Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 25 LLB Notes
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Important Notes for LLB Law Education All University. कोई अवयस्क विवाहिता लड़की जब तक यौवनागम (Puberty) को अवस्था प्राप्त नहीं कर लेती, यदि वह पिता की जायज संतान है तो अपने पिता के ही संरक्षण में रहती है। किन्तु यदि नाजायज सन्तान है तो माता के संरक्षण में रहती है। अवयस्क विवाहिता लड़की का विधिपूर्ण संरक्षक उसका पति होता है, यदि लड़की यौवनागम की अवस्था प्राप्त कर लिया है और पति भी अवयस्क नहीं है। यदि किसी अवयस्क विवाहिता लड़की का पिता, लड़की को उसके पति की सम्मति लिये बिना ले जाता है तो वह व्यपहरण का अपराधी होगा भले ही ऐसा करते समय पिता का कोई आपराधिक आशय न रहा हो 67 पिता अपनी ही पुत्री के व्यपहरण का दोषी होगा-(1) यदि वह उसे उसके पति के यहाँ से ले जाता है और यदि वह यौवनागम की अवस्था प्राप्त कर चुकी है, (2) यदि वह उसे उसकी माता की अभिरक्षा से ले जाता है और पुत्री उसकी अवैध सन्तान है। इसी प्रकार माँ भी अपने ही बच्चों के व्यपहरण की दोषी हो। सकती है। मुस्लिम विधि-मुस्लिम विधि के अन्तर्गत यदि कोई सुन्नी पिता अपने सात वर्ष से कम आयु के पुत्र को या यौवनागम की अवस्था प्राप्त करने से पूर्व पुत्री को या किसी अवैध शिशु को उसकी माँ की अभिरक्षा से ले जाता है तो वह इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी होगा, क्योंकि मुस्लिम विधि के अन्तर्गत माँ विधिपूर्ण संरक्षिका होती है 68 सन्नी विधि के अन्तर्गत माँ अपनी पुत्री की संरक्षिका तब तक होती है जब तक कि वह यौवनागम की अवस्था प्राप्त नहीं कर लेती। मुस्लिम विधि के अन्तर्गत कोई लड़की 15 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर यौवनागम की अवस्था प्राप्त करती है। यदि कोई शिया पिता सात वर्ष के कम आयु की पुत्री या पुत्र को या किसी अवैध शिशु को उसकी माँ की अभिरक्षा में से ले जाता है, तो वह व्यपहरण के अपराध का दोषी होगा 69 तलाकशुदा पत्नी अपने बच्चों की अभिरक्षा की अधिकारिणी है।70 जहाँ तक संरक्षकता का प्रश्न है मुस्लिम विधि के अन्तर्गत माता के बाद पिता ही संरक्षक होता है। इसके पश्चात अन्य सम्वन्धी आते हैं जो प्रतिषिद्ध डिग्री के अन्तर्गत हैं। जब कोई विवाहिता लडकी यौवनागम की अवस्था प्राप्त कर लेती है तो उसका पति उसका संरक्षक होता है। उदाहरण-एक प्रकरण में एक लड़की स्वत: अ के घर गयी, वहाँ उसने उसे मजबूर किया कि वह उससे विवाह की संविदा कर ले। इसके पश्चात् वह वापस लौट आयी तथा पिता को विवाह की संविदा के विषय में बता दिया। इस पर उसके पिता ने उसे एक कमरे में बन्द कर दिया। तीन दिन के पश्चात् उसने बलपूर्वक दरवाजा खोल लिया और अभियुक्त अ के घर चली गयी। अभियुक्त को इस धारा के अन्तर्गत दोषसिद्धि नहीं प्रदान की गयी।71 यदि कोई अवयस्क संरक्षक की सम्मति से ले जाया जाता है और उसका विवाह किसी अन्य व्यक्ति के साथ संरक्षक की सम्मति के बिना कर दिया जाता है तो ऐसे अनुचित विवाह से स्वत: व्यपहरण का अपराध संरचित होगा।72 वम्बई की एक महिला छात्रा जिसकी उम्र 17 वर्ष 10 महीने थी, सामाजिक सेवा कैम्प में भाग लेने के लिये बम्बई से लखनऊ आ रही थी। कैम्प की अवधि 60 दिन की थी। रास्ते में क, एक व्यापारी से उसका परिचय हुआ। क भी उसी डिब्बे में यात्रा कर रहा था। लखनऊ पहुँचने पर जब तक वह लडकी कैम्प में रही कं, उससे कई बार मिला। उसने उसको कई उपहार भी दिये। कैम्प की समाप्ति पर क उसे अपने साथ अपने शहर कानपुर ले गया, वहाँ उससे शादी कर लिया। इस प्रकरण में क व्यपहरण का दोषी नहीं। होगा। क्योंकि कैम्प की समाप्ति पर वह लड़की 18 वर्ष पूरे कर चुकी थी। वह नाबालिग से बालिक हो चुकी थी।
- धरनीधर घोष, (1889) 17 कल० 298.
68, नूर कादिर बनाम जुलेखा वीवी, (1885) 11 कल० 649.
- उपरोक्त सन्दर्भ,
70, आयशा बाई, (1904) 6 बाम्बे एल० आर० 536. 71, (1971) क्रि० लाँ ज० 6. 72, जलाद, (1911) 36 मद्रास 453. समस्या– अ और ब ने परस्पर पत्राचार किया कि कैसे वे एक अवयस्क लड़की का अपहरण करें और बाद में इसे असंभव मान कर विचार बदल दिया। यदि उनमें से किसी ने लड़की को किसी निश्चित स्थान पर मिलने के लिये बहलाते हुये पर्ची लिख कर भेजा हो, तो उनमें से एक ने या दोनों ने क्या अपराध किया है।
इस समस्या में अ और ब ने पत्राचार के माध्यम से अवयस्क लड़की के अपहरण का षड्यंत्र किया है जो कि अपराध होता। धारा 120-क को ध्यान में रखते हुये किसी ऐसे कृत्य को कारित करने का जो अपराध है, मात्र करार करना दाण्डिक षड्यंत्र के अपराध का गठन करता है। अत: अ और ब आपराधिक षड्यंत्र का अपराध कारित करने के दायी होंगे। उनमें से जिस किसी ने अवयस्क लड़की को किसी नियत स्थान पर मिलने के लिये बहलाते हुये पत्र लिखा था, वह व्यपहरण का प्रयत्न करने का भी दोषी होगा। यह मात्र प्रयास ही माना जायेगा, क्योंकि लड़की अपने संरक्षक के स्थान से अब तक निकल कर बाहर नहीं आई है। किन्तु अभियुक्त जिसने उसे पत्र लिखकर लुभाया है, उसने विधिक संरक्षण को छोड़कर बाहर आने के लिये प्रेरित करने का काम कर दिया। अपहरण का अपराध पूर्ण नहीं हुआ, क्योंकि लड़की अपने विधिक संरक्षक के संरक्षण से बाहर नहीं आई। जिसने पत्र लिखा वह व्यपहरण के प्रयत्न का दोषी होगा। 362. अपहरण- जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है, या किन्हीं प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है, वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है, यह कहा जाता टिप्पणी इस धारा में, ‘‘अपहरण” को परिभाषित किया गया है। इस धारा के अन्तर्गत अपहरण मूल अपराध नहीं है, अपितु एक सहायक कार्य है जो स्वत: दण्डनीय नहीं है। अपहरण तभी आपराधिक होता है जब इसे किसी आपराधिक आशय से किया गया हो।73। अवयव-इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) बलपूर्वक बाध्यता अथवा प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरण; (2) ऐसी बाध्यता या उत्प्रेरण का उद्देश्य किसी व्यक्ति को किसी स्थान से ले जाने का हो। बलपूर्वक बाध्यता या प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरण- अपहरण में किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये बल द्वारा विवश किया जाता है या प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित किया जाता है।74 अपहरण के लिये वास्तविक बल प्रयोग आवश्यक है, केवल बल का प्रदर्शन या उसकी धमकी पर्याप्त नहीं है।75 बल या कपट का वास्तविक प्रयोग आवश्यक है।76 अपहरण के मामले में अपहरणकर्ता अपहृत व्यक्ति को सक्रिय सुझाव देता है और इसी सुझाव के कारण अपहृत व्यक्ति उस स्थान पर जाता है जहाँ वह सुझाव के बिना नहीं गया होता। क्षतिग्रस्त व्यक्ति का मस्तिष्क परिवर्तन किसी प्रकार के वाह्य दबाव के फलस्वरूप होना चाहिये।77 किसी व्यक्ति का किसी स्थान से जाना- जब बल, कपट या प्रवंचनापूर्ण उपाय का प्रयोग कर किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये बाध्य किया जाता है या उत्प्रेरित किया जाता है तो यह अपराध संरचित हुआ माना जाता है। अतः यदि किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक ले जाया जाता है तो यह कार्य अपहरण के तुल्य होगा भले ही उसे उसके पति के पास पहुँचाने के उद्देश्य से ले जाया गया रहा हो।78
- नन्हुआ धीमर, (1930) 53 इला० 140.
