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Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 7 LLB Notes

  Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 7 LLB Notes:- LLB law The Indian penal Code 1860 Important Book Chapter Offences Relating Religion 1st Semester / 1st year Notes Study Material Question With Answer Sample Model Mock Test Paper in Hindi English PDF Download.

 
 

 

सामान्य आशय को अग्रसर करते हुये हत्या

शीलम रमेश बनाम स्टेट आफ आन्ध्र प्रदेश94 के बाद में 30-1-1993 को सायं लगभग 7.00 बजे मृतक और अभियोजन गवाह नं० 1 और गवाह नं० 2 बस स्टैण्ड के निकट एक बाल काटने की दुकान (सैलून) के सामने बैठे थे। एकाएक तीन अभियुक्तगण जो पिस्तौल तथा देशी तमन्चा से लैश थे आये और मृतक के ऊपर गोली चलाया। अभि० गवाह नं० 1 बच गया और भागकर थाने गया। मृतक को पिस्तौल की। गोली लगी और वह चोटहिल हो गया। उसे जगतिपाल स्थित सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहाँ चोटों के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् अभियुक्तगण अपनी सायकिलों पर सवार होकर घटनास्थल से चले गये। अभि० गवाह नं० 2 दूसरी तरफ चला गया। बाद में अभियुक्त नं० 2 एवं 3 पकड़े गये। अन्वेषण के पश्चात् भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302, 307 सपठित धारा 34, आयुध अधिनियम, 1959 की धारा 7 और टाडा अधिनियम की धारा 3 और 4 के अन्तर्गत आरोप-पत्र दाखिल किया गया। अभियुक्त नं० 1 का मामला अलग कर दिया गया क्योंकि वह फरार चल रहा था। अभियुक्तगण 2 एवं 3 दोनों को केवल भारतीय

  1. 2002 क्रि० लाँ ज० 1503 (एस० सी०).
  2. 2000 क्रि० लॉ ज० 51 (एस० सी०).

