Indian Penal Code Offences Against Property Criminal Trespass LLB Notes
Indian Penal Code Offences Against Property Criminal Trespass LLB Notes:- LLB Law 1st Semester 1st Year Online Free Books Indian Penal Code IPC 1860 Notes Study Material PDF File Download New Syllabus for Student.
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आपराधिक अतिचार के विषय में
(OF CRIMINAL TRESPASS)
441. आपराधिक अतिचार— जो कोई ऐसी सम्पत्ति में या ऐसी सम्पत्ति पर, जो किसी दूसरे के कब्जे में है, इस आशय से प्रवेश करता है कि वह कोई अपराध करे या किसी व्यक्ति को, जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति है, अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे, अथवा ।
ऐसी सम्पत्ति में या ऐसी सम्पत्ति पर, विधिपूर्वक प्रवेश करके वहाँ विधिविरुद्ध रूप में इस आशय से बना रहता है कि तद्द्वारा वह किसी ऐसे व्यक्ति को अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे या इस आशय से बना रहता है कि वह कोई अपराध करे, वह “आपराधिक अतिचार करता है, यह कहा जाता है।
टिप्पणी
जो कोई किसी सम्पत्ति में या ऐसी सम्पत्ति पर जो किसी दूसरे के कब्जे में है, इस आशय से प्रवेश करता क वह कोई अपराध करे या किसी व्यक्ति को, जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति है अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे, ”आपराधिक अतिचार” का अपराध कारित करता है। यदि ऐसा व्यक्ति दूसरे की सम्पत्ति पर
436. गृह आदि को नष्ट करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि-जो कोई किसी ऐसे निर्माण का, जो मामूली तौर पर उपासना स्थल के रूप में या मानव-निवास के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में आता हो, नाश कारित करने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्वारा उसका नाश कारित करेगा, अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
| 437. तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने के आशय से रिष्टि– जो कोई किसी तल्लायुक्त जलयान या बीस टन या उससे अधिक बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बना देने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा उसे नष्ट करेगा, या सापद बना देगा उस जलयान की रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
438. धारा 437 में वर्णित अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा की गई रिष्टि के लिए दण्ड- जो कोई अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा ऐसी रिष्टि करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, जैसी अन्तिम पूर्ववर्ती धारा में वर्णित है, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। | 439. चोरी, आदि करने के आशय से जलयान को साशय भूमि या किनारे पर चढ़ा देने के लिए दण्ड-जो कोई किसी जलयान को यह आशय रखते हुए कि वह उसमें अन्तर्विष्ट किसी सम्पत्ति की चोरी करे या बेईमानी से ऐसी किसी सम्पत्ति का दुर्विनियोग करे, या इस आशय से कि ऐसी चोरी या सम्पत्ति का दुर्विनियोग किया जाए, साशय भूमि पर चढ़ा देगा या किनारे से लगा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
440, मृत्यु या उपहति कारित करने की तैयारी के पश्चात् की गई रिष्टि- जो कोई किसी व्यक्ति की मृत्यु या उसे उपहति या उसका सदोष अवरोध कारित करने की अथवा मृत्यु का, या उपहति का, या सदोष अवरोध का भय कारित करने की, तैयारी करके रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
आपराधिक अतिचार के विषय में
(OF CRIMINAL TRESPASS) 441. आपराधिक अतिचार— जो कोई ऐसी सम्पत्ति में या ऐसी सम्पत्ति पर, जो किसी दूसरे के कब्जे में है, इस आशय से प्रवेश करता है कि वह कोई अपराध करे या किसी व्यक्ति को, जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति है, अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे, अथवा ।
ऐसी सम्पत्ति में या ऐसी सम्पत्ति पर, विधिपूर्वक प्रवेश करके वहाँ विधिविरुद्ध रूप में इस आशय से बना रहता है कि तद्द्वारा वह किसी ऐसे व्यक्ति को अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे या इस आशय से बना रहता है कि वह कोई अपराध करे, वह “आपराधिक अतिचार करता है, यह कहा जाता है।
