Indian Penal Code Vicarious Liability LLB 1st Year Notes
Indian Penal Code Vicarious Liability LLB 1st Year Notes:- Indian Penal Code means that if any citizen of India commits any crime, the provision for Indian Penal Code has been made. In today’s LLB Notes Study Material, we will learn about Vicarious Liability in details. Please read all our posts carefully to download LLB 1st Year / LLB 1st Semester Indian Penal Code Notes Study Material in PDF.
प्रतिनिहित दायित्व (VICARIOUS LIABILITY)
साधारणतया कोई भी
व्यक्ति अपने ही कार्यों के लिये आपराधिक रूप से उत्तरदायी होता है और एक व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के कृत्यों के लिये दण्डित नहीं किया जा सकता है। किन्तु आदिकाल से ही इस साधारण नियम के कुछ अपवाद माने गये हैं।
प्रतिनिहित दायित्व का सिद्धान्त सर्वप्रथम आर० बनाम हिगिन्स46 के वाद में प्रतिपादित किया गया था। इस वाद में फ्लीट स्ट्रीट जेल के प्रधान तथा डिप्टी वार्डेन हगिन्स तथा बर्नीस पर यह आरोप लगाया गया था कि दोनों ने एक कैदी को जेल के एक गन्दे कमरे में बन्द कर मार डाला था। आरोप यह था कि डिप्टी वार्डेन बर्नीस ने कैदी को गन्दे कमरे में बन्द किया था और वार्डेन हगिन्स उसे देखकर वापस चला गया था। हगिन्स को दोषी नहीं पाया गया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि
| “यद्यपि हगिन्स वार्डेन था फिर भी उसके अधीन एक डिप्टी वार्डेन भी या वार्डन की हैसियत से वह डिप्टी वार्डेन के अधिकार के तहत किये गये कार्यों के लिये दोषी नहीं था। वह ज्येष्ठ अधिकारी के रूप में अपने अधीनस्थ अधिकारियों के लिये उत्तरदायी होगा किन्तु यह दायित्व व्यावहारिक होगा न कि आपराधिक। आपराधिक रूप में केवल वह व्यक्ति दण्डनीय होगा जो या तो तुरन्त कार्य करता है या इसका
- विलियम्स जी; क्रिमिनल लॉ पृ० 269.
41, सायर, हार्वर्ड लीगल ऐसेज (1934) 409.
- देखिये, फ्रीडमैन, लॉ इन चेन्जिंग सोसाइटी पृ० 162-63.
- एडवर्ड्स; मेन्सरिया इन स्टेट्यूटरी आफेन्सेज (1955) 4 ज० आफ० सो० आफ पब्लिक टीचर्स आफ लॉ (एन० एस०).
- प्रोवेजर, क्रिमिनल लॉ रिफार्म, (1958) सी० एल० पी० पृ० 75.
- हाल, जेरोम, जनरल प्रिंसिपल्स आफ क्रिमिनल लॉ, पृ० 359.
- (1730) 2 एल० डी० रेमण्ड 1574; 92 ई० आर० 518.
