Indian Penal Code Offences Against Property Of Theft LLB Notes
Indian Penal Code Offences Against Property Of Theft LLB Notes: The Indian Penal Code 1860 is going to read about IPC Chapter 17 Of Offenses Against Property Of Theft. IPC Books are given great importance in LLB Law 1st Year / 1st semester. In today’s post, we are giving you LLP Notes Study Material Question Answer Papers in PDF File, after reading and posting this post.
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चोरी के विषय में
(OF THEFT)
378. चोरी- जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे में से, उस व्यक्ति की सम्मति के बिना, कोई जंगम सम्पत्ति बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हए, वह सम्पत्ति ऐसे लेने के लिये हटाता है, वह चोरी करता है, यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण 1-जब तक कोई वस्तु भूबद्ध रहती है, जंगम सम्पत्ति न होने से चोरी का विषय नहीं होती, किन्तु ज्यों ही वह भूमि से पृथक् हो जाती है, वह चोरी का विषय होने योग्य हो जाती है। |
स्पष्टीकरण 2-हटाना, जो उसी कार्य द्वारा किया गया है जिससे पृथक्करण किया गया है, चोरी हो सकेगा।
स्पष्टीकरण 3-कोई व्यक्ति किसी चीज का हटाना कारित करता है, यह तब कहा जाता है जब वह उस बाधा को हटाता है, जो उस चीज को हटाने से रोके हुए हो या जब वह उस चीज को किसी दूसरी चीज से पृथक् करता है तथा जब वह वास्तव में उसे हटाता है।
स्पष्टीकरण 4-वह व्यक्ति जो किसी साधन द्वारा किसी जीवजन्तु का हटाना कारित करता है, उस जीवजन्तु को हटाता है यह कहा जाता है, और यह कहा जाता है कि वह ऐसी हर एक चीज को हटाता है जो इस प्रकार उत्पन्न की गयी गति के परिणामस्वरूप उस जीवजन्तु द्वारा हटाई जाती है।
स्पष्टीकरण 5- परिभाषा में वर्णित सम्मति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है, और वह या तो कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा, या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो उस प्रयोजन के लिये अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिकार रखता है, दी जा सकती है।
दृष्टान्त
(क) य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से एक वृक्ष बेईमानी से लेने के आशय से य की भूमि पर लगे हुए उस वृक्ष को काट डालता है। यहाँ, ज्यों ही क ने इस प्रकार लेने के लिये उस वृक्ष को पृथक् किया, उसने चोरी की।
(ख) क अपनी जेब में कुत्तों के लिये ललचाने वाली वस्तु रखता है, और इस प्रकार य के कुत्तों को अपने पीछे चलने के लिये उत्प्रेरित करता है। यहाँ यदि क का आशय य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से उस कुत्ते को बेईमानी से लेना हो, तो ज्यों ही य के कुत्ते ने क के पीछे चलना। आरम्भ किया, क ने चोरी की।
(ग) मूल्यवान वस्तुओं की पेटी ले जाते हुए एक बैल क को मिलता है। वह उस बैल को इसलिये एक खास दिशा में हांकता है, कि वे मूल्यवान वस्तुयें बेईमानी से ले सके। ज्यों ही उस बैल ने
गतिमान होना प्रारम्भ किया, क ने मूल्यवान वस्तुयें चोरी कीं।
(घ) क, जो य का सेवक है और जिसे य ने अपनी प्लेट की देख रेख न्यस्त कर दी है, य की सम्मति के बिना प्लेट को लेकर बेईमानी से भाग गया, क ने चोरी की।
(ङ) य यात्रा को जाते समय अपनी प्लेट लौटकर आने तक, क को, जो एक भाण्डागारिक है, न्यस्त कर देता है। क उस प्लेट को एक सुनार के पास ले जाता है और वह प्लेट बेच देता है। यहाँ वह प्लेट य के कब्जे में नहीं थी, इसलिये वह य के कब्जे में से नहीं ली जा सकती थी और क ने चोरी नहीं की है, चाहे उसने आपराधिक न्यासभंग किया हो।
(च) जिस गृह पर य का अधिभोग है, उसमें मेज पर य की अंगूठी क को मिलती है। यहाँ, वह अंगूठी य के कब्जे में है, और यदि क उसको बेईमानी से हटाता है, तो वह चोरी करता है।
(छ) क को राजमार्ग पर पड़ी हुई अंगूठी मिलती है, जो किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं है। क ने उसके लेने से चोरी नहीं की है, भले ही उसने सम्पत्ति का आपराधिक दुर्विनियोग किया हो।
(ज) य के घर में मेज पर पड़ी हुई य की अंगूठी क देखता है। तलाशी और पता लगने के भय से उस अंगूठी का तुरन्त दुर्विनियेाग करने का साहस न करते हुए क उस अंगूठी को ऐसे स्थान पर, जहाँ से उसका य को कभी भी मिलना अति अनधिसम्भाव्य है, इस आशय से छिपा देता है कि छिपाने के स्थान से उसे उस समय ले ले और बेच दे जबकि उसका खोया जाना याद न रहे। यहाँ, क ने उस अंगूठी को प्रथम बार हटाते समय चोरी की है।
(झ) य को, जो एक जौहरी है, क अपनी घड़ी समय ठीक करने के लिये परिदत्त करता है। य उसको अपनी दुकान पर ले जाता है। क, जिस पर जौहरी का ऐसा कोई ऋण नहीं है, जिसके लिये वह जौहरी उस घड़ी को प्रतिभूति के रूप में विधिपूर्वक रोक सके, खुले तौर पर उस दुकान में घुसता है, य के हाथ से अपनी घड़ी बलपूर्वक ले लेता है, और उसको ले जाता है। यहाँ क भले ही आपराधिक अतिचार और हमला किया हो, उसने चोरी नहीं की है, क्योंकि जो कुछ भी उसने किया बेईमानी से नहीं किया।
(ञ) यदि उस घड़ी की मरम्मत के सम्बन्ध में य को क से धन शोध्य है, और य यदि उस घड़ी को उस ऋण की प्रतिभूति के रूप में विधिपूर्वक रखे रखता है और क उस घड़ी को य के कब्जे में से इस आशय से ले लेता है कि य को उसके ऋण की प्रतिभूति रूप उस सम्पत्ति से वंचित कर दे तो उसने चोरी की है, क्योंकि वह उसे बेईमानी से लेता है।