टिप्पणी
जो कोई किसी सम्पत्ति में या ऐसी सम्पत्ति पर जो किसी दूसरे के कब्जे में है, इस आशय से प्रवेश करता क वह कोई अपराध करे या किसी व्यक्ति को, जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति है अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे, ”आपराधिक अतिचार” का अपराध कारित करता है। यदि ऐसा व्यक्ति दूसर की सम्पत्ती पर
वैधतः प्रवेश करता है किन्तु सम्पत्ति से सम्बन्धित किसी व्यक्ति को अपमानित करने या क्षुब्ध करने के आशय से अवैध रूप से सम्पत्ति पर बना रहता है तो वह इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी होगा।
अवयव-इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं
(1) किसी दूसरे व्यक्ति के आधिपत्य में विद्यमान किसी सम्पत्ति में या सम्पत्ति पर प्रवेश,
(2) यदि यह प्रवेश विधिसम्मत है, तो विधिविरुद्ध रीति से ऐसी सम्पत्ति में अथवा ऐसी सम्पत्ति पर बना रहना।।
(3) ऐसी प्रविष्टि या अवैध रीति से बना रहना,
(क) कोई अपराध कारित करने या, । (ख) किसी व्यक्ति को जिसके आधिपत्य में वह सम्पत्ति है, अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करने के आशय से होना चाहिये।। |
1. किसी दूसरे व्यक्ति के आधिपत्य में किसी सम्पत्ति में अथवा किसी सम्पत्ति पर प्रवेश करता है– इस धारा में प्रयुक्त ‘‘सम्पत्ति” शब्द का तात्पर्य स्थावर मूर्त सम्पत्ति से है न कि अमूर्त सम्पत्ति जैसे मछली मारने का अधिकार या फेरी का अधिकार। अभिकथित अतिचारी के अतिरिक्त सम्पत्ति किसी अन्य व्यक्ति के आधिपत्य में होनी चाहिये। यदि सम्पत्ति शिकायतकर्ता के वास्तविक कब्जे में नहीं है, तो यह अपराध संरचित नहीं होगा। कोई व्यक्ति दूसरे की जमीन पर प्रवेश किये बिना भी आपराधिक अतिचार का दोषी हो सकता है। उदाहरण के लिये यदि वह दूसरों को भू-स्वामी की इच्छा के विरुद्ध एवं उसके द्वारा विरोध किये जाने पर भी कोई भवन उस भूमि पर निर्मित करने के लिये प्रेरित करता है 50 एक प्रकरण में अ ने ब की भूमि के समीप एक हिरन पर प्रहार किया और उसे मारने के प्रयोजन से ब की भूमि पर उसका पीछा किया यद्यपि ऐसा न करने के लिये ब ने अ को चेतावनी भी दी थी। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि वह इस अपराध का दोषी नहीं है क्योंकि इस अपराध के लिये अपेक्षित आशय का अभाव था 51
2. अपराध करने का आशय– आपराधिक अतिचार का अपराध अभियुक्त के आशय पर निर्भर करता है न कि कार्य की प्रकृति पर। यदि कोई व्यक्ति आसन्न विनाश से अपने परिवार और अपनी सम्पत्ति की रक्षा करने के लिये अपने पड़ोसी की भूमि में प्रवेश करता है और उसके द्वारा निर्मित बांध के एक भाग को काट देता है, तो वह आपराधिक अतिचार का दोषी नहीं है 52 इस धारा के सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सम्पत्ति पर प्रवेश कोई अपराध करने या किसी व्यक्ति को जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति है, अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करने के आशय से होना चाहिये। यदि किसी अन्य आशय से प्रवेश किया गया है तो यह धारा लागू नहीं होगी 53 अभियुक्त ने जो किसी स्कूल समिति का उपाध्यक्ष था, स्कूल परिसर में प्रवेश कर प्रधानाध्यापक तथा दो अन्य छात्रों के साथ मार-पीट किया। इस घटना के समय स्कूल परिसर प्रधानाध्यापक के आधिपत्य में था। उसने प्रधानाध्यापक को यह भी धमकी दी कि जैसे ही वह स्कूल के बाहर आयेगा उसे शारीरिक उपहति कारित की जायेगी। यह निर्णय दिया गया कि वह आपराधिक अतिचार का दोषी है 54 अ, ब के कम्पाउण्ड से इस नोटिस बोर्ड ‘‘अतिचारी अभियोजित किया जायेगा” के बावजूद | गजरता है। यहाँ अ अतिचार के लिये दोषी होगा यदि जमीन पर होकर गुजरने मात्र से ब को क्षोभ होता है। इस प्रकरण में क्षोभ होना सम्भावित है क्योंकि अतिचार को रोकने के लिये नोटिस बोर्ड लगा हुआ है।
3. विधिपूर्वक प्रवेश कर वहाँ विधि विरुद्ध रूप से बने रहना-किसी दूसरे के परिसर पर किसी व्यक्ति का प्रवेश मूलतः विधिपूर्वक हो सकता है किन्तु यदि वह व्यक्ति उस सम्पत्ति पर इस धारा में उल्लिखित किसी आशय से बना रहता है तो उसका इस प्रकार बना रहना आपराधिक अतिचार होगा।
50. घासी, (1917) 39 इला. 722.
