Indian Penal Code 1860 of Offences Against Public Tranquility LLB Notes
Indian Penal Code 1860 of Offences Against Public Tranquility LLB Notes:- LLB 1st Year / 1st Semester Notes Sites
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अध्याय 8
लोक-प्रशांति के विरुद्ध अपराधों के विषय में
(OF OFFENCES AGAINST THE PUBLIC TRANQUILLITY)
- विधिविरुद्ध जमाव-पाँच या अधिक व्यक्तियों का जमाव ‘विधिविरुद्ध जमाव’ कहा जाता है, यदि उन व्यक्तियों का, जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उद्देश्य हो
पहला-केन्द्रीय सरकार को, या किसी राज्य सरकार को, संसद को, या किसी राज्य के विधान मण्डल को, या किसी लोक सेवक को जब कि वह ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल द्वारा, या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना, अथवा
दूसरा-किसी विधि के, या किसी वैध आदेशिका के निष्पादन का प्रतिरोध करना, अथवा
तीसरा-किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का करना, अथवा
चौथा–किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी सम्पत्ति का कब्जा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से, या जल का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से, जिसका वह कब्जा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमित अधिकार को प्रवर्तित कराना, अथवा ।
पांचवा-आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी व्यक्ति को वह करने के लिए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए, जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो, विवश करना।
स्पष्टीकरण– कोई जमाव, जो इकट्ठा होते समय विधिविरुद्ध नहीं था, बाद को विधिविरुद्ध जमाव हो सकेगा।
टिप्पणी
धारा 141 का उद्देश्य पाँच या अधिक व्यक्तियों द्वारा इसमें वर्णित किसी एक कार्य को करने के लिये आपराधिक बल के प्रयोग को रोकना है। प्राचीनकाल में व्यक्तियों का जमाव मात्र ही समाज के लिये खतरनाक माना जाता था, अत: उसे अवैध माना जाता था। किन्तु बाद में लोकतन्त्रीय समाजों के विकास के साथ व्यक्तियों का जमाव आवश्यक हो गया। व्यक्तियों का जमाव यदि वैध प्रयोजन के लिये है तो उसे दण्डित नहीं किया जा सकता, मात्र जमाव तभी दण्डनीय होता है जब अवैध प्रयोजन के लिये हो। अतः उन अवैध उद्देश्यों को जो किसी जमाव को अवैध बनाते हैं, परिभाषित करना आवश्यक हो जाता है जब अवैध जमाव से जमाव (assembly) के उद्देश्य को अन्तरित कर दी जाती है। इस धारा के अन्तर्गत अपराध होने के लिये आवश्यक है, अपराध कारित करने के प्रयोजन से कई व्यक्तियों का एक होना तथा प्रयोजन के लिये मतैक्य (Consensus) दाण्डिक अपराध से भिन्न स्वयं एक अपराध है, जिसे करने के लिये वे सहमत होते हैं 2
अवयव-एक विधि-विरुद्ध जमाव (unlawful assembly) 5 या अधिक व्यक्तियों का एक जमाव | है, यदि उनका सामान्य उद्देश्य :
- प्राणबन्धु, मिश्र, आई० एल० आर० 1952 कटक 219.
- मत्तीवेंकन्ना, (1922) 46 मद्रास 257.
