Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 23 LLB Notes
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- ऐसे व्यक्ति का सदोष परिरोध, जिसके छोड़ने के लिए रिट निकल चुका है-जो कोई यह जानते हुए किसी व्यक्ति को सदोष परिरोध में रखेगा कि उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए रिट सम्बन्।
1क. (2009) 3 क्रि० ला ज० 3733 (एस० सी०). 1ख. उपरोक्त सन्दर्भ. रूप से निकल चुका है वह किसी अवधि के उस कारावास के अतिरिक्त, जिससे कि वह इस अध्याय किसी अन्य धारा के अधीन दण्डनीय हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष र की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।
- गुप्त स्थान में सदोष परिरोध-जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रकार करेगा। जिससे यह आशय प्रतीत होता हो कि ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति से हितबद्ध किसी व्यक्ति को या किसी लोक सेवक को ऐसे व्यक्ति के परिरोध की जानकारी न होने पाए या एतस्मिन्पूर्व वर्णित किसी ऐसे व्यक्ति या लोक सेवक को, ऐसे परिरोध के स्थान की जानकारी न होने पाए या उसका पता वह न चला पाए, वह उस दण्ड के अतिरिक्त जिसके लिए वह ऐसे सदोष परिरोध के लिए दण्डनीय हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।
- सम्पत्ति उद्दापित करने के लिए या अवैध कार्य करने के लिए मजबूर करने के लिए सदोष परिरोध- जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्दापित की जाए, अथवा उस परिरुद्ध व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को कोई ऐसी अवैध बात करने के लिए, या कोई ऐसी जानकारी देने के लिए जिससे अपराध का किया जाना सुकर हो जाए, मजबूर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।
- संस्वीकृति उद्दापित करने के लिए या विवश करके सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन करने के लिए सदोष परिरोध-जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा, कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध या अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए, या वह परिरुद्ध व्यक्ति या उससे हितबद्ध कोई व्यक्ति मजबूर किया जाए कि वह किसी सम्पत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति को प्रत्यावर्तित करे या करवाए या किसी दावे या मांग की तुष्टि करे या कोई ऐसी जानकारी दे जिससे किसी सम्पत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
आपराधिक बल और हमले के विषय में । (OF CRIMINAL FORCE AND ASSAULT)
- बल-कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर बल का प्रयोग करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस अन्य व्यक्ति में गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है या यदि वह किसी पदार्थ में ऐसी गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है जिससे उस पदार्थ का स्पर्श उस अन्य व्यक्ति के शरीर । के किसी भाग से या किसी ऐसी चीज से, जिसे वह अन्य व्यक्ति पहने हुए है या ले जा रहा है, या किसी ऐसी चीज से, जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे संस्पर्श से उस अन्य व्यक्ति की संवेदन-शक्ति पर प्रभाव पड़ता है, हो। जाता है :
परन्तु यह तब जबकि गतिमान, गति-परिवर्तन या गतिहीन करने वाला व्यक्ति उस गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता को एतस्मिन् पश्चात् वर्णित तीन तरीकों में से किसी एक द्वारा कारित करता है, अर्थात् पहला-अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा।। दूसरा-किसी पदार्थ के इस प्रकार व्ययन द्वारा कि उसके अपने या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई अन्य कार्य के किए जाने के बिना ही गति या गति-परिवर्तन या गतिहीनता घटित होती है, तीसरा-किसी जीवजन्तु को गतिमान होने, गति-परिवर्तन करने का या गतिहीन होने के लिए उत्प्रेरण द्वारा। |
- आपराधिक बल– जो कोई किसी व्यक्ति पर उस व्यक्ति की सम्मति के बिना बल का प्रयोग किसी अपराध को करने के लिए या उस व्यक्ति को, जिस पर बल का प्रयोग किया जाता है, क्षति, भय या क्षोभ, ऐसे बल के प्रयोग से कारित करने के आशय से, या ऐसे बल के प्रयोग से सम्भाव्यतः कारित करेगा, यह जानते हुए साशय करता है, वह उस अन्य व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है, यह कहा जाता है।
दृष्टान्त (क) य नदी के किनारे रस्सी से बंधी हुई नाव पर बैठा है। क रस्सियों को उद्बन्धित करता है और इसी प्रकार नाव को धारा में साशय बहा देता है। यहाँ क, य को साशय गतिमान करता है, और वह ऐसा उन पदार्थों को ऐसी रीति से व्ययनित करके करता है कि किसी व्यक्ति की ओर से कोई अन्य कार्य किए बिना ही गति उत्पन्न हो जाती है। अतएव, क ने य पर बल का प्रयोग साशय किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य कोई अपराध करने के लिए, यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है। कि ऐसे बल के प्रयोग से वह य को क्षति, भय या क्षोभ कारित करे, तो क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। (ख) य एक रथ में सवार होकर चल रहा है, क, य के घोड़ों को चाबुक मारता है, और उसके द्वारा उनकी चाल को तेज कर देता है। यहाँ क ने जीव-जन्तुओं को उनकी अपनी गति परिवर्तित करने के लिए उत्प्रेरित करके य का गति परिवर्तन कर दिया है। अतएव, क ने य पर बल का प्रयोग किया है, और यदि क ने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे तो क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। (ग) य एक पालकी में सवार होकर चल रहा है। य को लूटने का आशय रखते हुए क पालकी का डण्डा पकड़ लेता है,और पालकी को रोक देता है। यहाँ, क ने य को गतिहीन किया है, और यह उसने अपनी शारीरिक शक्ति द्वारा किया है। अतएव क ने य पर बल का प्रयोग किया है, और क ने य की सम्मति के बिना यह कार्य अपराध करने के लिए साशय किया है, इसलिए क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। (घ) क सड़क पर साशय य को धक्का देता है। यहाँ क ने अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा अपने शरीर को इस प्रकार गति दी है कि वह य के संस्पर्श में आए। अतएव उसने साशय य पर बल का प्रयोग किया है, | और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है। कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। (ङ) क यह आशय रखते हुए या यह बात सम्भाव्य जानते हुए एक पत्थर फेंकता है कि वह पत्थर इस प्रकार य, या य के वस्त्र के या य द्वारा ले जाई जानेवाली किसी वस्तु के संस्पर्श में आएगा या कि वह पानी में गिरेगा और उछलकर पानी य के कपड़ों पर या य द्वारा ले जाई जाने वाली किसी वस्तु पर जा पड़ेगा। यहाँ, यदि पत्थर के फेंके जाने से यह परिणाम उत्पन्न हो जाए कि कोई पदार्थ य या य के वस्त्रों के संस्पर्श में आ जाए, तो क ने य पर बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य उसके द्वारा य का क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करने का आशय रखते हुए किया है, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। (च) के किसी स्त्री का घूघट साशय हटा देता है। यहाँ, क ने उस पर साशय बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने उस स्त्री को सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि उससे उसको क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न हो तो उसने उस पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है | (छ) य स्नान कर रहा है। क स्नान करने के टब में ऐसा जल डाल देता है जिसे वह जानता है कि उबल रहा है। यहाँ, उबलते हुए जल में ऐसी गति को अपनी शारीरिक शक्ति द्वारा साशय उत्पन्न करता है कि उस जल का संस्पर्श य से होता है या अन्य जल से होता है, जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे संस्पर्श से यह संवेदन शक्ति प्रभावित होती है, इसलिए क ने य पर साशय बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे, तो क ने आपराधिक बल का प्रयोग किया है। (ज) क, य की सम्मति के बिना, एक कुत्ते को य पर झपटने के लिए भड़काता है। यहाँ यदि क का आशय य को क्षति, भय या क्षोभ कारित करने का है, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। टिप्पणी धारा 349 में परिभाषित ‘बल’ इस धारा के अन्तर्गत ‘‘आपराधिक बल’ बन जाता है यदि (1) यह कोई अपराध करने के लिये प्रयुक्त किया जाता है बिना उस व्यक्ति की सम्मति लिये जिसके विरुद्ध अपराध किया जाता है, या (2) यदि किसी व्यक्ति पर क्षति, भय या क्षोभ कारित करने के आशय से प्रयुक्त किया जाता है। इंगलिश विधि में प्रयुक्त “संप्रहार” (Battery) शब्द ‘‘आपराधिक बल” शब्द में निहित है। आपराधिक बल इतनी क्षुद्र प्रकृति का हो सकता है कि उससे वह धारा 95 के अन्तर्गत कोई अपराध नहीं संरचित कर सकेगा। ” आपरधिक बल” की परिभाषा इतनी विस्तृत है कि इसके अन्तर्गत ऐसे हर प्रकार के बल सम्मिलित किये जा सकते हैं जिनका कि अन्तिम लक्ष्य कोई व्यक्ति है। अवयव-इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) किसी व्यक्ति के विरुद्ध साशय बल प्रयोग, (2) ऐसे बल का प्रयोग उपहत व्यक्ति की सम्मति के बिना किया गया हों, (3) बल प्रयोग कोई अपराध करने के लिये किया गया हो या जिस व्यक्ति के विरुद्ध बल प्रयोग होता है। उसे उपहति, भय या क्षोभ कारित करने के आशय से किया गया हो। जहाँ अ, ब के ऊपर थूकता है, अ, ब के विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिये दण्डनीय होगा, क्योंकि थूकने से ब को क्षोभ अवश्य हुआ होगा। इसी प्रकार यदि अ किसी स्त्री का घूघट उठा देता है। तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा। |
- हमला-जो कोई, कोई अंगविक्षेप या कोई तैयारी इस आशय से करता है, या यह सम्भाव्य जानते हुए करता है कि ऐसे अंगविक्षेप या ऐसी तैयारी करने से किसी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका हो जाएगी कि जो वैसा अंगविक्षेप या तैयारी करता है, वह उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने ही वाला है, वह हमला करता है, यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण- केवल शब्द हमले की कोटि में नहीं आते। किन्तु जो शब्द कोई व्यक्ति प्रयोग करता है, वे उसके अंगविक्षेप या तैयारियों को ऐसा अर्थ दे सकते हैं जिससे वे अंगविक्षेप या तैयारियां हमले की कोटि में आ जाएं। दृष्टान्त (क) य पर अपना मुक्का क इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए हिलाता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि क, य को मारने वाला ही है। क ने हमला किया है।
- देखिये; दृष्टान्त च 350.
(ख) क एक हिंस्र कुत्ते की मुखबन्धनी इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए खोलना आरम्भ करता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि वह य पर कुत्ते से आक्रमण कराने वाला है। क ने य पर हमला किया है। | (ग) य से यह कहते हुए कि “मैं तुम्हें पीटुंगा” के एक छड़ी उठा लेता है। यहाँ यद्यपि क द्वारा प्रयोग में लाए गए शब्द किसी अवस्था में हमले की कोटि में नहीं आते और यद्यपि केवल अंग विक्षेप बनाना जिसके साथ अन्य परिस्थितियों का अभाव है, हमले की कोटि में न भी आए तथापि शब्दों द्वारा स्पष्टीकृत वह अंगविक्षेप हमले की कोटि में आ सकता है। टिप्पणी हमला की संरचना हेतु किसी वास्तविक उपहति का कारित किया जाना आवश्यक नहीं है। मात्र धमकी से भी संरचित हो सकता है। इस अपराध का सार यह है कि क्षतिग्रस्त व्यक्ति के मस्तिष्क पर धमकी का क्या प्रभाव पड़ता है। स्पष्टीकरण के अनुसार केवल शब्दों से यह अपराध संरचित नहीं होता। किन्तु यदि शब्दों का प्रयोग किसी संकेत या तैयारी के साथ किया जाता है जिससे दूसरे को यह आशंका हो जाती है कि उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग होने ही वाला है तो ऐसा आचरण हमला होगा। अतः अभियुक्त द्वारा कोई ऐसा शारीरिक कार्य हुआ हो जिससे परिवादकर्ता को इस बात का एहसास हो जाये कि उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग होने ही वाला है। किन्तु धमकी देने वाले व्यक्ति का इस स्थिति में होना आवश्यक है कि वह अपनी धमकी को कारगर बना सके। अवयव (1) किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति की उपस्थिति में कोई अंगविक्षेप (gesture) या तैयारी करना। (2) इस सम्भाव्यता का आशय अथवा ज्ञान कि वह उपस्थित व्यक्ति उस अंगविक्षेप या तैयारी से यह आशंका कर सकता है कि अंगविक्षेप या तैयारी करने वाला व्यक्ति उसके विरुद्ध ” आपराधिक बल” का प्रयोग करने वाला है।
- कोई अंग विक्षेप या तैयारी करना- आपराधिक बल प्रयोग किये जाने की आशंका उस व्यक्ति से होनी चाहिये जो अंगविक्षेप करे या तैयारी करे किन्तु यदि यह आशंका किसी अन्य व्यक्ति से उत्पन्न होती है तो यह हमला की कोटि में नहीं आयेगा। यदि अ अपनी भरी पिस्तौल ब की ओर इंगित करता है तो यह हमला का अपराध होगा। यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर प्रहार करने के आशय से धमकी देते हुये उसकी ओर बढ़ता है जिससे यदि उसे रोका न गया तो उसके मुक्के का प्रहार दूसरे व्यक्ति पर ही गिरेगा तो वह हमला कारित करने का दोषी होगा भले ही जिस समय उसे रोका गया वह इतने नजदीक नहीं था कि उसके द्वारा किया गया प्रहार प्रभावी होता। मुनेश्वर बक्स सिंह के वाद में अभियुक्त ने अपनी ओर से परिवादकर्ता के विपरीत ऐसा कोई कार्य नहीं किया था जो ‘हमला’ की परिभाषा के अन्तर्गत आता किन्तु उसने अपने अनुयायियों को ऐसा संकेत दिया कि वे धमकाते हुये ढंग से परिवादकर्ता की ओर से आगे बढ़ जायें। उसे इस धारा के अन्तर्गत दोषसिद्धि प्रदान नहीं की गई क्योंकि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की स्थिति में थोड़ा परिवर्तन करने मात्र से ही आपराधिक बल का प्रयोग करता हुआ नहीं कहा जा सकता।
आशय या ज्ञान- इस अपराध का मुख्य तत्व ऐसा आशय या ज्ञान है कि यदि अभियुक्त द्वारा की गई। तयारी या अंग-विक्षेप से दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि उसके विरुद्ध आपराधिक बल
- रूपवती बनाम श्यामा, (1958) कटक 710.
