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Indian Penal Code Offences Against Property Fraudulent Deeds Dispositions of Property LLB Notes

 

Indian Penal Code Offences Against Property Fraudulent Deeds Dispositions of Property LLB Notes:- Indian Penal Code 1860 IPC LLB Law 1st Year 1st Semester Free Online Books Chapter 17 Next Topic of Fraudulent Deeds Dispositions of Property Notes Study Material in Hindi English PDF Download.

कपटपूर्ण विलेखों और सम्पत्ति व्ययनों के विषय में

(OF FRAUDULENT DEEDS AND DISPOSITIONS OF PROPERTY)

421. लेनदारों में वितरण निवारित करने के लिए सम्पत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्ण अपसारण या छिपाना- जो कोई किसी सम्पत्ति का अपने लेनदारों या किसी अन्य व्यक्ति के लेनदारों के बीच विधि के अनुसार वितरित किया जाना तद्द्वारा निवारित करने के आशय से, या तद्द्वारा सम्भाव्यतः। निवारित करेगा, यह जानते हुए उस सम्पत्ति को बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारित करेगा या छिपाएगा, या किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या पर्याप्त प्रतिफल के बिना किसी व्यक्ति को अन्तरित करेगा या कराएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

टिप्पणी

यह धारा और इसके अनुक्रम में आने वाली तीन अन्य धारायें कपटपूर्ण संव्यवहारों से सम्बन्धित हैं। जिनका जिक्र सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 53 तथा प्रेसीडेन्सी टाउन्स और प्राविन्सियल इन्साल्वेन्सी ऐक्ट में किया गया है।

यह धारा कपट के उन मामलों से सम्बन्धित है, जिनमें ऋणदाताओं या लेनदारों को सदोष हानि कारित करने के उद्देश्य से सम्पत्ति बेईमानी से व्ययनित कर दी जाती है। इसमें चल और अचल दोनों ही सम्मा सम्मिलित हैं। बेनामी संव्यवहार भी इसमें सम्मिलित हैं।

29क, (2013) I क्रि० ला ज० 953 (एस० सी० ).

30. 2004 क्रि० ला ज० 1774 (सु० को०)

422. ऋण को लेनदारों के लिए उपलब्ध होने से बेईमानी से या कपटपूर्वक निवारित करना-जो कोई किसी ऋण का या मांग का, जो स्वयं उसको या किसी अन्य व्यक्ति को शोध्य हो, अपने या ऐसे अन्य व्यक्ति के ऋणों को चुकाने के लिए विधि के अनुसार उपलभ्य होना, कपटपूर्वक या बेईमानी से निवारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। |

423. अन्तरण के ऐसे विलेख का जिसमें प्रतिफल के सम्बन्ध में मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, बेईमानी से या कपटपूर्वक निष्पादन– जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्वक किसी ऐसे विलेख को हस्ताक्षरित करेगा, निष्पादित करेगा, या उसका पक्षकार बनेगा, जिससे किसी सम्पत्ति का, या उसमें के किसी हित का, अन्तरित किया जाना, या किसी भार के अधीन किया जाना, तात्पर्यित है, और जिसमें ऐसे अन्तरण या भार के प्रतिफल से सम्बन्धित, या उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों से सम्बन्धित, जिसके या जिनके उपयोग या फायदे के लिए उसका प्रवर्तित होना वास्तव में आशयित है, कोई मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

टिप्पणी

यह धारा बेईमानी या कपटपूर्ण रीति से किये गये संव्यवहारों से सम्बन्धित है जिसमें बेनामी संव्यवहार भी सम्मिलित हैं। । यदि किसी अचल सम्पत्ति के विक्रय के लिये दिये गये प्रतिफल को विक्रय-विलेख पत्र के क्रेता की। सम्मति से बहुत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया था जिससे शुफाधिकारी के दावे को रद्द किया जा सके, तो क्रेता इस अपराध का दोषी माना जायेगा।31 एक प्रकरण में एक व्यक्ति ने असफलतापूर्वक एक महिला से विवाह का प्रयत्न किया। इसके पश्चात् उसने एक मिथ्या विलेख पत्र तैयार कर पंजीकृत करा लिया जिसमें यह दर्शाया गया था कि महिला उसकी पत्नी थी और पत्नी की हैसियत से महर के बदले उसे जमीन का एक टुकड़ा दिया गया था। उसे इस धारा के अन्तर्गत दोषी घोषित किया गया, क्योंकि उसने अपने इस कृत्य द्वारा उस महिला और उसके पति को उपहति कारित करने का प्रयत्न किया तथा उसके प्रति अपने मिथ्या दावे को मजबूत बनाना चाहा था। इस संहिता की धारा 193 के अन्तर्गत भी उसे दोषसिद्धि प्रदान की गयी।32