51. चन्दर नरायन बनाम फर्कहर्सन, (1879) 4 कल० 837. |
52. मदन मण्डल, (1913) 41 कल० 662. |
53. श्रीमती मथी बनाम पंजाब राज्य, ए० आई० आर० 1964 सु० को० 986.
54. महाराष्ट्र राज्य बनाम तंबा सदाशिव कुन्बी, ए० आई० आर० 1964 बाम्बे 82.
यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे में विद्यमान भूमि में इस सद्भावपूर्वक विश्वास के साथ
प्रवेश करता है कि वहां प्रवेश करने का उसे अधिकार है किन्तु वह किसी व्यक्ति को अभित्रस्त, पमानित या क्षुब्ध करने के आशय से उस भूमि पर प्रवेश नहीं करता है, तो भले ही भूमि पर उसे कोई अधिकार न प्राप्त हो, उसे आपराधिक अतिचार के लिये दोषसिद्धि प्रदान की जायेगी क्योंकि भूमि में प्रवेश इस धारा में वर्णित किसी भी आशय से नहीं किया गया था।
उदाहरण- एक प्रकरण में ब ने अ की गाय विधिपूर्वक छीन लिया तथा उसे मवेशी खाने में बन्द करा दिया। अ अपनी गाय छुड़ाने के लिये मवेशी खाने पहुँचा और ताला खोल कर अपनी गाय हाँक ले गया तथा इस प्रक्रिया में उसने पहरेदार को हल्की उपहति भी कारित किया क्योंकि यह उसे ऐसा करने से मना कर रहा था। अभियुक्त को आपराधिक अतिचार के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी।56 यदि कोई व्यक्ति किसी कब्रगाह। की घेराबन्दी कर उसे कृषि के प्रयोजन हेतु उपयोग में लाता है तो वह इस अपराध का दोषी होगा, क्योंकि उसके इस कार्य से उन लोगों के क्षुब्ध होने की सम्भावना थी जो कब्रगाह का उपयोग कर रहे थे । एक प्रकरण में एक व्यक्ति ने, स के घर में उसकी विधवा बहन के साथ अवैध सम्भोग करने के आशय से प्रवेश किया। अभियुक्त को इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी घोषित किया गया क्योंकि इस अवैध सम्भोग से स का क्षुब्ध होना अवश्यम्भावी था।58 इसी प्रकार यदि, अ ब के मकान में उसकी अनुमति के बिना प्रवेश कर उसकी पत्नी स के नियन्त्रण पर व्यभिचार करता है तो ‘अ’ इस धारा के अन्तर्गत आपराधिक अतिचार तथा धारा 497 के अन्तर्गत जारकर्म के अपराध का दोषी होगा। दूसरे की पत्नी के साथ सम्भोग करना यदि बिना पति की सहमति के है तो वह अपराध होगा और पति व्यभिचारी को अभियोजित कर सकता है। इस मामले में अ ने ब की पत्नी के साथ जारकर्म किया जो एक अपराध है अतएव वह आपराधिक अतिचार का भी दोषी होगा। अ किसी प्रदर्शनी भवन में बिना टिकट लिये प्रवेश करता है किन्तु यदि उसका आशय इस धारा में उल्लिखित कोई अपराध कारित करना नहीं था तो उसका अपराध, अतिचार नहीं होगा।9 किसी छात्र द्वारा किसी निर्दोष लड़की, जो उसके लिये पूर्णतया अजनबी थी, को प्रेम-पत्र लिखा जाना, उसे क्षुब्ध कर सकता है। अत: यदि वह छात्र उस लड़की के घर में पत्र देने हेतु प्रवेश करता है तो उसका कृत्य आपराधिक अतिचार के तुल्य होगा।