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Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 21 LLB Notes

  Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 21 LLB Notes:- Law LLB 1st Semester / 1st Year Notes Study Material The Indian Penal Code IPC All Topic PDF Download in Hindi English Gujarati Punjabi Marathi Language Available, LLB 1st Semester Important of Lawyer.

 
 

 

  1. खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना- उस दशा के सिवाय, जिसके लिए धारा 335 में उपबन्ध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा, जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर उपयोग में लाया जाए, तो उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, या अग्नि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या संक्षारक पदार्थ द्वारा, या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा, या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुँचना मानव शरीर के लिए हानिकारक है, या किसी जीवजन्तु द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

टिप्पणी एक प्रकरण में तीन व्यक्तियों ने गुजर्पा नामक व्यक्ति को दौड़ाया। इन तीनों व्यक्तियों में से एक के पास घरया (काटने के लिये प्रयोग में आने वाला हथियार) नामक एक हथियार था जबकि अन्य निहत्थे थे। जो व्यक्ति घरया लिये हुये था, उसने मृतक पर दो तीन बार प्रहार किया जबकि शेष दोनों व्यक्ति उस पर पत्थर फेंक रहे थे। कारित उपहति के फलस्वरूप कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गयी। उच्चतम न्यायालय ने अभिनित किया कि मुख्य अपराधी हत्या का दोषी है तथा उसे धारा 302 के अन्तर्गत दण्डित किया गया। जबकि शेष दोनों को स्वेच्छया उपहति कारित करने के लिये धारा 326 के अन्तर्गत दण्डित किया गया । । जहाँ अभियुक्त ने खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित किया है तथा चिकित्सीय साक्ष्य सुस्पष्ट नहीं है वहाँ अभियुक्त की दोषसिद्धि धारा 302/149 से बदल कर धारा । के अन्तर्गत कर दी जायेगी।38 6/149

  1. 2005 क्रि० लॉ ज० 898 (सु० को०).
  2. दज्या मोशया भील तथा अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1984 क्रि० लॉ ज० 1728 (सु० का
  3. धन्ना चौधरी तथा अन्य बनाम बिहार राज्य, 1985 क्रि० लॉ ज० 1864; राजबीर बेनाम हर 1475. क्र० ली ज० 1864; राजबीर बनाम हरयाना राज्य, 1985 क्रि० लाँ ज०