424. सम्पत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाया जाना- जो कोई बेईमानी या कपटपूर्वक अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की किसी सम्पत्ति को छिपाएगा या अपसारित करेगा, या उसके छिपाए जाने में या अपसारित किए जाने में बेईमानी से या कपटपूर्वक सहायता करेगा, या बेईमानी से किसी मांग या दावे को, जिसका वह हकदार है, छोड़ देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

 टिप्पणी

यह धारा सम्पत्ति को उस स्थान, जहाँ उसे जमा होना चाहिये, से बेईमानी या कपटपूर्ण रीति से अपसारण या छिपाये जाने के लिये दण्ड का प्रावधान प्रस्तुत करती है। यदि अनेक साझेदारों में से एक रात्रि में साझेदारी पुस्तकों को अपसारित कर देता है और पूछे जाने पर इस तथ्य से इन्कार कर देता है33 या यदि कोई निर्णीत ऋणी जिसकी खड़ी फसल कुर्क कर ली गई थी, कुर्की के दौरान ही काट लेता है,34 या कृषि उत्पादन में लगे । सहभागीदारों में से कोई एक कुछ फसल अपसारित कर देता है35 जिससे अन्य भागीदारों का हिस्सा छोटा हो। जाता है, तो इस धारा में वर्णित अपराध कारित हुआ माना जायेगा।

. एक डिक्री के निष्पादन में कुछ फसलों को कुर्क कर लिया गया था और कुर्क की गयी फसल बेलिफ को। सौंप दी गयी थी। बेलिफ द्वारा प्रतिरोध उत्पन्न किये जाने के बावजूद भी फसल का एक हिस्सा निर्णीत ऋणी। ने काट लिया। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि इस धारा में वर्णित अपराध कारित हुआ था।20

31. महावीर सिंह, (1902) 25 इला० 31.  

32. लीगल रिमेम्बरेन्सर बनाम अही लाल मंडल, (1921) 48 कल० 911.

33. गौड विनोद दत्त, (1873) 21 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 10.

34. ओबैय्या, (1898) 22 मद्रास 151.

35. सिबनू पांडिया थेवन, (1914) 38 मद्रास 793. |

36. घास, (1929) 52 इला० 214.

रिष्टि के विषय में

(OF MISCHIEF)

425, रिष्टि- जो कोई इस आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह लोक को या किसी व्यक्ति को सदोष हानि या नुकसान कारित करे, किसी सम्पत्ति का नाश या किसी सम्पत्ति में या उसकी स्थिति में ऐसी टीली कारित करता है, जिससे उसका मूल्य या उपयोगिता नष्ट या कम हो जाती है, या उस पर क्षतिकारक। प्रभाव पड़ता है, वह ‘‘रिष्टि” करता है।

स्पष्टीकरण 1-रिष्टि के अपराध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी क्षतिग्रस्त या नष्ट यत्ति के स्वामी को हानि, या नुकसान कारित करने का आशय रखे, यह अपर्याप्त है कि उसका यह आशय ३ या वह यह सम्भाव्य जानता है कि वह किसी सम्पत्ति को क्षति करके किसी व्यक्ति की, चाहे वह सम्पत्ति उस व्यक्ति की हो या नहीं, सदोष हानि का नुकसान कारित करें।

स्पीकरण 2-ऐसी सम्पत्ति पर प्रभाव डालने वाले कार्य द्वारा, जो उस कार्य को करने वाले व्यक्ति की हो, या संयुक्त रूप से उस व्यक्ति की और अन्य व्यक्तियों की हो, रिष्टि की जा सकेगी।

दृष्टान्त

(क) य की सदोष हानि कारित करने के आशय से य की मूल्यवान प्रतिभूतियों को क स्वेच्छया जला देता है। क ने रिष्टि की है।

(ख) य की सदोष हानि करने के आशय से, उसके बर्फ-घर में क पानी छोड़ देता है, और इस प्रकार बर्फ को गला देता है। क ने रिष्टि की है। । (ग) क इस आशय से य की अंगूठी नदी में स्वेच्छया फेंक देता है कि य को तद्द्वारा सदोष हानि कारित करे। क ने रिष्टि की है।