- कोमल दास, (1865) 2 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 7.
- नुरू, (1950) 51 क्रि० लॉ ज० 29.
- बैरेट, (1881) 15 काक्स 658. ।
- अल्लाराखियों, ए० आई० आर० 1934 सिंध 164.
- फतनाया, (1942) 23 लाहौर 470.
अनवरत अपराध-अपहरण एक अनवरत अपराध है। अत: कोई व्यक्ति केवल तभी दण्डनीय नहीं होता जब वह पहली बार किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हटाता है या ले जाता है बल्कि जबजब उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है हर बार अपहरण का एक नया अपराध संरचित होता है और जो भी व्यक्ति अपहरण में सम्मिलित रहते हैं, दण्डनीय होते हैं।79 दष्प्रेरण- यदि कोई स्त्री अपने ही अपहरण के लिये सम्मति देती है और उसकी सम्मति स्वतन्त्र सम्मति है, ऐसी स्थिति में अपराध संरचित नहीं होगा और वह स्त्री अपने अपहरण के दुष्प्रेरण हेतु दण्डनीय नहीं होगा।80 उदाहरण-महबूब81 के वाद में 17 वर्ष की एक अनाथ लड़की का पालन-पोषण म द्वारा अपनी पुत्री की तरह किया गया था। म के पड़ोसी अ ने उसे उत्प्रेरित किया कि वह अपना घर छोड़ दे। अ ने उस लड़की को यह विश्वास दिलाया था कि या तो वह स्वयं उससे विवाह कर लेगा या किसी अन्य व्यक्ति से उसका विवाह कर देगा। किन्तु उसने अपना वादा पूरा नहीं किया अपितु उसका सतीत्व नष्ट कर दिया तथा अपने मित्र को भी उसका सतीत्व नष्ट करने का अवसर दिया। अ को इस अपराध के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी। यह अभिनिर्धारित हुआ था कि पदावली ‘‘प्रवंचनापूर्ण उपाय” इतनी विस्तृत है कि इसके अन्तर्गत किसी लड़की को अपने पिता का घर छोड़ने के लिये उत्प्रेरित करना भी सम्मिलित है। यदि अभियुक्त ने यह विश्वास दिलाया था कि वह स्वयं या तो उससे विवाह कर लेगा या उसके विवाह की व्यवस्था करेगा, ये तथ्य उसे दण्डित करने के लिये पर्याप्त हैं। विनोद चतुर्वेदी बनाम मध्य प्रदेश राज्य82 के वाद में अभियुक्तों पर वृन्दावन नामक एक व्यक्ति के अपहरण का आरोप लगाया गया। बाद में वृन्दावन मृत पाया गया। छानबीन के दौरान यह पता चला कि वृन्दावन अभियुक्तों द्वारा विशेष कर विनोद द्वारा बार-बार कहे जाने पर अपने घर के अन्दर गया, अच्छे ढंग से तैयार होकर बाहर आया और अभियुक्तों के साथ रामपुर गाँव को गया। ऐसी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियुक्तों ने धारा 362 के अर्थ के अन्तर्गत वृन्दावन का अपहरण किया था। जहाँ कोई 16 वर्षीया बालिका अपनी स्वतन्त्र इच्छा से अभियुक्त के साथ लैंगिक सम्भोग के लिये जाती है तथा बल प्रयोग एवं प्रवंचनापूर्ण रीति से उत्प्रेरण का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, तो अभियुक्त इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी नहीं होगा।83 अल्लू84 के बाद में अभियुक्त एक मकान की छत पर आया जहाँ ब, नामक एक स्त्री सो रही थी। अभियुक्त ने उसे जगाया और उसे अपने साथ चलने को कहा। स्त्री ने उसके साथ जाने से इन्कार कर दिया। अत: उसे ले जाने के आशय से अभियुक्त ने उसे उठा लिया। उस स्त्री द्वारा शोर मचाये जाने पर वह उसे छत पर पटक कर भाग गया। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि इस धारा में वर्णित अपराध कारित नहीं हुआ है क्योंकि वह स्त्री घटना के समय जहाँ थी वहाँ से जाने के लिये उसे बाध्य नहीं किया गया था, उसे केवल उठाया गया था तत्पश्चात् छत पर पटक दिया गया था। इस मामले में अभियुक्त अपहरण का दोषी नहीं था किन्तु वह धारा 366 तथा 511 के अन्तर्गत अपहरण के प्रयत्न का दोषी था। यदि कोई लड़की अभियुक्त के साथ जाने को इच्छुक नहीं थी किन्तु अभियुक्त ने उसे बाध्य किया कि वह उसके साथ चले तो अभियुक्त अपहरण का अपराधी था।85
- गंगादेवी, ए० आई० आर० 1914 इला० 17.
- नाथा सिंह, (1883) पी० आर० नं० 11 सन् 1883.
- (1907) 4 ए० एल० जे० आर० 482.
- 1984 क्रि० लॉ ज० 814 सु० को०.
- ए० आई० आर० 1952 राजस्थान 123.
- ए० आई० आर० 1925 लाहौर 512.
- ए० आई० आर० 1925 अवध 328.