आत्मा राम जिन्गाराजी बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र के बाद में अपीलांट समेत नौ व्यक्तिको भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302/सपठित धारा 149 के अधीन प्रहलाद नामक व्यक्ति की हत्या तथा अन्य अपराधों के लिये आरोपित एवं विचारण किया गया। नौ अभियुक्तों में से आठ को सेशन न्यायालय उच्च न्यायालय के द्वारा इस आशय के समरूप निष्कर्ष के आधार पर कि वे अपराध में शामिल दोषमुक्त कर दिया गया था और केवल अपीलांट को दोषसिद्ध किया गया था। साक्ष्य के अनुसार अन्य लोगों से कोई भी व्यक्ति विधि विरुद्ध जमाव रचित नहीं करता था। यह अधिनित किया गया कि साक्ष्य से यह भी स्पष्ट था कि केवल अभियुक्त/अपीलांट द्वारा कारित चोटों के कारण मृत्यु कारित नहीं हुई थी। इसके विपरीत चश्मदीद गवाहों तथा जिस डाक्टर ने अन्त्य परीक्षण किया था के साक्ष्यों से यह संकेत मिल रहा है कि मृतक को अन्य शस्त्रों से भी चोटें आई थीं और उसकी मृत्यु उन सभी चोटों के परिणामस्वरूप हुई थी। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर धारा 302/14 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया गया और अपीलांट को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के अधीन घोर उपहति कारित करने के अपराध हेतु दण्डित किया गया है। दौलत त्रिम्वाक शेवाले बनाम महाराष्ट्र राज्य40 वाले मामले में अपीलार्थी और मृतक और उसके परिवार को गांव के पड़ोस में भूमि थी। भूमि के संबंध में इन दोनों पक्षों के बीच विवाद था, जिसके कारण अपीलार्थियों ने सिविल वाद फाइल किया था और मृतक और उसके परिवार के विरुद्ध व्यादेश प्राप्त किया था। कि विवादित क्षेत्र में बोवाई नहीं कर सकते थे, किन्तु व्यादेश मिलने से पूर्व मृतक और उसके परिवार वालों ने जुलाई 1992 में विवादित भूमि में मुंग की फसल बो दिया। इस प्रकार संपत्ति मृतक के कब्जे में थी। व्यादेश के परिणामस्वरूप उक्त संपत्ति का कब्जा अपीलार्थी को नहीं प्राप्त हुआ। अभियुक्तों ने पुलिस की सहायता लेने का भी प्रयास किया, किन्तु विफल रहे । दिनांक 4-9-1992 को लगभग 10.00 बजे पूर्वान्ह जब मृतक और उसका भाई फसल काट रहे थे, अभियुक्तगण घातक हथियारों से सुसज्जित होकर खेत पर आए और मृतक तथा उसके भाई पर प्रहार किया, जिसके परिणामस्वरूप केशव की मृत्यु हो गई और उसका भाई बाबूराव (अभि० सा० 11) को क्षतियाँ कारित हुईं। विचारण न्यायालय ने अपीलार्थियों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 302 के अधीन दण्डनीय अपराध का दोषी पाया, जबकि अपीलार्थी। 2 और 4 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 324 के अधीन दोषसिद्ध किया। अपीलार्थियों ने दोषसिद्धि को उच्च न्यायालय में चुनौती दिया, परन्तु विफल रहे, इसलिये उच्चतम न्यायालय में यह अपील की गई है। अपीलार्थी ने अपनी संपत्ति के अधिकार पूर्ण कब्जे के लिये व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के अधिकार का अभिवचन किया। किन्तु न्यायालय इस दलील से सहमत नहीं हुआ, क्योंकि अपीलार्थियों ने व्यादेश के आवेदन में स्वयं स्वीकार किया है कि मृतक पक्ष ने भूमि पर मुंग बोया था। इसलिये यह दलील कि वे अपनी संपत्ति की रक्षा कर रहे थे, मानने योग्य नहीं है। यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्तगण खेत पर घातक हथियार लेकर आए, यह दर्शित करता है कि वे सामान्य आशय रखते थे, यह सामान्य आशय मृतक की हत्या करने का नहीं था। इसके अतिरिक्त यह तथ्य कि अभियुक्तों ने पुलिस की सहायता मांगा था, यह दर्शित करता है कि अभियुक्त प्रथम दृष्ट्या कानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते थे। इसके अतिरिक्त यद्यपि कई अभियुक्त कुल्हाड़ी लिये थे, फिर भी शव-परीक्षा करने वाले चिकित्सक को मात्र एक ही अंतर्मुखी घाव मिला था और अभियोजन यह सुनिश्चित नहीं कर सका कि किसने वह घाव कारित किया था। अत: अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 326 के अधीन गंभीर उपहति कारित करने के लिये दोषी पाया गया और अपीलार्थी सं० 2 और 4 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 324 के अधीन दोषसिद्ध किया गया, जैसा कि निचले न्यायालय ने आदेशित किया था। चोवा मण्डल बनाम बिहार राज्य41 वाले मामले में अपीलार्थी और चार अन्य लोगों ने 23-6-1980 को अपने जमाव को लाठी और टांगी से लैस होकर विधिविरुद्ध जमाव में संगठित कर लिया और अभि० सा० 4 के खेत पर गये जहां अभि० सा० 4 और उसका चचेरा भाई शंकर मण्डल खेत की जोताई कर रहे थे। वहाँ उनसे लड़ाई झगडा किया और वे दोनों हमले के भय से भाग गये। इसके बाद अभियुक्त गांव में वापस लौट आए। रास्ते में उन्हें झालर मण्डल मिला, जो अभि० सा० 4 का चाचा है। यह पूछने पर कि क्या मामला है, 39, 997 क्रि० लाँ ज० 4406 (एस० सी०).

