memory (CCC Practice Set Paper)
मेमोरी का अभिप्राय उन फिजिकल डिवाइसेज से है जो प्रोग्राम और डाटा को स्टोर करने में प्रयुक्त होती है और इन्हें हम कंप्यूटर में स्थायी या अस्थायी तौर पर स्टोरिंग के लिए प्रोयग में ला सकते है | कंप्यूटर मेमोरी दो प्रकार की होती है |
1. प्राइमरी मेमोरी (Primary Memory)
2. सेकण्डरी मेमोरी (Secondary Memory)
I. प्राइमरी मेमोरी Primary Memory प्राइमरी मेमोरी सीपीयू का एक भाग होती है जबकि सेकण्डरी मेमोरी सीपीयू से बाहर स्थित होती है | सेकण्डरी मेमोरी डाटा स्टोर करती है और इसे तब भी स्टोर करके रखती है जब पीसी की इलेक्ट्रीसिटी काट दी जाती है जबकि प्राइमरी मेमोरी के कंटेंट्स तुरंत नष्ट हो जाते है | प्राइमरी मेमोरी इलेक्ट्रोनिक सर्किट्स से बनी है और तब वोल्टेज सप्लाई ओं रहती है, तब तक यह डाटा को रखती है | जब पीसी के लिए पॉवर सप्लाई स्विच ऑफ़ कर दी जाती है, तब इसका डाटा भी नष्ट हो जाता है | प्राइमरी मेमोरी को निम्न दो प्रकार में बाँटा जा सकता है |
1. RAM (रैंडम ऐक्सेस मेमोरी)
2. ROM (रीड ओनली मेमोरी)
1. रैंडम एक्सेस मेमोरी Random Access Memory RAM (रैम) एक कंप्यूटर डाटा स्टोरेज का प्रकार है | रैंडम ऐक्सेस मेमोरी किन्ही निश्चित डाटा आइटम्स को लगभग एक ही समय में रीड या राइट करती है | यदि हम दुसरे डाटा-ऐक्सेस डाटा स्टोरेज मिडिया; जैसे-हार्ड डिस्क, CD-RW, DVD-RW को देखे तो इनके रीड व राइट में काफी समय का अंतर होता है | यह एक वोलाटाइल मेमोरी है | यह तब तक स्टोर की गयी सूचना को रखती है जब तक इसे पॉवर सप्लाई की जा रही है | जैसे ही पॉवर स्विच ऑफ़ कर डी जाती है तो RAM में स्टोर की गयी सुचना नष्ट हो जाती है | विभिन्न क्षमताओ वाली RAM उपलब्ध है जैसे 128K, 256K, 512K आदि sims PC उपलब्ध है |
स्टैटिक एवं डायनामिक रैम Static and Dynamic RAM RAMs के दो महत्त्वपूर्ण प्रकार होता है : स्टैटिक RAM और डायनामिक RAM | स्टैटिक RAMs, जब तक पॉवर सप्लाई ओं होती है, तब तक स्टोर की गयी सुचना को रखता है | लेकिन डायनामिक RAM में बहुत ही थोड़े समय में स्टोर की गयी सुचना नष्ट हो जाती है (केवल कुछ ही मिलीसेकेंड्स के अंदर) यधापी पॉवर सप्लाई ऑन हो तब भी | अत: डायनामिक RAMs सस्ते होते है और इनकी पैकिंग डेसीटी काफी अधिक तथा इनकी स्पीड भी मध्यम होती है | इनमे पॉवर की खपत भी कम होती है | इनका प्रयोग वहाँ होता है जहाँ मेन मेमोरी की बड़ी क्षमता की जरूरत होती है | स्टैटिक RAMs महँगे होते है और इनमे पॉवर की खपत अधिक होती है | इनमे रिफ्रेशिंग सर्किट्रि की आवश्यकता नही होती है | इनमे डायनामिक RAMs की अपेक्षा अधिक स्पीड होती है | स्टैटिक RAM और डायनामिक RAM को क्रमशः SRAM और DRAM भी लिखा जाता है |
2. रीड ओनली मेमोरी Read Only Memory रोम भी कंप्यूटर में एक प्रकार की मेमोरी होती है | जिसमे डाटा को या तो परिवर्तित नही किया जा सकता या बहुत कठिनता से बदला जा सकता है | अत: ROM का प्रयोग मुख्यतः firmware को distribute करने में किया जाता है | कंप्यूटर की पॉवर सप्लाई ऑफ़ करने के पश्चात भी ROM के Contents नष्ट नही होते है | एक रोम में यूजर लिख नही सकते है | इसके कंटेंट्स मैन्युफैक्चरिंग के समय ही लिख दिए जाते है | ROMs में स्थाई तरह के प्रोग्राम और अन्य प्रकार की सुचना स्टोर की जाती है | प्रोग्राम्स के एक्जीक्यूशन के समय कंप्यूटर द्वारा इनकी आवश्यकता होती है | ROMs में sine, cosine, logarithm square root, exponential और code conversion table आदि फंक्शन स्टोर रहते है | ROM के उदाहरण है, Toshiba Mask ROM, TCS 534000, 512k x 8bits.
