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How to download LLB 1st Year Semester Contingent Contracts Notes

 

How to download LLB 1st Year Semester Contingent Contracts Notes:- Hello Friends LLB 1st Semester / Year Online Free Books Law of Contract 1 (16th) Edition Chapter 9 Contingent Contracts Notes Study Material Question Papers in Hindi English (PDF Download) Sample Papers में आप सभी अभ्यर्थियो का फिर से स्वागत है | आज आप Law of Contract Chapter 9 Contingent Contracts के बहुत ही महत्वपूर्ण Notes पढ़ने जा रहे है जिसे हमने आपको Free Online दिया है |

 

अध्याय 9 (Chapter 9)

समाश्रित संविदाएँ (CONTINGENT CONTRACTS)

भारतीय संविदा अधिनियम का अध्याय 3 समाश्रित संविदाओं से सम्बन्धित है। यह छोटा-सा अध्याय विधायिनी विभाग का मौलिक कार्य प्रतीत होता है।।

समाश्रित संविदा की परिभाषा-‘समाश्रित संविदा’ की परिभाषा संविदा अधिनियम की धारा 31 में दी गई है। इसके अनुसार

“समाश्रित संविदा ऐसी संविदा की सांपार्श्विक (Collateral) किसी घटना के होने या न होने पर किसी बात को करने या न करने की संविदा है।”

उदाहरण के लिए क, ख से संविदा करता है कि यदि ख का गृह जल गया तो वह ख को 10,000 रुपये देगा। यह समाश्रित संविदा है P .

समाश्रित संविदा के आवश्यक तत्व –समाश्रित संविदा के निम्नलिखित आवश्यक तत्व होते हैं

(1) कुछ करने या न करने की संविदा;

(2) यदि कुछ घटना घटती है या नहीं घटती है, तथा

(3) यह घटना ऐसी संविदा की साम्पाश्विक होनी चाहिये।

समाश्रित संविदा से सम्बन्धित एक प्रमुख वाद भारत राज्य के मन्त्री बनाम अराथून (Secretary of State for India v. Arathoon)3 है। इस वाद के तथ्य निम्नलिखित हैं:

इस वाद में वादी ने सरकार को लकड़ी प्रदाय करने की संविदा इस शर्त के साथ की थी कि यदि बन्दूक फैक्टरी के अधीक्षक ने लकड़ी का अनुमोदन नहीं किया तो वह अग्रहण (Reject) कर दी जायगी। लकड़ी प्रदाय करने के बाद, अधीक्षक ने उसे अनुमोदित नहीं किया; अत: लकड़ी अग्रहण कर दी गयी। वादी ने प्रस्तुत वाद में तर्क किया कि संविदा का उल्लंघन हुआ क्योंकि उसने निविदा के अनुसार लकड़ी प्रदाय (Supply) नहीं की थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि विवाद समाश्रित प्रकृति का था और इस बात पर निर्भर करता था कि अधीक्षक वस्तुओं को अनुमोदित करे। अत: वादी अधीक्षक के निर्णय की युक्तियुक्तता (Reasonableness) को चुनौती नहीं दे सकता था।

इस सम्बन्ध में अन्य उल्लेखनीय वाद अघोर नाथ बनर्जी बनाम कलकत्ता ट्रामवेज कम्पनी (Aghore Nath Banerjee v. Calcutta Tramways Co.)4 है। वाद के तथ्य निम्नलिखित हैं :

इस वाद में नौकरी पाने के लिए एक कन्डक्टर को कुछ धन प्रतिभूति (Security) के रूप में जमा करना पड़ा था तथा संविदा में निबन्धन था कि यदि वह कर्तव्य के त्याग (dereliction) का दोषी पाया गया तो उसके द्वारा जमा प्रतिभति को जब्त कर लिया जायेगा। यह भी निबन्धन था कि कर्त सम्बन्ध में कम्पनी के मैनेजर का निर्णय अन्तिम होगा। न्यायालय ने धारित (held) किया कि यह समाश्रित संविदा थी तथा कर्तव्य के त्याग के सम्बन्ध में निर्णय कम्पनी के मैनेजर पर निर्भर करेगा

1. पोलक ऐण्ड मुल्ला, इण्डियन काण्ट्रैक्ट एक्ट ऐण्ड स्पेसिफिक रिलीफ ऐक्ट, नवाँ संस्करण (1972), पृ० 321.