(1) आपराधिक बल के प्रयोग द्वारा निम्नलिखित में से किसी एक को आतंकित करना है :
(क) केन्द्रीय सरकार, या
(ख) राज्य सरकार, या
(ग) संसद, या
(घ) किसी लोक-सेवक को
(2) किसी विधि या विधिक आदेश के निष्पादन का प्रतिरोध करना,
(3) रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध करना,
(4) आपराधिक बल द्वारा
(क) किसी सम्पत्ति का कब्जा लेना, या
(ख) किसी व्यक्ति को अमूर्त (Incorporeal right) से वंचित करना, या
(ग) किसी अधिकार या अनुमानित अधिकार को प्रवर्तित करना।
(5) किसी व्यक्ति को आपराधिक बल द्वारा
(क) वह कार्य करने के लिये जिसे करने के लिये वह वैध रूपेण आबद्ध नहीं है, या
(ख) उस कार्य का लोप करने के लिये जिसे करने के लिये वह वैधरूपेण हकदार है, विवश करना है।
पाँच या अधिक व्यक्ति-विधि-विरुद्ध जमाव गठित करने के लिये चार से अधिक अर्थात् 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि वे दूसरों के सामान्य आशय में भी भागीदार हों। जहाँ 5 से अधिक व्यक्तियों को बलवा (Rioting) के लिये अभियोजित किया जाता है किन्तु उनमें से कुछ को उन्मुक्त कर दिया जाता है तथा जिनको सजा दी जाती है उसकी संख्या 5 से कम है तो सजा अवैध होगी।
सामान्य उद्देश्य (Common object)-विधि-विरुद्ध जमाव का सार है, जमाव को निर्मित करने वाले व्यक्तियों का सामान्य उद्देश्य। जमाव को गठित करने वाले व्यक्तियों का उद्देश्य सभी के लिये सामान्य होना चाहिये अर्थात् सभी को उसका ज्ञान होना चाहिये और सभी उसके लिये सहमत हों। जमाव का उद्देश्य इस धारा में वर्णित उद्देश्यों में से एक होना चाहिये। किसी विधि-विरुद्ध जमाव में उपस्थिति मात्र किसी व्यक्ति को विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य नहीं बना देती जब तक यह न साबित हो जाये कि उसने कुछ किया या करने से लोप किया जो उसे विधि-विरुद्ध जमाव का सदस्य बना देता है या यह जानते हुये कि जमाव विधि-विरुद्ध है वह साशय उस जमघट का सदस्य बनता है या उसका सदस्य बना रहता है । पाँच या अधिक व्यक्तियों का जमाव विधि-विरुद्ध जमाव नहीं कहा जा सकता यदि जमाव का उद्देश्य विधि द्वारा निर्धारित परिसीमा के अन्तर्गत बल प्रयोग द्वारा सम्पत्ति की रक्षा करना है।
खण्ड 1- प्रथम अवैध उद्देश्य आपराधिक बल द्वारा सरकार, संसद या लोक-सेवक इत्यादि को आतंकित करना है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को तब आतंकित करता हुआ कहा जाता है जब वह उसे भय, वरिष्ठ प्रभाव या धौंस दिखाकर अवरोधित करता है। वरिष्ठ प्रभाव द्वारा आतंकित करना दाण्डिक नहीं है और न ही अवैध भय द्वारा आतंकित करना जब तक कि यह आपराधिक बल के प्रदर्शन से युक्त न हो। किन्तु जहाँ पर किसी व्यक्ति को वह कार्य करने के लिये आतंकित किया जाये जिसे करने का उसका विचार नही है तथा
- करतार सिंह, ए० आई० आर० 1961 सु० को 1787.
- बालादीन, ए० आई० आर० 1956 सु० को० 181; मसाल्ती, ए० आई० आर० 1965 सु० को० 202; शम्भर, ए० आई० आर० 1971 सु० को० 2381.
- माथु पाण्डेय, (1970) 1 एस० सी० आर० 358.
