Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 26 LLB Notes
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366-क, अप्राप्तवय लड़की का उपापन- जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु की अप्राप्तवय लडकी को अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिये विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तदद्वारा विवश या विलुब्ध किया जाएगा, यह सम्भाव्य जानते हुए ऐसी लड़की को किसी स्थान से जाने को या कोई कार्य करने को, किसी भी साधन द्वारा उत्प्रेरित करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। टिप्पणी यह धारा भारतवर्ष के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में वेश्यावृत्ति के लिये अवयस्क लड़कियों के उपापन से सम्बन्धित है। अवयव-इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं
- 18 वर्ष से कम आयु की किसी लड़की को किसी स्थान से जाने या किसी कार्य को करने के लिये विलुब्ध करना,
- यह आशय या ज्ञान कि किसी लड़की को किसी पुरुष से अयुक्त सम्भोग के लिये विवश या विलुब्ध किया जायेगा।
उत्प्रेरण- इस धारा के अन्तर्गत अपराध संरचित करने के लिये यह आवश्यक है कि उत्प्रेरण विशिष्ट उद्देश्य से किया गया हो और यदि ऐसे उत्प्रेरण के पश्चात् अपराधी उस लड़की को कई व्यक्तियों को प्रस्तावित करता है तो प्रत्येक प्रस्ताव पर एक नया अपराध कारित नहीं होगा। रमेश के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनित किया था कि जहाँ कोई 18 वर्ष से कम आयु की लड़की वेश्यावृत्ति का व्यवसाय करती है। और उस व्यवसाय में उसे कोई व्यक्ति प्रोत्साहित करता है या उसकी सहायता करता है तो यह नहीं कहा जा सकेगा कि उस व्यक्ति ने इस धारा में वर्णित अपराध कारित किया। उस व्यक्ति के लिये यह नहीं कहा जा सकता कि उसने धन के लिये अभद्र सहयोग में लीन रहने वाली लड़की को इस आशय या ज्ञान से सहायता किया था कि उसे अयुक्त सम्भोग के लिये विवश या प्रलुब्ध किया जायेगा। प्रलुब्ध करना-इस धारा के अन्तर्गत ‘‘प्रलुब्ध करने” का अर्थ है कि इस तथ्य के बिना कि क्या लड़की ने पहले भी कभी अयुक्त सम्भोग के लिये सम्मति दी थी या विवश की गयी थी, उसे उत्तेजित करना या प्रलोभित करना । जिस समय लड़की को हटाया गया था उस समय यदि अभियुक्त का आशय उसके साथ सम्भोग करने का नहीं था तो इस धारा के अन्तर्गत अपराध कारित हुआ नहीं माना जायेगा ।10। मानजप्पा बनाम कर्नाटक राज्य11 के वाद में दिनांक 3-4-1997 को पीड़ित के पिता हनुमनथप्पा ने | एक शिकायत यह आरोपित करते हुये दर्ज करायी कि उसकी पुत्री शिल्पा उम्र लगभग 13 वर्ष का दिनांक | 24-1-1997 को लगभग 11 बजे पूर्वान्ह उसके घर से व्यपहरण कर लिया गया और वे लोग उसे बम्बई उसके साथ अवैध सम्भोग करने के लिये ले गये और उसके पश्चात् उसे शान्ता नाम की महिला के हाथ वेश्यावृत्ति और अनैतिक प्रयोजनों हेतु बेच दिया। उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि जहां कोई अभियुक्त किसी अवयस्क लड़की को किसी सुदूर स्थान को ले गया और उसे अनैतिक और अवैध कार्यों हेतु बेच दिया तो ऐसी स्थिति में
- सीस राम, (1921) 51 इला० 1888.
- (1962) 64 बाम्बे एल० आर० 780 (सु० को०).
- गोपीचन्द फत्तूमल, (1960) 63 बाम्बे एल० आर० 408.
- विश्वनाथ प्रसाद, ए० आई० आर० 1948 अवध 1.।
- (2010) IV क्रि० लॉ ज० 4729 (एस० सी०).