व्यपहरण तथा अपहरण में अन्तर (1) ‘व्यपहरण’ का अपराध 16 वर्ष से कम आयु के बालक तथा 18 वर्ष से कम आयु की बालिका अथवा किसी विकृत चित्त व्यक्ति के सम्बन्ध में किया जाता है। अपहरण का अपराध किसी भी उम्र के व्यक्ति के साथ किया जाता है। (2) व्यपहरण के अन्तर्गत किसी व्यक्ति को उसके विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षकता से हटाया जाता है। अत: बिना संरक्षक के बालक को ‘‘ले जाना” या ‘‘बहकाना” व्यपहरण का अपराध संरचित नहीं करता। अपहरण” अपहृत व्यक्ति से संदर्भित होता है। अपहृत व्यक्ति का किसी व्यक्ति की संरक्षकता में होना आवश्यक नहीं है। (3) किसी अवयस्क या विकृतचित्त व्यक्ति के केवल ले जाने या बहकाने मात्र से ही ‘‘व्यपहरण” का अपराध संरचित हो जाता है। अपहरण के अपराध में प्रयोग में लाये गये साधन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते। हैं। ये साधन हैं बलपूर्वक बाध्यता अथवा प्रवंचनापूर्ण उत्प्रेरण।। (4) “व्यपहरण” में ले जाये अथवा बहकाये गये व्यक्ति की सम्मति का कोई महत्व नहीं है क्योंकि ऐसे व्यक्ति वैध सम्मति देने के लिये सक्षम नहीं हैं। अपहरण में अपहृत व्यक्ति की सम्मति यदि उन्मुक्त तथा स्वैच्छिक थी तो वह अपराध उपमर्षित (condone) या माफ कर देती है। | (5) व्यपहरण में व्यपहरणकर्ता के आशय का कोई महत्व नहीं होता किन्तु अपहरण के अन्तर्गत अपहरणकर्ता का आशय इस अपराध की संरचना हेतु एक महत्वपूर्ण अवयव है, क्योंकि अपहरण अपने आप में कोई अपराध नहीं है। यह तभी अपराध होता है जब इसे किसी विशिष्ट आशय से किया जाता है। | (6) व्यपहरण कोई अनवरत अपराध नहीं, क्योंकि यह उसी समय पूर्ण हो जाती है जिस समय किसी व्यक्ति को विधिपूर्ण संरक्षकता से वंचित किया जाता है। अपहरण का अपराध एक अनवरत या निरन्तर चालू रहने वाला अपराध है। यह तब तक गतिमान रहता है तब तक अपहृत व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। (7) “व्यपहरण” का अपराध एक मूल अपराध है जबकि अपहरण अपराध के सहायक कृत्य हैं। अपहरण स्वतः दण्डनीय नहीं है, यह तभी आपराधिक होता है जब इसे धारा 364 तथा अन्य धाराओं में, उल्लिखित किसी एक आशय से किया जाता है। ।
- व्यपहरण के लिए दण्ड-जो कोई भारत में से या विधिपूर्ण संरक्षकता में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
टिप्पणी शशिधर पुरन्दर हेगड़े बनाम कर्नाटक राज्य86 वाले मामले में घटना का शिकार निरंजन (अभि० सा० 3) पुत्र सुधाकर कामत (अभि० सा० 1) को अभियुक्त (अ-1) यह बहाना कर अपने साथ ले गया कि घटना का शिकार उसके जीजा प्रभू ने उसे निरंजन को साथ लाने के लिये कहा है। अभियुक्त ने लड़के को। बताया कि उसने कक्षा अध्यापक से भी अनुमति ले लिया है। जब लडका बाहर आया तो उसे मोटर साइकिल पर ले जाया गया, रास्ते में अ-2 भी उसके साथ हो लिया और तीनों मोटर साइकिल से गये। लड़के को जगल में ले गये, उसका बस्ता भी घर में रखने नहीं दिया, जबकि घर रास्ते में ही था। जंगल में पहुंच इस बहाने थोड़ी देर के लिये बाहर गया कि वह घटना के शिकार निरंजन के जीजा का पता ल आकर अ-1 ने अ-2 से गुप्त रूप से बात किया। इसके बाद अ-2 भी यह बहाना कर चल सोने की अंगूठी खो गई है उसे ढूंढने जा रहा है। अब लड़के को सन्देह हो गया और उसने अ -1 कहा कि
- 2004 क्रि० लॉ ज० 4677 (सु० को०).
उसे घर पर छोड़ आये और जब लड़के ने जोर दिया तब अ-1 ने उसे धमकाया कि वहाँ एक भत है और चाक दिखाया। जब अ-1 ने लड़के को घसीट कर लिटा दिया और हाथ से उसका मुंह बंद कर लिया तब घटना के शिकार निरंजन के मुंह से कुछ आवाज निकली। इस पर निरंजन के भाई के दोस्त ने उधर टार्च की लाइट फेंका और देखा कि अ-1 लड़के को पकड़े हुये है। उन्होंने अ-1 को पकड़ लिया और पुलिस के सामने प्रस्तुत किया। अ-1 ने घटना के शिकार निरंजन के पिता को फोन पर सूचित किया कि उनके लड़के का अपहरण हो गया है और यदि तीन लाख रुपये नहीं दिया गया तो उसे मार दिया जाएगा। अ-1 ने लड़के के पिता को लगभग 4.30 बजे अपरान्ह फोन किया था इस तथ्य को राजेन्द्र अभि० सा० 7 जो चावल मिल मालिक है, और प्रबंधक पी० वी० हेगड़े (अभि० सा० 11) ने बताया। अभि० सा० 11 के अनुसार लगभग 6.00 बजे शाम को अ-1 ने किसी को फोन किया। यह सच है कि अभि० सा० 7 और अभि० सा० 11 यह नहीं बता सके कि उसने क्या बात की और किसको फोन किया था। अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 363, 368, 506 और 507 के अधीन विचारण किया गया और दोषमुक्त कर दिया गया। अपील किये जाने पर उच्च न्यायालय ने अभियुक्तों को दोषसिद्ध किया, इसलिये उच्चतम न्यायालय के समक्ष यह अपील की गई है। यह निर्णीत किया गया कि घटना के शिकार लड़के के साक्ष्य से स्थिति स्पष्ट है कि किस प्रकार अभियुक्तों ने लड़के का अपहरण किया और जंगल में उसे परिरुद्ध किया। मात्र इसलिये कि साक्षियों ने पहले उस स्थान का पता लगाया, जहाँ बच्चे को छुपाया गया था, ऐसा आधार नहीं है कि साक्ष्य को नकारा जाय, क्योंकि इनमें से कुछ आपराधिक मामलों में फंसे हैं। घटना के शिकार लड़के के सहपाठियों द्वारा दिये गये विवरण से अभियुक्तों के पहचान की और पीड़ित के साक्ष्य की पुष्टि होती है। इसलिये, अपील खारिज कर दी गई और यह अभिनिर्धारित किया गया कि मामूली कमियों के कारण अभियुक्तों की दोषमुक्ति अनुचित थी। इन मामूली कमियों को विसंगति नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस शब्द के अर्थ व्यापक हैं। 