Indian Penal Code 1860 Contempts Lawful Authority Public Servants LLB Notes
Indian Penal Code 1860 Contempts Lawful Authority Public Servants LLB Notes:- LLB Law Online Book Indian Penal Code IPC 1860 Chapter 10 of Contempts of the Lawful Authority of Public Servants LLB 1st Year 1st Semester Study Material Notes in PDF Download for our website daily updated. LLB Law Indian Penal Code 1860 1st Year Semester in PDF Download 2019.
अध्याय 10
लोक–सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के विषय में
(OF CONTEMPTS OF THE LAWFUL AUTHORITY OF PUBLIC SERVANTS)
- समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना– जो कोई किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील से बचने के लिए फरार हो जाएगा, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसे समन, सूचना या आदेश को निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,
अथवा, यदि समन या सूचना या आदेश किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए या दस्तावेज अथवा 1[इलेक्ट्रानिक अभिलेख] पेश करने के लिए हो तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा किसी व्यक्ति द्वारा विधिक प्रक्रिया की अवहेलना को दण्डित करती है जो समनों की तामील सूचना या आदेश से बचने के लिये फरार हो जाता। खण्ड 1 के अन्तर्गत यह आवश्यक है कि ऐसी प्रक्रिया एक ऐसे लोक-सेवक द्वारा जो समन इत्यादि जारी करने के लिये वैधतः सक्षम हो तामील की गई हो। खण्ड 2 ऐसे समनों, सूचना या आदेश के लिये है जो अभिकर्ता द्वारा न्यायालय में (1) उपस्थित होने या (2) दस्तावेज पेश करने के लिये हो।
फरार होना (Abscond)–फरार होने से यह तात्पर्य निश्चयतः नहीं है कि वह व्यक्ति एक स्थान से चला जाये। इसका तात्पर्य अपने आप को छिपाने से है चाहे वह उसी स्थान पर रहे या वहाँ से चला जाये जहाँ एक व्यक्ति प्रक्रिया जारी होने से पूर्व ही छिपा हुआ था और प्रक्रिया जारी होने के बाद भी छिपा रहा हो यह कहा जायेगा कि वह फरार हो गया था।
समन, सूचना या आदेश उस व्यक्ति के नाम में होना चाहिये जिसकी उपस्थिति अपेक्षित है तथा जो समन इत्यादि की तामील से बचने के लिये फरार हो जाता है। वारण्ट, अभियुक्त पर जारी किया गया एक आदेश नहीं है, अभियुक्त को पकड़ने के लिये वह पुलिस को दिया गया एक आदेश है। वारण्ट के अन्तर्गत पुलिस। द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिये फरार होना, इस धारा के अन्तर्गत अपराध नहीं है।
- समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना—जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा, जो लोक सेवक उस नाते कोई समन, सूचना या आदेश निकालन के लिए वैध रूप से सक्षम हो निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील अपने पर या किसी अन्य व्यार पर होना किसी प्रकार साशय निवारित करेगा,
अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश का किसी स्थान में विधिपूर्वक लगाया लगाया जाना साशय निवारित करेगा,
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का अधिनियम सं० 21) की धारा 91 तया
- श्रीनिवास आयंगर (1881) 4 मद्रास 393.
- लक्ष्मी (1881) अनरिपोर्टेड क्रि० के०152.
- अन्नवदीन, (1923) 1 रंगून 218.
अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश को किसी ऐसे स्थान से, जहाँ कि वह विधिपूर्वक लगाया हुआ है, साशय हटाएगा,
अथवा किसी ऐसे लोक सेवक के प्राधिकाराधीन की जाने वाली किसी उद्घोषणा का विधिपूर्वक किया। जाना साशय निवारित करेगा, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी उद्घोषणा का किया जाना निर्दिष्ट करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो,
वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,
अथवा यदि समन, सचना, आदेश या उदघोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए या दस्तावेज 5[अथवा इलेक्ट्रानिक अभिलेख] पेश करने के लिए हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
इस धारा द्वारा समन, सूचना अथवा आदेश के साशय निवारण को दण्डित किया गया है। समन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार6 या समन लेने से इन्कार करना या समन लेने के पश्चात् उसे फेंक देना इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित नहीं करता है ।।
- लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर–हाजिर रहना– जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा निकाले गए उस समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा के पालन में, जिसे ऐसे लोक सेवक के नाते निकालने के लिए वह वैध रूप से सक्षम हो, किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए,
उस स्थान या समय पर हाजिर होने का साशय लोप करेगा, या उस स्थान से, जहाँ हाजिर होने के लिए वह आबद्ध है, उस समय से पूर्व चला जाएगा, जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण होता,
वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,
अथवा यदि समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या किसी अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए है, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टान्त
(क) क कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा निकाले गए सपना के पालन में उस न्यायालय के समक्ष संजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
(ख) जिला न्यायाधीश द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस जिला न्यायाधीश के समक्ष साक्षी के। पर्यजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
- सचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का आधनियम सं० 21) की धारा 91 तथा प्रथम अनुसूची द्वारा अंत:स्थापित.
- कल्या फकीर, (1868) 5 बी० एच० सी० (क्रि० के०) 34.
- पुनामलाई (1882) 5 मद्रास 199.
- अरुमुगा नादार (1882) 5 मद्रास 200.
टिप्पणी
इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये उपसंजात (appear) होने में निम्नलिखित प्रकार से । साशय लोप होना आवश्यक है
(1) भारत में निश्चित एक विशिष्ट स्थान पर,9
(2) एक निश्चित समय पर,
(3) निश्चित लोक कार्यकारी के समक्ष,
(4) समन, सूचना या आदेश के पालन में।
आदेश लिखित या मौखिक हो सकता है।10 समन इत्यादि का प्रारूप11 त्रुटिपूर्ण नहीं होना चाहिये तथा समन, सूचना एवं आदेश ऐसे पदाधिकारी द्वारा जारी किये जाने चाहिये जिसका इन विषयों पर क्षेत्राधिकार है।12 इस धारा के अन्तर्गत सजा को न्यायोचित ठहराने के लिये यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति जिसके लिये समन जारी किया गया था हाजिर होने के लिये वैध रूप से आबद्ध था किन्तु उसने साशय हाजिर होने से इन्कार कर दिया या लोप किया।13।
एक प्रकरण में एक व्यक्ति समन में उल्लिखित समय पर न्यायालय में हाजिर हुआ किन्तु मजिस्ट्रेट को उपस्थित न पाकर युक्तियुक्त समय तक प्रतीक्षा किये बिना ही वह वापस चला गया। यह निर्णय दिया गया कि वह इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी है।14 |
15[174-क. 1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैर–हाजिरी-जो कोई दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उद्घोषणा को अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट स्थान और विनिर्दिष्ट समय पर हाजिर होने में असफल रहता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा और जहाँ उस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी घोषणा की गई है जिसमें उसे उद्घोषित अपराधी के रूप में घोषित किया गया है, वहाँ वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जायेगा और जुर्माने का भी दायी होगा।]
- दस्तावेज 16[ या इलेक्ट्रानिक अभिलेख ] पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को दस्तावेज पेश करने का लोप– जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते किसी दस्तावेज 17 [या इलेक्ट्रानिक अभिलेख] को पेश करने या परिदत्त करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उसको इस प्रकार पेश करने या परिदत्त करने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,
अथवा यदि वह दस्तावेज 18 [या इलेक्ट्रानिक अभिलेख] किसी न्यायालय में पेश या परिदत्त की जानी हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक, हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
- परंगा (1893) 1s मद्रास 463.
- गूमन (1873) अनरिपोर्टेड क्रि० केसेज 75.
- क्रिश्तप्पा, (1896) 20 मद्रास 31.
- वेंकाजी भास्कर, (1871) 8 बी० एच० सी० (क्रि० के०) 19.
- श्रीनाथ घोष (1868) 10 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 33.
- किशन बापू, (1885) 10 बम्बई 93.