(घ) क यह जानते हुए कि उसकी चीजबस्त उस ऋण की तुष्टि के लिए, जो य को उसके द्वारा शोध्य है, निष्पादन में ली जाने वाली है, उस चीजबस्त को इस आशय से नष्ट कर देता है कि ऐसा करके ऋण की तुष्टि अभिप्राप्त करने में य को निवारित कर दे और इस प्रकार य को नुकसान कारित करे। क ने रिष्टि की है।

(ङ) क एक पोत का बीमा कराने के पश्चात् उसे इस आशय से कि बीमा करने वालों को नुकसान कारित करे, उसको स्वेच्छया संत्यक्त करा देता है। क ने रिष्टि की है।

(च) य को, जिसने बाटमरी पर धन उधार दिया है, नुकसान कारित करने के आशय से क उस पोत को संत्यक्त करा देता है। क ने रिष्टि की है।

(छ) य के साथ एक घोड़े में संयुक्त सम्पत्ति रखते हुए य को सदोष हानि कारित करने के आशय से क उस घोड़े को गोली मार देता है। क ने रिष्टि की है।

(ज) क इस आशय से और यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह य की फसल को नुकसान कारित करे, य के खेत में ढोरों का प्रवेश कारित कर देता है। क ने रिष्टि की है।

टिप्पणी

इस धारा के अन्तर्गत अपराध के लिये यह अपेक्षित है कि रिष्टि कारित करने वाले व्यक्ति का आशय लाक की नुकसान कारित करना या किसी सम्पत्ति का नाश या किसी सम्पत्ति में या उसकी स्थिति में ऐसे ला कारित करना जिससे उसका मूल्य या उपयोगिता नष्ट या कम हो जाये, होना चाहिये ।।

नाथ राय बनाम विजय कमार दास वर्मा38 के वाद में यह प्रेक्षित किया गया कि मात्र उपक्षा राष्ट नहीं कहलाती है। परन्त सदोष हानि अथवा नुकसान कारित करने के

हान अथवा नुकसान कारित करने के आशय के साथ उपेक्षा से रिष्टि का 7व बनता है। रिष्टि में विनाशकारी आशय के साथ मानसिक कार्य आवश्यक है।

37. शिपतियार सिंह बनाम कृष्ण, ए० आई० आर० 1957 इला० 405.

38. 1992 क्रि० लॉ ज० 1871 (उड़ीसा).

अवयव-इस धारा में वर्णित अपराध संरचित करने के लिये निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं

(1) लोक या किसी व्यक्ति को सदोष हानि या नुकसान कारित करने का आशय या इस सम्भावना का ज्ञान,

(2) किसी सम्पत्ति को नष्ट करना या उसमें या उसकी स्थिति में कोई तब्दीली करना,

(3) ऐसी तब्दीली के फलस्वरूप सम्पत्ति नष्ट हो जाये या उसका मूल्य या उपयोगिता कम हो जाये या उस पर क्षतिकारक प्रभाव पड़े।

1. आशय या ज्ञान-इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि नुकसान विनाशकारी प्रकृति का हो किन्तु यह आवश्यक है कि दूसरे के अधिकार पर अतिक्रमण किया गया हो जिससे सम्पत्ति का मूल्य कम हो गया हो। एक गाँव के निवासी मछली पकड़ने के उद्देश्य से समुद्र में कुछ खूटे गाड़ रखे थे। किन्तु दूसरे गाँव के निवासियों ने उन बँटों को उखाड़ कर अपसारित कर लिया। खुटे समुद्र में सामुद्रिक नियमों के अनुसार लगाये गये थे। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि यद्यपि अभियुक्तों का आशय बँटों को संपरिवर्तित करना नहीं था फिर भी इस कार्य द्वारा ग्रामवासियों को नुकसान पहुँचा अतः उनका कार्य रिष्टि के अपराध के तुल्य है।39

2. किसी सम्पत्ति को कोई नुकसान या उसमें या उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन सम्पत्ति का विनाश या उसमें ऐसा परिवर्तन जिससे उसका मूल्य या उसकी उपयोगिता विनष्ट या न्यून हो जाये, ही इस अपराध का मूल तत्व है। यदि कोई पोस्टमास्टर किसी व्यक्ति को कोई पंजीकृत वस्तु परिदत्त करता है तथा उससे कहता है कि अभिस्वीकृति-पत्र पर अपना दस्तखत कर उसे लौटा दे परन्तु वह व्यक्ति दस्तखत कर अभिस्वीकृति-पत्र लौटाने के बजाय फाड़ कर फेंक देता है तो वह रिष्टि का अपराधी माना जाएगा 40