363-क. भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए अप्राप्तवय का व्यपहरण या विकलांगीकरण-(1) जो कोई किसी अप्राप्तवय का इसलिए व्यपहरण करेगा या अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक स्वयं न होते हुए अप्राप्तवय की अभिरक्षा इसलिए अभिप्राप्त करेगा कि ऐसा अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। (2) जो कोई किसी अप्राप्तवय को विकलांग इसलिए करेगा कि ऐसा अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए, वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। (3) जहाँ कि कोई व्यक्ति, जो अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक नहीं है, उस अप्राप्तवय को भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त करेगा, वहाँ जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उसने इस उद्देश्य से उस अप्राप्तवयं का व्यपहरण किया था या अन्यथा उसकी अभिरक्षा अभिप्राप्त की थी कि वह अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए। (4) इस धारा में, (क) “ भीख मांगने” से अभिप्रेत है (i) लोक स्थान में भिक्षा की याचना या प्राप्ति चाहे गाने, नाचने, भाग्य बताने, करतब दिखाने या चीजें बेचने के बहाने अथवा अन्यथा करना, (ii) भिक्षा की याचना या प्राप्ति करने के प्रयोजन से किसी प्राइवेट परिसर में प्रवेश करना, (iii) भिक्षा अभिप्राप्त या उद्दापित करने के उद्देश्य से अपना या किसी अन्य व्यक्ति का या जीवजन्तु का कोई व्रण, घाव, ति, विरूपता या रोग अभिदर्शित या प्रदर्शित करना, (iv) भिक्षा की याचना या प्राप्ति के प्रयोजन से अप्राप्तवय का प्रदर्शित के रूप में प्रयोग करना, (ख) अप्राप्तवय से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो (i) यदि नर है, तो सोलह वर्ष से कम आयु का है, तथा (ii) यदि नारी है, तो अठारह वर्ष से कम आयु की है।
- हत्या करने के लिए व्यपहरण या अपहरण- जो कोई इसलिए किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा कि ऐसे व्यक्ति की हत्या की जाए या उसको ऐसे व्ययनित किया जाए कि वह अपनी हत्या होने के खतरे में पड़ जाए, वह आजीवन कारावास से, या कठिन करावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
दृष्टान्त (क) क इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए कि किसी देव मूर्ति पर य की बलि चढ़ाई जाए, । भारत में से य का व्यपहरण करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है। (ख) ख को उसके गृह से क इसलिए बलपूर्वक या बहकाकर ले जाता है कि ख की हत्या की जाए। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है। टिप्पणी सुचा सिंह बनाम पंजाब राज्य87 के वाद में उस अवधि में जब पंजाब में आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर था दो सिख नवयुवकों को उनके घर से अंधेरी रात्रि में उनके माता-पिता की निगाह के सामने से सशस्त्र आक्रमणकारियों द्वारा अपहरण कर लिया गया। ए० के० 47 राइफल से फायर करके थोड़ी ही देर बाद उन्हें अपहर्ताओं ने उनके घर से थोड़ी दूरी पर मार डाला। अपहर्ताओं को हत्या हेतु आरोपित किया गया। यह अभिनित किया गया कि जब एक से अधिक लोगों ने पीड़ित व्यक्ति का अपहरण किया जिसकी कि बाद में हत्या कर दी गई तो यह न्यायालय के विधिक क्षेत्राधिकार में है कि वह वस्तु स्थिति को ध्यान में रखते हुये न्यायानुमत ढंग से यह उपधारणा कर सकती है कि हत्या हेतु सभी अपहर्ता दायित्वाधीन हैं। इस प्रयोजन के लिये भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 की सहायता ली जा सकती है जब तक कि अपहर्ताओं में से विशेष रूप से कोई न्यायालय को इस बात से संतुष्ट न कर दे कि उन लोगों ने के पश्चात् अपहृत व्यक्ति के साथ क्या किया। अर्थात् उसने क्या अपने साथियों का साथ रास्ते में छोड़ दिया अथवा क्या उसने अन्य साथियों को मृत्यु कारित न करने से विरत किया। वल अपहर्ता ही न्यायालय को यह बता सकते हैं कि मृतक का अपहृत व्यक्तियों के अपहरण के बाद क्या हुआ। जब अपहरणकर्ता न्यायालय से यह सूचना छिपाते हैं तो इस बात का पूर्ण औचित्य है कि समस्त पूर्ववर्ती और पश्चात्वर्ती परिस्थितियों पर विचारोपरान्त यह निष्कर्ष निकाला जाय कि अपहरणकर्ता ही मृतक के हत्यारे हैं। झपसा कवारी बनाम बिहार राज्य88 के वाद में दिन में लगभग 10 बजे नसीम कवारी की हत्या कर दी गई थी। अभियुक्तगण जो कि लगभग 50 व्यक्तियों के एक विधि-विरुद्ध जमाव के अंग थे, प्राणघातक हथियारों जैसे बन्दूक, भाला, फरसा और गड़ासा से सुसज्जित थे। इन लोगों ने अपने सामान्य उद्देश्य के अग्रसरण में शीतल सिंह और राम सेवक सिंह को मार डाला जिनके बारे में विधि-विरुद्ध जमाव को यह विश्वास था कि उन्होंने खत्तर सिंह के साथ नसीम कवारी की हत्या किया था। दोनों मृतक रामसेवक सिंह और शीतल सिंह चचेरे भाई थे। दोनों को ही अभियुक्त भिखर रावत द्वारा फरसा से हमलाकर चोट कारित का गई थी। अभियुक्त दीप नारायण सिंह ने राम सेवक सिंह की गर्दन काट डाली जबकि अभियुक्त इसरायल कवारी ने शीतल सिंह के पेट में भाला से प्रहार किया। दोनों की तत्काल मृत्यु हो गई। उसके बाद विधि १९% जमाव खत्तर सिंह के घर गई और अभियोजन के अनुसार अभियुक्त तरनी प्रसाद सिंह, भिखर । झार ताहिर कवारी ने उसके लगभग तीन वर्षीय संतोष कुमार सिंह को खत्तर सिंह की पत्नी की गोद से छीन 87, 2007 क्रि० लाँ ज० 1734 (एस० सी०).
- 2002 क्रि० लॉ ज० 587 (एस० सी०).
