Indian Penal Code 1860 Offences Relating to Elections LLB Notes
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अध्याय 9-क।
निर्वाचन सम्बन्धी अपराधों के विषय में
(OF OFFENCES RELATING TO ELECTIONS)
171क. ‘अभ्यर्थी‘, ‘निर्वाचन अधिकार‘ परिभाषित–इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए
1[(क) “अभ्यर्थी” से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्दिष्ट किया गया है;]
(ख) “निर्वाचन अधिकार” से किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में खड़े होने या खड़े न होने या अभ्यर्थना से अपना नाम वापस लेने या मत देने या मत देने से विरत रहने का किसी व्यक्ति का अधिकार अभिप्रेत है।
टिप्पणी
इस अध्याय में रिश्वत लेने, अनुचित प्रभाव डालने, छद्म वेश धारण करने तथा अनाचार को दण्डनीय बनाया गया है यदि इनका इस्तेमाल संसद् तथा लोक प्राधिकारियों के चुनाव (Election) में किया जाता है। यह अध्याय अनाचार (Mal-practice) के दोषी व्यक्तियों को एक विशिष्ट अवधि के लिये लोकदायित्व के पद को धारण करने से निषिद्ध करता है।
171 ख. रिश्वत-(1) जो कोई
- किसी व्यक्ति को इस उद्देश्य से परितोषण देता है कि वह उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किसी निर्वाचन अधिकार का प्रयोग करने के लिये उत्प्रेरित करे या किसी व्यक्ति को इसलिये इनाम दे कि उसने ऐसे अधिकार का प्रयोग किया है, अथवा ।
- (ii) स्वयं अपने लिये या किसी अन्य व्यक्ति के लिये कोई परितोषण ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिये या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए उत्प्रेरित करने या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करने के लिए इनाम के रूप में प्रतिगृहीत करता है,
वह रिश्वत का अपराध करता है : परन्तु लोकनीति की घोषणा या लोक-कार्यवाही का वचन इस धारा के अधीन अपराध न होगा।
(2) जो व्यक्ति परितोषण देने की प्रस्थापना करता है या देने को सहमत होता है, या उपाप्त करने की प्रस्थापना या प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण देता है।
(3) जो व्यक्ति परितोषण अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करने को सहमत होता है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण प्रतिगृहीत करता है और जो व्यक्ति वह बात करने के लिए, जिसे करने का उसका आशय नहीं है, हेतु स्वरूप, या जो बात उसने नहीं की है, उसे करने के लिये इनाम के रूप में परितोषण प्रतिगृहीत करता है, यह समझा जाएगा कि उसने परितोषण को इनाम के रूप में प्रतिगृहीत किया है।
टिप्पणी
इस धारा में किसी निर्वाचन में रिश्वत के अपराध को परिभाषित किया गया है। उपधारा (1) में परिभाषित रिश्वत के अन्तर्गत रिश्वत देने का प्रस्ताव या इसकी सहमति तथा परितोषण उपाप्त करने का प्रयत्न
- 1975 के अधिनियम सं० 40 की धारा 9 द्वारा प्रतिस्थापित.
