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Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 8 LLB Notes

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सामान्य उद्देश्य के अग्रसरण में हत्या :

राम जी राय बनाम बिहार राज्य के वाद में दिनांक 21-8-1980 को राजनाथ और बैजनाथ दोनों भाई अपने खेत फसल काटने गये थे। अपीलांटगण भरत राय और गनेश राय के साथ मिलकर उक्त दोनों भाइयों को बलपूर्वक एक नाव में बैठाकर ले गये और नाव को स्वतंत्र रूप से जाने के लिये छोड़ दिया। नाव के कुछ दूर जाने के पश्चात् वे लोग मृतक पर प्रहार करने लगे। परन्तु राजनाथ किसी तरह मौका पाकर नाव से कूद गया और ऊपरी जमीन की ओर सहायता के लिये रोता शोर मचाता हुआ तैरने लगा। अभियुक्त गण के हमले से बैजनाथ की मृत्यु हो गयी और उसका शव नाव से कहीं दूर ले जाया गया। इस घटना को अभि० साक्षी०-1 सत्यानन्द सिंह, अभि० सा० नं० 2 कामेश्वर सिंह और अभि० सा० नं० 5 पंचम सिंह ने देखा था। बाढ़ और रात्रि का समय होने के कारण रात्रि में पुलिस को घटना की सूचना नहीं दी जा सकी परन्तु राजनाथ द्वारा सुबह सूचना दी गयी। ऐसा आरोपित है कि हत्या भूमि सम्बन्धी विवाद के कारण प्रतिकार में की गयी थी। प्रथम सूचना के अनुसार अभियुक्तों में से दो लोग देशी पिस्तौल लिये थे और शेष लोग गंडासा, लाठी और भाले से लैश थे। कुल मिलाकर चार अभियुक्त थे। मृतक के शव को पांच दिन के बाद गांव के चौकीदार अभि० सा० 4 के देखने पर बरामद किया गया जिसने इसकी सूचना प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाने वाले राजनाथ को दिया, जिसने शव की पहचान किया। विचारण न्यायालय द्वारा सभी अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा302 सपठित 34 और धारा 201 के अधीन अपराध के लिये दोषसिद्ध किया गया उन्हें धारा 302/34 के अन्तर्गत अपराध हेतु आजीवन कारावास और धारा 201 के अधीन अपराध हेतु 5 वर्ष के सश्रम कारावास से दण्डित किया गया। अन्त्य परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार तेजधार वाले हथियारों का काटने में प्रयोग किया गया था। दो अभियुक्तों के पास तेज धार वाले हथियार थे। उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिधारित किया गया कि अपीलांट अभियुक्त गण समूह में आये और उनमें से कुछ ने मृतक पर अपने पास लिये हथियारों से हमला शरू कर दिया। इस प्रकृति के मामले में प्रथम सूचना देने वाले के लिये प्रत्येक अभियुक्त द्वारा अलग-अलग कारित किये गये कार्यों का ठीक-ठीक उल्लेख करना सम्भव नहीं होता है। अतएव इस प्रकृति के मामलों में धारा 34 स्पष्टतया आकर्षित होती है। अतएव अपील खारिज कर दी गयी और उसके दण्ड को यथावत रखा गया। उमेश सिंह बनाम स्टेट आफ बिहार के वाद में अपीलांट अन्य अनेक लोगों के साथ जिनकी संख्या लगभग 20 थी भोला सिंह के खलिहान में आया जहाँ पर वह और उसके परिवार के लोग धान की दंवाई (Threshing) कर रहे थे। उन लोगों ने भोला सिंह के खलिहान से धान उठा ले जाने का प्रयास किया। उपेन्द्र सिंह ने यह धमकी भी दिया कि धान ले जाने से रोकने के प्रयास के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही की जायेगी जिसमें किसी की मृत्यु भी हो सकती है। तत्पश्चात् राजेन्द्र सिंह ने लाठी से भोला सिंह को मारा और उपेन्द्र सिंह ने थोड़ा पीछे हटकर भोला सिंह पर बन्दूक से गोली चलाया जिसके फलस्वरूप भोला सिंह दर्द से तड़पते हुये 3ख. (2011) 4 क्रि० लॉ ज० 4243 (एस० सी०). |

  1. 2006 क्रि० लॉ ज० 4630 (एस० सी०).