(ट) और यदि क अपनी घडी य के पास पणयम करने के बाद ही घडी के बदले लिये गये ऋण को चुकाये बिना उसे य के कब्जे में से य की सम्मति के बिना ले लेता है, तो उसने चोरी की है, यद्यपि वह घड़ी उसकी अपनी ही सम्पत्ति है, क्योंकि वह उसको बेईमानी से लेता है।
(ठ) क एक वस्तु को उस समय तक रख लेने के आशय से जब तक कि उसके प्रत्यावर्तन के लिये इनाम के रूप में उसे य से धन अभिप्राप्त न हो, य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से लेता है। यहाँ क बेईमानी से लेता है इसलिये क ने चोरी की है।
(ड) क, जो य का मित्र है, य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है, और य की अभिव्यक्त सम्मति के बिना एक पुस्तक केवल पढ़ने के लिये और वापस करने के आशय से ले जाता है। यहाँ, यह अधिसम्भाव्य है कि क ने यह विचार किया हो कि पुस्तक उपयोग में लाने के लिये उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है। यदि क का यह विचार था, तो क ने चोरी की है।
(ढ) य की पत्नी से क खैरात माँगता है। वह क को धन, भोजन और कपड़े देती है, जिसको क जानता है कि वे उसके पति य के हैं। यहाँ यह अधिसम्भाव्य है कि क का यह विचार हो कि य की पत्नी को भिक्षा देने का प्राधिकार है। यदि क का यह विचार था, तो क ने चोरी नहीं की है।
(ण) क, य की पत्नी का जार है। वह क को एक मूल्यवान सम्पत्ति देती है, जिसके सम्बन्ध में क यह जानता है कि वह उसके पति य की है, और वह ऐसी सम्पत्ति है, जिसको देने का प्राधिकार उसे य से प्राप्त नहीं है। यदि क उस सम्पत्ति को बेईमानी से लेता है, तो वह चोरी करता है।।
(त) य की सम्पत्ति को अपनी स्वयं की सम्पत्ति होने का सदभावपूर्वक विश्वास करते हुए ख कब्जे में से उस सम्पत्ति को क ले लेता है। यहाँ क बेईमानी से नहीं लेता, इसलिये वह चोरी नहीं करता।
अवयव- इस धारा के निम्नलिखित प्रमुख अवयव हैं
(1) सम्पत्ति को बेईमानी से लेने का आशय;
(2) सम्पत्ति चल हो;
(3) सम्पत्ति को दूसरे व्यक्ति के कब्जे में से लिया जाये;
(4) सम्पत्ति को दूसरे व्यक्ति की सम्मति लिये बिना लिया जाये;
(5) सम्पत्ति को लेने के लिये उसे उसके स्थान से कुछ दूर हटाया (moving) जाये।
बेईमानी पूर्वक लेने का आशय-आशय ही चोरी के अपराध का मूल तत्व है। सम्पत्ति लेने का आशय बेईमानीपूर्ण होना चाहिये और इसका उस समय इसी रूप में विद्यमान रहना आवश्यक है जिस समय सम्पत्ति हटायी जा रही हो। चूंकि चोरी का अपराध गठित करने के लिये सम्पत्ति को उसके स्थान से कुछ दूर हटाया जाना आवश्यक है अतः सम्पत्ति को बेईमानी से लेने का आशय सम्पत्ति हटाते समय ही विद्यमान होना। चाहिये। बेईमानीपूर्ण आशय को उस समय अस्तित्व में समझा जायेगा जब सम्पत्ति लेने वाला व्यक्ति एक व्यक्ति को सदोष लाभ या दूसरे व्यक्ति को सदोष हानि कारित करना चाहता है। यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति लेने वाले व्यक्ति को ही सदोष लाभ पहुँचे, इतना ही पर्याप्त होगा, यदि वह सम्पत्ति के स्वामी को सदोष हानि कारित करता है। अत: यह तर्क प्रस्तुत करना कि अभियुक्त का आशय अपने आप को लाभ पहुँचाना नहीं था, उसे किसी प्रकार का बचाव नहीं प्रदान कर सकेगा। एक प्रकरण में अभियुक्त परिवादकर्ता की इच्छा के विरुद्ध उसकी तीन गायें हाँक ले गया तथा परिवादकर्ता के ऋणदाताओं में उन्हें वितरित कर दिया। अभियुक्त को चोरी के अपराध का दोषी ठहराया गया, किन्तु दि अभियुक्त परिवादकर्ता के हाथ से उसकी छड़ी उस पर प्रहार करने के लिये लेता है तो वह चोरी के पराध का दोषी नहीं होगा। । अ सद्भावपूर्वक ब की सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति समझते हुये उसे ब के कब्जे से लेता है। इस प्रकरण में अ उस सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण आशय से नहीं लेता है। अतएव वह चोरी के अपराध के लिये दोषी नहीं। होगा। अ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 79 के अन्तर्गत तथ्य की भूल के आधार पर अपना बचाव कर सकता है। अ ने ब की सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण आशय से नहीं लिया वरन् त्रुटिपूर्ण विश्वास के साथ यह समझते हुये लिया है कि वह उसी की सम्पत्ति है।
यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति स्थायी रूप से ली गई हो- इस धारा के अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति स्थायी रूप से ली गई हो या अपनाने के आशय से ली गई हो। चोरी सम्पत्ति के स्वामी को सम्पत्ति से स्थायी रूप से वंचित न करने के आशय से भी कारित की जा सकती है। उदाहरणार्थ अ एक लड़के ब से जैसे ही वह स्कूल से बाहर आता है कुछ पुस्तकें छीन लेता है और उससे कहता है कि पुस्तकें तभी वापस होंगी जब वह उसके घर आयेगा। अ इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी है। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे से उसकी कोई चल सम्पत्ति कुछ देर के लिये इस आशय से ले लेता है। कि बाद में उन्हें लौटा दिया जायेगा, वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी है। प्यारेलाल के वाद में अभियुक्त एक सरकारी कार्यालय में कर्मचारी था। उसने अपने कार्यालय से एक फाइल हटाकर एक बाहरी व्यक्ति को इस शर्त पर उपलब्ध कराया कि 2 दिन के पश्चात् वह फाइल कार्यालय को वापस लौटा दी।
1. उदाहरण (ज) को देखिये।
2. मद्रा, (1946) नागपुर 326.
