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Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 19 LLB Notes

 

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उपहति के विषय में

OF HURT

  1. उपहति-जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा, रोग या अंग-शैथिल्य कारित करता है, वह उपहति करता है, यह कहा जाता है।

टिप्पणी

उपहति का अर्थ है, एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को पीड़ा, रोरा या अंग शैथिल्य कारित करना। ऐसी पीड़ा इत्यादि कारित करने के लिये अभियुक्त और क्षतिग्रस्त व्यक्ति के बीच सीधा शारीरिक सम्पर्क होना आवश्यक नहीं है। उत्पत्ति अभियुक्त के किसी ऐच्छिक कार्य द्वारा कारित हो सकती है। अभियुक्त के किसी ऐच्छिक कार्य द्वारा कारित मानसिक आघात या मानसिक अव्यवस्था इसमें सम्मिलित है। मानसिक शैथिल्यता की अवधि महत्वपूर्ण नहीं है। ऐसे कार्य जिनसे न तो मृत्यु आशयित है और न ही मृत्यु होनी सम्भाव्य है, उपहति की प्रकृति के अनुसार या तो साधारण उपहति होंगे या घोर उपहति, भले ही उन कार्यों से मृत्यु कारित की गयी हो। संहिता, के लेखकों के अनुसार

“बहुत से अपराध जो ‘‘उपहति” शीर्षक के अन्तर्गत आते हैं, “हमला” शीर्षक के अन्तर्गत भी आयेंगे। छुरा भोंक देना, घूसा मारना, जिससे अंग भंग हो जाये, किसी दूसरे व्यक्ति पर उबलता पानी फेंकना, हमला और उपहति दोनों ही शीर्षकों के अन्तर्गत आते हैं। किन्तु शारीरिक उपहति कई अन्य तरीकों से भी कारित की जा सकती है जो हमला के अन्तर्गत नहीं आते। उदाहरण के लिये, यदि कोई व्यक्ति खाने में कोई हानिकारक विष मिलाकर दूसरे की मेज पर रख देता है, यदि कोई घास में हंसिया छिपा देता है, जिस पर एक व्यक्ति प्राय: टहलता है, यदि कोई व्यक्ति किसी लोक मार्ग में एक गड्ढा खोद देता है इस आशय से कि गड्ढे में दूसरा व्यक्ति गिर जायेगा तो ये सभी कार्य गम्भीर उपहति कारित कर सकते हैं और ऐसी उपहति कारित करने के लिये उन्हें विधित: दण्डित किया जा सकता है। किन्तु इन कार्यों को हमला की संज्ञा नहीं दी। जा सकती। अत: इस संहिता में सभी प्रकार की पीड़ा, रोग या अंग शैथिल्य को उपहति के नाम से पुकारा गया है।”4

  1. राधा, (1899) 1 बाम्बे लॉ रि० 155.
  2. लल्लू, (1898) अनरिपोर्टेड क्रिमिनल केसेज 961.
  3. बाजी, (1895) अनरिपोर्टेड क्रि० केसेज 775.
  4. माधो सिंह, (1878) पी० आर० नं० 22 सन् 1878.
  5. जशनमल बनाम ब्रह्मानन्द, (1943) 45 क्रि० लॉ ज० 247.
  6. नोट एम० पी० 151.

शारीरिक पीड़ा (Bodily Pain)—ऐसी तुच्छ पीड़ा जिसकी कोई भी सामान्य प्रज्ञा वाला व्यक्ति शिकायत नहीं करेगा, को छोड़कर अन्य शारीरिक पीड़ा उपहति के अन्तर्गत आती है। पीड़ा की अवधि महत्वपूर्ण नहीं है। किसी स्त्री के केश पकड़ कर उसे खींचना उपहति है।।

एक प्रकरण में अभियुक्त अ, कोर्ट नाजिर के साथ बेदखली (ejectment) की डिक्री के निष्पादन हेतु अपने बहनोई (sister’s husband) के घर गया। अभियुक्त की बहन ने कब्जे के परिदान का विरोध किया। क्योंकि उसका कहना था कि मकान उसके नाम में है और वह डिक्री की पक्षकार नहीं है। अभियुक्त ने बलपूर्वक खींचकर उसे मकान से बाहर कर दिया। अभियुक्त को इस धारा में वर्णित अपराध के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी, क्योंकि वह (शिकायतकर्ता) डिक्री की पक्षकार नहीं थी और डिक्री बहनोई के विरुद्ध थी।