- जेम्स (1844) 1 सी० एण्ड के० 530; विजयदत्त झा, (1947) नं० 9 पृ० 237.
- स्टीफेन बनाम मेयर्स (1830) 4 सी० एण्ड पी० 349.
- (1938) 14 लखनऊ 409.
का प्रयोग होने ही वाला है, तो यह अपराध कारित हुआ माना जायेगा। इस तथ्य की पुष्टि इस धारा में दिये गये दृष्टान्त (ख) द्वारा की जा सकती है। इस दृष्टान्त से यह स्पष्ट है कि यद्यपि कोई अपराध कारित करने हेत की गई केवल तैयारी दण्डनीय नहीं है फिर भी इस धारा में उल्लिखित आश्य से की गई तैयारी हमला के तुल्य है। स्पष्टीकरण- इस धारा में वर्णित स्पष्टीकरण यह स्पष्ट करता है कि केवल शब्द हमले की कोटि में नहीं आते । किन्तु जो कोई व्यक्ति शब्द प्रयोग करता है वह उसके अंग-विक्षेप या तैयारियों को ऐसा अर्थ दे। सकता है जिससे वे अंग-विक्षेप या तैयारियाँ हमले की कोटि में आ जायें यदि भय कारित व्यक्ति के मस्तिष्क पर इससे ऐसा प्रभाव पड़ता है कि उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग होने ही वाला है। किन्तु शब्द के साथ तैयारी द्वारा जिससे किसी व्यक्ति के मन में यह आशंका हो जाती है कि उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग होने ही वाला है यदि वह एक विशिष्ट ढंग से आचरण करता रहा, हमला की संरचना नहीं हो सकती, यदि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि अभियुक्त उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग वहीं और तुरन्त करने वाला था।7 उदाहरण- धमकी युक्त शब्दों का केवल बकना हमला के तुल्य नहीं है। एक प्रकरण में एक व्यक्ति लाठी लेकर चिल्लाया कि वह पुलिस अधिकारी का सिर तोड़ देगा यदि वह उसके अंगूठे का चिन्ह लेने के लिये उसे मजबूर करेगा। वह हमला का दोषी नहीं है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति चिल्लाता है कि वह अभी वापस आयेगा और पुलिस अधिकारी को अच्छा सबक सिखायेगा और अपने कथनानुसार लाठी लेकर वापस आता है तथा पुलिस अधिकारी के समीप पहुँच जाता है जिससे युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न हो जाती है कि वह आपराधिक बल का प्रयोग करने वाला है तो अभियुक्त इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी होगा।10किसी औरत का उसकी इच्छा के विरुद्ध चिकित्सा परीक्षण हमला का अपराध गठित करता है।11 जहाँ कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के घर में ईंट फेंकता है, वह हमला का दोषी होगा।12 हमला तथा आपराधिक बल में अन्तर- हमला का अपराध आपराधिक बल के प्रयोग में निम्नकोटि का अपराध है। हमला में क्षतिग्रस्त व्यक्ति पर वास्तविक प्रहार नहीं होता। हमला मात्र प्रयत्न है या एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया प्रस्ताव है जिसमें यह क्षमता विद्यमान रहती है कि वह दूसरे व्यक्ति के शरीर को उपहति या हिंसा कारित कर दे। इसके विपरीत आपराधिक बल में हमला पूर्ण होता है क्योंकि इसमें बल का वस्तुत: प्रयोग होता है। दूसरे शब्दों में हमला में बल का वास्तविक प्रयोग नहीं होता जबकि आपराधिक बल में इसका वास्तविक प्रयोग होता है। आपराधिक बल के प्रयोग में हमला सदैव सम्मिलित रहता है किन्तु हमला में बल का प्रयोग किये जाने की केवल आशंका रहती है, बल का वस्तुत: प्रयोग नहीं होता।
- गम्भीर प्रकोपन होने से अन्यथा हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दण्ड-जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा गम्भीर और अचानक प्रकोपन दिए जाने पर करने से अन्यथा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
- बीरबल खलीफा, (1902) आई० एल० आर० 30 कल० 97.
- अन्नाकामू चेट्टियार, ए० आई० आर० 1959 मद्रास 392. ‘
- बीरबल खलीफा, (1902) आई० एल० आर० 30 कल० 97.
- रामसिंह, ए० आई० आर० 1935 पटना 214.
- ए० आई० आर० 1932 इला० 524
- महादेव पाण्डेय, ए० आई० आर० 1932 इला० 322.
