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Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 18 LLB Notes

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309, आत्महत्या करने का प्रयत्न- जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा, और उस अपराध के करने के लिए कोई कार्य करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा। टिप्पणी यदि आत्महत्या में अपराधी की मृत्यु हो जाती है तो वह चाहे पुरुष हो या स्त्री, वह अपराध के लिये दण्डित नहीं किया जा सकता। किन्तु यदि उसकी मृत्यु नहीं होती है तो आत्महत्या के प्रयत्न के लिये वह दण्डनीय होगा। केवल यही एक ऐसा मामला है जिसमें अपराध का वस्तुतः कारित किया जाना दण्डनीय नहीं होता है। र एक गाँव की औरत थी। उसकी उम्र 20 वर्ष की थी तथा उसका पति उसके साथ दुर्व्यवहार करता था। दोनों के बीच झगड़ा हुआ और उसके पति ने उसे पीटने की धमकी दिया और उसी रात्रि को वह औरत अपने 6 महीने के बच्चे को लेकर घर से चुपचाप निकल गयी। अभी वह कुछ दूर ही गयी थी कि उसे लगा। कि कोई व्यक्ति उसके पीछे-पीछे आ रहा है। जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे लगा कि उसका पति ही। उसका पीछा कर रहा है। वह घबड़ा गयी और वह घबड़ाहट में बच्चे के साथ समीप स्थित एक कुएँ में कूद पड़ी। कुएं में बच्चे की मृत्यु हो गयी किन्तु वह बच गई। यहाँ ‘र’ आत्महत्या करने के प्रयत्न के लिये नहीं दण्डनीय नहीं होगी, क्योंकि प्रयत्न हेतु कार्य के सम्पादन के लिये किसी चेतन प्रयास का होना आवश्यक है। इस मामले में अभियोगिनी अपना जीवन समाप्त करने को नहीं सोच रही थी वरन् अपने पति से बचने का प्रयास कर रही थी।88 परन्तु वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के लिये दण्डनीय ९। क्योंकि जिस समय वह अपने 6 महीने के बच्चे के साथ कुएं में कूदी थी उसे इस बात का ज्ञान

  1. धिरजिया, आई० एल० आर० 1940 इला० 647.

