Indian Penal Code 1860 of Offences Against Public Tranquility Part 3 LLB Notes
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- विधि-विरुद्ध जमाव में सम्मिलित करने के लिए व्यक्तियों का भाडे पर लेना या भाड़े पर लेने के प्रति मौनानुकूलता- जो कोई किसी व्यक्ति को किसी विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या उसका सदस्य बनने के लिए भाड़े पर लेगा या वचनबद्ध या नियोजित करेगा या भाड़े पर लिए जाने का, वचनबद्ध या नियोजित करने का संप्रवर्तन करेगा या उसके प्रति मौनानुकूल बना रहेगा, वह ऐसे विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य के रूप में, और किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य के नाते ऐसे
- 1998 क्रि० लाँ ज० 398 (एस० सी०).
71क. (2011) 1 क्रि० लॉ ज० 952 (एस० सी०).
भाड़े पर लेने, वचनबद्ध या नियोजन के अनुसरण में किए गए किसी भी अपराध के लिए उसी प्रकार दण्डनीय होगा, मानो वह ऐसे विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य रहा था या ऐसा अपराध उसने स्वयं किया था।
टिप्पणी
अवयव– इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं
(1) अभियुक्त ने निम्नलिखित में से कोई एक कार्य किया हो;
(क) उसने एक व्यक्ति को विधि-विरुद्ध जमाव का सदस्य बनने के लिये उसे भाड़े पर लिया या वचनबद्ध किया, या नियोजित किया, या ।
(ख) उसने ऐसे व्यक्ति को विधि-विरुद्ध जमाव का सदस्य बनाने अथवा उसमें सम्मिलित करने के लिये भाड़े पर लेते समय या नियोजित करते समय अभिप्रेरित किया अथवा मौनानुमति व्यक्त किया। |
(2) भाड़े पर लिये हुये व्यक्ति ने ऐसे भाड़े पर लेने या वचनबद्ध करने या नियोजित करने के अनुसरण में एक अपराध किया हो।
इस धारा का आशय उन व्यक्तियों को दण्डित करना है जो न तो दुष्प्रेरक हैं और न ही भागीदार हैं किन्तु जो विधि-विरुद्ध जमाव के सृजन में सहायता प्रदान करते हैं। भाड़े पर लिया गया व्यक्ति किसी भी कारित अपराध के लिये उसी प्रकार दण्डित होगा जैसे वह स्वयं ही विधि-विरुद्ध जमाव का सदस्य रहा हो और उसने स्वयं ही अपराध किया हो।72 |
- पाँच या अधिक व्यक्तियों के जमाव को बिखर जाने का समादेश दिए जाने के पश्चात् उसमें जानते हुए सम्मिलित होना या बने रहना- जो कोई पाँच या अधिक व्यक्तियों के किसी जमाव में, जिससे लोक शांति में विघ्न कारित होना सम्भाव्य हो, ऐसे जमाव को बिखर जाने का समादेश विधिपूर्वक दे दिये जाने पर, जानते हुए सम्मिलित होगा या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।
स्पष्टीकरण– यदि वह जमाव धारा 141 के अर्थ के अन्तर्गत विधिविरुद्ध जमाव हो, तो अपराधी धारा 145 के अधीन दण्डनीय होगा।
टिप्पणी
इस धारा की प्रयुक्ति के लिये यह आवश्यक नहीं है कि पाँच या अधिक व्यक्तियों का जमाव विधिविरुद्ध हो किन्तु यदि इस जमाव द्वारा लोक-शांति भंग किये जाने की सम्भावना है तो ऐसे जमाव में, इसके बिखर जाने का समादेश दिये जाने के पश्चात्, सम्मिलित होना या बने रहना दण्डनीय होगा। फिर भी इसके लिये यह आवश्यक है कि इस प्रकार सम्मिलित होना या बने रहना इस ज्ञान के साथ होना चाहिये कि इस जमाव द्वारा लोक शांति भंग होने का अंदेशा है तथा इसे बिखर जाने का समादेश दिया जा चुका है।
- लोक-सेवक जब बल्वे इत्यादि को दबा रहा हो, तब उस पर हमला करना या उसे बाधित करना-जो कोई ऐसे किसी लोक सेवक पर, जो विधिविरुद्ध जमाव के बिखेरने का, या बल्वे या दंगे को दबाने का प्रयास ऐसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन में कर रहा हो, हमला करेगा या उसको हमले की धमकी देगा या उसके काम में बाधा डालेगा या बाधा डालने का प्रयत्न करेगा या ऐसे लोक सेवक पर, आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या करने की धमकी देगा, या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की होगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा उन व्यक्तियों को दण्डित करती है जो किसी लोक-सेवक पर उस समय हमला करते हैं या बाधित करते हैं जब वह बलवे इत्यादि को दबा रहा हो। इस धारा का आशय एक लोक-सेवक के विरुद्ध प्रयुक्त बल-प्रयोग को निरोधित करना है ताकि वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सके।
- सिलाजित महतो, आई० एल० आर० 36 कल० 865.