- दण्ड प्रक्रिया (संशोधन) अधिनयम, 2005(2005 का 25) की धारा 44 द्वारा अन्त:स्थापित.
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का अधिनियम सं० 21) की धारा 91 तथा प्रथम अनुसूची द्वारा अंतः। स्थापित।
- उपरोक्त द्वारा अंत:स्थापित।
- उपरोक्त द्वारा अंत:स्थापित ।
दृष्टान्त
क, जो एक जिला न्यायालय के समक्ष दस्तावेज पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध है, उसको पेश करने का साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
- सूचना या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप-जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते किसी विषय पर कोई सूचना देने या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से और समय पर ऐसी सूचना या इत्तिला देने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,
अथवा यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला किसी अपराध के किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,
अथवा यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5)* की धारा 565 की उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश द्वारा अपेक्षित है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा उन व्यक्तियों से सम्बन्धित है जो लोक-सेवक को कोई सूचना या इत्तिला देने के लिये वैध रूप से आबद्ध हैं तथा उन लोगों को दण्डित करती है जो विधि द्वारा आरोपित ऐसी बाध्यता को साशय भंग करते हैं।19
- मिथ्या इत्तिला देना– जो कोई किसी लोक सेवक को ऐसे लोक सेवक के नाते किसी विषय पर इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रूप में ऐसी इत्तिला देगा। जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, । अथवा यदि वह इत्तिला, जिसे देने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, कोई अपराध किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टान्त
(क) क, एक भूधारक, यह जानते हुए कि उसकी भू-सम्पदा की सीमाओं के अन्दर एक हत्या की गई है, उस जिले के मजिस्ट्रेट को जानबूझ कर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि मृत्यु सांप के काटने के परिणामस्वरूप दुर्घटना से हुई है। क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।
(ख) क, जो ग्राम चौकीदार है, यह जानते हुए कि अनजाने लोगों का एक बड़ा गिरोह य के गृह में, जो पड़ोस के गांव का निवासी एक धनी व्यापारी है, डकैती करने के लिए उसके गांव से होकर गया है और बंगाल संहिता, 1821 के विनियम 3 की धारा 7 के खण्ड 5 के अधीन निकटतम थाने के आफिसर को उपरोक्त घटना की इत्तिला शीघ्र और ठीक समय पर देने के लिए आबद्ध होते हुए, पुलिस आफिसर को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि संदिग्धशील लोगों का एक गिरोह किसी भिन्न दिशा में स्थित एक
*. अब देखिए दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2).
- फूलचन्द ब्रजवासी, (1871) 16 डब्ल्यू० आर० (क्रि०) 35.
दूरस्थ स्थान पर डकैती करने के लिए गांव से होकर गया है। यहाँ क, इस धारा के दूसरे भाग में परिभाषित अपराध का दोषी है।।
स्पष्टीकरण– धारा 176 में और इस धारा में ”अपराध” शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता, तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 332, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449,450,457, 458, ३६० और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता, और अपराधी” शब्द के अन्तर्गत कोई भी ऐसा । व्यक्ति आता है, जो कोई ऐसा कार्य करने का दोषी अभिकथित हो।
- शपथ या प्रतिज्ञान से इन्कार करना जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए–जो कोई सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा। अपने आप को आबद्ध करने से इन्कार करेगा, जबकि उससे अपने को इस प्रकार आबद्ध करने की अपेक्षा ऐसे लोक सेवक द्वारा की जाए जो यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह व्यक्ति इस प्रकार अपने को आबद्ध करे, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
- प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देने से इन्कार करना—जो कोई किसी लोक सेवक से किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, ऐसे लोक सेवक की वैध शक्तियों के प्रयोग में उस लोक सेवक द्वारा उस विषय के बारे में उससे पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इन्कार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
प्रश्न करने के लिये प्राधिकृत लोक-सेवक द्वारा पूछे गये प्रश्नों, जो लोक-सेवक से सम्बन्धित है या उसके क्षेत्राधिकार में आता है, का उत्तर देने से इन्कार करना इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय बनाया गया है। यदि एक व्यक्ति उत्तर देने से इन्कार करता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा, किन्तु यदि वह मिथ्या उत्तर देता है तो वह धारा 193 के अन्तर्गत दोषी होगा। परन्तु धारा 161 दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898* के अन्तर्गत जाँच कर रहे एक पुलिस अधिकारी के प्रश्नों का उत्तर देने से इन्कार करना, इस धारा के अन्तर्गत अपराध नहीं है।
