Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion Part 10 LLB Notes
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- जिस व्यक्ति की मृत्यु कारित करने का आशय था, उससे भिन्न व्यक्ति की मृत्यु करके आपराधिक मानव वध– यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात करने द्वारा, जिससे उसका आशय मृत्यु कारित करना हो, या जिससे वह जानता हो कि मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करके, या जिसकी मृत्यु कारित करने का न तो उसका आशय हो और न वह यह सम्भाव्य जानता हो कि वह उसकी मृत्यु कारित करेगा, आपराधिक मानव वध करे, तो अपराधी द्वारा किया गया आपराधिक मानव वध उस भाँति का होगा जिस भाँति का वह होता, यदि वह उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करता जिसकी मृत्यु कारित करना उसके द्वारा आशयित था या वह जानता था कि उसके द्वारा उसकी मृत्यु कारित होना सम्भाव्य
टिप्पणी धारा 301 इस सिद्धान्त पर आधारित प्रतीत होता है कि जब कोई कार्य स्वत: आपराधिक है तो उसका किया जाना भी एक अपराध होगा भले ही एक अन्य व्यक्ति को क्यों न उपहति कारित की गयी हो। यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति अवैध और विद्वेषपूर्ण आशय रखता है। और इस आशय को कार्यान्वित करने के लिये किसी तीसरे व्यक्ति को उपहति कारित करता है तो वह विद्वेष का अपराधी होगा क्योंकि वह एक अवैध कार्य कर रहा था तथा वह साधारण विद्वेष से युक्त था जो अपराध को दण्डित करने के लिये पर्याप्त है। | आंग्ल विधि का वह सिद्धान्त जो विद्वेष के अन्तरण या निमित्त के अन्तरण से सम्बन्धित है, इस संहिता की धारा 307 में उपबन्धित है। यदि एक व्यक्ति अ का आशय ब को मार डालना है किन्तु वह स को मृत्यु कारित कर देता है जिसकी मृत्यु कारित करने का उसका न को कोई आशय था और न तो वह जानता था कि स की मृत्यु कारित होनी सम्भाव्य है। फिर भी यह माना जायेगा कि अ का आशय स की ही मृत्यु कारित करना था।34 यदि अ अपना निशाना ब को बनाता है किन्तु गोली ब को नहीं लगती है क्योंकि या तो वह गोली की रेंज से बाहर हो जाता है या गोली ठीक लक्ष्य पर नहीं लगती है और जाकर किसी तीसरे व्यक्ति के को लग जाती है, चाहे वह दृष्टिगोचर हो या न हो तो धारा 307 के अन्तर्गत यह माना जायेगा कि स को मार डालने के आशय से ही अ ने उस पर गोली चलायी थी। धारा 301 यह स्पष्ट करती है कि एक ऐसे व्यक्ति की मृत्यु कारित करके भी आपराधिक मानव-वध का अपराध कारित किया जा सकता है जिसे मार डालने का न तो अभियुक्त का कोई आशय था न तो वह जानता था कि वह उसकी मत्य कारित कर सकता था। किन्तु यह तथ्य कि अपराध होता है या आपराधिक मानववध अभियक्त के आशय या ज्ञान पर निर्भर करता है जिससे वह कार्य करते समय युक्त था न कि उस व्यक्ति से सम्बन्धित आशय या ज्ञान पर जिसकी वस्तुत: मृत्यु हुई। उस समय अन्तरिम आशय घटित होता है जब किसी एक व्यक्ति के लिये आशयित उपहति किसी दूसरे व्यक्ति की होती है। यह सिद्धान्त निम्नलिखित दशाओं के अध्यधीन है (1) कारित उपहति, आशयित उपहति की प्रकृति की ही होनी चाहिये। ऐसा इसलिये है क्योंकि अन्यथा मन:स्थिति के सिद्धान्त को तथा संविधि में प्रयुक्त उन शब्दों को जिनके अन्तर्गत आरोप लगाया गया था, अत्यधिक आघात पहुँचेगा। किसी व्यक्ति को उस स्थिति में दण्डित नहीं किया जा सकता जबकि उसकी मन:स्थिति एक अपराध से सम्बन्धित हो तथा किया गया कार्य दूसरे अपराध से क्योंकि ऐसा करना युक्तियुक्त मन:स्थिति की आवश्यकता को नकारने के तुल्य होगा।
- लैटीमर, 17 क्यू० वी० डी० 359.
- शंकर लाल, ए० आई० आर० 1965 सु० को० 1260.
- सूर्य नारायण बनाम इम्परर, 22 एल० जे० 333.