उस कार्य को करने से रोका जाये जिसे करने का वह विचार रखना है तो वह व्यक्ति आतंकित किया। कहा जायेगा और जहाँ पर यह आतंक बल प्रदर्शन द्वारा लाया गया हो तो वह आपराधिक बल द्वारा आतं किया हुआ कहा जायेगा। इस धारा को लागू होने के लिये यह आवश्यक है कि जमाव में आतंकित करने सामान्य उद्देश्य होना चाहिये और यही पर्याप्त नहीं है कि जमाव आतंकित करने का प्रभाव रखता था।
खण्ड 2– इस खण्ड के अतर्गत प्रतिरोधित कार्य का वैध होना आवश्यक है। जहाँ अनेक व्यक्तियों मकान की तलाशी के प्रयास को प्रतिरोधित किया गया तथा तलाशी ऐसे प्राधिकारियों द्वारा की जा रही । जिन्हें तलाशी लेने का अधिकार नहीं था, प्रतिरोध को वैध माना गया तथा जो लोग प्रतिरोध उत्पन्न कर रहे । उन्हें इस धारा के अन्तर्गत अपराध का दोषी नहीं माना गया 6 किसी विधि का निष्पादन (Execution) से तात्पर्य है विधि के उपबन्धों को संपादित या कार्यान्वित करना या विधि द्वारा प्रमाणित किसी कार्य का प्रवर्तन। प्रक्रिया (Process) का अर्थ है एक कार्यवाही तथा ‘‘एक वैध प्रक्रिया” का अर्थ है, विधि के अनुरूप कार्यवाही। किसी विधि या वैध प्रक्रिया के प्रतिरोध का आशय किसी प्रत्यक्ष कार्य से है तथा केवल शब्द, जबकि उन्हें कार्यान्वित करने की कोई इच्छा नहीं है, प्रतिरोध करने के आशय को सत्यापित करने के लिये पर्याप्त नहीं है। |
खण्ड 3- यद्यपि इस खण्ड में खासतौर पर केवल दो अपराधों का जिक्र किया गया है, किन्तु ‘या। अन्य अपराध’ शब्दों से स्पष्ट है कि इसमें सभी अपराधों को सम्मिलित करने का आशय है। किन्तु, यदि संसद का वह आशय था तो यह तथ्य स्पष्ट नहीं होता कि क्यों केवल रिष्टि (Mischief) तथा आपराधिक अतिचार (Criminal Trespass) का ही विशेषकर जिक्र किया गया है।
खण्ड 4- यह खण्ड उन कार्यों को दण्डित करने का प्रयास करता है जो लोक-प्रशान्ति के लिये घातक परिणामों से युक्त हैं। यह खण्ड सम्पत्ति की वैयक्तिक सुरक्षा या प्रतिरक्षा के अधिकार को समाप्त नहीं करता। यह नियम कि कोई भी व्यक्ति आपराधिक बल के प्रयोग द्वारा किसी सम्पत्ति के कब्जे के अधिकार को न्यायसंगत ठहराने का हकदार नहीं है, सम्पत्ति की वैयक्तिक प्रतिरक्षा सम्बन्धी विधि के प्रतिकूल प्रतीत होता है किन्तु न्यायालय वैयक्तिक प्रतिरक्षा के अधिकार को मान्यता करते हैं, क्योंकि यदि बल प्रयोग एक धारा के अन्तर्गत न्यायोचित ठहराया जा सकता है तो इस या किसी अन्य धारा के अन्तर्गत उसे अनुचित नहीं ठहराया। जा सकता।
पदावली, अधिकार या अनुमानित अधिकार’ दो हिस्सों में वर्गीकरण करती है- (1) यथार्थ उपभोग में अधिकार जबकि हस्तक्षेप किया गया हो और (2) प्रोद्घोषित अधिकार यद्यपि यथार्थ उपभोग में न हो। जबकि हस्तक्षेप किया गया हो। जहाँ एक व्यक्ति अपनी जमीन का नि:सन्देह कब्जा धारण किये हुये है और उसके कब्जे पर प्रहार होता है तो उसका बचाव करने का उसे पूर्ण अधिकार है परन्तु यह बचाव इस संहिता के अन्तर्गत वैयक्तिक प्रतिरक्षा सम्बन्धी विधि द्वारा निर्धारित सीमा के तहत होना चाहिये। ऐसे प्रकरणों में सम्पत्ति की प्रतिरक्षा में किये गये कार्यों को किसी अधिकार को ”प्रवर्तित करने हेतु किया गया नहीं कहा जा सकता। किन्तु सन्देहयुक्त प्रकरणों में यदि किसी पक्ष ने बल प्रयोग किया है तो वह एक अधिकार को प्रवर्तित । किये जाने के तुल्य होगा और उस हालत में वैयक्तिक प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं प्राप्त होगा। |
रामबाबू10 के प्रकरण में एक जुलूस निकालने के लिये लाइसेन्स प्राप्त किया गया किन्तु जुलूस निकालने वालों ने लाइसेन्स की शर्तों का उल्लंघन किया क्योंकि उन लोगों ने उस रास्ते से जुलूस नहीं निकाला जिस पर निकालने की स्वीकृति दी गई थी तथा उस सीमा को भी पार किया जिस सीमा तक जुलूस ले जाने की आज्ञा दी गयी थी। पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट ने ऐसा न करने का भी निर्देश दिया किन्तु प्रदर्शनकारियों के एक वर्ग ने
- नारायण (1875) 7 डब्ल्यू० पी० 209.
