Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion LLB Notes
Indian Penal Code 1860 Offences Relating Religion LLB Notes:- LLB Law 1st Year Semester Study Material Notes in PDF Download Hindi English Language.
अध्याय 15
धर्म से सम्बन्धित अपराधों के विषय में
(OF OFFENCES RELATING TO RELIGION)
- किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना- जो कोई किसी उपासना स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसानग्रस्त या अपवित्र इस आशय से करेगा कि किसी वर्ग के धर्म का तद्द्वारा अपमान किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी आवश्यक तत्व-इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं (1) (क) किसी उपासना स्थल को, या (ख) व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गयी किसी वस्तु को नष्ट करना, क्षतिग्रस्त करना या अपवित्र करना। (2) ऐसा कार्य (क) व्यक्तियों के एक वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से किया जाय, या (ख) इस सम्भाव्यता के ज्ञान से किया जाये कि व्यक्तियों का एक वर्ग इसे अपने धर्म का अपमान मानेगा। अपवित्र करना- इस शब्द का अर्थ केवल ऐसे कार्यों तक सीमित नहीं है जो पूजा के लिये उपयुक्त किसी वस्तु को भौतिक वस्तुओं की तरह गन्दा करते हैं। अपितु इसका विस्तार उन कार्यों तक है जो पूजा के लिये उपयुक्त किसी वस्तु को वस्तुतः अशुद्ध करते हैं। इसका आशय केवल गन्दा करना नहीं है बल्कि इसका अर्थ है धार्मिक अपदूषण।। उदाहरण- किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे हिन्दू धर्म के अन्तर्गत साधारणतया जनेऊ धारण करने का अधिकार नहीं है, या हिन्दू धर्म के अन्तर्गत आचार-कर्म हेतु जिसके लिये जनेऊ पहनना अनिवार्य नहीं है, जनेऊ को क्षति पहुँचायी जाती है या नष्ट किया जाता है तो ऐसा कार्य हिन्दू धर्म के अपमान जैसा नहीं है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति उच्च वर्गीय हिन्दू दिखने के लिये मात्र जनेऊ धारण करता है तो यह नहीं माना जायेगा कि उसने हिन्दू धर्म का अपमान किया है।2।। 295-क. विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों- जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा,
- सिवकोटी स्वामी, (1885) 1 वेयर
- शिव शंकर, (1940) 15 लखनऊ
या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। टिप्पणी सुजाता भद्रा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के वाद में एक भारतीय नागरिक पैटीशनर ने बांगलादेश की तसलीमा नसरीन द्वारा लिखी पुस्तक द्विखण्डिता (Dwikhandita) के जब्त किये जाने सम्बन्धी आदेश को निरस्त करने हेतु एक पेटीशन दाखिल किया। पुस्तक की आरोपित आपत्तिनजनक सामग्री लेखिका की। आत्मकथात्मकय के जिल्द III से सम्बन्धित थी। उसने स्वयं जो एक मुस्लिम धर्मावलम्बी महिला थी, आरोपित आपत्तिजनक अंश बंगलादेश द्वारा इस्लाम को राज्य-धर्म की मान्यता देने से उत्पन्न वहां के समाज में मुस्लिम महिलाओं की हैसियत (status) के सम्बन्ध में लिखा था। उसने बंगलादेश का संविधान जिसका पंथनिरपेक्षता एक महत्वपूर्ण लक्षण था, जिससे अब वह विचलित हो गया (deviated) था के सम्बन्ध में। पुस्तक में अपना राजनीतिक विचार एवं दर्शन व्यक्त किया था। उक्त पुस्तक के तीसरे वाल्यूम में अपनी मातृभूमि में महिलाओं की दशा के सन्दर्भ में आरोपित लेखांश (passages) लिखे गये हैं। कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया कि पुस्तक में भारत में उस वर्ग के नागरिकों के धर्म अथवा धार्मिक विश्वास सम्बन्धी धार्मिक भावनाओं को आहत करने या चोट पहुंचाने का आशय परिलक्षित नहीं होता है। लेखिका का जानबूझकर का विद्वेषपूर्ण ढंग से किसी प्रकार धार्मिक घृणा फैलाने का आशय नहीं है। पुस्तक को जब्त करने सम्बन्धी आदेश निरस्त कर दिया गया। किसी पुस्तक को भा० द० संहिता की धारा 295-क के दायरे में होना सिद्ध करने के लिये पुस्तक समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिये न कि उसे टुकड़ों में पढ़ा जाये। पुस्तक के आरोपित लेखांश को उसकी केन्द्रीय विषयवस्तु से अलग सन्दर्भ में नहीं पढ़ा जाना चाहिये।
- धार्मिक जमाव में विघ्न करना- जो कोई धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारों में वैध रूप से लगे हुए किसी जमाव में, स्वेच्छया विघ्न कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी अवयव-इस धारा में निम्नलिखित अवयव हैं (1) स्वेच्छया कोई विघ्न कारित किया जाये। (2) विघ्न किसी ऐसे जमाव में कारित किया जाये जो किसी धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कार में लगे हों। (3) यह जमाव विधित. निस्सी धार्मिक उपासना या संस्कार में लगा हो। अर्थात् यह जमाव वही कार्य कर रहा हो जिसको करने का उसे, अधिकार है।
- कब्रिस्तान आदि अतिचार करना- जो कोई किसी उपासना स्थान में, या किसी कब्रिस्तान पर या अन्त्येष्टि क्रियाओं के लिए या मृतकों के अवशेषों के लिए निक्षेप स्थान के रूप में पृथक् रखे गए किसी स्थान में अतिचार या किसी मानव शव की अवहेलना या अन्त्येष्टि संस्कारों के लिए एकत्रित किन्हीं व्यक्तियों को विघ्न कारित,
इस आशय से करेगा कि किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाए या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान करे, या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि तदद्वारा किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुचगा, व्यक्ति के धर्म का अपमान होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक का या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से,
- 2006 क्रि० लॉ ज० 368 (कल०).