60 अ और ब किसी दुकान के दो परस्पर विरोधी दावेदार थे। अ एक किरायेदार के माध्यम से उस दूकान का कब्जा लिये हुये था। किरायेदार ने जैसे ही दूकान खाली किया ब ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और दुकान में अपना ताला बन्द कर दिया। ब को इस अपराध का दोषी नहीं माना गया क्योंकि ब इस धारा में वर्णित अपराध को संरचित करने के लिये अपेक्षित आशय से युक्त नहीं था, और यह भी कि जिस समय यह घटना घटी सम्पत्ति अ के आधिपत्य में नहीं थी।61 यदि कोई अभियुक्त किसी बाजार में प्रवेश द्वार से प्रवेश न कर बनाये गये बॉस के घेरे को लाँघ कर चोरी से प्रवेश करता है जिससे उसे बाजार कर का भुगतान न करना पड़े तो यह अपराध संरचित हुआ नहीं माना जायेगा।62 ।
442. गृह अतिचार- जो कोई किसी निर्माण, तम्बू, या जलयान में, जो मानव निवास के रूप में उपयेाग में आता है, या किसी निर्माण में, जो उपासना स्थान के रूप में, या किसी सम्पत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में आता है, प्रवेश करके या उसमें बना रह कर, आपराधिक अतिचार करता है, वह ‘गृह अतिचार करता है, यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण– आपराधिक अतिचार करने वाले व्यक्ति के शरीर के किसी भाग का प्रवेश ‘गृह अतिचार’ गठित करने के लिए पर्याप्त प्रवेश है।
टिप्पणी
इस धारा में गृह अतिचार के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत किया गया है। आपराधिक अतिचार का अपराध कुछ परिस्थितियों में गरुतर प्वरूप ग्रहण कर लेता है। यदि कोई व्यक्ति किसी भवन या निर्माण में प्रवेश
55. बुधसिंह, (1879) 2 इला० 101.
56. भोला (1927) 8 लाहौर 331.
57. (1871) 6 एम० एच० सी० (अपेन्डिक्स) 25.
58. जीवन सिंह, (1908) पी० आर० नं० 17 सन् 1908.
59. मेहरबानजी बेजानजी, (1869) 6 बी० एच० सी० (क्रि० के०)
60. त्रिलोचन सिंह बनाम डाइरेक्टर, एस० आई० एस० संस्थान, ए० आई० आर० 1963 मद्रास 68. 61मोतीलाल, (1925) 47 इला० 855. ।
62वरथप्पा (1882) 5 मद्रास 382.
करके या उसमें बना रह कर आपराधिक अतिचार करता है, वह गृह अतिचार का दोषी होगा। निर्माण शब्द को एक ऐसी संरचना के रूप में परिभाषित किया गया है जो उसके अन्दर रह रहे व्यक्तियों या अभिरक्षण हेतु अन्दर रखी सम्पत्ति को सुरक्षा प्रदान करने के लिये आशयित है।63 किसी खुली जगह या जमीन को चारों तरफ से एक दीवाल या बाड़ से यदि घेर दिया जाता है तो वह खुली जगह ‘निर्माण” में परिवर्तित नहीं हो जायेगी और ऐसे निर्माण पर अतिचार, गृह अतिचार नहीं होगा।64 पशुओं का एक बाड़ा जिसकी एक दीवार मिट्टी की बनी हो, और दूसरी केवल काँटों की झाडियों की, ‘निर्माण” के अन्तर्गत नहीं आता।65 किसी दुकान से संलग्न टिनशेड जो तीन तरफ से खुला हो, भवन या निर्माण की श्रेणी में नहीं आता।66
इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये प्रवेश का अवैध होना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे के गृह में उसकी आज्ञा या अनुज्ञप्ति से प्रवेश करता है तो वह इस अपराध के लिये दण्डित नहीं होगा।