नन्दिनी सतपथी बनाम पी० एल० दानी20 के बाद में उच्चतम न्यायालय ने दो प्रश्नों पर विचारण किया-(1) क्या मन:स्थिति धारा 179 का एक आवश्यक घटक है और यदि है तो इसका संक्षिप्त स्वरूप कैसा है। (2) धारा 161(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता तथा धारा 179 दण्ड प्रक्रिया संहिता के बीच किस स्थल पर हमें सन्देह के लाभ की सीमा को स्पष्ट करना चाहिये। इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के प्रयत्न में न्यायालय ने धारा 161 दण्ड प्रक्रिया संहिता तथा संविधान के अनुच्छेद 20(3) के परिक्षेत्र का विस्तार से अध्ययन किया। न्यायालय ने प्रेक्षित किया कि—
”हमें इस बात का सन्देह नहीं है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 179 में मन:स्थिति का अवयव विद्यमान है और जहाँ पर स्वेच्छया अस्वीकार नहीं है अपितु केवल अज्ञान का लोप है या निर्दोष अवरोध है, वहाँ पर इस अपराध का गठन नहीं होता है। जब अभियुक्त के स्पष्टीकरण से युक्तियुक्त सन्देह का आभास मिलता है तो वह सन्देह का लाभ पाने का अधिकारी होता है तथा उसे, उसके आधारों की संपुष्टि करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता। क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो वह अपने उन्हीं विशेषाधिकारों जिसके लिये वह लड़ रहा है, को त्यागने के लिये मजबूर हो जायेगा। जो कुछ भी निर्दोष सूचना के रूप में प्रतीत होता है, विस्तृत रूप में देखे जाने पर या तो निर्दोष हो सकता है या अनिष्टकारक।”
*. अब देखिए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2).
20, 1978 क्रि० लॉ ज० 968.
- कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार— जो कोई अपने द्वारा किए गए किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक सेवक द्वारा अपेक्षा किए जाने पर, जो उससे यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप सक्षम हो कि वह उस कथन पर हस्ताक्षर करे, उस कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा। या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा किसी कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करने पर ऐसे लोक-सेवक के लिये दण्ड का निर्धारण करती है तो उस कथन पर हस्ताक्षर करने के लिये वैध रूप से सक्षम हो। इस धारा को लागू होने के लिये यह आवश्यक है कि कथन लिखित हो तथा ऐसा हो जिस पर हस्ताक्षर करने के लिये लोक-सेवक वैध रूप से सक्षम हो।
- शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन-जो कोई किसी लोक सेवक या किसी अन्य व्यक्ति से, जो ऐसे शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान देने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हो, किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए शपथ, या प्रतिज्ञान द्वारा वैध रूप से आबद्ध होते हुए ऐसे लोक सेवक या यथापूर्वोक्त अन्य व्यक्ति से उस विषय के सम्बन्ध में कोई ऐसा कथन करेगा, जो मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
टिप्पणी
यह धारा शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिये प्राधिकृत लोक-सेवक या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन के लिये दण्ड का प्रावधान प्रस्तुत करती है ।21 यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे लोकसेवक के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन करता है, जो पूर्णतया अपने क्षेत्राधिकार से परे शक्ति का प्रयोग कर रहा है,22 या ऐसे शपथ या प्रतिज्ञान पर कथन लेने के लिये सक्षम नहीं है, तो वह व्यक्ति इस धारा के अन्तर्गत उत्तरदायी नहीं है।23।
- इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे–जो कोई किसी लोक सेवक को कोई ऐसी इत्तिला, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, इस आशय से देगा कि वह उस लोक सेवक को प्रेरित करे या यह सम्भाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको तद्वारा प्रेरित करेगा कि वह लोकसेवक
(क) कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे जिसे वह लोक सेवक, यदि उसे उस सम्बन्ध में, जिसके | बारे में ऐसी इत्तिला दी गई है, तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता, अथवा
(ख) ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो,
वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टान्त
(क) क एक मजिस्ट्रेट को यह इत्तिला देता है कि ये एक पुलिस आफिसर, जो ऐसे मजिस्ट्रेट का अधीनस्थ है, कर्तव्य पालन में उपेक्षा या अवचार का दोषी है, यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या
- नियाज अली, (1882) 5 इला० 17.