व्योमकेश भट्टाचार्या बनाम एल० एन० दत्त41 के वाद में अभियुक्त ने शिकायतकर्ता के फ्लैट की पानी सप्लाई प्रकुंच कपाट कुंजी (Wrench Valve Key) का प्रयोग कर रोक दिया। उच्च न्यायालय ने अभिनित किया कि पदावली ‘‘सम्पत्ति में तब्दीली जिससे उसका मूल्य या उपयोगिता नष्ट या कम हो। जाये” से निश्चयतः यह अभिप्रेत नहीं है कि सम्पत्ति की प्रकृति, संरचना या बनावट में परिवर्तन हो जाये। यदि सम्पत्ति की कोई चीज उसके प्राकृतिक प्रयोग या उपयोगिता के विपरीत किया जाता है तो ऐसे कार्य से उसका मूल्य या उपयोगिता नष्ट या कम हो जाती है और यह रिष्टि की कोटि में आयेगा। यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति में महत्वपूर्ण परिवर्तन ही किया जाये और न ही इस धारा के अन्तर्गत अपेक्षित है कि सम्पत्ति का मूल्य या उपयोगिता का आशय उसके बाजारू मूल्य या उपयोगिता से है। इस प्रकरण में जिस प्रकार से वाटर सप्लाई को रोका गया था वह वाटर पाइप के प्राकृतिक प्रयोग या उपयोगिता के विपरीत था और उक्त कार्य द्वारा वाटर पाइप का मूल्य या उपयोगिता कम या नष्ट हो गयी थी।

इस धारा के अन्तर्गत सम्पत्ति का तात्पर्य ऐसी मूर्त सम्पत्ति से है जिसको बल पूर्वक विनष्ट किया जा सकता हो परन्तु इसके अन्तर्गत सुखाधिकार सम्मिलित नहीं है।”तब्दीली” या ‘‘परिवर्तन” शब्द का अर्थ है। वस्तु की संरचना या स्वरूप में कोई भौतिक तब्दीली या परिवर्तन। यह धारा भौतिक रीति से की गयी भौतिक उपहति की परिकल्पना करती है।

स्पष्टीकरण 1-इस धारा के अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति जिस पर रिष्टि कारित की गयी है, उसी व्यक्ति की हो जो रिष्टि से प्रभावित हुआ है। यदि ऐसी सम्पत्ति का विनाश होने से उसके ब्याज का नकसान होता है, तो इतना ही इस धारा के प्रवर्तन हेतु पर्याप्त है। दुष्टान्त (ङ) और (च) इस स्पष्टीकरण को सुस्पष्ट करते हैं।

39. कास्त्य राम, (1871) 8 बी० एच० सी० (क्रि० के०) 63.

40. सुखा सिंह, (1905) पी० आर० नं० 24 सन् 1905.

41 . 1978 क्रि० लाँ ज० 848.

स्पष्टीकरण 2-कोई व्यक्ति अपनी ही सम्पत्ति नष्ट कर इस धारा में वर्णित अपराध कारित कर सकता है। दृष्टान्त (ख) एवं (छ) यह स्पष्ट करते हैं कि कोई व्यक्ति अपनी ही सम्पत्ति के साथ रिष्टि का अपराध कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसी सम्पत्ति को विनष्ट करता है जो विनष्ट करते समय उसी की थी और वह उस सम्पत्ति को इस आशय अथवा ज्ञान से विनष्ट करता है कि उसके कारण सम्भाव्यत: किसी अन्य को सदोष हानि या नुकसान होगा, तो वह इस धारा के अन्तर्गत रिष्टि का दोषी है।42

उदाहरण-एक प्रकरण में अ तथा स के बीच जमीन के एक टुकड़े पर आधिपत्य के लिये विवाद चल रहा था। सिंचाई के प्रयोजन से स ने इस जमीन पर एक कुआँ खोदा किन्तु अ ने बलपूर्वक उस जमीन पर प्रवेश कर उसे नष्ट कर दिया। न्यायालय ने यह अभिनिर्धारण प्रदान किया कि उसने रिष्टि कारित की है चाहे भले ही परिवादकर्ता उस भूमि पर एक अतिचारी के रूप में रहा हो 43 किसी अतिचारी को निष्कासित करने के प्रयोजन से कोई व्यक्ति अपने ही घर में आग लगा देता है तो यह नहीं कहा जा जायेगा कि उसने किसी व्यक्ति या लोक को सदोष हानि कारित किया और रिष्टि के अपराध के लिये दायी नहीं होगा।