किया जाना अभिस्वीकृत करता है। अत: यदि कोई कार्य किसी अधीनस्थ अधिकारी द्वारा किया जाता है तो प्रधान अधिकारी तब तक दण्डनीय नहीं होगा जब तक कि वह कार्य प्रधान अधिकारी के आदेश, या निर्देश । द्वारा या उसकी सम्मति से न किया गया हो।”47
अतः कामन लॉ का सिद्धान्त यह है कि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा कारित अपराध के लिये प्रतिनिहित दायित्व के अधीन नहीं होगा। किन्तु यदि उसने अपराध कारित करने के लिये पूर्वानुमति या सम्मति दे रखी थी तो वह उत्तरदायी होगा।
कामन लॉ के अपवाद-कामन लॉ का नियम कि कोई भी व्यक्ति दूसरे के कार्यों के लिये आपराधिक रूप में उत्तरदायी नहीं है जब तक कि उसने उस कार्य को प्राधिकृत न किया हो या अपनी सम्मति न दिया हो, कामन लॉ के निम्नलिखित तीन अपवाद हैं
- अपमान-लेख (Libel)–स्वामी अपने नौकर द्वारा प्रकाशित अपमान-लेख के लिये उत्तरदायी होता है। इस नियम का उद्देश्य मुख्यतया अखबार मालिकों को दण्डित करना है। सन् 1843 में अपमान-लेख अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम की धारा 7 यह प्रतिपादित करती है कि मालिक अपने बचाव में अज्ञात या उपेक्षा का सहारा नहीं ले सकता। दूसरे शब्दों में वह यह तर्क प्रस्तुत कर सकता है कि उसने सम्यक् सावधानी बरती थी और अपमानलेख का प्रकाशन उसके.प्राधिकार के बिना हुआ था।
- लोक न्यूसेंस (Public Nuisance) स्वामी अपने नौकर द्वारा कारित लोक न्यूसेन्स के लिये। प्रतिनिहित दायित्व के अधीन होता है। स्वामी यह दर्शाकर कि उसने कार्य को स्पष्टतः निषिद्ध किया था, अपने आपको निर्दोष साबित नहीं कर सकता। भू-स्वामियों का यह दायित्व होता है कि वे अपनी सम्पत्ति की देखभाल इस प्रकार करें जिससे अन्य व्यक्तियों के अधिकारों को उपहति न कारित हो। इस दायित्व का उल्लंघन आपराधिक रूप में दण्डनीय होता है। आर० बनाम स्टीफेन्स48 के वाद में यह मत व्यक्त किया गया कि अभियोजन का उद्देश्य प्रतिवादी को दण्डित करना नहीं है अपितु न्यूसेंस को जारी रखने से निवारित करना है। | लोक न्यूसेंस से सम्बन्धित भारतीय विधि, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 268 में वर्णित है। जो कोई ऐसा कार्य करता है या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है जिससे लोक को या जन साधारण को कोई सामान्य क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो, वह धारा 268 के अन्तर्गत लोक न्यूसेंस का दोषी है। लोक न्यूसेंस से सम्बन्धित मामले इस देश में धारा 268 के उपबन्धों के अनुसार परीक्षित किये जायें और लोक न्यूसेंस से सम्बन्धित कामन लॉ के मामले धारा 268 के उपबन्धों को विरचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा नहीं करते ।।
- न्यायालय का अवमान (Contempt of Court)—प्रतिनिहित दायित्व का तीसरा अपवाद है। न्यायालय का अवमान 49 न्यायालय के अवमान सम्बन्धी विधि में न्याय प्रशासन अधिनियम (Administration of Justice Act), 1960 द्वारा संशोधन किया गया है। इस अधिनियम की धारा 11 के अन्तर्गत अभियुक्त यह तर्क प्रस्तुत कर सकता है कि उसे न तो यह ज्ञात था और न ही यह सन्देह करने का कारण था कि वे कार्यवाहियाँ जो प्रकाशित की गयी थीं, न्यायालय के समक्ष विचाराधीन थीं।
विधिक अपवाद (Statutory Exceptions)—पूर्ण दायित्व की भाँति प्रतिनिहित दायित्व का भी सृजन संविधि द्वारा हो सकता है। प्रतिनिहित दायित्व का निष्कर्ष संविधि में प्रयुक्त शब्दावली से निकाला जाता है। वार्कर बनाम लेवीनसन0 के वाद में लैण्ड लार्ड एण्ड टिनैन्ट (रेन्ट कन्ट्रोल ऐक्ट) (Landlord and Tenant (Rent Control Act), 1949 की धारा 2(1) विचारणीय थी। धारा 2(1) यह प्रतिपादित करती है कि कोई भी व्यक्ति अभिधृति (Tenancy) प्रदान करने की शर्त के रूप में प्रीमियम के भुगतान की अपेक्षा
- आर० बनाम हगिन्स, 92 ई० आर० 518.
- (1866) एल० आर० 1 क्यू० बी० 702.
- आर० बनाम ईवनिंग स्टैण्डर्ड, (1954) 1 क्यू० बी० 578.
- (1951) 1 के० बी० 342.