स्पष्टीकरण- इस धारा के अधीन किसी अपराध के दण्ड में कमी गम्भीर और अचानक प्रकोपन के | कारण न होगी, यदि वह प्रकोपन अपराध करने के लिए प्रतिहेतु के रूप में अपराधी द्वारा ईप्सित या स्वेच्छया प्रकोपित किया गया हो, अथवा यदि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा दिया गया हो जो विधि के पालन में, या किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्ति के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो, अथवा यदि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा दिया गया हो जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो। प्रकोपन अपराध को कम करने के लिए पर्याप्त गम्भीर और अचानक था या नहीं, यह तथ्य का प्रश्न है।
- लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से भयोपरत करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग-जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति पर, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वैसे लोक सेवक के नाते वह उसके अपने कर्तव्य का निष्पादन कर रहा हो, या इस आशय से कि उस व्यक्ति को वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित करे या भयोपरत करे या ऐसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या की जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणाम स्वरूप हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी इस धारा के अन्तर्गत ऐसे मामले आते हैं जिनमें किसी लोक सेवक पर विधि द्वारा अभ्यारोपित दायित्व के निर्वहन के दौरान हमला किया जाता है। यदि वह अपने पदाभास के अन्तर्गत किसी दायित्व का निर्वहन सद्भावपूर्वक करा रहा है तो वह दायित्व इस धारा के अन्तर्गत नहीं आयेगा।13 किसी लोक सेवक पर जो हमला होते समय विधि द्वारा अभ्यारोपित दायित्व का कार्य वहन नहीं कर रहा है, किया गया हमला धारा 352 के अन्तर्गत आता है। इस धारा में वर्णित परिस्थितियों में यदि उपहति कारित कर दी जाती है तो धारा 332 या 333 लागू होगी। जहाँ किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिये जारी किये गये वारण्ट पर वारण्ट जारी करने वाले अधिकारी का पूर्ण हस्ताक्षर नहीं था। केवल संक्षिप्त हस्ताक्षर था जो कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 की धारा 251 के उपबन्ध के विरुद्ध था तथा जिसका प्रतिरोध उस व्यक्ति द्वारा किया गया जिसे गिरफ्तार करने के लिये वारण्ट जारी किया गया था, यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया था कि वह व्यक्ति (जिसने वारण्ट का विरोध किया था) इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी था तथा वारण्ट में मौजूद प्रारम्भिक दोष उसे किसी प्रकार का बचाव प्रदान नहीं कर सकता था।14 किन्तु यदि वारण्ट पर किसी अनधिकृत व्यक्ति15 ने हस्ताक्षर किया है। या यदि वारण्ट के निष्पादन हेतु निश्चित की गयी तिथि बीत चुकी है16 या यदि वारण्ट पर मुहर नहीं लगी है17 तो प्रतिरोध वैध होगा। यदि किसी मकान में बिना किसी लिखित आदेश या प्राधिकार के तलाशी ली जा रही है और ऐसी तलाशी का प्रतिरोध किया जा रहा है ऐसी स्थिति में इस धारा में वर्णित अपराध संरचित नहीं होगा।
- रमन सिंह, (1900) 28 कल० पृ० 414.
- जानकी प्रसाद, (1886) 8 इला० 293.
- जगपत कोइरी, (1917) 18 क्रि० लॉ ज० 526.
- रघुबीर, (1941) 7 लखनऊ 311.
- पी० वी० गोसाई, (1962) 1 क्रि० लॉ ज० 91.
- नारायण (1875) 7 एन० डब्ल्यू० पी० 209.
पुकोट कोटू19 के वाद में मद्रास उच्च न्यायालय ने इसके विपरीत विचार व्यक्त किया है किन्त । आवश्यक है कि पदाधिकारी सद्भाव में बिना विद्वेष के कार्य कर रहा हो। जहाँ कोई गाड़ीवान अपनी गाड़ी छोड़ने से इन्कार कर देता है यद्यपि गाड़ी की आवश्यकता फारे सेटिलमेंट आफिसर को थी जिसे वह सरकार के प्रशासनिक आदेश के अन्तर्गत प्राप्त करने के लिये प्राधिक था। जंगल विभाग का चपरासी गाड़ी छीनने का प्रयास कर रहा था जिसके दौरान गाड़ीवान ने उस पर हमला कर दिया। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि लोक-सेवक अपने दायित्व के निर्वहन हेतु कार्य नहीं कर रहा था, क्योंकि उपर्युक्त वर्णित आदेश विधि की शक्ति से युक्त नहीं था और कोई भी लोक-सेवक ऐसे नियमों के अन्तर्गत कार्य करते समय अपने दायित्व का निर्वहन करता हुआ नहीं समझा जाता।20।
- स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग-जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए कि तद्वारा वह उसकी लज्जा भंग करेगा, उस स्त्री पर हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, 20a[वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा] ।
टिप्पणी बलात्संग इस संहिता की धारा 376 के अन्तर्गत दण्डनीय है किन्तु किसी भी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर किया गया हमला या बल प्रयोग इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय है। पंजाब राज्य बनाम मेजर सिंह21 के वाद में अभियुक्त ने एक घर में प्रवेश करके साढ़े सात माह की बालिका पर जो सो रही थी, अश्लील आक्रमण किया। वह इस धारा के अन्तर्गत अपराधी घोषित किया गया, क्योंकि उसने न केवल उस बालिका की लज्जा ही भंग की वरन् जो कुछ भी लज्जा वह नन्हीं बालिका संजोये थी उसे भंग करने का उसका आशय भी था। | एक प्रकरण में जबकि परिवादी अपने घर के अन्दर खाना बना रही थी तथा उसी के पास उसकी मित्र ब बैठी हुई थी अभियुक्त उसके घर में घुस गया। अभियुक्त ने उसे पकड़ लिया, तद्नुसार उसका चुम्बन लिया और उसके स्तन को निचोड़ा। जब दोनों ने सोर मचाना प्रारम्भ किया और पड़ोसी उस जगह पर आ गये। तो अभियुक्त चुपचाप वहाँ से चला गया। अभियुक्त यह स्पष्ट करने में असमर्थ रहा कि वह उक्त समय घर में क्यों विद्यमान था। इन तथ्यों के आधार पर इस धारा में वर्णित अपराध के लिये उसे दोषसिद्धि प्रदान की गयी।22 राजू पाण्डुरंग महाले बनाम महाराष्ट्र राज्य23 वाले मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि किसी महिला का शील भंग क्या है इसे कहीं परिभाषित नहीं किया गया है। किसी महिला के शील का सार उसका लिंग (सेक्स) है। अभियुक्त का आपराधिक आशय ही उसका मूल तत्व है। महिला की प्रतिक्रिया अत्यन्त सुसंगत है किन्तु उसका अभाव सदैव निर्णायक नहीं है। धारा 354 में शील वह तत्व है जो मनुष्य मात्र में केवल नारी में ही निहित किया गया है। यह एक गुण है जो केवल नारी जाति से जुड़ा है। किसी महिला को पकड़कर खींचना, उसकी साड़ी उतारना, साथ ही लैंगिक सहवास के लिये याचना करना ऐसे कृत्य हैं, जो महिला के शीलभंग के रूप में आते हैं। अपराध के गठन के लिये यह ज्ञान ही पर्याप्त है कि महिला का शील भंग होने की संभावना है भले ही जानबूझ कर ऐसे शील भंग किये जाने का आशय न रहा हो। यह सुनिश्चित करने के लिये कि शील भंग हुआ है या नहीं, इसका यही परीक्षण है कि क्या अपराधी का कृत्य ऐसा था, जो किसी महिला की मर्यादा के प्रति सदमा पहुँचाने वाला हो।
- (1896) 19 मद्रास 349.