विद्युत प्रवाह को कुछ समय के लिये स्थगित कर देना सम्पत्ति विनष्ट करने, अथवा सम्पत्ति में कोई ऐसी तब्दीली जो उसकी उपयोगिता को नष्ट कर देती है या उसकी कीमत को कम कर देती है, के तुल्य नहीं है, अतएव रिष्टि नहीं मानी जायेगी 45 किसी दूसरे की जमीन से मिट्टी हटा ले जाना रिष्टि का अपराध संरचित करता है क्योंकि इस कार्य द्वारा भूस्वामी मिट्टी से वंचित हो जाता है और भूमि की कीमत भी कम हो जाती है।46 एक प्रकरण में अ ने स के पूर्वजों की कब्र जो अ के. जमीन में थी, खोद डाला। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि अ ने रिष्टि का अपराध कारित नहीं किया है।47 ख, जो अ का पड़ोसी था, ने अपने मकान को इस प्रकार निर्मित किया था कि उसका एक हिस्सा बाहर निकला हुआ था। अ ने उस बाहर निकले हुये हिस्से को युक्तियुक्त तरीके से अपसारित कर दिया। अ का विश्वास था कि मकान का बाहर निकला हुआ हिस्सा अतिचार के सदृश है। यह निर्णय दिया गया कि अ ने अपने अधिकार का प्रयोग करते समय । सद्भावपूर्ण रीति से कार्य किया था अतः वह रिष्टि का अपराधी नहीं है 48 एक प्रकरण में अ ने अपनी जमीन पर एक तेल इन्जन लगाया था। उसके पड़ोसी ने यह शिकायत दर्ज करायी कि मशीन के कम्पन से उसकी सम्पत्ति विनष्ट हो रही है। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि वह अपराध रिष्टि का अपराध नहीं है।49 अ, ब के घास के ढेर में आग लगाने के उद्देश्य से एक तीली जलाता है और उसे घास के ढेर में पकड़ा देता है। परन्तु वह स्वयं ही उस आग को बुझाने का प्रयत्न भी करने लगता है और ब तथा अन्य लोगों द्वारा पकड़े जाने के पूर्व ही उस आग को बुझा देता है। अ इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा यदि उसने आग लगाकर ब को कुछ क्षति पहुँचायी थी।

426. रिष्टि के लिए दण्ड- जो कोई रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।

427. रिष्टि जिससे पचास रुपये का नुकसान होता है- जो कोई रिष्टि करेगा और तद्वारा पचास रुपए या उससे अधिक रिष्टि की हानि या नुकसान कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

428. दस रुपए के मूल्य के जीव-जन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा

रिष्टि– जो कोई दस रुपए या उससे अधिक के मूल्य के किसी जीवजन्तु या जीवजन्तुओं को वध करने, विष

42. धर्मोदास घोष बनाम नसीरुद्दीन, (1886) 12 कल० 660.

43. अब्दुल हुसैन, (1943) करांची 7.

44. रामकृष्ण सिंह, 23 क्रि० लॉ ज० 321.

45. आई० एच० खान बनाम एम० अराथुन, 1969 क्रि० लाँ ज० 242.

46. गुलाम अहिजा बनाम लतफल हुदा, ए० आई० आर० 1955 कल० 558.

47. छोटे बनाम अली, (1902) 4 बाम्बे एल० आर० 463.

48. जे० एल० पिल्लई बनाम पी० पिल्लई, ए० आई० आर० 1939 मद्रास 400.

49. पंजा जी बेगुल, (1934) 37 बाम्बे एल० आर० 96.

देने, विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। |

429. किसी मूल्य के ढोर आदि को या पचास रुपये के मूल्य के किसी जीव-जन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि-जो कोई किसी हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भैंस, सांड, गाय या बैल को चाहे उसका कुछ भी मूल्य हो, या पचास रुपये या उससे अधिक मूल्य के किसी भी अन्य जीव-जन्तु को वध करने, विष देने, विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

430. सिंचन संकर्म को क्षति करने या जल को दोषपूर्वक मोड़ने द्वारा रिष्टि- जो कोई किसी ऐसे कार्य के करने द्वारा रिष्टि करेगा, जिससे कृषिक प्रयोजनों के लिए, या मानव प्राणियों के या उन जीवजन्तुओं के, जो सम्पत्ति हैं, खाने या पीने के, या सफाई के या किसी विनिर्माण को चलाने के जल प्रदाय में कमी कारित होती हो, या कमी कारित होना वह संभाव्य जानता हो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जायेगा।

