Indian Penal Code Offences Against Property Criminal Misappropriation Property LLB Notes
Indian Penal Code Offences Against Property Criminal Misappropriation Property LLB Notes:- LLB 1st Year Semester Indian Penal Code is going to get information about IPC Online Book Chapter No 17 of Criminal Misappropriation of Property. You will find our LLB Notes and Law Notes in Free Online Books for download in the LLB Study Material in PDF Hindi English.
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सम्पत्ति के आपराधिक दुर्विनियोग के विषय में
(OF CRIMINAL MISAPPROPRIATION OF PROPERTY)
403. सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग- जो कोई बेईमानी से किसी जंगम सम्पत्ति का दुर्विनियोग करेगा या उसको अपने उपयोग के लिए सम्परिवर्तित कर लेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टान्त
(क) क, य की सम्पत्ति को उस समय जबकि क उस सम्पत्ति को लेता है, यह विश्वास रखते हुए कि वह सम्पत्ति उसी की है, य के कब्जे से सद्भावपूर्वक लेता है। क, चोरी का दोषी नहीं है। किन्तु यदि क अपनी भूल मालूम होने के पश्चात् उस सम्पत्ति का बेईमानी से अपने लिए दुर्विनियोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है। ।
(ख) क, जो य का मित्र है, य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है और य की अभिव्यक्त सम्मति के बिना एक पुस्तक ले जाता है। यहाँ, यदि क का यह विचार था कि पढ़ने के प्रयोजन के लिए पुस्तक लेने की उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है, तो क ने चोरी नहीं की है। किन्तु यदि क बाद में उस पुस्तक को अपने फायदे के लिए बेच देता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
(ग) क और ख एक घोड़े के संयुक्त स्वामी हैं। क उस घोड़े को उपयोग में लाने के आशय से ख के कब्जे में से उसे ले जाता है। यहाँ, क का उस घोड़े को उपयोग में लाने का अधिकार है, इसलिए वह उसका बेईमानी से दुर्विनियोग नहीं करता है। किन्तु यदि क उस घोड़े को बेच देता है, और सम्पूर्ण आगम का अपने लिए विनियोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।।
स्पष्टीकरण 1-केवल कुछ समय के लिए बेईमानी से दुर्विनियोग करना इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत दुर्विनियोग है।
दृष्टान्त
क को य का एक सरकारी वचनपत्र मिलता है, जिस पर निरंक पृष्ठांकन है। क, यह जानते हुए कि यह वचनपत्र य का है, उसे ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में बैंकार के पास इस आशय से गिरवी रख देता है कि वह भविष्य में उसे य को प्रत्यावर्तित कर देगा। क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।
स्पष्टीकरण 2-जिस व्यक्ति को ऐसी सम्पत्ति पड़ी मिल जाती है, जो अन्य व्यक्ति के कब्जे में नहीं है और वह उसके स्वामी के लिए उसको संरक्षित रखने या उसके स्वामी को उसे प्रत्यावर्तित करने के प्रयोजन से ऐसी सम्पत्ति को लेता है, वह न तो बेईमानी से उसे लेता है और न बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है, और किसी अपराध का दोषी नहीं है, किन्तु वह ऊपर परिभाषित अपराध का दोषी है, यदि वह उसके स्वामी को जानते हुए या खोज निकालने के साधन रखते हुए अथवा उसके स्वामी को खोज निकालने और सूचना देने के युक्तियुक्त साधन उपयोग में लाने और उसके स्वामी को उसकी मांग करने को समर्थ करने के लिए उस सम्पत्ति को युक्तियुक्त समय तक रखे रखने के पूर्व उसको अपने लिए विनियोजित कर लेता है।
ऐसी दशा में युक्तियुक्त साधन क्या है, या युक्तियुक्त समय क्या है, यह तथ्य का प्रश्न है।
यह आवश्यक नहीं है कि पाने वाला यह जानता हो कि सम्पत्ति का स्वामी कौन है या यह कि कोई विशिष्ट व्यक्ति उसका स्वामी है। यह पर्याप्त है कि उसको विनियोजित करते समय उसे यह विश्वास नहीं है। कि वह उसकी अपनी सम्पत्ति है, या सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि उसका असली स्वामी नहीं मिल सकता।