  2. 2000 क्रि० लॉ ज० 3167 (एस० सी०).

जमीन पर गिर पड़ा। राजेन्द्र सिंह और भागवत दयाल सिंह ने सर्दू सिंह पर गोली चलाई और इस मामले अपीलांट अरविन्द सिंह ने भाला से उसे चोट पहुँचाई । उमेद सिंह और शिवनन्दन सिंह ने राजदेव सिंह गोली चलाया जिसके फलस्वरूप वह गिर पड़ा। जब भोला सिंह की पत्नी धर्मशिला अपने लगभग डेढ़ व बच्चे रिंकू को गोद मे लिये हुये खलिहान में आई तो शिव नन्दन सिंह ने बच्चे को छीन लिया और जमीन पटक दिया जिसके परिणामस्वरूप बच्चा मर गया। अन्वेषण के पश्चात् पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट । नामजद सात लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया, क्योंकि अन्वेषण के दौरान तीन लोगों की मत्य । चुकी थी। विचारण न्यायालय ने शिवनन्दन सिंह और उपेन्द्र सिंह को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अन्तर्गत दोषसिद्धि प्रदान कर मृत्यु दण्ड की सजा दी। अभियुक्तों में से एक सत्येन्द्र को दोषमुक्त कर दिया गया और शेष अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 सपठित धारा 148 और आयुध अधिनियम की धारा 27 के अधीन दोषसिद्ध किया गया। अपील में उच्च न्यायालय द्वारा जिन दो अभियुक्तों को मृत्यु दण्ड दिया गया था, उसे आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया गया और दोषसिद्धि को यथावत् रखा गया ।। यह निर्णीत किया गया कि अभियुक्तगण विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य थे जो कि लाठियों और बन्दूकों से सुसज्जित थे और यह घोषणा की गई थी कि यदि धान को ले जाने में किसी प्रकार का अवरोध पैदा किया गया तो वे मृतक के लोगों में से किसी की जान भी ले सकते हैं और धान उठा ले जायेंगे। मृतक की मृत्यु लाठी और बन्दूक की गोली से लगी चोटों से कारित हुई थी। यह निर्णय दिया गया कि इन परिस्थितियों में अभियुक्तगण को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 की सहायता से दोषसिद्धि प्रदान किया जाना अवैध नहीं था।6 रामेश्वर पाण्डे बनाम बिहार राज्य वाले मामले में 28 अगस्त, 1994 को लगभग 9 बजे पूर्वान्ह जब मृतक परिवार के पाँच सदस्य नाश्ता करके घर के दालान में बैठे थे तभी 18-20 लोग खाकी वर्दी पहने हुये हथियारों से लैस आए और उन्हें घेर लिया। अभि० सा० 8 घर की एक महिला सदस्य दरवाजे तक आई और इतने अधिक लोगों को आग्नेय अस्त्रों से सुसज्जित देख कर दरवाजा बंद कर लिया और घर के भीतर की ओर भागी। तीन अन्य महिला सदस्यों के साथ वह मृतकों में से एक की लाइसेंसी बंदूक और गोलियों का बंडल लेकर घर की छत पर चढ़ गई। उसने और अन्य महिला सदस्यों ने देखा कि जिन लोगों ने मृतकों को घेर रखा था, उन्होंने उनके हाथ कमर के पीछे बांध दिये थे और बंदूक तथा गोलियाँ मांग रहे थे। अभि० सा० 8 के स्वसुर ने उससे आग्रह किया कि वह बन्दूक दे दे वरना वे सभी मार दिये जाएंगे। उसकी सलाह मान कर अभि० सा० 8 ने छत पर से बंदूक और गोलियाँ फेंक दिया। भीड़ के एक सदस्य ने बंदूक और गोलियाँ उठा लिया, इसके बाद परिवार के पांचों सदस्यों को जिनके हाथ बंधे थे, भीड़ अपने साथ दक्षिण की ओर ले गई। थोड़ी ही देर में महिला सदस्यों ने 10-15 राउण्ड गोली चलने की आवाज सुना। बाद में उन्हें सूचना मिली कि सभी