दण्ड संहिता की धारा 307 को छोड़कर शेष अन्य धाराओं के अधीन अपराध हेतु दोषी पाया गया । विचारण न्यायालय द्वारा तद्नुसार दोषसिद्ध घोषित किया गया। यह अभिनिर्धारित किया गया कि इस तथ्य के कि अभियुक्तगण 1 से 3 तक घटनास्थल पर आग्नेयास्त्रों से सुसज्जित होकर एक साथ आये यह सिद्ध करता है कि उनके बीच मृत्यु कारित करने की पूर्व योजना थी। चूंकि अभियुक्त नं० 2 एवं 3 द्वारा मृत्यु कारित करने के सामान्य आशय को अग्रसर करते हुये भागिता की गई अतएव भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 सपठित धारा 34 के अन्तर्गत उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि की जा सकती है। रामदेव कहार एवं अन्य बनाम बिहार राज्य95 के वाद में अभियुक्तगण हथियारबन्द होकर एक साथ आये। वे एक आदमी की तलाश कर रहे थे। मृतक द्वारा यह सूचित किये जाने पर कि वह व्यक्ति वहां नहीं है अभियुक्त ने मृतक पर गोली चला दी। अन्य अभियुक्तों ने अभियोजन के साक्षियों को उन पर हमला करके मृतक की सहायता करने से रोका। सभी अभियुक्त उस स्थान से एक साथ गये। उन लोगों ने अभियोजन के साक्षियों पर एक साथ गोली चलायी ताकि वे उनका पीछा न कर सकें। इन तथ्यों के आधार पर यह अभिनिर्धारित किया गया कि यहां पर सामान्य आशय सिद्ध हो रहा है। मात्र इस कारण कि अभियुक्त ने उस व्यक्ति, जिसे वह खोज रहे थे, के अतिरिक्त किसी अन्य की मृत्यु कारित किया है इसलिये उनका यह तर्क यह सिद्ध करने को यथेष्ट नहीं है कि उनका आशय मृत्यु कारित करने का नहीं था। आगे यह भी कि अभियुक्त को कारित मामूली चोटों का स्पष्टीकरण न होने से अभियोजन के मामले को अस्वीकार करने का उचित कारण नहीं माना गया। मुन्नीलाल पुत्र गोकुल तेली बनाम म० प्र० राज्य96 के वाद में अपीलाण्ट पर अन्य लोगों के साथ मिलकर मृतक पर कुल्हाड़ी और तलवार से हमला कर मृत्यु कारित करने का आरोप था। ऐसा आरोपित था। कि यह घटना दुश्मनी के कारण घटी थी। अपीलाण्ट की मृतक से कोई दुश्मनी नहीं थी। वह न तो हथियार लिये था और न ही कोई कार्य ही किया था। यह अभिनिर्धारित किया गया कि मात्र यह तथ्य कि वह हथियारों से लैस अभियुक्तों के साथ था भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 को आकर्षित करने हेतु यथेष्ट नहीं होगा। धारा 34 सम्मिलित दायित्व के सिद्धान्त पर आधारित है और अपराध में शामिल लोगों के मध्य सामान्य आशय का होना इस धारा के लागू होने के लिये आवश्यक है। परन्तु सभी व्यक्तियों द्वारा किसी न किसी प्रकार का कार्य किया जाना आवश्यक नहीं है। अतएव अपीलाण्ट की धारा 300/34 के अधीन दोषसिद्धि रद्द कर दी गयी। किशोर एकनाथ निकाम बनाम महाराष्ट्र राज्य97 के वाद में अभियुक्त ने मृतक पर चाकू से हमला किया। सह अभियुक्त ने कुछ अन्य लोगों को जिन्होंने बीच बचाव कर मृतक को हमले से बचाने का प्रयास किया, चाकू से धमका कर उन्हें रोकने का काम किया। यह अभिधारित किया गया कि सह अभियुक्त का कृत्य धारा 34 को लागू किये जाने के लिये काफी था जैसा कि उसने मुख्य अभियुक्त के द्वारा हत्या कारित किये जाने के सामान्य आशय के अग्रसारण में कार्य किया। अतएव सहअभियुक्त की धारा 300 सपठित धारा 34 के अधीन दोषसिद्धि उचित अभिधारित की गयी। शिवराज बापुरे जाधव बनाम कर्नाटक राज्य98 वाले मामले में मृतक और अभियुक्त के परिवार के बीच पैतृक निवास के विभाजन को लेकर शत्रुता थी। दिनांक 27-5-1995 को जब मृतक कृष्ण जाधव 11.00 बजे अपरान्ह घर वापस आ रहा था, तब घर के लोगों ने अभियुक्त सं० 1 के कुत्ते के भौंकने की आवाज सुना और जब अभि० सा० 1 यह पता करने निकली कि कहीं उसके पति तो नहीं है तभी अ०-4 अपनी झोपड़ से एक डंडा और टार्च लेकर निकली और मृतक को गाली देने लगी। जब मृतक ने बताया कि वह चोर नहीं है जो झोपड़ी में घुस रहा है और वह टार्च और डंडा लेकर क्यों आई है, अ०-4 ने मृतक को डंडे से मारा और गाली दी और अन्य अभियुक्तों ने उसका अनुसरण किया, जिनके हाथ में कुल्हाड़ी, लोहे की

  1. (2009) 2 क्रि० ला ज० 1715 (सु० को०),
  2. (2009).2 क्रि० लो ज० 1590 (सु० को०).
  3. 2007 क्रि० लॉ ज० 4007 (एस० सी०).
  4. 2003 क्रि० लॉ ज० 3542 सु० को०.

