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Indian Penal Code 1860 Offences Affecting Human Body LLB Notes Study Material

Indian Penal Code 1860 Offences Affecting Human Body LLB Notes Study Material : Law LLB 1st Year / Semester Important Study Material in PDF Download Indian Penal Code 1860.

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Indian Penal Code 1860 Offences Affecting Human Body LLB Notes Study Material

Indian Penal Code 1860 Offences Affecting Human Body LLB Notes Study Material

अध्याय 16

मानव-शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में

(OF OFFENCES AFFECTING THE HUMAN BODY)

जीवन के लिये संकटकारी अपराधों के विषय में (OF OFFENCES AFFECTING LIFE)

  1. आपराधिक मानव-वध- जो कोई मृत्यु कारित करने के आशय से, या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित हो जाना सम्भाव्य हो, या यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भाव्य है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देता है, वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है।

दृष्टान्त

(क) क एक गड्ढे पर लकड़ियाँ और घास इस आशय से बिछाता है कि तद्वारा मृत्यु कारित करे या यह ज्ञान रखते हुए बिछाता है कि सम्भाव्य है कि तद्वारा मृत्यु कारित हो। य यह विश्वास करते हुए कि वह भूमि सुदृढ़ है उस पर चलता है, उसमें गिर पड़ता है और मारा जाता है। क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है। |

(ख) क यह जानता है कि य एक झाड़ी के पीछे है। ख यह नहीं जानता। य की मृत्यु करने के आशय से या यह जानते हुए कि उससे य की मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, ख को उस झाड़ी पर गोली चलाने के लिए क उत्प्रेरित करता है। ख गोली चलाता है और य को मार डालता है। यहाँ यह हो सकता है कि ख किसी भी अपराध का दोषी न हो, किन्तु क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है। ।

(ग) क एक मुर्गे को मार डालने और उसे चुरा लेने के आशय से उस पर गोली चलाकर ख को, जो एक झाड़ी के पीछे है, मार डालता है, किन्तु क यह नहीं जानता था कि ख वहाँ है। यहाँ, यद्यपि क विधिविरुद्ध कार्य कर रहा था, तथापि वह आपराधिक मानव वध का दोषी नहीं है क्योंकि उसका आशय ख को मार डालने का, या कोई ऐसा कार्य करके, जिससे मृत्यु कारित करना वह सम्भाव्य जानता हो, मृत्यु कारित करने का नहीं था। ।

स्पष्टीकरण 1-वह व्यक्ति, जो किसी दूसरे व्यक्ति को, जो किसी विकाररोग या अंग-शैथिल्य से ग्रस्त है, शारीरिक क्षति कारित करता है और तद्वारा उस दूसरे व्यक्ति की मृत्यु त्वरित कर देता है, उसकी मृत्यु कारित करता है, यह समझा जाएगा।

स्पष्टीकरण 2-जहाँ कि शारीरिक क्षति से मृत्यु कारित की गई हो, वहाँ जिस व्यक्ति ने, ऐसी शारीरिक क्षति कारित की हो, उसने वह मृत्यु कारित की है, यह समझा जाएगा, यद्यपि उचित उपचार और कौशलपूर्ण चिकित्सा करने से वह मृत्यु रोकी जा सकती थी। |

स्पष्टीकरण 3-माँ के गर्भ में स्थित किसी शिशु की मृत्यु कारित करना मानव वध नहीं है। किन्तु किसी जीवित शिशु की मृत्यु कारित करना आपराधिक मानव वध की कोटि में आ सकेगा, यदि उस शिशु का कोई भाग बाहर निकल आया हो, यद्यपि उस शिशु ने साँस न ली हो या वह पूर्णत: उत्पन्न न हुआ हो।

टिप्पणी

मानव-वध–एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य को जान से मार डालना मानव-वध कहलाता है। मानव– वध विधिपूर्ण हो सकता है या विधि-विरुद्ध। भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय IV जो साधारण अपवाद से।

  1. स्टीफेन, डाइजेस्ट ऑफ क्रिमिनल लॉ।

सम्बन्धित हैं, में वर्णित अनेक मामले विधिपूर्ण मानव वध के अन्तर्गत आते हैं। विधि विरुद्ध मानव-वध के अन्तर्गत निम्नलिखित मामले आते हैं

(1) हत्या (धारा 300)

(2) आपराधिक मानव-वध जो हत्या की कोटि में नहीं आते (धारा 304)

(3) उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना (धारा 304-अ)

(4) आत्महत्या (धारा 305 तथा 306)