पांचों सदस्यों की गोली मार कर हत्या कर दी गई। पास के बगीचे में शव पाए गये। यह महिला सदस्य अभि० सा० 5, 6, 7 और 8 हैं। आने जाने वालों से सूचना पा कर कि कोई घटना घटी है, पुलिस गांव में पहुँची और पुलिस उपनिरीक्षक के कहने पर अभि० सा० 5 ने दरवाजा खोला और उसे घटना के बारे में बताया जिसे लिख लिया गया और उसी के आधार पर प्रथम इत्तिला रिपोर्ट तैयार की गई। अभि० सा० 1 संजय जो अभि० सा० 8 का पुत्र है ने बयान दिया कि उसने वस्तुतः पूरी घटना को देखा है जिसमें पाँचों सदस्यों को गोली से मार दिया गया था और तब उसने अपने चाचा अभि० सा० 4 को इसकी सूचना दिया। विचारण न्यायालय ने चारों महिला सदस्यों अभि० सा० 5 से अभि० सा० 8 के साक्ष्य के आधार पर अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 के साथ पठित धारा 300, 384 के अधीन दोषसिद्धि किया, जिसे उच्च न्यायालय ने पुष्ट कर दिया। सुबल घोरई बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल के वाद में घटनास्थल पर शंख की शेल बजाने से ध्वनि को सुनकर सभी अभियुक्त एकत्र हुये और आह्वान किया। उसने अन्य लोगों को मृतक को मार डालने का प्रबोधन किया। अभियुक्त ने मृतक को मार डालने के बाद उनके घरों में आग लगा दिया। प्रहार के बाद लाशी (dead bodies) को उठाकर बांध में फेंक दिया गया। यह अधिनिर्णीत किया गया कि अभियुक्त का हमले के पहले, हमले के समय और हमले के बाद और अपराध स्थल पर ऐसा आचरण (conduct) स्पष्ट संकेत

  1. 2000 क्रि० लॉ ज० 3167 (एस० सी०).
  2. 2005 क्रि० लॉ ज० 1407 (सु० को०).

7क. (2013) III क्रि० लाँ ज० 3626 (एस० सी०). करता है कि वे अवैध जमाव के सदस्य थे और उनका उद्देश्य समान था। अतएव वे धारा 149 की सहायता से। हत्या कारित करने के लिये दोषसिद्धि हेतु दायित्वाधीन थे। यह अभिधारित किया गया कि ऊपर वर्णित परिस्थितियों में दोषी होने के अतिरिक्त अन्य कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। अभिलेख पर ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है जो इस बात को अप्रत्यक्ष रूप से भी सुझाता हो कि अपराध किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा कारित किया गया अथवा कुछ व्यक्ति जो प्रारम्भ में विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य थे वे बाद में अपने को उससे अलग कर लिये और हत्या कारित करने में भागीदारी नहीं किए। इस आशय के किसी तर्क अथवा अभिलेखीय सामग्री के अभाव में धारा 149 के प्रवर्तन पर संदेह नहीं किया जा सकता है। मामले के इन तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुये कि भीड के सभी सदस्य आग्नेयास्त्रों अर्थात् घातक अस्त्रों को लेकर भा० द० संहिता की धारा 384 के अधीन अपराध कारित करने के उद्देश्य से आये सभी सदस्यों को उनके उद्देश्य के अग्रसरण में हत्या का अपराध कारित करने का ज्ञान होना आरोपित किया जाना चाहिये। यह हो सकता है कि वास्तविक रूप से एक या कुछ लोगों ने ही ललकार लगाया हो परन्तु धारा 149 को लागू करते हुये उन में से प्रत्येक को प्रतिनिधिक रूप से कारित अपराध का दोषी माना जाना चाहिये भले ही अपराध उनमें से कुछ ने ही कारित किया हो। इसके अतिरिक्त भी मामले के तथ्यों से यही निष्कर्ष निकलता है कि विधि विरुद्ध जमाव हत्या का अपराध कारित करने का निश्चय करके आई थी। वे सभी शस्त्रों से लैश होकर एक साथ आये और मृतक का अपहरण कर लिया जिनकी बाद में आग्नेयास्त्रों से हत्या कर दी गयी। अतएव अभियुक्तों की धारा 384/149 और धारा 302/149 के अधीन दोषसिद्धि उचित थी।