अवयव– इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं
(1) एक विधि-विरुद्ध जमाव;
(2) विधि-विरुद्ध जमाव को बिखेरने का प्रयास किया गया हो;
(3) जमाव को बिखेरने का प्रयास एक लोक-सेवक द्वारा किया गया हो;
(4) लोक-सेवक द्वारा प्रयास उनके कर्तव्यों के निर्वहन में किया गया हो;
(5) अभियुक्त ने लोक-सेवक के विरुद्ध निम्नलिखित में से कोई एक कार्य किया हो
(क) हमला किया या हमला करने का प्रयास किया; या
(ख) बाधित किया या बाधित करने का प्रयास किया; या
(ग) आपराधिक बल का प्रयोग किया या इसका प्रयास किया। _
- बल्वा कराने के आशय से स्वैरिता से प्रकोपन देना–यदि बल्वा किया जाए-यदि बल्वा न किया जाए-जो कोई अवैध बात करने द्वारा किसी व्यक्ति को परिद्वेष से या स्वैरिता से प्रकोपित इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाएगा; यदि ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, और यदि बल्वे का अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
अवयव– इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं
(1) अभियुक्त ने एक अवैध कार्य किया; ।
(2) उसने ऐसे अवैध कार्य द्वारा प्रकोपित किया;
(3) उसने ऐसा अवैध कार्य परिद्वेष या स्वैरिता से किया;
(4) उसने ऐसा कार्य, इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुये कि ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप बलवे का अपराध किया जायेगा, किया :
(5) ऐसा बलवा ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप किया गया।
परिद्वेष से (Malignantly)-‘परिद्वेष से’ का अर्थ है, दुर्भावना से 73 परिद्वेष का अर्थ है, विषाक्त शत्रुता। अत: परिद्वेष से का तात्पर्य है, अत्यधिक शत्रुतापूर्ण रीति से। इसमें अन्तर्निहित है बिना किसी उचित कारण या वजह के साशय किया गया एक अनिष्टकारी या अवैध कार्य 74 परिद्वेष शब्द का तात्पर्य है घोर दराशय (Extreme malevolence), वैमनस्यता, हिंसात्मक शत्रुता अथवा हानिकारक प्रवृत्ति ।।
स्वैरिता से (Wantonly)-इस शब्द का तात्पर्य असावधानी से (recklessly), अविचार से (thoughtlessly) तथा उचित अथवा परिणाम को सोचे बिना से है। इसमें सावधानी रहित या रिष्टिकारक प्रवृत्ति निहित है। एक व्यक्ति एक वस्तु को स्वैरिता से उस समय करता हुआ कहा जाता है जब कि उस वस्तु को करने का कोई कारण नहीं है किन्तु वह उस वस्तु को करता है क्योंकि उसे आनन्द की अनुभूति होती है। यद्यपि वह जानता है कि अन्य लोगों के लिये इसका परिणाम घातक हो सकता है।
उदाहरण– इन्द्र सिंह/6 के बाद में अभियुक्त ने झंडारोहण समारोह के पश्चात् राष्ट्रीय ध्वज को रस्सी को खोल दिया तथा उसे पैरों तले रौंदने का प्रयास किया। यह निर्णय दिया गया कि अभियुक्त इस धारा
- काहानाजी आई० एल० आर०, (1893) 18 बाम्बे पृ० 775 में रानाडे जज का मत।
- व्रोमेज बनाम प्रोजर, (1825) 4 बी एण्ड सी० 247.
- कारी बनाम राज्य, ए० आई० आर० 1952 कल० 138.
- ए० आई० आर० 1962 म० प्र० 292.
के अन्तर्गत अपराधी है, क्योंकि अभियुक्त का कार्य जानबूझकर राष्ट्रीय ध्वज को अपमानित करना था और इस कार्य को उसने वहाँ उपस्थित व्यक्तियों की भावना एवं भावुकता को घायल करने के आशय से किया था। अब्दुल्ला77 के वाद में अभियुक्त ने एक खुले स्थान में जहाँ जनता उसे देख सकती थी, एक गाय का वध किया। यह एक ऐसा कार्य था जो असावधानी से, या अतिचार से, या उन लोगों की भावनाओं, जो ऐसे कार्यों को स्वीकार नहीं करते, ध्यान दिये बिना किया गया था। नि:सन्देह यह एक स्वैरितापूर्ण कार्य था किन्तु इस धारा के अन्तर्गत अपराध नहीं है, क्योंकि ऐसे वध को, विधि के किसी उपबन्ध के अभाव में जो गायों की हत्या पर प्रतिबन्ध लगाता हो, अवैध घोषित नहीं किया जा सकता।
153-क. धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना-(1) जो कोई
(क) बोले गये या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय या भाषाई या प्रादेशिक समूहों, जातियों या समुदायों के बीच असौहार्द्र अथवा शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवासस्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर संप्रवर्तित करेगा या संप्रवर्तित करने का प्रयत्न करेगा, अथवा ।
(ख) कोई ऐसा कार्य करेगा, जो विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है और जो लोक-प्रशान्ति में विघ्न डालता है या जिससे उसमें विघ्न पड़ना सम्भाव्य हो, अथवा ।
(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आन्दोलन, कवायद या अन्य वैसा ही क्रियाकलाप इस आशय से संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे या यह सम्भाव्य जानते हुए संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे, या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे अथवा ऐसे क्रियाकलाप में इस आशय से भाग लेगा कि किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए भाग लेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे। और ऐसे क्रियाकलाप से ऐसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्यों के बीच, चाहे किसी भी कारण से, भय या संत्रास या, असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है या उत्पन्न होनी सम्भाव्य है,
वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
पूजा के स्थान आदि में किया गया अपराध-(2) जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।
टिप्पणी
इस धारा का उद्देश्य अनेक वर्गों को आपसी गाली-गलौज या मिथ्यारोपण द्वारा संघर्ष करने से रोकना है। यह धारा उन व्यक्तियों को दण्डित करने का प्रयत्न करती है जो विभिन्न वर्गों के बीच घृणा या शत्रुता का संप्रवर्तन करते हैं या उसका प्रयास करते हैं। ऐसे किसी भी आशय का निष्कर्ष प्रयुक्त शब्दों की प्रकृति तथा 49 आई० सी० 776 (इला०).