होना चाहिये था कि उसका कार्य पर्याप्त रूप से घातक है जिससे पानी में डूबने से बच्चे की की मृत्यु होनी सम्भाव्य है। जहाँ ‘अ’ उन्मत्त अवस्था में आत्महत्या करने के आशय से कुएं में कूदता है, अ इस धारा में – अपराध के लिये दण्डनीय होगा, क्योंकि यह प्रतीत होता है कि वह स्वेच्छया उन्मत्त हुआ और नशे में वह इस हद तक उन्मत्त नहीं हुआ था कि उसे इस बात का ज्ञान नहीं था कि उसने क्या क प्रयत्न किया था। एक विश्वविद्यालय के छात्र नेता ने आत्मदाह करने का ऐलान किया। उसने विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर लकड़ी के लट्ठों को इकट्ठा करवाया और उस पर मिट्टी का तेल छिड़का। तत्पश्चात् वह लकड़ी के ढेर पर चढ़ गया, इतने में पुलिस आ गई और उसे पकड़ ले गयी। उसके ऊपर आत्महत्या के प्रयास का मुकदमा चलाया गया। छात्र नेता का उपरोक्त कार्य आत्मदाह की तैयारी मात्र था उसे आत्महत्या का प्रयास नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लकड़ी में अभी आग नहीं लगाई गई थी और आग लगाने के पहले वह कभी भी अपना विचार बदल सकता था। अतएव वह आत्महत्या के प्रयास का दोषी नहीं है। जिलाधिकारी के कतिपय आदेशों के विरुद्ध, विरोधस्वरूप एक राजनीतिक कार्यकर्ता ‘ज’ ने आमरण अनशन करने का एलान किया। इसके बाद उसने किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ लेने से इन्कार कर दिया। सात दिनों के उपवास के बाद इस बात के आसार नजर आने लगे कि वह आसन्न मृत्यु के खतरे में है। जब उससे अनशन समाप्त करने को कहा गया तो उसने इन्कार कर दिया और अपना अनशन जारी रखा। यहाँ ज आत्महत्या करने के प्रयत्न के लिये दण्डनीय है क्योंकि उसने आमरण अनशन किया था और वह अपना अनशन जारी रख रहा था, जबकि इस बात के संकेत थे कि वह मृत्यु के आसन्न खतरे में है। यह तर्क भी दिया जा सकता है कि यदि वह अपना विचार बदल देता और अपने अनशन को और अधिक जारी न रखता तो उसके द्वारा किये गये कार्य हानि रहित हुये होते और उसका कार्य इस धारा के अन्तर्गत प्रयत्न की कोटि में नहीं आया होता, किन्तु मृत्यु के आसन्न खतरे के प्रमाण के कारण उसका कार्य ‘‘प्रयत्न” की कोटि से बाहर नहीं रह पायेगा भले ही उसने अपना अनशन समाप्त कर दिया होता। उसने प्रयत्न कारित करने की दिशा में एक कार्य किया था।89 । धारा 309 की संवैधानिकता-चेन्ना जगदीश्वर बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य90 के मामले में यह निर्णय दिया गया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 तथा 27 का उल्लंघन नहीं करती है। यह कहना उचित न होगा कि जीवन सम्बन्धी अधिकार में जीवित न रहने (अर्थात् मूल्य) का अधिकार भी सम्मिलित है। परन्तु मारुति श्रीपति दुबाल बनाम महाराष्ट्र राज्य)1 के मामले में बम्बई उच्च न्यायालय ने इसके विपरीत मृत व्यक्त किया है। इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि धारा 309 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21, 19 तथा 14 का उल्लंघन करती है। जीवन के अधिकार का अर्थ है। मानवीय प्रतिष्ठापूर्वक जीवन तथा जीवन के अधिकार में मृत्यु का भी अधिकार शामिल है। मौलिक अधिकारों में उसके सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पक्ष सम्मिलित हैं। अतएव किसी व्यक्ति पर जीने के लिये दबाव नहीं डाला जा सकता है। अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकार अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त अधिकार का विस्तार (extension) मात्र है और बिना जीवन के अधिकार के अनुच्छेद 19 के अधिकार व्यर्थ हैं। यह धारा अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन करती है क्योंकि आत्महत्या के सभी प्रकार के प्रयत्नों को एक जैसा माना गया है और ऐसा प्रयत्न किन परिस्थितियों के कारण किया जाता है उनको विचार में नहीं रखा गया है। परन्तु बम्बई उच्च न्यायालय का यह मत तर्क सम्मत नहीं है और इसकी विद्वानों द्वारा घोर आलोचना की गई है। पी० रथिनाम बनाम भारत संघ92 के मामले में दो रिट याचिकायें, एक पी० रथिनाम तथा दूसरी नागभूषण पटनायक के द्वारा दाखिल की गयी थीं। इन याचिकाओं के माध्यम से भारतीय दण्ड संहिता का धारा 309 की संवैधानिकता को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के अतिक्रमण करने के आधार पर चुनौती

  1. राम सुन्दर, ए० आई० आर० 1962 इला० 262 भी भिन्न मत हेतु देखें।
  2. 1988 क्रि० लाँ ज० 549 (आं० प्र०).
  3. 1987 क्रि० लॉ ज० 743 (बम्बई).
  4. ए० आई० आर० 1994 एस० सी० 1844.