अभियुक्त निवारक (deterrent) दण्ड दिये जाने योग्य है। अतएव 7 वर्ष का कारावास और 50,000 (पचास हजार) रुपये अर्थदण्ड हस्तक्षेप करने योग्य नहीं है। अतएव अपील निरस्त कर दी गयी। 366-ख. विदेश से लड़की का आयात करना- जो कोई इक्कीस वर्ष से कम आयु की किसी लड़की को भारत के बाहर के किसी देश से या जम्मू-कश्मीर राज्य से आयात, उसे किसी अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिये विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा वह विवश या विलुब्ध की जायेगी, यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
- व्यक्ति को घोर उपहति, दासत्व आदि का विषय बनाने के उद्देश्य से व्यपहरण या अपहरण- जो कोई किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण इसलिये करेगा कि उसे घोर उपहति या दासत्व का या किसी व्यक्ति की प्रकृति-विरुद्ध कामवासना का विषय बनाया जाये या बनाये जाने के खतरे में जैसे पड़ सकता है वैसे उसे व्ययनित किया जाये या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे व्यक्ति को उपर्युक्त बातों का विषय बनाया जायेगा या उपर्युक्त रूप से व्ययनित किया जायेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
- व्यपहृत या अपहृत व्यक्ति को सदोष छिपाना या परिरोध में रखना- जो कोई यह जानते हुए कि कोई व्यक्ति व्यपहृत या अपहृत किया गया है, ऐसे व्यक्ति को सदोष छिपाएगा या परिरोध में रखेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा मानो उसने उसी आशय या ज्ञान या प्रयोजन से ऐसे व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण किया हो जिससे उसने ऐसे व्यक्ति को छिपाया या परिरोध में निरुद्ध रखा है। | 369. दस वर्ष से कम आयु के शिशु के शरीर पर से चोरी करने के आशय से उसका व्यपहरण या अपहरण- जो कोई दस वर्ष से कम आयु के किसी शिशु का इस आशय से व्यपहरण या अपहरण करेगा कि ऐसे शिशु के शरीर पर से कोई जंगम सम्पत्ति बेईमानी से ले ले, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
1 370. व्यक्ति का दुर्व्यापार-(1) जो कोई, शोषण के प्रयोजन के लिए, पहला-धमकियों का प्रयोग करके; या दूसरा-बल या किसी भी अन्य प्रकार के प्रपीड़न का प्रयोग करके; या तीसरा-अपहरण द्वारा; या । चौथा-कपट का प्रयोग करके या प्रवंचना द्वारा; या पांचवां-शक्ति का दुरुपयोग करके; या छठवां-उत्प्रेरणा द्वारा, जिसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति की, जो भर्ती किए गए, परिवहनित, संश्रित, स्थानांतरित या गृहीत व्यक्ति पर नियंत्रण रखता है, सम्मति प्राप्त करने के लिए भुगतान या फायदे देना या प्राप्त करना भी आया है, किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों को (क) भर्ती करता है (ख) परिवहनित करता है, (ग) संश्रय देता है, (घ) स्थानांतरित करता है, या (ङ) गृहीत करता है, वह दुव्यपार का अपराध करता है। स्पष्टीकरण 1.-“शोषण” पद के अंतर्गत शारीरिक शोषण का कोई कृत्य या किसी प्रकार का लैंगिक शोषण, दासता या दासता के समान व्यवहार, अधिसेविता या अंगों का बलात् अपसारण भी है। स्पष्टीकरण 2.-दुर्व्यापार के अपराध के अवधारण में पीड़ित की सम्मति महत्वहीन है। (2) जो कोई दुव्र्यापार का अपराध करेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम का नहीं होगी किंतु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
- दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 8 द्वारा धारा 370 के स्थान पर प्रतिस्थापित (दिनांक 3-2-2013 से प्रभावी)