उल्लिखित समुदाय पर उन शब्दों के प्रभाव एवं परिवादित कार्य (Complained of) को किये जाते समय दो वर्गों के बीच व्याप्त भावनाओं की स्थिति से, निकाला जा सकता है।
वर्ग-‘वर्ग’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। प्रजा का एक निश्चित एवं विनिर्दिष्ट (definite and ascertainable) वर्ग इस धारा के अन्तर्गत आयेगा, यद्यपि विभिन्न वर्ग जातीय या धार्मिक आधारों पर बँटे हो सकते हैं79 वर्ग शब्द से तात्पर्य है प्रजा का एक सुनिश्चित तथा सरलतापूर्वक सुनिश्चय ग्रुप जिसमें स्थायित्व एवं स्थिरता के तत्व परिलक्षित हों तथा जिसमें पर्याप्त व्यक्ति हों और उसका स्वरूप ऐसा हो ताकि उसे ‘वर्ग’ के रूप में संबोधित किया जा सके।80 व्यक्तियों का प्रत्येक समुदाय वर्ग के रूप में सम्बोधित नहीं किया जा सकता।81 भूस्वामियों या जमींदारों का एक सीमित समुदाय या ग्रुप एक वर्ग गठित नहीं कर सकता।82 विशम्भर दयाल त्रिपाठी बनाम इम्परर83 के वाद में अभियुक्त ने अपने भाषण के दौरान तालुकदारों तथा जमींदारों की, तथा साहूकारों और सरकारी अधिकारियों की तुलना काश्तकारों से किया और कहा कि सरकारी अधिकारी उनके उद्देश्यों के प्रति सहानुभूति नहीं दर्शाते हैं। अतः उसने काश्तकारों को आपस में संगठित होने के लिये उत्तेजित किया और कहा कि अब उनका राज आ रहा है जिसमें तालुकदारों तथा जमींदारों का कोई हिस्सा नहीं होगा तथा यह भी कहा कि तालुकदारों ने देश के साथ धोखा किया और उसे ब्रिटिश सरकार के हाथों सौंप दिया। यह कहा गया कि उसका भाषण इस धारा के अन्तर्गत आता है, क्योंकि उसने नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता अथवा घृणा की भावनायें सृजित करने का प्रयास किया।
वर्ग-घृणा को प्रोत्साहन देना (Promotion of class hatred)-इस धारा के अन्तर्गत अपराध का प्रमुख अवयव है विभिन्न वर्गों के बीच घृणा या वैमनस्य सम्प्रवर्तित करने का आशय। ऐसे आशय का निष्कर्ष प्रयुक्त शब्दों की प्रकृति तथा उल्लिखित वर्ग पर उनके प्रभाव और परिवादित कृत्य को करते समय दो समुदायों के बीच व्याप्त मनोभावों से भी निकाला जा सकता है।84 जब तक कि घृणा सम्प्रवर्तित करने का आशय था। तथा इसके द्वारा यह प्रभाव उत्पन्न होना सम्भाव्य था जो नियोजित साधन महत्वहीन है। उदाहरण के लिये एक साधू (Saint) या एक समुदाय के पैगम्बर (Prophet) के जीवन पर उपरोक्त प्रभाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से किया गया आक्रमण इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।85
इस धारा को लागू होने के लिये या तो घृणा की भावना सम्प्रवर्तित करने का आशय होना चाहिये या बोले गये अथवा लिखे गये शब्दों के अनुसरण में ऐसी भावना सम्प्रवर्तित होनी चाहिये, शत्रुता इत्यादि की ऐसी भावना को सम्प्रवर्तित करने के सफल और असफल दोनों ही प्रयास इस धारा के अन्तर्गत आते हैं। किन्तु ऐसी भावना सम्प्रवर्तित करने की केवल प्रवृत्ति जो प्रयास से कम है, इस धारा के अन्तर्गत नहीं आती है।86
हरनास दास87 के वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि लेखक अपने लेखन या वर्णन के ऐतिहासिक पक्ष पर दृढ़ रहता है, तो दूसरे समुदाय के सदस्यों के लिये यह चाहे क्यों न अग्राह्य हो, यह कोई अपराध नहीं होगा, किन्तु यदि वह ऐसी भाषा का प्रयोग करता है जिससे विद्वेष परिलक्षित होता है और अन्य दूसरे वर्गों की दृष्टि में उन्हें नीचा साबित कर उद्विग्न करता है तो वह शत्रुता तथा घृणा की भावना संप्रवर्तित करता है। यह इस धारा तथा धारा 295-क दोनों ही के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।
- सत्यरंजन बख्शी, ए० आई० आर० 1929 कल० 309 पृ० 314.
- विशम्भर दयाल त्रिपाठी बनाम इम्परर, ए० आई० आर० 1941 अवध 33 पृ० 41.
- मनीवेन लीलाधर कारा बनाम इम्परर, ए० आई० आर० 1933 बाम्बे 65 पृ० 69.
- नारायण वासुदेव फड़के, (1940) 42 बाम्बे एल० आर० 861.
- इम्परर बनाम बनमाली महाराना, ए० आई० आर० 1943 पटना 382 पृ० 385.
- ए० आई० आर० 1941 अवध 33.
- सत्य रंजन बख्शी, ए० आई० आर० 1929 कल० 309 ‘पृ० 314.
- कालीचरन, आई० एल० आर० 49 इला० 856.
- राम 1924 केरल 31.
- (1957) 1 इला० 528.