पाइप और लाठियाँ थीं। सभी अभियुक्त मृतक पर प्रहार करने लगे, जिसके परिणामस्वरूप वह अभियुक्त के घर के सामने गिर पड़ा और घटनास्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गई। विचारण न्यायालय द्वारा अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया, किन्तु उच्च न्यायालय ने उन्हें दोषसिट कर दिया। अत: उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील की गई है। यह अभिनिर्धारित किया गया कि घटना नये चांद के दिन से दो दिन पहले घटी थी और जब पक्षकार प्रकृति के बीच रहने और बिना रोशनी के रहने के अभ्यस्त हैं तो यह अभिवचन कि प्रत्यक्षदर्शी साक्षी ने घटना को नहीं देखा होगा, मानने योग्य नहीं है। इसके बजाय साक्षियों ने अभियुक्तों को न केवल आवाज से बल्कि इसलिये भी पहचाना होगा कि सभी परिचित ‘व्यक्ति हैं और निकट संबंधी हैं और आस पास की झोपडियों में ही रहते हैं। इसके अतिरिक्त घटना मृतक की। झोपड़ी के बिल्कुल पास में घटी थी और उस समय अभियुक्तों और प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों की उपस्थिति सामान्य बात थी, और यह कोई हैरानी की बात नहीं। हेतु के गठन के लिये अभियुक्त और मृतक के बीच मकान का बंटवारे का विवाद ही पर्याप्त है। इसलिये उच्च न्यायालय ने अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन ठीक ही सिद्ध दोष किया है। नल्ला बोथू बैंकइया बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य99 वाले मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 149 को सहायता के बिना मात्र धारा 300 के अधीन दोषसिद्धि अनुज्ञेय है – (क) यदि प्रकट कृत्य के कारण घातक क्षति पहुँचाने का आरोप अभियुक्त पर लगाया जाता है जो प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में मृतक की हत्या कारित करने के लिये पर्याप्त है और चिकित्सीय साक्ष्य से समर्थित है : (ख) उच्च न्यायालय द्वारा दर्ज की गई दोषपूर्ण दोषमुक्ति यदि कायम रहती है तो भी धारा 149 के साथ पठित धारा 300 के अधीन अभियुक्त की दोषसिद्धि को बाधित नहीं करेगी, (ग) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 की सहायता से धारा 300 के अधीन आरोप को धारा 34 के साथ पठित धारा 300 के अधीन अपराध के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है यदि अनेक व्यक्तियों द्वारा जो संख्या में पांच से कम हों, कारित आपराधिक कृत्य आशय से किया गया साबित हो जाता है। । सुनील कुमार बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली वाले मामले में राजेश ने प्रात: अपने भाई जय। किशन को अपने कमरे में न पाकर उसे खोजना आरंभ किया। उसने अपने भाई जयकिशन को प्रातः 7 बजे मुमताज के घर में पाया जहाँ वह धरमवीर और अपीलार्थी सुनील के साथ बैठा था। जब राजेश अपने घर वापस जा रहा था, उसने अपने भाई की आवाज सुना और देखा कि वह मुमताज के घर से भाग रहा था। इस प्रकार भागते हुये जयकिशन को अपीलार्थी सुनील ने पकड़ लिया और अपीलार्थी धरमवीर ने उस पर चाकू से। प्रहार किया। राजेश ने शोर मचाया तो कुछ अन्य लोग मौके पर पहुँचे। दोनों अभियुक्त भाग गये। राजेश और विनोद घटना के शिकार व्यक्ति अपने भाई को अस्पताल ले गये, जहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया। राजेश ने शिकायत दर्ज कराई कि मुमताज, धरमवीर और सुनील ने अपने सामान्य आशय के असरण में मृतक जय किशन पर हमला किया। राजेश ही एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी साक्षी था। यह अभिनिर्धारित किया गया कि एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी साक्षी का साक्ष्य स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय था और इसे मात्र इसलिये अस्वीकृत नहीं किया जा सकता कि मामूली लोप हुये हैं क्योंकि इस तथ्य को ध्यान में रखना जरूरी है कि परीक्षण घटना के कई वर्ष बाद कराया गया है। प्रत्यक्षदर्शी साक्षी ने मृतक पर हुये हमले का चित्रात्मक वर्णन किया है और यह बताया कि अभियुक्त ने जयकिशन मृतक के शरीर पर कई प्रहार किये जबकि सह-अभियुक्त ने उसे पकड़ रखा था जिससे प्रहार करने में आसानी रहे। इसलिये एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के साक्ष्य के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 सपठित धारा 34 के अधीन की गई दोषसिद्धि उचित है। रामस्वरूप बनाम स्टेट आफ यू० पी०2 के वाद में 6-9-1977 को प्रात: लगभग 6.30 बजे रामेश्वर अपने बाग गया हुआ था जहाँ उसे अभियुक्तगण से सामना हुआ। अभियुक्तगण मारक अस्त्रों से लैश थे। अभियुक्त रामस्वरूप के पास बन्दूक, परमेश्वर के पास कन्टा, अनन्त राम और सत्यदेव दोनों के पास सूजा तथा