दी गयी थी। दूसरे याची पटनायक ने अपने विरुद्ध दण्ड संहिता की धारा 309 के अधीन चल रही कार्यवाही को भी रद्द करने की प्रार्थना किया था। उच्चतम न्यायालय ने यह प्रेक्षित किया कि हमारी दाण्डिक विधियों के मानवीकरण की दृष्टि से संहिता की धारा 309 संविधि संग्रह (Statute book) से मिटा देने योग्य है। यह एक कर और अयुक्त प्रावधान है और इसका परिणाम किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसने घोर यंत्रणा (agony) झेली हो, दोबारा दण्डित करने के समान है, जिसे आत्महत्या के प्रयत्न में विफल होने के कारण लोकनिन्दा (ignominy) का भाजन होना पड़ेगा। ऐसा कार्य धर्म, नीति और लोकमत के विरुद्ध नहीं कहा जा सकता है। और आत्महत्या करने के प्रयत्न के कार्य का समाज पर हानिकारक प्रभाव भी नहीं पड़ता है। साथ ही आत्महत्या अथवा इसका प्रयत्न दूसरों को कोई ऐसी क्षति नहीं पहुँचाता है जिस कारण सम्बन्धित व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में राज्य द्वारा हस्तक्षेप वांछित हो। अतएव धारा 309 संविधान के अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण करती है और इस कारण शून्य है। परन्तु गियान कौर बनाम पंजाब राज्य93 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने पी० रथिनाम बनाम भारत संघ94 के मामले में दिये गये अपने पूर्व निर्णय को निरस्त करते हुये यह अभिमत व्यक्त किया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 असंवैधानिक नहीं है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 21 के उपबन्धों का किसी प्रकार से उल्लंघन नहीं होता है। संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त, ‘‘जीवन के अधिकार” में ‘मरने का अधिकार” शामिल नहीं है तथा जीवन के संरक्षण में जीवन का समापन शामिल नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन का अर्थ मानवीय सम्मान के साथ जीवन समझा जाना चाहिये। जीवन का कोई भी पहलू जो उसे सम्मानजनक बनाता हो इसमें शामिल किया जा सकता है परन्तु जो उसको समाप्त करता है सम्मिलित नहीं किया जा सकता है। जिस प्रकार मृत्यु जीवन से असंगत है उसी प्रकार ‘‘मृत्यु का अधिकार” जीवन के अधिकार से असंगत है। अतएव मानवीय सम्मान के साथ जीवित रहने के अधिकार में नैसर्गिक जीवन को समाप्त करने का अधिकार कम से कम उस समय तक शामिल नहीं माना जा सकता है जब तक कि निश्चित रूप से मृत्यु हो जाने की नैसर्गिक प्रक्रिया प्रारम्भ नहीं हो जाती है। आत्महत्या समझौता (Suicide Pact)-अ और ब कुछ समय से विवाहित थे किन्तु कुछ। पारिवारिक समस्याओं के कारण दोनों ने आत्महत्या करने का फैसला किया। पति अ विष उपाप्त करता है। जिसे दोनों खा लेते हैं। अ बच जाता है जबकि पत्नी ब की मृत्यु हो जाती है। ब की मृत्यु विष खाने से ही होती है। अ इस धारा के अन्तर्गत आत्महत्या करने के प्रयत्न का दोषी है, साथ ही ब को आत्महत्या करने के लिये सहायता द्वारा दुष्प्रेरित करने का भी दोषी है जिसके लिये वह धारा 306 के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।

  1. ठग-जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी समय हत्या द्वारा या हत्या सहित लुट या शिशुओं की चोरी करने के प्रयोजन के लिए अन्य व्यक्ति या अन्य व्यक्तियों से अभ्यासत:, सहयुक्त रहता है, वह ठग है।
  2. दण्ड- जो कोई ठग होगा, वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

गर्भपात कारित करने, अज्ञात शिशुओं को क्षति कारित करने, शिशुओं को अरक्षित छोड़ने | और जन्म छिपाने के विषय में । OF THE CAUSING OF MISCARRIAGE, OF INJURIES TO UNBORN CHILDREN, OF THE EXPOSURE OF INFANTS, AND OF THE CONCEALMENT OF BIRTHS

  1. गर्भपात कारित करना-जो कोई गर्भवती स्त्री का स्वेच्छया गर्भपात कारित करेगा, यदि ऐसा पात उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक, कारित न किया जाए, तो वह दोनों में से कमी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित या जाएगा, और यदि वह स्त्री स्पन्दन गर्भा हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसका धि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  2. 1996 क्रि० ला ज० 1660 (एस० सी०),
  3. ए० आई० आर० 1994 एस० सी० 1844.

स्पष्टीकरण- जो स्त्री स्वयं अपना गर्भपात कारित करती है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आती । है टिप्पणी गर्भवती स्त्री की सम्मति से गर्भपात कारित करने से यह धारा सम्बन्धित है। इस धारा के निम्नलिखित दो अवयव हैं

  1. गर्भवती स्त्री का स्वेच्छया गर्भपात कारित करना, 2. ऐसा गर्भपात उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक कारित न किया जाय।