गोपाल88 के वाद में यह निर्णय दिया गया कि इस धारा के अन्तर्गत यह सिद्ध किया जाना आवश्यक नहीं है कि आपत्तिजनक वस्तु के फलस्वरूप ही विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा वस्तुत: उत्पन्न हुई। स्वयं लेखन के अतिरिक्त शत्रुता या घृणा सम्प्रवर्तित करने का आशय इस अपराध का आवश्यक अवयव नहीं। है। यह दर्शाना ही पर्याप्त है कि लेखन की भाषा शत्रुता या घृणा की भावना सम्प्रवर्तित करने वाले गुणों से युक्त है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कार्य के स्वाभाविक परिणामों को जानता है। यदि एक लेखन शत्रुता या घृणा की भावना सम्प्रवर्तित करने वाले गुणों से युक्त तो इस धारा के अन्तर्गत लगाये गये आरोप के लिये यह बचाव नहीं है कि लेखन में भूतकालीन घटनाओं का सत्य वर्णन है। या उसमें वर्णित तथ्य अच्छे प्रमाणों द्वारा समर्थित हैं। इतिहास के रास्ते पर पूर्णतः दृढ़ रहना इस धारा के अन्तर्गत लगाये गये आरोप के लिये स्वत: पूर्ण बचाव नहीं है।
बाबूराव पटेल बनाम स्टेट89 के मामले में अपीलकर्ता, ‘मदर इण्डिया’ नामक एक मासिक पत्रिका का सम्पादक, प्रकाशक और मुद्रक था। इस पत्रिका में छपे दो लेखों क्रमशः “A Tale of Two Communalism” तथा “Lingering Disgrace of History” हेतु उसे धारा 153-क के अन्तर्गत अभियोजित किया गया था। अपील में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि धारा 153-क की उपधारा (1) (क) न केवल धर्म के आधार पर विभिन्न धार्मिक समूहों तथा समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा अथवा वैमनस्य की भावना के संप्रवर्तन को दण्डनीय बनाती है, वरन् यह ऐसे संप्रवर्तन को मूलवंश, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधार पर दण्डनीय बनाती है। यदि किसी मासिक पत्रिका में राजनैतिक शोध प्रबन्ध अथवा ऐतिहासिक सत्य के ताने-बाने में ऐसे लेख प्रकाशित किये जाते हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों पर असहिष्णु, रक्त-पिपासु तथा बलात्कार, लुट, हिंसा और हत्या की। परम्पराओं से युक्त समुदाय होने की प्रताड़ना प्रदान करता है, तो यह माना जायेगा कि ऐसा लेख जो समुदायों के बीच समुदाय के आधार पर दुश्मनी, घृणा तथा वैमनस्य की भावना का सम्प्रवर्तन करने वाला है और ऐसे लेख का लेखक, प्रकाशक तथा मुद्रक धारा 153-क के अन्तर्गत दोषसिद्धि के योग्य है।
बिलाल अहमद कालू बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य90 के मामले में यह अभिनित किया गया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153-क तथा धारा 505(2) में धर्म, प्रजाति (racial), शाखा, क्षेत्र, जाति अथवा समुदाय के आधार पर विभिन्न वर्गों में शत्रुता की भावना, घृणा अथवा दुर्भावना को बढ़ावा देना उभयनिष्ठ विशेषता है। अतएव यह आवश्यक है कि कम से कम दो ऐसे वर्ग या सम्प्रदाय आवेष्ठित हों। मात्र एक सम्प्रदाय की भावनाओं को बिना किसी दूसरे सम्प्रदाय या वर्ग या सन्दर्भ किये उकसाना दो में से किसी भी धारा को आकर्षित नहीं करता।
आशय का प्रमाण (Proof of Intention)-शिवशर्मा बनाम इम्परर91 के वाद में अभियुक्त ने अनेक ऐसे खण्डों (Passages) को एकत्रित किया था जो अपने यथार्थ रूप में पूर्णतः सत्य एवं हानिरहित थे किन्तु जब उन्हें अलग-अलग कर दिया जाता था तो वे आपत्तिजनक एवं अश्लील प्रतीत होते थे। यह निर्णय दिया गया कि अभियुक्त का आशय पैगम्बर तथा उनके धर्म की खिल्ली उड़ाना और हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच घृणा एवं शत्रुता की भावना सम्प्रवर्तित करना था।
अभियुक्त के आशय को सुनिश्चित करने के लिये आपत्तिजनक सम्पूर्ण लेख को पढ़ा जाना चाहिये तथा उस प्रकाशन की तत्कालीन परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिये 92
किन्हीं दो वर्गों की उचित आलोचना जिसका आशय उनकी गलतियों के प्रति उन्हें सचेत करना है, इस धारा के अन्तर्गत अपराध नहीं है चाहे जो विचार इस आलोचना के बारे में दोनों वर्ग रखते हों। किन्तु ऐसी आलोचना सत्यनिष्ठ एवं द्वेष रहित होनी चाहिये। इसका आशय सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करना होना
- (1969) 72 बाम्बे एल० आर० 87.
- (1980) 2 एस० सी० 402.
- (1997) क्रि० लॉ ज० 4091 (एस० सी०).
- ए० आई० आर० 1941 अवध 310.
- गुलाम सरवर, ए० आई० आर० 1965 पटना 393.