मंगाराज वारिक बनाम उड़ीसा राज्य67 के मामले में यह निर्णय दिया गया कि मानव निवास के रूप में उपयोग में आने वाले निर्माण के लिये यह आवश्यक नहीं है कि यह स्थायी निवास का स्थान हो। इस मामले में स्कूल के भवन का निवास गृह माना गया। यह मत व्यक्त करते समय न्यायालय ने राज्य बनाम निकाल सिंह68 के मामले को आधार माना जिसमें रेलवे प्रतीक्षालय को आवासगृह माना गया था।
पशुपति शिवाराम कृष्ण राव बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य68क के वाद में अभियुक्त ने पीड़ित के कार्यालय में हमला करने की तैयारी के साथ प्रवेश किया। यह तर्क दिया गया कि अतिक्रमण (Trespass) के अपराध के लिये प्रवेश किया गया घर प्राइवेट निवास होना चाहिये न कि कार्यालय। उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अधिनिर्णीत किया गया कि भा० द० सं० की धारा 452 के अधीन अतिक्रमण का अपराध होने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि प्रवेश किया गया घर प्राइवेट निवास का स्थान होना चाहिये न कि कार्यालय अतएव उच्च न्यायालय को अभियुक्त के दोषसिद्धि (conviction) को उलट देने का इस आधार पर दिया गया आदेश कि पीड़ित प्राइवेट स्थान या घर में नहीं वरन् कार्यालय में बैठा था त्रुटिपूर्ण (erroneous) है।
शस्त्रों से सुसज्जित छ: व्यक्ति ‘अ’ के मकान में घुस गये किन्तु शोर मच जाने के कारण वे बिना कुछ सामान लिये चले गये। इस मामले में ये सभी व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की धारा 442 के अन्तर्गत गृह अतिचार के लिये दोषी होंगे। ये चोरी अथवा चोरी के प्रयत्न के लिये दोषी नहीं होंगे क्योंकि घर का कोई सामान बिना लिये अथवा हटाये बिना ही शोर मच जाने पर भाग गये।
443. प्रच्छन्न गृह अतिचार- जो कोई यह पूर्वावधानी बरतने के पश्चात् गृह अतिचार करता है कि ऐसे गृह अतिचार को किसी ऐसे व्यक्ति से छिपाया जाए जिसे उस निर्माण, तम्बू, या जलयान में से, जो अतिचार का विषय है, अतिचारी को अपवर्जित करने या बाहर कर देने का अधिकार है, वह ‘प्रच्छन्न गृह अतिचार” करता है, यह कहा जाता है।
टिप्पणी
अवयव-इस धारा के निम्नलिखित प्रमुख अवयव हैं
(1) ऐसा अतिचार जिसे गृह अतिचार की संज्ञा दी जा सके।
(2) गृह अतिचार ऐसा होना चाहिये जिसे प्रच्छन्न गृह अतिचार कहा जा सके। |य धारा में अतिचार के और भी अधिक उग्र स्वरूप का जिक्र किया गया है। यह प्रच्छन्न प्रकृति का होता है। उपरोक्त दो अवयवों में से प्रथम का जिक्र क्रमश: धारा 441 तथा 422 में किया जा चका है। दसरा अवयव इस तथ्य पर निर्भर करता है कि क्या गृह अतिचार पूर्व सावधानी बरतने के पश्चात किसी ऐसे व्यक्ति से छिपाया जा रहा है जिसे अतिचारी को अपवर्जित करने या बाहर कर देने का अधिकार है।
63. लक्ष्मण कौन्देस, ए० आई० आर० 1927 मद्रास 543.
64.| पालनी गोन्डन, (1896) 1 वेयर 523.
65. कोहमी, (1914) पी० आर० नं० 24 सन् 1914.
66. दालचन्द (1966) क्रि० लाँ ज० 236.
67. (1982) क्रि० लाँ ज० 1631 (उड़ीसा). 68. (1971) 73 पं० लाँ रि० 440. ।
68क. (2014) II क्रि० लाँ ज० 1677 (एस० सी०).