प्रोम्स Proms प्रोग्रामेबल ROMs जिन्हें PROMs कहा जाता है, भी उपलब्ध होते है | इसके अलावा विभिन्न प्रकार के PROMs जैसे इरेजेबल PROM कहा जाता है, इलेक्ट्रिकली इरेजेबल PROM जिन्हें E2PROM कहा जाता है, भी उपलब्ध है | यूजर्स सुचना को PROMs, EPROMs और E2PROM मे लिख सकते है | एक बार प्रोग्राम किये जाने के बाद, EPROM और E2PROM में रिकॉर्ड की गयी सुचना को इरेज करके इसकी जगह इसमें दूसरी सुचना रिकॉर्ड की जा सकती है लेकिन PROM में एक बार जो यूजर द्वारा सुचना लिख दी जाती है और उसे बदला नही जा सकता है |
मेमोरी की वोलाटिलीटी Volatility of Memory वोलाटाइल मेमोरी वो मेमोरी होती है जिसके कंटेंट्स पॉवर को स्विच ऑफ़ करते ही नष्ट हो जाते है | एक कंप्यूटर की मेन मेमोरी, जो डायनामिक RAM या स्टैटिक RAM चिप्स से बनी होती है, पॉवर के रुकते ही तुरंत इसके कंटेंट्स को खो देती है | एक रेंडम ऐक्सेस मेमोरी (RAM) वोलाटाइल होती है लेकिन मैग्नेटिक कोर मेमोरी जिसमे मैग्नेटिक एलिमेंट्स होते है, वोलाटाइल नही होती है | मैग्नेटिक कोर मेमोरी का प्रयोग सेकण्ड जनरेशन के कंप्यूटर्स में होता था |
II. सैकण्डरी मेमोरी Secondary Memory सेकण्डरी मेमोरी को प्रोग्राम्स, डाटा एवं अन्य सुचना के बल्क स्टोरेज (bulk Storage) या मॉस स्टोरेज (mass storage) के लिए इस्तेमाल किया जाता है | मेन मेमोरी की अपेक्षा इसमें अधिक क्षमता होती है | इसमें सिस्टम सॉफ्टवेयर, असेम्ब्लर्स, कम्पाइलर्स, उपयोगी पैकेजेज, बड़ी डाटा फाइलें आदि स्टोर की जाती है | सेकण्डरी मेमोरी नॉन-वोलाटाइल प्रकार की होती है | हार्डडिस्क और फ्लॉपी डिस्क जैसी मैग्नेटिक मेमोरीज कंप्यूटर में प्रयोग की जाने वाली सबसे कॉमन सेकण्डरी मेमोरीज है |
नोट:- एक रैंडम ऐक्सेस स्टोरेज डिवाइस वो होती है जिसमे डिवाइस की किसी भी लोकेशन को ऐड रेंडम ऐक्सेस किया जा सकता है और स्टोर की गयी सुचना का डायरेक्ट रिट्रीवल (direct retrieval) किया जा सकता है |
रैंडम ऐक्सेस डिवाइसेस, डायरेक्ट ऐक्सेस डिवाइसेज है | इन डिवाइसेज में सूचना में सुचना कहीं पर भी उपलब्ध होती है अर्थात यह किसी भी क्रम में उपलब्ध हो सकती है |
फ्लैश ड्राइव Flash Drive फ्लैश ड्राइव (flash drive) को पेन ड्राइव (pen drive) अथवा जम्प ड्राइव (jump drive) भी कहा जाता है | यह पोर्टेबल यु० एस० बी० फ्लैश मेमोरी डिवाइस (portable USB flash memory device) है, जिसका प्रोयग ऑडियो (audio), वीडियो (video) और डाटा (data) फाइल्स (files) को एक कंप्यूटर की हार्ड डिस्क (hard disk) से किसी अन्य कंप्यूटर पर ले जाने के लिए किया जा सकता है | फ्लैश ड्राइव (flash drive) की धारण क्षमता (storage capacity) किसी फ्लोपी डिस्क, CD अथवा DVD से अधिक होती है और इसका प्रयोग हम कंप्यूटर से डाटा (data) को कॉपी (copy) करके किसी अन्य कंप्यूटर पर ले जाने के लिए कर सकते है |
Flash Drive

Flash Drive CCC Notes in Hindi
डिजिटल वीडियो डिस्कस Digital Video Discs-DVDs यह डिस्क (disk) भी आकर में CD के समान ही होती है, परन्तु इसकी क्षमता (storage capacity) CD की तुलना में सात से बारह गुना तक अधिक होती है और इनका ऐक्सेस टाइम (access time) CD-ROM की तुलना में 20 गुना कम होता है अर्थात ये CD-ROM की तुलना में 20 गुना अधिक फ़ास्ट (fast) होती है | Digital Video Disc को Digital Versatile Disk भी कहा जाता है | इनको आम बोलचाल में DVD कहा जाता है | CD-ROM और DVD दोनों ही Technologies Digital Data को store करने के लिए High-Capacity के Optic media का प्रयोग करते है | और Data Decode करने के लिए CD-ROM Drives की तुलना में अपेक्षाकृत छोटी वेवलेन्थ की लेजर किरणों का प्रयोग करती है | अत: एक प्लेटर (platter) पर अधिक देता को राइट (write) किया जा सकता है | DVD पर संचित डेटा (stored data) को पढ़ने के लिए DVD रोम ड्राइव (DVD rom drive) और लिखने के लिए DVD राइटर (DVD writer) की आवश्यकता होती है |
1. DVD-ROM यह एक CD-ROM की भांति देता रीड ऑनली फोर्मेट (data read only format) की एक डिस्क (disc) होती है, जिसकी दोनों साइड्स (sides) में 17 GB की डिजिटल इन्फोर्मेशन (digital information) को एनकोडिंग (encoding) करके (store) किया जा सकता है |
2. DVD Video यह 4.7 GB की एक डिस्क (disk) होती है, जिसे मूवीज (movies) को वितरित चलने वाले उच्च गुणवत्ता के वीडियो (high quality video) को स्टोर कर सकते है | इस फोर्मेट (format) के डिस्क आठ डिजिटल साउंड ट्रैक्स (eight digital sound tracks); जैसे AC3 अथवा डिजिटल डॉल्बी (digital dolby) को भी स्तरों कर सकते है |
3. DVD-R DVD-R में R का तात्पर्य रिकोरडेबल (recordable) से होता है | इस प्रकार की डिस्क (disc) पर CD-R की भांति केवल एक बार ही डेटा (data) को लिखा जा सकता है | इसकी प्रत्येक साइड (side) में 3.95 GB डेटा को स्टोर (store) कियिया जा सकता है |