दृष्टान्त
(क) क को राजमार्ग पर एक रुपया पड़ा मिलता है। यह न जानते हुए कि वह रुपया किसका है के उस रुपए को उठा लेता है। यहाँ क ने इस धारा में परिभाषित अपराध नहीं किया है।
(ख) क को एक सड़क पर एक चिट्टी पड़ी मिलती है, जिसमें एक बैंक नोट है। उस चिट्ठी में दिए हुए निदेश और विषयवस्तु से उसे ज्ञात हो जाता है कि वह नोट किसका है। वह उस नोट का विनियोग कर लेता है। वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
(ग) वाहक-देय एक चैक क को पड़ा मिलता है। वह उस व्यक्ति के सम्बन्ध में जिसका चैक खोया है, कोई अनुमान नहीं लगा सकता, किन्तु उस चैक पर उस व्यक्ति का नाम लिखा है, जिसने वह चैक लिखा है। के यह जानता है कि वह व्यक्ति क को उस व्यक्ति का पता बता सकता है जिसके पक्ष में वह चैक लिखा गया था, के उसके स्वामी को खोजने का प्रयत्न किए बिना उस चैक का विनियोग कर लेता है। वह इस धारा के। अधीन अपराध का दोषी है।
(घ) क देखता है कि य की थैली, जिसमें धन है, य से गिर गई है। क वह थैली य को प्रत्यावर्तित करने के आशय से उठा लेता है। किन्तु तत्पश्चात् उसे अपने उपयोग के लिए विनियोजित कर लेता है।” इस धारा के अधीन अपराध किया है।
(ङ) क को एक थैली, जिसमें धन है, पड़ी मिलती है। वह नहीं जानता है कि वह किसकी है। उसक पश्चात् उसे यह पता चल जाता है कि वह य की है, और वह उसे अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
(च) क को एक मूल्यवान अंगूठी पड़ी मिलती है। वह नहीं जानता है कि वह किसकी है। क उसके स्वामी को खोज निकालने का प्रयत्न किए बिना उसे तुरन्त बेच देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।
टिप्पणी
आपराधिक दुर्विनियोग के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं
(1) किसी सम्पत्ति का अपने उपयोग के लिये बेईमानी से दुर्विनियोग या संपरिवर्तन;
(2) ऐसी सम्पत्ति चल सम्पत्ति हो।
अपने उपयोग के लिये बेईमानी से दुर्विनियोग या संपरिवर्तन- इस धारा में वर्णित अपराध के लिये यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण आशय से लिया जाये। सम्पत्ति पर आधिपत्य निर्दोष ढंग से प्राप्त किया जा सकता है परन्तु वाद में आशय परिवर्तन के कारण या किसी नये तथ्य के ज्ञान, जिससे कि पक्षकार प्रारम्भतः अवगत नहीं था, के आधार पर यदि सम्पत्ति के आधिपत्य में बनाये रखा जाता है तो ऐसा आधिपत्य सदोषपूर्ण और कपटपूर्ण बन जाता है।14 इस धारा में वर्णित अपराध का सार यह है कि सम्पत्ति निरपराधपर्ण रीति से अभियुक्त के आधिपत्य से आती है और अभियुक्त उस सम्पत्ति का दुर्विनियोग या परिवर्तन अपने उपयोग के लिये कर लेता है। सम्पत्ति का यथार्थ संपरिवर्तन आवश्यक है। किसी अभिप्राप्त सम्पत्ति को मात्र रोक रखना आपराधिक दुर्विनियोग नहीं है। दुर्विनियोग में संपरिवर्तन का स्थायी होना इस धारा के अन्तर्गत आवश्यक नहीं है। ऐसा कुछ समय के लिये भी हो सकता है। दृष्टान्त (क), (ख) और (ग) यह स्पष्ट करते हैं कि लेना मूलतः निर्दोषपूर्ण था किन्तु पश्चात्वर्ती बेईमानीपूर्ण संपरिवर्तन या दर्विनियोग के कारण आपराधिक दुर्विनियोग का अपराध संरचित हो जाता है। यदि अ किसी भटके हुये पश को अपने आधिपत्य में ले लेता है और यह नहीं प्रमाणित हो पाता है कि वह पशु चोरी का माल था, तथा वह बेईमानी से उसे अपने कब्जे में रखे रहता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।16 किन्तु एक प्रकरण में एक व्यक्ति को मन्दिर की फर्श पर एक पर्स मिला और उसने पर्स उठाकर अपनी जेब में रख लिया परन्तु कुछ ही समय पश्चात् उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसे आपरधिक दुर्विनियोग के अपराध का दोषी नहीं माना गया। माननीय न्यायमूर्ति का विचार था कि फर्श पर से पर्स उठाने या जेब में रखने मात्र से ही वह
14. भागीराम डोम बनाम अवर डोम, (1888) 15 कल० 388.