- आन्दी चेट्टी, (1865) 2 एम० एच० सी० 438.
- सुब्बा, (1883) 6 मद्रास 252.
है, और यह सम्भाव्य है कि उस इत्तिला से वह मजिस्ट्रेट य को पदच्युत कर देगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
(ख) क एक लोक सेवक को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि य के पास गुप्त स्थान में विनिषिद्ध नमक है। वह इत्तिला यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह जानते हुए देता है कि यह सम्भाव्य है कि उस इत्तिला के परिणामस्वरूप य के परिसर की तलाशी ली जाएगी, जिससे य को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
(ग) एक पुलिस जन को क यह मिथ्या इत्तिला देता है कि एक विशिष्ट ग्राम के पास उस पर हमला किया गया है और उसे लूट लिया गया है। वह अपने पर हमलावर के रूप में किसी व्यक्ति का नाम नहीं लेता। किन्तु वह जानता है कि यह सम्भाव्य है कि इस इत्तिला के परिणामस्वरूप पुलिस उस ग्राम में जांच करेगी और तलाशियां लेगी, जिससे ग्रामवासियों या उनमें से कुछ को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
टिप्पणी
यह धारा ऐसी मिथ्या सूचनाओं से सम्बन्धित है जो एक लोक-सेवक को वह कार्य करने के लिये प्रेरित करे जिसे उसे नहीं करना चाहिये। अत: इस धारा का प्रयोजन यह है कि किसी मिथ्या सूचना द्वारा लोकसेवक को प्रेरित न किया जा सके। वह व्यक्ति जो मिथ्या सूचना लोक-सेवक को देता है, लोक-सेवक को भ्रमित करने के आशय से युक्त होना चाहिये तथा उसे यह ज्ञात होना चाहिये कि जो सूचना लोक-सेवक को दी जा रही है, मिथ्या है। इस धारा के अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है कि लोक-सेवक जिसे मिथ्या सूचना दी। गयी है, उस सूचना के आधार पर कार्य करे अथवा कोई कार्य करने से लोप करे। जो व्यक्ति ऐसी सूचना प्रदान करता है उसका आशय अथवा ज्ञान ही इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये पर्याप्त है। कर्तव्य पालन में कमी के लिये किसी लोक मंच से पुलिस की भत्र्सना द्वारा इस धारा के अन्तर्गत कोई अपराध नहीं गठित होता।24 |
रामधन बनाम उ० प्र० राज्य और अन्य24a के वाद में यह अभिधारित किया गया कि धारा 177, 182 के अधीन अपराध न्यायालय के बाहर कारित किये जा सकते हैं।
- लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा सम्पत्ति लिये जाने का प्रतिरोध– जो कोई किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा किसी सम्पत्ति के ले लिये जाने का प्रतिरोध यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि वह ऐसा लोक सेवक है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो । सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा लोक-सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा सम्पत्ति लिये जाने के प्रतिरोध को दण्डनीय बनाती है। किन्तु यह धारा तभी लागू होगी जब यह सिद्ध हो जायेगा कि प्रतिरोध इस ज्ञान के रखते हुये किया गया था कि वह लोक-सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार के विरुद्ध है।
- लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रतिस्थापित की गई सम्पत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना– जो कोई ऐसी किसी सम्पत्ति के विक्रय में, जो ऐसे लोक सेवक के नाते किसी लोक सेवक के विधिपर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई हो, साशय बाधा डालेगा, १९ पानी में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुमन से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
टिप्पणी
इस धारा के अन्तर्गत, जो भी व्यक्ति साशय लोक प्राधिकारी द्वारा किसी सम्पत्ति के उपस्थित करेगा, दण्डित किया जायगा। इस धारा के अन्तर्गत शारीरिक प्रतिरोध इस धारा के अन्तर्गत शारीरिक प्रतिरोध आवश्यक नहीं है।
- शिवकुमार प्रसाद सिंह तथा अन्य बनाम बिहार राज्य, 1984 क्रि० ला ज० 1417.