लिये। बच्चे को उठा ले गये और दूसरे दिन संतोष कुमार सिंह को मृत पाया गया। उसके शव को धान के एक 7 लाया गया, जहाँ से खेत में गड़ा हुआ पाया गया, जहाँ से अन्वेषक अधिकारी द्वारा : उसे बरामद किया गया। 17 व्यक्तियों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 सपठित धारा 34 और धारा 148 के अधीन साक्ष्य और ज्ञान रखते हुये राम सेवक सिंह, शीतल सिंह और संतोष कुमार सिंह की सामान्य उद्देश्य के अग्रसरण में हत्या कारित करने के अपराध के लिये विचारण किया गया। उन्हें भारतीय दण्ड संहिता की धारा 449 और 380 के अधीन भी आरोपित किया गया। अभियुक्त इसरायल कवारी को अलग से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन शीतल सिंह की हत्या के लिये और दीप नारायण सिंह को राम सेवक सिंह की हत्या करने के लिये आरोपित किया गया। भिखारी रावत, ताहिर कवारी और तरनी प्रसाद सिंह को भी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302/34 के अधीन संतोष कुमार सिंह की हत्या कारित करने के लिये आरोपित किया गया। 17 अभियुक्तों में से तीन को दोषमुक्त कर दिया गया और एक की विचारण के दौरान मृत्यु हो गई और दो ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती नहीं दी। शेष 11 ग्यारह इस वाद में अपीलांट हैं। अभियुक्तगणों को विचारण न्यायालय द्वारा एक मात्र प्रत्यक्षदर्शी साक्षी मृतकों में से एक की पत्नी के साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्ध किया गया। उसका बयान एक मृतक की पत्नी के रूप में सर्वाधिक सहज (प्राकृतिक) विश्वसनीय (reliable) और विश्वास योग्य (trustworthy) था और प्रतिपरीक्षण में भी खरा उतरा।। यह अभिनित किया गया कि एक मात्र प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि वर्जित नहीं है। मात्र इस कारण कि दूसरे साक्षी 14 वर्ष की आयु के शिशु जिसके पिता और चाचा की घटना में मृत्यु हो गई थी, ने प्रथम सूचना रिपोर्ट के तथ्यों में उसके नाम का उल्लेख नहीं किया था, का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा और उसके साक्ष्य को अस्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। कतिपय अभियुक्तों के विरुद्ध कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाया गया था। इस बात को सिद्ध करने का कोई साक्ष्य नहीं था कि आपराधिक कार्य सामान्य आशय के अग्रसरण में किया गया था। उन्हें धारा 149 के अधीन आरोपित नहीं किया गया था। इसलिये धारा 34 और धारा 149 के अधीन अपराध कारित किये जाने सम्बन्धी साक्ष्य के पूर्णरूपेण अभाव के परिणामस्वरूप अभियुक्तगणों का धारा 149 अथवा धारा 34 की सहायता से दोषसिद्धि उचित नहीं थी। साथ ही तीन अभियुक्तों, तरनी प्रसाद सिंह, भीखर रावत, और ताहिर कवारी की भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364 के अधीन व्यपहृत शिशु की माता के साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि उचित थी और उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया और तरनी प्रसाद सिंह, भीखर रावत और इसरायल कवारी की भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302/34 के अधीन दोषसिद्धि को यथावत रखा गया। शेष अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया गया। 89 [364-क. मुक्ति-धन इत्यादि, के लिए व्यपहरण- जो कोई किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करता है अथवा ऐसे व्यपहरण या अपहरण के पश्चात् किसी व्यक्ति का निरोध करता है, और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु या उपहति कारित करने की धमकी देता है, अथवा अपने आचरण द्वारा ऐसी युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न करता है कि ऐसे व्यक्ति की हत्या या उपहति कारित की जा सकती है अथवा ऐसे व्यक्ति को उपहति या मृत्यु, सरकार को 90[ या किसी विदेशी राज्य अथवा अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्शासकीय संगठन अथवा किसी अन्य व्यक्ति] को किसी कार्य को करने या कार्य को करने से विरत रहने अथवा मुक्ति-धन अदा करने के लिए बाध्य करने के उद्देश्य से कारित करता है, मृत्यु दण्ड अथवा आजीवन कारावास से दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। टिप्पणी मल्लेशी बनाम कर्नाटक राज्य91 वाले मामले में विजय भाष्कर (अभि० सा० 2) जो कालेज में बी०। एससी० प्रथम वर्ष का विद्यार्थी था और अपने चाचा के घर में रहता था, वह प्रतिदिन बस से कालेज जाता था! |
- 1993 के अधिनियम संख्या 42 की धारा 2 द्वारा अन्त:स्थापित.
- 1995 के अधिनियम सं० 24 द्वारा प्रतिस्थापित.
91, 2004 क्रि० लॉ ज० 464S (सु० को०). जगदीश उसका सहपाठी था और उसी पड़ोस में रहता था और सामान्य रूप से दोनों साथ-साथ कालेज से आते थे। दिनांक 25-11-1997 को विजय भाष्कर (अभि० सा० 2), जगदीश (अभि० सा० 3) और एक अन्य मित्र राघवेन्द्र (अभि० सा० 4) अपनी प्रायोगिक कक्षा का काम पूरा करके लगभग 4.45 बजे विद्यालय से निकले उस समय एक व्यक्ति ने अभि० सा० 2 को उसका नाम लेकर बुलाया। लड़का उसके पास गया और उस व्यक्ति ने बताया कि वह उसके पिता हनुमंथराव को जानता है, क्योंकि वह कारबार के संबंध में उसके गाँव आता रहा है। इसके बाद उसने विजय भाष्कर से फीस आदि और अन्य खर्चे के बारे में पूछा, क्योंकि वह अपने पुत्र को भी कालेज में प्रवेश दिलाना चाहता है। पास में एक जीप खड़ी थी, उसने कहा कि उसका पुत्र भी जीप में है, वह लड़के को जीप के पास ले गया और उसे जीप में बैठने को कहा। तीन अन्य व्यक्ति और दो ड्राइवर जीप में बैठे थे। इसके बाद जीप चेल्लाकैरी की ओर चल पड़ी, जो राष्ट्रीय राजमार्ग-4 पर है। जब तक वे चेल्लाकेरी गेट पार नहीं किये तब तक लड़के के साथ अच्छा व्यवहार किया गया। इसके बाद उसे धमकी दी गई कि वह शोर न मचाये। उसने लड़के से उसके पिता का फोन नम्बर पूछा और कहा कि वे लोग उसके पिता से 4 लाख रुपये की फिरौती मांगेगे। लड़के ने उन्हें बताया कि इतनी बड़ी रकम का प्रबंध नहीं हो सकेगा, और वे 50,000 रु० ऋण आदि लेकर एकत्र कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि उनका बॉस कम से कम 2 लाख चाहता है। रास्ते में उन्होंने लड़के को शौच जाने का मौका दिया, कुछ लोग उसके साथ गये। उसे पीने के लिये पानी दिया गया। उन्होंने जीप बैरापुर ग्राम के निकट रोका और अभियुक्तगण सिगरेट खरीदने के लिये उतर गये। जीप के ड्राइवर ने लड़के से भाग जाने के लिये कहा और तद्नुसार विजय भाष्कर (अभि० सा० 