15. अब्दुल, (1868) 10 डब्ल्यू ० आर० (क्रि०) 23.
16. फूलचन्द दुबे, (1929) 52 इला० 200.
अभिकल्पना नहीं की जा सकती है कि अभियुक्त का आशय पर्स में रखी चीज को अपने उपयोग में लाना था।17।।
मखुल शाह18 के वाद में अभियुक्त ने एक छह वर्षीय लड़के से पन्द्रह आना मूल्य के कपड़े के दो। टुकड़ों को एक आने में खरीदा। उन टुकड़ों को वह लड़का किसी तीसरे व्यक्ति के घर से उठा लाया था। यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त आपराधिक दुर्विनियोग के अपराध का दोषी माना जायेगा यदि उसे यह ज्ञात था कि सम्पत्ति लड़के के अभिभावक की थी और यह जानते हुये भी उसने बेईमानी से सम्पत्ति का दुर्विनियोग किया। इस प्रकरण में अभियुक्त को विश्वास करने का यह आधार था कि कपड़ा लड़के के अभिभावक का था और इस तथ्य को जानते हुये भी उसका बेईमानी से दुर्विनियोग किया। |
“दुर्विनियोग करता है” या ‘अपने उपयोग के लिये संपरिवर्तित करता है”, का अर्थ है दूसरे लोगों को छोड़कर अपने उपयोग के लिये अलग करना अत: वास्तविक स्वामी तथा अपने से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति के उपयोग के लिये किसी वस्तु का हटाना दुर्विनियोग के तुल्य नहीं है।19 राम दयाल20 के वाद में एक लड़की अ को एक सोने का हार पड़ा हुआ मिला और उसने उस हार को दूसरी लड़की स को पकड़ा दिया। अ के भाई ब ने स से कहा कि हार एक ऐसे व्यक्ति का है जिसे वह जानता है और इस बहाने उसने हार को अपने आधिपत्य में ले लिया। कुछ घण्टों पश्चात् पुलिस आफिसर द्वारा पूछे जाने पर उसने वही बात दुहराई किन्तु बाद में हार दे दिया। चूंकि अभियुक्त यह जानता था कि जो कुछ भी उसने कहा था वह असत्य था अत: उसे आपराधिक दुर्विनियोग के अपराध का दोषी ठहराया गया।
यू० धर बनाम झारखण्ड राज्य21 वाले मामले में बोकारो स्टील प्लांट ने कुछ काम के लिये मैसर्स टाटा आइरन एण्ड स्टील कम्पनी लि० (टिस्को) को ठेका दिया। टिस्को ने काम के लिये आपूर्ति का काम पूरा कर लिया और निर्माण कार्य मैसर्स टाटा कांस्ट्रक्शन एण्ड प्रोजेक्ट लि० (टी० सी० पी० एल०) को सौंप दिया गया। इसके बाद टी० सी० पी० एल० ने एक उप-ठेकेदार यू० धर को ठेका दे दिया जो अपीलार्थी है, काम पूरा हो जाने पर उपठेकेदार ने टी० सी० पी० एल० से भुगतान मांगा, जब उन्हें भुगतान नहीं मिला तब उन्होंने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 403, 406 420 और 120-ख के अधीन शिकायत फाइल किया। शिकायत में यह अभिकथन किया गया कि ठेकेदार टी० सी० पी० एल० को प्रश्नगत काम के बदले सेल (SAIL) से धन मिल चुका है, और उसने शिकायतकर्ता को भुगतान करने की बजाय अपने प्रयोग के लिये उसका दुर्विनियोग किया है। |
