Indian Penal Code 1860 Offences Against The State LLB 1st Year Notes
Indian Penal Code 1860 Offences Against The State LLB 1st Year Notes:- IPC Indian Penal Code of Offenses Against The State Important Department of LLB Law Book 1st Year / 1st Semester Notes Study Material in Hindi is going to give new information which is asked in Law 1st Yeear Semester. Please comment to download LLB Notes Study Material in PDF.
अध्याय 6
राज्य के विरुद्ध अपराधों के विषय में
(OF OFFENCES AGAINST THE STATE)
- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना- जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
दृष्टान्त क भारत सरकार के विरुद्ध विप्लव में सम्मिलित होता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया टिप्पणी प्रत्येक राज्य को अपने को सुरक्षित रखने का उसी प्रकार अधिकार है जैसे कि उसकी प्रजा को तथा मनुष्यों की तरह राज्य भी अपने अस्तित्व को बनाये रखने तथा सुरक्षित रखने के लिये आदिकाल से ही उपाय करते चले आ रहे हैं। कामन ला में राजद्रोह (Treason) के अपराध को इसी तथ्य को विचार में रखकर सृजित किया गया था। घोर राजद्रोह (High Treason) की मूलभूत विशेषता यह है कि इसमें शासक को राज्य का सर्वोच्च पदाधिकारी होने के नाते जिस विश्वास एवं समर्थन की अपने प्रजा से अपेक्षा रहती है, वह समाप्त हो जाती है। इस अपराध को गठित करने के लिये व्यक्तियों की किसी विशिष्ट संख्या की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसी प्रकार इस अपराध को गठित करने के लिये व्यक्तियों को किसी विशिष्ट ढंग से इकट्ठा होना या हथियार एकत्रित करना भी आवश्यक नहीं है। इसका प्रमुख परीक्षण (Test) यह है कि किस प्रयोजन अथवा किस आशय से वे लोग इकट्टे होते हैं। उस समूह का प्रयोजन निश्चयत: बल अथवा हिंसा के प्रयोग द्वारा सामान्य लोक प्रकृति (general public nature) के किसी उद्देश्य को प्राप्त करना तथा सरकार के प्रभुत्व पर प्रत्यक्षत: प्रहार करना होना चाहिये। अवयव- इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) अभियुक्त ने युद्ध किया या युद्ध करने का प्रयत्न किया या युद्ध करने का दुष्प्रेरण किया, तथा (2) ऐसा युद्ध भारत सरकार के विरुद्ध था। युद्ध करना (Waging war)- कोई व्यक्ति जो सांविधानिक प्राधिकारियों पर हुये संगठित सशस्त्र आक्रमण में भाग लेता है तथा आक्रमण का उद्देश्य सरकार को विध्वंश कर उसके स्थान पर दूसरे को थापित करना है तो वह व्यक्ति युद्ध करने के अपराध का दोषी होगा। यह अपराध किसी नागरिक द्वारा या किसी विदेशी द्वारा किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने राजनीतिक विचारों के विस्तारण एवं संस्थापन के लिये तब तक स्वतन्त्र है जब तक वह बल या हिंसा का प्रयोग नहीं करता है। राजनीतिक प्रणाली में अथवा यरकार की प्रकति में शांतिपूर्ण साधनों द्वारा परिवर्तन के लिये प्रयत्न करना युद्ध करने के समतुल्य नहीं है
- मगन लाल, (1946) नाग० 126.
- इन० रे० यू० पी० वी० खादेर बनाम इम्परर, 23 क्रि० लॉ ज० 203.
- आर० वास नायर बनाम टी० सी० स्टेट, ए० आई० आर० 1955 टी० सी० 33.
