Indian Penal Code Offences Against Property EXTORTION LLB Notes
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उद्दापन के विषय में
(OF EXTORTION)
383. उद्दापन-जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई क्षति करने के भय में साशय डालता है, और तद्वारा इस प्रकार भय में डाले गये व्यक्ति को, कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति या हस्ताक्षरित या मुद्रांकित कोई चीज, जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, किसी व्यक्ति को परिदत्त करने के लिये बेईमानी से उत्प्रेरित करता है, वह ”उद्दापन” करता है।
दृष्टान्त
(क) क यह धमकी देता है कि यदि य ने उसको धन नहीं दिया, तो वह य के बारे में मानहानिकारक अपमान लेख प्रकाशित करेगा। अपने को धन देने के लिये वह इस प्रकार य को उत्प्रेरित करता है। क ने उद्दापन किया है।
(ख) क, य को यह धमकी देता है कि यदि क को कुछ धन देने के सम्बन्ध में अपने आपको आबद्ध | करने वाला एक वचनपत्र हस्ताक्षरित करके क को परिदत्त नहीं कर देता, तो वह य के शिशु को सदोष परिरोध में रखेगा। य वचनपत्र हस्ताक्षरित करके क को परिदत्त कर देता है। क ने उद्दापन किया है।
(ग) क यह धमकी देता है कि यदि, ख को कुछ उपज परिदत्त कराने के लिये शास्तियुक्त बन्धपत्र हस्ताक्षरित नहीं करेगा और ख को न देगा, तो वह य के खेत को जोत डालने के लिये लठैत भेज देगा और तद्द्वारा य को वह बन्धपत्र हस्ताक्षरित करने के लिये और परिदत्त करने के लिये उत्प्रेरित करता है। क ने उद्दापन किया है।
(घ) क, य को घोर उपहति करने के भय में डालकर बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर कर दे या अपनी मद्रा लगा दे और उसे क को परिदत्त कर दे। यह उस कागज पर हस्ताक्षर करके उसे क को परिदत्त कर देता है। यहां, इस प्रकार हस्ताक्षरित कागज मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सकता है, इसलिये क ने उद्दीपन किया है।
टिप्पणी
अवयव-इस धारा के निम्नलिखित अपराध हैं
(1) साशय किसी व्यक्ति को स्वयं उसको या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करने के भय में डालना,
(2) इस प्रकार भय में डाले गये व्यक्ति को कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति परिदत्त करने के लिये बेईमानी से उत्प्रेरित करना।
(1) किसी व्यक्ति को क्षति के भय में डालना- इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये यह आवश्यक है कि उद्दापनकर्ता किसी व्यक्ति को भय में डाले और इसके द्वारा कोई सम्पत्ति परिदत्त करने के लिये बेईमानी से उसे उत्प्रेरित करे। भय इस प्रकृति और विस्तार का होना चाहिये कि जिस व्यक्ति पर उसका प्रभाव पड़ रहा हो, उसका मस्तिष्क असंतुलित हो जाये तथा वह स्वेच्छया कार्य करने की सहमति से वंचित हो जाये 48 एक प्रकरण में एक पादरी ने एक महिला के साथ किसी बदनाम परिसर में आपराधिक संभोग किया था। अभियुक्त ने उसे धमकी दी थी कि वह पादरी के इस कुकर्म को तमाम लोगों के सामने भंडाफोड़ कर देगा। यह अभिनिर्णीत हुआ कि इस प्रकार दी गयी धमकी इस धारा के अन्तर्गत आती है क्योंकि इसकी प्रकृति ऐसी थी जिसे सामान्य दृढ़ता वाले व्यक्तियों से बर्दाश्त करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती 49 इस धारा के अन्तर्गत दी गयी धमकी या भय का लगाये गये आरोप की सत्यता से कोई सम्बन्ध नहीं है।50 जिस व्यक्ति को भय दिखाया गया है उसका दोषी या निर्दोष होना सारवान नहीं है। इस धारा में यह नहीं अपेक्षित है कि आरोप लगाने का भय न्यायिक अधिकरण के समक्ष दिखाया गया हो, यदि किसी तीसरे व्यक्ति के समक्ष भय दिखाया गया है तो भी पर्याप्त होगा 51