3. मदारी चौकीदार, (1865) 3 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 2.
4.बेली, (1872) एल० आर० 1 सी० सी० आर० 347.
5. दृष्टान्त (ठ) को देखिये।6.
नौशे अली खाँ, (1911) 34 इला० 89.
7. ए० आई० आर० 1963 सु० को० 1094.
जायेगी। उसे इस धारा के अन्तर्गत दोषी घोषित किया गया। अ अपने घर में अपनी घड़ी भूल गया जो ब को 649 मिली। ब उस घड़ी को तुरन्त अ को लौटाने के बजाय उसे अपने घर ले गया और उसे तब तक अपने पास रखा जब तक कि वह अ से पैसा इनाम के रूप में नहीं प्राप्त कर सका। ब इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।
किसी वास्तविक विवाद को सुदृढ़ करने हेतु सम्पत्ति लेना-यदि किसी सम्पत्ति को ऐसे विवाद के सन्दर्भ में हटाया जा रहा हो जिससे कि वादी का वाद सुदृढ़ हो जाये तो सम्पत्ति का हटाया जाना इस धारा के अन्तर्गत चोरी नहीं होगा, भले ही की गई माँग उपयुक्त आधारों पर आधारित न हो।8 स्वामित्व के सम्बन्ध में आरम्भ किया गया विवाद निश्चयतः यथार्थ होना चाहिये, किन्तु यह बचाव उन प्रकरणों में नहीं उपलब्ध होगा जिनका उद्देश्य किसी न किसी रूप में सम्पत्ति को अपने कब्जे में रखना है।
भूल- जहाँ कोई व्यक्ति किसी विधि की भूल अथवा तथ्य की भूल के अन्तर्गत ऐसा विश्वास करता है। कि सम्पत्ति को लेने का उसे अधिकार है तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी नहीं है, क्योंकि उसका आशय बेईमानी से सम्पत्ति को लेना नहीं है भले ही उसके इस कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को सदोष हानि पहुँच रही हो।10।
अपनी ही सम्पत्ति की चोरी–इस धारा के दुष्टान्त (ज) तथा (ट) यह प्रस्तुत करते हैं कि कोई। व्यक्ति अपनी ही वस्तु की चोरी के लिये दण्डित किया जा सकता है यदि वह उस वस्तु को दूसरे व्यक्ति के कब्जे से बेईमानीपूर्वक ले लेता है। यदि कोई व्यक्ति अपने पशुओं को उस व्यक्ति के कब्जे से बिना न्यायालय की स्वीकृति लिये हुये ले लेता है जिस व्यक्ति को वे पशु कुर्की के पश्चात् सौंप दिये गये थे तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा।11 इसी प्रकार यदि कोई अभियुक्त अपने ही एक बण्डल को पुलिस कान्स्टेबल के कब्जे में से ले लेता है जिसको तत्समय कान्स्टेबल अपने कब्जे में रखने के लिये प्राधिकृत था तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी के लिये दोषसिद्ध किया जायेगा, क्योंकि बण्डल में कान्स्टेबल को तत्समय विशिष्ट सम्मति प्राप्त थी।12
यदि कोई ऋणदाता अपने ऋणी के कब्जे से उसकी चल सम्पत्ति उसकी सम्मति के बिना ले लेता है ताकि ऋणी को ऋण की अदायगी के लिये मजबूर किया जा सके तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा।13 एक प्रकरण में एक मरम्मत करने वाले व्यक्ति को एक विद्युत केतली मरम्मत के लिये दी गई किन्तु न तो उसने मरम्मत का कार्य निर्धारित समय के अन्दर पूरा किया और न ही निर्धारित समय बीतने के पश्चात् एक युक्तियुक्त समय के अन्दर। इस पर केतली के स्वामी ने केतली को बलपूर्वक उसकी दुकान से अपने कब्जे में ले लिया किन्तु उसने मरम्मत के सन्दर्भ में कोई भी भुगतान करने से इन्कार कर दिया। इस प्रकरण में यह अधिनिर्णीत हुआ कि केतली का मालिक चोरी का दोषी नहीं है क्योंकि उसका आशय न तो अपने आप को सदोष लाभ पहुँचाना था और न ही मरम्मतकर्ता को सदोष हानि पहुँचाना था। उसका आशय केवल अपनी केतली को एक युक्तियुक्त समय बीत जाने के पश्चात् प्राप्त करना था।14
क, एक सिक्का संग्राहक ने, साथी सिक्का संग्राहक की जेब से बेईमानीपूर्वक मुट्ठी भर सिक्के निकाले परन्तु जब उसने उनका परीक्षण किया तो पाया कि वे उसके अपने ही सिक्के थे जिनकी कि उसके पास से पहले चोरी हुई थी। इस मामले में क चोरी के अपराध का दोषी है क्योंकि उसने दूसरे की जेब से उन सिक्कों को बेईमानीपूर्ण आशय से लिया था। यह तथ्य कि चोरी किये गये सिक्के उसके अपने ही थे जिनकी चोरी कुछ समय पहले की गई थी उसे सिक्के जेब से निकालते समय उसकी जानकारी में नहीं था। जिस समय सिक्के
8. अलागर स्वामी तेवन, (1904) 28 मद्रास 304.