2. धारा 31 का दृष्टान्त।

* पी० सी० एस० (1982) प्रश्न 10 (क) के लिए भी देखें।

3. आई० एल० आर० (1879) 5 मद्रास 173.

4. आई० एल० आर० (1885) 11 कलकत्ता 232.

फर्म के० वी० एन० पी० ओ० बलैय्या बनाम के० वी० श्रीनिवासैय्या सेट्टी एण्ड सन्स (Firm K.V.N.P.O.Ballayya v. Srinivassayya Setty & Sons) 5 में एक व्यक्ति (मालिक) ने अन्य व्यक्ति (एजेन्ट) से करार किया कि वह उसके मुकदमे की पैरवी करे तथा यदि वह मुकदमे को जीतने में सफल हुआ तो वह (मालिक) उसे (एजेन्ट को) कुछ जेब-खर्च तथा उसके द्वारा किया गया विधिवत् खर्चा देगा। एजेन्ट मालिक का मुकदमा जीतने में सफल हुआ। उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि मालिक एजेन्ट को खर्च देने के लिए बाध्य है।

समाश्रित संविदा का अनुपालन कब हो सकता है?

(1) किसी घटना के घटने पर-धारा 32 के अनुसार, किसी निश्चित भावी घटना के होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदाओं का अनुपालन, जब तक यदि वह घटना नहीं घट जाती, विधि द्वारा नहीं कराया जा सकता है। उदाहरण के लिए क, ख से संविदा करता है यदि क, ग के पश्चात् जीवित रहा तो वह उसका घोड़ा खरीद लेगा। इस संविदा का अनुपालन, जब तक कि ग, क के जीवन-काल में मर न जाये, विधि द्वारा नहीं कराया जा सकता है। 6 इसी प्रकार क, ख से संविदा करता है कि यदि ग ने जिससे कि घोड़ा बेचने की पेशकश की गयी है, इसे खरीदने से इन्कार कर दिया तो वह घोड़ा उल्लिखित कीमत पर बेच देगा। इस संविदा का अनुपालन, जब तक कि ग घोड़े को खरीदने से इन्कार नहीं कर देता, विधि द्वारा नहीं कराया जा सकता है।

इस सम्बन्ध में बशीर अहमद तथा अन्य बनाम आन्ध्र प्रदेश सरकार (Bashir Ahmed & others v. Government of Andhra Pradesh8) का वाद भी उल्लेखनीय है। इस वाद में यूनानी दवाइयों के निर्माण-हेतु प्रत्यर्थी ने दवाइयों के नुस्खों की एक किताब खरीदने की संविदा की। उसने धन का कुछ अंश अग्रिम देकर किताब को अपने कब्जे में कर लिया। परन्तु कम्पनी निर्मित करने की योजना सफल न हो सकी। अपीलार्थी ने बकाया रकम को प्राप्त करने के लिए वाद किया । प्रत्यर्थी ने इसके विरोध में तर्क किया कि बकाया रकम की देनगी कम्पनी निर्मित होने पर आधारित थी। परन्तु उच्चतम न्यायालय ने इस तर्क को अस्वीकार करके धारित किया कि संविदा के निर्मित होने की घटना पर समाश्रित नहीं थी।