भी सम्मिलित है। सत्कार करना रिश्वत के समतुल्य होगा यदि नाश्ता विधि द्वारा अपेक्षित आशय से दिया जाता है या स्वीकार किया जाता है। |
दीपक गनपत राव सालुन्के बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र के वाद में महाराष्ट्र की शिवसेना भारतीय जनता पार्टी सहभागी सरकार के उपमुख्यमंत्री द्वारा एक जनसभा में यह बयान दिया गया कि यदि रिपब्लिकन पार्टी आफ इण्डिया संसद के चुनाव में शिवसेना भाजपा गठबन्धन का समर्थन करेगी तो वे यह सुनिश्चित करेंगे कि रिपब्लिकन पार्टी आफ इण्डिया का एक सदस्य राज्य में उप मुख्य मंत्री बनाया जाय। यह अभिनित किया गया कि उपरोक्त अभिकथन भा० द० सं० की धारा 171-ख के अधीन परिभाषित घूस (bribery) की कोटि में नहीं आता है, क्योंकि ऐसा बयान किसी व्यक्ति विशेष के लिये प्रस्ताव (offer) नहीं है बल्कि यह प्रस्ताव रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया को है और शर्त यह है कि वह दल शिवसेना-भाजपा गठबन्धन को चुनाव में समर्थन करे। पब्लिक प्लेटफार्म से दिया गया राजनैतिक बयान के अलावा कुछ भी नहीं है जिसमें पार्टी की नीति का वर्णन किया गया है कि यदि कोई अन्य दल शिवसेना भाजपा गठबन्धन को संसदीय चुनाव में समर्थन देती है तो ऐसी दूसरी पार्टी अर्थात् रिपब्लिकन पार्टी आफ इण्डिया राजनैतिक सत्ता में हिस्सेदार बनाई जायेगी। इस बयान में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह संकेत देता हो कि किसी व्यक्ति को कोई प्रस्ताव (offer) दिया गया है। साथ ही इस बयान में ऐसा भी नहीं है कि किसी को अपने मताधिकार का एक विशेष प्रकार से प्रयोग करने हेतु उत्प्रेरित किया जा रहा हो।
इस बयान के द्वारा किसी व्यक्ति पर अपने मताधिकार का प्रयोग करने के सम्बन्ध में कोई ऐसा दबाव नहीं डाला जा रहा था कि वह चुनाव में एक प्रत्याशी के रूप में खड़ा हो अथवा न खड़ा हो अथवा प्रत्याशी बनने से अपने को अलग रखे अथवा चुनाव में अपना मत दे या न दे। अतएव चुनाव के दौरान किसी राजनीतिक दल का समर्थन मांगना और उस दल को समर्थन के बदले सत्ता में भागीदार बनाने का प्रस्ताव को जैसा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 171-ख में अभिप्रेत है, परितोषण (gratification) देना नहीं कहा जा सकता है।
आगे यह भी इंगित किया गया है कि जब तक राजनीतिक दलों के बीच ऐसी लेन देन की नीति न होगी तब तक ऐसे राजनीतिक गठबन्धन जो अब गठबन्धन सरकारों के गठन हेतु आवश्यक हो गये हैं सम्भव नहीं होंगे। जब कोई एक दल सदन में अपने आप बहुमत नहीं प्राप्त कर सकता है तो गठबन्धन सरकार ही एकमात्र वैकल्पिक समाधान बचता है। इन परिस्थितियों के आलोक में निर्णय करने पर उप मुख्य मंत्री का बयान भारतीय दण्ड संहिता की धारा 171-ख के अधीन उत्कोच (bribery) की श्रेणी में नहीं आता है। |
171-ग. निर्वाचनों में असम्यक् असर डालना-(1) जो कोई किसी निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में स्वेच्छया हस्तक्षेप करता है या हस्तक्षेप करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में असम्यक असर डालने का अपराध करता है।
(2) उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जो कोई
(क) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को, या किसी ऐसे व्यक्ति को जिससे अभ्यर्थी या मतदाता हितबद्ध है, किसी प्रकार की क्षति करने की धमकी देता है, अथवा
(ख) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करता है या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करता है कि वह या कोई व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, दैवी अप्रसाद या आध्यात्मिक परिनिन्दा का भाजन हो जाएगा या, बना दिया जाएगा,
यह समझा जाएगा कि वह उपधारा (1) के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अभ्यर्थी या मतदाता के निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में हस्तक्षेप करता है।
(3) लोक नीति की घोषणा या लोक कार्यवाही का वचन या किसी वैध अधिकार का प्रयोग मात्र, जो किसी निर्वाचन अधिकार में हस्तक्षेप करने के आशय के बिना है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत हस्तक्षेप करना नहीं समझा जाएगा।
- 1999 क्रि० लॉ ज० 1224 (एस० सी०).