अवयव- आपराधिक मानव वध के निम्नलिखित प्रमुख अवयव हैं

(1) किसी मानव की मृत्यु कारित करना;

(2) ऐसी मृत्यु किसी कार्य द्वारा कारित की गई हो;

(3) कार्य

(क) मृत्यु कारित करने के आशय से, या ।

(ख) ऐसी शारीरिक उपहति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य

हो, या

(ग) इस ज्ञान से कि उस कार्य द्वारा मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, किया गया हो।

  1. जो कोई मृत्यु कारित करता है-इस धारा में प्रयुक्त ‘मृत्यु” शब्द का तात्पर्य है किसी मानव की मृत्यु । किसी अजन्मे शिशु जैसे माँ के गर्भ में स्थित शिशु की मृत्यु इस धारा के अन्तर्गत नहीं आती। परन्तु धारा 299 के स्पष्टीकरण 3 के अनुसार किसी जीवित शिशु की मृत्यु कारित करना मानव-वध की कोटि में आ सकता है यदि उस शिशु के शरीर का कोई भाग माँ के गर्भ से बाहर निकल आया था, भले ही उस शिशु ने श्वांस न लिया रहा हो या वह पूर्णत: उत्पन्न न हुआ रहा हो। इस धारा के अन्तर्गत यह भी आवश्यक नहीं है। कि उसी व्यक्ति की मृत्यु की जाये जिसकी मृत्यु कारित करने का आशय था। अपेक्षित व्यक्ति से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति की यदि मृत्यु कर दी जाती है तो भी वह मृत्यु आपराधिक मानव-वध की कोटि में आयेगी। आपराधिक मानव-वध का अपराध उसी क्षण पूर्ण हो जाता है जिस क्षण अभियुक्त द्वारा किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और अभियुक्त की मानसिक दशा अवयव नं० 3 की भाँति थी। दूसरे शब्दों में यदि मृत्यु कारित करने के आशय से या शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित हो जाना सम्भाव्य हो या यह ज्ञान रखते हुये कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर देगा, अभियुक्त कोई कार्य करता है तो वह आपराधिक मानव-वध का दोषी होगा।
  2. किसी कार्य द्वारा मृत्यु कारित करना- मृत्यु कारित करने के विभिन्न प्रक्रम हैं, जैसे भूख, विषपान, प्रहार, डुबोना या आघात पहुँचाने वाले किसी समाचार की सूचना देना इत्यादि। इस धारा के अन्तर्गत कार्य शब्द में अवैध लोप भी सम्मिलित है। कोई लोप अवैध है, यदि वह कोई अपराध है, यदि वह विधि के किसी निर्देश को भंग करता है, या यदि वह ऐसा दोष है जो सिविल कार्यवाही के लिये उत्तम आधार उत्पन्न करता है। अत: अवैध लोप द्वारा कारित की गयी मृत्यु आपराधिक मानव-वध है। यदि कोई जेलर किसी कैदी को खाद्य सामग्री से वंचित कर उसकी मृत्यु कारित करता है या यदि कोई नर्स किसी बच्चे को जो उसे न्यस्त किया गया था, पानी के टब में से जिसमें वह गिर गया था निकालने में लोप कर स्वेच्छया उस बच्चे की मृत्यु कारित करती है या यदि किसी जेल का डाक्टर चिकित्सीय सुविधा से वंचित कर किसी कैदी की मृत्यु कारित करता है तो वह जेलर, नर्स या डाक्टर हत्या का दोषी होगा। अ एक भिक्षुक ब को खाद्य सामग्री। देने में लोप करता है। अ इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि ब, असे मानवता के अतिरिक्त किसी अन्य दावे या मांग की अपेक्षा नहीं कर सकता। एक चपरासी अ की नियुक्ति इसलिये की गयी थी कि वह यात्रियों को इस बात की चेतावनी दे कि वह पैदल नदी में घस कर उसे पार करने का प्रयत्न न करे। अ, ब को यह बताने में लोप करता है कि नदी में पानी बहुत अधिक है, अत: वह उसे सुरक्षित रूप से पार नहीं

कर सकता और इस लोप द्वारा वह ब की स्वेच्छया मृत्यु कारित करता है। यह हत्या है। यह तब भी हत्या ही होगा यदि अ एक गाइड है और उसने ब से उसे पार कराने के लिये संविदा किया था। क्योंकि ऐसी स्थिति में उसका दायित्व विधिक होगा न कि मानवीय।।