4. DVD RAM/RW बाजार में अनेक प्रकार की रीड-राइट DVD ड्राइव्स (read/write DVD drives) उपलब्ध है | वेण्डर्स (vendors) के बीच इन्काम्पेटीबिलिटी (incompatibility) के कारण यह DVD टेक्नोलॉजी धीरे-धीरे अपना बाजार बना रही है |
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के कॉन्सेप्ट्स (Concepts of Hardware and Software)
(CCC Study Material Question Paper)
हार्डवेयर Hardware
कंप्यूटर के वे कॉम्पोनेन्ट जिन्हें हम छू सकते है व मूर्त रूप से अनुभव कर सकते है, हार्डवेयर कहलाते है | हार्डवेयर में इनपुट, स्टोरेज, प्रोसेसिंग, कण्ट्रोल औ आउटपुट डिवाइसेस होती है | इन कॉम्पोनेन्ट के उदाहरण है, माइरोप्रोसेसर्स, ICs, हार्ड डिस्कस, फ्लॉपी डिस्क, ऑप्टिकल डिस्कस, मोनिटर्स, की-बोर्ड, प्रिंटर, प्लोटर आदि | एक कंप्यूटर सिस्टम में एक CPU (सेन्ट्रल डिवाइसेज) एक-कीबोर्ड, एक विजुअल डिस्प्ले यूनिट (VDU) अर्थात एक मोनिटर, पेरिफरल डिवाइसेज और एक ऑपरेटिंग सिस्टम होता है | हार्डवेयर के साइज़ और सॉफ्टवेयर के अमाउंट (amount), जो मोडर्न कंप्यूटर सिस्टम को कुल वर्कलोड (वर्कload) के लिए तैयार करते है, को मुक्य रूप से निम्न क्राटेरिया के आधार पर निश्चित किया जाता है |
(a) आवश्यक टर्मिनल्स की संख्या
(b) प्रत्येक टर्मिनल पर यूजर्स द्वारा एक साथ किये जाने वाले कार्य कितने और किस तरह के होंगे | इन्ट्रेकटिव प्रोसेसिंग जैसे प्रश्न/उत्तर और फॉर्म भरना, हल्के काम में आते है | बैच प्रोसेसिंग (एक पूरी रिपोर्ट प्रिंट करना या लम्बी सर्च करना) हैवी कार्य में आते है | कंप्यूटर एडेड डिजाईन (CAD), इंजीनियरिंग और साइंटिफिक एप्लीकेशन आदि में काफी तेज मैथेमैटिकल प्रोसेसिंग की जरूरत होती है |
(c) डाटा को रखने के लिए कितीं ऑनलाइन डिस्क स्टोरेज आवश्यक है |
सॉफ्टवेयर Software
कोई भी कंप्यूटर स्वयं कुछ नही कर सकता क्योकि कंप्यूटर के द्वारा किया जाने वाला कार्य उसको दिए गये निर्देशों पर निर्भर करता है | सॉफ्टवेर में कंप्यूटर प्रोग्राम, प्रोसीजर और वे सहायक डाक्यूमेंट्स होते है जो किसी प्रोग्राम की व्याख्या करते है |
सॉफ्टवेयर की भूमिका Role of Software निर्देशों का एक सेट, जो एक विशेष कायर करता है, प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर प्रग्राम कहलाता है | प्रोग्राम के निर्देश, कंप्यूटर को इनपुट कार्य करने, डाटा को प्रोसेस करने तथा रिजल्ट को आउटपुट करने के लिए डायरेक्ट करते है |
सॉफ्टवेयर के प्रकार सॉफ्टवेयर को निम्न श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
1. सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software)
2. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software)
3. यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility Software)
4. पैकेजेज (Packages)
- सिस्टम सॉफ्टवेयर System Software सिस्टम सॉफ्टवेयर वह कंप्यूटर सॉफ्टवेयर होते है जोकि कंप्यूटर हार्डवेयर को कण्ट्रोल करते है और एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को रन कराने के लिए प्लेटफार्म को उपलब्ध कराते है | इसमें एक या एक से अधिक प्रोग्राम्स के सेट होते है | ये प्रोग्राम्स कंप्यूटर सिस्टम के कार्य को कण्ट्रोल करते है | ये जनरल प्रोग्राम्स है जो एप्लीकेशन प्रोग्राम्स को एक्जिक्यूट करने के सभी स्टेप्स जैसे सभी कार्यो को कण्ट्रोल करना, डाटा को कंप्यूटर के भीटर और बाहर मूव कराना, आदि को करने के लिए कंप्यूटर सिस्टम को प्रयोग करने में यूजर्स की मदद के लिए लिखे गये है | आमतौर पर, सिस्टम पैकेजेज, निम्न को सपोर्ट करते है |
(a) अन्य सॉफ्टवेयर को चलाना
(b) पेरिफेरल डिवाइसेज जैसे प्रिंटर्स, कार्ड रेडर्स, डिस्क और टेप डिवाइसेज आदि के साथ कम्युनिकेट करना
(c) अन्य तरह के सॉफ्टवेयर को विकसित करना
(d) विभिन्न हार्डवेयर रिसोर्सेज जैसे मेमोरी, पेरीफेरल्स, सीपीयू आदि के प्रोयग को मोनिटर करना |
(I) ऑपरेटिंग सिस्टम Opreting System ऑपरेटिंग सिस्टम अगल-अलग हार्डवेयर के पार्ट्स को आपस में जोड़ने के लिए सिस्टम सॉफ्टवेयर अर्थात Driver का कार्य करता है और एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के लिए प्लेटफार्म प्रदान करता है | जो भी नये एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर या ड्रावर install किये जाते है सभी Operating System में जुड़ते जाते है | Operating System ही Computer को यूजेबल बनता है | कंप्यूटर के स्विच ऑन होने के बाद यही पहला प्रोग्राम होता है जो कंप्यूटर की मेमोरी में लोड (कॉपी) होता है | लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम्स में MS-DOS, OS/2, विंडोज और Unix शामिल है | Macinotosh, Finder और Multifinder का प्रयोग करते है | डिजिटल सिस्टम VMS और Ultrix ऑपरेटिंग सिस्टम्स का प्रयोग करते है | IBM मेनफ्रेम कंप्यूटर MVS, VM या DOS/VSE ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रोयग करते है | ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर सिस्टम का एक महत्त्वपूर्ण कॉम्पोनेन्ट होता है, क्योकि यह उन एपलीकेशन प्रोग्राम्स, जो इस पर चलते है, के लिए स्टेंडडर्स (Standards) सेट करता है | सभी प्रोग्राम्स इस तरह लिखे होने चाहिए जिससे ये ऑपरेटिंग सिस्टम से बात कर सके |