आर० वेलाम्माल बनाम आर० दैवासिगमानी (R. Velammal v. R. Devasigmani)9 के वाद में ‘क’ सम्पत्ति के विक्रय के एक करार के अन्तर्गत समाश्रित यह था कि यदि विक्रय विलेख निष्पादित नहीं हो सका तो ‘ब’ सम्पत्ति बेची जायगी। यद्यपि कोई कानूनी रुकावट नहीं थी फिर भी सम्पत्ति भारों से मुक्त नहीं थी। परन्तु क्रेता फिर भी सम्पत्ति का क्रय करने को तैयार था। मद्रास उच्च न्यायालय की खण्ड पीठ ने निर्णय

ने या न घटने का निर्णय करने का विकल्प क्रेता का था। अतः विनिर्दिष्ट पालन होना चाहिये। न्यायालय ने यह भी निर्णय दिया कि समाश्रित संविदा का अभिवचन प्रतिवादी ने लिखित कथन में नहीं किया तथा परीक्षण न्यायालय में भी यह तर्क नहीं किया गया। अतः प्रतिवादी उच्च न्यायालय के सम्मुख यह तर्क नहीं कर सकता है। 10

यू० पी० राजकीय निर्माण निगम बनाम इन्ड्योर प्राइवेट लि० (U. P. Rajkiya Nirman Nigam

Indure Pvt. Ltd.)11- उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद् ने कुछ निर्माण कार्य के लिये निविदायें आमंत्रित कीं। अपीलार्थी निगम ने परिषद से निविदा दस्तावेज खरीद लिये। प्रत्यर्थी कम्पनी ने अपीलार्थी से संयक्त रूप से निविदा प्रस्तुत करने के लिये कहा। उन्होंने इस सम्बन्ध में एक करार करने का निश्चय किया। अपीलार्थी ने एक प्रारूप करार प्रत्यथी के पास भेजा। प्रत्यथी ने एक क्लाज (क्लाज 10) को काट दिया तथा

5. ए० आई० आर० 1954 एस० सी० 26 .

6. धारा 32 का दृष्टान्त (क)।

7. धारा 32 का दृष्टान्त (ख)।

8. ए० आई० आर० 1970 एस० सी० 1089.

9. ए० आई० आर० 1993 मद्रास 100.

10. तत्रैव, पृष्ठ 105.

11. ए० आई० आर० 1996 एस० सी० 1373, 1377.

एक अन्य क्लाज (क्लाज 12) को सारवान रूप से संशोधित कर दिया। यह इस उद्देश्य से किया गया कि एक नायित्व के स्थान पर अपीलार्थी का एकाकी दायित्व हो जाय। अपीलार्थी ने इसका कोई उत्तर नहीं गा। परन्त अपीलार्थी ने निविदा अकेले ही प्रस्तुत की। प्रत्यर्थी ने अपीलार्थी के विरुद्ध नुकसानी का दावा किया। उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि अपीलार्थी के इस आचरण से प्रत्यर्थी के प्रति प्रस्तावना की स्वीकृति नहीं हुई, अतः उनके मध्य संविदा पूर्ण नहीं हुई।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्णय दिया कि यदि यह मान भी लिया जाय कि प्रस्ताव तथा प्रतिपस्ताव के परिणामस्वरूप उनके मध्य संविदा हुई तो धारा 32 के अन्तर्गत यह समाश्रित संविदा होगी। परन्तु निविदा संस्तुत करने के परिणामस्वरूप पक्षकारों के मध्य संविदा नहीं हुई। इसे लागू नहीं किया जा सकता।

(2) किसी घटना के न घटने पर-किसी अनिश्चित भावी घटना के होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदाओं का अनुपालन जब कि उस घटना का होना असम्भव हो जाता है, और न कि उससे पूर्व कराया जा सकता है।12 उदाहरण के लिए, क करार करता है कि यदि एक विशिष्ट पोत वापस न आये तो वह ख को एक धनराशि देगा। वह पोत डूब जाता है तब संविदा का अनुपालन कराया जा सकता है।13 __यदि वह भावी घटना, जिस पर कोई संविदा आश्रित है, वह अनुरीति है कि जिसमें कि कोई व्यक्ति अनुलिखित समय पर कार्य करेगा तो उस घटना के बारे में तब यह समझा जायगा कि वह असम्भव हो गई है जब कि ऐसा व्यक्ति कोई ऐसी बात करता है कि जिससे यह असम्भव हो जाता है कि वह किसी सुनिश्चित समय के भीतर, या आगे की ओर आकस्मिकताओं के अधीन कार्य करने से अन्यथा, वैसा करेगा।14