  1. 2004 क्रि० लाँ ज० 2925 (सु० को०).
  2. 2004 क्रि० लाँ ज० 1405 (सु० को०).

अपीलार्थी आग बबूला हो गया और झालर मण्डल के सिर पर लाठी से प्रहार कर दिया, परिणामस्वरूप उसे सिर में चोट लगी और वह गिर गया। इसके बाद अन्य सभी अभियुक्तों ने भी झालर पर प्रहार किया, जिसे अभि० सा० 4 उगान मण्डल ने देखा जिसने शोर मचाया। शोर सुनकर उसका पुत्र धानू मण्डल और भतीजा भुनेश्वर मंडल मौके पर पहुँचे और अभियुक्तों ने उन पर भी हमला कर दिया। जब अन्य ग्रामीण मौका वारदात (घटनास्थल) पर पहुँचे, तब अभियुक्त भाग गये। उगान मण्डल और अन्य घायलों को उसके रिश्तेदार अस्पताल ले गये, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 सपठित 34, 109, 148, 147 और 323 के अधीन आरोपित किया गया। विचारण न्यायालय ने उन्हें सिद्ध दोष किया और उच्च न्यायालय ने भी दोषसिद्धि को कायम रखा। इसलिये यह अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष की गई है। यह अभिनिर्धारित किया गया कि दूसरी घटना जिसमें मृतक की मृत्यु हुई, उसमें कोई अभियुक्त किसी विशिष्ट अभीष्ट (मंतव्य) के लिये झालर पर हमला करने हेतु प्रेरित नहीं किया गया। वह घटना क्षणिक आवेग में घटी, जबकि वह घटना मृत्यु कारित करने या ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से नहीं की गई थी, जिसके बारे में उन्हें जानकारी हो कि सामान्य परिस्थितियों में उससे मृत्यु कारित हो सकती है और वह मृतक के भतीजे से शत्रुता के कारण हुई जो कि मृतक द्वारा अनपेक्षित प्रश्न पूछने के कारण भड़के गुस्से के कारण घटी थी। यह स्पष्ट है कि अभियुक्त के कृत्य का यह अर्थान्वयन नहीं किया जा सकता कि वह गंभीर उपहति कारित करने से भिन्न कृत्य था। अतः अपीलार्थी अभियुक्त द्वारा कारित कृत्य भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के साथ पठित धारा 34 के अधीन आता है और धारा 304 के अधीन नहीं आता। मायण्डी बनाम राज्य द्वारा पुलिस निरीक्षकक के बाद में अपीलाण्ट पामग्रोव होटल चेन्नई की रसोई में कार्यरत कर्मचारी था। 8 फरवरी 2005 को लगभग 6.15 बजे प्रात: मृतक मानिका राजा बाला, जो होटल का मैनेजिंग डाइरेक्टर था, किचन में स्टोर चेक करने आया। जब स्टोर की चेकिंग करने का वाद मृतक अपने कार्यालय को वापस जा रहा था तब अपीलार्थी ने एक हंसिया (Sickle) से जिसे वह छिपाकर लिये था उसके ऊपर प्रहार किया। जब मृतक ने अपने को बचाने का प्रयास किया तब अपीलांट ने पुन: आक्रमण कर उसकी शरीर और हाथ पर अनेक चोटें कारित किया। कुछ लोग जो घटना स्थल के आसपास थे दौड़कर मृतक को बचाने के लिए आये परन्तु अपीलांट घटनास्थल से भाग गया। मृतक को घायलावस्था में अपोलो अस्पताल के गहन हृदयरोग कक्ष में भर्ती कराया गया। उसके पश्चात् भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी। बाद में दिनांक 9 फरवरी 2005 को रात्रि लगभग 3.30 बजे मृतक की मृत्यु हो गयी और उसके पश्चात् मामले को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन परिवर्तित कर दिया गया। मृतक को हृदय सम्बन्धी गम्भीर समस्या थी जिसका ज्ञान