किन्तु यदि अभियुक्त सरकार को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से व्यक्तियों का चयन करता है तथा जो उसका साथ नहीं देते हैं उन्हें दण्डित करता है तो, यह युद्ध करने का दोषी होगा।। मगन लाल राधा कृष्ण बनाम इम्परर में इस अपराध के निम्नलिखित गुण बताये गये हैं (1) इस अपराध को गठित करने के लिये व्यक्तियों की किसी विशिष्ट संख्या की आवश्यकता नहीं होती है। (2) सम्बन्धित व्यक्तियों की संख्या तथा उसके सुसज्जित होने की प्रकृति महत्वहीन है;। (3) वास्तविक परीक्षण यह है कि ”किस आशय” से वे एकत्रित हुये हैं; (4) जमघट (gathering) का उद्देश्य बल और हिंसा के प्रयोग द्वारा किसी सामान्य लोक प्रकृति के उद्देश्य की प्राप्ति और शासक के प्राधिकारों को प्रभावित करना होना चाहिये। (5) मुख्य कर्ता तथा सहायक कर्ता में कोई अन्तर नहीं है। जो कोई भी अवैध कार्य में भाग लेता है। उसी अपराध का दोषी होगा। युद्ध करने का आशय है युद्ध में सामान्यतया प्रयुक्त रीतियों द्वारा युद्ध करना। इस धारा के अधीन किसी व्यक्ति को दण्डित करने के लिये केवल यह दर्शाना ही पर्याप्त नहीं है कि अभियुक्त ने शस्त्रागार (armoury) को अपने कब्जे में लेने के लिये छल किया था और जब उसे समर्पण करने के लिये कहा गया तो उसने छल द्वारा प्राप्त बन्दूकों और अन्य युद्धोपकरणों (ammunitions) का प्रयोग सरकारी फौजों के विरुद्ध किया, अपितु यह भी दर्शाना आवश्यक है कि शस्त्रागार का छीना जाना भी सुनियोजित योजना का अंग था। सरकारी फौजों को प्रतिरोध देते समय उनका आशय था कि उन्हें आश्चर्य में डालकर पराजित कर दिया जाये, तत्पश्चात् सभी सरकारी प्रतिरोधी को कुचल कर या तो उसके नेता शासन की बागडोर अपने हाथ में ले लें या शासन उनकी मांगों के सम्मुख झुक जाये । सरकारी फौजों पर जानबूझकर एवं संगठित रूप में किया गया। आक्रमण युद्ध के समतुल्य होगा यदि विद्रोहियों का उद्देश्य सशस्त्र सेना एवं हिंसा द्वारा लोक-सेवकों को अपने आधिपत्य में करना तथा सामान्य टैक्स वसूली को स्थगित करना हो । युद्ध करने का दुष्प्रेरण करता है (Abets the waging of war)–युद्ध करने का दुष्प्रेरण इस धारा के अन्तर्गत एक विशिष्ट अपराध घोषित किया गया है। यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरण के फलस्वरूप ही युद्ध हो। यद्यपि दुष्प्रेरण से सम्बन्धित सामान्य विधि दण्ड के प्रयोजन हेतु सफल दुष्प्रेरण तथा असफल दुष्प्रेरण में विभेद करती हैं किन्तु इस धारा में इस तरह का कोई अन्तर नहीं है। प्रमुख कर्ता तथा सहायक कर्ता में भी कोई अन्तर नहीं है और वे सभी व्यक्ति जो अवैध कार्यवाही में भाग लेते हैं एक ही दण्ड से दण्डित होंगे। जब तक कोई व्यक्ति केवल विचारों को भड़काने अथवा उत्तेजित करने का प्रयत्न करता है तब तक वह राजद्रोह (sedition) के अतिरिक्त किसी अन्य अपराध का दोषी नहीं होगा। कोई व्यक्ति उकसाने तथा युद्ध करने के दुष्प्रेरण का दोषी तभी माना जायेगा जब वह स्पष्टतः एवं निश्चयत: किसी कार्यवाही को उकसाता है। उदाहरण के लिये गणेश डी० सावरकर के वाद में अभियुक्त ने कविताओं की एक किताब प्रकाशित किया जिसमें सरकार एवं ‘श्वेत’ शासकों के विरुद्ध प्रत्येक कविता में रक्त पिपासा एवं घातक उत्कंठाओं को प्रेरित किया गया था, हथियार धारण करने के लिये असंदिग्ध भाषा में विचार प्रतिपादित किया गया था तथा गुप्त संस्थाओं के निर्माण और विदेशी शासन को जड़ से समाप्त करने के लिये गुरिल्ला युद्ध पद्धति को अपनाने के
- ए० आई० आर० 1946 नाग० 173.
- मीर हसन खान बनाम राज्य, ए० आई० आर० 1951 पटना 60.
- ओंग लॉ बनाम इम्परर, ए० आई० आर० 1931 रंगून 235 पृ० 239.
- मगन लाल, 1946 नागपुर 126.
- गणेश डी० सावरकर, (1909) 12 बाम्बे लॉ रि० 105.