टिप्पणी
इस धारा में किसी चुनाव में डाले गये अनुचित प्रभाव (undue influence) को परिभाषित किया गया है। किसी चुनाव में अनुचित प्रभाव से अभिप्रेत है किसी व्यक्ति के चुनाव में खड़े होने या न खड़े होने, चुनाव में अपना नामांकन वापस लेने, वोट देने या वोट देने से विरत रहने के अधिकार में स्वेच्छया हस्तक्षेप करना या हस्तक्षेप का प्रयत्न करना। पदावली “निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग” से यह तात्पर्य नहीं है कि मतदाता को प्रभावित न किया जाय। इस पदावली को लोकतंत्रीय सोसाइटी में होने वाले चुनाव के संदर्भ में समझा जाना चाहिये जिसमें उम्मीदवार तथा उसके समर्थक समर्थन प्राप्त करने के लिये सभी वैध तथा न्यायोचित साधनों का इस्तेमाल करने को स्वतन्त्र है। एक उम्मीदवार या उसके समर्थकों द्वारा समर्थन प्राप्त करने के लिये अपने अधिकार का प्रयोग निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में न तो हस्तक्षेप करता है और न ही इसका प्रयत्न करता है। | राजदेव बनाम गंगाधर के वाद में एक उम्मीदवार ने यह घोषित किया कि वह चलन्ती विष्णु तथा भगवान जगन्नाथ का प्रतिनिधि था तथा जो कोई उसके पक्ष में वोट नहीं देगा वह भगवान जगन्नाथ तथा हिन्दू धर्म का पापी होगा। यह निर्णय दिया गया कि इस तरह की अफवाह इस धारा तथा धारा 171-च के अन्तर्गत अपराध है।
171-घ. निर्वाचनों में प्रतिरूपण–जो कोई किसी निर्वाचन में किसी अन्य व्यक्ति के नाम से, चाहे वह जीवित हो या मृत, या किसी कल्पित नाम से, मत-पत्र के लिए आवेदन करता या मत देता है, या ऐसे निर्वाचन में एक बार मत दे चुकने के पश्चात् उसी निर्वाचन में अपने नाम से मत-पत्र के लिए आवेदन करता है, और जो कोई किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रकार से मतदान को दुष्प्रेरित करता है, उपाप्त करता है या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में प्रतिरूपण का अपराध करता है।
परन्तु इस धारा में की कोई बात, ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जिसे एक निर्वाचक के लिए प्रोक्सी के रूप में किसी विधि में तत्समय प्रभाव से जब तक कि वह प्रोक्सी की तरह वोट देने के लिए अधिकृत न किया गया हो, लागू नहीं होगी।
टिप्पणी
यह धारा निर्वाचन में प्रतिरूपण” को परिभाषित करती है। कोई व्यक्ति जो एक दूसरे व्यक्ति के नाम में या एक काल्पनिक नाम से मतदान करने का प्रयत्न करता है, या एक व्यक्ति जो दुबारा मतदान करने का प्रयत्न करता है या जो इसका दुष्प्रेरण करता है या ऐसे प्रकार के मतदान को उपाप्त करता है या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, प्रतिरूपण का दोषी है। इस धारा को लागू होने के लिये आवश्यक है कि अभियुक्त भ्रष्ट प्रयोजन (motive) से प्रेरित रहा हो।6।
धारा 171-घ का परन्तुक, जो निर्वाचन विधियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2003 के द्वारा अन्त:स्थापित किया गया है, का यह प्रभाव है कि परोक्ष (प्राक्सी) मतदान जो पूर्व में अविधिमान्य हुआ होता उसे अब विधिमान्य माना जायेगा यदि यह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो किसी मतदाता के परोक्षी के रूप में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन प्राधिकृत किया गया है। अब इस संशोधन के पश्चात् ऐसा परोक्षी (प्राक्सी) मतदाता इस धारा के अधीन निर्वाचन से प्रतिरूपण के अपराध का दोषी नहीं होगा।
171-ङ, रिश्वत के लिए दण्ड– जो कोई रिश्वत का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भी के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाए।
परन्तु सत्कार के रूप में रिश्वत केवल जुर्माने से ही दण्डित की जाएगी।
- शिव कृपाल सिंह बनाम बी० पी० गिरी, (1970) 2 एस० सी० सी० 567.
- ए० आई० आर० 1964 उड़ीसा 1.