- अब्दुल हामिद, (1922) 2 पटना 134.
- गनौरी लाल दास, 1889 कल० 206.
- राजू० ए० आई० आर० 1961 मैसूर 74.
- (1945) 25 पटना 125.
पुलिस घेरे को तोड़ने का दृढ़ प्रयास किया। यह निर्णय दिया गया कि उस वर्ग ने अवैध जमाव या विधिविरुद्ध जमाव गठित किया। ।
खण्ड 5– इस खण्ड के अन्तर्गत किसी मामले को लाने के लिये सम्पत्ति अधिग्रहण के लिये आपराधिक बल का प्रदर्शन या आपराधिक बल का प्रयोग सिद्ध कर देना ही पर्याप्त नहीं होगा जब तक कि बल प्रयोग आपराधिक आशय से संयुक्त नहीं था। उदाहरण के लिये, यदि ब को अ चोरी करते हुये देखता है। तो अ, ब को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 43 के अन्तर्गत कैद करने का हकदार है, यदि कोई अन्य व्यक्ति अ से ब को मुक्त कराने के लिये हस्तक्षेप करता है तो उसका कार्य इस धारा के खण्ड 5 के अन्तर्गत आयेगा तथा वह व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की धारा 147 के अन्तर्गत अपराध का दोषी होगा। ।
स्पष्टीकरण–
मोती दास11 के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने इस मत की पुष्टि किया था कि एक जमाव जो आरम्भ में विधि अनुकूल था, अपने सदस्यों के पश्चातुवर्ती कार्यों के द्वारा ही विधि-विरुद्ध जमाव में परिवर्तित हो सकता था तथा यह भी आवश्यक नहीं है कि जमाव के सभी सदस्य उस कार्य के लिये सहमत रहे हों किन्तु यह आवश्यक है कि जमाव के अन्य सदस्य विधि-विरुद्ध कार्य के प्रति अपनी सम्मति दे चुके हों। एक या अनेक सदस्यों द्वारा दिया गया अवैध कार्य, किन्तु जिसके प्रति अन्य लोगों ने अपनी सम्मति नहीं व्यक्त किया है, जमाव को विधि-विरुद्ध नहीं बनाता।।
जहाँ कुछ व्यक्तियों ने अपने आप को निर्दोष प्रयोजन से किसी भीड़ (mob) से सम्बन्धित कर लिया किन्तु उन लोगों ने कार्यवाहियों में उस समय भी भाग लिया जबकि जमाव विधि-विरुद्ध बन चुका था तो वे विधि-विरुद्ध जमाव के सदस्यों की तरह दण्डनीय होगा।12 तिराकाद13 के वाद में कुछ व्यक्ति किसी गली से गुजर रहे जुलूस को बलपूर्वक रोकने के लिये इकट्ठा हुये। पुलिस ने जब उन लोगों से चले जाने के लिये कहा तो उन लोगों ने जाने से इन्कार कर दिया। अत: उन लोगों को विधि-विरुद्ध जमाव का सदस्य घोषित कर दण्डित किया गया।
उदाहरण- बनवारी बनाम राजस्थान राज्य14 के वाद में अभियुक्तों ने जिनकी संख्या 6 थी, घातक हथियारों से सुसज्जित होकर शिव प्रसाद बनाम मानसिंह को घेर लिया। उनमें से एक चिल्लाया कि दुश्मन को समाप्त कर दो जब कि अन्य उन्हें पीटने में व्यस्त थे। यह निर्णय दिया गया कि 6 में से किसी भी अभियुक्त को घटनास्थल पर निर्दोष उद्देश्य से उपस्थित नहीं कहा जा सकता। उन हथियारों का स्वरूप जिन्हें वे प्रारम्भ से ही धारण किये हुये थे और यह तथ्य कि वे सभी एक साथ कुछ ही दूर से उस स्थान पर आये थे न तो उन्हें घर के सामने था और न ही उनके खेत के सामने था, और यह भी तथ्य कि वे सभी एक ही समय में प्रकट हुये थे और प्रहार में भाग लिया था तथा अनेक चोट करने के बाद एक साथ ही वे लोग चले गये थे, यह सिद्ध करता है कि उन लोगों ने अपने-आप में एक विधि-विरुद्ध जमाव गठित किया था। उस जमाव के लोगों का सामान्य आशय प्रत्यक्ष दाण्डिक अपराध जैसे, हत्या कारित करने का था।
- विधि-विरुद्ध जमाव का सदस्य होना- जो कोई उन तथ्यों से परिचित होते हुए, जो किसी जमाव को विधिविरुद्ध जमाव बनाते हैं, उस जमाव में साशय सम्मिलित होता है, या उसमें बना रहता। है, वह विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य है, यह कहा जाता है।