- उपरोक्त सन्दर्भ. ।
लिये सुझाव दिया गया था। यह निर्णय दिया गया कि कवितायें पाठकों को युद्ध करने के लिये उकसाने हेत सक्षम थी और अभियुक्त युद्ध करने के दुष्प्रेरण का दोषी था। 121-क. धारा 121 द्वारा दण्डनीय अपराधों को करने का षड्यंत्र- जो कोई धारा 121 द्वारा दण्डनीय अपराधों में से कोई अपराध करने के लिए भारत के भीतर या बाहर षड्यंत्र करेगा, या केन्द्रीय सरकार को या किसी राज्य की सरकार को आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करने का षड्यंत्र करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। स्पष्टीकरण– इस धारा के अधीन षड्यंत्र गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसके अनुसरण में कोई कार्य या अवैध लोप घटित हुआ हो। टिप्पणी अवयव– यह धारा दो प्रकार के षड्यंत्रों से सम्बन्धित है (1) धारा 121 द्वारा दण्डनीय किसी अपराध को करने के लिये भारत में अथवा भारत के बाहर षड्यंत्र करना, एवं (2) आपराधिक बल द्वारा अथवा आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार को आतंकित करने हेतु षड्यंत्र करना। इस धारा में प्रयुक्त शब्दों ** आपराधिक बल अथवा आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार को आतंकित करने का षड्यंत्र करते हैं” से पूर्णतया स्पष्ट है कि इसमें केवल सामान्य विद्रोह (insurrection) को सूचित करने के लिये षड्यंत्र ही नहीं अपितु, केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार को आतंकित करने के लिये घातक बलवा (serious riot) या एक विशाल एवं उपद्रवी अवैध सभा भी सम्मिलित है।10 ‘आतंकित करेगा” शब्द से आशय है आशंका, या संत्रास या भय के सृजन से कुछ और अधिक। यह उस परिस्थिति के सृजन को इंगित करता है जिसमें केन्द्रीय अथवा प्रान्तीय सरकार बल के सम्मुख झुकने अथवा स्वयं को या जनता को घोर परिणामों के सम्मुख अभिदर्शित करने के बीच चयन करने में अपने को असमर्थ पाती है। यह आवश्यक नहीं है कि खतरा उनकी हत्या या उन्हें शारीरिक क्षति का खतरा । हो। खतरा लोक सम्पत्ति को या सामान्य जनता की सुरक्षा को भी हो सकता है।11 सरकार की प्रकृति में परिवर्तन लाने के प्रयोजन से किया गया कोई षड्यंत्र भले ही वह इस संहिता की किसी अन्य धारा के अन्तर्गत कोई अपराध गठित करता हो, इस धारा के अन्तर्गत तब तक अपराध नहीं होगा जब तक कि वह आपराधिक बल अथवा आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा सरकार को आतंकित करने के लिये एक षड्यंत्र न हो।12। आपराधिक बल के प्रयोग द्वारा या इसके प्रदर्शन द्वारा सरकार को आतंकित करने का षड्यंत्र” की व्याख्या केरल उच्च न्यायालय ने अरविन्द बनाम राज्य13 के वाद में किया था। न्यायालय ने कहा कि । * आतंकित करना” शब्द से यह सुस्पष्ट होता है कि इसमें डर, घबड़ाहट या भय उत्पन्न करना मात्र ही नहीं कुछ अधिक निहित है। यह उस स्थिति के सृजन को इंगित करता है जिसमें सरकार, बल के समक्ष झुकने या सरकार या जनसामान्य के समक्ष बहुत गंभीर खतरा उत्पन्न होने, के बीच चुनने को बाध्य हो जाती है। अतः केवल इस नारा देने मात्र से कि सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा सरकार बदली जा सकती है, यह अभिप्रेत नहीं है कि आपराधिक बल द्वारा सरकार बदलने के लिये आपराधिक षड्यंत्र का अपराध किया जा चुका है।
- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना- जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध या तो युद्ध करने, या युद्ध करने की तैयारी करने के आशय से पुरुष, आयुध या
- रामानन्द (1950) 30 पटना 152.
- उपरोक्त सन्दर्भ, मीर हसन खान बनाम इम्परर, ए० आई० आर० 1951 पटना 60.
- झाववाला, (1933) 55 इला० 1040.