चाहिये न कि घृणा। यहाँ भी विचारों की प्रकृति का परीक्षण उसका आशय है जिसे अन्य मामले समझा जाता है।93
महत्वपूर्ण वाद-शिवकुमार मिश्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के वाद में अभियुक्त पर धारा क के अन्तर्गत आरोप लगाया गया था, क्योंकि उसने एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें लोगों ने अप किया था कि वे चुनाव का बहिष्कार करें तथा नक्सलाइट क्रियाकलापों को बढ़ावा दें और इस पंजीपतियों एवं मजदूरों के बीच तथा उनके जो प्रजातन्त्रीय पद्धति और उनके जो निरंकुश शासन में विश्वास करते हैं, के बीच असामंजस्य उत्पन्न करें। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अभिनित किया कि धारा 153-क इस मामले में लागू नहीं होती, क्योंकि अभिकथित लेख में अभियुक्त ने ऐसा कुछ नहीं कहा था जिससे विभिन्न धार्मिक, जातीय या भाषाई वर्गों या जातियों या समुदायों के बीच धर्म, वर्ग, भाषा, जाति या समुदाय के आधार पर ईष्र्या या विद्वेष की भावना उत्पन्न हो। उच्च न्यायालय ने प्रेक्षित किया कि
“आवेदक ने अपने लेख में जिन विचारों को व्यक्त किया है वे पूर्णतया राजनीतिक प्रकृति के हैं। किसी व्यक्ति को, फिर भी, यह कहने का प्रलोभन हो सकता है कि इस लेख में गरीब वर्ग के लोगों को पूंजीवादी वर्ग के विरुद्ध बगावत करने का आवाहन किया है। किन्तु बगावत के लिये ऐसा आवाहन इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं है।”
95[ 153-कक. किसी जुलूस में जानबूझकर आयुध ले जाने या किसी सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण का आयुध सहित संचालन या आयोजन करना या उसमें भाग लेना- जो कोई किसी सार्वजनिक स्थान में, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 144-क के अधीन जारी की गई किसी लोक सूचना या किये गये किसी आदेश के उल्लंघन में किसी जुलूस में जानबूझकर आयुध ले जाता है या सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण का आयुध सहित जानबूझकर संचालन, आयोजन करता है। और उसमें भाग लेता है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, और जुर्माने, जो दो हजार रुपये तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण– आयुध” से अपराध या बचाव के लिये हथियार के रूप में डिजाइन की गई या अपनाई गई किसी भी प्रकार की कोई वस्तु अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अग्निशस्त्र, नुकीली धार वाला हथियार, लाठी, डंडा और छड़ी भी है।] |
153-ख. राष्ट्रीय अखण्डता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले लांछन, प्राख्यान-(1) जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा,
(क) ऐसा कोई लांछन लगाएगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्ति इस कारण से कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति का समुदाय के सदस्य हैं, विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा नहीं रख सकते या भारत की प्रभुता और
अखण्डता की मर्यादा नहीं बनाए रख सकते, अथवा
(ख) यह प्राख्यान करेगा, परामर्श देगा, सलाह देगा, प्रचार करेगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्तियों को इस कारण कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, भारत के नागरिक के रूप में उनके अधिकार न दिए जाएं या उन्हें उनसे वंचित किया जाए, अथवा ।
(ग) किसी वर्ग के व्यक्तियों की बाध्यता के सम्बन्ध में इस कारण कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य, कोई प्राख्यान करेगा, परामर्श देगा, | अभिवाक् या अपील करेगा अथवा प्रकाशित करेगा, और ऐसे प्राख्यान, परामर्श, अभिवाक् या अपील से ऐसे सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के बीच असामंजस्य अथवा शत्रुता या घृणा या वैमनस्य की भावनाएं उत्पन्न होती हैं या उत्पन्न होनी सम्भाव्य हैं,
- जयचन्द्र सरकार, आई० एल० आर० 38 कल० 214.
- 1978 क्रि० लॉ ज० 701.
- दण्ड प्रक्रिया (संशोधन) अधिनियम, 2005(2005 का 25) की धारा 44 द्वारा अन्त:स्थापित.
वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, अथवा दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
(2) जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट कोई अपराध किसी उपासना-स्थल में या धार्मिक उपासना अथवा धार्मिक कर्म करने में लगे हुए किसी जमाव में करेगा वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो । सकेगा, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
टिप्पणी
यह धारा इस संहिता की धाराओं 153-क तथा 295-क में वर्णित उपबन्धों को पूर्ण करने के उद्देश्य से जोड़ी गयी है। विद्यमान धारायें लोगों की आपत्तिजनक कार्यवाहियों को दण्डित करती हैं किन्तु यह धारा एक संस्था को उसके आपत्तिजनक उद्देश्यों के लिये दण्डनीय बनाती है। यह धारा ऐसी संस्थाओं की आपत्तिजनक कार्यवाहियों को समाप्त करने का प्रयास करती है।
यह धारा बहुत विस्तृत भाषा में वर्णित है तथा यह किसी वर्ग के व्यक्तियों के विरुद्ध बोले गये या लिखे गये शब्दों द्वारा यह संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा लगाये गये दोषारोपणों या उनके प्रकाशन को दण्डनीय बनाती है। इस धारा के अन्तर्गत किसी को दायित्वाधीन ठहराने के लिये उसकी सच्ची श्रद्धा तथा आशय महत्व नहीं रखते। किसी भाषण अथवा प्रलेख के प्रभाव को निर्धारित करते समय न्यायालय के लिये यह आवश्यक है कि वह सम्पूर्ण भाषण अथवा प्रलेख पर ध्यान दे न कि किसी विशिष्ट वाक्य या लोकोक्ति पर 96
- उस भूमि का स्वामी या अधिभोगी, जिस पर विधि-विरुद्ध जमाव किया गया है- जब कभी कोई विधिविरुद्ध जमाव या बल्वा हो, तब जिस भूमि पर ऐसा विधिविरुद्ध जमाव हो या ऐसा बल्वा किया जाए, उसका स्वामी या अधिभोगी और ऐसी भूमि में हित रखने वाला या हित रखने का दावा करने वाला व्यक्ति एक हजार रुपए से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबन्धक यह जानते हुए कि ऐसा अपराध किया जा रहा है या किया जा चुका है या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे अपराध का किया जाना सम्भाव्य है, उस बात को अपनी शक्ति-भर शीघ्रतम सूचना निकटतम पुलिस थाने के प्रधान आफिसर को न दे या न दें और उस दशा में, जिसमें कि उसे या उन्हें यह विश्वास करने का कारण हो कि यह लगभग किया ही जाने वाला है, अपनी शक्ति भर सब विधिपूर्ण साधनों का उपयोग उसका निवारण करने के लिए नहीं करता या करते और उसके हो जाने पर अपनी शक्तिभर सब विधिपूर्ण साधनों का उस विधिविरुद्ध जमाव को बिखरने या बल्वे को दबाने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।
टिप्पणी
यह धारा आपराधिक विधि के सिद्धान्त ‘वरिष्ठ दायित्वाधीन हैं’ (Respondent superior) का विस्तृत रूप है। यह धारा कुछ मामलों में मालिक (Principal) को उसके नौकर (Servant) द्वारा किये गये कार्य या लोप के लिये उत्तरदायी ठहराती है। किसी भूस्वामी या उसके अधिभोगी का दायित्व बलवे के उसके ज्ञान अथवा उसके अभिकर्ता के कार्यों अथवा आशयों के ज्ञान पर निर्भर नहीं करता।97 विधि द्वारा उन पर कुछ दायित्वों के निर्वहन की जिम्मेदारी सौंपी गई और उनसे अपेक्षा की जाती है कि भूस्वामी होने के कारण वे उस दायित्व को पूरा करें। उनका यह दायित्व है कि भूस्वामी होने के कारण उन्हें अपनी भूमि पर लोगों के एकत्रीकरण को प्रतिषिद्ध करने तथा असंयमित भीड़ को दबाने या बिखेरने, यदि वे ऐसा सोचते हैं, कि शक्ति प्राप्त है। इस धारा के अन्तर्गत तीन प्रकार के लोगों का दायित्वाधीन बनाया गया है और वे हैं-(1) भूस्वामी, (2) अधिभोगी तथा (3) उस भूमि, जिस पर विधिविरुद्ध जमाव या बलवा किया गया है, में हित रखने वाला या हित का दावा करने वाला व्यक्ति।
- उस व्यक्ति का दायित्व, जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है- जब कभी किसी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या उसकी ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय
- विश्वम्भर दयाल त्रिपाठी बनाम इम्परर, ए० आई० आर० 1941 अवध 33 पृ० 41. 7.