यह अभिनिर्धारित किया गया कि बोकारो स्टील और टी० सी० पी० एल० के बीच संविदा बिल्कुल अलग एवं स्वतंत्र संविदा है। दोनों संविदाओं (ठेकों) के अधीन सांविधिक बाध्यताएं भिन्न हैं, एक दूसरे से अलग हैं। पक्षकारों अर्थात् परिवादी एवं टी० सी० पी० एल० अपने बीच हुई संविदा से नियंत्रित होंगे, जिसके लिये टी० सी० पी० एल० एवं बोकारो स्टील के बीच संविदा का कोई संबंध नहीं है। इसलिये यदि बोकारो स्टील ने टी० सी० पी० एल० को संदाय कर भी दिया है तो भी इससे धन के दुर्विनियोग का अभिवचन नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह धन परिवादी का धन नहीं है। इसलिये ठेकेदार टी० सी० पी० एल० की ओर से बेईमानीपूर्ण आशय नहीं है, और उसने परिवादी की संपत्ति का अपने उपयोग के लिये दुर्विनियोग नहीं किया है। अतः आपराधिक दुर्विनियोग का मामला नहीं बनता है। इसके अतिरिक्त विवाद धन की वसूली के सम्बन्ध में होने के कारण पूर्णत: सिविल प्रकृति का है, इसलिये दाण्डिक परिवाद कायम होने योग्य नहीं पाया गया।
चल सम्पत्ति- केवल चल सम्पत्तियाँ ही आपराधिक दुर्विनियोग के अपराध की विषयवस्तु होती हैं। हिन्दू धर्म की किसी रूढ़ि के अन्तर्गत यदि किसी बैल को मुक्त विचारण हेतु छोड़ दिया गया है तो वह बैल
17. फूलन, (1907) पी० आर० नं० 11 सन् 1908.
18. (1886) 1 वेयर 470.
19. राम दयाल, (1886) पी० आर० नं० 24 सन् 1886.
20. उपरोक्त सन्दर्भ.
21, 2003 क्रि० लॉ ज० 1224 (सु० को०).
न तो किसी की सम्पत्ति है और न ही कोई व्यक्ति उस पर आधिपत्य प्रदान कर सकता है क्योंकि उसके वास्तविक स्वामी ने स्वामित्व सम्बन्धी अपने अधिकारों को त्याग दिया है और बैल को उन्मुक्त कर दिया है। जिससे वह जहाँ चाहे जाये 22
उदाहरण- एक मामले में अ ने ब से कुछ रुपये उधार लिया था। अ ने उस ऋण का भुगतान ब को कर दिया किन्तु उसने भूल से पुनः भुगतान किया। ब को या तो रुपये प्राप्त करते समय या उसके कुछ समय पश्चात् इस भूल का अहसास हो गया था फिर भी उसने रुपये अपने पास रख लिये। ब को आपराधिक दुर्विनियोग के लिये दण्डनीय घोषित किया गया।23।
इसी प्रकार एक दूसरे प्रकरण में अ, ब का किरायेदार था। वह किसी महीने के किराये का भुगतान ब को पहले ही कर चुका था। किन्तु भ्रमवश दुबारा भी भुगतान कर दिया। ब को बाद में यह पता चला कि किराये का भुगतान पहले ही हो चुका था। दुबारा किया गया भुगतान देय नहीं था। यदि यह जानते हुये कि उसे कोई किराया देय नहीं है, ब अतिरिक्त दी गई धनराशि को अपने कब्जे में रोक रखता है तो वह आपराधिक दुर्विनियोग का दोषी होगा। अ, ब को 50 रुपये देता है इसलिये कि ब उन रुपयों की एक लोक सेवक को रिश्वत के रूप में दे दे। ब वह रुपये लोक सेवक को नहीं देता है और अ को वापस करने में भी इन्कार कर देता है। अ धारा 161 में वर्णित अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है जबकि ब आपराधिक दुर्विनियोग का दोषी है।