क करार करता है कि यदि ख. ग से विवाह करे तो वह ख को एक धनराशि देगा। ग, घ से विवाह कर लेता है। अब ग से ख का विवाह असम्भव समझा जाना चाहिये यद्यपि यह सम्भव है कि घ की मृत्यु हो जाये और तत्पश्चात् ग, ख से विवाह कर ले।15

(3) किसी विशिष्ट घटना के नियत समय में न होने पर समाश्रित-किसी उल्लिखित अनिश्चित घटना के नियत समय के भीतर न होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदा का अनुपालन, जब कि नियत समय का अवसान हो चुका है और ऐसी घटना नहीं हुई है या नियत समय के अवसान से यह निश्चित हो जाता है कि ऐसी घटना नहीं होगी, विधि द्वारा कराया जा सकेगा।16 उदाहरण के लिए, क प्रतिज्ञा करता है कि यदि पोत-विशेष एक वर्ष के भीतर न लौटे तो वह ख को एक धनराशि देगा। यदि पोत उस वर्ष के भीतर न लौटे या उस वर्ष के भीतर जल जाये तो संविदा का अनुपालन कराया जा सकेगा।17

कब समाश्रित संविदा शून्य होती है?

(1) जब घटना असम्भव हो जाती है-धारा 32 के अनुसार, किसी अनिश्चित भावी घटना के होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदाएँ शून्य हो जाती हैं यदि वह घटना असम्भव हो जाती है। उदाहरण के लिए, क यह संविदा करता है कि जब ख, ग से विवाह कर लेगा तो क, ख को एक धनराशि देगा। ग, ख से विवाहित हुए बिना मर जाता है। संविदा शून्य हो जाती है।18

अतः धारा 32 के अनुसार, यदि अनिश्चित भावी घटना असम्भव हो जाती है, तो संविदा शून्य हो जाता है। इस नियम को भलीभाँति समझने के लिए पालन होने की असम्भवता के सिद्धान्त (Doctrine of

12. धारा 33.

13. धारा 33 का दृष्टान्त ।

14. धारा 34.

15. धारा 34 का दृष्टान्त ।

16. धारा 35.

17. धारा 35 का दृष्टान्त (ख)।

18. धार। 32 का दृष्टान्त (ग)।

the Impossibility of Performance) या संविदा के निराश होने का सिद्धान्त (Doctrine of Frustration of Contracts) को समझना आवश्यक है। इसकी विस्तारपूर्वक विवेचना ‘संविदाओं के उन्मोचन’ नामक अध्याय में की गयी है। यहाँ पर यह नोट करना आवश्यक है कि भारत में संविदा के निराश होने का सिद्धान्त मान्य नहीं है। भारत में इस सम्बन्ध में विधि संविदा अधिनियम की धाराओं 32 तथा 56 में है।19

(2) विशिष्ट घटना के नियत समय के भीतर न होने से – किसी उल्लिखित अनिश्चित घटना के नियम समय के भीतर न होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदा यदि नियत समय के अवसान पर ऐसी घटना होती है या यदि नियत समय से पूर्व ऐसी घटना असम्भव हो जाती है, शून्य हो जाती है।20 उदाहरण के लिए, क प्रतिज्ञा करता है कि यदि एक विशिष्ट पोत एक वर्ष के भीतर वापस आ गया तो वह ख को एक धनराशि देगा। यदि पोत उस वर्ष के भीतर वापस आ जाता है तो संविदा का अनुपालन कराया जा सकेगा और यदि पोत उस वर्ष के भीतर जल जाता है तो संविदा शून्य हो जायगी।21