- नृपेन्द्र भूषन राय बनाम गोविन्द बन्धु मजूमदार, ए० आई० आर० 1924 कल० 1018 पृ० 1022.
में ऐसा बल्वा हो. स्वामी या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि से या बल्वे को पैदा करने वाले किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पाचक हो, तब ऐसा व्यक्ति, जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबन्धक इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसा बल्वा किया जाना सम्भाव्य था या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था, वह जमाव किया जाना सम्भाव्य था, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे जमाव या बल्वे का किया जाना निवारित करने के लिए और उसे दबाने और बिखेरने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।
टिप्पणी
धारा 154 के अन्तर्गत भूस्वामी दण्डनीय है यदि उसकी भूमि पर बलवा या विधिविरुद्ध जमाव किया जाता है। धारा 155 केवल बलवा किये जाने से सम्बन्धित है, विधि-विरुद्ध जमाव से नहीं। जबकि बलवा भूस्वामी के या भूमि में हित का दावा करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के फायदे के लिये किया जाता है तो यह धारा लागू होगी। इस धारा के अन्तर्गत भारी दण्ड का विधान किया गया है क्योंकि बलवा एक व्यक्ति की भूमि पर नहीं होता है अपितु उसके लाभ के लिये भी होता है, इस धारा के अन्तर्गत तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि बलवा यथार्थतः कारित नहीं होता।
- उस स्वामी या अधिभोगी के अभिकर्ता का दायित्व, जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है-जब कभी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या ऐसे व्यक्ति की ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय में ऐसा बल्वा हो, स्वामी हो या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि में या बल्वे दो पैदा करने वाले किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पा चुका हो,
तब उस व्यक्ति का अभिकर्ता या प्रबन्धक जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि ऐसा अभिकर्ता या प्रबन्धक यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे बल्वे का किया जाना सम्भाव्य था, या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था उसका किया जाना सम्भाव्य था, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे बल्वे या जमाव का किया जाना निवारित करने के लिए और उसको दबाने और बिखरने के लिए उपयोग नहीं करता या करते ।।
टिप्पणी
यह धारा भूस्वामी अथवा अधिभोगी के अभिकर्ता या प्रबन्धक को ऐसे किसी भी अपराध के लिये दण्डित करती है जिसके लिये भूस्वामी या अधिभोगी संहिता की धाराओं 154 तथा 155 के अन्तर्गत दण्डनीय होगा। किन्तु अभिकर्ता या प्रबन्धक तभी दण्डनीय होगा जब तक ऐसे बलवे या जमाव को निवारित करने तथा उसे दबाने और बिखेरने में अपनी शक्ति पर सभी विधिपूर्ण साधनों का उपयोग करने में असफल रहता है।
- विधिविरुद्ध जमाव के लिए भाड़े पर लाए गए व्यक्तियों को संश्रय देना- जो कोई अपने अधिभोग या भारसाधन, या नियंत्रण के अधीन किसी गृह या परिसर में किन्हीं व्यक्तियों को, यह जानते हए कि वे व्यक्ति विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या सदस्य बनने के लिए भाड़े पर लाए गए, वचनबद्ध या नियोजित किए गए हैं या भाड़े पर लाए जाने, वचनबद्ध या नियोजित किए जाने वाले हैं, संश्रय देगा, आने देगा या सम्मिलित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह माह तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
धारा 157 विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने के लिये व्यक्तियों का भाड़े पर लेना दण्डनीय बनाती | है, यह धारा विधिविरुद्ध जमाव के लिये भाड़े पर लिये गये या भाडे पर लिये जाने को सम्भाव्य जानते हुये श्रय देने को स्वीकार करने या एकत्रित करने से सम्बन्धित है। संश्रयदाता को तथ्य का ज्ञान होना आवश्यक है कि संश्रय दिये गये व्यक्ति विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने के लिये भाड़े पर लिये गये हैं या लिये जाने वाले हैं।
- विधि-विरुद्ध जमाव या बल्वे में भाग लेने के लिए भाड़े पर जाना- जो कोई धारा 141 में विनिर्दिष्ट कार्यों में से किसी को करने के लिए या करने में सहायता देने के लिए वचनबद्ध किया या भाड़े पर लिया जाएगा या भाड़े पर लिये जाने या वचनबद्ध किए जाने के लिए अपनी प्रस्थापना करेगा या प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