गडगैय्या बनाम परुन सिद्देश्वर24 के वाद में यह अधिनिर्णीत हुआ था कि किसी मूर्ति या मन्दिर की सम्पत्ति उस मूर्ति या मन्दिर के प्रयोजनों हेतु उपयोग में लायी जानी चाहिये। ऐसी सम्पत्ति का बेईमानी से कोई अन्य उपयोग आपराधिक दुर्विनियोग के तुल्य होगा। जहाँ अ की नियुक्ति धन संग्रह करने के लिये की गयी थी, उसने स्वामी के ऋणदाताओं से रुपये वसूल किया और इस प्रकार एकत्रित रुपयों को अपने ही पास रख । लिया, क्योंकि उसके वेतन का भुगतान नहीं किया गया था। अ को इस धारा के अन्तर्गत दोषी घोषित किया गया।25 अ की डाक विभाग में नियुक्ति पत्र छाँटने के लिये की गयी थी। पत्रों की छंटनी करते समय उसने दो पत्रों को पत्र वितरण करने वाले चपरासी को देने के आशय से अलग रख लिया। उसका आशय यह था कि उस पत्र पर देय धनराशि को आपस में बंटवारा कर लेंगे। वह आपराधिक दुर्विनियोग और चोरी करने के। प्रयत्न का दोषी होगा 26
नारायण सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य27 के मामले में अभियुक्त एक समिति का अध्यक्ष था और उसने समिति के सदस्यों से वसूली गयी रकम अपने पास रख लिया और उसे अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद भी रखे रहा। यह निर्णय दिया गया कि इस प्रकार रुपयों का रख लेना आपराधिक न्यासभंग नहीं कहा जायेगा क्योंकि इस अपराध में सम्पत्ति को न्यस्त किया जाना आवश्यक है जो इस मामले में नहीं है। सदस्यों से वसूल की। गयी रकम उनके द्वारा देय थी जिसकी उन्हें रसीद दी गयी थी। अतएव पेटीशनर धारा 403 के अन्तर्गत आपराधिक दुर्विनियोग का अपराधी होगा।
रामकृष्ण28 के वाद में अभियुक्त एक सरकारी कर्मचारी था और उसकी नियुक्ति सरकार के निमित्त धन अभिप्राप्त कर खजाने में जमा करने के लिये हुये थी। उसने कुछ द्रव्य कई महीने तक अपने पास रोक लिया था किन्तु पकड़े जाने के भय से उसने सारा पैसा खजाने में जमा कर दिया। उसने अपनी बही में मिथ्या प्रविष्टि भी की जिससे कोई व्यक्ति उस पर सन्देह न कर सके। उसे आपराधिक दुर्विनियोग के लिये दोषी माना गया। यदि कोई निर्णीत ऋणी जिसकी खड़ी फसल कुर्क कर ली गई थी उस समय काट लेता है जबकि कुर्की प्रभावकारी थी तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा। एक मामले में ब और स दोनों रेलवे प्लेटफार्म पर खड़े थे। ब के पास इलाहाबाद से दिल्ली तक का टिकट था तथा स के पास इलाहाबाद से कानपुर तक का। ब
22, बन्धू, (1885) 8 इला० 51. ।
23. शामसुन्दर, (1870) 2 एन० डब्ल्यू० पी० 475.