टिप्पणी । यह धारा यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई व्यक्ति यह जानने के बावजूद कि जमाव विधि-विरुद्ध था, विधि-विरुद्ध जमाव में बना रहता है तो यह समझा जायेगा कि वह विधि-विरुद्ध जमाव का सदस्य था और उस रूप में दण्डनीय होगा। इस धारा के उपबन्धों को आकर्षित करने के लिये यह आवश्यक है कि एक
- ए० आई० आर० 1954 सु० को० 657.
- पेरिया पेन, 1883 1 वेयर 66.
- 1890 (14) मद्रास 126.
- 1979 क्रि० लॉ ज० 161 (राज०).
व्यक्ति यह जानते हये कि जमाव विधि-विरुद्ध है, साशय उसमें सम्मिलित होता है, यह जानते हये भी उसका सदस्य बना रहता है, भले ही आरम्भ में विधि-विरुद्ध नहीं था, किन्तु बाद में विधि-विरुद्ध बन गया। यहाँ बना रहता है” शब्द का अर्थ है, यह जानते हुये कि जमाव विधि-विरुद्ध प्रकृति का है। शारीरिक रूप से विद्यमान रहता है।
- दण्ड- जो कोई विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
- घातक आयुध से सज्जित होकर विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होना- जो कोई किसी घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से, जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी सम्भाव्य है, सज्जित होते हुए किसी विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
इस धारा में वर्णित अपराध धारा 143 में वर्णित अपराध का गुरुतर स्वरूप है। इस धारा के अन्तर्गत अधिक दण्ड का निर्धारण किया गया है, क्योंकि लोक-प्रशान्ति को खतरा बल प्रयोग के आशय से बढ़ जाता है। जहाँ कि अभियुक्त किसी ऐसे वस्तु से सज्जित है जिसका उपयोग यदि आयुध के रूप में होता है और उससे मृत्यु कारित होनां समाव्य है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डित होगा।
- किसी विधि-विरुद्ध जमाव में यह जानते हुए कि उसके बिखर जाने का समादेश दे दिया गया है, सम्मिलित होना या उसमें बने रहना- जो कोई किसी विधि-विरुद्ध जमाव में यह जानते हुए कि ऐसे विधिविरुद्ध जमाव को बिखर जाने का समादेश विधि द्वारा विहित प्रकार से दिया गया है, सम्मिलित होगा, या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।
टिप्पणी
इस धारा का उद्देश्य एक लोक-सेवक द्वारा जारी किये गये किसी विधिक आदेश की अवज्ञा को दण्डित करना है। आदेश का किसी विधि-विरुद्ध जमाव के बिखर जाने से सम्बन्धित होना आवश्यक है।
- बल्वा करना- जब कभी विधिविरुद्ध जमाव द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसे जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है, तब ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्वा करने के अपराध का दोषी होगा।
टिप्पणी
बल्वा कार्य-कलाप के एक विशिष्ट स्थिति में मात्र एक विधि-विरुद्ध जमाव है। वह कार्य कलाप बल प्रयोग या हिंसा से युक्त रहता है। बल प्रयोग बल्वा को विधि-विरुद्ध जमाव से अलग रखता है।15 ‘‘बल्वा शब्द कला का एक पद है तथा आम धारणा के अनुसार बल्वा में न तो शोरगुल होता है और न ही पड़ोसियों को अशान्ति यद्यपि हिंसा अथवा बल प्रयोग आवश्यक है।16
अवयव-बलवा करने के अपराध के निम्नलिखित अवयव हैं
(1) अभियुक्तों की संख्या पाँच या उससे अधिक होनी चाहिये या वे विधि-विरुद्ध जमाव निर्मित करते हों;
- रसूल 1589 पी० आर० नं० 4 में प्लाउडेन जज का मत.