8। राजस्थान राज्य बनाम अब्दुल जब्बार एवं अन्य8 के वाद में 50 से 60 व्यक्तियों की भीड़ में से केवल 7 से 10 व्यक्तियों ने मृतक के घर के अन्दर प्रवेश किया और मारो-मारो का नारा लगाया और मृतक के शरीर पर चोटें पहुंचाया। अभियुक्तों में से पहचाने गये तीन अभियुक्त ने मृतक के शरीर के मर्म अंगों में जिसमें सिर की चोट भी शामिल थी न केवल चोट पहुंचाया वरन् तब भी उसे चोट कारित करते रहे जब वह पृथ्वी पर चोट खाकर गिर गया। शिकायतकर्ता का उन्हें बचाने के प्रयास बेकार गये और उसे खुद को भी कुछ चोटें पहुंचीं। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि इन परिस्थितियों में हत्या करने का सामान्य उद्देश्य सिद्ध होता है अतएव अभियुक्त की दोषमुक्ति को अवैध धारित किया गया। । सिकन्दर सिंह बनाम बिहार राज्य लेख के वाद में उपेन्द्र सिंह नामक व्यक्ति की हत्या कारित करने हेतु 8 व्यक्तियों का विचारण किया गया। विचारण के दौरान अभियुक्तों में से दो की मृत्यु हो गयी अतः उनका नाम हटा दिया गया। शेष को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 या 307 के अधीन दोषसिद्ध किया गया। अपीलांटगण पांच से अधिक की संख्या में होने के कारण विधि विरुद्ध जमाव गठित करते थे और घातक हथियारों से लैश होकर मृतक उपेन्द्र सिंह पर गोली चलाया। उन सभी को विधि विरुद्ध जमाव के सामान्य उद्देश्य का ज्ञान था। घटना का कारण मृतक उपेन्द्र सिंह के जानवरों के शेड के सामने स्थित खेत था जिसमें उसके जानवर चरा करते थे। दोनों पक्षों के बीच उस खेत के मालिकाना हक के बारे में विवाद था जिसका वाद चल रहा था। 23 दिसम्बर 1987 को जब मृतक उस खेत की सफाई कर रहा था अभियुक्त राजेश्वर सिंह वहां पहुंच गया और मृतक द्वारा खेत की सफाई किए जाने का विरोध किया क्योंकि खेत का मालिक वह था। जब मृतक ने सफाई करना बन्द नहीं किया तब उन दोनों के बीच कुछ गर्मागर्म बहस हुई। नगीना सिंह नाम का भी एक व्यक्ति घटनास्थल पर आ गया और उसने मृतक को समाप्त करने के लिए राजेश्वर सिंह को प्रोत्साहित किया। उसके शीघ्र बाद राजेश्वर सिंह अपने घर गया और बन्दूक लेकर छ: अन्य लोगों के साथ वापस आया जिनमें से प्रत्येक घातक अस्त्रों जैसे भाला, फरसा, लाठी आदि से लैश थे। अभियुक्त राजेश्वर सिंह ने मृतक पर गोली चलायी जिसके कारण सीने एवं पेट सहित मृतक के शरीर के कई अंगों पर चोटें आयीं। इसी बीच राजेन्द्र सिंह (अभियोजन गवाह नं० 4) भी वहां आ गया और अपने भाई को बचाने का प्रयास किया, इस कारण उसे भी सर, माथे और गाल पर चोटें आयीं। उपेन्द्र सिंह की तत्काल घटनास्थल पर मृत्यु हो गयी। | यह अपील पटना उच्च न्यायालय के निर्णय और आदेश जिसके द्वारा वर्तमान पांच अपीलांट को विभिन्न अपराधों हेतु दण्डित किया गया था, के विरुद्ध है। उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि

  1. रामेश्वर पाण्डेय बनाम बिहार राज्य, 2005 क्रि० लॉ ज० 1407 (सु० को०).