24. (1897) अनरिपोर्टेड क्रिमिनल केसेज 919.
25. विस्सेसर राय, (1969) 11 डब्ल्यू आर० (क्रि०) 51.
26. वेंकटसामी, (1890) 14 मद्रास 229.
27. 1986 क्रि० लॉ ज० 1481 (म० प्र०).
28. (1888) 12 मद्रास 49.
ने जो एक अनपढ़ महिला थी अपना टिकट म को यह देखने के लिये पकड़ा दिया कि वह टिकट वैध है अथवा नहीं। स ने ब को उसका टिकट लौटाने के बजाय अपना टिकट दे दिया। स को आपराधिक दुर्विनियोग के लिये न कि छल के लिये दण्डित किया गया।29 जहाँ कोई रेलवे टिकट खरीदने की इच्छुक महिला टिकट खिड़की पर लगी भीड़ देखकर, अ जो खिड़की के नजदीक था, से अपने लिये भी एक टिकट खरीदने का निवेदन करती है और उसे दस रुपये का एक नोट देती है तथा अ उस रुपये को चुराने के आशय से उसे ले लेता है और टिकट खरीदने के बजाय रुपया लेकर भाग जाता है। टामसन30 के वाद के आधार पर ऐसा व्यक्ति चोरी के अपराध का दोषी होगा क्योंकि उस स्त्री ने अपने रुपयों पर से कब्जा नहीं छोड़ा था किन्तु उसने अजनबी के हाथ का अपने हाथ के स्थान पर उपयोग किया था। उस सम्पत्ति का चोरी करने के समय, जहाँ से वह ली गयी या हटाई गयी है, किसी व्यक्ति के कब्जे में होना जरूरी है। किन्तु मेरे विचार से इस प्रकरण में वह व्यक्ति चोरी नहीं वरन् आपराधिक दुर्विनियोग का दोषी होगा, क्योंकि उसने उस रुपये का प्रयोग किया जिसका कब्जा उसे निर्दोष रूप से प्राप्त हुआ था। भारतीय विधि में चोरी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 378 में परिभाषित है जिसके अनुसार सम्पत्ति को दूसरे के कब्जे में बेईमानी पूर्ण आशय से लिया जाय। इस मामले में रुपया बेईमानी पूर्ण आशय से नहीं लिया गया था। वरन् उस महिला द्वारा स्वेच्छा से उस व्यक्ति को दिया गया था। |
मेरी बनाम ग्रीन31 के वाद में एक व्यक्ति ने एक सार्वजनिक नीलामी में एक दराजयुक्त मेज खरीदा जिसमें उसे एक पर्स मिला जो रुपयों से भरा था। उसने उस पर्स को अपने पास रख लिया तथा रुपयों को अपने उपयोग के लिये संपरिवर्तित कर लिया। विक्रय के समय न तो विक्रेता को और न ही क्रेता को इस बात का कोई ज्ञान था कि मेज की दराज में कोई वस्तु है। यदि विक्रेता को यह अभिव्यक्त सूचना थी कि केवल मेज बेची जा रही है। मेज की दराज में रखी किसी वस्तु का विक्रय नहीं हो रहा है या उसके पास ऐसा विश्वास करने का पर्याप्त आधार था तो क्रेता द्वारा रुपयों का संपरिवर्तन इस धारा के अन्तर्गत कोई अपराध न होकर चोरी का अपराध होगा। किन्तु यदि क्रेता को ऐसा विश्वास करने के लिये युक्तियुक्त आधार था कि उसने मेज को उसमें रखी किसी वस्तु, यदि कोई थी, के साथ खरीदा था तो वह चोरी का अपराधी नहीं होगा।
स्पष्टीकरण 1-स्पष्टीकरण संख्या एक उन मामलों को इंगित करता है जिनमें सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग होता है तथा यह भी स्पष्ट करता है कि धारा 403 के अन्तर्गत दुर्विनियोग में अस्थायी तथा स्थायी । दोनों ही प्रकार के दुर्विनियोग आते हैं।32