- रखमाजी, (1885) 9 बाम्बे 558.
20a. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 6 द्वारा प्रतिस्थापित (दिनांक 3-2-2013 से प्रभावी)।
- ए० आई० आर० 1967 सु० को० 63.
- बलदेव प्रसाद सिंह बनाम राज्य, 1984 क्रि० लॉ ज० (एन० ओ० सी०) 122 (उड़ीसा).
- 2004 क्रि० लॉ ज० 1441 (सु० को०).
अमन कुमार बनाम हरियाणा राज्य24 वाले मामले में अभियोजिका और चिकित्सक का साक्ष्य लिंग प्रवेश के मामले में विनिर्दिष्ट नहीं था। अभियोजिका का बलात्कार के बारे में दिया गया न्यायालय में बयान उसके द्वारा अन्वेषण के दौरान दिये गये बयान से भिन्न था। उसके पिता ने मात्र चिढ़ाने या छेड़ने की ही शिकायत की थी। इसलिये यह अभिनिर्धारित किया गया कि बलात्कार के लिये दोषसिद्धि उचित नहीं थी। यह दर्शित करने के लिये कोई सारभूत साक्ष्य नहीं था कि अभियुक्त हर हालत में लैंगिक सहवास करना । चाहता था। ऐसी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता कि बलात्कार करने का प्रयास किया गया था। इसलिये। अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दायी माना गया। यह स्पष्ट कर दिया गया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दण्डनीय अपराध के आवश्यक तत्व यह हैं कि जिस व्यक्ति पर आघात किया गया है, वह एक महिला हो और अभियुक्त ने उसके साथ बल प्रयोग किया हो और उसका यह आशय उसका शील भंग करने का हो। किसी महिला के शील भंग का सार उसका लिंगभेद (सेक्स) है। अभियुक्त का आपराधिक आशय ही मामले का सार है। महिला की प्रतिक्रिया भी सुसंगत है किन्तु प्रतिरोध का न होना हर समय निर्णायक नहीं है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 में शील तत्व मनुष्यों में से केवल नारी जाति में ही एक वर्ग के रूप में निहित है। यह एक गुण है जो किसी महिला में उसके लिंग (सेक्स) के कारण निहित है। किसी महिला को खींचना, उसके कपड़े उतारना और साथ ही लैंगिक सहवास का आग्रह करना ऐसे कृत्य हैं जो किसी महिला के शील भंग के कृत्य हैं और शील भंग होने की संभावना का ज्ञान ही अपराध के गठन के लिये पर्याप्त है, भले ही उसका जानबूझ कर शील भंग करने का कोई उद्देश्य न हो। । अजहर अली बनाम पश्चिम बंगाल राज्य24क के वाद में अपीलाण्ट ने एक युवा/नौजवान युवती का शील भंग कारित करने का अपराध किया था। यह घटना 18 वर्ष पूर्व घटित हुई थी और अपीलाण्ट को इस अपराध हेतु भा० द० संहिता की धारा 354 के अधीन दण्डनीय अपराध हेतु मात्र 6 माह के कारावास का दण्ड दिया गया था। यह अधिनिर्णीत किया गया कि इतना अधिक विलम्ब हो जाने के कारण किशोरावस्था का विचार कोई प्रयोजन (purpose) नहीं सिद्ध करेगा। यह भी अधिनिर्णीत किया गया कि अपीलार्थी ने एक युवा लड़की का शील भंग कारित करने का जघन्य घृणित अपराध कारित किया था अतएव अभियुक्त को परिवीक्षा (probation) का लाभ नहीं दिया जा सकता है। विद्याधरन बनाम केरल राज्य25 वाले मामले में शीलभंग की शिकार अभि० सा० 1 अपने घर में 1.10.92 को लगभग 2 बजे अपरान्ह अकेली थी, उसी समय अभियुक्त उसके घर में घुसा, किचेन में गया जहाँ वह खाना बना रही थी और उसका हाथ पकड़ने का प्रयास किया। जब वह सामने वाले कमरे में भाग कर उससे बचने का प्रयास कर रही थी और भीतर से दरवाजा बन्द करने का प्रयास कर रही थी तभी अभियुक्त ने उसका पीछा किया और दरवाजा बलपूर्वक खोल दिया, उसे पकड़ लिया और लिपट गया। जब उसने शोर मचाया तब उसका भाई अभि० सा० 3 और अन्य साक्षीगण जिनमें उनका पड़ोसी अभि० सा० 2 भी था वहाँ आ गये। इसके बाद अभियुक्त ने उसे छोड़ दिया और अभि० सा० 3 को बरामदे से ढकेल कर गिरा दिया और अपने माता-पिता के साथ, जो शोर शराबा सुनकर वहाँ आ गये थे, चला गया। पीड़िता द्वारा अगले दिन 2-10-1992 को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई। विचारण न्यायालय के समक्ष यह अभिवचन किया गया कि अभियुक्त को गलत फंसाया गया है, क्योंकि पीड़िता के भाई ने अभी कुछ दिन पूर्व ही उसके घर में घुस कर उसकी बहन की इज्जत लूटा था और अपने विरुद्ध कानूनी कार्यवाही से सशंकित था। प्रथम सूचना रिपोर्ट में विलम्ब का भी अभिवचन किया गया। विचारण न्यायालय ने विलम्ब एवं और गलत फंसाये जाने के अभिवाक को नकारते हुये यह अभिनिर्धारित किया कि यद्यपि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में कुछ विलम्ब हुआ है फिर भी परंपरा से बंधे समाज में किसी महिला के समाज से सम्बन्धित मामले में परेशानी तो होती ही है, जिससे बचने के लिये विलम्ब स्वाभाविक है। प्रत्येक मामले में विलम्ब को सन्देह का कारण नहीं माना जा सकता है। ऐसा वहीं हो सकता है, जब विलम्ब का स्पष्टीकरण न हो। इस मामले में विलम्ब का समुचित रूप से स्पष्ट किया गया है। इसके अतिरिक्त अभि० सा० 2 स्वतंत्र साक्षी है और अभियुक्त तथा पड़ता दोनों का पड़ोसी है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि अभियुक्त को गलत क्यों फंसाया जाएगा। धारा 354 के अधीन आरोप आसानी से बनता है और इसे खाण्डू वान आरोप आसानी से बनता है और इसे खण्डित करना कठिन है। ऐसा नहीं है कि किसी शत्रुतापूर्ण कारण गलत फसाया गया है। एक रूढिवादी समाज में ऐसा संभव नहीं है कि किसी महिला को
- 2004 क्रि० लॉ ज० 1399 (सु० को०).