क8. (2011) 4 क्रि० लॉ ज० 4351 (एस० सी०). 8ख. (2010) IV क्रि० लाँ ज० 3854 (एस० सी०). भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 के अधीन सामान्य उद्देश्य को विधि विरुद्ध जमाव के सदस्यों के कार्यों और भाषा तथा अन्य सम्बन्धित परिस्थितियों पर विचार कर निश्चित किया जाना चाहिए। सामान्य उद्देश्य को सुनिश्चित करने हेतु विधि विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य का आक्रमण करने के पहले, करते समय उसके पश्चात् का आचरण तथा अपराध का हेतु आदि विचारणीय बिन्दु हैं । सामान्य उद्देश्य के लिए आक्रमण के पहले पूर्व सम्मति (prior concert) और पूर्व विचारों का मिलना आवश्यक नहीं है। यदि सभी सदस्यों का वही उद्देश्य था और यदि सभी मिलकर उस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु जमाव में कार्य करते हैं तो वही यथेष्ट होगा। आगे यह भी कि यह आवश्यक नहीं है कि विधि विरुद्ध जमाव गठित करने वाले सभी सदस्य कछ। वाह्य कृत्य करें। सामान्य उद्देश्य का कार्य में परिणित करना अथवा सभी मामलों में उद्देश्य की प्राप्ति । आवश्यक नहीं है। अपीलांट ने यह तर्क दिया कि उन्होंने प्राइवेट प्रतिरक्षा में कार्य किया है। | यह अभिनिर्धारित किया गया कि संख्या में पांच से अधिक होने के कारण अपीलांट विधि विरुद्ध जमाव गठित करते थे। उनमें से प्रत्येक को जमाव के सामान्य उद्देश्य का ज्ञान था। अपीलांटगण ने घातक हथियारों से सुसज्जित हो मृतक पर हमला किया और गोली चलाया। अतएव वे हमलावर (aggressor) थे और वह यह सिद्ध करने में असफल रहे कि वे आत्म प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर रहे थे। अपीलांट में से मात्र एक को पहुंची चोटें सामान्य थीं और अभियोजन द्वारा उस चोट का कारण न बता पाने के प्रभाव को उनके विरुद्ध उपलब्ध साक्ष्य नगण्य सिद्ध कर देता है। अतएव अपीलांटगण की दोषसिद्धि को उचित अभिनिर्धारित किया। गया। सुबल घोरई बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगालग के वाद में यह अधिनिर्णीत किया गया कि भा० ० संहिता की धारा 149 के अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य का रचनात्मक दायित्व (constructive liability) उसके कुछ न कुछ बाह्य कार्य करने पर निर्भर नहीं करता है तथापि रचनात्मक दायित्व के ऐसे प्रत्यय (concept) को इतना आगे तक खींचा नहीं जा सकता जो दूसरे को गलत फंसाने तक ले जाये। बन्नी लाल चौधरी बनाम बिहार