9. अरफान अली, (1916) 44 कल० 66.
10. नागप्पा, (1890) 15 बम्बई 344.
11. रामा, ए० आई० आर० 1956 रंगून 190. |
12. शेख हसन, (1887) अनरिपोर्टेड क्रि० केसेज 343.
13. श्री चर्न चुंगी, (1895) 22 कल० 1017; केशवी चन्द (1959) राज० 497.
14. जुदा, (1925) 53 कल० 174.
साथी संग्राहक की जेब से निकाले गये थे वे दूसरे के कब्जे में थे और उसकी सम्मति के बिना बेईमानीपण आशय से निकाले गये थे। अतएव क चोरी के अपराध का दोषी है।
हैण्ड्स15 के बाद में स्वचालित बाक्स को किसी लोक मार्ग की एक दीवार पर लगा दिया गया और जो कोई भी व्यक्ति उस बाक्स में बने सुराख में एक पेनी का सिक्का डालकर उसकी मुठिया को दबाता उसे उस बाक्स से एक सिगरेट प्राप्त हो जाती। अभियुक्त ने उस बाक्स में बने सुराख में एक पेनी के सिक्के के समान शक्ल और आकार के एक कलई के सिक्के को उसमें डाला और उस बक्स से एक सिगरेट प्राप्त किया तथा इस प्रकार प्राप्त सिगरेट को उसने दूसरे अभियुक्त को पकड़ा दिया। दोनों ही व्यक्तियों को चोरी का अपराधी घोषित किया गया। अ को ब का छाता चुराने के अभियोग में विचारित किया जा रहा था। अ ने अपने बचाव में कहा कि छाता ले जाते समय वह नशे में था और भूल से वह यह समझ बैठा कि छाता उसका अपना है। इस प्रकरण में अ का मिथ्या विश्वास नशे के प्रभाव में था और नशा उसने स्वेच्छया किया था। स्वेच्छया नशा का तर्क उन अपराधों के मामलों में प्रस्तुत किया जा सकता है जिन्हें पूर्ण करने के लिये अपेक्षित आशय की आवश्यकता होती है। चोरी के मामलों में दूसरे की सम्पत्ति लेने के लिये बेईमानीपूर्ण आशय की आवश्यकता होती है जिसका इस प्रकरण में अभाव है। अत: अ चोरी के लिये दोषी नहीं होगा। | अ चोरी कराने के आशय से ब को उत्प्रेरित करता है कि वह ज की सम्पत्ति को उसके कब्जे से उठा ले जाये। वह ब को इस बात का विश्वास दिलाता है कि वह सम्पत्ति उसकी अपनी है। ब, सद्भाव में यह विश्वास करते हुये कि सम्पत्ति अ की है, ज के कब्जे से उसे उठा ले जाता है। ब इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी नहीं होगा क्योंकि जिस समय उसने वस्तु उठाया था वह बेईमानीपूर्ण आशय से युक्त नहीं था। किन्तु अ चोरी के दुष्प्रेरण के लिये दण्डनीय होगा।
2. चल सम्पत्ति- ऐसी कोई भी वस्तु जो स्थायी रूप से पृथ्वी से जुड़ी हो या स्थायी रूप से किसी ऐसी वस्तु से जुड़ी हो जो स्थायी रूप से पृथ्वी से जुड़ी है अचल सम्पत्ति के नाम से जानी जाती है। अतः उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य कोई भी वस्तु चल सम्पत्ति होगी। स्पष्टीकरण 1 तथा 2 इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं। कि भूमि से जुड़ी हुई कोई वस्तु भी उस समय चल सम्पत्ति बन जाती है जब उसे भूमि से अलग कर दिया जाता है और अलग करने का कार्य चोरी के सदृश्य है।16 अतः एक चोर जो भूमि से किसी वस्तु को अलग कर ले जाता है उसी तरह दण्डित किया जायेगा जिस तरह पहले से अलग की गई वस्तु को ले जाने वाला। चोर। इस धारा के अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है कि चोरी में गयी वस्तु का कुछ मूल्य हो। विद्युत तार में प्रवाहित, विद्युत चल सम्पत्ति नहीं है अतः बेईमानी से इसका अपकर्षण इस संहिता के अन्तर्गत चोरी नहीं है।17 परन्तु इसके लिये भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 की धारा 39 के अन्तर्गत वाद दायर किया जा सकता है। पाइपों से गुजरने वाली खाना पकाने की गैस को चल सम्पत्ति माना गया है। अत: यदि अभियुक्त प्रवेश पाइप में एक दूसरा पाइप लगाकर इस उद्देश्य से गैस इस्तेमाल करता है ताकि गैस मीटर से गुजरे बिना चूल्हे में पहुँच जाये और वह कम्पनी को गैस की कीमत का भुगतान करने से बच जाये तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का दोषी है।18 मानव शरीर चाहे वह जीवित या मृत हो (संग्रहालयों या वैज्ञानिक संस्थानों में। सुरक्षित शवों या उसके अंशों या मरीज के अतिरिक्त) चल सम्पत्ति नहीं है।19 मूर्ति एक विधिक व्यक्तित्व है। किन्तु कुछ कतिपय प्रयोजनों के लिये इसे चल सम्पत्ति माना जाता है और तब यह चोरी की विषयवस्तु होती। है।20
3. सम्पत्ति को किसी के कब्जे से लिया जाये– सम्पत्ति का अभियोजन के आधिपत्य में होना अनिवार्य है।21 आधिपत्य स्वामी के रूप में हो सकता है या अन्यथा। अत: जंगली पशु कभी भी चोरी की।
15. (1887) 16 काक्स 188.
16. दृष्टान्त (क) देखिये.
17. अवतार सिंह, ए० आई० आर० 1965 सु० को० 666.