शब्दों के प्रभाव द्वारा कारित की गयी मृत्यु-शब्दों के प्रभाव द्वारा भी मृत्यु कारित की जा सकती है। उदाहरण के लिये किसी व्यक्ति को ऐसी सूचना देना जिससे वह उत्तेजित हो जाता है और उत्तेजना की परिणति उसकी मृत्यु में होती है, यद्यपि यह सिद्ध करना दुष्कर होगा कि उस व्यक्ति ने जिसके मुख से शब्द मुखरित हुये थे, ऐसे किसी परिणाम की परिकल्पना की थी जिसकी परिकल्पना विशिष्ट परिस्थिति के अन्तर्गत और संरचना के आधार पर ही की जा सकती है। अन्यथा केवल शब्दों में ऐसे परिणाम की अभिकल्पना नहीं की जा सकती। अ यदि उपरोक्त आशय या ज्ञान से ब को जो किसी घातक बीमारी के कारण गम्भीर हालत में है, कोई उत्तेजित या प्रदीप्त करने वाली सूचना देता है और इस सूचना के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है। अ आपराधिक मानव-वध के लिये उत्तरदायी होगा। इसी प्रकार यदि अ उपरोक्त आशय या ज्ञान से ब को यह विकल्प देता है कि वह या तो अपनी हत्या कर ले या चिरकालिक यन्त्रणा भुगतने को तैयार रहे। ब विषपान द्वारा अपनी हत्या कर लेता है। अ आपराधिक मानव वध के लिये उत्तरदायी होगा। इस संहिता के मूल ड्राफ्ट में यही दोनों दृष्टान्त प्रस्तावित थे।

  1. (क) मृत्यु कारित करने का आशय-आशय का तात्पर्य है परिणाम की प्रत्याशा। यदि किसी व्यक्ति पर कोई कार्य करने का आरोप लगाया गया है जिस कार्य का सम्भावित परिणाम घातक रूप से हानिकारक हो सकता है ऐसी स्थिति में आशय विधि का एक निष्कर्ष होगा जिसकी अवधारणा किये गये कार्य से की जाती है। आशय का निष्कर्ष अभियुक्त द्वारा किये गये कार्य तथा मामले की परिस्थितियों से निकाला जाता है। अत: यदि किसी भरी बन्दूक से जानबूझ कर गोली चलायी जाती है तो तुरन्त यह निष्कर्ष निकलेगा कि अभियुक्त का आशय मृत्यु कारित करना था। आशय के अस्तित्व की अभिकल्पना तब तक नहीं। की जाती जब तक कि मृत्यु की अभिव्यक्ति कार्य के स्वाभाविक और सम्भावित परिणाम के रूप में नहीं होती। उदाहरण के लिये, यदि मृत्यु एक घूसे के प्रहार से होती है जिस प्रहार से किसी स्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु होनी सम्भाव्य नहीं है और यह कि जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई वह किसी रोग से पीड़ित था। ऐसी स्थिति में आशय या ज्ञान का निष्कर्ष निकालना युक्तिसंगत न होगा। ऐसा इसलिये है क्योंकि ऐसे मामलों में निष्कर्ष स्वाभाविक या सम्भावित निष्कर्ष नहीं होता अतः यह कहा जा सकता है कि इस मामले में अभियुक्त ने इस परिणाम की कभी कल्पना नहीं की थी। ऐसे मामलों में अभियुक्त के वास्तविक आशय या ज्ञान को दर्शाने के लिये कुछ वाह्य साक्ष्यों की आवश्यकता पड़ेगी, जैसे यह कि अपराधी रोग के बारे में जानता था तथा घूसे का प्रहार रोग से प्रभावित अंग पर ही किया गया था।

किसी परिणाम की निश्चितता का पूर्व ज्ञान भी आशय में सम्मिलित है। परिणाम को उस समय आशयित समझा जायेगा भले ही परिणाम इच्छित न हो, जब इसकी निश्चितता का सारवान रूप से पूर्वाभास हो । |

इस धारा के अन्तर्गत मृत्यु कारित करने के आशय का तात्पर्य किसी विशिष्ट व्यक्ति की मृत्यु कारित करने से नहीं है। इस तथ्य की पुष्टि इसी धारा के दृष्टान्त (क) द्वारा होती है जो यह स्पष्ट करता है कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु कारित कर सकता है जिसकी मृत्यु कारित करना उसका आशय नहीं था और वह आपराधिक मानव-वध का दोषी होगादृष्टान्त (क) में अ का यह आशय था या उसे यह ज्ञात था कि जो कोई भी गड्ढे को सुदृढ़ भूमि समझ कर उस पर चलेगा उसकी मृत्यु होनी सम्भाव्य है, भले ही किसी विशिष्ट व्यक्ति के सन्दर्भ में उसने ऐसा न सोचा हो।