- 1983 क्रि० लाँ ज० 1259 (केरल).
गोला-बारूद संग्रह करेगा, या अन्यथा युद्ध करने की तैयारी करेगा, वह (आजीवन कारावास) से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक की नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। टिप्पणी अवयव– इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) पुरुष, आयुध या गोला बारूद इत्यादि का संग्रह करना। (2) उपरोक्त कार्य का आशय भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना होना चाहिये। | इस धारा का उद्देश्य भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की किसी भी तैयारी (Preparation) को कठोरता पूर्वक दबाना है। प्रयत्न (attempt) इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं है। |
- युद्ध करने की परिकल्पना को सुकर बनाने के आशय से छिपाना- जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की परिकल्पना के अस्तित्वों को किसी कार्य द्वारा, या किसी अवैध लोप द्वारा, इस आशय से कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाए, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाएगा, छिपाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।
टिप्पणी अवयव-इस धारा के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं (1) भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की परिकल्पना का अस्तित्ववान होना; (2) अभियुक्त को ऐसी परिकल्पना का ज्ञान होना चाहिये; (3) अभियुक्त के परिकल्पना को छुपा रखा हो; तथा (4) छुपाने का आशय युद्ध करने की परिकल्पना को सुकर बनाना होना चाहिये। यह धारा भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की परिकल्पना को सुकर बनाने के आशय से उसे छिपाने को दण्डनीय बनाती है। छिपाना किसी कार्य या लोप द्वारा हो सकता है। |
- किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोधित करने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना- जो कोई भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल को ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल की विधिपूर्ण शक्तियों में से किसी शक्ति
का किसी प्रकार प्रयोग करने के लिए या प्रयोग करने से विरत रहने के लिए उत्प्रेरित करने या विवश करने के | आशय से, ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करेगा या उसका सदोष अवरोध करेगा, या सदोष अवरोध करने का प्रयत्न करेगा या उसे आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करेगा, या ऐसे आतंकित करने का प्रयत्न करेगा, । वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा। टिप्पणी अवयव– इस धारा के निम्नलिखित तत्व हैं (1) यह राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध कारित एक अपराध है; (2) अभियुक्त निम्नलिखित में से कोई एक कार्य करे (क) हमला या हमला करने का प्रयत्न करे; या (ख) सदोष अवरोध या उसका प्रयत्न करे; या (ग) बल प्रयोग अथवा बल प्रयोग का प्रदर्शन करे। (3) उपरोक्त में से किसी एक कार्य का किया जाना ऐसे किसी व्यक्ति को उसके वैधिक शक्तियों के प्रयोग करने या प्रयोग करने से विरत रहने के लिये उत्प्रेरित करने या विवश करने के आशय से किया जाना चाहिये। 124-क. राजद्रोह- जो कोई बोले गए या लिखे गये शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, या अप्रीति प्रदीप्त करेगा या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से, दण्डित किया जाएगा। स्पष्टीकरण 1-अप्रीति” पद के अन्तर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्त भावनाएं आती हैं। स्पष्टीकरण 2-घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए। बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं। स्पष्टीकरण 3-घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना सरकार की प्रशासनिक या अन्य क्रिया के प्रति अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करतीं। टिप्पणी अवयव-राजद्रोह के निम्नलिखित दो अवयव हैं (1) भारत सरकार के प्रति घृणा या अवमान उत्पन्न करना या उत्पन्न करने का प्रयत्न करना या अप्रीति प्रदीप्त करने का प्रयत्न करना। (2) ऐसे कार्य या प्रयास को (क) बोले या लिखे शब्दों द्वारा, या (ख) संकेतों द्वारा या (ग) दृश्यरूपण (Visible representation) द्वारा करना। इतिहास– धारा 124-क इस संहिता में सन् 1870 में जोड़ा गया और उस समय यह वर्तमान रूप में नहीं था। इसमें सन् 1898 में संशोधन द्वारा स्पष्टीकरणों को जोड़ा गया। सन् 1870 तथा 1898 के बीच शब्द ** अप्रीति” (disaffection) की व्याख्या अनेक मामलों में की गयी। क्वीन बनाम योगेन्द्र चन्द्र बोस14 के वाद में पेथेराम सी० जे० ने ‘अप्रीति” शब्द की व्याख्या करते हुये कहा कि इसका अर्थ है ”प्रीति के विरुद्ध चेतना”, दूसरे शब्दों में अरुचि या घृणा। यदि कोई व्यक्ति बोले गये या लिखे गये शब्दों द्वारा उस व्यक्ति के मस्तिष्क में जिसे सम्बोधित करते हुये शब्दों को कहा गया है, सरकार की वैध शक्तियों का अनुपालन न करने का अवसर आने पर, उस शक्ति को नष्ट करने, उसका प्रतिरोध करने का विचार सृजित करता है तथा अपने श्रोताओं एवं पाठकों के मस्तिष्क में भी ऐसा विचार उत्पन्न करता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दोषी होगा। क्वीन बनाम बाल गंगाधर तिलक15 के वाद में स्टैची जज उपरोक्त निर्णय से सहमत थे और उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह अन्य लोगों में सरकार के प्रति न तो शत्रुता उत्पन्न करे और न ही शत्रुता उत्पन्न करने का प्रयास करे। अप्रीति की मात्रा एवं तीव्रता दण्ड के प्रश्न को छोड़कर बिल्कुल ही महत्वहीन
- आई० एल० आर० 19 कल० 35.