राज्य के वाद में अभि० सा० 10 के एक रिश्तेदार योगेन्द्र रावत ने अपने गांव के सत्तम चौधरी से 6800 रुपये की एक भैंस खरीदा जिसमें से भुगतान हेतु उसके पास 700 रुपये कम था जिसका भुगतान अपराध के सूचनादाता योगेन्द्र रावत के बीच में पड़ने के फलस्वरूप बाद में अदा करने का वादा किया गया। घटना के दिन अभियुक्त नं० 3 मनिराज चौधरी पुत्र सत्तम चौधरी ने योगेन्द्र रावत को अपने घर बुलाया जहाँ उसने बकाये का 400 रुपये दिया और शेष 300 रुपये दुसरे ही दिन देने का वादा किया। उसके पश्चात् मनिराज अभि०-3 ने एक देशी पिस्तौल निकालकर उसकी ओर लगा दिया। इस पर वह सहायता के लिये शोर मचाया जिसे सुनकर उसके परिवार के सदस्य सत्तम के घर पर आ गये। इसके बाद वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने घर आ गया। बाद में जब उसके पिता ब्रह्मदेव अभि० सा० 5 और उसके भाई स्नान करने जा रहे थे और जब वे आधे रास्ते पहुँचे थे, अपीलांट/अभियुक्त नं० 1 और 9 अन्य लोगों अभि० 2 से अभि० 10 तक जो अलग हथियारों से लैश थे, द्वारा उन पर पुनः हमला कर दिया गया। अभियुक्तगणों ने दोनों भाइयों को घेर लिया। इसी बीच उसका छोटा भाई शम्भू रावत वहां पहुँच गया और सभी अभियुक्तों ने उसको कुछ दूर तक खदेड़ा जबकि बन्नी लाल चौधरी अभि० नं० 1 ने शम्भू पर अम्बिका राम के दरवाजे पर चाकू से हमला किया। प्रहार सीने के बाईं ओर किया गया। इस घटना को देखकर ब्रम्हदेव रावत अभि० सा०-5 दौड़ता हुआ अम्बिका राय के घर पर आया। उसके सिर पर चाकू से मजिस्टर चौधरी अभि०-5 ने प्रहार किया। उन लोगों का शोर सुनकर घटनास्थल पर गांव के बहुत से लोग इकट्ठा हो गये और तब। अभियुक्तगण वहाँ से भाग गये। शम्भू रावत गंभीर रूप से घायल होने के कारण अम्बिका राम के दरवाजे पर गिर पड़ा और उसकी चोट से खून बह रहा था। वह एक चारपाई पर उपचार हेतु अस्पताल ले जाया गया जहा। डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। अभि० सा० 10 योगेन्द्र रावत द्वारा रिपोर्ट लिखाई गयी और सभा में अभियुक्तों के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया। डॉ० विजय कुमार अभि० सा० 11 द्वारा शव का अन्त्यप किया गया। कुल 12 अभियोजन साक्षियों का परीक्षण किया गया जिसमें से अधिकांश प्रत्यक्ष अभियुक्तगणों ने अपने बचाव में यह तर्क दिया कि उन्हें शिकायत कर्ता द्वारा असत्य फसाय ४ग. (2013) III क्रि० लाँ ज० 3626 (एस० सी०). 8ग. 2006 क्रि० लॉ ज० 3297 (एस० सी०).