18. ह्वाहट, (1853) 6 काक्स 213.
19. रामाधीन, (1902) 25 इला० 129.
20. अहमद, ए० आई० आर० 1967 राजस्थान 190.
21. हुसेनी बनाम राजकृष्ण, (1873) 20 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 80.
विषय में विषय वस्तु नहीं हो सकते, जबकि पालतू जानवर, चिड़ियों तथा मछलियों की चोरी की जा सकती है। 651 दृष्टान्त (छ) यह स्पष्ट करता है कि जहाँ बेईमानी से ली गयी सम्पत्ति किसी व्यक्ति के आधिपत्य में नहीं थी। क्योंकि उसके स्वामी की मृत्यु हो चुकी थी या सम्पत्ति खो गयी थी और किसी व्यक्ति ने उसकी माँग नहीं। किया था, इन दशाओं में आपराधिक दुर्विनियोग का अपराध गठित होता है न कि चोरी का अपराध। कोई चल सम्पत्ति उस समय किसी व्यक्ति के आधिपत्य में मानी जाती है जब वह व्यक्ति उस सम्पत्ति के सन्दर्भ में ऐसी स्थिति में हो कि वह उसके स्वामी के रूप में अन्य क्तियों से अलग उससे संव्यवहार कर सके 22 दृष्टान्त (अ) तथा (त) पूर्णतः यह सिद्ध करते हैं कि अभियोजक का ली जाने वाली सम्पत्ति पर शारीरिक नियन्त्रण ही पर्याप्त होगा। दूसरे शब्दों में उस व्यक्ति, जिसके कब्जे से सम्पत्ति ली गई हो, को उसका स्वामी होना आवश्यक नहीं है। सम्पत्ति पर वैध या अवैध ढंग से उसका कब्जा होना ही पर्याप्त है।
किसी सम्पत्ति का स्वामी अपनी ही सम्पत्ति की चोरी का अपराधी हो सकता है। उदाहरण के लिये किसी जमीन पर खड़ी फसल, जिसको दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के अन्तर्गत कुर्क कर न्यायालय ने अपने कब्जे में ले लिया है, को हटाया जाना चोरी है ।23
एच० जे० रैन्सम बनाम त्रिलोकी नाथ24 के बाद में ब ने एक कम्पनी से हायर-परचेज प्रणाली पर एक बस लिया था। कम्पनी को संविदा के अन्तर्गत यह अधिकार प्राप्त था कि यदि किसी किस्त की अदायगी न की गयी तो वह बस अपने कब्जे में ले लेगी। कम्पनी ने बलपूर्वक बस चालक से, जो ब का नौकर था, बस को अपने आधिपत्य में ले लिया। यह अभिनिर्णीत हुआ कि चालक का कब्जा, मालिक का ही कब्जा था, अतः कम्पनी बस को अपने कब्जे में लेने के लिये प्राधिकृत नहीं थी, भले ही किसी किस्त की अदायगी न की गयी हो। यह तथ्य सारवान नहीं है कि क्रेता का स्वामित्व अन्तरित हुआ था या नहीं क्योंकि यह धारा
आधिपत्य या कब्जे से सम्बन्धित है न कि स्वामित्व से, बस चालक को सम्पत्ति का कब्जा कम्पनी को हस्तान्तरित करने सम्बन्धी सहमति देने का अधिकार नहीं था। ‘ब’ जो बस का क्रेता था उसकी सहमति के बिना कम्पनी बस को अपने कब्जे में नहीं ले सकती थी चाहे किस्त की अदायगी नहीं भी हुई हो। अतः कम्पनी के वे अभिकर्ता जिन्होंने बस को बलपूर्वक अपने कब्जे में लिया था इस धारा के अन्तर्गत दोषी हैं। इसी प्रकार यदि किसी धोबी ने गाँव के तालाब पर कपड़े धुलने के पश्चात् सूखने के लिये लटका दिया था और अभियुक्त बेईमानी से उन कपड़ों को उठा ले गया। अभियुक्त को इस धारा के अन्तर्गत दोषी ठहराया गया क्योंकि जिस समय कपडे हटाये गये उस समय वे धोबी के कब्जे में थे।25 एक तालाब को लेकर जो ब के कब्जे में था, अ तथा ब के बीच एक विवाद था। निम्न न्यायालय द्वारा ब के विरुद्ध निर्णय दिये जाने के तुरन्त बाद अ बिना स्वीकृति के तालाब में से पर्याप्त मात्रा में मछली पकड़ कर ले गया। अ चोरी के लिये दण्डनीय नहीं है क्योंकि उसे इस बात का भ्रम था कि न्यायालय के निर्णय के तुरन्त बाद सम्पत्ति में निहित ब से हट कर उसमें हित हो गया था।
4. बिना सहमति के लेना— चोरी का अपराध गठित करने के लिये यह आवश्यक है कि सम्पत्ति उस व्यक्ति की सहमति के बिना ली गई हो जिसके कब्जे में थी। स्पष्टीकरण 5 तथा दृष्टान्त (ड) तथा (ढ) इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं कि सहमति अभिव्यक्त या प्रलक्षित हो सकती है और ऐसी सहमति या तो उस व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है जो सम्पत्ति को धारण किये हुये है या ऐसे व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा। मिथ्या प्रदर्शन द्वारा ली गई सम्मति जिससे तथ्य के विषय में भ्रम हो जाता है, वैध सम्मति नहीं होगी 26 यदि किसी जंगल में आवश्यक शुल्क का भुगतान किये बिना कोई व्यक्ति लकड़ी हटाता है, तो भले ही जंगल इन्स्पेक्टर ने इस प्रकार लकड़ी हटाये जाने के लिये अपनी सम्मति दे दिया हो, इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा, क्योंकि इन्स्पेक्टर सरकारी कर्मचारी था और उसके द्वारा लकड़ियों का आधिपत्य सरकार का आधिपत्य था, अत: इन्स्पेक्टर की सम्मति अप्राधिकृत और कपटपूर्ण थी 27
22. स्टीफेन्स डाइजेस्ट ऑफ क्रिमिनल लॉ, 9वाँ संस्करण अनुच्छेद 359.