Operating System निम्न कार्य करते है-
(i) जॉब मैनेजमेंट (Job Management)
(ii) डाटा मैनेजमेंट (Data Management)
(iii) टास्क मैनेजमेंट (Task Management)
(iv) बुट स्ट्रैप (Boot Strap)
(v) सिक्योरिटी (Security)
जॉब मैनेजमेंट (Job Management) छोटे Computers में, Opreting System, यूजर से मिले हुए कमांड्स को रिस्पोंड (respond) करता है और एक्जीक्यूशन के लिए मनचाहे एप्लीकेशन प्रोग्राम को लोड करता है | एक बड़े कंप्यूटर में, ऑपरेटिंग सिस्टम अपने जॉब कण्ट्रोल (JCL) का संचालन करता है, जिन्हें प्रोग्राम्स के मिक्स के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो पूरी शिफ्ट के लिए चल सके |
डाटा मैनेजमेंट (Data Management) ऑपरेटिंग सिस्टम का एक अहम कार्य है डिस्क पर डाटा का ट्रैक रखना | जब एक प्रोग्राम डाटा को एक्सेप्ट करने के लिए तैयार हो जाता है, तब यह ऑपरेटिंग सिस्टम को कोडेड मैसेज द्वारा सिग्नल देता है | ऑपरेटिंग सिस्टम डाटा को ढूंढ कर इसे प्रोग्राम को डिलीवर करता है | इसके विपरीत, जब प्रोग्राम आउटपुट के लिए तैयार होता है, तो ऑपरेटिंग सिस्टम, प्रोग्राम में से डाटा को, डिस्क में अगली उपलब्ध जगह पर ट्रांसफर कर देता है |
टास्क मैनेजमेंट (Task Management) सिग्नल टास्किंग Computers में, Opreting System के पास वास्तव में करने के लिए कोई टास्क मैनेजमेंट नही होता है, लेकिन मल्टीटास्किंग Computers में यह एक या अधिक प्रोग्राम्स (जॉब्स) के लगातार होने वाले कार्यो के लिए जिम्मेदार रहता है | एडवांस्ड ऑपरेटिंग सिस्टम में यह क्षमता होती है की ये प्राथमिकता दे सके और इन्ट्रेक्तिव प्रोग्राम्स को सबसे पहली प्राथमिकता दी जाती है | एडवांस्ड ऑपरेटिंग सिस्टम में अधिक फाइन-ट्यूनिंग क्षमताएँ होती है जिससे एक विशेष कार्य को Computer Operator से दिए गये कमांड द्वारा या तो तेज किया जा सकता है अथवा धीरे भी किया जा सकता है |
बुट स्ट्रैप (Boot Strap) बूट का अर्थ है स्टार्ट या कंप्यूटर सिस्टम को रेडी करना जिससे यह हारे निर्देशों को ले सके | ‘बूट’ (boot) शब्द बूट स्ट्रैप (boot strap) में से आया है | जिस तरह बूट स्ट्रैप आपको अपना बूट ऑन करने में मदद करते है; उसी तरह Computer की बूटिंग भी इसे इसके ROM (रीड ओनली मेमोरी) के निर्देशों को इसकी मेन मेमोरी में लोड करने में मदद करती है | पर्सनल Computers में, ROM चिप में एक छोटी बूट स्ट्रैप रूटीन होती है जो ऑटोमैटिक रूप से एक्जिक्यूट हो जाती है जब भी कंप्यूटर को ऑन या रीसेट किया जाता है | बूट स्ट्रैप रूटीन ऑपरेटिंग सिस्टम को ढूंढती है, इसे लोड करती है और फिर इस प्र कण्ट्रोल पास कर देती है | आप अपने Computer System को दो तरह से बूट कर सकते है; एक कोल्ड बूटिंग (cold booting) कहलाती है जब कंप्यूटर को पहले ऑन किया जाता है और दूसरी वार्म बूटिंग (warm booting) कहलाती है, जब कंप्यूटर पहले से ही ऑन होता है और उसे रीसेट किया जाता है |
(v) सिक्योरिटी (Security) मलतीयूजर ऑपरेटिंग सिस्टम ऑथोराइजड यूजर्स (authorized users) की एक लिस्ट मेन्टेन करते है और अनऑथोराइजड यूजर्स (unauthorized users) के खिलाफ पासवर्ड प्रोटेक्शन प्रदान करते है | अनऑथोराइजड यूजर्स Computer System में प्रवेश करने चाहते है | बड़े ऑपरेटिंग सिस्टम भी बिलिंग के परपस (purpose) से एक्टिविटी लॉग्स (logs) और यूजर्स के समय की एकाउंटिंग को मेन्टेन करते है | ये सिस्टम फेल्योर की स्थिति में बैकअप (backup) और रिकवरी रूटीन्स (recovery routines) भी प्रदान करते है जिसे फिर से सब कुछ शुरू किया जा सके |
(ii) असेम्बलर्स Ass embers असेम्बलर्स किसी असेम्बली लैंग्वेज के प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में बदलते है | यदि कंप्यूटर अपने लिए ही ऑब्जेक्ट प्रोग्राम को बना रहा है तो उसे सेल्फ असेम्ब्लेर कहा जाता है | असेम्बली लैंग्वेज के प्रोग्राम को सोर्स प्रोग्राम कहा जाता है और मशीन लैंग्वेज में अनुवादित प्रोग्राम ऑब्जेक्ट प्रोग्राम कहलाता है | एक कम पावरफुल और सस्ते कंप्यूटर में हो सकता है की पर्याप्त सोफ्ट्वेयर और हार्डवेयर की सुविधा, प्रोग्राम डेवलपमेंट और कन्विनीएंट असेम्बली के लिए न हो | इस परिस्थिति में एक तेज और पावरफुल कंप्यूटर को प्रोग्राम छोटे Computers पर चलाए जाते है | इस तरह के प्रोग्राम डेवलपमेंट में एक क्रॉस असेम्बलर की जरूरत होती है | एक क्रॉस असेम्बलर एक असेम्बलर है जो एक ऐसे कंप्यूटर पर चलता है, जो उससे अलग होता है और जो मशीन कोड प्रसुत करता है |