(2) चूंकि हस्तान्तरित विद्वेष का सिद्धान्त वास्तविक मन:स्थिति के साक्ष्य की आवश्यकता को स नहीं करता अतः विद्वेष के साथ ही साथ बचाव भी अन्तरित हो जाता है। फलत: यदि आशयित । विधिविरुद्ध नहीं था तो अभियक्त दोषी नहीं होगा जब तक कि वह क्षतिग्रस्त व्यक्ति के प्रति आपराधिक से प्रमत्त या उदासीन न रहा हो। | जी० विलियम्स के अनुसार अन्तरित विद्वेष का सिद्धान्त केवल उन मामलों तक सीमित रखा जाना चाहिये, जिसमें वास्तविक रूप से क्षतिग्रस्त व्यक्ति के प्रति उदासीनता के कारण परिणाम उत्पन्न हुआ। नयम का उपयुक्तता के सन्दर्भ में अनेक विचार व्यक्त किये गये हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार यह नियम का एक निरंकुश अपवाद है, जबकि दूसरों के अनुसार यह अपवाद भावात्मक है। नैतिकता के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जो भी व्यक्ति कोई अपराध कारित करने का प्रयत्न करता है वह उतना ही होता है जितना कि वस्तुत: अपराध करने वाला व्यक्ति। नैतिक पश्चाताप हेतु दोनों को एक ही प्रकार के दण्ट से दण्डित किया जाना चाहिये। कुछ विद्वानों के अनुसार वर्तमान विधि को केवल एक ही सिद्धान्त द्वारा सुस्पष्ट किया जा सकता है और वह है, बदले का सिद्धान्त जिसमें दण्ड की मात्रा अपराधकता के आशय के बजाय कारित खतरे की मात्रा से सम्बद्ध रहती है। भ्रमवश कारित मानव-वध के लिये दायित्व-यदि कोई व्यक्ति आशयित व्यक्ति से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति की भ्रमवश मृत्यु कारित कर देता है तो उसकी आपराधिकता का विनिर्धारण उसी प्रकार होगा जैसे उसने आशयित व्यक्ति की ही मृत्यु कारित किया हो। यदि अ एक विषयुक्त सेब अपनी पत्नी को इस आशय से देता है कि सेब खाने के पश्चात् उसकी मृत्यु हो जाये और पत्नी इस तथ्य से अनभिज्ञ होते हुये सेब बच्चे को दे देती है और बच्चे की मृत्यु हो जाती है तो अ हत्या का दोषी होगा भले ही वह घटनास्थल पर उपस्थित था और उसे पत्नी को मना करने का प्रयास किया कि वह सेब बच्चे को न दे।36 यदि कोई व्यक्ति किसी युक्तियुक्त प्राणी को मार डालने के आशय से विष तैयार करता है तो वह व्यक्ति हत्या का अपराधी होगा चाहे किसी भी प्राणी की मृत्यु इस विष से क्यों न हो जाये। एक प्रकरण में अभियुक्त तथा ब की पत्नी के बीच अवैध सम्बन्ध था। ब को मार डालने के आशय से वह गोधूलि बेला में सड़क के किनारे घात लगाकर बैठ गया। सड़क पर एक आदमी चला आ रहा था। अभियुक्त ने उसे ब समझ कर उस पर प्रहार कर दिया। उसे हत्या के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी।7 एक दूसरे प्रकरण में ब को मार डालने के आशय से अ ने उस पर प्रहार कर दिया किन्तु वार ब को न लगकर उसके बच्चे को लगा और बच्चे की मृत्यु हो गयी। बच्चे की मृत्यु कारित करने के लिये उसे दोषसिद्धि प्रदान की गयी।38 । । उदाहरण- नरसिंह नायक39 के वाद में अ, ब, स तथा द अपने मकान के सामने खड़े थे। उसी समय लगभग 11 आदमी वहाँ पहुँचे और ब तथा उसके भाई को उन लोगों ने मारना प्रारम्भ कर दिया और घायल कर दिया। अभियुक्तों ने ब तथा उसके भाई को मार डालने के आशय से एक विधि विरुद्ध सभा गठित किया। जिस समय अ, ब, स तथा द की पिटाई हो रही थी उसी समय य, र तथा ल कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ वहाँ पहुँच गये और दोनों पक्षों को मारपीट बन्द करने के लिये राजी कर लिये। इसी समय म नामक एक अपराधी, दुसरे अपराधी ज के घर में घुस गया जो पास ही में था और वहाँ से एक बन्दूक के साथ वापस । लौटा। बन्दूक लेकर म जैसे ही, ब, स तथा द के मकान के नजदीक पहुँचा, वे अपने-अपने घरों में भाग गये किन्तु म ने गोली चला दिया और गोली अ के नौकर, जो दरवाजे पर खड़ा था, को लगी और उसकी मृत्यु हो गयी। फिर भी म नहीं रुका। उसने देखा कि स की पत्नी लक्ष्मीबाई अपनी 15 वर्षीय पुत्री रुक्मनी के साथ घर के मुख्य दरवाजे को बन्द करने का प्रयास कर रही थी। म ने उसे लक्ष्य बनाकर गोली चला दिया किन्तु गोली लक्ष्मी बाई को न लगकर रुक्मनी को लगी और उसकी मृत्यु हो गयी। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया। गया कि जिस वक्त गोली चली थी दोनों पक्षों के बीच मारपीट नहीं हो रही थी तथा किसी प्रकार के खतरे । का भय नहीं था। यह भी घोषित किया गया कि इस मामले में धारा 301 के उपबन्ध लागू होंगे और अभियुक्तों को हत्या के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी।
- साउन्डर्स, प्लाउड 474 I हाक पी० सी० सी० 31.