23. वन्दे अली शेख, (1839) 2 कल० 419.
24. (1942) 17 लखनऊ 663.
25. मथी, (1886) अनरिपोर्टेड क्रिमिनल केसेज 314.
26. परशोत्तम (1962) 64 बाम्बे लॉ रि० 788.
27. हनुमन्त, (1877) 1 बाम्बे 610.
त्रैलोक नाथ चौधरी28 के बाद में अ ने ब से सहायता मांगी सम्मति जिससे वह ब के मालिक से की कुछ सम्पत्ति चोरी कर उठा ले जाये। ब ने अपने मालिक के ज्ञान और सम्पत्ति से अ को दण्ड दिलाने हेतु । सहायता प्रदान की। न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया कि अ चोरी का अपराधी नहीं है क्योंकि सम्पत्ति उसके मालिक के मकान से हटाई गई थी। अ को चोरी के दुष्प्रेरण के लिये उत्तरदायी ठहराया गया। यह निर्णय न्यायसंगत नहीं प्रतीत होता क्योंकि प्रथमतः यद्यपि सम्पत्ति स के ज्ञान और सम्मति से हटायी गयी थी। किन्तु इस तथ्य की कोई भी सूचना अ को नहीं थी। दूसरे अ ने स की सम्मति प्राप्त नहीं किया था और उसे इस बात की भी कोई सूचना नहीं थी कि ब ने स की सम्मति से चोरी करने में सहायता पहुँचाया। इसी तरह के एक प्रकरण में अ ने स के नौकर ब को स की दुकान में लूट करने को अपने योजना से अवगत कराया। नौकर ब ने उसकी योजना से सहमति का भाव प्रदर्शित करते हुये उसे दुकान की तालियों का गुच्छा दे दिया जिससे उसने उन तालियों की अनुकृतियाँ बनवा ली। निर्धारित तिथि पर उसने उन तालियों से दुकान का दरवाजा खोलकर उसमें प्रवेश किया ही था कि उसे वहीं गिरफ्तार कर लिया गया। ब ने स को पहले से ही अ की योजना से अवगत करा दिया था। अ को चोरी के आशय से दरवाजा खोलने और उसमें प्रवेश करने के अपराध का दोषी ठहराया गया। उसकी दोषसिद्धि को, इस तथ्य के बावजूद कि स को यह जानकारी थी कि अ को दरवाजा खोलने और उसमें प्रवेश करने के साधनों की आपूर्ति की गई थी, न्यायसंगत घोषित किया गया।29
बिना अधिकारियों की आज्ञा के ‘अ’ एक हवाई जहाज उड़ा ले गया। दूसरे दिन उसने उक्त हवाई जहाज को यथा स्थान खड़ा कर दिया। इस मामले में अ चोरी के अपराध का दोषी है क्योंकि अधिकारियों की सम्मति के बिना वह जहाज उड़ा ले गया। अतएव उसी समय अपराध पूर्ण हो गया भले ही उसने दूसरे दिन जहाज लाकर उसी स्थान पर खड़ा कर दिया।
‘अ’ चोरी करने के आशय से रात्रि में ‘ब’ के घर में प्रवेश करता है और एक कमरे से एक वजनदार संदूक निकालकर आंगन में ले आता है, जहाँ वह उसे खोलता है। खोलने के पश्चात् वह उस बाक्स में ऐसी कोई चीज नहीं पाता जो ले जाने योग्य हो और बाक्स को वहीं छोड़कर चला जाता है। इस मामले में ‘अ’ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 442 के अधीन गृह अतिचार तथा चोरी के प्रयत्न के अपराध का दोषी होगा।
5. सम्पत्ति का हटाया जाना—जैसे ही किसी बेईमानीपूर्ण आशय से सम्पत्ति को हटाया जाता है यह अपराध पूर्ण हो जाता है। सम्पत्ति का उसके स्थान से रंचमात्र हटाया जाना ही चोरी का अपराध गठित कर देता है भले ही हटाने के पश्चात् सम्पत्ति को बहुत दूर न ले जाया गया हो। इतना ही नहीं इस धारा के अन्तर्गत यह भी अपेक्षित नहीं है कि सम्पत्ति को उसके स्वामी की पहुँच के बाहर या उसके रखे जाने वाले स्थान से दूर ले जाया गया हो। स्पष्टीकरण 3 तथा 4 यह दर्शाते हैं कि कुछ मामलों में किस प्रकार हटाया जाना प्रभावकारी बनाया जा सकता है। दृष्टान्त (क) और (ग) स्पष्टीकरण 4 के अर्थ को सुस्पष्ट करते हैं। यदि कोई मेहमान । चुराने के आशय से कमरे में रखी चादर हटाकर हाल में ले जाता है और चादर सहित घर में से निकलने के पूर्व ही पकड़ लिया जाता है तो वह चोरी के अपराध का दोषी होगा।
वेंकटसामी30 के बाद में अभियुक्त डाक विभाग का एक कर्मचारी था। पत्रों को पृथक-पृथक करते समय दो पत्रों को वितरित करने वाले चपरासी को देने के आशय से उसने अलग रख लिया जिससे उन पत्रों | पर देय धन को वे आपस में बांट लें। उसे इस धारा के अन्तर्गत चोरी का तथा धारा 511 के अन्तर्गत बेईमानीपूर्ण दुर्विनियोग कारित करने के प्रयास के लिये दोषी ठहराया गया।
विसाखी31 के वाद में अभियुक्त ने उस डोरी को काट दिया जिसके सहारे परिवादकत्र के गले में एक आभषण लटक रहा था तथा आभूषण के किनारों को अलग खिसका दिया ताकि महिला के गले में उसे हटाया जा सके। परिवादकत्र तथा अभियुक्त के बीच हुई खींचातानी के दौरान वह आभूषण उसके गले से गिर गया
28. (1878) 4 कल० 366.