प्रथम अवयव के अन्तर्गत गर्भवती स्त्री स्वयं या कोई अन्य व्यक्ति सम्मिलित है। गर्भवती स्त्री का तात्पर्य उस स्त्री से है जिसने गर्भ धारण किया हो। स्पन्दन (Quickening) का अर्थ है माँ को गर्भाशय में भ्रूण की। गति का एहसास होना। इस धारा के प्रवर्तन हेतु यह आवश्यक नहीं है कि भ्रूण का अच्छी तरह विकास हो गया हो और माँ को भ्रूण की गति का एहसास होता हो। मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष एक प्रकरण में। गर्भपात कारित करने के दोष से एक स्त्री को मुक्त कर दिया गया था। उसकी दोषमुक्ति का कारण यह था कि उसे गर्भ धारण किये हुये केवल एक महीने ही हुआ था और उसके गर्भाशय में कोई भी चीज नहीं थी जिसे भ्रूण या शिशु की संज्ञा दी जा सके। मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि दोषमुक्ति विधिसंगत नहीं है।95 “गर्भपात” का अर्थ है, भ्रूण या शिशु का गर्भाशय से गर्भावस्था पूर्ण किये बिना अकालिक बहिर्निष्कासन। यह सदैव अनैसर्गिक होता है जबकि शिशु जन्म नैसर्गिक होता है, यद्यपि कभी-कभी शिशु जन्म में भी आपरेशन या अन्य तरीकों का प्रयोग किया जाता है। गर्भवती होना’ का शाब्दिक अर्थ है, गर्भ धारण करना किन्तु इसका अर्थ है, गर्भवती स्त्री द्वारा एक विचित्र स्पन्दन की अनुभूति करना जबकि गर्भाशय में भ्रूण गतिशील हो जाता है जो गर्भधारण करने के चौथे या पाँचवें महीने से प्रारम्भ हो जाता है। |

  1. स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करना– जो कोई उस स्त्री की सम्मति के बिना, चाहे वह स्त्री स्पन्दनगर्भा हो या नहीं, पूर्ववर्ती अन्तिम धारा में परिभाषित अपराध करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  2. गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु- जो कोई गर्भवती स्त्री का गर्भपात कारित करने के आशय से कोई ऐसा कार्य करेगा, जिससे ऐसी स्त्री की मृत्यु कारित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

यदि वह कार्य स्त्री की सम्मति के बिना किया जाए-यदि वह कार्य उस स्त्री की सम्मति के बिना किया जाए, तो वह आजीवन कारावास से, या ऊपर बताए हुए दण्ड से, दण्डित किया जाएगा। स्पष्टीकरण- इस अपराध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी जानता हो कि उस कार्य से मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है। |

  1. शिशु का जीवित पैदा होना रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य-जो कोई किसी शिशु के जन्म से पूर्व कोई कार्य इस आशय से करेगा कि उस शिशु का जीवित पैदा होना तद्द्वारा रोका जाए या जन्म के पश्चात् तद्द्वारा उसकी मृत्यु कारित हो जाए, और ऐसे कार्य से उस शिशु का जीवित पैदा होना रोकेगा, या उसके जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित कर देगा, यदि वह कार्य माता के जीवन को बचाने के प्रयोजन से सदभावपूर्वक नहीं किया गया हो, तो वह दोनों
  2. अडेम्मा, (1886) 9 मद्रास 369.

में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, 539 दण्डित किया जाएगा।

  1. ऐसे कार्य द्वारा जो आपराधिक मानव वध की कोटि में आता है, किसी सजीव अजात शिशु की मृत्यु कारित करना– जो कोई ऐसा कोई कार्य ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह तद्द्वारा मृत्यु कारित कर देता, तो वह आपराधिक मानव वध का दोषी होता और ऐसे कार्य द्वारा किसी सजीव अजात शिशु की मृत्यु कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

दृष्टान्त क यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह गर्भवती स्त्री की मृत्यु कारित कर दे, ऐसा कार्य करता है, जो यदि उससे उस स्त्री की मृत्यु कारित हो जाती, तो वह आपराधिक मानव वध की कोटि में आता। उस स्त्री को क्षति होती है, किन्तु उसकी मृत्यु नहीं होती, किन्तु तद्द्वारा उस अजात सजीव शिशु की मृत्यु हो जाती है, जो उसके गर्भ में है। क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।

