Indian Penal Code 1860 False Evidence and Offences Against Public Justice Part 4 LLB Notes
Indian Penal Code 1860 False Evidence and Offences Against Public Justice Part 4 LLB Notes:- LLB Law 1st Year / 1st Semester Online Book Indian Penal Code IPC 1860 Most Important Topic Of False Evidence And Offences Against Public Justice Notes Study Material in Hindi English PDF Download, In the LLB Law Notes post, you will not only get the full details of all the semester of LLB.
- दण्डादेश के अधीन या विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए व्यक्ति को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप- जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए न्यायालय के दण्डादेश के अधीन या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का साशय लोप करेगा, या ऐसे परिरोध में से साशय ऐसे व्यक्ति का निकल भागना सहन करेगा या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में या निकल भागने के लिए प्रयत्न करने में साशय मदद करेगा, वह निम्नलिखित रूप से दण्डित किया जाएगा, अर्थात्:
यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह मृत्यु दण्डादेश के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा । यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह न्यायालय के दण्डादेश से, या ऐसे दण्डादेश से लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित, दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह न्यायालय के दण्डादेश से दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो या यदि वह व्यक्ति अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किया गया हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से।
- लोक सेवक द्वारा उपेक्षा से परिरोध या अभिरक्षा में से निकल भागना सहन करना-जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो अपराध के लिए आरोपित या दोषसिद्ध या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो, ऐसे व्यक्ति का परिरोध में से निकल भागना उपेक्षा से सहन करेगा, वह सादा कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी यह धारा ऐसे लोक सेवक के लिये दण्ड का प्रावधान प्रस्तुत करती है जो कि किसी अपराध से आरोपित व्यक्ति को उपेक्षापूर्वक प्रतिरोध या अभिरक्षा से निकल भागने देता है। इस धारा के निम्नलिखित तत्व हैं (1) अभियुक्त एक लोक-सेवक हो, (2) वह किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध या आरोपित व्यक्ति को परिरोध में रखने के लिये विधि द्वारा आबद्ध हो, (3) उसने उपेक्षापूर्वक ऐसे व्यक्ति का भाग जाना सहन किया हो।
- किसी व्यक्ति द्वारा विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा- जो कोई किसी ऐसे अपराध के लिए, जिसका उस पर आरोप हो, या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया हो,
विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा, या किसी अभिरक्षा में, जिसमें वह किसी ऐसे अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागेगा, या निकल भागने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा। स्पष्टीकरण- इस धारा में उपबन्धित दण्ड उस दण्ड के अतिरिक्त है, जिससे वह व्यक्ति, जिसे पकडा जाना हो, या अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाना हो, उस अपराध के लिए दण्डनीय था, जिनका उस पर आरोप लगाया गया था या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया था। टिप्पणी अवयव- इसके निम्नलिखित अवयव हैं (1) किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे अपराध के लिये जिससे वह आरोपित किया गया है, विधिपूर्वक अपने पकड़े जाने के विरुद्ध प्रतिरोध अथवा अवैध बाधा प्रस्तुत करना, (2) किसी व्यक्ति द्वारा किसी अपराध के विधिपूर्ण अभिरक्षण से जिसके लिये वह आरोपित किया गया है, या जिसके लिये उसे दोषसिद्धि प्रदान की गयी है, निकल भागने या निकल भागने का प्रयत्न करना। इस धारा के अन्तर्गत अपराध कारित करने के लिये यह आवश्यक है कि कोई व्यक्ति उस अभिरक्षा से जिसमें उसे विधितः परिरोधित किया गया है, निकल भागे। कोई भी व्यक्ति तब तक विधिक अभिरक्षा में नहीं होता जब तक कि उसे कैद न किया गया हो। एक व्यक्ति जिस पर अपराध करने का मात्र सन्देह है और जिसे पूछ-ताछ के लिये पुलिस स्टेशन पर लाया जाता है, पुलिस की अनुमति के बिना भाग जाता है। वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं होगा क्योंकि वह तत्समय विधिक अभिरक्षा में नहीं था।14 स्पष्टीकरण- स्पष्टीकरण इस धारा के अन्तर्गत अलग दण्ड का प्राविधान प्रस्तुत करता है। यह दण्ड मुख्य अपराध के लिये देय दण्ड के अतिरिक्त होगा। |
- किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा–जो कोई किसी अपराध के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा, या किसी दूसरे व्यक्ति को किसी ऐसी अभिरक्षा से, जिसमें वह व्यक्ति किसी अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, साशय छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; अथवा
यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध का आरोप हो या वह उनके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा; अथवा यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु-दण्ड से दण्डनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो तो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; अथवा यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, किसी न्यायालय के दण्डादेश के अधीन, या वह ऐसे दण्डादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के
- महेश्वर, 1953 कटक 751.
कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; अथवा यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु दण्डादेश के अधीन हो, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, इतनी अवधि के लिए जो दस वर्ष से अनधिक है, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 225-क. उन दशाओं में जिनके लिए अन्यथा उपबन्ध नहीं है लोक सेवक द्वारा पकड़ने का लोप या निकल भागना सहन करना-जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो उस व्यक्ति को किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 221, धारा 222 या धारा 223 अथवा किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में कोई उपबन्ध नहीं है, पकड़ने का लोप करेगा या परिरोध में से निकल भागना सहन करेगा (क) यदि वह ऐसा साशय करेगा, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, तथा (ख) यदि वह ऐसा उपेक्षापूर्वक करेगा तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो । | सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 225-ख. अन्यथा अनुपबन्धित दशाओं में विधिपूर्वक पकड़ने में प्रतिरोध या बाधा या निकल भागना या छुड़ाना- जो कोई स्वयं अपने या किसी अन्य व्यक्ति के विधिपूर्वक पकड़े जाने में साशय कोई प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा या किसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागेगा या निकल भागने का प्रयत्न करेगा, या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी अभिरक्षा में से जिसमें वह व्यक्ति विधिपूर्वक निरुद्ध हो, छुड़ायेगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए। धारा 224 या धारा 225 या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में उपबन्ध नहीं है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया। जाएगा। टिप्पणी इस धारा के अन्तर्गत ऐसे मामलों को रखा गया है जो धारा 224 या 225 के अन्तर्गत नहीं आते। ऐसा । व्यक्ति जो मजिस्ट्रेट के सम्मुख अपने अच्छे आचरण के लिये प्रतिभू देने के लिये जाते समय पुलिस अभिरक्षा में से भाग निकलता है वह धारा 225 के अन्तर्गत दण्डित नहीं होगा बल्कि इस धारा के अन्तर्गत दण्डित किया जाएगा। किन्तु यह आवश्यक है कि प्रतिरोध या बाधा एक सकारात्मक कार्य होना चाहिये। यदि कोई व्यक्ति कैदी बनाये जाने से बचने के लिये भाग निकलता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डित नहीं किया। जायेगा, क्योंकि उसका कृत्य प्रतिरोध या बाधा के तुल्य नहीं है।15
- निर्वासन से विधि विरुद्ध वापसी- दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1 जनवरी, 1956 से) निरसित।।
- दण्ड के परिहार की शर्त का अतिक्रमण-जो कोई दण्ड का सशर्त परिहार प्रतिगृहीत कर लेने पर किसी शर्त का जिस पर ऐसा परिहार दिया गया था, जानते हुए अतिक्रमण करेगा, यदि वह उस दण्ड का, जिसके लिए वह मूलत: दण्डादिष्ट किया गया था, कोई भाग पहले ही न भोग चुका हो, तो वह उस दण्ड से और यदि वह उस दण्ड का कोई भाग भोग चुका हो, तो वह उस दण्ड के उतने भाग से, जितने को वह पहले ही न भोग चुका हो, दण्डित किया जाएगा।
- अन्नाउद्दीन, (1923) 1 रंगून 218.