(iii) इंटरप्रेटर्स Interpreters इंटरप्रेटर एक प्रोग्राम होता है जो हाई लेवल लैंग्वेज प्रोग्राम के एक स्टेटमेंट को मशीन कोड्स में ट्रांसलेट करता है और इसे एक्जिक्यूट करता है | इस तरीके से यह आगे बढ़ता है जब तक की प्रोग्राम के सभी स्टेटमेंटस ट्रांसलेट और एक्जिक्यूट न हो जाएँ | दूसरी तरफ एक कम्पाइलर, पुरे है लेवल लैंग्वेज प्रोग्राम पर एक बार या दो बार नजर डालता है और फिर पुरे प्रोग्राम एकसाथ मशीन कोड्स में ट्रांसलेट कर देता है | एक कम्पाइलर इंटरप्रेटर से करीब 5 से 25 गुना तेज होता है |
(iv) कम्पाइलर्स Compilers कम्पाइलर्स वे प्रोग्राम होते है जो किसी हाई लेवल लैंग्वेज के प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में बदलते है | यह सभी तरह की लिमिट्स (limits), रेंजेस (ranges), एरर्स (errors), आदि को चैक करता है | लेकिन इसका प्रोग्राम एक्जीक्यूशन टाइम ज्यादा है और यह मेमोरी का एक बड़ा हिस्सा ओक्युपाई (occupy) करता है | इसकी स्पीड कम होती है और इसकी मेमोरी यूटीलाइज (utilize) करने की कुशलता भी कम होती है | यदि एक कम्पाइलर एक ऐसे कंप्यूटर पर चलता है जिसके लिए यह ऑब्जेक्ट कोड प्रस्तुत करता है, तो इसे सेल्फ या रेजिडेंट कम्पाइलर कहा जाता है | यदि एक कम्पाइलर एक ऐसे कंप्यूटर पर चलता है, जो उससे अलग होता है जिसके लिए यह ऑब्जेक्ट कोड प्रस्तुत करता है, तब इसे क्रॉस कम्पाइलर कहा जाता है |
2. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर Application Software एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर या एप्लीकेशन पैकेजेज, एक या अधिक प्रोग्राम्स के सेट्स होते है जो एक विशेष एप्लीकेशन के लिए कार्य करने के लिए डिजाईन किये गये होते है | उदाहरण के लिए, प्रत्येक महीने एक पेरोल पैकेज, एक कम्पनी के वर्कर्स के लिए पे-स्लिप्स तैयार करते है | इसी तरह, एक इन्वेंट्री पैकेज एक ओर्गेनाइजेशन में उपलब्ध विभिन्न पार्ट्स/इक्विपमेंट्स की लिस्ट तैयार करते है | परम्परागत रूप से एप्लीकेशन पैकेजेज प्रोडक्शन शिड्यूल, जनरल लेजर (ledger) और जनरल एकाउंटिंग पैकेजेज जैसे कुछ जनरल परपस फंक्शन तक ही सिमित है | चूँकि जनरल परपस सॉफ्टवेयर की मांग बहुत ज्यादा है, इस सॉफ्टवेयर का डेवलपमेंट हमेशा बढ़ता जा रहा है | स्पेशल परपस पैकेजेज, बैंकिंग, होस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन, इंश्योरेंस, डेस्कटॉप पब्लिशिंग, मैन्यूफैक्चरिंग आदि के लिए भी डेवलप किये जा रहे है |
सिस्टम और एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर पैकेजेज के बीच अंतर Differences between System and Application Software and Packages किसी भी सिस्टम पैकेज को चलाने के लिए एप्लीकेशन प्रोग्राम की आवश्यकता न्ह्ही होती परन्तु एप्लीकेशन प्रोग्राम का रन करना सिस्टम पैकेज पर निर्भर करता है | सिस्टम की आवश्यकता नही होती परन्तु एप्लीकेशन प्रोग्राम को आसानी से चलाया जा सकता है | सिस्टम सॉफ्टवेयर आमतौर पर कंप्यूटर मैन्यूफैक्चरर्स द्वारा डेवलप एवं डिस्ट्रीब्यूट किये जाते है | जो कस्टमर सिस्टम खरीदते है या लीज पर लेते है उन्हें कंप्यूटर हार्डवेयर के साथ-साथ उसके कंप्यूटर को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए कुछ आवश्यक सॉफ्टवेयर भी मिलते है | सिस्टम सॉफ्टवेयर, पुरे कंप्यूटर सिस्टम का एक अभिन्न भाग होता है | इसका कार्य है उस अंतर को कम करना जो यूजर की जरूरत और हार्डवेयर की क्षमता के बीच रहता है | एक कंप्यूटर, बिना किसी प्रकार के सिस्टम सॉफ्टवेयर के,कार्य कर पाने में अप्रभावी और असफल होता है |
3. यूटिलिटी सॉफ्टवेयर Utility Software यूटिलिटी सॉफ्टवेयर कुछ ऐसे प्रोग्राम्स को कहा जाता है, जो सिस्टम सॉफ्टवेयर नही होते, परन्तु जिनकी आवश्कता हमें बार-बार पडती है | यूटिलिटी प्रोग्राम् कई ऐसे कार्य करता है जो कंप्यूटर का उपयोग करते समय हमे करने पड़ते है | उदाहरण के लिए कोई यूटिलिटी प्रोग्राम हमारी फाइलों का बैकअप किसी बाहरी भंडारण साधन अपर लेने का कार्य कर सकता है | ये सिस्टम सॉफ्टवेयर के अनिवार्य भाग नही होते, परन्तु सामान्यतया उसके साथ ही आते है और कंप्यूटर के निर्माता द्वारा उपलब्ध कराए जाते है |
यूटिलिटी सॉफ्टवेयर के कुछ प्रमुख उदहारण निम्न प्रकार है
टेक्स्ट एडिटर Text Editor या एक ऐसा प्रोग्राम होता है, जो टेक्स्ट फाइलों के निर्माण औ उनके सम्पादन की सुविधा देता है | इसका उपयोग केवल टेक्स्ट टाइप करने में या किसी प्रोग्राम के लिए डाटा तैयार करने में किया जाता है | इस टेक्स्ट को फाइलों के रूप में भी स्टोर किया जा सकता है | और बाद में भी कभी भी सुधार जा सकता है | विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में नोटपैड (notepad) एक ऐसा ही प्रोग्राम है |