  1. कती द्वारा असत्य फंसाया गया है।

अभियोजन के चार स्वतन्त्र प्रत्यक्षदर्शी गवाह पक्षद्रोही हो गये। अभि० साक्षी-7 राम नाथ प्रसाद घटना के सचना दाता का पड़ोसी था। उसने कहा कि पुलिस द्वारा अन्वेषण के दौरान उसका बयान दर्ज नहीं किया गया। उच्चतम न्यायालय ने अभिधारित किया कि अपीलांट/अभियुक्त बन्नी लाल चौधरी द्वारा मृतक के सीने के बायीं ओर चाकू से कारित एकमात्र क्षति के विषय में कोई विवाद नहीं था। अभियुक्त द्वारा मृतक के शरीर के मर्म भाग पर चोट पहुंचाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। डाक्टर ने यह मत व्यक्त किया था कि कारित क्षति से मृतक के बायां फेफडे का घाव गहरा (Penetrated) था, परन्तु उसकी यह राय नहीं थी कि क्षति प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिये यथेष्ट थी। शम्भू रावत की हत्या कारित करने का अभियुक्त बन्नी लाल का कोई हेतु या आशय नहीं था। अभियुक्त द्वारा किया गया कार्य इस ज्ञान के साथ किया गया था कि कारित कार्य से मृतक की मृत्यु सम्भाव्य है। अतएव यह मामला भारतीय दण्ड संहिता की धारा 299 के तृतीय खण्ड के अधीन आता है जो कि धारा 304, भाग II के अधीन दण्डनीय है। उच्चतम न्यायालय ने अपीलांट/अभि०-9 की दोषसिद्धि को धारा 302 से धारा 304 भाग II में बदल दिया। । अभियुक्तगण जिन्होंने सामूहिक रूप से हमला किया था। एक विधि विरुद्ध जमाव का गठन करते थे, क्योंकि वे हथियारों से सज्जित थे। मृतक की मृत्यु मुख्य अभियुक्त द्वारा कारित चोट के कारण हुई है। किसी भी साक्षी ने यह सिद्ध नहीं किया है कि अन्य अभियुक्तगण घटनास्थल पर मृतक की हत्या करने के आशय से आये थे। उनमें से किसी ने मृतक पर अपने साथ लिये अस्त्र से कोई प्रहार नहीं किया था। ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं था कि अन्य अभियुक्तगणों को यह ज्ञान था कि जो अपराध वास्तव में कारित किया गया है, उसका सामान्य उद्देश्य के अग्रसरण में कारित किया जाना सम्भाव्य था। अतएव उच्चतम न्यायालय ने अभिधारित किया कि अन्य अभियुक्तगणों की धारा 302 सपठित धारा 149 में दोषसिद्धि उचित नहीं थी।10। सादृश्य ( समानता/अनुरूपता ) के सिद्धान्त के आधार पर दोषमुक्तिप्रथाप और अन्य बनाम केरल राज्य10क के वाद में मृतक और अभियुक्त के बीच आपसी दुश्मनी थी। अभियुक्तगणों ने विधि विरुद्ध जमाव गठित कर तेज धारदार अस्त्रों जैसे तलवार, चापर से मृतक पर हमला किया। उन्होंने मृतक को मृत्यु के पूर्व 20 क्षतियां पहुंचाया। प्रत्यक्षदर्शी साक्षीगण अभियुक्तों को पहले से जानते थे जिनके साक्ष्य से अभियुक्तों का हमले में शामिल होना सिद्ध था। अभियुक्त की निशानदेही पर हमले में प्रयोग की गयी तलवार भी बरामद हुई थी। अभियुक्तों द्वारा कारित चोटों से मृतक की मृत्यु हो गयी। प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों (eye-witnesses) ने अभियुक्तों को पहचाना तथापि यह सुस्पष्टतया स्वीकार किया गया कि अन्य अभियुक्त उस आसपास (locality) के नहीं थे और उन्हें उनकी जानकारी नहीं थी। अपीलांट ने अन्य अभियुक्तों से समानता (सादृश्य) के आधार पर दोषमुक्त किये जाने का तर्क दिया। उच्चतम न्यायालय ने एक या अधिक अभियुक्त के मामले को अन्य अभियुक्त/अभियुक्तों से प्रभेद करने की शक्ति का प्रयोग करते हुए सादृश्य के सिद्धान्त के आधार पर अपीलांट को दोषमुक्त करने से मना कर दिया क्योंकि न्यायालय को यह सदैव शक्ति प्राप्त रहती है। कि वह अभियुक्त को उन अभियुक्तों से जिन्हें दोषमुक्त कर दिया गया है उनसे प्रभेद कर सकती है जिन्हें दोषसिद्ध किया गया है। एक या अनेक अभियुक्तों के मामले को अन्यों से प्रभेद करने की न्यायालय की शक्ति भलीभांति मान्य है। सुदम उर्फ राहुल कोनीराम जाधव बनाम महाराष्ट्र राज्य)ख के वाद में अभियुक्त पर अपनी पत्नी और चार बच्चों की मृत्यु कारित करने का आरोप था घटना के एक दिन पूर्व वह अपने परिवार के साथ जीवित देखा गया था। अभियुक्त ने अपनी पूर्व पत्नी और एक अन्य से यह स्वीकार (confess) किया था कि उसने अपनी पत्नी और बच्चों को मार डाला है क्योंकि उसकी मृतक पत्नी उसे परेशान करती थी। हत्या करने के पश्चात् अभियुक्त फरार हो गया। मृतक पत्नी और बच्चे एक तालाब के निकट लाये गये उनका गला दबा कर मार डाला गया और अपराध छिपाने हेतु उनके मृत शरीर को बण्डल में बांधकर तालाब में फेंक दिया गया। यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त का अपराध कारित करने का हेतुक (motive) या अभिप्राय था

  1. 2006 क्रि० लॉ ज० 3297 (एस० सी०).