  1. (ख) ऐसी शारीरिक उपहति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु होनी सम्भाव्य है- धारा 299 के अन्तर्गत अपराध संरचित करने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि अभियुक्त का आशय
  2. डिक्सन (1814) 3 एम० एण्ड एस० 11, पृ० 15 के वाद में लार्ड एलनबोरो का मत।
  3. घफर, (1867) पी० आर० न० 62 सन् 1887.
  4. रामा, ए० आई० आर० (1969) गोवा, 116.
  5. बल्लन, 1955 क्रि० लॉ ज० 1448.

मृत्यु ही कारित करना हो, इतना ही पर्याप्त होगा यदि उसका आशय ऐसी शारीरिक क्षति कारित करना था जिससे मृत्यु होनी सम्भाव्य थी। ‘कार्य” तथा कार्य द्वारा कारित मृत्यु के बीच सीधा और प्रत्यक्ष सम्बन्ध होना चाहिये। यह आवश्यक नहीं है कि मृत्यु कार्य का शीघ्रगामी परिणाम हो परन्तु इसे दूरगामी परिणाम भी नहीं होना चाहिये। यदि कार्य तथा मृत्यु के बीच अस्पष्ट सम्बन्ध है या यदि समवर्ती कारणों द्वारा यह सम्बन्ध हो जाता है या यदि पश्चात्वर्ती कारणों से उत्पन्न व्यवधान से यह सम्बन्ध टूट जाता है या यदि कार्य तथा मृत्यु के बीच समय का बहुत लम्बा अन्तराल व्यतीत होता है तो उपरोक्त शर्त पूर्ण नहीं होती है। मुहम्मद हुसैन के वाद में न्यायमूर्ति ग्रोवर ने ठीक ही कहा है कि मृत्यु तथा हिंसात्मक कार्य के बीच सीधा सम्बन्ध होना आवश्यक है और यह सम्बन्ध कारणों और परिणामों की केवल एक श्रृंखला द्वारा ही नहीं होना चाहिये अपितु ऐसा होना चाहिये, जिससे अपेक्षित परिणाम का परिस्थितियों में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये बिना सृजित होना सम्भाव्य हो। इन दोनों पदावलियों ‘‘मृत्यु कारित करने का आशय” तथा ”ऐसी शारीरिक उपहति कारित करने का आशय जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है” में अन्तर केवल उनकी आपराधिकता की मात्रा में है। प्रथम पदावली की अपेक्षी दूसरी पदावली में आपराधिकता की मात्रा कम होती है। किन्तु दोनों में उद्देश्य चूंकि एक ही होता है अत: दोनों मामलों के लिये एक ही प्रकार के दण्ड का प्रावधान प्रस्तुत किया गया है।

पदावली ‘‘ऐसी उपहति कारित करने का आशय जिससे मृत्यु होनी सम्भाव्य है” का तात्पर्य है, एक विशिष्ट प्रकार की क्षति कारित करना और क्षति ऐसी हो जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है। यहाँ न तो मृत्यु ही आशयित होती है और न तो क्षति का प्रभाव ही।8 इस धारा में आवश्यक नहीं है कि क्षति के परिणामों का पूर्वाभास हो, इतना ही पर्याप्त होगा कि क्षति कारित करने का आशय था और क्षति मृत्यु कारित करने की सम्भावना से युक्त थी।

सुमेर सिंह के वाद में अ ने ब के सिर पर प्रहार किया और वह जानता था कि प्रहार ऐसा है जिससे ब की खोपड़ी के टूटने की सम्भावना है। इस वाद में न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि अ को यह ज्ञात था कि उसके प्रहार से ब की मृत्यु होनी सम्भाव्य है। अत: अ को हत्या की कोटि में आने वाले आपराधिक मानववध के लिये दोषसिद्धि प्रदान की गयी। ग पो नयेन10 के वाद में अभियुक्त ने ब के सिर के उस हिस्से पर लकड़ी के एक लम्बे हैण्डिल से प्रहार किया जो कमजोर था। उसे आपराधिक मानव-वध न कि हत्या के लिये दोषी ठहराया गया, क्योंकि प्रहार करने में जिस आयुध का उपयोग किया गया था वह भयानक प्रकृति का नहीं था, इसलिये अभियुक्त के विरुद्ध हत्या के आशय की अवधारणा नहीं की जा सकती।