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LLB 1st Year Semester Specific Relief Act 1963 Notes

 

LLB 1st Year Semester Specific Relief Act 1963 Notes:- LLB 1st Year 1st Semester Law of Contract 1 (16th Edition) Topic Specific Relief Act, 1963 Chapter 1 Introduction and Preliminary Most Important Notes Study Material (PDF Download) Free Online for Law Students in Hindi English Language Available.

 

भाग 2 (LLB Notes)

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SPECIFIC RELIEF ACT, 1963)

अध्याय 1 (Chapter 1 LLB Study Material)

भूमिका तथा प्रारम्भिक (INTRODUCTION AND PRELIMINARY)

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 संविदा, अपकृत्य तथा अन्य मामलों में अनुतोष प्रदान करने के पारित किया गया है। उदाहरण के लिये, संविदा अधिनियम 1872 के अन्तर्गत संविदा के भंग होने पर बल प्रतिकर का ही उपबन्ध करता है। ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जहाँ संविदा भंग होने पर केवल पतिकर प्रदान करने से न्याय नहीं होता है वरन संविदा के विनिर्दिष्ट पालन से ही न्याय हो सकता है। परन्तु संविदा अधिनियम में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है। विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम में विनिर्दिष्ट पालन के अनतोष का उपबन्ध है। इसी प्रकार अपकृत्य तथा अन्य मामलों में यद्यपि प्रतिकर सामान्य अनुतोष है परन्तु अतिक्रमण या उल्लंघन कभी-कभी ऐसी प्रकृति का है कि केवल प्रतिकर प्रदान करने से पूर्ण न्याय नहीं हो सकता है तथा वादी के साथ न्याय तभी हो सकता है जब प्रतिवादी अतिक्रमण से विरत आये, उसे वादी के अधिकारों का अतिक्रमण करने से रोका जाय अथवा न्यायालय व्यादेश (Injunction) जारी करे। विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम व्यादेश के अनुतोष का भी प्रावधान करता है। इसी प्रकार सम्पत्ति के कब्जे का प्रत्युद्धरण, लिखतों की परिशुद्धि, घोषणात्मक डिक्रियों आदि अनुतोष का भी विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम में प्रावधान है।

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 कोई नयी विधि निर्मित या प्रतिपादित नहीं करता है। जैसा कि आधनियम की प्रस्तावना में स्पष्ट किया गया है कि अधिनियम कतिपय अधिकारों के विनिर्दिष्ट अनुतोष से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करने के लिये पारित किया गया है। इस विषय पर अधिनियम पारित करने हेतु एक बिल लोक सभा में 23 दिसम्बर 1960 में प्रस्तुत किया गया था। परन्तु वह स्खलित या व्यपगत (lapse) हो गया। तत्पश्चात दसरा बिल प्रस्तुत किया गया तथा संसद ने उसे पारित कर दिया। इस प्रकार विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 ने विधि का रूप ग्रहण किया। यह अधिनियम मार्च 1, 1964 का लागू हो गया। यह अधिनियम परिपर्ण नहीं है अथवा इस विषय पर पूर्ण विधि को समाविष्ट नहीं करता ह। जसा कि अधिनियम की प्रस्तावना से स्पष्ट होता है कि यह अधिनियम कतिपय प्रकारों को विनिर्दिष्ट अनुताष से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करने के उद्देश्य से पारित किया गया है। इस प्रकार 4ह आधनियम, विनिर्दिष्ट अनतोष के सभी पहलुओं को समाविष्ट नहीं करता है परन्तु जैसा कि उच्चतम सालय ने धारित किया है जिन मामलों को यह परिभाषित करता है उन मामलों में पूर्ण है।

इस अधिनियम के पूर्व विनिर्दिष्ट अनुतोष से सम्बन्धित विधि विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877 में पानादष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 पर्व अधिनियम अर्थात् 1877 के स्थान पर उसका संशोधित रूप दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 44 द्वारा विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877 को निरस्त ॥ गया। जहाँ कहीं पूर्व अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित करके परिवर्तित किया गया है अथवा

1. हंगरफोड इन्वेस्टमेन्ट ट्रस्ट लि° विस्टमन्ट ट्रस्ट लि. बनाम हरिदास मन्द्रा, (1972)3 एस० सी० आर०690.

नये प्रावधान रखे गये हैं उनकी विवेचना उक्त प्रावधानों की विवेचना के साथ सम्बन्धित अध्यायों में की जायगी। परन्तु यहाँ पर एक बात उल्लेखनीय है कि जहाँ 1877 के अधिनियम की प्रत्येक धारा को स्पष्ट करने के लिये दृष्टान्त दिये गये थे वर्तमान अधिनियम में दृष्टान्त नहीं दिये गये हैं। यह इसलिये किया गया है कि भारत की विधि कमीशन का मत था कि उक्त दृष्टान्तों से अधिनियम के प्रावधान स्पष्ट नहीं हुये थे। यह मत उचित प्रतीत नहीं होता है क्योंकि दृष्टान्तों से वास्तव में अधिनियम के प्रावधानों को समझने में सहायता मिलती थी। बहुधा वर्तमान अधिनियम के प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिये पूर्व अधिनियम के दृष्टान्तों की सहायता ली जाती है तथा न्यायालय भी इन दृष्टान्तों का हवाला देते हैं।

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 का विस्तार जम्मू एवं कश्मीर के सिवाय संपूर्ण भारत पर है। अधिनियम में प्रावधान है कि यह अधिनियम उस तिथि से प्रवृत्त होगा जिसे शासकीय राजपत्र (Gazette) में अधिसूचना द्वारा केन्द्रीय सरकार नियत करे। केन्द्रीय सरकार ने उक्त तिथि मार्च 1, 1964 नियुक्त की तथा उसी दिन से यह अधिनियम प्रवृत्त हो गया।