टिप्पणी यह धारा उन व्यक्तियों को दण्डित करती है जो किसी कब्रिस्तान या अन्त्येष्टि के लिये निक्षेप स्थान में अतिचार करते हैं। इस धारा का मूल तत्व उस आशय और ज्ञान में विहित है जिससे प्रेरित होकर कोई व्यक्ति कब्रिस्तान या अन्त्येष्टि क्रिया के लिये मृतकों के अवशेषों के लिये निक्षेप के रूप में रखे गये किसी स्थान में अतिचार या किसी मानव शव की अवहेलना या अन्त्येष्टि संस्कारों के लिये एकत्रित व्यक्तियों को विघ्न कारित करता है, ताकि ऐसे व्यक्तियों की भावनाओं को ठेस पहुँचे या ऐसे व्यक्ति के धर्म का अपमान हो । किसी पुजा-स्थल में अतिचार-इस धारा के अन्तर्गत अतिचार शब्द से तात्पर्य केवल आपराधिक अतिचार से ही नहीं है। अपितु धारा 441 के अन्तर्गत वर्णित आशय से किया गया कोई सामान्य अतिचार भी आता है। यहाँ अतिचार का अर्थ है किसी पूजास्थल में इस धारा में परिभाषित आशय या ज्ञान से कारित कोई विध्वंसक या हानिकारक कार्य 6 एक मामले में कुछ व्यक्तियों को एक मस्जिद के अन्दर सम्भोग करता हुआ पाया गया। उन्हें इस धारा के अन्तर्गत दोषी ठहराया गया। मानव शव की अवहेलना-यदि किसी व्यक्ति की आपरेशन के दौरान मृत्यु हो जाती है, तत्पश्चात् डाक्टर उस मृतक के जिगर को दूसरे रोगी के शरीर में लगाने के लिये निकाल लेता है और वह ऐसा मृतक की पत्नी जो उसकी एक मात्र उत्तराधिकारिणी थी, की सहमति या ज्ञान के बिना ऐसा करता है। मृतक की पत्नी शिकायत दर्ज कराती है। डाक्टर ने मानव शव का अपमान कारित किया इसलिये इस धारा के अन्तर्गत दण्डित किया जायेगा। इसी प्रकार यदि कोई डाक्टर किसी मृतक की आंख बिना सम्बन्धियों की सहमति के निकाल लेता है तो वह भी दोषी होगा।
- धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना आदि- जो कोई किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के विमर्शित आशय से उसकी श्रवणगोचरता में कोई शब्द उच्चारित करेगा या कोई ध्वनि करेगा या उसकी दृष्टिगोचरता में, कोई अंगविक्षेप करेगा, या कोई वस्तु रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी यह धारा किसी लेख के सम्बन्ध में लागू नहीं होती है। एक मामले में ‘‘आसपास” नामक साप्ताहिक पत्रिका के सम्पादक ने “The Acharya Rajneesh Leaves Pune” शीर्षक से अपमानजनक लेख लिखा जिसके लिये, आचार्य रजनीश के अनुयायियों ने उन्हें अभियोजित किया। गुजरात उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि धारा 298 ऐसे मौखिक शब्दों से सम्बन्धित है जो किसी व्यक्ति की उपस्थिति में उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के आशय से बोले जाते हैं, इसका सम्बन्ध किसी ऐसे लेख से नहीं है जो किसी साप्ताहिक में प्रकाशित किया गया हो।8 गाय के गोश्त को किसी गाँव में बिना ढंकी हुई हालत में लेकर जानबूझकर इस आशय से टहलना कि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर आघात पहुँचे, इस धारा के अन्तर्गत अपराध है। किताब अली बनाम शान्ती रंजन10 के मामले में यह कहा गया कि बकरीद के दिन किसी मुसलमान द्वारा गाय की बलि कोई अनिवार्य धार्मिक कृत्य नहीं है और ऐसे कार्य के लिये संविधान के अनुच्छेद 25 के संरक्षण का दावा नहीं किया जा सकता है। शेख अमजद11 के वाद में बकरीद के दिन
- बुरहान शाह, (1887) पी० आर० न० 26 सन् 1887.
- झूलन सैन (1913) 40 कल० 548.
- मस्तान (1923) 1 रंगून 690; सानू (1941) कर्नाटक 316.
- मकसूद हुसैन, (1923) 45 इला० 529.
- शाली भद्रशाह, 1981 क्रि० लाँ ज० 113 (गुजरात).
- रहमान, (1893) 13 ए० डब्ल्यू ० एन० 144.
- ए० आई० आर० 1965 त्रिपुरा 22.
- (1942) 21 पटना 315. ।
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