- आर० अनाम० शार्प, 1957, 1 आल ई० रि० 577.
(2) अभियुक्तों का एक ही सामान्य उद्देश्य से प्रेरित होना आवश्यक है;
(3) विधिविरुद्ध जमाव द्वारा अथवा उसके किसी एक सदस्य द्वारा सामान्य उद्देश्य के अनुसरण में बल या हिंसा का प्रयोग होना चाहिये।
बल अथवा हिंसा का अर्थ (Meaning of force or violence)-भारतीय दण्ड संहिता की धारा 349 में ‘बल’ शब्द को परिभाषित किया गया है और यहाँ ‘बल’ शब्द का प्रयोग उसी अर्थ में हुआ है।17 यह केवल व्यक्तियों के विरुद्ध बल प्रयोग तक ही सीमित है। हिंसा केवल व्यक्तियों के विरुद्ध बल प्रयोग तक ही सीमित नहीं है अपितु निर्जीव वस्तुओं के विरुद्ध बल प्रयोग तक विस्तारित है।18 अत: ‘हिंसा’ बल से विस्तृत है क्योंकि इसमें सम्पत्ति एवं अन्य निर्जीव वस्तुओं के विरुद्ध बल प्रयोग भी सम्मिलित है। विधिविरुद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा किंचित बल प्रयोग भी, यदि विधि-विरुद्ध सिद्ध हो जाता है, बलवा गठित करता है।19 किन्तु बल प्रयोग जमाव के सामान्य उद्देश्य के अनुसरण में होना चाहिये।
सामान्य उद्देश्य (Common object)–एकत्रित व्यक्तियों द्वारा मात्र बल प्रयोग उनमें से सभी को बलवा करने के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराता। इस अपराध का एक आवश्यक तत्व है सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति हेतु बल प्रयोग करना। यदि जमाव का सामान्य उद्देश्य अवैध नहीं है तो यह बलवा करना नहीं है भले ही उस जमाव के किसी सदस्य द्वारा बल प्रयोग हुआ हो 20
आकस्मिक झगड़ा (Sudden quarrel)–यदि बहुत से व्यक्ति किसी वैध उद्देश्य से इकट्टे हुये हैं। और बिना किसी पूर्व आशय या कामना के यकायक झगड़ने लगते हैं तो वे बलवा करने के लिये दण्डित नहीं होंगे। एक सिनेमा घर में श्रोताओं में से एक व्यक्ति द्वारा किसी प्रदर्शन की प्रशंसा या निन्दा बलवा करने के तुल्य नहीं है किन्तु यदि अनेक व्यक्ति अशांति उत्पन्न कर प्रदर्शन को बाधा पहुँचाने के प्रयोजन से तैयार होकर
आते हैं तो यह बलवा करना हो सकता है भले ही वे लोग किसी व्यक्तिगत हिंसा का प्रयोग न करें या सिनेमाघर को किसी प्रकार की क्षति कारित न करें।21 जहाँ दो पक्ष आपस में झगड़ा करने के बिना किसी आशय से मिलते हैं किन्तु यकायक झगड़ा आरम्भ हो जाता है जिससे दोनों पक्ष बल का प्रयोग करते हैं तो इसे बलवा का मामला नहीं कहा जा सकता जब तक कि उनकी पूर्व सम्मति को प्रमाणित करने के लिये साक्ष्य न हो जिसकी प्रकल्पना मात्र उनके संयुक्त कार्य से नहीं की जा सकती, क्योंकि ऐसा कार्य तात्कालिक हो सकता है, वह निश्चयत: पूर्व अभिकल्पना का परिणाम नहीं हो सकता 22
बलवा तथा विधि-विरुद्ध जमाव के बीच भेद- यदि दोनों पक्ष उपद्रवी ढंग से एकत्रित होते हैं। तथा अपने उद्देश्य को हिंसा द्वारा यथार्थतः निष्पादित करते हैं तो यह एक बलवा होगा, किन्तु यदि वे एक प्रयोजन वश केवल मिलते हैं जिसे यदि सम्पादित किया जाता तो वे बलवाकारी बन जाते तथा बिना कुछ किये और अपने प्रयोजन को निष्पादित किये ही वे बिखर जाते हैं तो यह एक विधि-विरुद्ध जमाव माना जायेगा।23 केवल बल का प्रयोग ही बलवा को विधि-विरुद्ध जमाव से अलग करता है ।24।