- परन्तुक अधि० सं० 24 वर्ष 2003 द्वारा अन्त:स्थापित (देखें; धारा 5) ।
- बैंकैटया, (1929) 53 मद्रास 444.
स्पष्टीकरण-‘सत्कार’ से रिश्वत का वह रूप अभिप्रेत है जो परितोषण, खाद्य, पेय, मनोरंजन या रसद के रूप में है।
टिप्पणी
यह धारा रिश्वत के लिये दण्ड का प्रावधान प्रस्तुत करती है। सत्कार के रूप में रिश्वत केवल जुर्माने द्वारा दण्डनीय है।
171-च. निर्वाचन में असम्यक असर डालने या प्रतिरूपण के लिए दण्ड—- जो कोई किसी निर्वाचिन में असम्यक असर डालने या प्रतिरूपण का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा किसी निर्वाचन में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण के लिये दण्ड का निर्धारण करती है।
171-छ, निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन— जो कोई निर्वाचन के परिणाम पर प्रभाव डालने के आशय से किसी अभ्यर्थी के वैयक्तिक शील या आचरण के सम्बन्ध में तथ्य का कथन तात्पर्यित होने वाला कोई ऐसा कथन करेगा या प्रकाशित करेगा, जो मिथ्या है, और जिसका मिथ्या होना वह जानता है या विश्वास करता है अथवा जिसके सत्य होने का वह विश्वास नहीं करता है, वह जुर्माने से दंडित किया। जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा किसी उम्मीदवार के वैयक्तिक चरित्र या आचरण के सम्बन्ध में मिथ्या कथन के लिये दण्ड का प्रावधान प्रस्तुत करती है। दुराचरण के सामान्य आक्षेप को इस धारा के अन्तर्गत अपराध नहीं माना जा सकता। अपराध होने के लिये यह आवश्यक है कि दुराचरण के किसी विशिष्ट कार्य का आरोप लगाया गया हो।’
171-ज. निर्वाचन के सिलसिले में अवैध संदाय–जो कोई किसी अभ्यर्थी के साधारण या विशेष लिखित प्राधिकार के बिना ऐसे अभ्यर्थी का निर्वाचन अग्रसर करने या निर्वाचन करा देने के लिए कोई सार्वजनिक सभा करने में या किसी विज्ञापन, परिपत्र या प्रकाशन पर या किसी भी अन्य ढंग से व्यय करेगा या करना प्राधिकृत करेगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा :
परन्तु यदि कोई व्यक्ति, जिसने प्राधिकार के बिना कोई ऐसे व्यय किए हों, जो कुल मिलाकर दस रुपए से अधिक न हों, उस तारीख से जिस तारीख को ऐसे व्यय किए गए हों, दस दिन के भीतर उस अभ्यर्थी का लिखित अनुमोदन अधिप्राप्त कर ले, तो यह समझा जाएगा कि उसने ऐसे व्यय उस अभ्यर्थी के प्राधिकार से किए हैं।
टिप्पणी
इस धारा के अन्तर्गत एक उम्मीदवार के चुनाव के सिलसिले में किसी व्यक्ति द्वारा उम्मीदवार की सहमति के बिना व्यय किया जाना दण्डनीय है।
171-झ, निर्वाचन लेखा रखने में असफलता– जो कोई किसी तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा या विधि का बल रखने वाले किसी नियम द्वारा इसके लिए अपेक्षित होते हुए कि वह निर्वाचन में या निर्वाचन के सम्बन्ध में किए गए व्ययों का लेखा रखे, ऐसा लेखा रखने में असफल रहेगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपये तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी । किसी निर्वाचन या उसके सम्बन्ध में किये गये व्यय का लेखा रखने वाले व्यक्ति के विफल रहने पर उसके लिये यह धारा दण्ड का प्रावधान प्रस्तुत करती है किन्तु इसके लिये आवश्यक है कि ऐसा लेखा रखा जाना विधि द्वारा या विधि का बल रखने वाले नियम द्वारा अपेक्षित है।
- राधाकृष्ण अय्यर, (1932) 55 मद्रास 791.
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