स्पष्टीकरण 2-यह स्पष्टीकरण इस तथ्य को सुस्पष्ट करता है को कोई परित्यक्त वस्तु दुर्विनियोग की विषय-वस्तु नहीं हो सकती।33 इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये यह आवश्यक है कि सम्परिवर्तित वस्तु किसी व्यक्ति के स्वामित्व में हो। यह स्पष्टीकरण कोई वस्तु या सम्पत्ति अभिप्राप्त करने वाले व्यक्ति से यह अपेक्षा करता है कि वह ऐसी सम्पत्ति को सम्परिवर्तित करने के पूर्व उसके स्वामी का पता लगाने का प्रयास करे यदि उसके पास ऐसे साधन हैं। किसी सम्पत्ति को पाने वाले व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह एक युक्तियुक्त समय तक सम्पत्ति के स्वामी को सम्पत्ति की मांग करने का अवसर प्रदान करे और कोई व्यक्ति मांग नहीं करता है तभी वह उस सम्पत्ति को सम्परिवर्तित कर सकता है। सीता34 के वाद में अभियुक्त को एक खुली जगह में सोने की एक मुहर प्राप्त हुई। इस मुहर को दूसरे दिन उसने एक सर्राफ को उसके पूर्ण मूल्य पर बेच दिया और इस प्रकार प्राप्त मुद्रा को अपने उपयोग के लिये रख लिया। अभियुक्त को आपराधिक दुर्विनियोग के अपराध का दोषी नहीं माना गया क्योंकि उन परिस्थितियों की कोई सूचना प्राप्त नहीं थी जिनमें वह सिक्का खोया था और यह सम्भाव्य था कि सिक्के के वास्तविक स्वामी ने उसका परित्याग कर दिया रहा हो।
29. राजा हुसैन, (1904) 25 ए० डब्ल्यू० एन० 9.
30. टामसन, 32 एल० जे० (एस० सी०) 50
31. . (1914) 7 एम० एण्ड डब्ल्यू ० 623.
32. झन्डू, (1886) पी० आर० नं० 27 सन् 1886.
33. बन्धू, (1885) 8 इला० 51.
34. (1893) 18 बाम्बे 212.
क एक 100 (सौ) रुपये का नोट सड़क पर पड़ा पाता है जिसे वह अपने उपयोग में लगा लेता है। क किसी अपराध का दोषी नहीं होगा जब तक कि यह न दर्शाया जाय कि क युक्तियुक्त प्रयास द्वारा नोट के वास्तविक मालिक का पता लगा सकता था। इसी प्रकार क को राजमार्ग पर पड़ी हुई एक अंगूठी मिलती है जो किसी के कब्जे में नहीं है। क उसे उठा लेता है। यहाँ क आपराधिक दुर्विनियोग अथवा अन्य किसी अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि अंगूठी किसी के कब्जे में नहीं थी और वह युक्तियुक्त ढंग से वास्तविक मालिक का पता भी नहीं लगा सकता था। परन्तु स्पष्टीकरण 2 के दृष्टान्त (च) के अनुसार यदि क को सड़क पर एक मूल्यवान अंगूठी पड़ी मिलती है और वह उसे उठा लेता तथा तुरन्त बेच देता है तो आपराधिक दुर्विनियोग का दोषी होगा क्योंकि उसने अंगूठी के स्वामी को खोजने का प्रयास किये बिना अंगूठी बेच दिया।
आपराधिक दुर्विनियोजन और चोरी में अन्तर (The difference between criminal misappropriation and theft)
(1) चोरी में कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के कब्जे में से कोई चल सम्पत्ति चोरी से ले जाता है और अपराध उस समय पूर्ण हो जाता है जिस समय सम्पत्ति हटायी जाती है।
आपराधिक दुर्विनियोग का अपराध उस समय भी गठित होता है जबकि आधिपत्य निरपराधपूर्ण रीति से अभिप्राप्त किया जाता है किन्तु तत्पश्चात् आशय परिवर्तन या किसी नये तथ्य के ज्ञान, जिससे कि पक्षकार पूर्वतः अवगत नहीं था, के कारण सम्पत्ति का कब्जे में रखना दोषपूर्ण या कपटपूर्ण बन जाता है।
(2) दूसरे की सम्पत्ति को अपनाने का बेईमानीपूर्ण आशय चोरी तथा आपराधिक दुर्विनियोग दोनों में सामान्य है किन्तु चोरी में यह आशय सम्पत्ति हटाने जाने के द्वारा पर्याप्त रूप से सुस्पष्ट हो जाता है परन्तु आपराधिक दुर्विनियोग में इसे वास्तविक दुर्विनियोग या संपरिवर्तन द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