अंग शैथिल्यता (Infirmity)–अंग शैथिल्यता का अर्थ है, अपने सामान्य कार्यों को सम्पादित करने में किसी अंग की अयोग्यता और यह अयोग्यता स्थायी या अस्थायी हो सकती है। यह अस्वस्थ शरीर या मस्तिष्क की ओर इंगित करती है जैसे अस्थायी क्षति, मूर्छा या भय की अवस्था ।8

ऐसे कार्य जो न तो मृत्यु कारित करने के आशय से किये गये थे और न तो जिनसे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है-जहाँ न तो मृत्यु कारित करने का आशय है और न ही ऐसी शारीरिक उपहति जिससे मृत्यु होनी सम्भाव्य है, और न ही इस बात का ज्ञान है कि कारित उपहति से मृत्यु होनी सम्भाव्य है, और मृत्यु कारित हो जाती है तो अभियुक्त केवल उपहति का दोषी होगा यदि कारित उपहति गम्भीर नहीं थी। एक प्रकरण में अभियुक्त ने एक व्यक्ति को बांस से बने जुये से पीटा जिससे क्षतिग्रस्त व्यक्ति की मृत्यु हो गयी। चिकित्सीय साक्ष्यों के अनुसार उसकी मृत्यु अफीम की अत्यधिक मात्रा खाने से हुई थी और अफीम उसके मित्रों ने खिलाया था। अभियुक्त को उपहति कारित करने के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गई क्योंकि मृत्यु कारित करने का आशय नहीं था और प्रहार की प्रकृति ऐसा नहीं थी जिससे उसकी मृत्यु कारित होनी सम्भाव्य थी। जहां एक माँ ने अपनी आठ दस वर्ष की लड़की को उसकी धृष्टता के लिये सबक सिखाने हेतु एक ठोकर उसकी पीठ में और दो थप्पड उसके माल में मारा था जिसके कारण वह लडकी मर गई थी, न्यायालय ने यह अभिनिर्धारण प्रदान किया कि माँ उसकी केवल स्वेच्छया उपहति कारित करने के लिये ही दोषी है।10

एक मामले में क और ख में झगड़ा हो गया और क ने ख के चेहरे पर जोर से एक चप्पल मारा। इस चोट से ख अपने शरीर को संतुलन खो बैठा और पीछे पड़े एक पत्थर पर गिर पड़ा जिससे उसके सर में भीषण चोट आयी और ख मर गया। ऐसी दशा में ‘क’ उपहति कारित करने हेतु संहिता की धारा 323 के अन्तर्गत दोषी होगा क्योंकि चप्पल से मारने पर न तो उसका कार्य ऐसा था कि ख के जीवन को खतरा था और न उस कार्य से मृत्यु की सम्भावना ही थी।

प्लीहा के मामले (Spleen Cases)–एक प्रकरण में पत्नी द्वारा प्रकोपित किये जाने पर पति ने पैर से। उसके उदर में प्रहार किया जिससे उसकी प्लीहा नष्ट हो गयी और उसकी मृत्यु हो गई। उसके पति को यह नहीं मालूम था कि उसका प्लीहा रोगी था और न तो उसका यह आशय था, और न ही उसे यह मालूम था कि उसके कार्य से ऐसी उपहति कारित हो सकती है जिससे मानव जीवन को खतरा उत्पन्न हो जाये। उसे इस धारा के अन्तर्गत दोषसिद्धि प्रदान की गई।11 दूसरे प्रकरण में अभियुक्त ने ईंट से मृतक पर प्रहार किया। ईंट

  1. (1833) वेयर, तीसरा संस्करण 196.
  2. अब्दुल सत्तार बनाम श्रीमती मोती बीबी, ए० आई० आर० 1930 कल० 720.
  3. अनीस बेग, (1923) 46 इला० 77 पृ० 79.
  4. ‘जशनमल बनाम ब्रह्मानन्द, (1943) 45 क्रि० लॉ ज० 247.
  5. (1883) एस० जे० एल० बी० 179. । |
  6. वेशोर बेवा, (1872) 18 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 29. |
  7. विसागू नाशियो, (1867) 8 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 29.