अपीलांट को नहीं था। मेडिकल साक्ष्य यह दर्शाता है कि उसकी एन्जियोप्लास्टी हुई थी परन्तु बावजूद इसके उसके पश्चात् भी उसे हृदय आघात हुआ। उन डाक्टरों ने जो उसकी देखभाल कर रहे थे उनकी राय यह थी कि अपीलांट द्वारा कारित मात्र इन चोटों से मृत्यु नहीं हो सकती थी। यह अभिनिर्धारित किया गया कि यह मामला भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के बजाय धारा 326 के अन्तर्गत आयेगा क्योंकि अपीलांट का मृतक की मृत्यु कारित करने का न तो आशय था और न उसको यह ज्ञान था कि ऐसी चोटों से मृत्यु कारित हो सकती है। | 41खा 326-क. अम्ल, आदि का प्रयोग करके स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना-जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग या किन्हीं भागों को उस व्यक्ति पर अम्ल फेंककर या उसे अम्ल देकर या किन्हीं अन्य साधनों का, ऐसा कारित करने के आशय या ज्ञान से कि यह संभाव्य है कि वह ऐसी क्षति या उपहति कारित करे, प्रयोग करके स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करता है या अंगविकार करता है। या जलाता है या विकलांग बनाता है या विद्रूपित करता है या नि:शक्त बनाता है या घोर उपहति कारित करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगाः ।   परंतु ऐसा जुर्माना पीड़ित के उपचार के चिकित्सीय खर्चे को पूरा करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा : परंतु यह और कि इस धारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़ित को संदत्त किया जाएगा।] 41 क. (2010) IV क्रि० लॉ ज० 4707 (एस० सी०). 41ख. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2073 41 ख. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 12) की धारा 5 द्वारा धारा 326-क अन्त:स्थापित (दिनांक 3-2 2013 से प्रभावी)। टिप्पणी धारा 326-क स्वेच्छया एसिड का प्रयोग कर गम्भीर चोट कारित करने के अपराध का प्रावधान करती है। है। इस धारा के अधीन निम्न प्रकार की चोटें आती हैं : (1) किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक क्षति अथवा विकृति या विरूपता कारित करना। (2) जलाना; (3) कोई व्यक्ति जो किसी व्यक्ति के शरीर के अंग या अंगों को निर्योग्य (disable) कर देता है या लंगड़ा, लूला (main) करता है; अथवा (4) एसिड फेंककर या एसिड देकर या पिलाकर चोट पहुंचाता है; अथवा । (5) किसी अन्य प्रकार से चोट कारित करना।। | इस धारा के अन्तर्गत दूसरी आवश्यकता यह है कि उपरोक्त प्रकार की चोटों में से कोई भी इस आशय या ज्ञान से भी कारित की जा सकती है कि वह इस प्रकार की कोई चोट या ऐसी क्षति कारित करने की सम्भावना है। उपरोक्त श्रेणी का कोई अपराध कारित करना किसी प्रकार के कारावास से दण्डनीय होगा जो 10 वर्ष से । कम नहीं होगा परन्तु जो आजीवन कारावास तक हो सकता है और अर्थदण्ड से जो दण्डनीय होगा। । बशर्ते कि ऐसा अर्थदण्ड पीड़ित (victim) के उपचार के व्यय हेतु उचित और युक्तिसंगत होगा। बशर्ते यह भी कि इस धारा के अधीन इस प्रकार अधिरोपित अर्थदण्ड पीड़ित को दे दिया जायेगा। |