404, ऐसी सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग जो मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके कब्जे में थी- जो कोई किसी सम्पत्ति को, यह जानते हुए कि ऐसी सम्पत्ति किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उस मृत व्यक्ति के कब्जे में थी, और तब से किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं रही है, जो ऐसे कब्जे का वैध रूप से हकदार है, बेईमानी से दुर्विनियोग करेगा या अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि वह अपराधी, ऐसे व्यक्ति की मृत्यु के समय लिपिक या सेवक के रूप में उसके द्वारा नियोजित था, तो कारावास सात वर्ष तक का हो सकेगा।
दृष्टान्त
य के कब्जे में फर्नीचर और धन था। वह मर जाता है। उसका सेवक क, उस धन के किसी ऐसे व्यक्ति के कब्जे में आने से पूर्व, जो ऐसे कब्जे का हकदार है, बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
टिप्पणी
इस धारा को किसी विशिष्ट प्रकार की सम्पत्ति को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया है। यह धारा उस मध्यान्तर की अवधि में सम्पत्ति की सुरक्षा प्रदान करती है जो सम्पत्ति धारक की मृत्यु के पश्चात् और सम्पत्ति को किसी व्यक्ति या प्राधिकृत अधिकारी के कब्जे में आने के पूर्व व्यतीत होती है।35
इस धारा में प्रयुक्त सम्पत्ति शब्द के अर्थ के विषय में एक मत नहीं है। बम्बई36 तथा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों के अनुसार इस शब्द के अन्तर्गत केवल चल सम्पत्ति आती है किन्तु इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अनुसार इसमें चल और अचल दोनों ही प्रकार की सम्पत्तियाँ आती हैं।28
35. एस० एण्ड एम० 364.
36. गिरधर धर्मदास, (1869) 6 बी० एच० सी० (क्रि० केसेज) 33.
37. धुलजी बनाम कन्चन, ए० आई० आर० 1956 एम० बी० 49.
38. दाऊद खाँ, (1925) 24 ए० एल० जे० आर० 153.
उस मामले में जहाँ अ ने किसी महिला के गहने प्रस्तुत किये, जिसकी हत्या कर दी गई थी। गहने हत्या के पाँच दिन बाद प्रस्तुत किये गये और गहने उसके कब्जे में कैसे आए, इस बाबत कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। इस मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि अ द्वारा जो गहने प्रस्तुत किये गये, वे अ द्वारा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उस महिला के शरीर से बरामद किये गये होंगे, जिसकी हत्या कर दी गई थी। अ के पास गहने कैसे पहुँचे, इस बाबत उसने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। सम्भवत: गहने पुलिस या लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत किये गये होंगे। यदि ऐसी स्थिति है तो वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 179 के अधीन दायी होगा जो किसी व्यक्ति के कृत्य को लोक सेवक के, जो प्रश्न करने के लिये प्राधिकृत है, प्रश्नों का उत्तर देने से इनकार करता है, दण्डनीय बनाता है। चूंकि गहने ऐसी महिला के हैं, जिसकी हत्या की गई है, अत: अ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 404 के अधीन आपराधिक दुर्विनियोग के लिये दायी होगा जो किसी मृतक के । कब्जे की संपत्ति के दुर्विनियोग को अपराध मानती है।
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