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Indian Penal Code 1860 of Offences Relating Public Servants LLB Notes

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अध्याय 9

लोक सेवकों द्वारा या उनसे सम्बन्धित अपराधों के विषय में

(OF OFFENCES BY OR RELATING TO PUBLIC SERVANTS)

इस अध्याय की धारायें 161 से 165-क तक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (1988 की अधिनियम संख्या 49) की धारा 31 के द्वारा निरस्त कर दिया गया है। |
  1. वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोष का लोकसेवक द्वारा पदीय कार्य के लिए लिया जाना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 31 द्वारा निरसित। |
  2. लोकसेवक पर भ्रष्ट या अवैध साधनों द्वारा असर डालने के लिये परितोष का लेना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 31 द्वारा निरसित ।। |
  3. लोकसेवक पर वैयक्तिक असर डालने के लिए परितोषण का लेना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 31 द्वारा निरसित। |
164, धारा 162 या 163 में परिभाषित अपराधों के लोकसेवक द्वारा दुष्प्रेरण के लिए दण्डभ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 31 द्वारा निरसित।।
  1. लोकसेवा, जो ऐसे लोक-सेवक द्वारा की गई कार्यवाही या कारबार से संपृक्त व्यक्ति से, प्रतिफल के बिना, मूल्यवान चीज अभिप्राप्त करता है- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 31 द्वारा निरसित।।
165-, धारा 161 या 165 में परिभाषित अपराधों के दुष्प्रेरण के लिए दण्ड भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 31 द्वारा निरसित।।
  1. लोक सेवक, जो किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के आशय से विधि की अवज्ञा करता है– जो कोई लोक सेवक होते हुए विधि के किसी ऐसे निदेश की जो उस ढंग के बारे में हो जिस ढंग से लोक सेवक के नाते उसे आचरण करना है जानते हुए अवज्ञा इस आशय से, या सम्भाव्य जानते हए करेगा कि ऐसी अवज्ञा से वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टान्त क, जो एक आफिसर है, और न्यायालय द्वारा य के पक्ष में दी गई डिक्री की तुष्टि के लिए निष्पादन में सम्पत्ति लेने के लिए विधि द्वारा निदेशित है, यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भाव्य है कि तद्द्वारा वह य को क्षति कारित करेगा, जानते हुए विधि के उस निदेश की अवज्ञा करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है। टिप्पणी इस धारा को लागू होने के लिये यह आवश्यक है कि एक लोक-सेवक ने किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के उद्देश्य से जानबूझ कर विधि के स्पष्ट निदेश की अवज्ञा किया हो। यह धारा किसी व्यक्ति को अति
  1. अप्पाजी नारायन, (1895) बक

  कारित करने के उद्देश्य से सांविधिक दायित्व को भंग किये जाने की प्रकल्पना करती है। केवल विभागीय नियमों का उल्लंघन जिसे विधि की शक्ति प्राप्त नहीं है, इस धारा के अन्तर्गत नहीं आता।। 166-. लोक सेवक, जो विधि के अधीन के निदेश की अवज्ञा करता हैजो कोई, लोक सेवक होते हुए, (क) विधि के किसी ऐसे निदेश की, जो उसको किसी अपराध या किसी अन्य मामले में अन्वेषण के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति की किसी स्थान पर उपस्थिति की अपेक्षा किए जाने से प्रतिषिद्ध करता है, जानते हुए अवज्ञा करता है; या । (ख) किसी ऐसी रीति को, जिसमें वह ऐसा अन्वेषण करेगा, विनियमित करने वाली विधि के किसी अन्य निदेश की, किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए, जानते हुए अवज्ञा करता है; या (ग) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 154 की उपधारा (1) के अधीन और विशिष्टतया धारा 326-क, धारा 326-ख, धारा 354, धारा 354-ख, धारा 370, धारा 370-क, धारा 376, धारा 376-क, धारा 376-ख, धारा 376-ग, धारा 376-घ, धारा 376-ङ या धारा 509 के अधीन दंडनीय संज्ञेय अपराध के संबंध में उसे दी गई किसी सूचना को लेखबद्ध करने में असफल रहता है, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। टिप्पणी नयी जोड़ी गयी धारा 166क अन्वेषण कर रहे पब्लिक सर्वेण्ट के कर्तव्यों का प्रावधान करती है। धारा 166-क में तीन खण्ड हैं। खण्ड क यह प्रावधान करती है कि कोई पब्लिक सर्वेण्ट जो जानबूझकर कानून के किसी ऐसे निर्देश का जो उसे इस बात से मना करता है कि किसी व्यक्ति को किसी स्थान पर किसी अपराध या अन्य मामले के अन्वेषण हेतु उपस्थित रहने को कहा जाये उसे दण्डित किया जायेगा। खण्ड ( ) यह प्रावधान करता है कि जब कोई पब्लिक सर्वेण्ट जानबूझकर विधि के किसी निर्देश का जो यह कहता है कि अन्वेषण किस प्रकार से किया जाय उल्लंघन करता है जो उस व्यक्ति के हित विरुद्ध है। वह भी दण्डित किया जायेगा। खण्ड () यह प्रावधान करता है कि कोई पब्लिक सर्वेण्ट जो दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अन्तर्गत किसी संज्ञेय अपराध के विषय में दी गयी किसी सूचना को रिकार्ड करने में विफल रहता है, वह धारा 326-क, 326-ख, धारा 354, 354-ख, धारा 370, धारा 370-क, धारा 376, धारा 376-क, 376ख. 370-ग, धारा 370-घ, 370-ङ अथवा धारा 509 के अन्तर्गत भी दण्डित किया जायेगा कोई व्यक्ति जो धारा 166-क के किसी खण्ड (क), (ख) अथवा (ग) के अधीन दोषी पाया जायेगा वह कठोर कारावास जो छ: माह से कम नहीं होगा और जो उचित मामलों में दो वर्ष तक बढ़ सकता है दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित होगा। 166-. पीड़ित का उपचार करने के लिए दण्ड जो कोई ऐसे किसी लोक या प्राइवेट अस्पताल का, चाहे वह केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा हो, भारसाधक होते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 357-ग के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा।] टिप्पणी भारतीय दण्ड संहिता में जोड़ी गयी नयी धारा 166-ख पीडित का उपचार न करने पर दण्ड की व्यवस्था करती है। यह किसी अस्पताल के प्रभारी को दण्डित करने की व्यवस्था करती है चाहे अस्पताल
  1. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 3 द्वारा धारा 166-क अन्त:स्थापित (दिनांक 3-22013 से प्रभावी) ।
  2. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 3 द्वारा धारा 166-ख अन्त:स्थापित (दिनांक 3-52013 से प्रभावी)।
सरकारी हो या प्राइवेट और चाहे वह राज्य सरकार अथवा केन्द्र सरकार द्वारा संचालित हो । यहाँ तक कि स्थानीय निकाय या किसी व्यक्ति द्वारा संचालित अस्पताल पर भी यह नियम लागू होता है उपरोक्त श्रेणी में आने वाला कोई व्यक्ति इस धारा के अन्दर दण्डनीय है। दण्ड एक वर्ष तक के कारावास तक दिया जा सकता है और अर्थदण्ड और कारावास दोनों से दण्डित हो सकता है।
  1. लोक सेवक, जो क्षति कारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज रचता है जो काई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते किसी दस्तावेज 4[या इलेक्ट्रानिक अभिलेख] की रचना या अनुवाद करने का भार वहन करते हुए इस दस्तावेज 4[या इलेक्ट्रानिक अभिलेख] की रचना या अनुवाद एसे प्रकार से, जिसे वह जानता हो या विश्वास करता हो कि अशुद्ध हैं, इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि तद्द्वारा वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी यह धारा अशुद्ध रचना या अनुवाद से सम्बन्धित है जिसकी संरचना या अनुवाद उसके आधिकारिक कर्तव्यों के अन्तर्गत आता है यदि वह इससे भिज्ञ था तथा इस ज्ञान या आशय से किया गया कि इससे किसी व्यक्ति को क्षति कारित होना सम्भाव्य है।