431. लोक सड़क, पुल, नदी या जलसरणी को क्षति पहुँचा कर रिष्टि- जो कोई किसी ऐसे कार्य करने द्वारा रिष्टि करेगा, जिससे किसी लोक सड़क, पुल, नाव्य नदी या प्राकृतिक या कृत्रिम नाव्य जलसरणी को यात्रा या सम्पत्ति प्रवहण के लिए अगम्य या कम निरापद बना दिया जाए या बना दिया जाना वह सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

432. लोक जल-निकास में नुकसानप्रद जलप्लावन या बाधा कारित करने द्वारा रिष्टि- जो कोई किसी ऐसे कार्य के करने द्वारा रिष्टि करेगा, जिससे किसी लोक जलनिकास में क्षतिप्रद या नुकसानप्रद जलप्लावन या बाधा कारित हो जाए, या होना वह सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

433. किसी दीपगृह या समुद्री-चिन्ह को नष्ट करके, हटाकर या कम उपयोगी बनाकर रिष्टि- जो कोई किसी दीपगृह को या समुद्री चिह्न के रूप में उपयोग में आने वाले अन्य प्रकाश के, या किसी समुद्री चिह्न या बोया या अन्य चीज के, जो नौ-चालकों के लिए मार्ग प्रदर्शन के लिए रखी गयी हो, नष्ट करने या हटाने द्वारा अथवा कोई ऐसा कार्य करने द्वारा, जिससे कोई ऐसा दीपगृह, समुद्री चिह्न, बोया या पूर्वोक्त जैसी अन्य चीज नौचालकों के लिए मार्गप्रदर्शक के रूप में कम उपयोगी बन जाए, रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

434. लोक प्राधिकारी द्वारा लगाए गए भूमिचिन्ह को नष्ट करने या हटाने आदि द्वारा रिषि- जो कोई लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा लगाए गए किसी भूमिचिन्ह के नष्ट करने या हटाने द्वारा अथवा कोई ऐसा कार्य करने द्वारा ,जिससे ऐसा भूमिचिन्ह ऐसे भूमिचिन्ह के रूप में कम उपयोगी बन जाए, रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। |

435. सौ रुपए का या (कृषि उपज की दशा में ) दस रुपए का नुकसान कारित करने । के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि- जो कोई किसी सम्पत्ति को, एक सौ रुपए या उससे अधिक का या (जहाँ कि सम्पत्ति कृषि उपज हो, वहाँ) दस रुपए या उससे अधिक का नुकसान कारित करने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा ऐसा नुकसान कारित करेगा, अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

436. गृह आदि को नष्ट करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि-जो कोई किसी ऐसे निर्माण का, जो मामूली तौर पर उपासना स्थल के रूप में या मानव-निवास के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में आता हो, नाश कारित करने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्वारा उसका नाश कारित करेगा, अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

437. तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने के आशय से रिष्टि– जो कोई किसी तल्लायुक्त जलयान या बीस टन या उससे अधिक बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बना देने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा उसे नष्ट करेगा, या सापद बना देगा उस जलयान की रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

438. धारा 437 में वर्णित अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा की गई रिष्टि के लिए दण्ड- जो कोई अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा ऐसी रिष्टि करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, जैसी अन्तिम पूर्ववर्ती धारा में वर्णित है, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। | 439. चोरी, आदि करने के आशय से जलयान को साशय भूमि या किनारे पर चढ़ा देने के लिए दण्ड-जो कोई किसी जलयान को यह आशय रखते हुए कि वह उसमें अन्तर्विष्ट किसी सम्पत्ति की चोरी करे या बेईमानी से ऐसी किसी सम्पत्ति का दुर्विनियोग करे, या इस आशय से कि ऐसी चोरी या सम्पत्ति का दुर्विनियोग किया जाए, साशय भूमि पर चढ़ा देगा या किनारे से लगा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

440, मृत्यु या उपहति कारित करने की तैयारी के पश्चात् की गई रिष्टि- जो कोई किसी व्यक्ति की मृत्यु या उसे उपहति या उसका सदोष अवरोध कारित करने की अथवा मृत्यु का, या उपहति का, या सदोष अवरोध का भय कारित करने की, तैयारी करके रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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