  1. शिशु के पिता या माता या उसकी देखरेख रखने वाले व्यक्ति द्वारा बारह वर्ष से कम आयु के शिशु का अरक्षित डाल दिया जाना और परित्याग- जो कोई बारह वर्ष से कम आयु के शिशु का पिता या माता होते हुए, या ऐसे शिशु की देखरेख का भार रखते हुए, ऐसे शिशु का पूर्णत: परित्याग करने के आशय से उस शिशु को किसी स्थान में अरक्षित डाल देगा या छोड़ देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण- यदि शिशु अरक्षित डाल दिए जाने के परिणामस्वरूप मर जाए, तो यथास्थिति, हत्या या आपराधिक मानव वध के लिए अपराधी का विचारण निवारित करना इस धारा से आशयित नहीं है। टिप्पणी अरक्षित (Expose)-अरक्षित का अर्थ है, शिशु को शारीरिक रूप से बाहर छोड़ देना जिससे उसके शरीर को जोखिम उत्पन्न हो जाये। तात्पर्य यह है कि नाजुक उम्र के बच्चे के लिये अपेक्षित संरक्षण से उसे वंचित कर दिया गया हो। इसके अन्तर्गत जलवायु, जंगली जानवरों इत्यादि से उत्पन्न होने वाले खतरे सम्मिलित हैं जिससे कि शिशु को जीवन को तुरन्त खतरा पहुँचने की सम्भावना रहती है। एक स्त्री ने, जो एक छ: महीने के नवजात शिशु की माँ थी, अपने बच्चे को एक अंधी स्त्री के संरक्षण में यह कह कर छोड़ दिया कि वह जल्द ही वापस आ जायेगी किन्तु उसका आशय कभी वापस लौटने का नहीं था और न वह कभी वापस लौटी। यह अभिनित हुआ कि वह धारा 317 के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं है।96 इस धारा के प्रवर्तन हेतु यह आवश्यक है कि शिशु को आरक्षित छोड़ा गया हो।97 ।

  1. मृत शरीर के गुप्त व्ययन द्वारा जन्म छिपाना- जो कोई किसी शिशु के मृत शरीर को गुप्त रूप से गाड़कर या अन्यथा उसका व्ययन करके, चाहे ऐसे शिशु की मृत्यु उसके जन्म से पूर्व या पश्चात् या जन्म के दौरान में हुई हो, ऐसे शिशु के जन्म को साशय छिपाएगा या छिपाने का प्रयास करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

टिप्पणी इस धारा का आशय शिशु वध पर रोक लगाना है। यह धारा ऐसे मामलों में लागू होती है जिनमें शिशु शरीर को गुप्त व्ययन द्वारा उसके जन्म को छिपाया जाता है। इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) किसी शिशु के मृत शरीर को गुप्त रूप से गाड़कर या अन्यथा उसका व्ययन करना।

  1. मिचिंथा. (1896) 18 इला० 364

मुसम्मात भूरन (1877) पी० आर० नं० 5 सन् 1878. (2) यह महत्वहीन है कि ऐसे शिशु की मृत्यु उसके जन्म के पूर्व, या पश्चात् या जन्म के दौरान (3) मृत शरीर को गुप्त रूप से गाड़कर या अन्यथा व्ययन द्वारा शिशु के जन्म को छिपाने का आशय । यह धारा वहाँ लागू होती है जहाँ संसार में शिशु के जन्म को कोई साशय छिपाता है। इस धारा को लाना होने के लिये केवल इतना ही दर्शाना पर्याप्त है कि शिशु का जन्म हुआ था, और वह जीवित रहने के लिये पर्याप्त रूप से विकसित था यदि वह जीवित पैदा हुआ होता।98 यदि वह केवल भ्रूण था तो इस संहिता की धारा 312 और 511 लागू होगी। यह अपराध उसी वक्त पूर्ण हो जाता है जब शिशु का जन्म होता है चाहे जीवित या मृत और उसके जन्म को किसी प्रकार छिपाया जाता है।99 यदि कोई स्त्री अपने नवजात नाजायज मृत बच्चे को एक स्त्री को इस निर्देश के साथ सौंपती है कि वह गुप्त रूप से उसका व्ययन कर दे, और वह स्त्री उस निर्देश के अनुपालन हेतु उस मृत शिशु को नदी में फेंक देती है तो मृत शिशु को जन्म देने वाली स्त्री इस धारा में वर्णित अपराध की दोषी नहीं होगी। यद्यपि ये तथ्य औचित्यता के आधार पर दुष्प्रेरण के अन्तर्गत आते हैं।

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