फाइल सोर्टिंग प्रोग्राम्स File Sorting Programs ये ऐसे प्रोग्राम्स होते है जो किसी डाटा फाइल के रेकॉर्ड्स को हमारे किसी इच्छित कर्म (order) में लगा सकते है | फाइल को छांटना इसलिए आवश्यक होता है जिससे किसी विशेष सुचना को उसमे ढूँढना सम्भव हो |
डाटा सेलेक्शन प्रोग्राम्स Data Selection Programs ये ऐसे प्रोग्राम्स होते है जो किसी डाटा फाइल में से हमारी रूचि के रिकॉर्ड अलग करने में सहायक होते है | ऐसे रिकॉर्डस का चयन किसी विशेष सुचना के मानो के आधार पर किया जाता है |
डिस्क मैनेजमेंट प्रोग्राम्स Disk Management Programs ये ऐसे प्रोग्राम्स होते है जो किसी हार्ड डिस्क पर फाइलों को इस प्रकार व्यवस्थित करते है की उस पर अधिक से अधिक फाइलों को स्टोर करना सम्भव हो तथा डिस्क का स्पेस बेकार न जाए | डिस्क मैनेजमेंट प्रोग्राम फाइलों को संकुचित (compressed) करके स्टोर करने का कार्य भी करता है जिसे स्पेस की बचत होती है |
4. पैकेजेज Packages पैकेज एक कंप्यूटर एप्लीकेशन होता है जिसमे एक या अधिक प्रोग्राम्स होते है जो स्प्रेडशीट पैकेज | सॉफ्टवेयर पैकेजेज एक से अधिक ऑर्गेनाइजेशन की जरुरतो को पूरा करने के लिए डिजाईन किये जाते है; इन्हें आमतौर पर “ऑफ़ द शेल्फ: या “कैंड” (“Canned”) प्रोग्राम की तरह माना जाता है | एप्लीकेशन पैकेजेज सभी प्रकार के कार्यो के लिए उपलब्ध होते है | ये बिजनेस एप्लीकेशन, इंजीनियरिंग (MS वर्ड) जो टेक्स्ट की प्रोसेसिंग और मैनिपुलेटिंग के लिए है, स्प्रेडशीट पैकेजेज (MS एक्सेल) जो फाइनेनसेज के कैलकुलेशन्स और डाटा एनालिसिस के लिए है, CAD डिजाइनिंग या ड्राफ्टिंग के लिए है, ओरिकल (oracle) रेकॉर्ड्स के साथ काम करने के लिए है (फाइल्स का मैनेजमेंट, डाटाबेस का मैनेजमेंट, सुचना की स्टोरेज एवं रिट्रीवल), इंजिनियरिंग डिजाईन पैकेजेज, कम्युनिकेशन पैकेजेज आदि | कुछ इंटीग्रेटेड सॉफ्टवेयर पैकेजेज भी डेवलप किये गये है जो वर्ध प्रोसेसिंग, स्प्रेडशीट, ग्राफिक्स,डाटाबेस मैनेजमेंट आदि के फंक्शन को एक सिंगल सॉफ्टवेयर; जैसे-MS Office XP आदि में कंबाइन करते है |
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर और पैकेजेज के उदाहरण Examples of Application Software and Packages (CCC Study Material in Hindi)
वर्ड प्रोसेसिंग पैकेजेज Word Processing Packages ये पैकेजेज टेक्स्ट को प्रोसेस करते है | इनसे हम टेक्स्ट डॉक्यूमेंट को तैयार कर सकते है | कुछ प्रसिद्द वर्ड प्रोसेसिंग पैकेजेज एमएस वर्ड, वर्ड पैड, वननोट, गूगल डॉक्यूमेंट आदि है | यह यूजर को टेक्स्ट मैटिरियल लेटर्स, रिपोर्ट्स, नोट्स थीसिस, बुक, इनवॉइस, प्रोजेक्टस या कुछ अन्य भी हो सकता है | टाइपिंग या किसी अन्य प्रकार के एरर्स को करेक्ट करना बहुत आसन होता है | टेक्स्ट में कोई भी परिवर्तन या मोडिफिकेशनस, कभी-भी, बड़ी आसानी से किये जा सकते है | एडिटर शब्दों, वाक्यों या पैराग्रफ्स को इन्सर्ट या डिलीट करने के लिए कमांड्स प्रदान करता है | शब्दों, वाक्यों या पैराग्राफ्स को एक जगह से दूसरी जगह मूव कराने के लिए एडिटिंग कमांड्स होते है | लेफ्ट या राईट मार्जिन्स, लाइन स्पेसिंग को मनचाहे ढंग से टेक्स्ट की प्रिंटिंग के समय सेट किया जा सकता है \
इलेक्ट्रोनिक स्प्रेडशीट पैकेजेज Electronic Spreadsheet Packages स्प्रेडशीट इलेक्ट्रॉनिक शीट को कहा जाता है | इसमें Columns और Rows के इंटरसेक्शन से सेल बने होते है |इसमें डाटा एंटर करने के बाद मैनिपुलेट व एनालाइज किया जा सकता है | एक स्प्रेडशीट, पेपर की शीट होती है जिसमे रोज और कॉलम्स बने होते है जिनमे डाटा एंटर किया जा सकता है, मैनिपुलेट किया जा सकता है और एनालाइज भी किया जा सकता है | जब एक कंप्यूटर स्प्रेडशीट बनाता है, इसे इलेक्ट्रॉनिक स्प्रेडशीट कहा जाता है यह स्क्रीन पर प्रदर्शित होती है, मेमोरी में स्टोर होती है और इसके लिए प्रिंट आउट्स लिए जा सकते है | इलेक्ट्रॉनिक स्प्रेडशीट, वहाँ के लिए मददगार साबित होती है जहाँ बड़े टेबुलेटेड कम्प्युटेश्न्स का प्रोयग किया जाता है | आजकल इन्हें कई क्षेत्रो में इस्तेमाल किया जाता है जो संख्याओ के साथ डील करते है | ये इंजिनियरिंग में भी काफी उपयोगी होती है | स्प्रेडशीट प्रोग्राम्स वय्प्क रूप से एकाउंटिंग, सेल्स, इन्वेंट्री कण्ट्रोल, बिजनेस के फाईनेंशियल फ्लू, मार्क्स की टेबुलेशन और कई अन्य बिजनेस और नॉन-बिजनेस प्रोब्लेम्स में इस्तेमाल होते है | आजकल कई स्प्रेडशीट पैकेजेज उपलब्ध है जो बजट बनाने, रिजल्ट्स की जाँच करने आदि में इस्तेमाल किये जा सकते है | MS एक्सेल 2007 माइक्रोसोफ्ट ऑफ़ USA का लेटेस्ट पैकेज है |
कम्पुटर्स की प्रोग्रामिंग लैंगेजेज Programming Languages of Computers (CCC Study Material)