प्लीहा पर लगी जिससे प्लीटा नष्ट हो गयी और उसकी मृत्यु हो गयी। प्लीहा पहले से रोगी * का मत्य कारित करने का कोई आशय नहीं था या ऐसी उपहति कारित करने का कोई आशय था जिससे मृत्यु कारित होनी सम्भाव्य थी, अत: उसे केवल उपहति कारित करने के लिये दोषसिदि की गयी।12। ।

श्री प्रकाश बनाम राज्य13 के मामले में मृतक बच्चू के साथ कुछ अन्य लड़के होली के लिये लकडी इकट्ठा कर रहे थे। जब वे लकड़ी का ढेर ले जा रहे थे उसी बीच एक व्यक्ति ने जाकर श्री प्रकाश को बता दिया।  श्री प्रकाश को अपनी ओर आता देखकर मृतक को छोड़कर अन्य लड़के भाग लिये और बगल के खेत में छिप गये। बच्चे को श्री प्रकाश ने पकड़ लिया और गिरा दिया जिससे उसे कुछ चोटें आयीं और वह मर गया। बच्चे की प्लीहा बढ़ी थी परन्तु यह बात अपीलांट श्री प्रकाश को मालूम न थी। परीक्षण न्यायालय द्वारा श्री प्रकाश को धारा 325 भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत दोषी पाया परन्तु उच्च न्यायालय ने उसे धारा 323 के अन्तर्गत मात्र उपहति कारित करने हेतु दोषी ठहराया क्योंकि बच्चू की तिल्ली का बढ़ा होना उसे नहीं मालूम था और साथ में मृतक को स्पष्ट दिखाने वाली चोट भी नहीं लगी थी।

विष-प्रयोग (Poisoning)-अनीस बेग14 के बाद में 16 वर्षीय अभियुक्त अपने तीन चार साल छोटी एक बालिका के प्रेम में पड़ गया था। उस बालिका को वशीकरण औषधि के रूप में प्रेम रस का पान कराने के उद्देश्य से अभियुक्त ने अपने से छोटे एक दूसरे बालक को उत्प्रेरित कर मिष्ठान्न भेजा। उस मिष्ठान्न को जब उस बालिका और घर वालों ने खाया तो वे सभी उसमें मिश्रित धतूरे के विष से प्रभावित हो गये। सौभाग्य वश उनमें से किसी की मृत्यु नहीं हुई। न्यायालय ने यह अभिनिर्धारण प्रदान किया कि अभियुक्त उपहति कारित करने का दोषी था।

पैर से प्रहार करना (Kicking) मारना-गाउन्डन15 के वाद में अभियुक्त ने मृतक से अपने एक आने पैसे की मांग किया जो मृतक द्वारा अभियुक्त को देय था। मृतक ने कुछ समय बाद में उसका भुगतान करने का वादा किया था। तत्पश्चात् अभियुक्त ने दो बार पैर से उसके उदर पर प्रहार किया जिससे मृतक बेहोश हो गया और बाद में उसकी मृत्यु हो गयी। अभियुक्त को उपहति कारित करने के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता था कि उसका आशय यह था या वह यह जानता था कि उदर में प्रहार करने से उसके जीवन को खतरा उत्पन्न होना सम्भाव्य था।

  1. घोर उपहति-उपहति की केवल नीचे लिखी किस्में ‘‘घोर” कहलाती हैं

पहला-पुंसत्वहरण।।

दूसरा-दोनों में से किसी नेत्र की दृष्टि का स्थायी विच्छेद।

तीसरा-दोनों में से किसी भी कान की श्रवणशक्ति का स्थायी विच्छेद।।

चौथा-किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेद।

पांचवां-किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का नाश या स्थायी ह्रास।

छठा- सिर या चेहरे का स्थायी विद्रूपीकरण।

सातवां-अस्थि या दांत का भंग या विसंधान।

आठवां-कोई उपहति जो जीवन को संकटापन्न करती है या जिसके कारण उपहत व्यक्ति बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा में रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने के लिए असमर्थ रहता है।

  1. रनधीर सिंह, (1881) 3 इला० 597.
  2. 1990 क्रि० लाँ ज० 486 (इला०).
  3. (1923) 46 इला० 77. ।