- आई० एल० आर० 22 बम्बई 55.
इन निर्णयों की पुष्टि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने क्वीन बनाम अम्बिका प्रसाद16 के बाद में किया था। इंग्लैण्ड में देशद्रोह का अपराध शताब्दियों से ज्ञात है। प्रत्येक राज्य, उसके सरकार की प्रकृति चाहे जैसी भी हो अपने आप को उन लोगों को दण्डित करने की शक्ति से सुसज्जित करने के लिये बाध्य है जो अपने आचरण द्वारा राज्य की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करते हैं या अप्रीति की ऐसी भावनाओं का प्रसार करते हैं जो राज्य की प्रभुसत्ता को या लोक व्यवस्था को भंग करने वाले गुणों से युक्त होती है। निहरेन्द्र दत्त मजुमदार17 के वाद में मारिस गायर ने कहा कि प्रत्येक सरकार का प्रथम एवं मूलभूत दायित्व व्यवस्था को सुरक्षित रखना है, क्योंकि व्यवस्था ही सभी सभ्यताओं एवं मानव सुखों के उन्नति की पूर्व शर्त है। इस दायित्व का कभी-कभी नि:सन्देह इस प्रकार पालन किया गया कि उपचार रोग से भी भयानक साबित हुआ परन्तु यह दायित्व तब भी समाप्त नहीं होता, क्योंकि जिन लोगों पर इसे पालन करने का दायित्व था उन लोगों ने सुचारु रूप से पालन नहीं किया। यह राज्य का उन लोगों के लिये जवाब है जो राज्य पर आक्रमण करने या इसे नष्ट करने के प्रयोजन से राज्य की शांति को भंग करने, लोक विक्षोभ उत्पन्न करने या अव्यवस्था उत्पन्न करने या अन्य लोगों को ऐसा करने के लिये उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करते हैं। शब्द, कृत्य एवं लेखन देशद्रोह गठित करते हैं यदि वे इस आशय या प्रवृत्ति से युक्त हैं। लोक अव्यवस्था या इसकी युक्तियुक्त प्रत्याशा (reasonable anticipation) या लोक व्यवस्था की सम्भावना ही इस अपराध का तत्व है। परिवादित कृत्य या शब्द या तो अव्यवस्था उत्पन्न करने या तो ऐसे हों जिनसे कोई भी युक्तियुक्त व्यक्ति सन्तुष्ट हो जाय कि उनका आशय या प्रवृत्ति अव्यवस्था उत्पन्न करने योग्य है। उपरोक्त कथन को इम्परर बनाम सदा शिवनारायण18 के वाद में प्रिवी कौंसिल ने स्वीकार नहीं किया और यह निर्णय दिया कि धारा 124-क अथवा नियम, जिसके अधीन मामले पर विचार किया गया है, की भाषा मुख्य न्यायाधीश द्वारा व्यक्त विचार को न्यायसंगत नहीं ठहराती। पदावली ‘‘अप्रीति उत्तेजित करती है” के अन्तर्गत “अव्यवस्था उत्तेजित करती है”, नहीं आती है। तिलक एवं बेन्सेंट के वाद में व्यक्त इतरोक्ति (dicta) को प्रिवी कौंसिल ने स्वीकार किया।