एक मामले में अभियोजक य घर लौटते समय रास्ते में एक महिला से मिला और उससे कुछ बात-चीत किया। इस बातचीत के लिये एक सिपाही ने अभियोग चलाने की धमकी उसे दी क्योंकि वह महिला जिससे अभियोजक ने बातचीत की थी, एक वेश्या थी, और इसके लिये वह एक पाउण्ड के दण्ड से दण्डनीय था। किन्तु सिपाही ने उससे कहा कि यदि वह 5 शिलिंग बतौर रिश्वत दे दे तो वह इस अभियोग को त्याग देगा। य, ने सिपाही को 5 शिलिंग का भुगतान कर दिया। सिपाही को इस अपराध का दोषी ठहराया गया।52
किन्तु यदि अ किसी विवाह संस्कार को सम्पन्न कराने और विवाह रजिस्टर में उसकी प्रविष्टि कराने से तब इन्कार कर देता है जब तक उसे 5 रुपये अदा नहीं कर दिया जाता तो इस धारा के अन्तर्गत उद्दापन नहीं होगा 53 इसी प्रकार किसी सरकारी जंगल में इकट्ठी लकड़ियों को उपयुक्त शुल्क की अदायगी किये बिना ले जाने के लिये अनुमति देने से इन्कार कर देना,54 अतिचार करने वाले किसी पशु के स्वामी से इस भय के अन्तर्गत भुगतान प्राप्त करना कि यदि भुगतान न किया गया तो पशु को मवेशीखाने में बन्द कर दिया जायेगा 55 तथा एक वकील की हैसियत से कार्य न करने के भय के अन्तर्गत कोई बाण्ड प्राप्त करना56 इस धारा के अन्तर्गत कोई अपराध संरचित नहीं करता।
(2) किसी व्यक्ति को सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति परिदत्त करने के लिये बेईमानीपूर्वक उत्प्रेरित करना-इस धारा का सार है बेईमानीपूर्ण उत्प्रेरण और ऐसे उत्प्रेरण के परिणामस्वरूप सम्पत्ति के
48. वाल्टन, (1863) 9 काक्स 268.
49. मियार्ड, (1844) 1 काक्स 22.
50. रेडमैन, 10 काक्स 159.
51. राबिन्सन, (1837) 2 एम० एण्ड आर० 14.
52. राबर्टसन, 10 काक्स 9.
53. निजामुद्दीन, (1933) 4 लाहौर 179.
54. अब्दुल कादर, (1866) 3 बी० एच० सी० (क्रि० के०) 45.
55. हबीब-उल-रज्जाक, (1923) 45 इला० 81.
56. (1870) 5 एम० एच० सी० (एपेक्स) 14.
समर्पण को स्वीकार करना। अतः सदोष हानि या सदोष लाभ कारित करने का आशय आवश्यक है, केवल सदोष हानि पहुँचाना पर्याप्त न होगा।
उद्दापन का अपराध गठित करने के लिये भयग्रस्त व्यक्ति द्वारा सम्पत्ति का वास्तविक परिदान आवश्यक है / यदि कोई व्यक्ति भयवश उस समय किसी प्रकार की बाधा नहीं उपस्थित करता जिस समय उसकी सम्पत्ति हटाई जा रही हो किन्तु वह अपनी सम्पत्ति ले जाने वालों को परिदत्त भी नहीं करता, ऐसी स्थिति में अपराध ‘उद्दापन’ न होकर ‘लूट’ माना जायेगा 8