  1. 2002 क्रि० लाँ ज० 4081 ( सु० को०).
  2. 2004 क्रि० लॉ ज० 819 (सु० को०),
  3. 2000 क्रि० लॉ ज० 808 (एस० सी०).

राधेश्याम के पास कन्टा था। अभियोजन पक्ष द्वारा यह आरोप था कि अभियुक्तगण की मृतक से पहले दुश्मनी थी। अभियुक्तगण का सामना होने पर रामेश्वर अपने घर की तरफ जोर से सोर मचाते हुये अभियुक्तगण ने उसका पीछा किया। जब वह अपने घर के निकट पहुँचा तो उसके पिता जगन्नाथ । राजाराम घर से शोर मचाते हुये बाहर आये । रामेश्वर के दो अन्य भाई और गांव के अन्य लोग भी घर पर पहुँच गये। रामस्वरूप ने अपनी बन्दूक से राजाराम पर गोली चलाया और अन्य अभियुक्तों ने भी । तथा जगन्नाथ पर अपने शस्त्रों से प्रहार करना शुरू कर दिया। उसके पश्चात् अभियुक्तगण भाग गये । सत्यदेव नामक अभियक्त घटनास्थल पर पकड़ लिया गया। विचारण न्यायालय के समक्ष अभियों ने के तथ्य को चुनौती नहीं दिया वरन् घटना के स्थान एवं समय को चुनौती दिया और उनके अनुसार कति अज्ञात व्यक्तियों ने रात्रि में किसी समय मृतक की हत्या कर दी और जगन्नाथ तथा रामेश्वर को चोटें कर किया परन्तु चूंकि हमलावरों को पहचाना नहीं जा सका अतएव अभियुक्तगण को पुरानी दुश्मनी के फलस्वरूप मिथ्या ढंग से फंसा दिया। डा० सुधीर सिंह अभियोजन गवाह नं० 2 जिन्होंने राजाराम का पोस्टमार्टम किया था, के अनुसार मृतक के शरीर पर बन्दूक की गोली के चोट के निशान थे। साथ ही उसे खरोंच और चिरे फटे घाव भी थे। डॉ० वी० के० अग्रवाल (अभियोजन गवाह नं० 4) के परीक्षण से यह सिद्ध हो गया था कि रामेश्वर और जगन्नाथ के शरीर पर भी चोटें थीं। अपने पक्ष को सिद्ध करने हेतु अभियोजन ने तीन प्रत्यक्षदर्शी गवाहों रामेश्वर (गवाह-1) जगन्नाथ (गवाह-7) तथा रूपराम (अभि० गवाह नं० 8) का भी परीक्षण कराया। इन दोनों में से गवाह नं० 1 एवं 2 को भी चोटें आई थीं। डाक्टर के साक्ष्य से यह स्पष्ट नहीं था कि घटना उस समय नहीं घटी थी जिस समय उसे अभियोजन द्वारा घटित होना दर्शाया गया था। यह निर्णीत किया गया कि अन्वेषण अधिकारी द्वारा घटनास्थल से खून एकत्र न करना मामले में किसी तरह की कमजोरी (infirmity) नहीं दर्शाता क्योंकि उत्पीड़ित व्यक्तियों को तत्काल थाने ले जाया गया और घटनास्थल के पास इधर-उधर अन्य लोग भी घूम रहे थे। अतएव अभियुक्त की भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 के अधीन दोषसिद्धि को अनुमोदित कर दिया गया। यह भी स्पष्ट किया गया कि जहाँ तक चिकित्सा विशेषज्ञ के साक्ष्य का सम्बन्ध है डाक्टर का साक्ष्य जहाँ तक चोटों की अवधि एवं चोट के समय का प्रश्न है कभी अन्तिम रूप से निश्चित नहीं हो सकती है। न्यायालय ने यह मत बचाव पक्ष के इस तर्क के उत्तर में कि प्रति परीक्षण के दौरान डाक्टर ने यह कहा था कि मृत्यु मध्यरात्रि के समय भी कारित की गई हो सकती है जबकि पहले उन्होंने यह बयान दिया था कि मृत्यु प्रात: लगभग 7.00 बजे हुई है। | करनम राम नरसहइया बनाम आंध प्रदेश राज्य वाले मामले में सभी 17 अभियुक्त एक ही पार्टी के राजनैतिक कार्यकर्ता थे, वे घटना के शिकार व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहे थे जो अन्य राजनैतिक पार्टी से सम्बन्धित था। उन्होंने सामान्य आशय से मिलकर उस पर हमला किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। मृतक के शरीर पर विभिन्न प्रकार की क्षतियाँ कारित हुई थीं। इस बात का साक्ष्य नहीं था कि किसने प्राणान्तक क्षति कारित किया। उन पर दण्ड संहिता की धारा 34 के अधीन आरोप विरचित नहीं था। यह अभिनिर्धारित किया गया कि उक्त परिस्थितियों में अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन दोषसिद्ध किया जाना उचित था, भले ही भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के अधीन आरोप नहीं लगाया गया था। नन्दकिशोर बनाम मध्य प्रदेश राज्य के के वाद में अभियुक्त अकेले बिना किसी अस्त्र के मृतक के पास रुपये मांगने के लिये गया था। तथापि अन्य दो अभियुक्त भी एक साथ हुये और मृतक पर चाकू से बार-बार शरीर के मर्मागों (vital) पर वार किया जिससे हृदय और फेफड़ा दोनों पंक्चर हो गया। उन्होंने उस पर जब वह जमीन पर गिर गया पत्थर भी फेंका। उन दोनों की भागीदारी और मृतक को मारने के स्पष्ट आशय के बिना शायद अभियुक्त अकेले मृतक की मृत्यु कारित करने में सफल न होता। यह अभिनिर्धारित किया गया कि उनमें से प्रत्येक की भूमिका (रोल) और मृत्यु कारित करने के उद्देश्य को प्राप्त करने में सामान्य भागीदारी आर सामान्य आशय का स्पष्ट संकेत करता है। अतएव उनकी भा० ० सं० की धारा 302 सपठित धारा 34 के ‘अधीन दोषसिद्धि उचित है।