प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज होती है जिनका प्रयोग कंप्यूटर को निर्देश देने में किया जाता है | प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज वे लैंग्वेजेज होती है | जिनका प्रयोग करते समय रिजिड तरीके से फोलो करना होता है | ये रूल्स सिंटैक्स रूल्स कहलाते है | एक नैचुरल लैंग्वेज में, लोग खराब या गलत शब्दावली और ग्रामर का प्रयोग करते है और तब भी उसे समझ लेते है लेकिन Computers चूँकि मशीन्स है, अत: वे केवल इस्तेमाल होने वाली लैंग्वेज के सिंटैक्स रूल्स द्वारा स्ट्रिक्ट (strict) तौर पर गवर्न (govern) की जाने वाली शब्दावली को ही समझ पाते है | इसलिए एक कंप्यूटर लैंग्वेज में, हमें लैंग्वेज के सिंटैक्स को ही स्ट्रिक्ट तौर पर मानना होगा, यदि हम चाहते है की कंप्यूटर हमे समझे | कंप्यूटर लैंगेजेस नैचुरल लैंग्वेजेस से सरल होती है लेकिन इन्हें बड़ी सावधानी से इस्तेमाल करना पड़ता है | कंप्यूटर लैंग्वेज या प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज को 3 प्रमुख श्रेणियों में बाँटा गया है-
1. मशीन लैंग्वेज (Machine Language)
2. असेम्बली लैंग्वेज (Assembly Language)
3. हाई लेवल लैंगेज (High Level Language)
1. मशीन लैंग्वेज Machine Language इंस्ट्रक्शन कोड्स के सेट, चाहे वो बाइनरी या डेसीमल नोटेशन में हो, जो कंप्यूटर द्वार बिना किसी ट्रांसलेशन प्रोग्राम के सीधे समझे जा सकते है, को मशीन कोड या मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम कहा जाता है |
एक कंप्यूटर के केवल 0 और 1 से बनी हुई सुचना को ही समझ पाटा है | इसका अर्थ है की एक कंप्यूटर इसके कार्यो के लिए बाइनरी डिजिट्स का ही प्रोयग करता है | कंप्यूटर के निर्देश, इस तरह से कोडेड होते है और मेमोरी में 0 और 1 के रूप में स्टोर किये जाते है | एक प्रोग्राम जो 0 और 1 के रूप में लिखा जाता है, मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम कहलाता है | प्रत्येक निर्देश के लिए एक स्पेसिफिक (specific) बाइनरी कोड होता है |
मशीन लैंग्वेज के लाभ और सीमाएँ Advantages and Limitations of Machine Language
मशीन लैंग्वेज में लिखे गये प्रोग्राम्स को कंप्यूटर द्वारा बड़ी तेजी से एक्जिक्यूट किया जा सकता है | यह इसलिए क्योकि मशीन निर्देस सीपीयू द्वारा सीधे समझे जा सकते है और प्रोग्रामो का किसी तरह का ट्रांसलेशन आवश्यक न्ह्ही होता है | लेकिन मशीन लैंग्वेज में एक प्रोग्राम लिखने के कई नुकसान भी है जो निचे बताएं जा रहे है |
मशीन के उपर निर्भरता Machine Dependent चूँकि कंप्यूटर्स की आंतरिक डिजाईन एक-दुसरे से अलग होती है और इन्हें कार्य करने के लिए अलग-अलग इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स चाहिए होते है, मशीन लैंग्वेज भी एक तरह के कंप्यूटर से दुसरे में अलग होती है | प्रोग्रामर को प्रत्येक मशीन के लिए नये सिरे से कोड सिखने पड़ते है | अत: प्रोग्राम भी नये सिरे से नई मशीन के लिए पुन: बनाने पड़ते है |
प्रोग्राम करने में कठिनाई Difficult to Program यधपि मशीन लैंग्वेज, आसानी से कंप्यूटर द्वारा प्रयोग की जाती है, लेकिन इस लैंग्वेज में प्रोग्राम लिखना काफी कठिन होता है | प्रोग्रामर के लिए यह जरूरी होता है की या तो वेमशीन के निर्देशों के सेट में स्थित कमांड्स के लिए बहुत सारे मशीन कोड नम्बरों को याद रखे अथवा लगातार एक रेफरेंस कोर्ड को देखते रहे | एक प्रोग्रामर को डाटा और निर्देशों के स्टोरेज लोकेशन्स का भी पूरा हिसाब रखना होगा | एक मशीन लैंग्वेज प्रोग्रामर को एक एक्सपर्ट होना चाहिए, जिसे कंप्यूटर के हार्डवेयर स्ट्रक्चर के बारे में भी जानकरी हो |
गलतियों की सम्भावना Error Prone एक प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में लिखने के लिए प्रोग्रामर को न केवल Opcodes याद रखने पड़ते है बल्कि उसे डाटा निर्देशों के स्टोरेज लोकेशन्स का भी ट्रैक रखना पड़ता है | अत: उसके लिए यह बहुत ही कठिन हो जाता है की वह प्रॉब्लम के लॉजिक पर पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित कर सके | इससे अक्सर प्रोग्रामिंग में गलतियाँ हो जाती है |
सुधार करने में कठिनाई Difficult to Modify मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम्स को करेक्ट करना या मॉडिफाई करना बहुत कठिन होता है | गलतियाँ ढूँढने के लिए मशीन निर्देशों को चैक करना उतना ही कठिन है जिंतना उन्हें शुरुआत में लिखना | इसी तरह से बाद में मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम में मॉडिफाई करना इतना कठिन है की कई प्रोग्रामर्स ये चाहेंगे की इसकी जगह नया लॉजिक फिर से लिख दे बजाए इसके की पुराने प्रोग्राम में आवश्यक मोडिफिकेशन को शमिल करे |