15 T० आई० आर० 1941 मद्रास 560.

टिप्पणी

घोर उपहति गम्भीर प्रकृति की उपहति है। यह इस धारा में वर्णित प्रकारों में से किसी भी एक या अधिक प्रकार की हो सकती है। यह स्वेच्छया कारित होती है।16।

संहिता के लेखकों के अनुसार गम्भीर तथा क्षुद्र शारीरिक उपहतियों के बीच विभाजन रेखा खींचना बड़ा ही दुष्कर कार्य है। पूर्ण शुद्धता से इस रेखा का खींचा जाना वस्तुत: बिल्कुल ही असम्भव है फिर यह आवश्यक है कि ऐसे अपराध जो हत्या जैसे अपराध की गम्भीरता से युक्त होते हैं और जो क्षुद्र प्रकृति के होते हैं जिन पर शायद ही कोई सामान्य प्रज्ञा वाला व्यक्ति ध्यान देगा, के बीच के विभाजन रेखा खींची जाये।17।

पुंसत्वहरण (Emasculation)–“पुंसत्वहरण”, शब्द से तात्पर्य है कि किसी पुरुष को पुरुषोचित शक्ति से वंचित करना। किसी व्यक्ति के अण्डकोष थैली को उपहति कारित कर उसे नपुंसक बनाना इस शब्द के अन्तर्गत आता है। स्वत: उपहति कारित करना जिसका परिणाम पुंसत्वहरण है इस धारा के अन्तर्गत नहीं आयेगा।18 इस धारा के अन्तर्गत केवल यह अपेक्षित है कि किसी व्यक्ति को स्वेच्छया ऐसी उपहति कारित की जाये जिससे वह पुरुषोचित शक्ति से वंचित हो जाये।।

विद्रूपीकरण (Disfiguration)–“विद्रूपीकरण” शब्द का अर्थ है किसी व्यक्ति को ऐसी उपहति कारित करना जो उसके आकार को क्षति तो पहुँचाती है किन्तु उसे कमजोर या शक्तिहीन नहीं बनाती। उदाहरण के लिये किसी व्यक्ति की नाक या कान काट लेना, या ऐसी उपहति कारित करना जिससे उसके चेहरे पर कोई स्थायी चिन्ह बन जाये। यदि किसी लड़की के गालों पर लोहे के लाल छडों में दाग कर स्थायी चिन्ह बना दिया जाता है तो यह प्रक्रिया विद्रूपीकरण के अन्तर्गत आयेगी और अभियुक्त घोर उपहति का दोषी होगा।19

अस्थि का भंग या विसंधान (Fracture of dislocation of a bone)—किसी अस्थि का भंग या विसंधान घोर उपहति की श्रेणी में आता है क्योंकि इससे क्षतिग्रस्त व्यक्ति को भयंकर पीड़ा पहुँचती है। यह सम्भव है कि टूटी हड्डी फिर से जुड़ जाये या खिसकी हड्डी अपने स्थान पर पुनः आ जाए किन्तु इससे उपहति की प्रकृति में कोई अन्तर नहीं आयेगा, क्योंकि इससे क्षतिग्रस्त व्यक्ति को पीड़ा सहनी पड़ती है। * भंग” का साधारण अर्थ है, टूटना। किन्तु कुछ परिस्थितियों में इसका टूटना जरूरी नहीं है, इसमें केवल दरारें ही पड़ सकती हैं। उदाहरण के लिये कपाल की हड्डी (Skull bone) का भंग होना। किन्तु यदि इसमें केवल दरार पड़ती है तो दरार का विस्तार वाह्य सतह से आन्तरिक सतह तक होना आवश्यक है।20 यदि घाव से केवल खरोंच पहुँचती है, यह अस्थि में गहराई तक नहीं जाती तो इसे अस्थि भंग की संज्ञा नहीं। दी जा सकती। किन्तु यदि हड्डी लगभग 1/2 इंच गहरायी में कट जाती है तो यह अस्थि भंग होगा।21 ऐसी खरोंच या घाव जो अस्थि के आर-पार नहीं पहुँचती, इस धारा के अन्तर्गत अस्थि-भंग की कोटि में नहीं आती 22