प्रच्छन्न गृह अतिचार संरचित करने के लिये अत्यन्त आवश्यक है कि अपराधी कोई ऐसा प्रभावकारी कदम उठाये जिसमें उसकी उपस्थिति का एहसास न हो सके।69 वह गृह-अतिचार को छिपाने के लिए सावधानी बरते। दूसरे शब्दों में उसके आपराधिक आशय या प्रवेश के विषय में किसी को एहसास न हो।
444. रात्रौ प्रच्छन्न गृह अतिचार- जो कोई सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व प्रच्छन्न गृह अतिचार करता है, वह ‘‘रात्रौ प्रच्छन्न गृह अतिचार” करता है, यह कहा जाता है।
445. गृह-भेदन- जो व्यक्ति गृह अतिचार करता है, वह ”गृह भेदन” करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस गृह में या उसके किसी भाग में एतस्मिनपश्चात् वर्णित छह तरीकों में से किसी तरीके से प्रवेश करता है अथवा यदि वह उस गृह में या उसके किसी भाग में अपराध करने के प्रयोजन से होते हुए, या वहाँ। अपराध कर चुकने पर, उस गृह से या उसके किसी भाग से ऐसे छह तरीकों में से किसी तरीके से बाहर निकलता है, अर्थात्
पहला–यदि वह ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जो स्वयं उसने या उस गृह अतिचार के किसी दुष्प्रेरक ने वह गृह अतिचार करने के लिए बनाया है,
दूसरा-यदि वह किसी ऐसे रास्ते से, जो उससे या उस अपराध के दुष्प्रेरक से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा मानव प्रवेश के लिए आशयित नहीं है, या किसी ऐसे रास्ते से, जिस तक कि वह किसी दीवार या निर्माण पर। सीढ़ी द्वारा अन्यथा चढ़कर पहुँचा है, प्रवेश करता या बाहर निकलता है।
तीसरा-यदि वह किसी ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जिसको उसने या उस गृह अतिचार के किसी दुष्प्रेरक ने वह गृह अतिचार करने के लिए किसी ऐसे साधन द्वारा खोला है, जिसके द्वारा उस रास्ते का खोला जाना उस गृह के अधिभोगी द्वारा आशयित नहीं था।
चौथा-यदि उस गृह अतिचार को करने के लिए, या गृह अतिचार के पश्चात् उस गृह से निकल जाने के लिए वह किसी ताले को खोलकर प्रवेश करता या बाहर निकलता है,
पांचवां-यदि वह आपराधिक बल के प्रयोग या हमले या किसी व्यक्ति पर हमला करने की धमकी द्वारा अपना प्रवेश करता है या प्रस्थान करता है,
छठा- यदि वह किसी ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जिसके बारे में वह जानता है। कि वह ऐसे प्रवेश या प्रस्थान को रोकने के लिए बन्द किया हुआ है और अपने द्वारा या उस गृह अतिचार के दुष्प्रेरक द्वारा खोला गया है।
स्पष्टीकरण- कोई उपगृह या निर्माण, जो किसी गृह के साथ-साथ अधिभोग में है, और जिसके और ऐसे गृह के बीच आने जाने का अव्यवहित भीतरी रास्ता है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत उस गृह का भाग है।
दृष्टान्त
(क) य के गृह की दीवार में छेद करके और उस छेद में से अपना हाथ डालकर क गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।
(ख) क तल्लों के बीच की बारी में से रेंगकर एक पोत में प्रवेश करने द्वारा गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।
(ग) य के गृह में एक खिड़की से प्रवेश करने द्वारा क गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।
(घ) एक बन्द द्वार को खोलकर य के गृह में उस द्वार से प्रवेश करने द्वारा क गृह अतिचार करता है, यह गृह भेदन है।
69. बुध, 17 क्रि० लॉ ज० 304.
(ङ) य के गृह में द्वार के छेद में से तार डालकर सिटकनी को ऊपर उठाकर उस द्वार में प्रवेश करने द्वारा क गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।
(च) क को य के गृह के द्वार की चाबी मिल जाती है, जो य से खो गई थी, और वह उस चाबी से द्वार खोलकर य के गृह में प्रवेश करने द्वारा गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।।
(छ) य अपनी ड्योढ़ी में खड़ा है। य को धक्के से गिराकर क उस गृह में बलात प्रवेश करने द्वारा गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।
(ज) य, जो म का दरबान है, म की ड्योढ़ी में खड़ा है। य को मारने की धमकी देकर क उसको विरोध करने से भयोपरत उसके उस गृह में प्रवेश करने द्वारा गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।
टिप्पणी
आवासीय स्थलों की गोपनीयता को इस धारा द्वारा प्रतिरक्षित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी आवासीय स्थल में अवैध रीति से प्रवेश करता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत अधिक कठोर दण्ड से दण्डित होगा। गृह भेदन के छ: तरीकों का वर्णन इस धारा में किया गया है। पैराग्राफ 1 से 3 ऐसी प्रविष्टियों से सम्बन्धित हैं जिनमें प्रवेश, साधारण तथा प्रचलत प्रवेश द्वार से भिन्न किसी अन्य द्वार से किया जाता है तथा पैराग्राफ 4 से 6 बलपूर्वक प्रवेश से सम्बन्धित हैं।