2. असेम्बली लैंग्वेज Assembly Language निर्देश शब्द जो कंप्यूटर को डायरेक्ट करते है, मशीन में न्यूमेरिकल फॉर्म में स्टोर किये जाते है | लेकिन प्रोग्रामर उसके निर्देश कभी भी न्यूमेरिकल फॉर्म में नही लिखता है, बल्कि कंप्यूटर के प्रत्येक निर्देश को एक लेटर कोड का प्रोयग करके लिखा जाता है ताकि किये जाने वाले कार्य को डेजिग्नेट किया जाए और उस नम्बर की मेमोरी का एड्रेस जो इस स्टेप में कैलकुलेशन्स के लिए इस्तेमाल होता है, उसे भी डेजिग्नेट किया जा सके | बाद में निर्देश शब्द के अल्फाबेटिकल सेक्शन को एक असेम्बलर के द्वारा न्यूमेरिकल फॉर्म में परिवर्तित कर दिया जाता है | एक निर्देश शब्द, जो प्रोग्रामर द्वारा लिखा जाता है, के दो भाग होते है –
(i) ‘ऑपरेशन कोड’ (opcode) भाग जो किए जाने वाले कार्य को डेजिग्नेट करता है (एडिशन, सबट्रैक्शन, मल्टीप्लेक्सन अदि)
(ii) इस्तेमाल किये जाने वाले नंबर को एड्रेस एक टिपिकल निर्देश शब्द है ADD535
ऑपरेशन कोड भाग में लेटर्स ADD होते है जो कंप्यूटर को एडिशन अर्थात जोड़ने जैसा अर्थमैटिक कार्य करने के लिए डायरेक्ट करता है और एड्रेस वाला भाग, कंप्यूटर को इस्तेमाल होने वाले नंबर का स्टोरेज में से एड्रेस बताता है |
निमोनिक्स Mnemonics एक निमोनिक का अर्थ है मेमोरी ऐड (aid), जो एक नाम या सिम्बल है और इसके किसी कोड या फंक्शन के लिए प्रयोग किया जाता है | सभी कंप्यूटर लैंग्वेजेस निमोनिक्स से बनी होती है केवल मशीन लैंग्वेज को छोड़कर | उदहारण के लिए BRANCHEQ एक निमोनिक हो सकता है BRANCH ON EQUAL निर्देश के लिए |
असेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम्स के लाभ
(i) हाई लेवल लैंग्वेज प्रोग्राम्स की तुलना में असेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम कम कम्प्युटेशन टाइम और कम मेमोरी लेते है |
(ii) एक असेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम को एक सीपीयू के प्रोसेसिंग पॉवर की कम आवश्यकता होती है | और इस तरह ये हाई लेवल लैंग्वेज प्रोग्राम से अधिक तेज चल सकते है |
असेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम्स के नुकसान Disadvantages of Assembly Language Programs
(i) प्रोग्रामिंग कठिन है और डिबगिंग में अधिक समय लगता है |
(ii) एक असेम्बली प्रोग्राम लिखने के लिए एक प्रोग्रामर को, जो कंप्यूटर वह इस्तेमाल कर रहा है, उसके बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए | जिसमे रजिस्टर्स (registers) के बारे में जानकारी, कंप्यूटर के निर्देश सेट की जानकारी, पेरीफेरल्स (peripherals) से पोर्ट्स (ports) के कनेक्शन की जानकारी आदि शामिल है |
(iii) एक असेम्बली लैंग्वेज प्रोग्राम में निर्देशों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है, क्योकि हमें प्रत्येक कार्य के लिए एक निर्देश चाहिए |
(iv) एक कंप्यूटर में लिखा गया प्रोग्राम, एक अन्य कंप्यूटर, जो अलग तरह (make) का है, में इस्तेमाल नही किया जा सकता है |
3. हाई लेवल लैंग्वेजेज High Level Languages असेम्बली लैंग्वेज के साथ जुडी हुई परेशानियो को दूर करने के लिए हाई लेवल या प्रोसिज्योर ओरिएंटेड (procedure oriented) लैंग्वेज डेवलप की गयी | हाई लेवल लैंग्वेज प्रोग्रामर्स को ऐसे रूप में टास्क को वर्णन करने की अनुमति देते है | जो प्रॉब्लम ओरिएंटेड (oriented) है ना की कंप्यूटर ओरिएंटेड | एक प्रोग्रामर हाई लेवल लैंग्वेज में प्रॉब्लम्स को अधिक कुशलता से फोर्मुलेट कर सकता है | इसके अलावा उसे; जो कंप्यूटर वह इस्तेमाल कर रहा है उसके आर्किटेक्चर की पूरी जानकारी होनी आवश्यक नही है |
एक हाई लेवल लैंग्वेज में जो निर्देश लिखे जाते है उने स्टेटमेंट्स कहा जाता है | ये स्टेटमेंट्स असेम्बली लैंग्वेजेज के निमोनिक्स (Mnemonics) की तुलना में, अंग्रेजी और मैथेमेटिक्स के अधिक आसपास है | हाई लेवल लैंग्वेजेज के उदहारण है-C, C++, Java, Logo, Lisp, Prolog, Ada, Cobol, Basic व VB.
मशीन से आत्मनिर्भर Machine Independence हाई लेवल लैंग्वेजेज मशीन से स्वतन्त्र होती है | यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सुविधा है इसका अर्थ है यदि एक कम्पनी कंप्यूटर्स बदलती है, चाहे वो एक दुसरे निर्माता से लिए गये एक जैसे ही कंप्यूटर क्यों न हो, उनमे जो प्रोग्राम अभी इस्तेमाल किये जा रहे है, उन्हें फिर से लिखने की आवश्यकता नही पड़ेगी | दुसरे शब्दों में कहा जाए तो, हाई लेवल लैंग्वेज में लिखा गया एक प्रोग्राम कई अलग-अलग तरह के कंप्यूटर्स पर बहुत कम या प्राय: बिना किसी मोडिफिकेशन के चल्या जा सकता है |
पोर्टेबिलिटी Portability हाई लेवल लैंग्वेजेज, कंप्यूटर, आर्किटेक्चर से स्वतन्त्र होती है | वही प्रोग्राम, किसी दुसरे कंप्यूटर पर, जिसमे उस लैंवेज का कम्पाइलर होता है, भी चलेगा | कम्पाइलर पर निर्भर होता है, लैंग्वेज पर नही |
Exercise
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