उपहति जो जीवन के लिये जोखिम हो सकती है (Any hurt which endangers life)–यदि कारित उपहात ऐसी है जिससे जीवन को केवल खतरा उत्पन्न हो सकता है तो भी वह “घोर उपहति होगी। मार याद इसमें मृत्यु कारित होने की सम्भावना है तो यह हत्या की कोटि में न आने वाला आपराधिक मानव-वध होगा। हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव-वध तथा घोर उपहति के बीच बहुत मामूली अंतर है | घोर उपहति के मामले में वस्तुतः कारित उपहति की प्रकृति ऐसी होती है जिससे किसी

  1. बद्री राय, (1875) 23 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 65.
  2. नोट एम० पी० 151.
  3. माधो सिंह, (1878) पी० आर० नं० 22 सन् 1878.
  4. अताविन डावोबा. (1863) 1 वी० एच० सी० 101.

20 मांग पो० यी० बनाम मो ई तिन, (1937) 38 क्रि० लॉ ज० 960.

  1. मक्का सामी, (1965) 1 क्रि० लॉ ज० 48.
  2. कल्या, (1955) कि० लॉ ज० 579.

व्यक्ति की मृत्यु कारित होनी सम्भाव्य होती है।23 तेज धार वाले किसी हथियार से किसी के गले में कारि उपहति जीवन के लिये घातक मानी जायेगी।24।

एक ऐसे मामले में ‘क’ की पत्नी अपने पिता के घर को छोड़कर ‘क’ के साथ जाने को तैयार नहीं थी। ‘क’ उसे जबरन निकाल कर ले जाने लगा। इस पर क के ससुर म ने अपने लड़के ख से कहा कि “मारो” व ने क पर डण्डे से प्रहार किया जिससे वह मर गया। ऐसी दशा में ‘ख’ घोर उपहति कारित करने के लिये दोषी होगा क्योंकि उसका कार्य ऐसा था जिससे क के जीवन को खतरा हो सकता था परन्तु मात्र डण्डे के एक प्रहार से मृत्यु की सम्भावना नहीं हो सकती है। साथ ही ‘म’ भी संहिता की धारा 114 के अनुसार दुष्प्रेरित अपराध अर्थात् घोर उपहति हेतु दोषी होगा, क्योंकि अपराध कारित किये जाते समय वह उपस्थित था। इसी प्रकार के मामले में यदि ख ने बर्बरतापूर्वक कई डण्डे मारा होता तो वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव-वध का दोषी होता, क्योंकि उससे क की मृत्यु सम्भावित हो जाती।

उपहति जिससे क्षतिग्रस्त व्यक्ति को तीव्र शारीरिक पीड़ा पहुँचती है (Hurt which causes the sufferer severe bodily pain)–खण्ड 8 के अन्तर्गत कोई चोट घोर उपहति की कोटि में आयेगी यदि इससे कोई व्यक्ति बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा में रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने के लिये असमर्थ रहता है। केवल यह तथ्य कि उपहत व्यक्ति बीस या अधिक दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा, पर्याप्त नहीं होगा, अपितु यह आवश्यक है कि वह अपने मामूली कामकाज को उतने दिनों तक करने के लिये असमर्थ रहा हो।25 घोर उपहति का गठन बीस दिनों तक तीव्र पीड़ा या 20 दिनों तक मामूली कामकाज न कर सकने के द्वारा होता है। यदि यह अवधि 20 दिन से कम हो तो अपराध उपहति होगा 26 ।

ऐसे कार्य जो न तो मृत्यु कारित करने के आशय से किये गये थे और जो न तो सम्भाव्यतः मृत्यु कारित कर सकते थे--यदि कार्य करते समय अभियुक्त का न तो मृत्यु कारित करने का आशय था और न ही शारीरिक उपहति कारित करने का आशय था जिससे संभाव्यत: मृत्यु कारित हो या उसे इस बात का ज्ञान न था कि कारित उपहति के कारण मृत्यु होनी सम्भाव्य थी, और वस्तुत: मृत्यु कारित हो जाती है तो अभियुक्त स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने का दोषी होगा यदि कारित उपहति गम्भीर प्रकृति की थी। गोर्नबिलू-7 के वाद में अभियुक्त ने चुराने के आश्य से एक स्त्री की नएनी (nose ring) पर झपट्टा मारा जिससे उसकी नाक कट गयी, फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गयी। अभियुक्त को इस धारा के अन्तर्गत दोषसिद्धि प्रदान की गयी।