- न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए लोक-सेवक का साशय अपमान या उसके कार्य में विघ्न- जो कोई किसी लोक सेवक का उस समय, जब कि ऐसा लोक सेवक न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में बैठा हुआ हो, साशय कोई अपमान करेगा या उसके कार्य में कोई विघ्न डालेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी अवयव– इस धारा के निम्नलिखित अवयव हैं (1) लोक सेवक का अपमान या उसके कार्य में विघ्न डालना, (2) अपमान करना या विघ्न डालना साशय कारित करना, तथा (3) अपमानित या विघ्न डाला गया व्यक्ति न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में बैठा हुआ हो। ऐसे कार्य जैसे अविनीत आचरण, हठ, विधिपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देने से इन्कार करना, शान्ति भंग या कोई स्वेच्छापूर्ण विघ्न इत्यादि न्यायालय का अपमान करने के तुल्य है। दरोगा सिंह बनाम बी० के० पाण्डे16 वाले मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि न्यायालय अवमान अधिनियम की उपधारा (3) उच्च न्यायालय द्वारा उसके किसी अधीनस्थ न्यायालय के संबंध में किये गये अभिकथित अवमान का संज्ञान लेने की अधिकारिता को अपवर्जित करती है, जहाँ अवमान के रूप में अभिकथित कृत्य दण्ड संहिता के विनिर्दिष्ट उपबंधों के अधीन दण्डनीय है, किन्तु वहाँ नहीं जहाँ ऐसे कृत्य अन्य प्रकार के अपराधों का गठन करते हैं, जिनके लिये दण्ड संहिता के अधीन दण्ड विहित किया गया है। अवमान का संज्ञान करने को उच्च न्यायालय की अधिकारिता भारतीय दण्ड संहिता की धारा 228 के अधीन दण्डनीय अपराधों की बाबत वर्जित नहीं है, क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 228 के अधीन अपराध भारतीय दण्ड संहिता के अधीन न्यायालय के अवमान के रूप में दण्डनीय नहीं है, बल्कि किसी न्यायाधीश का साशय अवमान या न्यायालय की प्रक्रिया में व्यवधान के रूप में दण्डनीय है। । प्रस्तुत मामले में पुलिस के विरुद्ध चिढ़ाने वाली न्यायिक टिप्पणी की गयी थी जिसके फलस्वरूप जनपद न्यायाधीश पर पूर्व नियोजित और पूर्व निर्धारित ढंग से लोक अधिकारियों द्वारा उनके न्यायालय में हमला किया गया और जब उन्होंने शारीरिक क्षति से अपना बचाव करने का प्रयास किया और अपने कक्ष में चले गये तब भी उनका पीछा किया गया और क्षति कारित की गई। नारेबाजी की गई और अपीलार्थी अन्वेषण अधिकारी की बिना शर्त जमानत की मांग की गई, जिसने आगे अपराध का शमन किया। न्यायालय को अपने नियंत्रण में लेकर आदेश देने को मजबूर नहीं किया जा सकता। यह अभिनिर्धारित किया गया कि कृत्य न्यायिक अधिकारी द्वारा न्यायिक कर्तव्यों के निर्वहन में धमकी देकर हस्तक्षेप करने के समतुल्य है, जिसके लिये अधिकारी को बदनाम करने और न्यायालय की मर्यादा को गिराने का सहारा लिया गया और न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप किया गया। यह खतरनाक प्रवृत्ति है और इसे रोका जाना चाहिये। ऐसे मामले का उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने पर कोई वर्जन नहीं है। 17[228-क. कतिपय अपराध आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण-(1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को जिससे किसी ऐसे व्यक्ति को (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् पीड़ित व्यक्ति कहा गया है) पहचान हो सकती है, जिसके विरुद्ध 17a [ धारा 376, धारा 376क, धारा 376-ख, धारा 376-ग, धारा 376-घ या धारा 376-ङ) के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। (2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम अथवा अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर, यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब नहीं होता है, जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन-
- 2004 क्रि० लॉ ज० 2084 (सु० को०).
- 1983 के अधिनियम सं० 43 की धारा 2 द्वारा अन्त:स्थापित.