किसी व्यक्ति को–यह आवश्यक नहीं है कि डराने वाला तथा सम्पत्ति प्राप्त करने वाला एक ही व्यक्ति हो। ऐसा सम्भव है कि एक व्यक्ति धमकी दे तथा दूसरा व्यक्ति सम्पत्ति को स्वीकार करे किन्तु यह आवश्यक है कि सम्पत्ति ऐसी धमकी के फलस्वरूप ही परिदत्त की गयी है। इस धारा के अन्तर्गत यह भी आवश्यक नहीं है कि जो व्यक्ति क्षति कारित करने के भय में डालता है, सम्पत्ति उसे ही परिदत्त की जाये। यदि उसके इशारे पर किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति क्षति के भय से परिदत्त की जा रही है तब भी यह अपराध पूर्ण माना जायेगा। ऐसे सभी व्यक्ति जो भय कारित करते हैं या जिन्हें सम्पत्ति परिदत्त की जाती है, उद्दापन के अपराध के लिये दण्डनीय होंगे 59
मूल्यवान प्रतिभूति- इस धारा के अन्तर्गत परिदत्त वस्तु कोई सम्पत्ति, मूल्यवान प्रतिभूति या हस्ताक्षरित या मुद्रांकित कोई चीज जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, हो सकती है। ‘मूल्यवान प्रतिभूति’ इस संहिता की धारा 30 में परिभाषित है। हस्ताक्षरित या मुद्रांकित किसी चीज से यह अभिप्रेत है कि अपूर्ण विलेख भी उद्दापन की विषयवस्तु हो सकता है। यदि कोई नाबालिग पीटा जाता है और उसे एक प्रोनोट निष्पादित करने के लिये मजबूर किया जाता है तो बल प्रयोग करने वाला व्यक्ति इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।60 किन्तु कागज के किसी टुकड़े पर बलपूर्वक अंगूठे का निशान लेना जिसे मूल्यवान प्रतिभूति के रूप में परिवर्तित किया जा सकता हो, उद्दापन का अपराध गठित नहीं करता, अपितु इस संहिता की धारा 352 के अन्तर्गत गम्भीर प्रकोपन का अपराध गठित करता है।61 किन्तु अपूर्ण विलेख उद्दापन की विषयवस्तु हो सकता है। उदाहरण के लिये अ एक प्रामिजरी नोट पर अपना दस्तखत करता है। जिसमें तिथि तथा धनराशि इत्यादि नहीं लिखी गई थी। दस्तखत करने के पश्चात् अ वह नोट ब को सौंप देता है। यहाँ उद्दापन का अपराध कारित हुआ समझा जायेगा क्योंकि प्रामिजरी नोट को पूर्ण कर मूल्यवान प्रतिभूति के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।62 ।
उदाहरण- एक प्रकरण में अभियुक्त ने एक लड़के तथा एक लड़की को कपड़े उतारने के लिये बाध्य किया और इस प्रकार नंगा कर उनकी तस्वीरें खींची। तत्पश्चात् उसने उन्हें बाध्य किया कि यदि वे उसे पैसा नहीं देंगे तो वह उनकी तस्वीरों को प्रकाशित कर देगा। उसे इस अपराध का दोषी ठहराया गया।63 एक अन्य प्रकरण में एक पुलिस अधिकारी य ने ब को गिरफ्तार किया और तब तक जमानत मंजूर करने से इन्कार किया जल तक उसे 500 रुपये भुगतान नहीं कर दिया जाता। जैसे ही मांग की पूर्ति की गई य ने जमानत मंजूर कर लिया। य उद्दापन के अपराध का दोषी था।64 जहाँ अ, ब से यह कह कर कोई सम्पत्ति प्राप्त करता है कि आपका लड़का हमारे गिरोह के हाथ में है और उसे मार दिया जायेगा यदि आप हमें पाँच हजार रुपये नहीं भेजते हैं। अ इस धारा के अन्तर्गत दंडनीय होगा। अ, ब का ब्रीफकेस पाता है तथा वह ब को लिखता है कि वह उसे ब्रीफकेस तब देगा जब वह उसे 500 रुपये अदा करेगा। यदि ब उसे 500 रुपये अदा कर देता है तो
57. लाभशंकर, ए० आई० आर० 1955 सौराष्ट्र 42. ।
58. दुलीलुद्दीन शेख, (1866) 5 डब्ल्यू आर० (क्रि०) 19.
59. शंकर भगवत, (1866) 2 बी० एच० सी० 394.
60. राम नरायन साह, ए० आई० आर० (1933) पटना 601.
61. जदुनन्दन सिंह, ए० आई० आर० 1941 पटना 129.
62. एम० एण्ड एम० 346.
63. आई० एल० आर० (1969) 19 राजस्थान 141; रोमेश चन्द्र अरोरा, ए० आई० आर० 1960 एस० सी० 154 भी देखे.
64. ए० आई० आर० 1942 अवध 163.