या सशस्त्र चलना-तथा जो कोई पूर्वोक्त प्रकार से वचनबद्ध होने या भाडे पर लिए जाने पर, किसी घातक आयुध से या ऐसी किसी चीज से, जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी सम्भाव्य है, सज्जित होकर चलेगा या सज्जित होकर चलने के लिए वचनबद्ध होगा या अपनी प्रस्थापना करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा विधिविरुद्ध जमाव या बलवे में भाग लेने के लिये भाड़े पर जाने को दण्डनीय बनाती है। यह धारा दो भागों में विभाजित है। प्रत्येक भाग भाड़े पर लिये गये व्यक्ति द्वारा धारित आयुध के आधार पर अलग किया जा सकता है। यदि भाड़े पर लिया गया व्यक्ति घातक आयुधों से सज्जित है तो वह अधिक दण्ड का भागी है।
- दंगा-जब कि दो या अधिक व्यक्ति लोक-स्थान में लड़कर लोक शांति में विघ्न डालते हैं, तब यह कहा जाता है कि वे ‘दंगा करते हैं।
टिप्पणी
‘
दंगा”– दंगा (Affray) शब्द फ्रेन्च भाषा के “affraier” शब्द से बना है जिसका अर्थ है. आतंकित करना। विधिक भावबोध के अन्तर्गत इसका अर्थ जनता को भयभीत करने के लोक अपराध से है। इस अपराध का तत्व है-जनता को आतंकित करना। ब्लैकस्टन के अनुसार किसी लोक स्थान में हिज मैजेस्टी की प्रजा को आतंकित करने के उद्देश्य से दो या अधिक व्यक्तियों के बीच एक लड़ाई इंगलिश विधि के अन्तर्गत दंगा है।
अवयव-इस अपराध के निम्नलिखित अवयव हैं
(1) दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच लडाई:
(2) लड़ाई किसी सार्वजनिक स्थान में हो;
(3) उनकी लड़ाई से लोकशांति को व्यवधान पहुँचे।
- दो या दो से अधिक व्यक्ति- दंगा के अपराध के लिये कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। उनकी संख्या इससे अधिक भी हो सकती है।
- सार्वजनिक स्थान पर लड़ना-दंगा का अपराध हेतु आवश्यक है कि लड़ाई किसी सार्वजनिक या लोकस्थान में हो। सार्वजनिक स्थान (Public place) वह स्थान है जहाँ जनता जाती है, यह महत्वपूर्ण नहीं है कि उसे वहाँ जाने का अधिकार है या नहीं। यदि जनता एक स्थान पर बिना किसी आज्ञा या बाधा के जाती है तो वह सार्वजनिक स्थान है यद्यपि सही अर्थों में वह अतिचार (trespass) कर रही हो।98 क्या कोई स्थान सार्वजनिक है या नहीं, निश्चयतः जनता के उस स्थान पर जाने के अधिकार पर निर्भर नहीं करता। यद्यपि एक स्थान जहाँ जनता साधिकार जा सकती है सार्वजनिक स्थान माना जाना चाहिये। वह स्थान जहाँ जनता जाने की अभ्यस्त है, इस अपराध के प्रयोजन हेतु लोक-स्थान या सार्वजनिक स्थान माना जाता है।
- बेलार्ड, 14 क्यू० बी० डी० 63 पृ० 65 में कोलरिज सी० जे० का मत.
उदाहरण के लिये, रेलवे प्लेटफार्म,99 थिएटर हाल,1, एक लोक वाहन (omnibus)2, सार्वजनिक मूत्रालय, रेलवे स्टेशन का मालगोदाम, बाजार, लोक नौका तथा मुसाफिर गाड़ी आदि सभी सार्वजनिक स्थान हैं। अनेक प्रदर्शन जन सामान्य की वैयक्तिक सम्पत्ति पर दिखाये जाते हैं फिर भी उन स्थानों पर लोग अक्सर आते-जाते रहते हैं। वे सार्वजनिक स्थान हैं क्योंकि लोग वहाँ जाते हैं। एक लोक-उद्यान हर वक्त लोक-स्थान नहीं है। वह तभी लोक-स्थान है जब जनता के लिये खुला रहता है। इसी प्रकार न्यायालय, अस्पताल (Hospital), चर्च, मस्जिद तथा मन्दिर6 सभी उस वक्त सार्वजनिक स्थान हैं जबकि लोग उसमें जाने के लिये प्राधिकृत हैं। अत: वैयक्तिक या सार्वजनिक स्थान की प्रकृति समय-समय पर बदलती रहती है। अत: यह तथ्य न्यायालय के ध्यान में होना चाहिये कि क्या तत्समय प्रश्नगत स्थान ऐसा था जहाँ जनता नि:सन्देह थी। | इन परीक्षणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि रेलवे प्लेटफार्म उस समय जबकि मालगाड़ी के अतिरिक्त कोई गाड़ी नहीं आने वाली है, सार्वजनिक स्थान नहीं है।
इस अपराध को गठित करने के लिये सार्वजनिक स्थान में लड़ाई आवश्यक है। केवल अश्लील, धमकी भरे अथवा उग्र शब्दों का प्रयोग; चाहे कितना ही हिंस्र क्यों न हो, आघात के बिना लड़ाई करने के तुल्य नहीं है। लड़ाई करने से तात्पर्य है हाथापाई जिसमें थोड़े बल का प्रयोग होता है। यह प्रभुत्व के लिये संघर्ष या मुकाबले को दर्शाता है। जब एक पक्ष आक्रामक है तथा दूसरा निष्क्रिय हो तो लड़ाई नहीं होती। जब एक पक्ष के सदस्य दूसरे पक्ष के सदस्यों को पीटते हैं तथा दूसरे पक्ष के सदस्य इसका प्रतिरोध नहीं करते तो वहाँ लड़ाई नहीं होती, फलतः इसे दंगा नहीं कहा जा सकता।
जगन्नाथ साह10 के वाद में दो भाई एक कस्बे की सड़क पर आपस में झगड़ा कर रहे थे तथा एक दूसरे को गालियाँ बक रहे थे। वहाँ काफी भीड़ एकत्रित हो गयी थी तथा यातायात बिल्कुल बन्द हो गया था किन्तु आघातों का आदान-प्रदान नहीं हुआ था। यह निर्णय दिया गया कि वास्तविक मारपीट के अभाव में दंगा नहीं कारित हो सकता। |