दर्शक तथा पर्यटक इत्यादि (Spectators and Way-farers etc)–दर्शक, यात्री इत्यादि जो बलवा-स्थल पर उत्सुकतावश आकर्षित होते हैं, सामान्यतया जैसा कि देहातों में बलवा या दंगे के अवसर पर घटित होता है, मात्र अपनी उपस्थिति के कारण विधि-विरुद्ध जमाव के सदस्य या बलवाकारी नहीं माने जाने चाहिये। किन्तु यदि यह सिद्ध हो जाता है कि वे बलवाकारियों के साथ पर्याप्त दूरी तक गये थे जबकि
- गन खान, 46 आई० सी० (अवध) 844.
- समरुद्दीन, 1912, 40 कल० 367.
- रामधीन दुबे, 1876, 26 डब्यू० आर० (क्रि०) 6.
- परमेश्वर सिंह, 1899, 4 सी० डब्ल्यू० एन० 345.
- क्लिफोर्ड बनाम बैन्डन, 2 कैम्प 358.
- मजहर हुसैन, 5 एन० डब्ल्यू० पी० एच० सी० आर० 208.
- ब्रिट० सी० एण्ड पी० 154, में पैटरसन जज का मत।
- रसूल, 1889 पी० आर० नं० 4, में प्लाउडेन जज का मत।
बलवाकारी नारे लगा रहे थे तथा पत्थर फेंक कर रहे थे तो ऐसी स्थिति में साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के अन्तर्गत अपनी निर्दोषता सिद्ध करने के लिये वे बाध्य होंगे।25
उदाहरण- रघुनाथ राय26 के वाद में अनेक हिन्दू, जो एक सामान्य मति से कार्य कर रहे थे, एक मुसलमान के कब्जे से एक बैल तथा दो गायें बल पूर्वक हटा ले गये। उन लोगों का प्रयोजन इस कार्य के पीछे न तो स्वयं को ”सदोष अभिलाभ पहुंचाना था और न ही जानवरों के मालिक को ‘‘सदोष हानि पहुंचाना था अपितु उनका आशय गायों को हत्या से बचाना था। उन लोगों को बलवा करने के अपराध का दोषी घोषित किया गया। जयराम महतो27 के वाद में अभियुक्त तथा उसकी पार्टी लाठियों से सुसज्जित होकर ब के साथ एक तालाब में मछली पकड़ने के लिये जिसमें ब एक भागीदार था, तालाब के किनारे पहुँची। शिकायतकर्ता भी, जिसका कि उस तालाब में बड़ा हिस्सा था, कुछ भागीदारों के साथ इस आधार पर कि अभियुक्त का तालाब में कोई हिस्सा नहीं है, विरोध करने के प्रयोजन से तालाब के किनारे पहुँचा। वहाँ पर मारपीट आरम्भ हो गई जिससे कि शिकायतकर्ता के कुछ समर्थकों को चोटें आयीं । यहाँ निर्णय दिया गया कि सभी अभियुक्त बलवा करने तथा स्वेच्छापूर्वक चोट कारित करने के अपराधी हैं। देवधारी कोइरी बनाम इम्परर28 के वाद में अ और ब जो रिश्तेदार थे, के बीच कुछ पारिवारिक झगड़ा था। अनेक घर पड़ोस में ही थे। 18 मार्च सन् 1936 को अ और ब के बीच जानवरों की नांद (Cattle trough) तथा खुटों (Pegs) को लेकर अ के घर के सामने मारपीट हो गयी। साक्ष्य के अनुसार अ चिल्लाया बचाओ ! मेरी हत्या की जा रही है।” और उसके इस तरह चिल्लाने पर अन्य अपीलार्थी लाठी लेकर वहां इकट्ठे हो गये। यह निर्णय दिया गया कि घटनास्थल पर अ की चिल्लाहट के जवाब में लाठियों या अन्य हथियारों के साथ आना उन्हें इस अपराध के लिये दोषी ठहराने हेतु पर्याप्त नहीं है।