24क (2014) I क्रि० लॉ ज० 18 (एस० सी०).
- 2004 क्रि० लॉ ज० 605 (सु० को०).
बदला लेने के लिये मोहरे के रूप में प्रयोग किया जायेगा। न्यायालय को साक्ष्य की गहन समीक्षा करनी चाहिये और आरोप को स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय तद्नुसार लेना चाहिये। यह भी अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 354 के अधीन अपराध का गठन करने के लिये मात्र यह जानकारी ही पर्याप्त है कि किसी महिला का शील भंग किये जाने की संभावना है भले ही शील भंग का स्पष आशय न हो और वह अभी किया नहीं गया है। शील का कोई स्पष्ट (मूर्त) स्वरूप नहीं है जो सभी मामलों को लाग होता हो। अतः शील भंग के मामलों में न्यायालयों को सावधानी बरतना आवश्यक है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन आवश्यक संघटक इस प्रकार दिये गये हैं (i) यह कि हमला किया गया व्यक्ति महिला हो, (ii) यह कि अभियुक्त ने उस पर आपराधिक बल का प्रयोग किया हो; और (iii) यह कि दाण्डिक बल का प्रयोग महिला के विरुद्ध उसका शील भंग करने के आशय से किया गया हो, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये आशय ही एकमात्र कसौटी नहीं है, यह किसी व्यक्ति द्वारा महिला पर हमला कर के या आपराधिक बल का प्रयोग करके किया जा सकता है। पाण्डुरंग सीताराम भागवत बनाम महाराष्ट्र राज्य26 वाले मामले में अपीलार्थी एक राज्य आरक्षी पुलिस में सिपाही था। दिलीप कांत्रे उसके एक कमरे का मासिक किरायेदार था। अन्य किरायेदारों और दिलीप कांत्रे तथा उसकी पत्नी अलका के साथ झगड़े हुआ करते थे और अपीलार्थी ने दिलीप से परिसर खाली करने को कहा था और वह भी कोई अन्य परिसर खोज रहा था। दिनांक 10-4-1993 को लगभग 515 बजे अपरान्ह अपीलार्थी ने अलका के किराये वाले हिस्से में प्रवेश किया, उस समय अभि० सा० 2 अलका अपने पुत्रों शिवाजी और अमोल के साथ टेलीविजन देख रही थी। अपीलार्थी ने उसके पति के बारे में पूछा। अलका ने बताया कि वह घर में नहीं है। इसके बाद वह अभिकथित रूप से कमरे में प्रवेश कर गया, उसे पीछे से पकड़ कर उसका शील भंग किया और उसके स्तन पकड़ लिया। उसी समय उनका पति अभि० सा० 3 दिलीप आ गया और देखा कि अलका अपीलार्थी को गाली दे रही थी। जब उसने पूछा कि क्या बात है, तब उसे घूसों और लात से मारा गया। इसके बाद अन्य तीनों अभियुक्त भी भीतर आ गये और उन दोनों की पिटाई कर दी। दिलीप भी अभिकथित रूप से पत्थर और डंडे से पीटा गया। अपीलार्थी और अन्य तीन अभियुक्तों का भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 354, 323, 304 और 506 के अधीन अभि० सा० 2 अलका द्वारा फाइल की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर विचारण हुआ। विचारण में अपीलार्थी को धारा 354 के अधीन दोषसिद्ध किया गया, अन्य सभी अभियुक्त दोषमुक्त कर दिये गये। अपीलार्थी को उच्च न्यायालय से कोई अनुतोष नहीं मिला, इसलिये उच्चतम न्यायालय में यह अपील फाइल की गई। यह अभिनिर्धारित किया गया कि सामान्य तौर पर कोई स्त्री अपने चरित्र को दांव पर नहीं लगाती, यह बात गलत नहीं हो सकती, किन्तु इसे सार्वभौम रूप से लागू नहीं किया जा सकता। प्रत्येक मामले का निर्णय उसके अपने गुणावगुण के आधार पर किया जाना चाहिये। विधि संबंधी रिपोर्ट (निर्णयों) में ऐसे अनेक मामले आए हैं, जिनमे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 और 354 के अधीन झूठे आरोप लगाये गये हैं। अपील मंजूर करते हुये उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि साक्षियों के साक्ष्य को पक्षकारों के बीच चल रही रंजिश के स्वीकृत तथ्य को ध्यान में रखते हुये स्वीकार किया जाना था। मामले की पृष्ठभूमि में निरन्तर चल रही रंजिश थी, जिसमें एक ओर शिकायतकर्ता और उसका पति था, और दूसरी ओर अपीलार्थी और उसके शेष किरायेदार थे, इस तथ्य को विचारण न्यायालय को नजरंदाज नहीं करना था। वास्तविक घटनास्थल और अपीलार्थी द्वारा शील भंग करने की रीति में सारभूत अंतर है। जहाँ कि अभि० सा० 2 का कथन है कि अपीलार्थी घर के भीतर आया और पीछे की ओर से उसे जब वह पुत्र शिवाजी (अभि० सी० 4) के साथ टी० वी० देख रही थी, दबोच लिया। अभि० सा० 4 का कहना है कि घटना तब
- 2005 क्रि० लॉ ज० 880 (सु० को०).