बाबूराम11 के वाद में दो व्यक्तियों ने एक तीसरे व्यक्ति पर जो मात्र अपनी रक्षा कर रहा था, आक्रमण कर उसे दबोच लिया। यह निर्णय दिया गया कि वे लोग इस अपराध के दोषी हैं क्योंकि सार्वजनिक स्थान में लड़ाई हुई थी और यह तथ्य महत्वहीन है कि तीसरा व्यक्ति केवल अपनी सुरक्षा हेतु वैयक्तिक प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर रहा था।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी यूनियन अपना वार्षिकोत्सव मनाने का निश्चय करती है और इस प्रयोजन हेतु एक प्राइवेट हाल किराये पर लेती है। हाल में प्रवेश केवल टिकट के माध्यम से होता है। टिकट सदस्यों, मित्रों तथा अन्य व्यक्तियों को जिन्हें आयोजक इस प्रयोजन के लिये उपयुक्त समझते थे, मुफ्त में वितरित किया गया। कुछ टिकट कुलपति द्वारा वितरित किये जाने के लिये उन्हें भी दिये गये थे। इसके अतिरिक्त टिकट किसी अन्य माध्यम से नहीं प्राप्त किया जा सकता था। लगभग 20 व्यक्तियों ने जो एक नृत्य पार्टी के सदस्य थे, अपना एक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। अनेक युवकों ने, जिनमें अभियुक्त भी एक था, नृत्य के समय हाल में उपद्रव मचाया। हाल में मार-पीट हुई जिससे कुछ क्षति भी हुई। उन पर अन्य लोगों के साथ मारपीट करने
- डेविस, 1857, 26 एल० जे० एक्स 393. |
- इन रे मुथुस्वामी अय्यर, ए० आई० आर० 1937 मद्रास 286.
- होम्स, 1853, 3 सी० एण्ड के० 360.
- हैरिस, 1871 एल० आर० 1 सी० सी० 282.
- कोवासजी, आई० एल० आर० 26 बाम्बे 609, 1884.
- वेलार्ड, 1884, 14 क्यू० बी० डी० 63 में ग्रोव जे० का मत.
- 2 वेयर 71.
- वेलार्ड, 1884, 14 क्यू० बी० डी० 63 में कोलरिज सी० जे० का मत |
- मदन मोहन, 1833 ए० डब्ल्यू० एन० 197.
- जोधे बनाम राज्य, ए० आई० आर० 1952 इला० 788.
- 1937 ओ० डब्ल्यू० एन० 37.
- 1930 आई० एल० आर० 53 इला० 229.
तथा दंगा करने का आरोप लगाया गया। इस प्रकरण में दंगा करने का आरोप स्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि प्राइवेट हाल को पब्लिक स्थल में परिवर्तित कर दिया गया था और हाल में मारपीट करके उन लोगों ने लोक-शांति को भंग किया था।
लोकशान्ति को भंग करे- दंगा के अपराध को गठित करने के लिये सार्वजनिक स्थान में केवल लड़ाई ही पर्याप्त नहीं है अपितु ऐसी लड़ाई लोकशान्ति को व्यवधान पहुँचाये।12 लड़ाई सामान्य उत्तेजना एवं व्यवधान उत्पन्न करे। मात्र लोक असुविधा कारित करना पर्याप्त नहीं है।13 हरिसिंह गौड़14 के अनुसार इसका जाना पहचाना उदाहरण है किसी लोक रास्ते में मदोन्मत्त विवाद (Drunken brawl) जिसमें दो या अधिक व्यक्ति एक दूसरे पर चिल्लाते हैं तथा एक दूसरे को पकड़कर खींचते हैं।
दंगा और बलवा में अन्तर-दंगा और बलवा में निम्नलिखित अन्तर हैं
(1) दंगा एक सार्वजनिक स्थान में किया जा सकता है जबकि बलवा किसी भी स्थान में हो सकता है। अर्थात् सार्वजनिक और निजी दोनों ही स्थान पर। |
(2) दंगा दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है जबकि बलवा के लिये कम से कम पाँच व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।
(3) बलवाकारी वे व्यक्ति होते हैं जो सर्वप्रथम विधिविरुद्ध जमाव गठित करते हैं, किसी दंगा करने वाले व्यक्ति के लिये यह आवश्यक नहीं है।
दंगा और प्रहार (Assault) में अंतर-दंगा और प्रहार में निम्नलिखित अन्तर हैं
(1) दंगा ‘सार्वजनिक स्थान में किया जाता है जबकि प्रहार कहीं भी किया जा सकता है।
(2) दंगा लोक शान्ति (Public peace) के विरुद्ध अपराध माना जाता है, प्रहार एक व्यक्ति के शरीर के विरुद्ध अपराध है।
(3) दंगा, एक सार्वजनिक स्थान में विशिष्ट प्रकार से किये गये प्रहार से कुछ भी अधिक नहीं है और इसे दंगा इसलिये कहा जाता है, क्योंकि लोग इससे आतंकित हो जाते हैं। प्रहार में वास्तविक मारपीट या बल-प्रयोग नहीं होता केवल संकेतों या तैयारियों का इस प्रकार प्रयोग होता है जिससे उपस्थित व्यक्तियों के मन में यह आशंका उत्पन्न हो जाती है कि आपराधिक बल का प्रयोग होने वाला है।
160, दंगा करने के लिए दण्ड-जो कोई दंगा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
- बाबू राम, 1930 आई० एल० आर० 53 इला० 229.
- पोदन, 1962 1 क्रि० लॉ ज० 339.
गौड़, एच० एस० इण्डियन पेनल कोड, (9वाँ संस्करण), भाग 2, पृ० 1035.
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