यदि कोई चोर किसी दीवाल में एक छिद्र बनाता है किन्तु वह छिद्र दीवाल में दूसरी तरफ उपस्थित किसी धरन (Beam) के कारण बन्द हो जाता है तो यह कार्य गृह भेदन कारित करने के प्रयत्न के तुल्य होगा। यह अवास्तविक गृह भेदन नहीं होगा। ऐसे प्रकरणों में इस धारा का दृष्टान्त (क) लागू नहीं होता। 446. रात्रौ गृह-भेदन- जो कोई सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व गृह-भेदन करता है वह “रात्रौ गृह-भेदन” करता है, यह कहा जाता है।
447. आपराधिक अतिचार के लिए दण्ड-जो कोई आपराधिक अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
448. गृह-अतिचार के लिए दण्ड-जो कोई गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
449. मृत्यु से दण्डनीय अपराध को करने के लिए गृह-अतिचार– जो कोई मृत्यु से दण्डनीय कोई अपराध करने के लिए गृह अतिचार करेगा वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
450. आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध को करने के लिए गृह-अतिचार- जो कोई आजीवन कारावास से दण्डनीय कोई अपराध करने के लिए गृह अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी। दण्डनीय होगा।| 451. कारावास से दंडनीय अपराध को करने के लिए गृह–अतिचार-जो कोई कारावास से टण्डनीरा कोई अपराध करने के लिए गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी।
452. उपहति हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् गृह अतिचार-जो कोई किसि व्यक्ति पर हमला करने की, या किसी व्यक्ति का सदोष
अवरोध करने की अथवा किसी व्यक्ति की उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के भय में डालने की तैयारी करके गृह अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
453. प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन के लिए दण्ड-जो कोई प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गह-भेदन करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
454. कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह – भेदन- जो कोई कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध, जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।
455. उपहति, हमले या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन-जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की या किसी व्यक्ति पर हमला करने की या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की अथवा किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के भय में डालने की तैयारी करके, प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। ।
456. रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन के लिए दण्ड-जो कोई रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
टिप्पणी
यदि प्रच्छन्न गृह-अतिचार रात्रि में कारित किया जाता है तो यह धारा लागू होगी। किन्तु यह तभी सम्भव है जब आपराधिक आशय विद्यमान हो। यदि अपराधी जो निष्पादक लेनदार थे, ऋणी की सम्पत्ति पर कब्जा करने के आशय से सूर्योदय के पूर्व उसके दरवाजे को तोड़ डालते हैं तो उन्हें आपराधिक अतिचार के अपराध का दोषी नहीं माना जायेगा।70 यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे के घर में दीवाल फाँदकर रात्रि में प्रवेश करता है। तो वह रात्रौ गृह भेदन के अपराध का दोषी होगा।71 यदि क एक गृह में रात्रि में प्रवेश करता है तथा दरवाजे पर खड़े किसी व्यक्ति को धक्का देकर गिरा देता है और भाग जाता है, तो यह माना जायेगा कि उसने रात्रौ गृह भेदन का अपराध किया।72 यदि कोई अजनबी, जो न तो नियन्त्रित था और न ही उसे वहाँ जाने का कोई अधिकार था, मध्यरात्रि में किसी महिला के शयन-कक्ष में प्रवेश करता है, और यह महिला एक सम्भ्रान्त परिवार की थी तो उसकी दोषसिद्धि इस धारा के अन्तर्गत युक्तियुक्त मानी जायेगी।73 किन्तु यदि अभियुक्त इन परिस्थितियों में परिवादकर्ता के गृह में उसकी विधवा पुत्र वधू के निमन्त्रण पर था तो वह इस धारा के अन्तर्गत दोषी नहीं माना जायेगा।4।।
457. कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्री गृह-भेदन-जो कोई कारावास से दण्डनीय कोई अपराध करने के लिए रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी,
70, जोथा राम दावय, (1878) 2 मद्रास 30.
71. इम्दाद अली, (1865) 2 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 65.
72. सोलई, (1892) 1 वेयर 530.
73. कैलाश चन्द्र चक्रवर्ती, (1889) 16 कल० 657.
लज्जी राम, (1898) पी० आर० नं० 12 सन् 1898.
दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी।
टिप्पणी
इस धारा में उपरोक्त धारा के उग्र रूप का जिक्र किया गया है। यदि क को इस आरोप के आधार पर इस धारा के अन्तर्गत दोषसिद्धि प्रदान की जाती है कि वह परिवादकर्ता के घर में बिना उसकी सम्मति के उसकी पत्नी के साथ बलात्संग करने के लिये प्रवेश किये था तो उसकी दोषसिद्धि युक्तियुक्त मानी जायेगी और परिवादकर्ता के लिये यह आवश्यक नहीं होगा कि वह व्यभिचार के लिये अलग से आरोप लगाये75 क्योंकि पति द्वारा व्यभिचार के लिये अलग से अभियोजन चलाने में किये गये लोप के कारण अभियुक्त इस धारा में वर्णित आपराधिक दायित्व से उन्मुक्त नहीं हो जाता।76 यदि अ, ब के घर में रात्रि के समय बलात्संग करने या किसी महिला को लज्जा भंग करने के आशय से प्रवेश करता है और यदि उसके आचरण से यह स्पष्ट था कि उसने अपने कृत्य को छिपाने हेतु किसी प्रकार की सावधानी नहीं बरती थी, तो वह केवल धारा 451 के अन्तर्गत दोषी होगा, न कि इस धारा के अन्तर्गत ।।7।
पेम्पीलास बाघ बनाम राज्य78 के वाद में यह प्रेक्षित किया गया कि जब किसी अपराधी को दूसरे के घर में प्रवेश किया हुआ पाया जाता है तो अन्य साक्ष्यों के अभाव में यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। कि उसने गृह भेदन किया था। धारा 457 के अन्तर्गत लगाये गये आरोप की साक्ष्यों द्वारा पुष्टि होनी चाहिये। इसकी पुष्टि शून्य से नहीं हो सकती। किसी व्यक्ति की दूसरे के गृह में उपस्थिति मात्र से गृह भेदन के मामले की पुष्टि नहीं होती। यदि किसी व्यक्ति पर गृह भेदन तथा चोरी का आरोप लगाया जाता है तथा चोरी का अपराध उसके विरुद्ध सिद्ध हो जाता है तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि दूसरे अपराध अर्थात् गृह भेदन की पुष्टि अपने आप हो गयी।
यह भी मत व्यक्त किया गया कि यदि अभियुक्त ने रात्रि में गृह में प्रवेश किया था और जिस समय उसे पकड़ा गया था, उस समय उसके पास से एक लोहे का उपकरण तथा टार्च बरामद की गई थी, ऐसी दशा में यह कहा जा सकता है कि अभियुक्त ने धारा 448 के अन्तर्गत गृह अतिचार का अपराध किया था न कि इस धारा के अन्तर्गत कोई अपराध किया है।79
458. उपहति, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन- जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की या किसी व्यक्ति पर हमला करने की या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की अथवा किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के, भय में डालने की तैयारी करके रात्रौ प्रच्छन्न गृह अतिचार या रात्रौ गृह भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
459. प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करते समय कारित घोर उपहति–जो कोई प्रच्छन्न गह-अतिचार या गृह-भेदन करते समय किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा या किसी व्यक्ति की मत्य या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
460, रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन में संयुक्ततः सम्पूक्त समस्त व्यक्ति दण्डनीय हैं, जबकि उनमें से एक द्वारा मृत्यु या घोर उपहति कारित की गयी हो–यदि रात्रौ
75. कंग्ला , (1900) 23 इला० 82.
76. बन्धू, (1894) अनरिपोर्टेड क्रिमिनल केसेज 689.
77. जलदीप सिंह, (1952) 2 राजस्थान 745.
78. 1984 क्रि० लाँ ज० 828 (उड़ीसा).
79. पेम्पीलास बाघ बनाम राज्य, 1984 क्रि० लॉ ज० 828 (उड़ीसा).
प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह भेदन करते समय ऐसे अपराध का दोषी कोई व्यक्ति स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति कारित करेगा या मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, तो ऐसे रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करने में संयुक्तत: संपृक्त हर व्यक्ति, आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
461. ऐसे पात्र को, जिसमें सम्पत्ति है, बेईमानी से तोड़कर खोलना- जो कोई किसी ऐसे बन्द पात्र को, जिसमें सम्पत्ति हो या जिसमें सम्पत्ति होने का उसे विश्वास हो, बेईमानी से या रिष्टि करने के आशय से तोड़कर खोलेगा या उद्बन्धित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
462. उसी अपराध के लिए दण्ड, जबकि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसे अभिरक्षा न्यस्त की गई है- जो कोई ऐसा बन्द पात्र, जिसमें सम्पत्ति हो, या जिसमें सम्पत्ति होने का उसे विश्वास हो, अपने पास न्यस्त किए जाने पर उसको खोलने का प्राधिकार न रखते हुए, बेईमानी से या रिष्टि करने के आशय से, उस पात्र को तोड़कर खोलेगा या उपबंधित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
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