29.चेन्डलर, (1913) 1 के० बी० 125.
30. (1890) 14 मद्रास 229.
31.(1917) पी० आर० नं० 29 सन् 1917.
जिसे बाद में उसके बिस्तर पर पाया गया। अभियुक्त को चोरी के लिये दोषी घोषित किया गया क्योंकि चोरी का अपराध संरचित करने के लिये आभूषण को विधि की दृष्टि में पर्याप्त रूप में हटाया जा चुका था।
एक मामले में ‘क’, ‘ब’ के कमरे में मेज पर ब की घड़ी देखता है। क इस भय से कि यदि उसने घड़ी ले लिया तो खोज होने पर पकड़ा जायेगा, उस घड़ी का तुरन्त दुर्विनियोग करने का साहस नहीं कर पाता है। अतएव क उस घड़ी को, इस आशय से कि जब ‘ब’ घडी के खो जाने की बात को भूल जायेगा तो वह उसे। छिपाने की जगह से निकाल कर बेच देगा, मकान में ऐसी जगह छिपा देता है जहाँ से उसके ‘ब’ को मिलने की सम्भावना बिल्कुल कम है। इस मामले में ‘क’ घड़ी की चोरी के अपराध का दोषी है क्योंकि उसने घड़ी को बेईमानी के आशय से हटाया और छिपाकर रखा है।
जीवित भेड़ या मेमने के शरीर से ऊन काटकर ले जाना इस धारा के अन्तर्गत चोरी है।32 जहाँ मन्दिर
की मूर्ति को समर्पित एक सांड को ब पकड़ लेता है और अपने बाग में उससे काम लेता है वहाँ ब चोरी का दोषी होगा। अ एक रेलवे स्टेशन पर एक स्वचालित मशीन में जाली सिक्का काटकर एक रेलवे टिकट प्राप्त करता है जिसका उपयोग अ तथा उसके मित्र ब, स और द करते हैं। यहाँ अ चोरी का अपराधी गा क्योंकि उसने मशीन से मूल्यवान टिकट बेईमानीपूर्वक उपाप्त किया था तथा मशीन रेलवे के कब्जे में थी। ब, स तथा द इस संहिता की धारा 411 के अन्तर्गत चोरी का सामान प्राप्त करने के लिये दण्डनीय होंगे, क्योंकि उन लोगों ने भी टिकट का प्रयोग अपने लिये किया था।
स्पष्टीकरण 1 और 2- स्पष्टीकरण 1 के अनुसार जब कोई वस्तु भूबद्ध है, चोरी की विषयवस्तु नहीं होती है, किन्तु जैसे ही उसे भूमि से पृथक् किया जाता है वह चल सम्पत्ति हो जाती है और चोरी की वस्तु बन जाती है। स्पष्टीकरण 2 के अनुसार जिस कार्य द्वारा पृथक्करण किया गया उसी कार्य द्वारा हटाया जाना चोरी संरचित कर सकता है। अतः किसी खड़े वृक्ष का विक्रय चोरी नहीं है।33 किन्तु भूमि से पृथक कर ले जाना चोरी है।34 इसी प्रकार हरी घास को काट कर ले जाना चोरी होगा यदि आशय बेईमानीपूर्ण था।35 दुर्गा तिवारी36 के बाद में अभियुक्त को उस समय तक धान की फसल की देखभाल करने और निगरानी रखने का दायित्व सौंपा गया था जब तक वह पक नहीं जाती। फसल तैयार हो जाने पर मालिक फैक्ट्री को सूचना देता तथा उस फसल को फैक्ट्री इकट्ठा करती। अभियुक्त ने फसल उसे बेच दिया। उसे चोरी के लिये दोषी ठहराया गया।
स्पष्टीकरण 3 और 4- ये दोनों स्पष्टीकरण सम्पत्ति हटाये जाने के विभिन्न प्रकारों से सम्बन्धित हैं। स्पष्टीकरण 3 के अनुसार सम्पत्ति निम्न प्रकार से हटायी जा सकती है
(1) वस्तु को वास्तव में हटाकर, (2) किसी अन्य वस्तु से पृथक् कर तथा (3) उस बाधा को हटाकर जिसके द्वारा वस्तु के हटाये जाने को निवारित किया गया था।
स्पष्टीकरण 4-इस स्पष्टीकरण के अनुसार कोई व्यक्ति किसी जीव-जन्तु को हटाया हुआ कहा जाता है जब वह किसी साधन द्वारा उस जीव-जन्तु को हटाता है तथा वह ऐसी हर चीज को हटाता है जो इस प्रकार उत्पन्न की गई गति के परिणामस्वरूप उस जीव जन्तु द्वारा हटायी जाती है।
स्पष्टीकरण 5-इस स्पष्टीकरण के अनुसार सम्मति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है और ऐसी सम्मति या तो कब्ज़ा रखने वाले व्यक्ति द्वारा या तो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो उस प्रयोजन के लिये अभिव्यक्त । या विवक्षित प्राधिकार रखता है, दी जा सकती है।
आवश्यकतावश चोरी-किसी भी प्रकार की आवश्यकता चोरी के कृत्य को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकती है।
32. मार्टिन्स केस, (1777) 1 लीच 171.
33. बालोस (1882) 1 वेयर 419.
34. भागू विष्णु, (1897) अनरिपोर्टेड क्रि० केसेज 928.
35. समसुद्दीन, (1900) 2 बाम्बे लॉ रि० 752. 36. (1909)
36 कल० 758.