अ उद्दापन का अपराधी होगा किन्तु यदि वह उसे रुपया नहीं देता है तो ब उद्दापन कारित करने के प्रयत्न का दोषी होगा और यदि वह ब्रीफकेस लौटाता नहीं है तो वह आपराधिक दुर्विनियोग का दोषी होगा।
आर० एस० नायक बनाम ए० आर० अन्तुले तथा अन्य65 के मामले में भी अन्तुले ने अपने मुख्य मंत्रित्व काल में चीनी मिलों की सहकारी समितियों से, जिनके मामले सरकार के विचाराधीन थे, दान या चन्दा देने को कहा और यह वादा किया कि यदि वे दान देंगे तो उनके मामलों पर विचार किया जायेगा। उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि इन तथ्यों के आधार पर उद्दापन का अपराध गठित नहीं होता है। इस बात का प्रमाण नहीं था कि सहकारी समितियों के प्रबन्धकों को किसी प्रकार की धमकी दी गई थी और उस क्षति के कारित किये जाने के भय से उन्होंने चन्दा दिया। न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि उद्दापन के अपराध हेतु भय (fear) या धमकी का प्रयोग आवश्यक है। कोई व्यक्ति किसी अन्य के विरुद्ध भय या । धमकी का प्रयोग करता तभी माना जायेगा जब इस बात का प्रमाण हो कि उसने कोई कार्य करने अथवा जिसके करने के लिये वह विधि द्वारा आबद्ध है उसे न करने की धमकी देता है। यदि कोई व्यक्ति केवल किसी ऐसे कार्य को करने का वचन देता है जिसे करने के लिये वह विधि द्वारा आबद्ध नहीं है और यह कहता है कि यदि रुपया नहीं दिया जायेगा तो वह ऐसे कार्य को नहीं करेगा तो ऐसा कार्य उद्दापन का अपराध नहीं है।
परन्तु यदि किसी फौजदारी के मामले में कोई वकील एक गवाह को यह धमकी देता है कि यदि उसको एक निर्धारित रकम न दी गई तो वह उससे निन्दात्मक प्रश्न पूछेगा और यदि इस धमकी के फलस्वरूप वकील रकम प्राप्त करता है तो वह उद्दीपन के अपराध का दोषी होगा। वकील द्वारा दी गयी धमकी के परिणामस्वरूप व्यक्ति का मस्तिष्क असन्तुलित हो जाता है जिससे उसका कार्य ऐच्छिक और स्वतन्त्र सहमति के फलस्वरूप किया गया नहीं रह जाता है।
एक राज्य के मुख्यमंत्री ने एक उद्योगपति से यह कहा कि वह पार्टी फण्ड में दस लाख रुपया दान करे। अन्यथा उसका लाइसेन्स रद्द कर दिया जायेगा। उद्योगपति ने चुपचाप वांछित धनराशि मुख्यमंत्री की पार्टी को दे दिया। इस मामले में मुख्यमंत्री भारतीय दण्ड संहिता की धारा 383 के अधीन उद्दापन के अपराध का दोषी है, क्योंकि लाइसेंस रद्द करने की धमकी देकर उसने पार्टी के लिये उस उद्योगपति से दस लाख रुपये पार्टी हेतु प्राप्त किया। उद्दापन के अपराध के लिये यह आवश्यक नहीं है कि धनराशि मुख्यमंत्री ने स्वयं प्राप्त किया हो। चूंकि मुख्यमंत्री द्वारा कारित भय के परिणामस्वरूप उद्योगपति ने दस लाख रुपये पार्टी को दान किया अतएव वह दायित्वाधीन है।
चोरी और उद्दापन में अन्तर
(1) चोरी के अपराध में अपराधी सम्पत्ति के स्वामी की सम्मति के बिना ही सम्पत्ति ले जाता है, उद्दापन का अपराध सदोषपूर्वक सम्मति प्राप्त करके किया जाता है।
(2) केवल चल सम्पत्ति ही चोरी के विषयवस्तु हो सकती है किन्तु उद्दापन के मामले में ऐसा नहीं है। हर तरह की सम्पत्ति उद्दापन की विषय-वस्तु हो सकती है।
(3) चोरी में सम्पत्ति स्वयं अपराधी द्वारा हटाई जाती है, उद्दापन में सम्पत्ति अपराधी को या इसके इशारे पर किसी अन्य व्यक्ति को परिदत्त की जाती है।
(4) चोरी में सम्पत्ति हटाते समय बल, भय या धमकी का प्रयोग नहीं होता, उद्दापन में साशय किसी व्यक्ति को भय में डालकर बेईमानीपूर्वक कसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति को परिदत्त करने के लिये उत्प्रेरित किया जाता है।
384. उापन के लिए दण्ड-जो कोई उद्दापन करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।
65. 1986 क्रि० लाँ ज० 1922 (सु० को०).