 

4ग[. 326-ख. स्वेच्छया अम्ल फेंकना या फेंकने का प्रयत्न करना- जो कोई, किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करने या उसका अंगविकार करने या जलाने या विकलांग बनाने या विद्रूपित करने या नि:शक्त बनाने या घोर उपहति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति पर अम्ल फेंकता है। या फेंकने का प्रयत्न करता है या किसी व्यक्ति को अम्ल देता है या अम्ल देने का प्रयत्न करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्मान से भी दंडनीय होगा। स्पष्टीकरण 1-धारा 326-क और इस धारा के प्रयोजनों के लिए ”अम्ल” में कोई ऐसा पदार्थ सम्मिलित है जो ऐसे अम्लीय या संक्षारक स्वरूप या ज्वलन प्रकृति का है, जो ऐसी शारीरिक क्षति करने योग्य है, जिससे क्षतचिन्ह बन जाते हैं या विद्रूपता या अस्थायी या स्थायी नि:शक्तता हो जाती है। स्पष्टीकरण 2-धारा 326-क और इस धारा के प्रयोजनों के लिए स्थायी या आंशिक नुकसान या. अंगविकार का अपरिवर्तनीय होना आवश्यक नहीं होगा।] टिप्पणी धारा 326-ख जानबूझकर तेजाब फेंकने या फेंकने का प्रयत्न करने के अपराध का प्रावधान करती है। इस धारा के अन्तर्गत निम्न प्रकार के कार्यों को अपराध घोषित किया गया है । (1) किसी व्यक्ति पर तेजाब फेंकना या फेंकने का प्रयत्न करना। (2) किसी व्यक्ति को तेजाब पिलाने का प्रयत्न करना। (3) किसी अन्य प्रकार के साधन का प्रयोग इस आशय से करने का प्रयत्न करना : (क) स्थायी क्षति या, (ख) अस्थायी क्षति (damage) कारित करना, (ग) विरूपता (deformity) कारित करना, या (घ) जलन (burn) कारित करना, (ङ) अंग भंग करना, या (च) विरूपण, निर्योग्यता या गम्भीर चोट कारित करना। 41ग, दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 5 द्वारा धारा 326-ख अन्त:स्थापित (दिनांक 3-2 2013 से प्रभावी) । (छ) चोटें किसी भी व्यक्ति को कारित की जा सकती हैं। | कोई व्यक्ति जो उपरोक्त चोटें कारित करता है वह ऐसे प्रकार के कारावास से जो पांच वर्ष से कम नहीं। होगा और जो सात वर्ष तक विस्तारित हो सकता है दण्डित किया जायेगा। अपराधी अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा। | व्याख्या 1- धारा 326-क और 326-ख के प्रयोजनों हेतू तेजाब में ऐसा तत्व भी शामिल है जिसे अम्लीय या काटने वाली जलन प्रकृति का हो। इसका अर्थ है कि कोई तत्व जिससे शारीरिक चोट जिससे दाग पड़ जाय या विरूपित कर दे या अस्थायी अथवा स्थायी निर्योग्यता कारित करने लायक है। व्याख्या 2-द्वितीय व्याख्या यह स्पष्ट करती है कि धाराओं 326-क और 326-ख के प्रयोजनों हेतु स्थायी या अस्थायी क्षति या विरूपता (deformity) प्रतिवर्तित (irreversible) नहीं की जा सकती है। |

  1. सम्पत्ति उद्दापित करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए। स्वेच्छया उपहति कारित करना-जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई सम्पत्ति या मुल्यवान प्रतिभूति उद्दापित की जाए या उपहत व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को किसी ऐसी बात, जो अवैध हो, या जिससे किसी अपराध का किया जाना सुकर होता हो, करने के लिए मजबूर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  2. अपराध करने के आशय से विष इत्यादि द्वारा उपहति कारित करना- जो कोई इस आशय से कि किसी व्यक्ति को उपहति कारित की जाए या अपराध करने के, या किए जाने को सुकर बनाने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा उपहति कारित करेगा, कोई विष या जड़िमाकारी, नशा करने वाली या अस्वास्थ्यकर औषधि या अन्य चीज उस व्यक्ति को देगा या उसके द्वारा लिया जाना कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