  1. लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से व्यापार में लगता है जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि वह व्यापार में न लगे, व्यापार में लगेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी यह धारा उन लोक-सेवकों को दण्डनीय बनाती है जो विधि द्वारा किसी व्यापार में न लगने के लिये आबद्ध हैं। यदि लोक-सेवकों को व्यापार में सम्मिलित होने की स्वीकृति दे दी जाये तो वे अपने आधिकारिक कार्यों पर पर्याप्त ध्यान देने में असमर्थ हो जायेंगे। इसके अतिरिक्त वे अपनी आधिकारिक हैसियत का प्रयोग अपने व्यापार की प्रोन्नति के लिये कर अन्य व्यापारियों के ऊपर अनुचित लाभ उठायेंगे। विस्तृत अर्थों में व्यापार के अन्तर्गत प्रत्येक तरह का व्यापार, कारोबार, व्यवसाय, पेशा या उद्योग सम्मिलित है। योजना और प्राक्कलन (estimate) तैयार करने का कार्य एक व्यापार है। कनवरजीत सिंह कक्कड़ बनाम पंजाब राज्य के वाद में अपीलाण्ट राजिन्दर सिंह चावला और कनवरजीत सिंह कक्कड़ पंजाब राज्य में कार्यरत सरकारी चिकित्सक (गवर्नमेण्ट डॉक्टर) हैं। रमन कुमार ने यह आरोपित किया था कि ये दोनों डॉक्टर साम को प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे और प्रत्येक मरीज से 100 रुपये फीस लेते थे। प्रत्येक मरीज से दवा का नुस्खा लिखने के नाम पर 100 रुपये फीस लेते थे। जहां डॉ० राजिन्दर सिंह मरीजों के रक्त चाप (blood pressure) की जाँच करते थे, डॉ० चावला मरीजों की समुचित जांच के पश्चात् दवा का नुस्खा लिखते थे और 100 रुपये प्रति मरीज फीस लेते थे। शिकायतकर्ता ने अपनी बीमारी के लिये दवा लिया था और डाक्टर ने उससे प्रोफेशनल फीस के तौर पर 100 रुपये लिया था। यह भी आरोप था कि सरकारी डाक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस और फीस लेने की अनुमति नहीं है और ऐसा करना सरकारी निर्देशों के विपरीत है। यह भी आरोप लगाया गया कि इन डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस करते हुये पकड़ा जा सकता है और शिकायतकर्ता से कन्सलटेन्सन फीस के तौर पर 100 रुपये लेते हुये पकडे गये थे। इस आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भा० द० संहिता की धारा 168 के अन्तर्गत प्रथम सूचना
  1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का अधिनियम सं० 21) की धारा 91 तथा प्रथम अनुसूची द्वारा अन्त:स्थापित.
  2. महेश कुमार धीरज लाल, (1974) गुजरात लॉ रि० 2.
  3. (2011) 3 क्रि० लाँ ज० 3360 (एस० सी०).
रिपोर्ट रजिस्टर की गयी थी। ये धारायें पब्लिक नौकरों द्वारा ऐसा अवैध व्यवसाय करना अपराध घोषित करती यह अभिनिर्धारित किया गया कि सरकारी डाक्टरों का प्राइवेट प्रैक्टिस करना मात्र इस कारण कि ऐसा । करना सेवा नियमों के विरुद्ध है, व्यवसाय नहीं कहा जा सकता है। रोगियों की दवा करने (treat) का उनके वृत्तिक कर्तव्यों का पालन है और यह काम ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह भा० द० संहिता की धारा 168 के अधीन गठित करने वाला व्यापार (Trade) है। |
  1. लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से सम्पत्ति क्रय करता है या उसके लिए बोली लगाता है जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि वह अमुक सम्पत्ति को न तो क्रय करे और न उसके लिए बोली लगाए, या तो अपने निज के नाम में या किसी दूसरे के नाम में, अथवा दूसरों के साथ संयुक्त रूप से, या अंशों में, उस सम्पत्ति को क्रय करेगा, या उसके लिए बोली लगाएगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा, और यदि वह सम्पत्ति क्रय कर ली गई है, तो वह अधिकृत कर ली जाएगी।