10क. (2010) IV क्रि० लॉ ज० 4442 (एस० सी०). 10ख. (2011) 4 क्रि० लॉ ज० 4240 (एस० सी०). क्योंकि वह घटना के बाद फरार हो गया था। वह यह भी नहीं बता पाया कि उसकी पत्नी और बच्चों की कैसे मानवघाती (homicidal) मृत्यु हो गयी। अतएव परिस्थितियां अपराधी के दोष की ओर त्रुटिहीन रूप से संकेत कर रही हैं किसी अन्य की ओर नहीं । हत्या योजनाबद्ध थी और नृशंस और बर्बर तरीके से कारित की गयी थी। अभियुक्त समाज के लिये एक खतरा है और यह मामला विरल में विरलतम कोटि में आता है । इस कारण मृत्यु दण्ड दिये जाने हेतु दायित्वाधीन है।। | शाजी बनाम केरल राज्य!0 के वाद में एक विधि-विरुद्ध जमाव के सदस्यों द्वारा हत्या कारित का आरोप था। जमाव के प्रत्येक सदस्य के पास हथियार थे तथापि प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों ने केवल एक सद पर कुछ कृत्य करने की बात कही। मेडिकल साक्ष्य से यह दर्शित था कि उसी सदस्य द्वारा कारित क्षति घातक थी। यह अभिनिर्धारित किया गया कि मात्र यह तथ्य कि जमाव के अन्य सदस्य भी हथियारबन्द थे । सामान्य उद्देश्य सिद्ध करने हेतु यथेष्ट नहीं होगा। सामान्य उद्देश्य की प्रकृति के बारे में तथा यह कि उद्देश्य विधि-विरुद्ध था, न्यायालय द्वारा कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया था। अतएव भा० द० संहिता की धारा 149 की सहायता से अभियुक्त को दोषसिद्धि अनुचित होगी। इस मामले में विधि-विरुद्ध जमाव के सदस्यों की संख्या कुछ सदस्यों को दोषमुक्ति के कारण 5 से घट गयी थी। यह अभिनिर्धारित किया गया कि यदि जमाव का उद्देश्य जिसे अन्य सदस्य जानते थे कि पूर्ति होना सिद्ध हो जाता है तो संख्या 5 से घट जाने के बाद भी अन्य सदस्यों को अपराध हेतु दोषसिद्ध किया जा सकता है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में विलम्ब-गुरजिन्दर सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब10 के वाद में सूचना देने वाले ने अपराध को कारित किये जाते देखा था। उसे अभियुक्त द्वारा धमकाया गया था। मृतक के माता-पिता के विदेश से आ जाने के बाद और दर्शक को पुलिस को अपराध की सूचना देने के लिये साहस दिलाने के बाद ही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी। मृतक के जननी जनक के आगमन के पूर्व सूचनादाता पुलिस को सूचित करने का साहस नहीं जुटा पाया। अतएव विलम्ब से प्रथम सूचना रिपोर्ट देने का प्रश्न उठा। उक्त परिस्थितियों में यह अभिनिर्धारित किया गया कि सूचनादाता का घटना की सूचना समय से न देने का व्यवहार अप्राकृतिक नहीं है।

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