पति और पत्नी द्वारा चोरी-दाण्डिक विधि के प्रयोजनों हेतु जहाँ तक हिन्दू विधि का सम्बन्ध पति और पत्नी एक व्यक्ति नहीं समझे जाते। अत: यदि पत्नी बेईमानीपूर्ण आशय से अपने पति की सम्पत्ति हटाती है तो वह चोरी के लिये दण्डित होगी।37 स्त्री धन पूर्णतया पत्नी की सम्पत्ति होती है इसलिये उसे ‘स्त्री धन’ की चोरी के लिये दण्डित नहीं किया जा सकता है।38 परन्तु पति स्त्री धन की चोरी के लिये दण्डित होगा। इसी प्रकार एक मुस्लिम पत्नी अपने पति की सम्पत्ति-9 चुराने की अपराधिनी होगी तथा पति पत्नी की सम्पत्ति चुराने का अपराधी होगा। ।
वाद-विनोद सैमुअल बनाम दिल्ली प्रशासन40 के मामले में श्रीमती चन्द्रकला अपने पति त्रिलोक चन्द के साथ बस में यात्रा कर रही थी। जब बस पटेल नगर बस स्टैण्ड पर रुकी तो एक व्यक्ति विपरीत दिशा से आया और श्रीमती चन्द्रकला, जो बस में खिड़की के पास बैठी थी, की जंजीर छीनकर भाग निकला। उसके चिल्लाने पर उसके पति ने अपराधी का पीछा किया। दो अन्य व्यक्तियों गुरुदर्शन सिंह तथा हरजीत सिंह की सहायता से वह अपराधी को पकड़ने में सफल हुआ। सोने की जंजीर बरामद नहीं हुयी। किसी ने उस व्यक्ति को जंजीर छीनते हुये नहीं देखा था। अपीलांट को मात्र इस कारण पकड़ा गया था कि वह बस के स्टैण्ड पर रुकने के बाद भागता हुआ पाया गया। जब उसका पीछा किया जा रहा था उस समय किसी ने उसे जंजीर को गिराते हुये भी नहीं देखा था। यह अभिनिर्धारित किया गया कि अपीलंट को चोरी के अपराध का दोषी नहीं कहा जा सकता है। केवल इस कारण कि वह किसी कारण बस घटना के पश्चात् दौड़ता हुआ या तेजी से चलता हुआ देखा गया यह नहीं कहा जा सकता है कि वह अपराधी है यद्यपि कि इन परिस्थितियों में उसके विरुद्ध सन्देह करने का सशक्त आधार बनता है।
379. चोरी के लिये दण्ड– जो कोई चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।
380. निवास-गृह आदि में चोरी- जो कोई ऐसे किसी निर्माण, तम्बू या जलयान में चोरी करेगा, जो निर्माण, तम्बू या जलयान मानव निवास के रूप में, या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिये उपयोग में आता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
टिप्पणी
यह धारा किसी भवन, तम्बू या जलयान, जिसका उपयोग मानव निवास या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिये किया जा रहा हो, में की गयी चोरी से सम्बन्धित है। इस धारा का उद्देश्य किसी भवन, टेन्ट या जलयान में जमा सम्पत्ति को अधिक सुरक्षा प्रदान करना है। किसी बरामदे41, मकान की छत42, किसी परिसर43 या ट्रेन के ब्रेकवान44 में की गयी चोरी, भवन में की गयी चोरी नहीं मानी जायेगी। किन्तु आँगन45 से की गयी चोरी या किसी प्रवेश हाल जिसमें दो-दो दरवाजे तो हों पर किवाड़ किसी में भी न लगा हो46 और जिसका उपयोग सम्पत्ति रखने के लिये किया जाता हो, में से की गयी चोरी, इस धारा के अन्तर्गत चोरी होगी।
जहाँ इस बात का कोई प्रमाण न हो कि अभियुक्त ने घर में से कपड़े चुराया था और मात्र इसलिये कि जिस समय वह घर में पकड़ा गया था, कुछ कपड़े घर के बाहर बिखरे हुये थे, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि वह निवास-गृह से कपड़े चुराने का अपराधी है 47
37. वुतची, (1893) 17 मद्रास 401.
38. नाथा कल्यान, (1871) 8 बी० एच० सी० (क्रि० के०) 11.
39. खता बाई, (1869) 6 बी० एच० सी० (क्रि० के०) 9.
40. 1991 क्रि० लॉ ज० 3359 (एस० सी०).
41. (1870) 1 वेयर 435.
42. (1866) 1 वेयर 435. ।
43. राम, (1889) अनरिपोर्टेड क्रि० के० 484.
44. (1880) 1 वेयर 436.
45. गुलाम जेलानी, (1889) पी० आर० नं० 16 सन् 1889.
46. दाद, (1878) पी० आर० नं० 10 सन् 1878.
47. पेम्पीलास बाघ बनाम राज्य, 1984 क्रि० लाँ ज० 828 (उड़ीसा).
381. लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पत्ति की चोरी- जो कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक की हैसियत में नियोजित होते हुए, अपने मालिक या नियोक्ता के कब्जे की किसी सम्पत्ति की चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। |
382. चोरी करने के लिये मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी– जो कोई चोरी करने के लिये, या चोरी करने के पश्चात् निकल भागने के लिये, या चोरी द्वारा ली गयी सम्पत्ति को रखने के लिये, किसी व्यक्ति की मृत्यु या उसे उपहति या उसका अवरोध कारित करने की, या मृत्यु का, उपहति का या अवरोध का भय कारित करने की तैयारी करके चोरी करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
दृष्टान्त
(क) य के कब्जे में की सम्पत्ति पर क चोरी करता है और वह चोरी करते समय अपने पास अपने वस्त्रों के भीतर एक भरी हुई पिस्तौल रखता है, जिसे उसने य द्वारा प्रतिरोध किये जाने की दशा में य को उपहति करने के लिये अपने पास रखा था। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया
(ख) क, य की जेब काटता है, और ऐसा करने के लिये अपने कई साथियों को अपने पास इसलिये नियुक्त करता है, कि यदि य यह समझ जाये कि क्या हो रहा है और प्रतिरोध करे, या क को पकड़ने का प्रयत्न करे, तो वे य का अवरोध करें। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
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