यहाँ पर यह भी नोट करना आवश्यक है कि विनिर्दिष्ट अनुतोष केवल व्यक्तिगत सिविल अधिकारों के प्रवर्तन के प्रयोजन के लिये ही अनुदत्त किया जा सकता है। इसे किसी दण्ड विधि के प्रयोजन हेतु अनुदत्त नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, जब तक अन्यथा उपबन्धित न हो, इस अधिनियम की किसी बात से यह नहीं समझा जायगा कि वह (क) किसी व्यक्ति को विनिर्दिष्ट पालन से भिन्न अनुतोष के किसी अधिकार से, जो वह किसी संविदा के अधीन रखता हो, वंचित करती है, अथवा (ख) दस्तावेजों पर भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 के प्रवर्तन पर प्रभाव डालती है।

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 में अधिनियम के प्रयोजनों के लिये कुछ शब्दों को धारा 2 में परिभाषित किया गया है तथा यह स्पष्ट किया गया है कि जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, इन शब्दों के वही अर्थ होंगे जो धारा 2 में परिभाषित किया गया है। यह परिभाषायें निम्नलिखित हैं

(क) ‘बाध्यता’ के अन्तर्गत विधि द्वारा प्रवर्तनीय प्रत्येक कर्तव्य आता है।

(ख) ‘व्यवस्थापन’ (settlement) से भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (1925 का 39) द्वारा यथापरिभाषित वसीयत (will) या क्रोडपत्र (codicil) से भिन्न ऐसे लिखत (instrument) से तात्पर्य है जिसके द्वारा जंगम (movable) या स्थावर (immovable) सम्पत्ति में के क्रमवर्ती हितों को व्ययनित किया जाता है या उसका व्ययनित किया जाने का करार किया जाता है।

(ग) ‘न्यास’ (trust) का वही अर्थ होगा जो भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 (1882 का 2) की धारा 3 में है तथा अध्याय 9 के अर्थ के अन्दर आने वाली न्यास प्रकृति की बाध्यता भी इसमें सम्मिलित है।

भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 के अनुसार, न्यास एक ऐसी बाध्यता है जो सम्पत्ति के स्वामित्व से अनुबद्ध (annexed) है जो स्वामी पर विश्वास या भरोसे से उत्पन्न होता है। दूसरे के हित या दूसरे तथा स्वामी के हित के लिये स्वीकार करता है या घोषित तथा स्वीकार करता है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 में दृष्टान्त नहीं दिये गये हैं। परन्त 1877 के विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम में दृष्टान्त दिये गये थे तथा यह दृष्टान्त आज भी उपयुक्त हैं। यद्यपि इन्हें समाप्त कर दिया गया है परन्तु यह आज भी सही माने जाते हैं तथा उनका हवाला दिया जाता है। अतः यहाँ पर उनमें से कुछ दृष्टान्तों का उल्लेख करना वांछनीय होगा। यह दृष्टान्त निम्नलिखित हैं-

(i) जेड वसीयत द्वारा भूमि का उत्तरदान ‘क’ को करता है तथा ऐसा बिना सन्देह के करता है कि वह ‘ख’ को जीवन पर्यन्त 1000 रुपये देगा। ‘क’ वसीयत को स्वीकार करता है। इस अधिनियम के अर्थों के भीतर ‘ख’ के वार्षिक धन की सीमा तक एक न्यासी है।

2. विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 धारा 1.

3. तत्रैव, धारा 4.

4. तत्रैव, धारा 3.

5. विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877 की धारा 3 का दृष्टान्त (क).

(ii) ‘क’, ‘ख’ का विधिक, चिकित्सीय तथा आध्यात्मिक सलाहकार है। ऐसे सलाहकार होने का लाभ उठाते हुये ‘क’ कुछ ऐसा धनीय लाभ उठाता है जो अन्यथा ‘ख’ को होता। ऐसे लाभ के

लिये अधिनियम के अर्थों में ‘क”ख’ का न्यासी है।  

(iii) ‘क’ ‘ख’ का बैंकर अथवा महाजन है। वह अपने प्रयोजन के लिये ‘ख’ के खाते की स्थिति प्रकट कर देता है। ऐसे प्रकटीकरण से लाभ प्राप्त करने हेतु, इस अधिनियम के अर्थों में ‘क’ ‘ख’ का न्यासी है।

(iv) ‘क’ एक भूमि का क्रय जानते हुये भी करता है कि ‘ख’ ने पहले से उसे क्रय करने की संविदा की थी, ऐसी भूमि के क्रय हेतु ‘क’ इस अधिनियम के अर्थों के भीतर ‘ख’ का न्यासी

(v) ‘क’ ‘ख’ से भूमि यह जानते हुये भी खरीदता है कि भूमि, ‘ग’ के कब्जे में है। ‘क’ भूमि में ‘ग’ के हित के बारे में जाँच करने में चूक करता है। ‘क’ उक्त हित की सीमा तक, इस अधिनियम के अर्थों के भीतर ‘ग’ का न्यासी है।

(घ) ‘न्यासी’ के अन्तर्गत प्रत्येक ऐसा व्यक्ति आता है जो सम्पत्ति को न्यासत: धारण किए हुए है।

(ङ) ऐसे अन्य शब्दों एवं शब्दावली (expressions) जो यहाँ इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किन्तु परिभाषित नहीं हैं तथा भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) में परिभाषित हैं, के वही अर्थ होंगे जो उस अधिनियम में उन्हें क्रमशः समनुदिष्ट हैं।

6. विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877 की धारा 3 का दृष्टान्त (ख).

7. तत्रैव, दृष्टान्त (ग).

8. तत्रैव, दृष्टान्त (छ).

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