टिप्पणी यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के उत्प्रेरण पर कोई विषैली दवा प्राप्त करता है या देता है तथा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उत्प्रेरक के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति नहीं है तो यह नहीं कहा जायेगा कि प्रथम व्यक्ति ने दया का प्रयोग किया। यदि एक व्यक्ति परीक्षा के तौर पर कुछ लोगों को पत्तियों का रस निकाल कर देता है। उनमें से कुछ के विषय के लक्षण जाहिर करते हैं 42 या यदि धतूरा पाउडर43 का प्रयोग कर एक स्त्री को बेहोश कर दिया जाता है और बेहोशी की हालत में उसके गहने चुरा लिये जाते हैं तो इन परिस्थितियों में इस धारा में वर्णित अपराध पूर्ण हुआ समझा जायेगा। धनिया-दाजी-4 के वाद में अभियुक्त ने ताड़ी के पात्रों में कोई जहरीला पदार्थ मिलाया था। वह यह जानता था कि इससे ताड़ी पीने वालों को शारीरिक क्षति हो सकती है परन्तु उसने ऐसा इस आशय से किया था ताकि एक अनजाना चोर जो प्राय: ताड़ी चुराया करता था, पकड़ा जा सके। एक अनजाने विक्रेता ने इस विष मिश्रित ताड़ी को एक सैनिक को बेच दिया जिससे उसे शारीरिक क्षति हुई। न्यायालय ने अभियुक्त को इस धारा के अन्तर्गत दोषी पाया।

  1. सम्पत्ति उद्दापित करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना- जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्दापित की जाए या उपहत व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को कोई बात, जो अवैध हो या जिससे किसी अपराध का किया जाना सुकर होता हो, करने के लिए मजबूर किया जाए, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी। भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  2. संस्वीकृति उद्दापित करने या विवश करके सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वच्छया उपहति कारित करना-जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा कि उपहत
  3. दासी पिचिगाडू, (1833) 1 वेयर 335.
  4. नन्जुन्दप्पा, वेयर, तृतीय संस्करण 197.
  5. (1860) 5 बी० एच० सी० (क्रि० के०) 59.

व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध , अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए अथवा उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध व्यक्ति को मजबर जाए कि वह कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्तित करे, या करवाये, या किसी दावे या पष्टि, या ऐसी जानकारी दे, जिससे किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके। दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। दृष्टान्त (क) क, एक पुलिस आफिसर, य को यह संस्वीकृति करने को कि उसने अपराध किया है उत्प्रेरित करने के लिए यातना देता है, क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।। (ख) क एक पुलिस आफिसर, यह बतलाने को कि अमुक चुराई हुई सम्पत्ति कहाँ रखी है उत्प्रेरित करने के लिए ख को यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है। (ग) क एक राजस्व आफिसर, राजस्व की वह बकाया, जो य द्वारा शोध्य है, देने को य को विवश करने के लिए उसे यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है। (घ) क, एक जमींदार, भाटक देने को विवश करने के लिए अपनी एक रैयत को यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

  1. संस्वीकृति उद्दापित करने के लिए या विवश करके सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना- जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध अथवा अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए, अथवा उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध व्यक्ति को मजबूर किया जाए कि वह कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्तित करे, या करवाए, या किसी दावे या मांग की तुष्टि करे, या ऐसी जानकारी दे, जिससे किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  2. लोक सेवक को अपने कर्तव्य से भयोपरत करने के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करना-जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हो अथवा इस आशय से कि उस व्यक्ति को या किसी अन्य लोक सेवक को, वैसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित या भयोपरत करे अथवा वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या किए जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

टिप्पणी यह धारा, इसी संहिता की धारा 353 के अनुरूप है। इस धारा तथा धारा 353 में अन्तर केवल इतना ही है कि इस धारा के अन्तर्गत उपहति लोक-सेवक को कारित की जाती है जबकि धारा 353 के अन्तर्गत इसी प्रयोजन हेतु प्रहार या आपराधिक बल का प्रयोग किया जाता है। ‘लोक सेवक की हैसियत से अपने कर्तव्य के पालन में ” पदावली से तात्पर्य है, विधि जो कुछ भी उस पर दायित्व के रूप में सौंपता है किन्तु उसके पदाभास के अधीन किये गये कार्य, भले ही सद्भाव में किये गये हों, दायित्व के रूप में स्वीकार नहीं किये जायेंगे 45 यदि एक वारण्ट का निष्पादन करने के लिये तथा अभियक्त को गिरफ्तार करने के लिये यह आवश्यक है कि उसके घर की खिड़की तोड़ दी जाए और खिड़की तोड दी जाती है, तो खिड़की का तोड़ा जाना इस धारा के अन्तर्गत आएगा। किन्तु यदि खिड़की का तोड़ा जाना आवश्यक नहीं था और उसे तोड़ दिया जाता है तो यह कार्य इस धारा के अन्तिम भाग के अन्तर्गत नहीं आयेगा।46