(3) जहां अपराध में एक से अधिक व्यक्तियों का दुव्यपार अतर्वलित हैं, वहां वह कठोर कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया। जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। (4) जहां अपराध में किसी अवयस्क का दुव्यपार अंतर्वलित है, वहां वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। (5) जहां अपराध में एक से अधिक अवयस्कों का दुव्र्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। (6) यदि किसी व्यक्ति को अवयस्क का एक से अधिक अवसरों पर दुर्व्यापार किए जाने के अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है तो ऐसा व्यक्ति आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। (7) जहां कोई लोक सेवक या कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति के दुव्र्यापार में अंतर्वलित है, वहां ऐसा लोक सेवक या पुलिस अधिकारी आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।] टिप्पणी धारा 370.- धारा 370 मनुष्यों का दुव्यपार से सम्बन्धित है। यह कहती है कि किसी मनुष्य का शोषण (exploitation) करने के आशय से किये गये कतिपय कार्य मनुष्यों का दुव्र्यापार कहलायेगा। ऐसे कार्य निम्न हैं : (1) मनुष्यों की भर्ती करना; (2) मनुष्यों का परिवहन करना; (3) मनुष्यों को संश्रित करना; (4) मनुष्य या मनुष्यों को स्थानान्तरित करना; या (5) व्यक्ति या व्यक्तियों को गृहीत करना। उपरोक्त कृत्य : (i) धमकियां देकर; या (ii) बल प्रयोग कर या अन्य प्रकार के उत्पीड़न द्वारा; या (iii) अपहरण; (iv) कपट या धोखा द्वारा; या (v) शक्ति का दुरुपयोग कर; या (vi) प्रेरणा का प्रलोभन जिसमें धन देना और लेना या लाभ भी शामिल हैं। ऐसा प्रलोभन किसी व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के आशय से भर्ती किये गये, परिवहनित किये गये, संश्रित, अन्तरित या प्राप्त किये गये व्यक्तियों की सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से होना चाहिये। उपरोक्त छः श्रेणियों में आने वाले व्यक्तियों को दुर्व्यापार के अपराध का दोषी कहा जायेगा। यह धारा दास प्रथा को न केवल उसके असली तथा उचित स्वरूप में दण्डित करती है अपितु उसके। परिवर्धित स्वरूप को भी दण्डित करती है जहाँ दूसरे व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर निरंकुश शक्ति का प्रयोग किया। जाता है। अवयव- इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) किसी व्यक्ति को दास के रूप में आयात, निर्यात, अपसारण, खरीदना, बेचना या व्ययनित करना, (2) किसी व्यक्ति को दास के रूप में उसकी इच्छा के विरुद्ध प्रतिग्रहण, प्राप्त या निरुद्ध करना। दास (Slave)-दास एक मानव है जिसके पास न कोई अधिकार है और न ही कोई स्थिति और जिसके। साथ दूसरों की सम्पत्ति के रूप में व्यवहार किया जाता है। इसके स्वामी को विक्रय, दान या अन्यथा व्ययनित करने का पूर्ण अधिकार होता है, यहाँ यह कि नौकर के जीवन और मृत्यु पर भी स्वामी को अधिकार रहता है। और वह किसी विधिक परिणाम के लिये उत्तरदायी नहीं होता।13 किसी व्यक्ति का ‘दास के रूप में विक्रय या व्ययन आवश्यक है।14 लड़कियों की खरीद-यदि विक्रेता तथा क्रेता का आशय लड़की से विवाह करना है तो यह धारा नहीं लागू होगी। अ किसी हिन्दू लड़की को व्यपहृत कर किसी मुसलमान ब को बेच दिया जो उसका नाम तथा धर्म परिवर्तित कर नौकर का काम लेता था और बदले में उसे खाना तथा कपड़ा देता था किन्तु मजदूरी नहीं देता था। लड़की को घर छोड़ने की भी आज्ञा नहीं थी। चार वर्षों तक उसकी सेवा में रहने के पश्चात् लड़की वहाँ से भागने में सफल हो गयी। यह अभिनिर्धारित हुआ था कि ब इस धारा में वर्णित अपराध को दोषी था।