2) भाग निकला और घटना के बारे में गाँव वालों को बताया, जिन्होंने जीप को घेर लिया। अभियुक्तों को पकड़ लिया और पुलिस को सूचित कर दिया। जीप सहित वे पुलिस थाने लाये गये। इसके बाद विजय भास्कर (अभि० सा० 2) ने शिकायत दर्ज कराई, जिसे पंजीकृत किया गया। विचारण न्यायालय ने अभियुक्त अपीलार्थियों को धारा 364-क के अधीन दोषसिद्ध किया, किन्तु अन्य अभियुक्त अ-2 से अ-4 को दोषमुक्त कर दिया गया। उच्च न्यायालय ने भी अपील खारिज कर दिया और विचारण न्यायालय के निर्णय को पुष्ट कर दिया। अपील किये जाने पर उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि फिरौती की रकम स्पष्ट रूप से घटना के शिकार को बताई गई, भले ही वास्तविक रूप से उसके पिता से मांग नहीं की गई, जो अन्ततः भुगतान करता। व्यक्ति जो फिरौती देता है वह कोई निर्णायक तथ्य नहीं है। दोषसिद्धि उचित है और मात्र यह कहना कि मांग घटना के शिकार के पिता से नहीं की गई थी, मामला भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364-क की परिधि से बाहर नहीं हो जाता। पी० लियाकत अली खान बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य91क के बाद में तीन वर्षीय एक लड़की जिसका . नाम केअर्थी था श्रीलक्ष्मी अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में नर्सरी कक्षा में पढ़ रही थी। अभियोजन गवाह नं० 5 उसकी कक्षा अध्यापिका थी और गवाह नं० 6 विद्यालय की प्रिंसपल थी। अभियोजन गवाह नं० 1 उसका पितामह तथा गवाह नं० 2 पीड़ित अवयस्क बालिका केअर्थी का पिता था। गवाह नं० 7 उसका ड्राइवर है। और गवाह नं० 3 महिला नौकरानी है। दिनांक 3-7-2001 को गवाह नं० 7 ड्राइवर ने बालिका को विद्यालय में लगभग 8.30 बजे पूर्वान्ह छोड़ दिया। लगभग 8.45 बजे पूर्वान्ह उसकी कक्षा में आया और उसकी कक्षा अध्यापिका गवाह नं० 5 को सूचित किया कि बच्ची के माता पिता उसे घोल (syrup) देना भूल गये और उस व्यक्ति के निवेदन पर बालिका उसके साथ घोल (Syrup) पिलाने हेतु भेज दी गयी। यह देखने के बाद कि बालिका उसके द्वारा ले जाई जा चुकी है कक्षा अध्यापिका ने महिला नौकरानी (गवाह नं० 3) को उसे रोकने का निर्देश दिया। गवाह नं० 3 द्वारा रोके जाने के बावजूद वह व्यक्ति रुका नहीं। अतएव उसने गवाह नं० 8 जो एक स्कूटर पर आ रहा था, से उस व्यक्ति को रोकने को कहा। जब गवाह नं० 8 ने उस व्यक्ति को रोका और मामले के बारे में पूछतांछ की तो उसने यह कहा कि वह बालिका को घोल (syrup) पिलाने के लिये ले जा रहा है और यह कह कर वह एक बस पर चढ़ गया और चला गया। उसके पश्चात् गवाह न० 3, गवाह न० 91क. (2009) 3 क्रि० लॉ ज० 3736 (एस० सी०). 4 की और दूकानदार ने भी उस व्यक्ति द्वारा ले जाने । लायी। बाद में गवाह नं० 3 और गवाह नं० 5, गवाह नं० 6 के पास गये और उक्त घटना के बारे में उसे बात वाया। उसने बालिका के माता-पिता को घटना के बारे में सूचित किया। माता-पिता विद्यालय आये और कर्नल के एन० आर० पेट्टा तथा उसके आसपास के क्षेत्र में बालिका को खोजा। गवाह नं० 3 और गवाहू नं० 5 ने व्यपहरणकर्ता के शारीरिक लक्षणों (physical feature) के बारे में बताया। गवाह नं० 12 ने इस रिपोर्ट के आधार पर मामले को पंजीकृत कर लिया और गवाह नं० 13 ने आगे अन्वेषण की कार्यवाही प्रारम्भ किया। बाद में अभि० गवाह नं० 1 को दिनांक 4-7-2001 को बालिका को मुक्त करने हेतु एक करोड़ रुपये की मांग वाला पत्र मिला जिसे उसने अन्वेषण अधिकारी अभि० गवाह नं० 13 को दे दिया। दिनांक 9-7-2001 को अभि० गवाह नं० 2 के नाम में प्रेषित एक दूसरा पत्र गवाह नं० 1 के पड़ोसी अभि० गवाह नं० 9 के घर में 75 लाख रुपये मांग करते हुये डाल दिया गया। इस पत्र में यह निर्देश दिया गया दि; रुपये एक झोला में एक पुलिया के नीचे रख दिया जाय। यह पत्र भी अन्वेषण अधिकारी गवाह नं० 13 को दे दिया गया। दिनांक 10-7-2001 को लगभग 12.30 बजे अपरान्ह अभि० गवाह नं० 13 के निर्देश पर कागजों से भरा एक झोला। बतायी गयी जगह पर रख दिया गया। कुछ लोग पुलिया के पास कंटीली झाडियों में छिपे हुये थे। लगभग एक बजे अपरान्ह अभियुक्त एक स्कूटर पर उस पुलिया के पास आया और झोले को उठा लिया और जब वह सड़क पर पहुंचा तो पुलिस कांस्टेबलों ने उसे घेर लिया और पकड़ लिया। जांच करने पर अभियुक्त ने अपने बारे में बताया। उसके पश्चात् अभियुक्त पुलिस वालों को एक घर के पास ले गया जो बाहर से बन्द था। अभियुक्त ने दरवाजे को खोला और अभियुक्त पुलिस वालों को मकान के पीछे के स्नान घर में ले गया और उसमें उक्त बालिका पायी गयी। अभि० गवाह नं० 2 ने बालिका की पहचान किया। इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364क एक भिन्न प्रकार का अपराध है जिसका प्रमुख लक्षण फिरौती छुड़ाई है। इस मामले में फिरौती की मांग स्पष्टत: सिद्ध हो गयी और अभियुक्त की भूमिका का निचली अदालत द्वारा स्पष्ट विश्लेषण किया गया था। बालिका अभियुक्त, जिसने उसे एक घर के अन्दर बन्द करके रखा था, के बयान के आधार पर बरामद की गयी। अतएव । अभियुक्त भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364-क के अधीन दोषसिद्ध किया गया।91ख|
- किसी व्यक्ति का गुप्त रीति से और सदोष परिरोध करने के आशय से व्यपहरण या अपहरण- जो कोई इस आशय से किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा कि उसका गुप्त रोति से और सदोष परिरोध किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
टिप्पणी जहाँ एक व्यक्ति को बलपूर्वक उसके घर में से खींचकर चुपचाप एवं सदोषपूर्वक अभियुक्त के घर में परिगेधित कर दिया गया हो और उस व्यक्ति को पुलिस अभियुक्त के घर में बाहर निकालती है और यह पाया। गया कि उसके पीठ पर चोट के निशान हैं तो अभियुक्त व्यपहरण के लिये दण्डनीय होंगे। तरुण बोरा बनाम असम राज्य93 के मामले में भोला काकाती( अभि० साः 1) को उलफा नन्देश्वर वोरा के घर से आतंकवादी तरण बोरा तीन चार अन्य उल्फा आतंकवादियों की मदद से उठा ले गये। भोला । काकाती को अपीलार्थी एम्बेसडर कार में ले गये और इसके तुरन्त बाद उनके आंख पर पट्टी बांध दी गई और एक घर में ले जाकर तीन रात तक वहाँ बंद कर दिया। पहली रात को उन्हें मारा पीटा गया। अपहरण के पीछे हेतु यह था कि भोला उल्फा के बारे में सेना को सूचना देता था। तारीख 23-8-1997 को प्रथम इत्तिला 91ख. (2009) 3 क्रि० लॉ ज० 3736 (एस० सी०).
- करम सिंह बनाम चरन सिंह तथा अन्य, 1984 क्रि० लाँ ज० (एन० ओ० सी०) s9 (पंजाब तथा हरियाना),
- 2002 क्रि० लॉ ज० 4076 (सु० को०).