उ० प्र० राज्य बनाम दानसिंह29 के मामले में अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति की शादी की पार्टी एक दूसरे गाँव से होकर गुजर रही थी। उस गाँव वालों ने शादी की पार्टी वालों को मन्दिर के सामने से दुल्हन को पैदल ले जाने को कहा। ऐसा करने से शादी की पार्टी वालों ने मना कर दिया। गांव वालों ने उन पर पत्थर और लाठी से हमला किया। शादी की पार्टी के 6 लोगों को जला दिया उनमें से पाँच को गाँव के एक मात्र हरिजन निवासी के घर के अन्दर ताला लगा दिया और घर में भी आग लगा दिया। आठ अन्य को भी पीछा कर निर्दयतापूर्वक पीटा गया और उनकी मृत्यु हो गई। हरिजन जिसका घर गाँव वालों द्वारा जला दिया गया था, प्रत्यक्षदर्शी गवाह था। इस गवाह ने अन्वेषण अधिकारी के समक्ष हमलावरों को नामजद नहीं किया था। एक अन्य गवाह एक विद्यालय का अध्यापक था, जिसने उन लोगों का नाम नहीं बताया था जिन्होंने हरिजन के घर में आग लगायी थी। इनके साक्ष्य का अनुसमर्थन अन्य प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों द्वारा भी किया गया था। यह अभिनित किया गया कि मात्र इस आधार पर उस गवाह का साक्ष्य जिसका घर जला दिया गया था, अग्राह्य नहीं होगा, क्योंकि उसने हमलावरों को नामजद नहीं किया था अथवा उस शिक्षक का साक्ष्य भी मात्र इस कारण अमान्य नहीं होगा कि उसने घर में आग लगाने वालों के नाम का उल्लेख नहीं किया था। सभी चार प्रत्यक्षदर्शी गवाहों द्वारा अभियुक्तगण की पहचान की गई थी। अतएव उन्हें दोषसिद्ध किया जायेगा। यह भी अभिमत व्यक्त किया गया कि जहाँ किसी बलवा के दौरान लोग मारे जाते हैं तो इस बात की सम्भावना रहती है कि घटना को बढ़ा चढ़ाकर बताया जाय अथवा कतिपय निर्दोष व्यक्तियों के नाम भी हमलावरों में गिना दिया जाय। ऐसा जानबूझकर अथवा अनजाने में भी हो सकता है। परन्तु मात्र इस कारण कि प्रत्यक्षदर्शियों के साक्ष्य में कतिपय नगण्य या महत्वहीन विरोधाभास या अतिशयोक्तियाँ हैं बलवा के मामले में सम्पूर्ण साक्ष्य को अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता है। जहाँ हमलावरों की संख्या लम्बी है और गवाहों की संख्या भी ज्यादा होती है यह स्वाभाविक है कि ऐसे गवाहों के साक्ष्य समरूप (identical) नहीं हो सकते हैं। यह ध्यान देना आवश्यक है कि घटना के मूलभूत लक्षणों को एक प्रकार से देखा गया है या नहीं और साक्षियों द्वारा
- इन रे अरुलानन्दू, ए० आई० आर० 1952 मद्रास 267.
- 1892, 15 इला० 22.
- (1907) 35 कल० 103.
- ए० आई० आर० 1937 पटना 34.
- (1997) क्रि० लॉ ज० 1150 (एस० सी०).
घटना का उल्लेख इस प्रकार किया गया है कि वह बलवा के निष्कर्ष से मेल खाता है यथा उन व्यक्तियों की संख्या जिन पर हमला किया गया और जो मारे गये तथा पीड़ितों की चोटें कैसी हैं।
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