(3) असम्भव घटनाओं पर आश्रित करार-धारा 36 के अनुसार, किसी असम्भव घटना के होने पर किसी बात को करने या न करने के समाश्रित करार, भले ही घटना की असम्भवता करार के पक्षकारों को उसके किये जाने के समय ज्ञात हो या नहीं, शून्य है।

दृष्टान्त-(क) क करार करता है कि यदि दो सरल रेखायें किसी स्थान को पूर्णरूपेण घेर लें तो वह ख को 1,000 रुपये देगा, करार शून्य है।

(घ) क करार करता है कि यदि ख, क की पुत्री घ से विवाह कर ले तो वह ख को 1,000 रुपये देगा। करार के समय घ मर चुकी थी, करार शून्य है।

समाश्रित संविदा तथा व्यतिकारी वचन (Reciprocal Promise) में अन्तर-समाश्रित संविदा तथा व्यतिकारी वचन में मुख्य अन्तर यह होता है कि व्यतिकारी वचन में पारस्परिक उत्तरदायित्व होता है, जबकि समाश्रित संविदा में ऐसा होना आवश्यक नहीं है।

समाश्रित संविदा तथा बाजी लगाने के करार (Wagering Agreement) में अन्तर-* (1) बाजी लगाने की संविदा का एक आवश्यक तत्व यह होता है कि बाजी जीतने के अतिरिक्त संविदा में पक्षकारों का कोई हित नहीं होता है।22 परन्तु यह बात समाश्रित संविदा के लिए आवश्यक नहीं है। समाश्रित संविदा, ऐसी संविदा की साम्पाश्विक (collateral) किसी घटना के होने या न होने पर किसी बात को करने या न करने की संविदा है।

(2) बाजी सामान्यतया अनिश्चित भावी घटना पर लगायी जाती है। परन्तु वह भूतकाल की घटना के विषय में भी हो सकती है।23 परन्तु संविदा अधिनियम की धारा 31 से यह स्पष्ट है कि समाश्रित संविदा में अनिश्चित घटना सदैव भविष्य की होनी चाहिये।

(3) बाजी लगाने की अनुरीति के करार शून्य होते हैं तथा किसी चीज के प्रत्युद्धरण के लिए, जिसके बारे में अभिकथित है कि बाजी लगाकर जीती गई है, या जो किसी व्यक्ति को किसी ऐसे खेल के या अन्य ‘अनिश्चित घटना के, जिसके बारे में बाजी लगाई गई है, फलाश्रित करने के लिए न्यस्त की गयी है, कोई वाद न चलाया जायगा।24 धारा 30 में केवल घुड़दौड़ के प्रति एक अपवाद को स्वीकार किया गया है। समाश्रित

19. देखें : सत्यब्रत बनाम मगनीराम, ए० आई० आर० 1954 एस० सी० 44

20. धारा 35.

 21. धारा 35 का दृष्टान्त (क)।

* पी० सी० एस० (1982) प्रश्न 10 (क); पी० सी० एस० (1981) प्रश्न 10 (क) (ii).

22. देखें : चिट्टी आन कान्ट्रैक्ट्स, 23वाँ संस्करण, वाल्यूम 2 (1968) पृष्ठ 393.

23. तत्रैव, पृष्ठ 394.

24. धारा 30.

संविदायें स्वयं में शून्य नहीं होती हैं, परन्तु दो परिस्थितियों में ऐसी संविदायें भी शून्य होती हैं। पहली परिस्थिति यह है कि यदि आश्रित घटना असम्भव हो जाती है तो संविदा शून्य हो जाती है ।25 इसके अतिरिक्त, किसी उल्लिखित अनिश्चित घटना के किसी नियत समय के भीतर न होने पर किसी बात को करने या न करने की समाश्रित संविदायें यदि नियत समय के अवसान पर ऐसी घटना नहीं होती है या यदि नियत समय से पूर्व ऐसी घटना असम्भव हो जाती है, शून्य हो जाती है।26

25. धारा 32.

26. धारा 35.

 

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