  1. 2004 क्रि० लॉ ज० 4217 (सु० को०).

3क. (2011) 4 क्रि० लो ज० 4243 (एस० सी० ). नन्दकिशोर बनाम मध्य प्रदेश राज्यख के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि इसके पहले कि भा० द० सं० की धारा 34 का प्रयोग करते हुये कोई दोषसिद्धि किया जा सके, यह आवश्यक है कि उस व्यक्ति ने अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर कुछ अवश्य किया हो। आपराधिक कृत्य करने में कुछ न कुछ व्यक्तिगत भागीदारी आवश्यक है। अतएव पुरे समूह का प्रत्येक सदस्य जिस पर भा० द० सं० की धारा 34 के। साथ आरोप है सामूहिक कार्य जो उनके मिले-जुले क्रियाकलाप का परिणाम है उसमें भागीदार होना चाहिये। भा० दे० सं० की धारा 34 के अन्तर्गत प्रत्येक अपराधी आपराधिक कृत्य जो अपराध गठित करता है, में । शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप में सहभागी रहता है। वह केवल सामान्य कार्य में ही नहीं वरन् सामान्य आशय में भागीदार होता है और इसलिये इन दोनों में उसका व्यक्तिगत रोल गम्भीर रूप से खतरा या संकट में होता है भले ही उसका व्यक्तिगत रोल कॉमन स्कीम का ही अंग रहा हो जिसमें दूसरे लोग भी शामिल हो गये। हैं और ऐसा रोल किया हो जो एक जैसा या भिन्न हो।

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