  1. दलीप, (1896) 18 इला० 246.
  2. उपरोक्त सन्दर्भ.
  3. लोक सेवक को अपने कर्तव्य से भयोपरत करने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना-जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हो अथवा इस आशय से कि उस व्यक्ति को, या किसी अन्य लोक सेवक को, लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित करे या भयोपरत करे अथवा वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या किए जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  4. प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति कारित करना- जो कोई गम्भीर और अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ति से भिन्न, जिसने प्रकोपन दिया था, किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी उपहति कारित किया जाना सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। |
  5. प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना- जो कोई गम्भीर और अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ति से भिन्न, जिसने प्रकोपन दिया था, किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी उपहति कारित किया जाना सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चार वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण- अन्तिम दो धाराएं उन्हीं परन्तुकों के अध्यधीन हैं, जिनके अध्यधीन धारा 300 का अपवाद 1 है।

  1. कार्य जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो-जो कोई इतने उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करेगा कि, उससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न होता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो ढाई सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

टिप्पणी उतावलेपन या उपेक्षा से किया गया कार्य दण्डनीय होता है। भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत अनेक धारायें जैसे-279, 280, 285, 286, 287, 288, 289, 304-क, 337 तथा 338 हैं जो उतावलेपन या उपेक्षा से किये गये कार्यों से सम्बन्धित हैं। उतावलेपन या उपेक्षा से किया गया कोई कार्य यदि मानव जीवन को या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को संकटापन्न करता है, तो कर्ता इस धारा के अन्तर्गत दण्डित होगा, भले ही उस कार्य से किसी को उपहति कारित न हुई हो। यदि किसी मन्दिर का पुजारी जानबूझ कर रात्रि में मन्दिर छोड़ देता है तथा हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने के आशय से मन्दिर पर ईंट के टुकड़े फेंक देता है, तो ऐसी स्थिति में पुजारी द्वारा किया गया कार्य उतावलेपन या उपेक्षा से किया गया कार्य नहीं होगा। पुजारी द्वारा किया गया। कार्य जानबूझ कर किया गया कार्य होगा

  1. ऐसे कार्य द्वारा उपहति कारित करना, जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए- जो कोई ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करने द्वारा, जिससे मानव जीवन या । दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए, किसी व्यक्ति को उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी

भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छ: मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रूपए तक का हो | सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। टिप्पणी उतावलेपन या उपेक्षा से किये गये किसी कार्य से यदि मत्य हो जाती है तो मामला धारा 304-क के | अन्तर्गत आयेगा किन्तु यदि ऐसे कार्य से केवल उपहति कारित होती है तो यह धारा लागू होता है। यह धारा 47. गया प्रसाद (1928) 51 इला० 465. ऐसे मामलों में लागू होती है जिनमें आपराधिक आशय नहीं होता है, कार्य केवल उतावलेपन या उपेक्षा के होता है। उपेक्षापूर्वक बन्दूक धारण कर उपहति कारित करना इस धारा के अन्तर्गत आयेगा न कि धारा 286 के अन्तर्गत। एक देशी फिजीशियन ने आंख का आपरेशन किया जिसमें उसने शुद्ध किये बिना ही कैंची, साधारण धागे तथा सुई का प्रयोग किया। इस आपरेशन के फलस्वरूप, रोगी के आंख की ज्योति सदा के लिये नष्ट हो गयी। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि फिजीशियन ने उतावलेपन तथा उपेक्षा से कार्य किया था इसलिये यह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय था +8 |

  1. ऐसे कार्य द्वारा घोर उपहति कारित करना जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए- जो कोई ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करने द्वारा, जिससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए, किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