घटी जब वह किचेन की ओर जा रही थी। यह मामूली अंतर चाहे सत्य क्यों न हो, सामान्यतया दोषमुक्ति का आदेश पारित करने का आधार नहीं बन सकता, किन्तु इस मामले में जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, अभि० सा० 2 और अभि० सा० 3 दोनों का आचरण संदिग्ध होने के कारण अभियोजन साक्षी के रूप में उनके बयानों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। 26क[ 354-क. लैंगिक उत्पीड़न और लैंगिक उत्पीड़न के लिए दण्ड-(1) ऐसा कोई निम्नलिखित कार्य, अर्थात् : (i) शारीरिक संपर्क और अग्रक्रियाएं करने, जिनमें अवांछनीय और लैंगिक संबंध बनाने संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव अंतर्वलित हों ; या । (ii) लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करने; या (iii) किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध बलात् अश्लील साहित्य दिखाने; या (iv) लैंगिक आभासी टिप्पणियां करने, वाला पुरुष लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का दोषी होगा। (2) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (i) या खंड (ii) या खंड (iii) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा। (3) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (iv) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया। जाएगा।]. टिप्पणी धारा 354-क की उपधारा (1) ऐसे विभिन्न कार्यों को गिनाती है जिनसे लिंगीय उत्पीड़न (harassment) का अपराध कारित होगा। धारा 354-क की उपधारा (2) यह प्रावधान करती है कि एक व्यक्ति जो धारा 354-क की उपधारा (1) के खण्ड (i) से (iii) तक वर्णित कोई अपराध करता है वह तीन वर्ष तक के कठोर कारावास से अथवा अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जायेगा। धारा 354 की उपधारा (3) यह प्रावधान करती है कि कोई व्यक्ति जो किसी महिला पर लिंग रंजित टिप्पणी करता है वह किसी भी प्रकार के कारावास से जो एक वर्ष तक विस्तारित हो सकता है या अर्थदण्ड अथवा दोनों से दण्डित किया जायेगा। 26खा 354-ख. विवस्त्र करने के आशय से स्त्री पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग-ऐसा कोई पुरुष, जो किसी स्त्री को किसी सार्वजनिक स्थान में विवस्त्र करने या निर्वस्त्र होने के लिए बाध्य करने के आशय से उस पर हमला करेगा या उसके प्रति आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या ऐसे कृत्य का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।] टिप्पणी धारा 354-ख किसी महिला को विवस्त्र करने के आशय से हमला करना या आपराधिक बल प्रयोग करने के अपराध से सम्बन्धित है। इस धारा के अन्तर्गत निम्न प्रकार के कार्यों को अपराध घोषित किया गया है और इस रूप में दण्डनीय हैं। वे कार्य जो इस धारा के अधीन अपराध हैं निम्न हैं : (i) किसी महिला पर हमला करना; 26क, दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 7 द्वारा धारा 354-क 2013 से प्रभावी) ।। 26ख. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 7 द्वारा धारा 2013 से प्रभावी) ।। (ii) किसी महिला पर आपराधिक बल प्रयोग करना; (iii) उपरोक्त प्रकार किसी कार्य को दुष्प्रेरित करना; (iv) ऐसा दुष्प्रेरण किसी महिला को विवस्त्र करने के आशय या उसे नंगा होने को बाध्य करने के आशय से होना चाहिये। यह प्रावधान करती है कि कोई व्यक्ति जो किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल । प्रयोग करता है दण्डित किया जायेगा। उपरोक्त प्रकार के अपराधों में कोई भी किसी प्रकार के कारावास से जो तीन वर्ष से कम नहीं होगा परन्त जो सात वर्ष तक विस्तारित हो सकता है दण्डनीय होगा और अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा। 26 354-ग. दृश्यरतिकता-ऐसा कोई पुरुष, जो कोई ऐसी किसी स्त्री को, जो उन परिस्थितियों के अधीन, जिनमें वह यह प्रत्याशा करती है कि उसे अपराध करने वाला या अपराध करने वाले के कहने पर कोई अन्य व्यक्ति देख नहीं रहा होगा, किसी प्राइवेट कृत्य में लगी किसी स्त्री को एकटक देखेगा या उसका चित्र खींचेगा अथवा उस चित्र को प्रसारित करेगा, प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा और द्वितीय अथवा पश्चातुवर्ती किसी दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर से कम की नहीं होगी किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। स्पष्टीकरण 1-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, ‘प्राइवेट कृत्य” के अंतर्गत ऐसे किसी स्थान में देखने का कार्य किया जाता है, जिसके संबंध में, परिस्थितियों के अधीन, युक्तियुक्त रूप से यह प्रत्याशा की जाती है कि वहां एकांतता होगी और जहां कि पीड़िता के जननांगों, नितंबों या वक्षस्थलों को अभिदर्शित किया जाता है या केवल अधोवस्त्र से ढंका जाता है अथवा जहां पीड़िता किसी शौचघर का प्रयोग कर रही है; या जहां पीडिता ऐसा कोई लैंगिक कृत्य कर रही है जो ऐसे प्रकार का नहीं है जो साधारणतया सार्वजनिक तौर पर किया जाता है। । स्पष्टीकरण 2-जहां पीड़िता चित्रों या किसी अभिनय के चित्र को खींचने के लिए सम्मति देती है। किन्तु अन्य व्यक्तियों को उन्हें प्रसारित करने की सम्मति नहीं देती है और जहां उस चित्र या कृत्य का प्रसारण किया जाता है वहां ऐसे प्रसारण को इस धारा के अधीन अपराध माना जाएगा।] टिप्पणी धारा 354-ग दृश्यरतिकता (Voyeurism) के अपराध से सम्बन्धित है जिसका अर्थ है मात्र कोई दृश्य देखकर प्रसन्न होना या प्रसन्नता या सुख प्राप्त करना है। यह धारा यह प्रावधान करती है कि कोई मनुष्य जो । किसी महिला को प्राइवेट काम में व्यस्त देखता है अथवा उसे उस कार्य में व्यस्त रहते उसके प्रतिमा या चित्र (image) देखता है वह अपराध करता है। यह धारा यह कहती है कि जब कोई पुरुष किसी स्त्री को किसी ऐसे प्राइवेट काम में व्यस्त देखता है जिसमें वह समझती है कि ऐसा करते उसे कोई ऐसा काम करने वाला या उसके इशारे पर कोई अन्य देख नहीं रहा है। यहाँ तक कि ऐसे चित्र का प्रसार-प्रचार करना अपराध है और प्रथम बार दोषी होने पर दण्डनीय है। इसके लिये किसी भी प्रकार का कारावास ऐसी अवधि के लिये जो एक वर्ष से कम नहीं होगी परन्तु जो तीन वर्ष तक विस्तारित हो सकती है और जो अर्थदण्ड से भी दण्डनीय है। व्याख्या 1-इस धारा (अर्थात् धारा 354-ग) से जुड़ी प्रथम व्याख्या इस धारा के उद्देश्यों हेतु प्राइवेट कार्य को परिभाषित करती है। प्राइवेट कृत्य में किसी ऐसे स्थान में कृत्य को देखना है जहां सामान्यतया यह समझा जाता है कि वहाँ प्राइवेसी (Privacy) है और जहाँ पीड़िता (victim) के (penital) जननांगों, नितम्बों या वक्ष स्थलों (breasts) खुले हैं या केवल अण्डरवियर से ढंका जाता है अथवा पीड़िता शौचालय का प्रयोग कर रही है या पीड़िता कोई ऐसा लैंगिक कृत्य कर रही है जो इस प्रकार का नहीं है जो साधारणतया या सार्वजनिक तौर पर किया जाता है। इस प्रकार यह धारा ऐसे कार्यों के लिये दण्ड का विधान करती है जो किसी महिला की एकान्तता को या उसके ऐसे व्यक्तिगत (प्राइवेट) कृत्यों का उल्लंघन करता है जो साधारणतया ऐसी जगह नहीं की जाती जहाँ सामान्य जनता उन्हें देखे। 