रिपोर्ट भीमपुरा पुलिस थाने में दर्ज कराई गई। भोला को 20-8-1991 को छोड़ा गया। प्रथम इत्तिला रिपोर्ट 24-8-1991 के अनुसरण में टाडा (पी०) ऐक्ट की धारा 3/4 के साथ पठित भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364/325/307/347 के अधीन मामला दर्ज किया गया। उच्चतम नयायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि घटना के शिकार व्यक्ति से जिरह के दौरान यह सुझाव रखने पर कि अभियुक्त ने न तो आंख पर पट्टी बांधा और न तो मारपीट किया, इससे यह प्रकट होता है कि घटना के समय अभियुक्त मौजूद था। अभि सा०-1 भोला के अपहरण के लिये अभियुक्त के हेतु को ध्यान में रखते हुये यह तो नहीं कहा जा सकता कि उसे मौजमस्ती के लिये गाड़ी में ले जाया गया था। इस प्रकार अभियुक्त का आचरण स्पष्ट रूप से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 365 के अधीन अपराध है।
- विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री को व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना- जो कोई किसी स्त्री का व्यपहरण या अपहरण उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिए उस स्त्री को विवश करने के आशय से या वह विवश की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए अथवा अयुक्त संभोग करने के लिए उस स्त्री को विवश या विलुब्ध करने के लिए या वह स्त्री अयुक्त सम्भोग करने के लिए विवश या विलुब्ध की जायेगी, यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी दंडनीय होगा, और जो कोई किसी स्त्री को किसी अन्य व्यक्ति से अयुक्त सम्भोग करने के लिये विवश या विलुब्ध करने के आशय से या वह विवश या विलुब्ध की जायेगी, यह सम्भाव्ये जानते हुए इस संहिता में यथापरिभाषित आपराधिक अभित्रास द्वारा अथवा प्राधिकार के दुरुपयोग या विवश करने के अन्य साधन द्वारा उस स्त्री को किसी स्थान से जाने को उत्प्रेरित करेगा, वह भी पूर्वोक्त प्रकार से दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) किसी स्त्री का व्यपहरण या 3 पहरण। (2) ऐसा व्यपहरण या अपहरण (क) इस आशय से किया गया हो कि उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिये बाध्य किया जायेगा या यह जानते हुये कि सम्भाव्यत: इस प्रयोजन हेतु उसे विवश किया जायेगा, या (ख) इस निमित्त किया गया हो कि वह स्त्री अयुक्त सम्भोग के लिये विवश या विलुब्ध की जायेगी या यह जानते हुये किया गया हो कि सम्भाव्यत: इस प्रयोजन हेतु उसे विवश किया जायेगा, या । (ग) आपराधिक अभित्रास या अन्यथा किसी स्त्री को किसी स्थान से जाने के लिये इस आशय अथवा ज्ञान से विलुब्ध किया जायेगा जिससे वह स्त्री अयुक्त सम्भोग के लिये विवश या विलुब्ध की जाय। (3) यह महत्वपूर्ण नहीं है कि व्यपहृत महिला विवाहित थी या नहीं। किसी स्त्री का व्यपहरण या अपहरण-18 वर्ष या इससे अधिक आयु की किसी स्त्री का व्यपहरण नहीं हो सकता, ऐसी स्त्री का केवल अपहरण हो सकता है। किन्तु 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का व्यपहरण तथा अपहरण दोनों ही सम्भव है यदि उसे बलपूर्वक या प्रवंचनापूर्ण रीति से हटाया जाता है ।94 अभयुक्त का आशय-अभियुक्त का आश्य ही इस धारा में वर्णित अपराध का सार है। यदि इस अपराध की संरचना हेतु आवश्यक आशय से अभियुक्त युक्त था तो यह अपराध पूर्ण माना जाये अभियुक्त अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल न हुआ हो और उस स्त्री ने विवाह या अवध स अपनी सम्मति दिया हो या नहीं 95
- प्रफुल्ल कुमार बसु, (1929) 57 कल० 1074.
- खलीलुर्रहमान, (1933) 11 रंगून 213.
इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत विवाह का अर्थ है विवाह रस्म पूर्ण करना और रसम वैध है या चपर्णा नहीं है।96 सन्तराम7 के वाद में सास ने प्रवंचनापूर्वक अपनी विधवा पुत्रवध, जो 14 वर्ग कम आय की थी. को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये उत्प्रेरित किया और अन्त में इस कि उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध विवाह करने के लिये विवश किया जाएगा उसने अपनी पुत्रवधु को म तथा न को सौंप दिया। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया था कि सास म तथा न के साथ इस धारा में वर्णित अपराध की अपराधिनी थी। मोनीराम हजारिका बनाम असम राज्य98 वाले मामले में अपहरण की शिकार लड़की कक्षा 8 की बाला थी। दिनांक 30-3-1990 को लगभग 6.30 बजे अपरान्ह पारेश साइकिया (अभि० सा० 1) को उसके भाई से ज्ञात हुआ कि उसकी बहन गायब है और यह कि उसे अभियुक्त अपीलार्थी के साथ उस इलाके में देखा गया था। इस संदेह पर कि अपीलार्थी ने उसकी बहन का अपहरण किया होगा, वह अभियुक्त के घर गया किन्तु अपीलार्थी और उसके भाई ने उसको अभियुक्त के घर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। उसे किसी तरह आभास हो गया कि शादी की तैयारी चल रही है। इसलिये अभि० सा० 1 ने लगभग 8.30 बजे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दिया कि उसकी अवयस्क बहन का अभियुक्त/अपीलार्थी ने अपहरण कर लिया है। अन्वेषण के पश्चात् आरोप-पत्र तैयार किया गया और प्रस्तुत किया गया। विचारण आरंभ हुआ। विद्यालय के प्रमाणपत्र के आधार पर तथा चिकित्सक (अभि० सा० 5) और घटना की शिकार के पिता (अभि० सा० 4) के साक्ष्य के अनुसार घटना की शिकार अवयस्क लड़की लगभग 16 वर्ष की पाई गई। घटना की शिकार लड़की (अभि० सा० 2) ने भी अपने बयान में कहा कि घटना के दिन वह शौच के लिये निकली थी और अपीलार्थी बलपूर्वक उसे अपने घर ले गया जहाँ उसकी माँ और साली मौजूद थी, जिन्होंने उसके कपड़े बदलवा दिये और उसके माथे पर सिन्दूर लगा दिया और उसे अपीलार्थी के साथ विवाह के लिये तैयार कर दिया। यह अभिनिर्धारित किया गया कि साक्ष्य से स्पष्ट था कि अभियुक्त घटना की शिकार लड़की के घर वालों का परिचित था, और उसका उनके घर आना-जाना था। उसका अवयस्क लड़की से प्रेम हो गया था और उसने, लड़की से शादी करने का वादा किया था और इसी वादे के आधार पर ही उस अवयस्क लड़की ने अपने विधिक अभिभावकों का घर छोड़ा था और अभियुक्त के साथ चली गई थी। साक्ष्य से यह भी दर्शित होता है कि विवाह की तिथि पर अभियुक्त के घर में तैयारी भी हो गई थी। अभियुक्त का दोष अवयस्क लड़की को फुसलाने का था। अत: अभियुक्त भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366 के अधीन अपराध के लिये दोषसिद्ध किये जाने का दायी है। पदावली ‘‘उसकी इच्छा के विरुद्ध” का अर्थ है कि कार्य न केवल स्त्री की सम्मति लिये बिना ही किया गया अपितु उसके विरोध के बावजूद भी किया गया।99 अयुक्त सम्भोग के लिये विवश या विलुब्ध किया गया-‘विवश’ शब्द का प्रयोग इस धारा में सामान्य अर्थों में हुआ है, ‘‘विलुब्ध” शब्द का अर्थ है किसी स्त्री को किसी समय अयुक्त सम्भोग के लिये उत्प्रेरित करना रमेश के वाद में उच्चतम न्यायालय ने इस विचार को अस्वीकार कर दिया कि ‘विलुब्ध” शब्द का प्रयोग केवल प्रथम अयुक्त सम्भोग के लिये हुआ है जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि वह पवित्र जीवन की ओर वापस लौट आयी थी । अत: विलुब्धकरण का अर्थ केवल यह नहीं है कि किसी लड़की को प्रथम बार अपनी पवित्रता त्यागने के लिये उत्प्रेरित करना अपितु इसमें और अयुक्त सम्भोग के लिये पश्चात्वर्ती विलुब्धकरण भी सम्मिलित है।
- ताहिर खान, (1917) 45 कल० 641.