17a. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 4 द्वारा शब्दों, अंकों और अक्षरों *धारा 376, धारा 376-क, धारा 376-ख, धारा 376-ग या धारा 376-घ” के स्थान पर प्रतिस्थापित (दिनांक 3-2-2013 से प्रभावा) । (क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है, द्वारा या उसे लिखित आदेश के अधीन किया जाता है, या (ख) पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या । (ग) जहाँ पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहाँ, पीड़ित व्यक्ति के निकट सम्बन्धी द्वारा उसके लिखित प्राधिकार से, किया जाता है : परन्तु निकट सम्बन्धी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से, चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा। स्पष्टीकरण- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, “मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन” से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है। (3) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के सम्बन्ध में कोई बात, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। स्पष्टीकरण– किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध की कोटि में नहीं आता है।] टिप्पणी कर्नाटक राज्य बनाम पुत्ताराजा18 वाले मामले में न्यायालय ने बलात्कार के मामले में घटना की शिकार का नाम निर्णय में नहीं दर्ज किया था। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 228-क द्वारा कतिपय अपराधों में घटना के शिकार व्यक्ति की पहचान को प्रकट करना दण्डनीय कर दिया गया है। किसी व्यक्ति का जिसके विरुद्ध धारा 376, 376-क, 376-ख, 376-ग या 376-घ के अधीन अपराध किया जाना अभिकथित है या किया गया है, उसके बारे में कुछ मुद्रित या प्रकाशित करना, जिससे उसकी पहचान प्रकट होती हो तो ऐसा करने वाले व्यक्ति को दण्डित किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि यह निर्बन्धन उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णयों के मुद्रण या प्रकाशन पर लागू नहीं होता। किन्तु लैंगिक अपराध के शिकार व्यक्ति को सामाजिक रूप से पीड़ित किये जाने से रोकने के उद्देश्य से अधिनियमित की गई धारा 228-क को ध्यान में रखते हुये यह उचित होगा कि निर्णय में चाहे वह निचले न्यायालय के हों या उच्च न्यायालय के निर्णय हों, घटना के शिकार व्यक्ति का नाम न उपदर्शित किया जाय।19 दिनेश बनाम राजस्थान राज्य20 के वाद में यह अभिधारित किया गया कि भा० द० संहिता की धारा 228-क के अधीन पीड़ित व्यक्ति की पहचान (identity) का खुलासा करना यद्यपि उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के मुद्रण या प्रकाशन से सम्बन्ध नहीं रखता है परन्तु सामाजिक उत्पीड़न अथवा यौन-अपराध की शिकार को सामाजिक उत्पीड़न और आलोचना से बचाने के सामाजिक प्रयोजन/उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये पीड़िता के नाम का उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय अथवा अवर न्यायालय के निर्णयों में उल्लेख नहीं किया जाना चाहिये। ओम प्रकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य21 के वाद में यह अभिधारित किया गया कि यौन अपराध से पीडित व्यक्ति, जिसके लिये धारा 228-क अधिनियमित की गई है, के सामाजिक उत्पीड़न और बहिष्कार को
- 2004 क्रि० लॉ ज० 579 (सु० को०).
- भूपेन्द्र शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 2004 क्रि० लॉ ज० 1 (सु० को०) भी देखें।
- 2006 क्रि० लॉ ज० 1679 (सु० को०).
- 2006 क्रि० लॉ ज० 2913 (एस० सी०).
रोकने के सामाजिक उद्देश्य या प्रयोजन को दृष्टिगत रखते हुये यह उचित होगा कि न्यायिक निर्णयों में चाहे वह उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय अथवा अवर न्यायालय का हो पीड़ित व्यक्ति के नाम का खुलासा । न किया जाय।।
- जूरी सदस्य या असेसर का प्रतिरूपण- जो कोई किसी मामले में प्रतिरूपण द्वारा या अन्यथा, अपने को यह जानते हुए जूरी सदस्य या असेसर के रूप में तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ साशय कराएगा या होने देना जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ होने का विधि द्वारा हकदार नहीं है या यह जानते हुए कि वह इस प्रकार तालिकांकित; पेनलित या गृहीतशपथ विधि के प्रतिकूल हुआ है, ऐसे जूरी में या ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छया सेवा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी यह धारा किसी जूरी सदस्य या असेसर के मिथ्या प्रतिरूपण को दण्डित करती है। इसके अन्तर्गत दो। प्रकार के मामले आते हैं (1) वह जिसमें जूरी सदस्य या असेसर बनने के पूर्व ही अभियुक्त को दोषपूर्ण ज्ञान था। (2) वह जिनमें ऐसा ज्ञान जूरी सदस्य या असेसर बनने के बाद हुआ। 22[229-क. जमानत या बंधपत्र पर छोड़े गये व्यक्ति द्वारा न्यायालय में हाजिर होने में असफलता-जो कोई, किसी अपराध से आरोपित किये जाने पर और जमानत पर या अपने बंधपत्र पर छोड़ दिये जाने पर जमानत या बंधपत्र के निबंधनों के अनुसार न्यायालय में पर्याप्त कारणों के बिना हाजिर होने से (वह साबित करने का भार उस पर होगा) असफल रहेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। स्पष्टीकरण– इस धारा के अधीन दण्ड (क) उस दण्ड के अतिरिक्त है, जिसके लिये अपराधी उस अपराध के लिये जिसके लिए उसे आरोपित किया गया है, दोषसिद्धि पर दायी होगा; और (ख) न्यायालय को बंधपत्र के समपहरण का आदेश करने की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला नहीं है।
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