प्रमुख वाद- फारमिना सेवास्टिओ अजारदियो बनाम गोआ डामन दिउ राज्य28 के मामले में । मृतक (आरलैण्डो) इस बात का प्रचार कर रहा था कि न और उसकी मामी म में अवैध सम्बन्ध है। घटना के । दिन न, म तथा म के पति अ ने मृतक को पकड़कर एक रस्सी से बिजली के खम्भे में बांध दिया और उसे मारा जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। उनमें से किसी के पास प्राणघातक अस्त्र नहीं थे और उनमें से किसी ने शब्दों अथवा अपने संकेतों द्वारा मृतक को जान से मार डालने का आशय जाहिर नहीं किया, न और म ने यह कार्य उन दोनों के अवैध सम्बन्ध के बारे में मृतक द्वारा अकीर्तिकर प्रचार करने के लिये सबक सिखाने के उद्देश्य से किया। अभियुक्तों द्वारा अलग-अलग कृत्य करने का कोई साक्ष्य नहीं था। यह अभिनिर्धारित किया। गया कि उनके द्वारा अलग-अलग कोई विशिष्ट कृत्य करने के साक्ष्य के अभाव में यह आरोप लगाना उचित । नहीं होगा कि अपीलार्थियों का आशय मृतक की मृत्यु कारित करना था। अतएव जहाँ तक न और म का। सम्बन्ध है वे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के अन्तर्गत दोषी हैं परन्तु जहाँ तक अ का सम्बन्ध है उसके। विरुद्ध उचित साक्ष्य उपलब्ध न होने के कारण वह दोषमुक्ति का अधिकारी है।

  1. बम्बई सरकार बनाम अब्दुल बहाव, ए० आई० आर० 1964 बाम्बे 38.
  2. मुहम्मद रफी, ए० आई० आर० 1930 लखनऊ 305.
  3. वस्त चेला, (1894) 19 बाम्बे 247.

विष्णुशर्मा, (1864) 1 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 9.

  1. 1945 मद्रास 73.
  2. 1992 क्रि० लॉ ज० 107 (एस० सी०).

रोगी प्लीहा (Diseased spleen)-भरत सिंह29 के वाद में अभियुक्त ने अपने पशुओं को मुक्त करने 545 के उद्देश्य से मृतक की अच्छी तरह पिटाई किया, क्योंकि उसने उसके पशुओं को मुक्त करने से इन्कार कर दिया था। मृतक साठ वर्षीय एक बुजुर्ग आदमी था तथा वह विकसित हृदय का रोगी था। अभियुक्त द्वारा की गई पिटाई से उसकी मृत्यु हो गई। अभियुक्त घोर उपहति कारित करने के लिये दण्डित किया गया क्योंकि उसे मृतक की दशा का ज्ञान नहीं था।

एक व्यक्ति पर लक्षित प्रहार दूसरे को लगता है (Blow aimed at one person falling upon another)- यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर उस पर प्रहार करता है किन्तु वह प्रहार किसी दूसरे व्यक्ति पर गिरती है तो वह घोर उपहति, या हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानववध या हत्या का दोषी होगा। उसकी दोषसिद्धि कारित उपहति की प्रकृति पर निर्भर करेगी। कुरे30 के वाद में दो पार्टियों के बीच एक लोक स्थान में मारपीट हुई, मारपीट के दौरान दोनों पार्टियों के सदस्यों को गम्भीर चोटें आयीं। परिवादकर्ता के पक्ष में नाजुक उम्र की एक लड़की अपने पिता के समीप बैठी हुई थी। उस लड़की के सिर पर शक्तिशाली प्रहार हुआ जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। अभियुक्तों को घोर उपहति कारित करने के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी।

  1. स्वेच्छया उपहति कारित करना- जो कोई किसी कार्य को इस आशय से करता है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे या इस ज्ञान के साथ करता है कि यह सम्भाव्य है कि वह तद्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे और तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करता है, वह ‘‘स्वेच्छया घोर उपहति करता है”, यह कहा जाता है।

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