- (1929) 11 लाहौर 178.
- 2004 क्रि० लॉ ज० 2553 (सु० को०).
- खलीलुर्रहमान, (1933) 11 रंगून 213.
- रमेश, (1962) 64 बाम्बे एल० आर० पृ० 780 (सु० को०).
- उपरोक्त सन्दर्भ.
उदाहरण- जसौली के वाद में दो लड़कियाँ जिनकी आयु 18 वर्ष से कम थी अपने घर में भाग गयीं तथा कुछ दिनों तक एक सम्भ्रान्त महिला के घर में रही। इस बात की कोई सूचना पुलिस को नहीं दी गयी। इस धारा के अन्तर्गत उस महिला को दोषसिद्धि प्रदान की गई जिसके घर में दोनों लड़कियाँ रुकी थीं। गोपी चन्द्र फत्तूमल के वाद में यह अभिनिर्धारित हुआ था कि यदि किसी लड़की को उसके विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षकता से व्यपहृत कर लिया जाता है और कोई ऐसा व्यक्ति जो व्यपहरण से सम्बन्धित नहीं है, अयुक्त सम्भोग के लिये लड़की को ले जाता है तो वह व्यक्ति (जो लड़की को अयुक्त सम्भोग के लिये ले जाता है) इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं होगा। जहाँ कोई अपहृत स्त्री स्वेच्छया अभियुक्त के साथ विलुब्धकरण के पूर्व दो महीने से उसकी पत्नी के रूप में रह रही थी और जिससे अभियुक्त विवाह करना चाहता था, यह कहा गया कि इस धारा में वर्णित अपराध कारित नहीं हुआ था। राजेन्द्र बनाम महाराष्ट्र राज्य वाले मामले में शहनाज बानो (अभि० सा० 1) अपनी पुत्री शबाना बानो (अभि० सा० 22) के साथ 5-6-1997 को सिनेमा देखने गई थी। जब वे दोनों 3.00 बजे शो की समाप्ति पर सिनेमा थिएटर से निकले, तब अपीलार्थी जो स्कूटर पर जा रहा था उसने उन्हें अपने स्कूटर से उन्हें उनके घर तक पहुँचाने के लिये लिफ्ट देने का प्रस्ताव रखा। जब अभि० सा० 1 ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया तब अपीलार्थी ने चाकू दिखाते हुये जान से मारने की धमकी दिया। इस धमकी पर अभि० सा० 1 और अभि० सा० 22 अपीलार्थी के स्कूटर पर बैठ गईं। इसके बाद अभि० सा० 1 और अभि० सा० 22 को अभि० सा० 3 शोभा द्वारा संचालित लाज में ले जाया गया और वहाँ पहुँच कर अपीलार्थी अभि० सा० 1 का हाथ पकड़कर लाज में एक कमरे की ओर खींचने लगा। अभि० सा० 3 का पुत्र अभिकथित रूप से बाहर की ओर से दरवाजे को अपीलार्थी की ओर बंद करने लगा। अभि० सा० 1 ने लड़के से दरवाजा न बन्द करने को कहा और उस समय उसकी लड़की भी कमरे में थी। इसके बाद अभि० सा० 1 ने बलपूर्वक अपना हाथ अपीलार्थी की पकड़ से छुड़ाया और दोनों माँ और बेटी बाहर निकल कर शोर करने लगीं। सड़क पर भीड देख अपीलार्थी अपने स्कूटर पर सवार होकर भाग गया। उसके बाद अभि० सा० 1 और अभि० सा० 22 दोनों अपने घर गये और अपने पति से घटना का वर्णन किया जिसने लगभग 5.00 बजे अपरान्ह प्रथम इत्तिला रिपोर्ट दर्ज कराया, जिससे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 341, 354, 366, और 506 के अधीन अपराधों के लिये मामला 8.05 बजे रात्रि में दर्ज किया गया। लगभग इसी समय अपीलार्थी भी थाने पर पहुँचा और यह पता चलने पर कि उसके विरुद्ध मामला दर्ज हो गया है वह थाने के समक्ष स्कूटर छोड़कर भाग गया। पुलिस ने स्कूटर जब्त कर लिया और उक्त स्कूटर की डिक्की से एक छुरा बरामद हुआ। बाद में अपीलार्थी ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। उसके विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल किया गया और विचारण किया गया। विचारण न्यायालय ने उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 341, 354, 506 और 366 के अधीन अपराध का दोषी पाया। अपील में उच्च न्यायालय ने अपीलार्थी को धारा 341 और 506 के अधीन अपराधों से दोषमुक्त कर दिया, किन्तु भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 और 366 के अधीन दोषसिद्धि कायम रखा। उच्चतम न्यायालय ने यह निष्कर्ष दिया कि परिवादिनी ने स्कूटर पर बैठ कर जाते समय कोई गुहार नहीं लगाई। परिवादिनी ने यह भी नहीं स्पष्ट किया कि वह अभियुक्त के साथ दुर्व्यपदेशन के कारण चली गई और इस पहलू पर कोई साक्ष्य भी नहीं प्रस्तुत किया गया। इसलिये यह अभिनिर्धारित किया गया कि उच्च न्यायालय का यह निष्कर्ष कि अभियुक्त ने अभि० सा० 1 और अभि० सा० 22 का अपहरण करने के लिये प्रवंचनापूर्ण उपायों का प्रयोग किया, कायम नहीं हो सकता। अपहरण का अपराध गठित होने के लिये आवश्यक है कि किसी व्यक्ति को बल या प्रवंचनापूर्वक अवैध ढंग से ले जाया गया हो, अर्थात् किसी व्यक्ति
- (1912) 34 इला० 340.
- ए० आई० आर० 1961 बाम्बे 282.
- भजन दास, ए० आई० आर० 1924 लाहौर 218.
- 2002 क्रि० लॉ ज० 4533 (सु० को०).
को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिये बल या प्रवंचना के जरिये विवश किया जाए मामले में इन दोनों में से किसी भी तत्व को सिद्ध नहीं किया गया है। इसलिये उच्च न्यायालय जिसमें अपीलार्थी की भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के साथ पठित धारा 366 के अधीन दोषसिटिक) पुष्ट किया गया था, अपास्त किया जाता है।
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