15 15 वर्षीया ब नामक एक बालिका को अ ने 25 रुपये में स से खरीदा। विक्रय-विलेख में बे का जिक्र एक दासी लड़की के रूप में किया गया था जिसे स ने य से खरीदा था। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया था। कि ब को दासी के रूप में खरीदने का अ अपराधी था।16। 17[ 370-क. ऐसे व्यक्ति का, जिसका दुर्व्यापार किया गया है, शोषण- (1) जो कोई यह जानते हुए या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी अवयस्क का दुर्व्यापार किया गया है, ऐसे अवयस्क को किसी भी रीति में लैंगिक शोषण के लिए रखेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। (2) जो कोई यह जानते हुए या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी व्यक्ति को दुर्व्यापार किया गया है, ऐसे व्यक्ति को किसी भी रीति में लैंगिक शोषण के लिए रखेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।] टिप्पणी व्याख्या 1-यह व्याख्या यह स्पष्ट करती है कि अभिव्यक्ति शोषण (exploitation) में शारीरिक शोषण या किसी प्रकार का लैंगिक शोषण शामिल है। इसमें दासता या दासता जैसी प्रथा या व्यवहार (Practices) या पराधीनता (servitude) अथवा किसी अंग को जबर्दस्ती निकालना भी शामिल है। व्याख्या 2-यह व्याख्या यह स्पष्ट करती है कि पीड़िता की सहमति दुर्व्यापार का अपराध सुनिश्चित करने हेतु महत्वहीन है। उपधारा (2)-धारा 370-क की उपधारा (2) किसी दुर्व्यपहरित (traficked) व्यक्ति के लागक शाषण को अपराध घोषित करती है. यह धारा यह प्रावधान करती है कि कोई भी जो जानबूझकर या विश्वास उचित कारण होते हुये कि कोई व्यक्ति व्यपहत किया गया है ऐसे व्यक्ति को किसी प्रकार का लैंगिक
- रामकुँवर, (1880) 2 इला० 723.
- उपरोक्त सन्दर्भ, पृ० 731.
- मिर्जा सिकन्दर बख्त, (1871) 3 एन० डब्ल्यू० सी० 146.
- । अमीना, (1884) 7 मद्रास 277.
- दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 8 द्वारा धारा 370 – क के स्थान पर प्रतिस्थापित (दिनांक 3-2-2013 से प्रभावी)।
शोषण करता है वह ऐसी अवधि के लिये जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी, कठोर कारावास से दण्डित किया जाएगा, परन्तु यह कारावास 5 (पाँच) वर्ष तक का हो सकता है और अर्थ दण्डित भी दण्डनीय होगा। इस प्रकार धारा 370-क की उपधारा (1) और (2) में अन्तर यह है कि उपधारा (1) किसी व्यपहत अवयस्क के शोषण को दण्डित करती है जबकि उपधारा (2) किसी व्यपहृत व्यक्ति चाहे वह अवयस्क हो या वयस्क के शोषण को दण्डित करती है। दुर्व्यापार (या अवैध व्यापार) का अर्थ-अवैध व्यापार का अर्थ है कि धन्धे (business like) की तरह चलाना। यहाँ दुव्र्यापार (अवैध) व्यापार को एक अपराध घोषित किया गया है जो इस रूप में दण्डनीय है क्योंकि ऐसे धन्धे का उद्देश्य खराब है और इसका उद्देश्य अवैध है।। |
- दासों का आभ्यासिक व्यौहार करना- जो कोई अभ्यासत: दासों का आयात करेगा, निर्यात करेगा, अपसारित करेगा, खरीदेगा, या बेचेगा या उनका दुर्व्यापार या व्यौहार करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक न होगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
- वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिये अप्राप्तवय को बेचना- जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय से कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिये या किसी विधिविरुद्ध और दुराचारिक प्रयोजन के लिये काम में लाया या उपयोग किया जाये या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति, किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिये काम में लाया जायेगा या उपयोग किया जायेगा, बेचेगा, भाड़े पर देगा या अन्यथा व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण 1-जबकि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी किसी वेश्या को या किसी अन्य व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबन्ध करता हो, बेची जाये, भाड़े पर दी जाये या अन्यथा व्ययनित की जाये, तब इस प्रकार ऐसी नारी को व्ययनित करने वाले व्यक्ति के बारे में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाये, यह उपधारणा की जायेगी कि उसने उसको इस आशय से व्ययनित किया है कि वह वेश्यावृत्ति के लिये उपयोग में लायी जायेगी। स्पष्टीकरण 2– अयुक्त संभोग” से इस धारा के प्रयोजनों के लिये ऐसे व्यक्तियों में मैथुन अभिप्रेत है। जो विवाह से संयुक्त नहीं हैं, या ऐसे किसी संयोग या बन्धन से संयुक्त नहीं हैं जो यद्यपि विवाह की कोटि में। तो नहीं आता तथापि उस समुदाय की, जिसके वे हैं, या यदि वे भिन्न समुदायों के हैं तो ऐसे दोनों समुदायों की, स्वीय विधि या रूढ़ि द्वारा उनके बीच में विवाह-सदृश सम्बन्ध में अभिज्ञात किया जाता हो। टिप्पणी अवयव- इस अपराध के निम्नलिखित अवयव हैं (1) किसी व्यक्ति को बेचना, भाड़े पर देना या अन्यथा उसका व्ययन करना, (2) ऐसा व्यक्ति 18 वर्ष से कम आयु का हो, (3) बेचना, भाड़े पर देना या अन्यथा व्ययन इस आशय अथवा ज्ञान से किया गया हो कि ऐसा व्यक्ति किसी भी आयु में-(i) वेश्यावृत्ति, (ii) किसी व्यक्ति से अयुक्त सम्भोग, (iii) किसी विधि विरुद्ध और दुराचारिक प्रयोजन हेतु काम में लाया जायेगा या उसका उपभोग किया जायेगा। यह धारा ऐसे व्यक्तियों पर लागू होती है जिनकी आयु 18 वर्ष से कम होती है। व्यक्ति” शब्द के अन्तर्गत पुरुष तथा स्त्री दोनों ही सम्मिलित हैं। यह विवाहिता तथा अविवाहिता दोनों ही प्रकार की स्त्रियों पर लागू होती है भले ही वह स्त्री विक्रय या क्रय से पूर्व अनैतिक जीवन व्यतीत कर रही थी।18 । किसी अवयस्क बालिका को तालीमानी का बांधने की रश्म, लडकी द्वारा किसी जल क्षेत्र की पूजा तथा खाद्य पदार्थ का वितरण इत्यादि कार्यवाहियों वेश्यावृत्ति हेतु विक्रय या भाडे पर देना या व्ययनित करने के
- इस्माइल रुस्तम खान, (1906) बाम्बे एल० आर० 236.
पूर्व के प्राथमिक कदम हैं। ये कार्यवाहियाँ इस धारा के अन्तर्गत अपराध नहीं हैं।19 ‘‘वेश्यावृत्ति” शब्द का तात्पर्य केवल प्राकृतिक सम्भोग नहीं है अपितु इसके अन्तर्गत व्यभिचार के सभी कृत्य सम्मिलित हैं। अभियुक्त का यह तर्क कि लड़की वेश्याजीवन के लिये आशयित नहीं थी बल्कि लैंगिक सम्भोग के केवल एक कृत्य के लिये आशयित थी, विश्वसनीय नहीं है। किसी बालिका को देवदासी के रूप में किसी मन्दिर को समर्पित करना ऐसे अवयस्क के व्ययन के तुल्य है, क्योंकि यह ज्ञात रहता है कि वेश्यावृत्ति के प्रयोजन हेतु लड़की का उपयोग में लाया जाना सम्भाव्य है। और यह कृत्य इस धारा के अन्तर्गत एक अपराध है।20 |
- वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिये अप्राप्तवय का खरीदना- जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय से कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिये या किसी विधिविरुद्ध दुराचारिक प्रयोजन के लिये काम में लाया या उपयोग किया जाये या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिये काम में लाया जायेगा या उपयोग किया जायेगा, खरीदेगा, भाड़े पर लेगा, या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्राप्त करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया। जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण 1-अठारह वर्ष से कम आयु की नारी को खरीदने वाली, भाड़े पर लेने वाली या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्राप्त करने वाली किसी वेश्या के या वेश्यागृह क्लाने या उसका प्रबन्ध करने वाले किसी व्यक्ति के बारे में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाये, यह उपधारणा की जायेगी कि ऐसी नारी का कब्जा उसने इस आशय से अभिप्राप्त किया है कि वह वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिये उपयोग में लाई जायेगी। स्पष्टीकरण 2-“अयुक्त संभोग” का वही अर्थ है, जो धारा 372 में है। टिप्पणी अपवाद- इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) किसी व्यक्ति को खरीदना, भाड़े पर लेना या अन्यथा उसका आधिपत्य प्राप्त करना। (2) ऐसा व्यक्ति 18 वर्ष से कम आयु का हो। । (3) खरीदना तथा भाड़े पर लिया जाना इत्यादि, इस आशय या संभाव्यता के ज्ञान से हो कि वह व्यक्ति किसी आयु में-(क) वेश्यावृत्ति या (ख) अयुक्त सम्भोग या (ग) किसी विधि-विरुद्ध और दुराचारिक प्रयोजन हेतु काम में लाया जायेगा या उसका उपयोग किया जायेगा।। स्पष्टीकरण में उल्लिखित प्रकल्पना तभी प्रभावी हो सकेगी जबकि अभियुक्त एक वेश्या है या वेश्यागृह चलाती है या उसका प्रबन्ध करती है जिस समय वह लड़की को उपाप्त करती है 21 भाग चन्द22 के वाद में बाम्बे उच्च न्यायालय ने अभिनित किया था कि इस अपराध के लिये यह आवश्यक नहीं है कि किसी व्यक्ति को खरीदना, भाड़े पर लेना या अन्यथा उस पर आधिपत्य प्राप्त करना किसी तीसरे व्यक्ति या पार्टी से होना चाहिये। यह अपराध उसी समय पूर्ण हो जाता है जिस समय अपेक्षित ज्ञान से पीड़ित व्यक्ति पर आधिपत्य प्राप्त किया जाता है। जो कोई भी व्यक्ति किसी अवयस्क लड़की जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है, को अपेक्षित आशय से चुराता है वह इस धारा के अन्तर्गत उसका आधिपत्य प्राप्त करता है 23 धारा 372 किसी लड़की को बेचने से सम्बन्धित है अत: उसमें दो पक्षकारों का होना नितान्त आवश्यक है। इस धारा के अन्तर्गत दो पक्षकारों का होना आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह केवल किसी लड़की का कब्जा प्राप्त करने से सम्बन्धित है|24
- साहेबाबा वीरप्पा, (1925) 27 बाम्बे एल० आर० 1022.
- वासवा, (1891) 15 मद्रास 75.
- बानू बाई ईरानी, (1942) 45 बाम्बे एल० आर० 281 (फु० बे०).
- (1934) 36 बाम्बे एल० आर० 379.
- (1934) 36 बाम्बे एल० आर० 379.
- गोर्धन कालीदास, (1941) 43 बाम्बे एल० आर० 847.
यह धारा केवल कब्जे के उद्देश्यों को सुस्पष्ट करती है कि कब्जे का उद्देश्य या तो वेश्यावत्ति हो चाहिये अथवा अवैध सम्भोग। यह कब्जे की प्रकृति, उसका काल अथवा प्रगाढता का उल्लेख नहीं की। अत: यदि किसी वेश्यालय का मालिक 18 वर्ष से कम आयु की किसी लड़की को यह स्वीकति देता है तह पैसे के लिये उसके वेश्यालय में रात्रि के दो या तीन घण्टे तक वेश्यावृत्ति कर सकती है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।25 किसी लड़की को केवल एक बार सम्भोग के लिये कब्जे में रखना, इस अपराध के अन्तर्गत नहीं आता है। इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये एक से अधिक बार सो अपेक्षित है। कब्जे में आये व्यक्ति पर निश्चित नियन्त्रण भी आवश्यक है। यह धारा बेचने की शक्ति के साथ। कब्जे का उल्लेख करती है ।26 कब्जे में एक प्रकार का नियन्त्रण भी निहित है। जहाँ कोई लड़की अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति के साथ। लापता हो जाती है और इस आशय का कोई प्रमाण नहीं है कि वह उसे किसी क्षण छोड नहीं सकती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह लड़की उस व्यक्ति के कब्जे में है।27।
- विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम- जो कोई किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध श्रम करने के लिये विधिविरुद्ध तौर पर विवश करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों, से दण्डित किया जायेगा।
टिप्पणी कठोर कारावास-स्टेट ऑफ गुजरात बनाम माननीय उच्च न्यायालय, गुजरात-8 के वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनित किया गया कि कठोर कारावास का दण्ड भुगत रहे कैदियों से कठोर श्रम लेना विधि सम्मत है। इस वाद में न्यायमूर्ति थामस ने यह अभिमत व्यक्त किया है ऐसा कहा जाता है कि सिद्ध अपराधियों को कठोर श्रम की सजा देना अन्य लोगों पर अपराध कारित करने से निवारक प्रभाव रखता है और इस प्रकार समाज उस सीमा तक अन्य लोगों द्वारा अपराध किये जाने से सुरक्षित हो जाता है। वर्तमान में दण्ड का प्रमुख उद्देश्य सुधारात्मक है। अतएव किसी कैदी को यह आश्वासन कि उसके कठोर श्रम से अन्तत: उसके लिये ही एक अच्छी खासी बचत हो जायेगी जिससे उसका पुनर्वास हो सकेगा और जिससे उसको उस उदासी और नैराश्य से मुक्ति मिलेगी जिसका वह कैदी जीवन में कठोर श्रम करते समय अनुभव करता था। इस प्रकार किसी कैदी का सुधार और पुनस्र्थापन एक महत्वपूर्ण लोक नीति है। इसलिये यह एक लोक उद्देश्य की पूर्ति करता है। अतएव विधि की शक्ति के अधीन किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को, जिसे कठोर कारावास की सजा दी गयी हो, अनिवार्य रूप से शारीरिक श्रम करने का न्यायालय के निर्देश को संविधान के अनुच्छेद 23 के खण्ड (2) के अपवाद के अन्तर्गत विधिक सुरक्षा प्राप्त होती है क्योंकि इससे एक पब्लिक उद्देश्य की पूर्ति होती है। न्यायमूर्ति डी० पी० बाधवा ने यह अभिमत व्यक्त किया कि किसी कैदी से कठोर श्रम लेना जबकि वह किसी सक्षम न्यायालय के आदेशानुसार कठोर कारागार का दण्ड भुगत रहा हो, को बेगार अथवा उसी प्रकार के अन्य प्रकार के जवाबदेही के लिये जाने वाले श्रम के तुल्य नहीं कहा जा सकता है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 23 के खण्ड (1) का किसी प्रकार उल्लंघन नहीं होता है। ऐसे मामलों में संविधान का अनुच्छेद 23 खण्ड (2) लागू नहीं होता है। । न्यायालय द्वारा आगे यह अभिमत भी व्यक्त किया गया कि यह अनिवार्य है कि कैदी को उसके द्वारा किये गये कार्य हेतु सम्यक् मजदूरी का संदाय किया जाय। किसी कैदी को भुगतान की जाने वाली सम्यक् मजदूरी की मात्रा निर्धारण करने के लिये सम्बन्धित राज्य एक मजदूरी निर्धारक निकाय का गठन करेगा जो इस सम्बन्ध में अपनी संस्तुति देगा। न्यायालय ने सभी राज्यों को यथाशीघ्र ऐसे कदम उठाने का निर्देश दिया। जब तक कि राज्य सरकार ऐसी किसी संस्तुति पर निर्णय लेती है तब तक प्रत्येक कैदी को उसके द्वारा किये कार्य हेतु, ऐसी दर पर अथवा पुनरीक्षित दर पर मजदूरी दी जायेगी जैसा कि सम्बन्धित सरकार उपर्युक्त
- बिठाभाई सुखा, (1928) 30 बाम्बे एल० आर० 613.
- भाग चन्द, (1934) 36 बाम्बे एल० आर० 379.
- जतीन्द्र मोहन दास, (1937) 2 कलकत्ता 107. |
- ए० आई० आर० 1998 एस० सी० 3164.
अभिमत के आलोक में तय करे। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु राज्य सरकारों को छ: सप्ताह के अन्दर अन्तरिम मजदूरी की दरों को निर्धारित करने का निर्देश दिया जाता है।
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