टिप्पणी
धनन्जय बनाम बिहार राज्य66 का वाद पटना उच्च न्यायालय के उस निर्णय के विरुद्ध अपील है। जिसमें उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षकारों के बीच समझौते को स्वीकार करने से इस आधार पर मना कर दिया था कि अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 384 के अधीन कारित है जो शमनीय नहीं है। इस मामले में। सूचनादाता द्वारा अभियुक्त को कुछ धन देय था। सूचनादाता का यह आरोप था कि अभियुक्त ने कुछ अन्य अज्ञात लोगों के साथ उसके कमरे में प्रवेश किया और देय धन से अधिक धनराशि के भुगतान करने की मांग किया। मांगी गई धनराशि भुगतान करने से इंकार करने पर अभियुक्त ने सूचनादाता को चप्पल से मारा और उसके ऊपरी जेब से रुपये निकाल लिया। यह अभिधारित किया गया कि इस आरोप के अभाव में कि धनराशि का भुगतान सूचनादाता को डरा धमकाकर लिया गया उद्दापन का अपराध कारित नहीं होता है। यह भी अभिधारित किया गया कि अभियुक्त के विमोचन की प्रार्थना पत्र को, जो दोनों पक्षकारों की आपसी सहमति पर आधारित थी, अस्वीकार इस आधार पर करना कि उद्दापन का अपराध शमनीय नहीं है, अनुचित था।
इस मामले में चोरी और उद्दापन में अन्तर स्पष्ट किया गया। उद्दापन मालिक की इच्छा शक्ति पर अधिकार कर कारित किया जाता है जबकि चोरी में अपराधी का आशय बिना उस व्यक्ति की सहमति के लेना होता है।
385. उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को क्षति के भय में डालना- जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को किसी क्षति के पहुँचाने के भय में डालेगा या भय में डालने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।
टिप्पणी
यह धारा प्रारम्भिक अपराध तथा पूर्ण अपराध के बीच अन्तर को प्रतिस्थापित करती है। उद्दापन करने के लिये किसी व्यक्ति को क्षति के भय में डालना या डालने का प्रयत्न करना भी इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय बनाया गया है।
इस धारा में अभिकल्पित अपहानि अभियुक्त के सामर्थ्य के परे नहीं होनी चाहिये। यह भय कि भगवान उसे दण्डित करेगा, इस धारा में अभिकल्पित अपहानि के अन्तर्गत नहीं आता है। जब तक कि किया गया कार्य न तो कोई अपराध है और न ही इस प्रकृति का है कि इसे सिविल कार्यवाही का आधार बनाया जा सके। तब तक न तो कोई उपहति कारित हो सकती है और न ही इसकी धमकी दी जा सकती है।67
एक कपड़ा व्यापारी को यह धमकी दी गई कि वह विदेशी वस्त्रों का बेचना जारी रखेगा तो उसे जुर्माना लगाया जायेगा। उसने वस्त्रों का बेचना जारी रखा इस पर जुर्माने की अदायगी हेतु उसकी दुकान पर दो घंटे के धरने की व्यवस्था की गई जिसके फलस्वरूप उसके व्यापार को नुकसान हुआ और उसे जुर्माने का भुगतान भी करना पड़ा। यह अभिनिर्णीत हुआ कि जिन व्यक्तियों ने धरना दिया था वे इस धारा तथा धारा 384 के अन्तर्गत दोषी हैं 68 ।
एक मुख्तार ने धन उद्दापन के आशय से एक आपराधिक वाद में धमकी दिया कि वह अभियोजन पक्ष के गवाहों से न्यायालय में ऐसे प्रश्न पूछेगा जो असंगत, अपमानजनक तथा अभद्र होंगे जिससे वे विक्षुब्ध और अपमानित हो जायें। मुख्तार को इस धारा के अन्तर्गत दोषी घोषित किया गया 69 |
386. किसी व्यक्ति को मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालकर उद्दापन- जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालकर उद्दापन करेगा,
66. 2007 क्रि० लो ज० 1440 (एस० सी०).
67. तनुमल उधासिंग, (1944) केरल 145.
68. चतुरभुज, (1922) 45 इला० 137.
69. फजलुर रहमान, (1929) 9 पटना 725.
वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा। और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
387. उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालना- जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्य या घोर उपहति के भय में डालेगा या भय में डालने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
388. मृत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दण्डनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उद्दापन- जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने के भय में डालकर कि उसने कोई ऐसा अपराध किया है, या करने का प्रयत्न किया है, जो मृत्यु से या आजीवन कारावास से या ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय है, अथवा यह कि उसने किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा अपराध करने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न किया है, उद्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध ऐसा हो जो इस संहिता की धारा 377 के अधीन दण्डनीय है, तो वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जा सकेगा।
389. उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को अपराध का अभियोग लगाने के भय में डालना- जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को, स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने का भय दिखलाएगा या यह भय दिखलाने का प्रयत्न करेगा कि उसने ऐसा अपराध किया है या करने का प्रयत्न किया है, जो मृत्यु से या आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध ऐसा हो जो इस संहिता की धारा 377 के अधीन दंडनीय है, तो वह आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकेगा।
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