26 ग. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 को 13) की धारा 7 द्वारा धारा 354-ग अन्त:स्थापित (दिनांक 3-22013 से प्रभावी)। व्याख्या 2-यह व्याख्या यह कहती है कि जहाँ पीडिता चित्रों या किसी अभिनय के चित्र को खींचने के लिये सहमति देती है परन्तु उसे फोटो को पब्लिक में प्रचार-प्रसार करने की सहमति नहीं देती है। किसी तीसरे व्यक्ति को दिखाने अथवा और तब भी उसका प्रचार-प्रसार किया जाता है तो ऐसे प्रचार को इस धारा के अधीन अपराध माना जायेगा और तदनुसार इसे धारा 354-ग के अन्तर्गत दण्डित किया जायेगा। 26ष 354-घ. पीछा करना-(1) ऐसा कोई पुरुष, जो (i) किसी स्त्री का उससे व्यक्तिगत अन्योन्यक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, उस स्त्री द्वारा स्पष्ट रूप से अनिच्छा उपदर्शित किए जाने के बावजूद, बारंबार पीछा करता है और संपर्क करता है या । | संपर्क करने का प्रयत्न करता है; अथवा । (ii) जो कोई किसी स्त्री द्वारा इंटरनेट, ई-मेल या किसी अन्य प्ररूप की इलेक्ट्रानिक संसूचना का प्रयोग किए जाने को मानीटर करता है, पीछा करने का अपराध करता है : परंतु ऐसा आचरण पीछा करने की कोटि में नहीं आएगा, यदि वह पुरुष, जो ऐसा करता है, यह साबित कर देता है कि (i) ऐसा कार्य अपराध के निवारण या पता लगाने के प्रयोजन के लिए किया गया था और पीछा करने । के अभियुक्त पुरुष को राज्य द्वारा उस अपराध के निवारण और पता लगाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया था; या (ii) ऐसा किसी विधि के अधीन या किसी विधि के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा अधिरोपित किसी शर्त या अपेक्षा का पालन करने के लिए किया गया था; या । (iii) विशिष्ट परिस्थितियों में ऐसा आचरण कार्य युक्तियुक्त और न्यायोचित था। (2) जो कोई पीछा करने का अपराध करता है, वह प्रथम दोषसिद्धि पर किसी भांति के कारावास से जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने का भी दायी होगा तथा दूसरी अथवा पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर किसी भांति के कारावास से जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा तथा जुर्माने का भी दायी होगा।] टिप्पणी दो प्रकार के कृत्यों को इस धारा के अधीन दण्डनीय कहा गया है : (i) कोई व्यक्ति जो किसी स्त्री का पीछा करता है और ऐसी स्त्री से सम्पर्क करता है या सम्पर्क करने का प्रयत्न करता है यह अपराध माना जाता है। उपरोक्त प्रकार के कार्य स्त्री से व्यक्तिगत सम्पर्क करने के उद्देश्य से उस स्त्री द्वारा अनिच्छा प्रकट करने के बाद भी किये जाते हैं। (ii) कोई पुरुष जो किसी स्त्री द्वारा इण्टरनेट, ई-मेल या किसी अन्य प्ररूप की इलेक्ट्रॉनिक संसूचना का प्रयोग किये जाने को मानीटर करता है वह भी पीछा करने का अपराध करता है। उपरोक्त दोनों प्रकार के कार्यों को लुकछिपकर देखने (stalking) का अपराध कहा जाता है। धारा 354-घ के खण्ड (i) का परन्तुक (proviso) यह उपबन्ध करता है कि इसे छिप कर पीछा करना नहीं का अपराध नहीं कहा जायेगा यदि यह सिद्ध कर दिया जाता है कि (i) यह पीछा अपराध को रोकने या पता लगाने के लिये किया जा रहा था और पीछा करने के अपराध दोषी मनुष्य यह काम राज्य की तरफ से अपराध को रोकने का दायित्व उसे दिया गया था, अथवा (ii) यह कार्य किसी कानून के अन्तर्गत या किसी शर्त का अनुपालन करने अथवा किसी कानून के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा यह अपेक्षा अधिरोपित थी, अथवा (iii) विशिष्ट परिस्थितियों में ऐसा कृत्य उचित और तर्कसंगत था। धारा 354-घ का द्वितीय परन्तुक यह उपबन्धित करता है कि जो कोई भी लुकछिपकर देखने (stalking) का अपराध 26घ, दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 7 द्वारा धारा 354-घ अन्त:स्थापित (दिनांक 3- 2 2013 से प्रभावी) ।। प्रथम बार दोषी पाये जाने पर किसी भी प्रकार के कारावास से जो तीन वर्ष तक का दण्डित किया जायेगा और अर्थ दण्ड के दायित्वधीन होगा। आगे यह भी उपबन्धित है अपराध को दूसरी बार करने पर या फिर करने पर वह किसी भी प्रकार के कारावास से जो वर्ष तक हो सकेगा और अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा।
- गम्भीर प्रकोपन होने से अन्यथा किसी व्यक्ति का अनादर करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग-जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा गम्भीर और अचानक प्रकोपन दिए जाने पर करने से अन्यथा, इस आशय से करेगा कि तद्वारा उसका अनादर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। | 356. किसी व्यक्ति द्वारा ले जाई जाने वाली सम्पत्ति की चोरी के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग-जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग किसी ऐसी सम्पत्ति की चोरी करने के प्रयत्न में करेगा जिसे वह व्यक्ति उस समय पहने हुए हो, या लिए आ रहा हो, वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
- किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग-जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति का सदोष परिरोध करने का प्रयत्न करने में करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
- गम्भीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग- जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा दिए गए गम्भीर और अचानक प्रकोपन पर करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण- अन्तिम धारा उसी स्पष्टीकरण के अध्यधीन है जिसके अध्यधीन धारा 352 है। व्यपहरण, अपहरण, दासत्व और बलात्श्रम के विषय में
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