24a. (2012) II क्रि० ला ज० 2419 (एस० सी०).
प्राविन्सियल गवर्नमेण्ट सी० पी० एण्ड बेरार बनाम बालाराम25 के वाद में न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि यदि लोक-सेवक द्वारा की जा रही नीलामी के अवसर पर कोई व्यक्ति गाली-गलौज की भाषा इस्ते करता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डित किया जायेगा।
- लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति के अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना—जो कोई सम्पत्ति के किसी ऐसे विक्रय में, जो लोक सेवक के नाते लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा हो रहा हो, किसी ऐसे व्यक्ति के निमित्त चाहे वह व्यक्ति वह स्वयं हो, या कोई अन्य हो, किसी सम्पत्ति का क्रय करेगा या किसी सम्पत्ति के लिए बोली लगाएगा जिसके बारे में वह जानता हो कि वह व्यक्ति उस विक्रय में उस सम्पत्ति के क्रय करने के बारे में किसी विधिक असमर्थता के अधीन है या ऐसी सम्पत्ति के लिए यह आशय रख कर बोली लगाएगा कि ऐसी बोली लगाने से जिन बाध्यताओं के अधीन वह अपने आपको डालता है उन्हें उसे पूरा नहीं करना है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा लोक-सेवक द्वारा विक्रय के लिये प्रस्थापित की गई सम्पत्ति के अवैध क्रय अथवा उसके लिये अवैध बोली के सम्बन्ध में दण्ड का निर्धारण करती है। यदि कोई व्यक्ति एक ऐसे व्यक्ति के बदले जो क्रय करने के लिये वैध रूप से प्राधिकृत नहीं है, सम्पत्ति के लोक विक्रय के अवसर पर बोली लगाता है, तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा।
- लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना– जो कोई किसी लोक सेवक के, लोक कृत्यों के निर्वहन में स्वेच्छया बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
जो व्यक्ति स्वेच्छया लोक-सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा उपस्थित करेगा, इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय होगा। किन्तु बाधा या प्रतिरोध उस समय उपस्थित किया जाना चाहिये जब कि लोकसेवक विधि द्वारा प्राधिकृत लोक दायित्वों का निर्वहन कर रहा हो। इस धारा के अन्तर्गत ‘‘बाधा” शब्द से तात्पर्य है कोई प्रत्यक्ष हिंसात्मक कार्य अथवा हिंसा का प्रदर्शन।।
- लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो–जो कोई किसी लोक सेवक को, उसके लोक कर्तव्य के निष्पादन में सहायता देने या पहुँचाने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए ऐसी सहायता देने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;
और यदि ऐसी सहायता की मांग उससे ऐसे लोक सेवक द्वारा, जो ऐसी मांग करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, न्यायालय द्वारा वैध रूप से निकाली गई किसी आदेशिका के निष्पादन के या अपराध के किए जाने का निवारण करने के, या बल्वे या दंगे को दबाने के या ऐसे व्यक्ति को, जिस पर अपराध का आरोप है या जो अपराध का या विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने का दोषी है, पकड़ने के प्रयोजनों से की जाए तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यदि लोक-सेवक को उसके लोक दायित्वों के निर्वहन में सहायता पहुँचाने के लिये विधि द्वारा बाध्य कोई व्यक्ति ऐसी सहायता देने का साशय लोप करेगा तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डित किया जायेगा। इसके
- 1939 नागपुर 139.