- गोविन्द बालाजी, (1828) मारलेज डाइजेस्ट (एन० एस०) 125.
- । भीमोनी अबुल, 8 सी० आर० 78.
- इन रे नरसिंह नायक, (1927) एम० एल० जे० ( क्रि०) 33.
एक अन्य प्रकरण40 में ब, स को मार डालने के आशय से जिसके जीवन के लिये उसने बीमा कराया था, उसे विषयुक्त मिठाई प्रदान किया। कुछ मिठाई उसने स्वयं खायी, बाकी फेंक दिया जिसे ब के साले की आठ वर्षीया लड़की ने उठा लिया परन्तु यह तथ्य ब को ज्ञात नहीं हो पाया। कुछ मिठाई वह स्वयं खायी तथा कुछ एक दूसरे बच्चे को दे दिया। विष के प्रभाव से दोनों बच्चों की मृत्यु हो गयी। किन्तु स विष के प्रभाव से मुक्त हो गया। ब को हत्या के लिये दोषी घोषित किया गया। अ पाता है कि स छुरे से ब पर प्रहार कर रहा है तथा ब को बचाने के आशय से वह स पर गोली चला देता है। चूंकि अ ने ब को स के छरे। के वार से बचाने के आशय से गोली चलायी थी इसलिये यदि स गोली लगने से मारा जाता है तो भी वह दोषी नहीं होगा क्योंकि वह प्राइवेट प्रतिरक्षा की माँग इस संहिता की धारा 100 के अन्तर्गत कर सकता है। इस प्रकरण में अ को ब की हत्या कारित करने के लिये दोषसिद्धि नहीं प्रदान की जायेगी। अ ने ब की मृत्यु कारित करने के आशय से बन्दुक से उस पर गोली चलाई। गोली अपने लक्ष्य पर न लग कर स को लगी जिसकी मृत्यु हो गई। इस मामले में अ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 301 के अधीन स की हत्या कारित करने का दोषी है। अ का आशय ब की मृत्यु कारित करने का था परन्तु उस पर गोली न लग कर स को लगी। अतएव इस मामले में अ का वही दायित्व होगा जो यदि ब की मृत्यु कारित होती तो होता। चूंकि ब पर अ द्वारा साशय गोली चलाई गई थी अतएव यदि ब को गोली लगी होती तो अ हत्या का दोषी होता अतएव स की मृत्यु की दशा में भी अ हत्या का ही दोषी होगा। | अ ने यह देखकर कि ब पर स ने चाकू से हमला कर दिया है, अ ने ब को बचाने के आशय से स पर गोली चला दिया जिससे गोली स को न लग कर ब को लगी और उसकी मृत्यु हो गई। इस मामले में अ ने ब को बचाने के आशय से स पर गोली चलाया था क्योंकि स ने चाकू से ब पर हमला किया था जिससे उसको या तो घोर उपहति अथवा मृत्यु कारित होने की सम्भावना थी। यदि अ की गोली से स की मृत्यु हुई होती तो अ अपने बचाव में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 100 के खण्ड 2 की मांग कर सकता था और उसका कार्य कोई अपराध न होता क्योंकि मृत्यु या घोर उपहति से प्रतिरक्षा में मृत्यु कारित की जा सकती है। अ ने सद्भावपूर्वक कार्य करते हुये ब को स द्वारा किये गये प्राणघातक हमले से बचाने के आशय से गोली चलाई परन्तु दुर्भाग्यवश गोली स को न लगकर ब को ही लगी और उसकी मृत्यु हो गई। अतएव इस मामले में अ किसी भी अपराध का दोषी नहीं है क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 में निहित अन्तरणीय विद्वेष का सिद्धान्त लागू होगा।
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