नहीं करेगा। प्रतिवादी ने, जो फ्लैट का मैनेजर था, रेण्ट कलेक्टर को यह अधिकार दिया कि वह एक फ्लैट ‘स’ को किराये पर दे दे। ऐसा कोई प्रमाण नहीं था जिससे यह स्पष्ट हो सके कि मैनेजर ने रेण्ट कलेक्टर को अभिधृति की शर्तों को निर्धारित करने के लिये प्राधिकार दिया था। रेण्ट कलेक्टर ने अवैध रूप में प्रीमियम की मांग किया। अभिनिर्धारित हुआ कि मैनेजर को धारा 2(1) के अन्तर्गत दोषी नहीं माना जा सकता क्योंकि कलेक्टर अपने प्राधिकार के सामान्य विस्तार के अन्तर्गत कार्य नहीं कर रहा था। इस मामले पर विचार व्यक्त करते हुये विलियम्स ने विचार व्यक्त किया कि ”स्वीकार किया गया अन्तर असुखकर है क्योंकि यह सर्वथा अनुचित छाप छोड़ता है, इसके अनुसार आपराधिक विधि तथा अपकृत्य विधि में प्रतिनिहित उत्तरदायित्व एक जैसा है।”51 नवरो बनाम मोरग्रांड लिमिटेड52 के वाद में लार्ड डेनिंग ने यह विचार व्यक्त किया कि प्रत्यक्ष या परोक्ष से प्राधिकृत कार्यों के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के लिये स्वामी आपराधिकत: उत्तरदायी नहीं होता। विलियम्स ने यह विचार व्यक्त किया कि
‘बार्कर बनाम लेविनसन में दो प्रकार के दायित्वों में विभ्रम सा प्रतीत होता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि उस सांविधिक अपराध में प्रश्न यह था कि क्या प्रीमियम की माँग अपेक्षित थी और न्यायालय ने परोक्ष रूप में यह विचार व्यक्त किया कि प्रतिवादी एक दूसरे व्यक्ति द्वारा की गयी प्रीमियम की माँग के लिये प्रतिनिहित रूप में उत्तरदायी है यदि प्रीमियम की मांग उसके प्राधिकार के सामान्य विस्तार के अन्तर्गत थी। उस प्रकरण में प्रश्न यह नहीं था कि क्या संविधि ने पूर्ण प्रतिबन्ध सृजित किया था, अपितु यह था कि क्या सेवक द्वारा प्रीमियम की अपेक्षा करने के लिये स्वामी प्रतिनिहित रूप में उत्तरदायी है। बार्कर बनाम लेविनसन में प्रतिवादी वस्तुत: स्वामी भी नहीं था और यह स्थापित हो चुका है कि कोई वरिष्ठ सेवक अपने कनिष्ठ के कार्यों के लिये कभी भी प्रतिनिहित रूप में उत्तरदायी नहीं हो सकता।”53
भारतीय विधि (Indian Law)—प्रतिनिहित दायित्व का सृजन भारत में अनेक अधिनियमों के माध्यम से हुआ है, उदाहरण के लिये आर्क्स ऐक्ट, 1959, ओपियम ऐक्ट, 1878 । भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत भू-स्वामी तथा अधिभोगी धारा 154 तथा 155 के अन्तर्गत प्रतिनिहित रूप में उत्तरदायी होंगे यदि उनकी भूमि पर अवैध सभा आयोजित होती है या बलवा होता है। वे तब भी दायित्वाधीन होंगे भले ही वे अपने अभिकर्ता या मैनेजर के कार्यों से अवगत न हों। दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 की धारा 45 भू-स्वामियों से यह अपेक्षा करती है कि वे अपनी भूमि पर कारित किसी अपराध या उसकी सम्भाव्यता की सूचना पुलिस को दें। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 154 के अन्तर्गत भू-स्वामी या अधिभोगी का दायित्व इस बात पर निर्भर नहीं करता कि बलवा होने का ज्ञान उसे था या नहीं। डाक्टर हरी सिंह गौड़ के अनुसार “ भूस्वामियों तथा अधिभोगियों को विधि द्वारा पुलिस के कुछ दायित्व सौंपे गये हैं और इस हैसियत से उनसे इन दायित्वों के निर्वाहन की अपेक्षा की जाती है। ऐसा नहीं है कि वे दायित्व भूमि के उपयोग से सम्बन्धित नहीं हैं। उसके दायित्व इस अवधारणा पर आधारित हैं कि भूधारक की हैसियत से उन्हें यह अधिकार होता है कि वे अपनी भूमि पर लोगों को इकट्ठा होने से रोक सकें तथा विच्छृखल रूप में एकत्रित भीड़ को दबा सकें अथवा तितरबितर कर सकें। कभी भी इस धारा का आशय किसी भू-स्वामी को उसकी भूमि पर हुये बलवे के लिये दण्डित करना नहीं था। इस धारा का आशय केवल उस भू-स्वामी को दण्डित करना था जो स्वयं या उसका अभिकर्ता या मैनेजर इस धारा में उल्लिखित कोई भी कार्य करता है।”54 । धारा 155 एक साधारण धारा है। इसका उपयोग उन व्यक्तियों के विरुद्ध होता है जो बलवे को प्रोत्साहित करते हैं या मौन समर्थन देते हैं तथा जो बलवे को खुद के लिये लाभप्रद मानते हैं। धारा 156 ऐसे भू-स्वामी या अधिभोगी को दण्डित करती है जिसके लाभ के लिये बलवा होता है। ऐसे भू-स्वामी या अधिभोगी का अभिकर्ता या मैनेजर भी इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा जो यह विश्वास करने का कारण रखते हुये कि बलवा होने वाला है या बलवा करने वाली विधि विरुद्ध सभा एकत्रित होने वाली है, अपने सभी वैध
- विलियम्स जी०-क्रिमिनल लॉ, (1953) पृ० 284.
- (1951) 2 टी० एल० आर० 681 (सी० ए०).
- विलियम्स जी०, क्रिमिनल लॉ, पृ० 286-87.
- एच० एस० गौड, दि पेनल लॉ आफ इण्डिया, भाग 2 (8वाँ संस्करण) 1099.
साधनों का प्रयोग बलवा रोकने के लिये या विधिविरुद्ध सभा को कुचलने या तितर-बितर करने के लिये नहीं करता।
आपराधिक विधि के अन्तर्गत प्रतिनिहित दायित्व का सिद्धान्त आवश्यकता पर आधारित है, न कि वांछनीयता (desirability) पर। अपकृत्य विधि के अन्तर्गत भी यह आवश्यकता पर आधारित है, क्योंकि सेवक सामान्यतया क्षतिपूर्ति करने की स्थिति में नहीं होता। किन्तु जी विलियम्स के अनुसार सेवक के कार्य के लिये स्वामी को आपराधिक विधि के अन्तर्गत इस आधार पर दण्डित करना कि उसने अपने सेवक को वह कार्य करने से मना नहीं किया था, सर्वथा अनुचित है।55 इस सिद्धान्त के विरुद्ध लार्ड गोडाड56 तथा डेवलिन57 जज ने भी अपना विचार व्यक्त किया है। इस सिद्धान्त के प्रति अपनी नापसंदगी व्यक्त करते हुये बैटी58 ने निम्नलिखित कारण प्रस्तुत किया है
(1) नौकर के कार्यों के लिये स्वामी को उत्तरदायी बनाने का अर्थ है, संसद द्वारा आशयित दायित्व से कहीं अधिक दायित्व पर उस पर थोपना।
(2) यद्यपि संक्षिप्त कार्यवाही (summary proceedings) के परिणाम बहुत गम्भीर नहीं होते फिर भी अनभिज्ञ व्यक्तियों के मस्तिष्क में अपयश की भावना पैदा हो जाती है।
(3) नियोजक को कभी भी वारण्ट जारी कर गिरफ्तार किया जा सकता है।
(4) नियोजक को देश के दूरस्थ भू-भाग से न्यायालय में उपस्थित होने के लिये बाध्य किया जा सकता है |
विधिविदों की इस सिद्धान्त के प्रति पसंदगी या नापसंदगी का कारण चाहे जो भी हो जब तक आधुनिक विधान वाणिज्यिक, व्यापार, स्वास्थ्य तथा सामाजिक कार्यवाहियों के क्षेत्र में प्रवेश करता रहेगा और अनुपालन हेतु विस्तृत आचार संहिता प्रतिपादित करता रहेगा आपराधिक विधि के अन्तर्गत प्रतिनिहित दायित्व की सदैव आवश्यकता बनी रहेगी 59
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