अतिरिक्त इस धारा के अन्तर्गत उन मामलों के लिये भी दण्ड का प्रावधान किया गया है जब किसी सेवक द्वारा किसी व्यक्ति से विशिष्ट उद्देश्य के लिये सहायता मांगी जाती है और वह व्यक्ति सहायता करने में लोप करता है।
- लोक सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा_जो को हए कि वह ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के विधिपूर्वक सशक्त है, कोई कार्य करने से विरत रहने के लिए या अपने कब्जे में की, या अपने किसी सम्पत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निटे करेगा;
यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियोजित किन्हीं व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या धति की जोखिम, कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
| और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य, या क्षेम को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, या बल्वा या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण– यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय अपहानि उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से अपहानि होना सम्भाव्य है। यह पर्याप्त है कि जिस आदेश की वह अवज्ञा करता है उस आदेश का उसे ज्ञान है, और यह भी ज्ञान है कि उसके अवज्ञा करने से अपहानि उत्पन्न होती या होनी सम्भाव्य है।
दृष्टान्त
एक आदेश, जिसमें यह निदेश है कि अमुक धार्मिक जुलूस अमुक सड़क से होकर न निकले, ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किया जाता है, जो ऐसा आदेश प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है। क जानते हुए उस आदेश की अवज्ञा करता है, और तद्द्वारा बल्वे का संकट कारित करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
टिप्पणी
अवयव-इस धारा में वर्णित अपराध के निम्नलिखित अवयव हैं
(1) किसी लोक-सेवक द्वारा कोई विधिपूर्ण आदेश प्रख्यापित किया गया हो तथा उसे प्रख्यापित करने के लिये वह सशक्त हो; ।
(2) प्रख्यापित आदेश का ज्ञान जो सामान्य या विशिष्ट हो सकता है,
(3) ऐसे प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा, तथा
(4) ऐसी अवज्ञा के फलस्वरूप उत्पन्न परिणाम।।
इस धारा के अन्तर्गत यह आवश्यक है कि अभियुक्त को उस आदेश का ज्ञान हो जिसकी अवज्ञा का आरोप उस पर लगाया गया है। किसी आदेश की मात्र अवज्ञा स्वत: कोई अपराध गठित नहीं करती, अपितु यह सिद्ध होना चाहिये कि ऐसी अवज्ञा के परिणामस्वरूप क्षोभ या क्षति कारित हुई है। |
- लोक सेवक को क्षति करने की धमकी–जो कोई किसी लोक सेवक को या ऐसे किसी व्यक्ति को जिससे उस लोक सेवक के हितबद्ध होने का उसे विश्वास हो, इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि उस लोक सेवक को उत्प्रेरित किया जाए कि वह ऐसे लोक सेवक के कृत्यों के प्रयोग से संसक्त कोई कार्य करे, या करने से प्रविरत रहे, या करने में विलम्ब करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
टिप्पणी
यह धारा किसी लोक-सेवक को या लोक-सेवक से हितबद्ध किसी व्यक्ति को क्षति करने की धमकी के सम्बन्ध में दण्ड का निर्धारण करती है। यह धारा उन धमकियों से सम्बन्धित है जो लोक-सेवक को अपना निर्णय बदलने के लिये प्रेरित करने वाले गुणों से युक्त हों। एक प्रकरण में दो सिपाही रात में सन्निरीक्षण हेतु एक संशयास्पद व्यक्ति के आवास पर जाकर सड़क पर से उसका नाम लेकर पुकारने लगे, संशयास्पद व्यक्ति के भाई ने जो बगल की एक झोपड़ी में सोया हुआ था बाहर निकल कर दोनों पुलिसवालों को यह धमकी दिया कि इस प्रकार यदि वे क्षोभ उत्पन्न करेंगे तो वह उन पर प्रहार कर देगा। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उस व्यक्ति को इस धारा के अन्तर्गत दोषी घोषित किया 26 |
- लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी– जो कोई किसी व्यक्ति को इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि वह उस व्यक्ति को उत्प्रेरित करे कि वह किसी क्षति से संरक्षा के लिए कोई वैध आवेदन किसी ऐसे लोक सेवक से करने से विरत रहे, या प्रतिविरत रहे, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी संरक्षा करने या कराने के लिए वैध रूप से सशक्त हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
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