टिप्पणी यह धारा पूर्वगामी धारा का विस्तृत रूप है। यह एक लोक-सेवक को कोई सम्पत्ति खरीदने या बोली लगाने से प्रतिषिद्ध करती है जिसे वह न खरीदने के लिये विधि द्वारा आबद्ध है। |
  1. लोक सेवक का प्रतिरूपणजो कोई किसी विशिष्ट पद को लोक सेवक के नाते धारण करने का अपदेश यह जानते हुए करेगा कि वह ऐसा पद धारण नहीं करता है या ऐसा पद धारण करने वाले किसी अन्य व्यक्ति का छद्म प्रतिरूपण करेगा और ऐसे बनावटी रूप में ऐसे पदाभास से कोई कार्य करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी अवयव– धारा 170 के निम्नलिखित अवयव हैं (1) कोई व्यक्ति (क) यह जानते हुये कि वह एक विशिष्ट पद को लोक-सेवक के नाते धारण नहीं करता है, उस पद को इस रूप में धारण करने का बहाना करता है, या (ख) उस पद को धारण करने वाले व्यक्ति का छद्म रूप धारण करता है, या (2) ऐसा बनावटी रूप धारण कर वह ऐसे पदाभास से कोई कार्य करता है या करने का प्रयत्न करता पद धारण करने का बहानाकेवल किसी पद को धारण करने का अपदेश एक अपराध नहीं है। किन्तु ऐसे पदाभास के अन्तर्गत यदि कोई कार्य किया जाता है या इसका प्रयत्न किया जाता है तो यह अपराध होगा। इस अपराध का सार है, छद्म रूप से लोक-सेवक के कार्यों को धारण करना। यह आवश्यक है कि अभियुक्त यह जानता हो कि जिस पद को धारण करने का बहाना वह बना रहा है उस पद को वह यथार्थतः। धारण नहीं करता है। कोई कार्य-इस अपराध के लिये यह दर्शाना आवश्यक है कि छदम रूप से धारण किये गये पदाभास से कोई कार्य किया गया हो या कार्य करने का प्रयत्न किया गया हो। यह तथ्य कि इस कार्यवाही ” अभियुक्त को किसी प्रकार का लाभ हुआ या नहीं महत्वपूर्ण नहीं है।
  1. सत्यपाल थापर, ए० आई० आर० 1951 इला० 482.
  2. पी० आर० गोपाल पिल्लई, (1974) एम० एल० जे० (क्रि०) 308.
  3. सत्यपाल थापर, ए० आई० आर० 1951 इला० 482.
पदाभास के अन्तर्गत-पदाभास के अन्तर्गत किया गया कार्य एक ऐसा कार्य है जो पद से सम्बन्धित | है जिसे धारण करने का अभियुक्त बहाना बनाता है। जहाँ अभियक्त एक मुख्य कान्सटेबल का रूप धारण कर | ऐसे पदाभास के अन्तर्गत गाँव वालों से कुछ रुपया इकट्ठा करता है वह इस धारा के अन्तर्गत दाषा ।
  1. कपटपूर्ण आशय से लोक सेवक के उपयोग की पोशाक पहनना या टोकन धारण करनाजो कोई लोक सेवकों के किसी खास वर्ग का न होते हुए, इस आशय से कि यह विश्वास किया जाए, या इस ज्ञान से कि सम्भाव्य है कि यह विश्वास किया जाए, कि वह लोक सेवकों के उस वर्ग का है, लोक सेवकों के उस वर्ग द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक के सदृश पोशाक पहनेगा या टोकन के सदृश कोई टोकन धारण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो। सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी इस धारा के अन्तर्गत लोक-सेवकों द्वारा धारण किये जाने वाले पोशाक या टोकन के सदृश पोशाक या टोकन धारण करने वाले व्यक्ति को दण्डनीय घोषित किया गया है। यदि यह पोशाक है तो अभियुक्त द्वारा इसका धारण किया जाना आवश्यक है, केवल साथ ले जाना पर्याप्त नहीं है तथा यदि वह टोकन है तो इसका प्रदर्शन आवश्यक है। टोकन का जेब में रखना मात्र अपराध नहीं है। इस धारा को लागू होने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि पोशाक या टोकन धारण कर कोई कार्य किया जाय या इसका प्रयास किया जाय।

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