टिप्पणी इस धारा के अन्तर्गत घोर उपहति के मामले आते हैं जब कि पिछली धारा के अन्तर्गत इन्हीं परिस्थितियों में कारित “साधारण उपहति” के मामले आते हैं। हरीश मोहन मैथी49 के वाद में पति ने अपनी ग्यारह वर्षीया पत्नी के साथ सम्भोग किया। सम्भोग के फलस्वरूप उत्पन्न चोट के कारण पत्नी की मृत्यु हो गयी। अभियुक्त को घोर उपहति कारित करने के लिये इस धारा के अन्तर्गत दोषसिद्धि प्रदान की गयी, क्योंकि उसने उपेक्षा से कार्य किया था। धारा 375 (5) के अन्तर्गत पति बलात्कार का भी दोषी होगा। | मल्का जी50 के वाद में अभियुक्त ने अपनी बैलगाड़ी सड़क पर किसी व्यक्ति को गाड़ी का भार सौंपे बिना ही छोड़ दिया। एक लड़का जो सड़क पर सो रहा था बैलगाड़ी के नीचे दब कर मर गया। अभियुक्त को धारा 337 तथा 338 के अन्तर्गत दोषसिद्धि प्रदान की गई। डॉ० पी० बी० देसाई बनाम महाराष्ट्र राज्य50क के वाद में एक प्रख्यात सर्जन अपीलाण्ट (अपीलार्थी) ने कैन्सर से पीड़ित मरीज को सर्जरी करा लेने की सलाह दिया ताकि योनि से होने वाला खून का रिसाव बन्द हो जाये। सर्जरी दूसरे डाक्टर ने किया उसने जब पेट को खोला तब उसने नासूर (fistula) से काफी खून बहते हुये पाया जिस कारण शल्यक्रिया सम्भव नहीं थी। अतएव अपीलाण्ट ने उस चिकित्सक को पेट को बन्द करने की सलाह दिया। यह स्पष्ट किया गया कि अपीलार्थी का स्वयं द्वारा ऑपरेशन न करना नगण्य है। यद्यपि कि अपीलार्थी का इस प्रकार का आचरण व्यावसायिक (professional) दुराचरण है और अपकृत्य में अभियोज्य त्रुटि (actionable wrong) है तथापि यह आपराधिक दायित्व की कोटि में नहीं आता है जिससे कि उसे भा० द० सं० की धारा 338 के अधीन दायित्वाधीन कहा जा सके। अतएव अपीलार्थी भा० द० सं० की धारा 338 सपठित धारा 109 के अधीन अपराधी नहीं पाया गया। इस वाद में यह भी स्पष्ट किया गया कि मात्र मस्तिष्क की वह स्थिति जिसे दण्डित किया जा सकता है। वह ऐसा आशय है जो अन्य लोगों को नुकसान (हानि) पहुंचाने का आशय इंगित करता है अथवा वहां जहां उसका जानबूझ कर दूसरों को हानि पहुंचाने की जोखिम का आशय हो, असावधानी (negligent) पूर्ण आचरण से दूसरों को हानि पहुंचाने का आशय नहीं होता है परन्तु यह जानबूझ कर किया गया ऐसा कार्य है। जिससे दूसरों को हानि पहुंचाने का जोखिम होता है जिससे वह काम करने वाला व्यक्ति उस अन्य को होने वाले जोखिम से अवगत रहता है तथापि वह जोखिम के बाद भी उस कार्य को करता है। यह असावधानी (recklessness) की पुरातन (classic) परिभाषा है जो असावधानी (negligence) से संकल्पनात्मक (conceptually) रूप से भिन्न है और जो आपराधिक दायित्व का काफी मान्य आधार माना जाता है। असावधानी के लिये दोषी को ज्यादा से ज्यादा नुकसानी (damages) हेतु सिविल कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।

  1. गुलाम हैदर पंजाबी, (1915) 17 बाम्बे एल० आर० 384.
  2. (1890) 18 कल० 49.
  3. (1884) अनरिपोर्टेड क्रिमिनल केसेज, 198.

50क. (2014) I क्रि० लॉ ज० 384 (एस० सी०).

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